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Saturday, May 25, 2013

कहाँ हैं भगवान ?


कहाँ हैं भगवान ?

एक  आदमी हमेशा  की  तरह  अपने   नाई  की  दूकान  पर  बाल  कटवाने  गया .   बाल  कटाते  वक़्त  अक्सर  देश-दुनिया   की  बातें  हुआ करती थीं  ….आज  भी  वे  सिनेमा , राजनीति ,  और  खेल जगत ,  इत्यादि  के  बारे  में  बात  कर  रहे  थे  कि  अचानक   भगवान्  के  अस्तित्व  को  लेकर  बात  होने  लगी .

नाई  ने  कहा , “ देखिये भैया ,  आपकी  तरह  मैं  भगवान्  के  अस्तित्व  में  यकीन  नहीं  रखता .”

“ तुम  ऐसा  क्यों  कहते  हो ?”, आदमी  ने  पूछा .

“अरे , ये  समझना  बहुत  आसान  है , बस  गली  में  जाइए  और  आप  समझ  जायेंगे  कि  भगवान्   नहीं  है . आप  ही  बताइए  कि  अगर भगवान्  होते  तो  क्या  इतने  लोग  बीमार  होते ?इतने  बच्चे  अनाथ  होते ? अगर  भगवान्  होते  तो  किसी  को  कोई  दर्द  कोई  तकलीफ  नहीं  होती ”, नाई  ने  बोलना  जारी  रखा , “ मैं  ऐसे  भगवान  के  बारे  में  नहीं  सोच  सकता  जो  इन  सब  चीजों  को  होने  दे . आप ही बताइए कहाँ है भगवान ?”

आदमी  एक  क्षण  के  लिए  रुका  , कुछ  सोचा , पर  बहस  बढे  ना  इसलिए  चुप  ही  रहा .

नाई  ने  अपना  काम  ख़तम  किया  और  आदमी  कुछ सोचते हुए  दुकान  से  बाहर  निकला और कुछ दूर जाकर खड़ा हो गया. . कुछ देर इंतज़ार करने के बाद उसे  एक  लम्बी  दाढ़ी – मूछ  वाला  अधेड़  व्यक्ति  उस तरफ आता दिखाई  पड़ा , उसे  देखकर  लगता  था  मानो  वो  कितने  दिनों  से  नहाया-धोया ना   हो .

आदमी  तुरंत  नाई  कि  दुकान  में  वापस  घुस  गया  और  बोला , “ जानते  हो इस दुनिया में नाई नहीं होते !”

“भला  कैसे  नहीं  होते  हैं ?” , नाई  ने  सवाल  किया , “ मैं  साक्षात  तुम्हारे  सामने  हूँ!! ”

“नहीं ” आदमी  ने  कहा , “ वो  नहीं  होते  हैं  वरना  किसी  की  भी  लम्बी  दाढ़ी – मूछ  नहीं  होती  पर  वो देखो सामने उस आदमी की कितनी लम्बी दाढ़ी-मूछ है !!”

“ अरे नहीं भाईसाहब नाई होते हैं लेकिन  बहुत से लोग  हमारे  पास  नहीं  आते .” नाई   बोला

“बिलकुल  सही ” आदमी  ने  नाई  को  रोकते  हुए  कहा ,”  यही  तो  बात  है , भगवान भी  होते हैं पर लोग उनके पास नहीं जाते और ना ही उन्हें खोजने का प्रयास करते हैं, इसीलिए दुनिया में इतना दुःख-दर्द है.”




Monday, April 22, 2013

भाग्य बदलते देर नहीं लगती !


Hindi Stories : भाग्य बदलते देर नहीं लगती !


एक मछुआरा था । उस दिन सुबह से शाम तक नदी में जाल डालकर मछलियाँ पकड़ने की कोशिश करता रहा , लेकिन एक भी मछली जाल में न फँसी ।

