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Tuesday, June 21, 2016

खूंटे में मोर दाल है, का खाउं-का पीउं, का ले के परदेस जाउं...

खूंटे में मोर दाल है, का खाउं-का पीउं, का ले के परदेस जाउं...


यह एक लोक- कथा है. बिहार में, विशेषकर भोजपुरी अंचल में यह खासा-लोकप्रिय है. दादी-नानी से यह संगीतमय कहानी अधिकांश लोगों ने अपने बचपन के दिनों में सुनी होगी. अब सरोकार वैसा नहीं रहा तो आज के बच्चों को ऐसी कहानियां सुनने को भी शायद ही मिलती हो. आप इस लोक कथा को एक बार फिर पढं़े, अपने बचपन के दिन याद करें और नयी पीढ़ी को भी इसके माध्यम से समझाने की कोशिश करंे कि कैसे बड़ी से बड़ी चुनौतियांे का सामना हिम्मत और अक्ल से किया जाए तो रास्ते निकल आते हैं. और एक खास बात यह कि सब उसी की मदद करते हैं, जो अपनी मदद करना स्वयं जानता है-


एक चिड़िया थी, जो रोज दाना चुगने के लिए अपने बच्चों को घोंसले में छोड़कर, दूर जंगलों के पार बस्तियों में जाया करती थी. एक दिन किसी घुरे पर उसने एक चने का दाना पाया. वह उसे लेकर चक्की में दरने के लिए गयी. दाल दरते-दरते एक दाल खूंटे में फंसी रह गई. एक ही दाल बाहर निकली. चिड़िया ने उसे निकलने की अपनी ओर से बहुत कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो सकी. चिड़िया बढ़ई के पास गयी और उससे खूंटे में फंसी दाल बाहर निकलने को कहा. बढ़ई कुछ और काम कर रहा था, इसलिए उसे ध्यान नहीं दिया. चिड़िया ने उससे बहुत मिन्नत की. उसने कहा-
बढ़ई-बढ़ई खूंटा चिरो
खूंटा में मोर दाल है
का खाउं, का पीउं
का ले के परदेस जाउं...
बढ़ई ने उसक� एक न सुनी और उसे दुत्कार कर भगा दिया. फिर वह राजा के पास गयी. चिड़िया ने राजा से गुहार लगाई-राजा ऐसे बढ़ई को दंड दो जो मुझ जरू�रतमंद की बात नहीं सुनता.
राजा-राजा बढ़ई दंडो
बढ़ई ना खूंटा चीरे
खूंटा में मोर दाल है का खाउं, का पीउं
का ले के परदेस जाउं...
राजा के पास कहां इतनी फुरसत थी कि नन्हीं चिड़िया की बात सब काम छोड़कर सुनता. जब उसने भी विनती पर कोई ध्यान नहीं दिया तो वह रानी के पास गयी और रानी से बोली- हे रानी, तुम अन्यायी राजा का साथ छोड़ दो.
रानी-रानी राजा छोड़ो
राजा ना बढ़ई दंडे
बढ़ई ना खूंटा चीरे
खूंटा में मोर दाल है का खाउं, का पीउं
का ले के परदेस जाउं...
रानी भला अपने राजा को क्यों छोड़ने लगी. रानी ने रोती-बिलखती चिड़िया की एक न सुनी और उसकी बात मानने से इंकार कर दिया.
फिर गौरैया उड़ी, सांप के बिल के पास जाकर रोने लगी. बिल से निकले सांप से अपनी विनती दोहराई-
सरप-सरंप रानी डंसो
रानी ना राजा छोड़े
राजा ना बढ़ई दंडे
बढ़ई ना खूंटा चीरे
खूंटा में मोर दाल है का खाउं, का पीउं
का ले के परदेस जाउं...
उससे अपनी रामकहानी सुनाकर विषैले सांप से कहा कि तुम जाकर उस रानी को डंसो जो गरीब की गुहार नहीं सुनती. जो रानी सबकुछ जानकर भी हमें राजा से न्याय नहीं दिला सकी और न ही राजा को छोड़ सकी, उसे तुम जाकर क्यांे नहीं डंस लेते? सांप ने भी इसमें अपनी असमर्थता जतायी.
तब भागी-भागी गौरैया जंगल में जा पहुंची और उसने बांस से विनती की कि तुम लाठी बनकर उस सांप को मारो.
गौरैया ने कहा-
लाठी-लाठी सांप पीटो
सांप ना रानी डंसे
रानी ना राजा छोड़े
राजा ना बढ़ई दंडे
बढ़ई ना खूंटा चीरे
खूंटा में मोर दाल है का खाउं, का पीउं
का ले के परदेस जाउं...
बांस की लाठी भी भला उस नन्हीं गौरैया के लिए, उस सांप से क्यों बैर मोल लेती. उसने भी इंकार किया तो गौरैया गुस्से से भर उठी और उड़कर भड़भूंजे के यहां भभक रही आग के पास पहुंची और उसे ललकारा-हे आग, तुम सारे जंगल को जलाकर राख कर दो, जिसमें वह बांस के पेड़ हैं, जिसकी लाठी मुझ गरीब और बेसहारा के लिए नहीं उठती. कोई मुझे मेरा हक नहीं दिलाता. आग ने जब सारी बात विस्तार से जाननी चाही तो गौरैया ने अपनी रामकहानी उसके आगे भी सुना दी-
