*एक डॉक्टर साहब अपने अस्पताल में मरीज देख रहे थे। 100 से ज्यादा मरीज अपने नम्बर का इन्तजार कर रहे थे। कई मरीज तो करोड़पति भी थे।*
*महीने की सात तारीख को डॉक्टर साहब बिना शुल्क के मरीजों को देखते थे। ये उनका चैरिटी करने का अपना अंदाज था जिसके बारे में कम लोग जानते थे। लेकिन उस दिन वह तारीख नहीं थी।*
*इतने में एक मरीज पर्चा लिखवाने के बाद बोला, मेरे पास फीस के पैसे नहीं हैं तो डॉक्टर ने पर्चा फाड़ दिया और बोला बिना फीस मैं मरीज नहीं देखता।*
*मरीज रुआंसा हुआ बाहर आ गया। लोगों ने उसके उतरे चेहरे देख कारण पूछा तो उसने पूरी कहानी बताई।*
*डॉक्टर का यह आचरण जान कर मरीजों में चर्चा शुरू हो गई। ऐसे भी डॉक्टर होते हैं ! मानवता नाम की चीज नहीं बची, केवल पैसे के लिए जीते हैं। डॉक्टर भी सीसीटीवी कैमरा रिकॉर्डर से सभी मरीजों की बात ईयर फोन पर सुन रहा था। लगभग सभी मरीजों, जिसमें बड़े-बड़े धन्ना सेठ भी थे, ने विभिन्न गरिमामय गालियों से डॉक्टर को नवाजा।*
*डॉक्टर साहब अपने केबिन से बाहर आये। सभी मरीज चुप।*
*डॉक्टर ने पूछा, "आप लोग मेरी ही तारीफ कर रहे थे न ! मुझे मालूम है, लेकिन जिस गरीब मरीज का पर्चा फीस के अभाव में मैंने फाड़ा था, वह मेरा ही कर्मचारी था। मैंने तो यह देखने के लिए यह नाटक रचा था कि यहां कितने लोगों में इन्सानियत बची है जो गरीब आदमी की फीस भर सकते थे।*
*लेकिन मैंने देखा आप में से एक भी व्यक्ति ने उस गरीब व्यक्ति की मदद नहीं की। आप बोल सकते थे कि उसकी फीस मैं दे देता हूं, लेकिन नहीं, आपको तो केवल डॉक्टर में दोष देखना है, स्वयं में नहीं।" सबके चेहरे देखने लायक थे।*
*कलियुग की यही सच्चाई है। दान धर्मादा सभी चाहते हैं, किन्तु स्वयं नहीं करेंगे, दूसरों से करवाना चाहते हैं।*
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