जैसे -जैसे सूरज डूबने लगा , उसकी निराशा गहरी होती गयी । भगवान का नाम लेकर उसने एक बार और जाल डाला । पर इस बार भी वह असफल रहा . पर एक वजनी पोटली उसके जाल में अटकी । मछुआरे ने पोटली निकला और टटोला तो झुंझला गया और बोला -' हाय ये तो पत्थर है !फिर मन मारकर वह नाव में चढा ।
बहुत निराशा के साथ कुछ सोचते हुए वह अपने नाव को आगे बढ़ता जा रहा था और मन में आगे के योजनाओं के बारे में सोचता चला जा रहा था । सोच रहा था 'कल दुसरे किनारे पर जाल डालूँगा । सबसे छिपकर ...उधर कोई नही जाता ....वहां बहुत सारी मछलियाँ पकड़ी जा सकती है ...  '
मन चंचल था तो फिर हाथ कैसे स्थिर रहता ? वह एक हाथ से उस पोटली के पत्थर को एक -एक करके नदी में फेंकता जा रहा था । पोटली खाली हो गयी । जब एक पत्थर बचा था तो अनायास ही उसकी नजर उसपर गयी तो वह स्तब्ध रह गया । उसे अपने आँखों पर यकीन नही हो रहा था , यह क्या ! ये तो ‘नीलम ’ था |
मछुआरे के पास अब पछताने के अलावा कुछ नही बचा था | नदी के बीचोबीच अपनी नाव में बैठा वह सिर्फ अब अपने को कोस रहा था ।
प्रकृति और प्रारब्ध ऐसे ही न जाने कितने नीलम हमारी झोली में डालता रहता है जिन्हें पत्थर समझ हम ठुकरा देते हैं।

Hindi Stories : चतुर कौआ और साँप


Hindi Stories : चतुर कौआ और साँप


एक नदी के किनारे बरगद का एक वृक्ष था| उस वृक्ष पर घोंसला बनाकर एक कौआ रहता था| वृक्ष की कोटर में एक सर्प रहता था| जब भी मादा कौआ अन्डे देती थी , वह सर्प उन्हें खा जाता था| कौआ बड़ा दुखी था| वह सर्प की दुष्टता के लिए उसे दण्ड देना चाहता था| वह सोचता रहता था कि उस काले भयंकर सर्प से कैसे छुटकारा पाया जाये|

नदी के तट पर एक सुन्दर घाट बना हुआ था| जहाँ पूर्णिमा के दिन राजकुमारी नदी में स्नान करने आती थी| एक दिन कौआ बरगद के पेड़ पर दुखी मन से बैठा हुआ था| उसी समय उसने देखा कि राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ नदी में स्नान करने आ रही हैं| 

घाट पहुँच कर उन्होंने अपने वस्त्र आदि सामान रख दिए| राजकुमारी ने अपना मोतियों का हार भी उतार कर वहीँ रख दिया और अपनी सखियों के साथ नदी में स्नान करने लगी| कौआ को तुरन्त एक तरकीब सूझी| वह बरगद की डाली से काव-काव करता हुआ उड़ा| और राजकुमारी के मोतियों के हार को चोंच से पकड़ कर पेड़ की उस कोटर में डाल दिया जहाँ काला सर्प रहता था| राजकुमारी की एक सहेली ने यह सब देख लिया | शीघ्र ही स्नान करने के बाद राजकुमारी और उनकी सखियाँ हार लेने के लिए बरगद के वृक्ष के पास पहुँची| परन्तु वृक्ष के कोटर में काले भयंकर साँप को देखकर डर गयीं| राजकुमारी ने निश्चय किया कि वह महल पहुँच कर सैनिकों को भेज देंगी और वे सर्प को मारकर कोटर से मोतियों का हार निकाल लेंगे| ठीक ऐसा ही हुआ सैनिकों से कोटर से हार निकालने के लिए सर्प को मार दिया और राजकुमारी को हार सौप दिया|

इस प्रकार कौवे ने अपनी चतुरता से अपने शत्रु से बदला ले लिया और बिना किसी भय की प्रसन्नतापूर्वक रहने लगे



Hindi Stories : बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय ..


Hindi Stories : बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय ..


एक बार की बात है किसी गाँव में एक ब्राह्मण रहता था वह हर रोज भिक्षा माँगने निकल जाता था| एक दिन वह भिक्षा माँगने के लिए घर से बाहर निकला तो देखता है कि एक नेवली अपने बच्चे को जन्म दे कर मर गई, और नेवली के बच्चा वहाँ काँप रहा था| ब्राह्मण को दया आ गई और उसे अपने घर उठा ले गया| ब्राह्मण की पत्नी यह देख कर उसपे भड़क गई की यह नेवला मेरे बच्चे को नुकसान न पहुँचा दे| लेकिन फिर भी वह अपने बच्चे के साथ नेवले को भी पालन पोषण की, दोनों बड़े हुए और साथ साथ खेलने कूदने लगे|