लाठी ना विषधर मारे
विषधर ना रानी डंसे
रानी ना राजा छोड़े
राजा ना बढ़ई दंडे
बढ़ई ना खूंटा चीरे
खूंटा में मोर दाल है का खाउं, का पीउं
का ले के परदेस जाउं...
फिर आग ने जब इतनी छोटी सी बात के लिए जब गौरैया की बात मानकर, पूरे जंगल को जलाना ठीक नहीं समझा और जंगल को जलाने से इंकार कर दिया तो गौरैया बहुत दुखी हुई, लेकिन निराश नहीं. वह सागर के पास पहुंची और उसे अपनी पूरी बात सुनाकर आरजू की-
सागर-सागर आग बुझाओ
आग ना जंगल जारे
जंगल ना लाठी भेजे
लाठी ना विषधर मारे
विषधर ना रानी डंसे
रानी ना राजा छोड़े
राजा ना बढ़ई दंडे
बढ़ई ना खूंटा चीरे
खूंटा में मोर दाल है का खाउं, का पीउं
का ले के परदेस जाउं...
विशाल सागर भला गौरैया की इस गुहार को क्यों सुनता, वह अपनी मस्ती में हंसता हुआ गुजरता रहा और गौरैया उसके किनारे अपना सिर धुनती रही.
सुबह से शाम होने को आई. गौरैया को जब यहां भी न्याय नहीं मिला तो वह हाथी के पास पहुंची. हाथी के पास उनसे अनुनय की कि तुम चलकर मुझे न्याय दिलवाओ. उस समुद्र को सोख लो जो मुझ दुखियारी की हंसी उड़ाता है. बलवान होते हुए भी अन्यायी के विरूद्ध खड़ा नहीं होता. जानते हो हमारे साथ क्या-क्या गुजरी. और वह गा-गा कर पूरी व्यथा-कथा हाथी को सुनाने लगी-
सागर ना आग बुझावै
आग ना जंगल जारै
जंगल ना लाठी भेजै
लाठी ना विषधर मारै
विषधर ना रानी डंसै
रानी ना राजा छोड़े
राजा ना बढ़ई दंडे
बढ़ई ना खूंटा चीरे
खूंटा में मोर दाल है का खाउं, का पीउं
का ले के परदेस जाउं...
हाथी भी गौरैया की बात सुनकर टस से मस नहीं हुआ. उसने भी उसका साथ नहीं दिया और उसकी बातों को हवा में उड़ाता हुआ, अपने लंबे-लंबे सूप जैसे कान हिलाते मस्ती में आगे निकल गया.
अब नन्हीं गौरैया का धीरज टूटने लगा. वह थककर चूर हो गई थी. जहां की तहां बैठी लाचार-सी होकर आंसू बहाने लगी. सारी दुनिया उसे अंधेरी दिखाई देने लगी. किससे -किससे उसने अपनी कहानी नहीं सुनाई लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की. बेसहारा लाचार की करुण पुकार पर कोई ध्यान नहीं देता. तभी उसके पैरों के पास एक नन्हीं-सी चींटी आकर उसका हाल पूछने लगी. उसने देखा नन्हीं-नन्हीं चींटियों की एक लंबी कतार एक के पीछे एक बहुत ही अनुशासित ढंग से चली आ रही है. उसने ध्यान से देखा उनका अद्भुत संगठन और अथक परिश्रम. वे बड़ी फुर्ती, तत्परता और सुनियोजित ढंग से अपना काम मिलजुलकर किये जा रही थीं.
चींटियों ने आकर उसे घेर लिया और गौरैया से पूरा वृतांत सुना. सुनकर सहानुभूति के साथ बोलीं, बहन! इस दुनिया में रोने-गिड़गिड़ाने से काम नहीं चलता और न ही बैठकर आंसू बहाने से कुछ होता है. हिम्मत हारकर बैठना तो कायरता है, चलो हमारे साथ, हम न्याय दिलाएंगी, कोई रास्ता निकालेंगी.
चलते-चलते चिड़िया यह सोचती रही कि भला यह नन्हीं-नन्हीं चीटियां मेरी क्या मदद करेंगी, जबकि बड़ों-बड़ों ने मुझसे मुंह मोड़ लिया और मेरे किसी काम न आएं. खैर! चलो देखते हैं, कोई तो मेरी मदद के लिए आगे आया है. चींटी बहना हमारा साथ देने चली है तो उसकी फौज भी तो है उसके पीछे, फिर घबराना क्या? देखते हैं क्या होता है?
गौरैया सोचती चली जा रही थी. तभी चींटिेयों ने उससे कहा, तुम किसी पास की पेड़ की डाल पर थोड़ी देर बैठो और देखो मैं क्या करती हूं, कैसे पहाड़ जैसा हाथी मेरे इशारे पर नाचने लगता है और तुम्हारे काम के लिए दौड़ा-दौड़ा समुद्र के पास जाता है. हिम्मत हारने से कुछ नहीं होता. मिलजुलकर जुगत लगाने से ही समस्याओं के समाधान का रास्ता निकलता है.
गौरैया फुर्र से पास के पेड़ की डाल पर जा बैठी और चकित होकर चींटियों की असंभव-सी लगनेवाली बातों को कारगर होते अपनी आंखों के सामने देखती रही.
चींटी धीरे-धीरे हाथी के पैर से सरककर उसके कान तक जा पहुंची. हाथी अपने सूप जैसे कान हिलाता, सूंड से अपने माथे पर फूंक मारता ही रह गया और चींटी उसके कान में घुस कर उसे तंग करने लगी और उसे समझाने लगी, बड़े-बड़े बलवान यदि अपने बल अहंकार मंे चूर होकर दीन-हीन छोटों की सहायता न करें तो उन्हें भी भान होना चाहिए कि काम पड़ने पर छोटे भी यदि अपनी आन-बान के लिए अड़ जाएं तो बड़ों-बड़ों के लिए संकट पैदा कर सकते हैं.
अभी तो मैं अकेले आयी हूं, किंतु मेरे पीछे असंख्य चींटियों की इंबी कतार चली आ रही है. कहीं सबने एक साथ चढ़ाई कर दी तो लेने के देने पड़ जाएंगे. अपने प्राण संकट मंे क्यों डालते हो? मेरी नेक सलाह यही है कि तुम सीधी तरह चलकर गौरैया का काम करो नहीं तो आगे समझ लो...
मरता क्या न करता. हाथी झुंझलाहट और घबराहट में चींटी की बात मानने को लाचार हो गया. वह यह कहते हुए गौरैया के काम के लिए सागर को सोखने को तैयार हो गया-
मोहे काटो-ओटो मत कोई
हम सागर सोखबि लोई.
चींटी ने हाथी का पिंड छोड़ दिया और गौरैया उसे धन्यवाद देते हुए हाथी के पीछे-पीछे उड़ती वापस सागर की ओर लौैटी. हाथी जैसे ही सागर के पास उसे सोखने के इरादे से पहुंचा, सागर हाथ जोड़कर बोला-
मोहे सोखो-वोखो मत कोई
हम आग बुझाइब लोेई.
सागर जब अपनी तटों की सीमा छोड़कर आग बुझाने के लिए उमड़ा, आग ने थर-थर कांपते हुए गौरैया का काम करने का वचन दिया और कहा-
मोहे बुझावो-उझावो मत कोई,
हम जंगल जारब लोई.
आग जंगल को जलाने के लिए बढ़ी, गौरैया भी साथ चली आ रही है, यह जानकर जंगल ने भी वादा किया- मैं लाठी को सांप मारने के लिए तुरंत भेजता हूं लेकिन मुझे जलाकर राख मत करो.
मोहे जारो-ओरो मत कोई
हम सांप के मारब लोई.
सांप की क्या मजाल जो जंगल की बंसवारियों में अनगिनत लाठियों की मार से भयभीत न हो. उसने भी बिल से बाहर आकर गौरैया को भरोसा दिया.
मोहे मारो-ओरो मत कोई
हम रानी डंसब लोई
रानी ने जब सांप को महल में आते देखा और उसके साथ गौरैया को आते देखा तो वह पूरी बात का अनुमान कर पसीने-पसीने हो गई. उसने हाथ जोड़कर विनती की-
मोहे डंसो-ओसो मत कोई
हम राजा त्यागब लोई
रानी के उस वचन के बाद भला राजा क्यों अपने हठ पर टिकता? उसे तो गौरैया के धीरज, अथक परिश्रम और सूझबूझ का समाचार मिल चुका था. उसने अपनी लापरवाही और अन्याय के लिए क्षमा मांगते हुए फौरन बढ़ई को बुलाने का वचन दिया और कहा-
मोहे त्यागो-ओगो मत कोई
हम बढ़ई दंडब लोई
फिर क्या था. बढ़ई ने राजा के सामने आकर गौरैया की बात न मानने का अपराध कबूल किया और थर-थर कांपते हुए राजा से गिड़गिड़ाकर विनती की-
मोहे दंडो-वंडो मत कोई
हम खूंटा फाड़ब लोई.
गौरैया को और क्या चाहिए! गौरैया बढ़ई के साथ उस चक्की के खूंटे के पास पहुंची जिसमें चने की दाल फंसी हुई थी. बढ़ई ने खूंटे से दाल निकालकर दी और गौरैया उसे अपने चोंच में लेकर अपने घोंसले में पहुंची, जहां उसके नन्हें-नन्हें बच्चेे, जब से वह गयी थी, उसकी राह में आंखें बिछाये भूखे-प्यासे बैठे थे. बच्चों ने चहचहाकर उसका स्वागत किया और वह अपने चोंच से चने का दाना अपने बच्चों को खिलाने लगी और गुनगुनाकर पूरी कहानी सुनाने लगी कि कैसे उसने हिम्मत से काम किया. बड़े-बड़ों ने उसकी बात मानकर उसकी मदद की लेकिन जब वह केवल रो-गिड़गिड़ा रही थी तो किसी ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया. मदद के लिए आगे आयीं तो वे चींटियां, जिनकी संगठित सेना के सामने हाथी भी लाचार हो गया.
सच ही कहा गया है- सब उसी की मदद करते हैं जो स्वयं अपनी मदद करना जानता है.....