एक बार ब्राह्मण का बच्चा सो रहा था ब्राह्मण की पत्नी ब्राह्मण से बोल के गई की मै पानी ले ने जा रही हूँ बच्चे को देखते रहना कुछ दूर जाने के बाद ब्राह्मण भी उठा और भिक्षा माँगने के लिए चल दिया तभी बच्चे के पास एक साँप आकर खड़ा हो गया यह देख कर नेवले ने साँप से खूब लड़ा और उसे मार डाला और उसके मुँह  में साँप का खून लग गया था और वो यह दिखाने के लिए ब्राह्मण के पत्नी के पास गया पत्नी खून देख कर डर गयी और पानी की मटका नेवले के ऊपर पटक दिया और भाग कर गई तो देखी की बच्चे के पास एक साँप मरा पड़ा हुआ था और इधर नेवला भी मर गया था जिससे वह फुट फुट कर रोने लगी |

सच कहा गया है की बिना सोचे समझे, बिना देखे दिखाए कोई भी काम नहीं करना चाहिए

Thursday, January 10, 2013

बदबूदार घोंसला

बदबूदार घोंसला

कबूतर के एक जोड़े ने अपने लिए घोंसला बनाया. परंतु जब कबूतर जोड़े उस घोंसले में रहते तो अजीब बदबू आती रहती थी. उन्होंने उस घोंसले को छोड़ कर दूसरी जगह एक नया घोंसला बनाया. मगर स्थिति वैसी ही थी. बदबू ने यहाँ भी पीछा नहीं छोड़ा. 
परेशान होकर उन्होंने वह मोहल्ला ही छोड़ दिया और नए मोहल्ले में घोंसला बनाया. घोंसले के लिए साफ सुथरे तिनके जोड़े. मगर यह क्या! इस घोंसले में भी वही, उसी तरह की बदबू आती रहती थी. 
थक हार कर उन्होंने अपने एक बुजुर्ग, चतुर कबूतर से सलाह लेने की ठानी और उनके पास जाकर तमाम वाकया बताया. 
चतुर कबूतर उनके घोंसले में गया, आसपास घूमा फिरा और फिर बोला – “घोंसला बदलने से यह बदबू नहीं जाएगी. बदबू घोंसले से नहीं, तुम्हारे अपने शरीर से आ रही है. खुले में तुम्हें अपनी बदबू महसूस नहीं होती, मगर घोंसले में घुसते ही तुम्हें यह महसूस होती है और तुम समझते हो कि बदबू घोंसले से आ रही है. अब जरा अपने आप को साफ करो.”
"दुनिया जहान में खामियाँ निकालने और बदबू ढूंढने के बजाए अपने भीतर की खामियों और बदबू को हटाएँ. दुनिया सचमुच खूबसूरत, खुशबूदार हो जाएगी"
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आत्मोन्नति के लिए यदि अधिक से अधिक समय लगायें तो दूसरों की आलोचना करने का समय नही मिलेगा "

बद से बदतर तरीका


बद से बदतर तरीका

एक महाराजा समुद्र की यात्रा के दौरान भयंकर तूफान में फंस गए। उनका एक गुलाम जो पहली बार जहाज पर चढ़ा था, डर के मारे कांपने लगा और चिल्ला-चिल्ला के रोने लगा। वह इतनी जोर से रोया कि जहाज पर सवार बाकी सभी लोग उसकी कायरता देख गुस्सा हो गए। महाराजा ने भी गुस्सा होकर उसे समुद्र में फेंकने का आदेश दे दिया। 
लेकिन राजा के सलाहकार, जो कि एक संन्यासी थे, ने उन्हें रोकते हुए कहा - "कृपया यह मामला मुझे निपटाने दें। शायद मैं उसका इलाज कर सकता हूं।" 
राजा ने उनकी बात मान ली। उन्होंने कुछ नाविकों से उस गुलाम को समुद्र में फेंक देने का आदेश दिया। जैसे ही उस गुलाम को समुद्र में फेंका गया वह बेचारा गुलाम जोर से चिल्लाया और अपनी जान बचाने के लिए कठोर संघर्ष करने लगा।
कुछ ही पलों में संन्यासी ने उसे दोबारा जहाज पर खींच लेने का आदेश दिया। जहाज पर वापस आकर वह गुलाम चुपचाप एक कोने में जाकर खड़ा हो गया। जब महाराजा ने संन्यासी से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा - "जब तक स्थितियां बद से बदतर न हो जाए, हम यह जान नहीं पाते कि हम कितने भाग्यशाली हैं।"
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आत्मोन्नति के लिए यदि अधिक से अधिक समय लगायें तो दूसरों की आलोचना करने का समय नही मिलेगा "

पांच घंटियों वाली योजना


पांच घंटियों वाली योजना

किसी जमाने में एक होटल हुआ करता था जिसका नाम "द सिल्वर स्टार"
था। होटल मालिक के तमाम प्रयासों के बावजूद वह होटल बहुत अच्छा नहीं चल रहा था। होटल मालिक ने होटल को आरामदायक, कर्मचारियों को विनम्र बनाने के अलावा किराया भी कम करके देख लिया, पर वह ग्राहकों को आकर्षित करने में नाकाम रहा। इससे निराश होकर वह एक साधु के पास सलाह लेने पहुंचा। 
उसकी व्यथा सुनने के बाद साधु ने उससे कहा - "इसमें चिंता की क्या बात है? बस तुम अपने होटल का नाम बदल दो।" 
होटल मालिक ने कहा - "यह असंभव है। कई पीढ़ियों से इसका नाम "द सिल्वर स्टार" है और यह देशभर में प्रसिद्ध है।" 
साधु ने उससे फिर कहा - "पर अब तुम इसका नाम बदल कर "द फाइव वैल" रख दो और होटल के दरवाज़े पर छह घंटियाँ लटका दो।" 
होटल मालिक ने कहा - "छह घंटियाँ? यह तो और भी बड़ी बेवकूफी होगी। आखिर इससे क्या लाभ होगा?" 
साधु ने मुस्कराते हुए कहा - यह प्रयास करके भी देख लो। 
होटल मालिक ने वैसा ही किया। 
इसके बाद जो भी राहगीर और पर्यटक वहां से गुजरता, होटल मालिक की गल्ती बताने चला आता। अंदर आते ही वे होटल की व्यवस्था और विनम्र सेवा से प्रभावित हो जाते। धीरे - धीरे वह होटल चल निकला। होटल मालिक इतने दिनों से जो चाह रहा था, वह उसे मिल गया।
"दूसरे की गल्ती बताने में भी कुछ व्यक्तियों का अहं संतुष्ट होता है।"
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जीवन में हर चीज़ परफेक्ट हो


जीवन में हर चीज़ परफेक्ट हो

एक आदमी रोज़ नदी से पानी भर कर साहेब के घर तक ले जाया करता था. कन्धों पर एक लम्बी लकड़ी होती, जिसके दोनों सिरों पर एक एक घड़ा बंधा होता | उनमे से एक घड़ा थोडा सा क्रैक्ड था, तो सारे रास्ते उसमे से पानी रिसता रहता | तो मंजिल तक आते आते – एक घड़ा पूरा भरा होता, तो दूसरा सिर्फ आधा रह जाता | पहला घड़ा तो अपने पर्फोमेंस से काफी खुश था लेकिन यह घड़ा हमेशा हीन भावना में घिरा रहता |

एक दिन इस घड़े ने आदमी से कहा – तुम मुझे फेंक दो – और दूसरा घड़ा ले आओ – क्योंकि मैं अपना काम ठीक से नहीं कर पाता हूँ | तुम इतना भार उठा कर शुरू करते हो लेकिन पहुँचने तक मैं आधा खाली होता हूँ | 

इस पर आदमी ने उसे कहा – की आज जाते हुए तुम नीचे पगडण्डी को देखते चलना | घड़े ने ऐसा ही किया – रस्ते भर रंग बिरंगे फूलों से भरे पौधे थे | लेकिन मंजिल आते आते वह फिर आधा खाली हो जाने से दुखी था – उसने बोलना शुरू ही किया था की आदमी ने कहा – अभी कुछ मत कहो – लौटने के समय रास्ते की दूसरी तरफ भी देखते जाना | और लौटते हुए घड़े ने यह भी किया – लेकिन इस तरफ कोई फूल न थे |

नदी के किनारे अपने घर लौट कर उस आदमी ने घड़े को समझाया – मैं पहले से जानता हूँ की तुमसे पानी नहीं संभल पाता – पर यह बुरा ही हो ऐसा ज़रूरी तो नहीं !!! मैंने तुम्हारी और फूलों के पौधे रोप दिए थे – जिनमे तुम्हारे द्वारा रोज़ पानी पड़ता रहा – और वे खिलते रहे |