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इन पंक्तियों को गाकर देखिए, याद आ जाएगा बचपन का दिन........

इन पंक्तियों को गाकर देखिए, याद आ जाएगा बचपन का दिन........



* चल कबड्डी आसलाल, मर गया प्रकाशलाल

* आव तानी रे, डेरइहें मत रे
  कपार कान फूटी- लड़िकपन छूटी- लड़िकपन छूटी...

* ओका-बोका तीन तड़ोका, लऊआ-लाठी चंदन काठी...





* आन्हीं-बुनी आवेले, चिरइयां ढोल बजावेले
  बूढ़ी मइया हाली-हाली, गोइठा उठावेले
  एक मुठी लाई, दामाद फुसलाई
  बुंदी ओनही बिलाई, बुंदी ओनही बिलाई...

* तार काटो, तरकूल काटो, काटो रे बनखाजा
  हाथी प के घुंघरा, चमक चले राजा
  राजा के दुलारी बेटी, खूब बजाए बाजा
  तालवा खुलते नइखे, चभिया मिलते नइखे
  चभिया मिल गइल, तालवा खुल गइल...

* घुघुआ माना, उपजे धाना
  नया भीति उठत हई, पुरान भीति गिरत हई
  बासन-बरतन सम्हरिये बुढ़िया, ढायं...




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आपका बच्चा कैसे खेल खेलता है ?

आपका बच्चा कैसे खेल खेलता है ?

हम सभी अपने बच्चों की पढाई को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं पर क्या कभी आपने गौर किया है कि आपका लाडला अपने बचपन में किस प्रकार के खेल खेलता है |ये आलेख लिखते -लिखते मुझे अपना बचपन याद आगया और मैंने वे सभी खेल यहाँ लिख दिए जो हम खेला करते थे| शायद आप भी बच्चों के लिए इसमें से कुछ चुन ले | वैसे तो आज के मॉडर्न युग में इतने बड़े-बड़े समर केम्प लगा दिए जाते हैं कि हम सभी अपने बच्चों को वहीं भेजने में अपना बडप्पन मानते हैं| पर अब भी कुछ खेल बाकी है जिनको खिलाकर हम अपने बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास कर सकते हैं | 
1. पोसमपा भई पोसमपा 
पोसम पा भई पोसम पा 
डाकियो ने क्या किया 
सौ रुपये की घड़ी चुराई
अब तो जेल में फंसना पडेगा 
जेल की रोटी खानी पड़ेगी 
जेल का पानी पीना पडेगा
अब तो जेल में रहना पडेगा| 
2. तितली तितली रंग दे |
कैसा
मन चाहे जैसा 
लाल 
बच्चे लाल रंग की वस्तुओ को छूकर बताएँगे |
ऐसे ही सब रंगों का नाम लेकर बच्चों को रंगों की जानकारी देंगे | 
३. सभी बच्चे छोटा गोला बनाकर घूमेंगे| 
एक बच्चा बाबा बनेगा |
सभी बच्चे उससे पूछेंगे| 
बाबा बाबा कहाँ जारहे
गंगा नहाने 
गंगा तो ये रही 
ये तो छोटी है 
एक पैसा डाल दो 
बडी हो जाएगी |
(बाबा बना बालक उसमें पैसा डालेगा और बच्चे गोले को बड़ा कर लेंगे|) आओ मिलकर गंगा नहाएं |
४. बच्चे अपनी मुठ्ठी एक दूसरे की मुठ्ठी के ऊपर रख लेंगे|
(बच्चे गायेंगे )
बाबा बाबा आम दो 
( एक कहेगा )
आम है सरकार के 
(सभी बच्चे )
हम भी हैं दरबार के 
(पहला बच्चा कहेगा)