इसीलिए – हमें समझना है की जीवन में हर चीज़ परफेक्ट हो ऐसा कोई आवश्यक तो नहीं – ज़रुरत इस बात की है की हम हर कमी को पोजिटिव बना पाते हैं – या नहीं ….. | तो अब से हम – किसी को क्रैक्ड पोट कहने या- कोई हमें कहे तो हर्ट होने – से पहले यह कहानी याद करें |

वसीयत का बंटवारा


वसीयत का बंटवारा 

बहुत पुरानी कहानी है। किसी गांव में एक चतुर किसान रहता था। मरते समय वह अपनी वसीयत का बंटवारा निम्न प्रकार कर गया। बड़े बेटे को उसकी सम्पति का आधा हिस्सा मिले, मंझले बेटे को एक चैथाई व उसकी सम्पति का छठाँ भाग सबसे छोटे बेटे को मिले। किसान की कुल जमा पूंजी उसकी ग्यारह गायंे थी। उसके मरने पर बंटवारे का चक्कर पड़ गया। गायों का बंटवारा 1/2, 1/4, 1/6, कैसे करें।
अन्त में गंाव के एक समझदार व्यक्ति ने कहा कि उसकी पूंजी में मेरी एक गाय मिला लो, फिर उसका बंटवारा कर दो। अब तो बात बहुत साफ हो गई। बड़े बेटे को बारह की आधी यानी छः गायें दे दी गई। मझले बेटे को बारह की चैथाई यानी तीन गायंे बांटी गई। छोटे बेटे को बारह का छठा हिस्सा दो गायें दे दी गई।इस प्रकार छः योग तीन योग दो कुल मिलाकर ग्यारह गायें तीनों बेटो में बांट दी गई। बची शेष गाय गांव के समझदार व्यक्ति को पुनः सोंप दी गई।
यह गाय शब्द है जो आपके भावों को जगा सके। यह मेरी गाय संकेत करती है आपको जगाने हेतु, आपकी पूंजी को प्राप्त करने में। अगर प्राप्त कर सके तो यह लेखक आभारी रहेगा।



विचारों का प्रभाव: राजा किसी सेठ को फांसी पर क्यों चढा़ना चाहता है ?


विचारों का प्रभाव: राजा किसी सेठ को फांसी पर क्यों चढा़ना चाहता है ?


हमारा मन विचारों से ही बनता है। हम मन के अनुसार अर्थात विचारों के अनुसार चलते है। अतः विचारों को बदलना स्वयं को बदलने हेतु जरूरी है।
एक राजा ने अपने जन्म दिन पर नगर के प्रमुख साहुकारों को भोज दिया। भोज के दौरान प्रत्येक सेठ से राजा स्वंय मिला। राजा सभी सेठों से मिलकर प्रसन्न हुआ। लेकिन एक सेठ से मिलने पर राजा के मन में भाव आया कि इस सेठ को फांसी दे दी जानी चाहिए। राजा ने तब तो कुछ नहीं कहा लेकिन इस तरह का विचार मन में उठने का कारण खोजने लगा।
दूसरे दिन राजा ने अपने मन्त्रियों से उसके मन में उक्त विचार आने का कारण पूछा। एक बुद्धिमान मन्त्री ने कहा कि इसका पता लगाने का वक्त दिया जाय। मन्त्री ने अपने गुप्तचरों से उस सेठ के बारे में जानकारी इकट्ठी करवाई।
कुछ दिनों बाद गुप्तचरों ने बताया कि वह सेठ चन्दन लकड़ी का व्यापारी है। लेकिन विगत तीन-चार माह से उसका व्यवसाय ठीक नहीं चल रहा था। अतः वह सोचता है कि राजा की मृत्यु हो जाय तो उसकी ढेर सारी चन्दन की लकड़ी बिक जाय। अतः वह राजा की मौत की कामना करने लगा। सम्राट के सेठ से मिलने पर सम्राट के अचेतन मन ने सेठ के मन के भावों को पढ़ कर प्रतिक्रिया कि सेठ को फांसी पर चढ़ाना चाहिए।
मन्त्री बड़ा चतुर था। उसने सोचा सम्राट को यह बता दे तो सेठ अनावश्यक खतरे में पड़ जाएगा। इसलिए उसने एक तरकीब सोची। सेठ से प्रतिदिन दो किलो चन्दन की लकड़ी महलों में उपयोग हेतु खरीदनी शुरू की। अब प्रतिदिन दो किलो चन्दन की लकड़ी बिकने लगी। सेठ सोचने लगा कि राजा चिरायु हो। उनसे उसका व्यवसाय हो रहा है। राजा के बदलने पर नया राजा रोज लकड़ी खरीदे या नहीं इसलिए वह राजा की लम्बी उम्र की कामना करने लगा।
राजा ने अगले वर्ष फिर अपने जन्म दिन पर बड़े सेठों को भोजन पर बुलाया। इस बार राजा उस सेठ से व्यक्तिगत रूप से मिले तो उसे लगा सेठ बहुत अच्छा है। इसकी आयु लम्बी होनी चाहिए। अब इस तरह के विचार आने का कारण राजा ने फिर मन्त्री से पूछा। मन्त्री ने बताया कि राजा हम सब का मन बहुत सूक्ष्म है, हमारा अचेतन मन सामने वाले के मन में गुप्त चलते विचारों का चुपचाप पकड़ लेता है। उस पर स्वतः प्रतिक्रिया करता है। इस बार सेठ आप की आयु बढ़ाने की प्रार्थना मन ही मन करता था। चूंकि इससे उसका व्यवसाय चल निकला था। प्रतिदिन दो किलो चन्दन की लकड़ी बिक रहीं थी। अतः उसके मन में चलते गुप्त विचारों को आपके मन को पकड़ लेता है।
हम विश्वास कर विश्वास पाते हंै। अविश्वास कर दूसरे को अविश्वास करने का अवसर देते है। हम यदि जीवन में सुख चाहते हैं तो हमें दूसरों पर बिना कारण अविश्वास नहीं करना चाहिए। हमारे यहाँ अभी चारों तरफ अविश्वास हैं। अविश्वास संदेह को बढ़ाता है।
हमें सकारात्मक होने के लिए बिना कारण किसी पर भी अविश्वास नहीं करना चाहिए। जीवन में सफल होने के लिये दूसरों पर भरोसा कराना चाहिए। यथापि इसमें कभी कभी अस्सी बीस का सिद्धान्त लागू करें। भरोसा करेगें तो आप के काम बनेंगे। कभी ठोकर लगे तो इसे अपवाद मान ले। बिना परीक्षण किए सब को गलत या चोर मानना गलत है।
जब हम किसी से घृणा करते हंै तो हम अनजाने ही उस व्यक्ति को घृणा करने के लिए प्रेरित करते है। हम सब के व्यक्तित्व में कुछ गुण जन्मजात होते है। उनको तो बदलना थोड़ा कठिन है। लेकिन कुछ गुण हम यहीं पर सीखते है, उन्हें बदलना आसान होता है। यदि कोई पूरी तरह जन्मजात नकारात्मक है तो उसे हम इस तरह सकारात्मक विचार कर नहीं बदल सकते हैं। लेकिन जिसने वातावरण से नकारात्मकता सीखी है उसे हम अच्छे विचार कर बदल सकते है


Wednesday, January 9, 2013

सिर्फ तुम


सिर्फ तुम

जब एक नए शिष्य ने मठ में प्रवेश लिया तो गुरू जी ने उससे सबसे पहले यह प्रश्न किया - 

"क्या तुम ऐसे व्यक्ति को जानते हो जो सारी उम्र तुम्हारा साथ नहीं छोड़ेगा?" 

"वह कौन है गुरूजी?" 

"सिर्फ तुम" 

"और क्या तुम ऐसे व्यक्ति को जानते हो जिसके पास तुम्हारे सभी प्रश्नों का उत्तर हो?" 

"वह कौन है गुरूजी?" 

"सिर्फ तुम" 

"और क्या तुम अपनी सभी समस्याओं का उत्तर जानते हो?" 

"मैं नहीं जानता गुरूजी।" 

"सिर्फ तुम"

इतिहास लिखें या बनाएँ


इतिहास लिखें या बनाएँ

नेताजी सुभाष चंद्र बोस सच्चे कर्मवीर थे. आमतौर पर वे आम सैनिकों की भांति ही कार्यरत रहते थे. एक मर्तबा अनौपचारिक बातचीत में आजाद हिंद फौज के एक अफसर ने नेताजी को सुझाव दिया कि आजाद हिंद फौज का इतिहास लिख लेना चाहिए.

नेताजी ने तत्काल जवाब दिया – “पहले हम इतिहास तो बना लें. फिर कोई न कोई तो लिख ही देगा!”