एक आम उठा लो 
( सभीबच्चे आम उठा कर)
ये तो खट्टा है 
दूसरा उठा लो 
मीठा है मीठा है 
मेरा आम मीठा है |
५. पक्षियों का नाम लेकर कहेंगे तोता उड़ ,चिड़िया उड़|
बीच –बीच में जानवरों का नाम लेकर कहेंगे- गाय उड़,कुत्ता उड़ | यदि बच्चा जानवर के नाम पर भी अपनी अंगुली उठा देता है तो वह खेल से निकल जायेगा| 
६, सभी बच्चे अपना अपना हाथ जमीन पर रख लेंगे | एक बच्चा सभी के हाथों को छूता हुआ गाना गायेगा 
अटकन बटकन दही चटकन वन फूले बंगाले 
मामा लायो सात कटोरी एक कटोरी फूटी 
मामा की बहू रूठी 
काहे बात पे रूठी खाने को बहुतेरो 
दूध दही बहुतेरो |
राजा के भयो लड़का 
बिछा दे रानी पलका 
अंतिम शब्द जिसके हाथ पर आएगा वह खेल में निकल जाएगा ऐसे करके सबसे बाद में जो बच्चा रह जाएगा सभी लोग उसके हाथों पर चपत मारेंगे उसे अपना हाथ बचाना होगा | इसी प्रकार खेल खेला जाएगा |
७. इन खेलों के अतिरिक्त गेंद के खेल (सेका सिकाई ,गिट्टी फोड ,सात टप्पे) ऊँच-नीच ,किल किल कांटे,नीली पीली साड़ी ,खो-खो ,रस्सी कूद ,गुटके ,स्टापू (जमीन पर आकृति बनाकर उसके खानों में गोटी डालना )अन्त्याक्षरी ,संज्ञा शब्द खेल (नाम-व्यक्ति, वस्तु, शहर,जानवर,पिक्चर )पर्ची खेल ( राजा, वजीर, चोर, सिपाही )छूहा छाही ,विष अमृत ,गुड़िया-गुड्डे के खेल ,केरम,साँप -सीढ़ी,लूडो ,पतंग,गुल्ली डंडा, कंचे गोली अवश्य खिलाए जाए | ये खेल बच्चों के शरीर को स्वस्थ रखते हैं साथ ही उनकी मानसिक क्षमता में वृद्धि भी करते हैं|बच्चे अनुकरण से सीखते हैं | कई बार वे अपने खेलों का निर्माण खुद कर लेते हैं जैसे डाक्टर बनकर सुईं लगाना और दवाई देना , टीचर बनकर बच्चों को पढ़ाना ,माता पिता बनकर उनके जैसा व्यवहार करना ये सभी खेल बच्चे स्वयं निर्मित करते हैं और अपने को अभिव्यक्त करते हैं |अपने बच्चों के बचपन के खेल देखकर हमें उनकी रूचि पता लगती है | कुछ बच्चों को कला बनाना बहुत पसंद है तो कुछ बच्चे अपने बेग में अपना खजाना रखते हैं मसलन चूड़ी के कुछ टुकड़े, कुछ तस्वीरें, कुछ कंचे कुछ टूटी पेंसिलें जो माता पिता और टीचर की निगाह में कूड़ा हो सकती हैं पर बच्चे को अपना ये खजाना बहुत प्रिय होता है बल्कि कहें कि वे इसे अपना राज्य मानते हैं और हम बड़े उस बच्चे के उस बेशकीमती खजाने को कूड़ा समझ कर फेंक देते हैं|मैंने भी कई बार ये गलती की कि जब बच्चों का बेग देखती थी तब उनकी बेशकीमती चीजों को बड़ी निर्ममता से फेंक दे देती थी| इस बार प्रयास के एक बच्चे ने बड़ी मासूमियत से कहा दीदी क्या आपको पता है कि जो सामान आपने फेंक दिया वह मैं ने कितनी मुश्किल से ओदा था | सच ही हमें बच्चों के प्रति अपना नजरिया बदलना होगा | 





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इनमें से कौन सा खेल खेले हैं आप ?

इनमें से कौन सा खेल खेले हैं आप ?



पहले ग्रामीण ईलाकों में घोघो रानी, कितना पानी, जट-जटिन, खो-खो, रूमाल चोर, सूई-धागा, जलेबी, कुर्सी दौड़, कबड्डी, गुड्डी कबड्डी, छू कित, कित, था,..वाली बाल खुब खेला जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं होता है



सूर
आईस-पाईस
गुल्ली डंडा
पिट्ठो
लट्टू
डेंगा पानी
रूमाल चोर
बोरा दौड़
सुई-धागा दौड़
जलेबी दौड़
चिह्न-चिन्होरिया
मुर्गा युद्ध
गोटी
गोली
जवनकी कबड्डी
बुढ़िया कबड्डी
नौ गोटिया
चौबीस गोटिया
सिरगिटान
खूजाकाट
ओका बोका
आंख मुंदव्वल
धूल सोना
बिछिया
धूहा
बेटा-बेटी
पांच गोटिया
चोर-सिपाही
बाघ-बकरी
गाड़ी-तीती
कौआ ठोकर
चकवा-चकई
जादू-टोना
डोल्हा-पाती
बुझंती-बुझंती
चूहा-बिल्ली
पकौड़ी-पकौड़ी
चुड़ी-चाईं 
लंघाता-लंघाता
घुघुआ-मा
गुड़-गुड़
बालू के टीला-टीला
रस्सी कूद
झूला
चिका-चिकी
कुरसी दौड़
काग-दुरूस या छूंछी
डगरौनी
गिदली
पानी में ईंट खोजना
फितिंगी-फितिंगी
धुरिया विचार
अकिल गुम
गुड्डी-लटाई
घोघोरानी
मसाला पीसना
चढ़नी-चढ़ात
गरूण बाबा
आंख मिचौली
भड़ोका
रामजी-रामजी
घाम की बदरी
बुढ़िया भस भस
रेड़ी लड़ाना
हवाई जहाज दौड़
हाथ जोड़ात
धूप-छांव
सिरबोय-बोय
राजा कोतवाल
बुढ़िया माई
कागज की नाव
सुतऊवल-बईठऊवल
हरवा-तिसिया
मदना गोपाल की
गोरखा-लऊर
काली चोर
बम पिट्ठो
सतघरवा
नाटरघीसा
सतबीती
पवरिया-पवरिया
गोली मुठ
चूंटा-चूंटा
अमृत-विषामृत
भस्मासुर
नेता कौन
लंगड़ी दौड़
लाली
गुड़िया-पुतरी
खो-खो
टैंक युद्ध
विद्युत की छड़ी
डमरू दौड़,
गणेश छू
स्कंध युद्ध
नमस्ते जी
विचित्र छू
बगुला मैनी
कौआ-कौआ
बिच्छू डंक
आव मोरा सोनामती
मैनी चुचुहिया
कित-कित
पोसम पा भाई पोसम पा
कमल फूल