"इतिहास लिखा नहीं जाता अपितु इतिहास बनाया जाता हैं!
"

दुनिया का विनाश


दुनिया का विनाश

एक बौद्धलामा "दुनिया का विनाश" विषय पर एक व्याख्यान देने वाले थे। उनके इस व्याख्यान का बहुत प्रचार-प्रसार किया गया, जिसके परिणामस्वरूप बहुत बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ उन्हें सुनने के लिए मठ में एकत्र हो गयी।

लामाजी का व्याख्यान एक मिनट से कम समय में समाप्त हो गया।

उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा - "ये सारी चीजें मानवजाति का विनाश कर देंगी - अनुकंपा के बिना राजनीति, काम के बिना दौलत, मौन के बिना शिक्षा, निडरता के बिना धर्म और जागरूकता के बिना उपासना।"

मीठा बदला


मीठा बदला

एक बार एक देश के सिपाहियों ने शत्रुदेश का एक जासूस पकड़ लिया. जासूस के पास यूँ तो कोई आपत्तिजनक वस्तु नहीं मिली, मगर उसके पास स्वादिष्ट प्रतीत हो रहे मिठाइयों का एक डब्बा जरूर मिला.

सिपाहियों को मिठाइयों को देख लालच आया. परंतु उन्हें लगा कि कहीं यह जासूस उसमें जहर मिलाकर तो नहीं लाया है. तो इसकी परीक्षा करने के लिए उन्होंने पहले जासूस को मिठाई खिलाई. और जब जासूस ने प्रेम पूर्वक थोड़ी सी मिठाई खा ली तो सिपाहियों ने मिल कर मिठाई का पूरा डिब्बा हजम कर लिया और उस जासूस को जेल में डालने हेतु पकड़ कर ले जाने लगे.

इतने में उस जासूस को चक्कर आने लगे और वो उबकाइयाँ लेने लगा. उसकी इस स्थिति को देख कर सिपाहियों के होश उड़ गए. वह जासूस बोला – लगता है मिठाइयों में धीमा जहर मिला हुआ था. खाने के कुछ देर बाद इसका असर होना चालू होता है लगता है. और ऐसा कहते कहते वह जासूस जमीन में ढेर हो गया. वह बेहोश हो गया था.सिपाहियों की तो हवा निकल गई. वे जासूस को वहीं छोड़ कर चिकित्सक की तलाश में भाग निकले.

इधर जब सभी सिपाही भाग निकले तो जासूस उठ खड़ा हुआ और इस तरह अपने भाग निकलने के मीठे तरीके पर विजयी मुस्कान मारता हुआ वहां से छूमंतर हो हो गया

हर कोई नायक है


हर कोई नायक है

एक दिन एक गणितज्ञ ने जीरो से लेकर नौ अंक तक की सभा आयोजित की। सभा में जीरो कहीं दिखायी नहीं पड़ रहा था। सभी ने उसकी तलाश की और अंततः उसे एक झाड़ी के पीछे छुपा हुआ पाया। अंक एक और सात उसे सभा में लेकर आये।

गणितज्ञ ने जीरो से पूछा - "तुम छुप क्यों रहे थे?"

जीरो से उत्तर दिया - "श्रीमान, मैं जीरो हूं। मेरा कोई मूल्य नहीं है। मैं इतना दुःखी हूं कि झाड़ी के पीछे छुप गया।"

गणितज्ञ ने एक पल विचार किया और तब अंक एक से कहा कि समूह के सामने खड़े हो जाओ। अंक एक की ओर इशारा करते हुए उसने पूछा - "इसका मूल्य क्या है?" सभी ने कहा - "एक"। इसके बाद उसने जीरो को एक के दाहिनी ओर खड़े होने को कहा। फिर उसने सबसे पूछा कि अब इनका क्या मल्य है? सभी ने कहा - "दस"। इसके बाद उसने एक के दाहिनी ओर कई जीरो बना दिए। जिससे उसका मूल्य इकाई अंक से बढ़कर दहाई, सैंकड़ा, हजार और लाख हो गया।

गणितज्ञ जीरो से बोला - "अब देखिये। अंक एक का अपने आप में अधिक मूल्य नहीं था परंतु जब तुम इसके साथ खड़े हो गए, इसका मूल्य बढ़कर कई गुना हो गया। तुमने अपना योगदान दिया और बहुमूल्य हो गए।"

उस दिन के बाद से जीरो ने अपनेआप को हीन नहीं समझा। वह यह सोचने लगा - "यदि मैं अपनी भूमिका का सर्वश्रेष्ठ तरीके से निर्वहन करूं तो कुछ सार्थक होगा। जब हम एक-दूसरे के साथ मिलकर कार्य करते हैं तो हम सभी का मूल्य बढ़ता है।"

"जब हम एक दूसरे के साथ कार्य करते हैं, तो बेहतर कार्य करते हैं।



तो समस्या क्या है?