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Saturday, March 21, 2015

चांद का कुर्ता ~~~ (#Chand Ka Kurta~~~ ) #रामधारी सिंह "दिनकर" (Ramdhari Singh Dinkar~~~)

#चांद का कुर्ता ~~~ (#Chand Ka Kurta~~~ ) #रामधारी सिंह "दिनकर"   (Ramdhari Singh Dinkar~~~)

हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला

सिलवा दो मा मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला

सन सन चलती हवा रात भर जाड़े से मरता हूँ

ठिठुर ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ

आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का

न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही को भाड़े का

बच्चे की सुन बात, कहा माता ने 'अरे सलोने`कुशल करे भगवान, लगे मत तुझको जादू टोने

जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ

एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ

कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा

बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा

घटता-बढ़ता रोज, किसी दिन ऐसा भी करता है

नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है

अब तू ही ये बता, नाप तेरी किस रोज लिवायें

सी दे एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आये~~~



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Wednesday, March 4, 2015

HOLI क्यूँ ना अाज, इस #होली में, सारे वायदे भूल जाये हम

#HOLI
क्यूँ ना अाज, इस #होली में, सारे वायदे भूल जाये हम,
लौट आये फिर से दिन वो बचपन के, सभी कायदे भूल जाये हम …
तू अपनी रंजिशे, बाल्टी में घोल, रंग देना मुझको,
मै अपने अरमानो के गुबार, फेंकूँगा तुझको..
तेरे वो रंग, शायद बदल गये हो, मैने देखे ना हो,
पत्थर सी चोट दे जाये, शायद वो गुबार, जो मैने फेँके ना हो ..




रंगो का ताना-बाना हो, फिर तेरे लिबास पे मेरा रंग गढ़ जाये,
वो मीठी मुस्कान भी तेरी, फिर मुझपे भंग सी चढ़ जाये ..
गर इतना भी खुल के, हम जो मिल ना सके घुल के,
फिर सभी के सामने, सभी से छिपके भी,
अपने एहसासो का ज़रा सा गुलाल, लगा देना तुम
जो उतर जाये साँसो मे, रह जाये चिपके भी
ये बात भी सच है, क्या तेरा तजुर्बा है ऐ रंगरेज़,
कोइ रंग ना चढ पाए, ये रंग है ज़िंदगी के बड़े तेज़


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Monday, March 2, 2015

OLD #MEMORIES - #BACHPAN KE DIN - ONLY 90's kids will understand

OLD #MEMORIES - #BACHPAN KE DIN - ONLY 90's kids will understand



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Friday, February 27, 2015

#Memories

Old #Memories





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Friday, October 28, 2011

पाउस ये रे ये रे पाउसा - सुन्दर बचपन

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In the memory of indian childhood days - Born in India

पुरानी यादे ताज़ा करो achhi kavitaayein Hindi Poems,
हिंदी कविताएँ
(Chilhood Days Golden Old Days ) 
सुन्दर बचपन (Childhood Hindi Poems Which you miss) / flash back of childhood