तो समस्या क्या है?



नसरूद्दीन एक दुकान पर गया जहाँ तमाम तरह के औजार और स्पेयरपार्ट्स मिलते थे.
“क्या आपके पास कीलें हैं?”
“हाँ”

“और चमड़ा, बढ़िया क्वालिटी का चमड़ा”
“हाँ है”

“और जूते बांधने का फीता”
“हाँ”

“और रंग”
“वह भी है”

“तो फिर तुम जूते क्यों नहीं बनाते?”




मृगतृष्णा


मृगतृष्णा


जब महात्मा बुद्ध ने राजा प्रसेनजित की राजधानी में प्रवेश किया तो वे स्वयं उनकी आगवानी के लिए आये। वे महात्मा बुद्ध के पिता के मित्र थे एवं उन्होंने बुद्ध के संन्यास लेने के बारे में सुना था।

अतः उन्होंने बुद्ध को अपना भिक्षुक जीवन त्यागकर महल के ऐशोआराम के जीवन में लौटने के लिए मनाने का प्रयास किया। वे ऐसा अपनी मित्रता की खातिर कर रहे थे।

बुद्ध ने प्रसेनजित की आँखों में देखा और कहा, "सच बताओ। क्या समस्त आमोद-प्रमोद के बावजूद आपके साम्राज्य ने आपको एक भी दिन का सुख प्रदान किया है?"

प्रसेनजित चुप हो गए और उन्होंने अपनी नजरें झुका लीं।

"दुःख के किसी कारण के न होने से बड़ा सुख और कोई नहीं है; 
और अपने में संतुष्ट रहने से बड़ी कोई संपत्ति नहीं है



तुम्हारा फर्नीचर कहाँ है?


तुम्हारा फर्नीचर कहाँ है?


पिछली शताब्दी की बात है। एक अमेरिकी पर्यटक सुप्रसिद्ध पुलिस कर्मचारी रब्बी हॉफेज़ चैम से मिलने गया।

उसे यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि रब्बी सिर्फ एक कमरे में रहते थे और वह भी किताबों से भरा हुआ था। उसमें फर्नीचर के नाम पर सिर्फ एक मेज और कुर्सी थी।

"तुम्हारा फर्नीचर कहाँ हैं रब्बी?" - पर्यटक ने पूछा ।

"और तुम्हारा कहाँ हैं?" - रब्बी ने कहा ।

"मेरा फर्नीचर ! लेकिन मैं तो यहाँ एक पर्यटक हूँ और यहाँ से गुजर ही रहा था।"

"और मैं भी" -- -- -- रब्बी ने भोलेपन से कहा



Saturday, December 29, 2012

Hindi Stories - भेड़िया ओर मेमना


भेड़िया ओर मेमना

नदी के किनारे एक भेड़िये को कुछ दूरी पर एक भटकता हुआ मेमना दिखायी देता है। वह उस पर हमला करके अपना शिकार बनाने का निश्चय करता है। निरीह मेमने के शिकार के लिए वह बहाना ढूंढने लगता है।

वह मेमने पर चिल्लाता है - "अरे दुष्ट! जिस नदी का मैं पानी पी रहा हूँ उसे गंदा करने की तेरी हिम्मत कैसे हुयी?"

मेमना नम्रतापूर्वक बोला - "माफ कीजिए श्रीमान! लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आया कि मैं किस तरह पानी गंदा कर रहा हूँ, जबकि पानी तो आपकी ओर से बहता हुआ मेरे पास आ रहा है।"

"हो सकता है! पर सिर्फ एक वर्ष पहले मैंने सुना था कि तुम मेरी पीठ पीछे बहुत बुराई कर रहे थे।" - भेड़िये ने बात बनाते हुये कहा।

"लेकिन श्रीमान, एक वर्ष पहले तो मैं पैदा ही नहीं हुआ था" - मेमने ने कहा। 

"हो सकता है कि तुम न हो। वो तुम्हारी माँ भी हो सकती है। पर इससे मुझे कुछ लेना-देना नहीं है। अब तुम मेरे भोजन में और व्यवधान नहीं डालो।" - भेड़िये ने गुर्राते हुए कहा और बिना पल गवाये उस निरीह मेमने पर टूट पड़ा।

"एक तानाशाह अपनी तानाशीही के लिए हमेशा कोई न कोई बहाना तलाश लेता है।"