पाउस-

ये रे ये रे पाउसा

तुला देतो पैसा

पैसा ज्हाला खोटा

पाउस आला मोठा,

ये रे ये रे सर्री

माझे मडके भरी

सर्र आली धाउन

मडके गेले वाहून
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chubby cheeks-

chubby cheeks,
dimple chin,
rosy lips,
teeth within,
curly hair,
very fair,
eyes r blue,
lovely too,
teachers pet , is that u?
yes yes yesssss
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अकड़ बकड़ बाम्बे बो
अस्सी नब्बे पूरे सो
सुई मे लागा तागा
जान निकल भागा
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अपर के हीरो
पढने मे जीरो
प्राईमरी के बच्चे
पढने मे अच्छे
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Baba black sheep hav u any wool,
yes sir ,yes sir three bags full
one for my master ,one for the dame
n one for the li'll boy who lives down d lane........
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2 little dicky birds

2 littile dicky birds sat up on a wall
one named petre other mamed paul
fly away peter
fly away paul
come back peter
come back paul
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GOD'S LOVE.

god's love is so wonder ful,
god's love is so wonder ful,
god's love is so wonder ful,
ohh wonderful love.

its so high we cnt get under it,
its so deep we cnt get over it,
its so wide we cnt around it,
ohh wonderful love
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teddy bear teddy bear,
turn around.
teddy bear teddy bear,
touch the ground.
teddy bear teddy bear,
polish ur shoes.
teddy teddy bear,
off to school
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अक्कड़ बक्कड़ बाम्बे बो
अस्सी नब्भे पूरे सौ
सौ में लगी बिल्ली
बिल्ली भागी दिल्ली
बोले शेख चिल्ली
खेले डंडा गिल्ली
गिल्ली गई टूट
बच्चे गए रूठ
बच्चों को मनाएंगे
रस मलाई खायेंगे
रस मलाई अच्छी
हमने खायी मच्छी
मच्छी में काँटा
पड़ेगा ज़ोर से चांटा
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अक्कड़ बक्कड़ बाम्बे बो
अस्सी नब्भे पूरे सौ
सौ में लगा धागा
चोर निकलके भागा

राजा की बेटी कैसी है?
दुल्हन सज कर बैठी है

चाय गरम... बिस्कुट नरम,
पीने वाला बेशरम !

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Poshampa bhai poshampa
Daakiye ne kya kiya
100 rupaye ki ghadi churayi
50 rupaye ki rabdi khayi
Ab to jail mein jaana padega
jail ki roti khani padegi
jail ka paani peena padega....
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Akkad bakkad bambey bo..
Assi nabbey pure sau..
Sau mein lagaa taiga..
Chor nikal ke bhaagaa..
Raja ki beti soti thi ..
Phool maala piroti thi..
Rail chali chuk chuk ..
Hamne khaya biscuit..
Biscuit nikla kharab..
Hamne pii sharab..
Sharab nikli kachchi..
Hamne khayi machhi ..
Machhi mein nikla kaanta..
Hamne Maara chanta..
Chante mein nikla khoon..
Jaldi karo telephone..
Telephone mein taar nahi..
Hum tumhare yaar nahi..
Yaar gaya dilli ..
dilli se laaya billli..
Billi ne maara panja ..
yaar ho gaya ganja!!
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From - 7jokes- 7 Jokes A Day Keeps Doctor Away

Tuesday, October 25, 2011

Galion Mein Aana Jana Bhool Gaye


नई सदी के रंग में ढलकर हम याराना भूल गए
सबने ढूँढे अपने रस्ते साथ निभाना भूल गए।
शाम ढले इक रोशन चेहरा क्या देखा इन आँखों ने
दिल में जागीं नई उमंगें दर्द पुराना भूल गए।
ईद, दशहरा, दीवाली का रंग है फीका-फीका सा
त्योहारों में इक दूजे को गले लगाना भूल गए।
वो भी कैसे दीवाने थे खून से चिट्ठी लिखते थे
आज के आशिक राहे-वफा में जान लुटाना भूल गए।
बचपन में हम जिन गलियों की धूल को चंदन कहते थे।
बड़े हुए तो उन गलियों में आना जाना भूल गए।
शहर में आकर हमको इतने खुशियों के सामान मिले
घर-आँगन, पीपल-पगडंडी, गाँव सुहाना भूल गए।