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यह कथा तो आप जानते ही होंगे कि भगवान श्री राम ने राजा जनक की शर्त के अनुसार धनुष भंग करके देवी सीता को पत्नी के रूप में प्राप्त किया था। श्री राम ने जिस धनुष को तोड़ा था वह भगवान शिव के द्वारा राजा जनक को प्राप्त हुआ था।
यह धनुष इतना भारी था कि बड़े-बड़े योद्घा और महाबली इसे हिला तक नहीं पाए थे। लेकिन देवी सीता ने बचपन में इसे एक हाथ से उठा लिया था और इसके नीचे की भूमि को साफ करके पुनः धनुष को अपने स्थान पर रख दिया।
जनक जी छुपकर इस दृश्य को देख रहे थे। इस घटना को देखकर जनक जी को एहसास हुआ कि देवी सीता कोई सामान्य कन्या नहीं है।
इसलिए इनका पति भी कोई साधारण व्यक्ति नहीं होना चाहिए। जनक जी ने तय किया कि देवी सीता का विवाह उसी पुरूष से होगा जो शिव जी के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा सकेगा।
शिव जी द्वारा जनक जी को दिए गए इस धनुष के विषय में कथा है कि यह धनुष जनक जी को भगवान अजगबीनाथ महादेव ने दिया था। अजगबीनाथ भगवान शिव का मंदिर बिहार के सुल्तानगंज में स्थित है। यह मंदिर गंगा नदी के तट पर स्थित है।
गंगा की धारा इस मंदिर को प्रणाम करते हुए अपना सफर तय करती है। देवघर में भगवान शिव को जल चढ़ाने के लिए सुल्तान गंज में जल लेते समय श्रद्घालु इस मंदिर में जाकर भगवान शिव का दर्शन करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान शिव ने राजा जनक को धनुष प्रदान किया था।
अजगबीनाथ महादेव के विषय में मान्यता है कि यह बाबा बैद्यनाथ की कचहरी है। यहां भक्त अपनी समस्याएं बाबा के पास दर्ज करवाते हैं और इसकी सुनवाई देवघर में होती है।
अजगबीनाथ महादेव के विषय में मान्यता है कि यह वही स्थान है जहां ऋषि जाह्नु तपस्या किया करते थे। यही कारण है कि सुल्तानगंज को पहले जहांगीरा कहा जाता था। जहांगीरा का अर्थ है जाह्नु की पहाड़ी।
यहां भगवान शिव ने अपनी जटाओं को फैलाकर गंगा के वेग को रोक लिया था। शिव की जटाओं में गुम गंगा को मुक्ति दिलाने के लिए जब देव और ऋषियों ने प्रार्थना की तब भगवान शिव ने अपनी जंघाओं के बीच से गंगा को जाने का रास्ता दिया।
इस तीर्थस्थान की एक बड़ी विशेषता यह है कि यहां पर आकर गंगा के बहने की दिशा बदल जाती है। गंगा दक्षिण की ओर बहती हुई आती है और उसे अपनी दिशा बदलकर उत्तर दिशा की ओर रुख करना पड़ता है।
सुल्तानगंज में उत्तरवाहिनी गंगा होने के कारण इस तीर्थ का अत्यधिक महत्व है। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर गंगाजल अर्पित करने के लिए भक्त सुल्तानगंज से जल लेकर जाते हैं
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जिस धनुष को तोड़कर राम बने सीता के, जानिए उस धनुष का राज
यह कथा तो आप जानते ही होंगे कि भगवान श्री राम ने राजा जनक की शर्त के अनुसार धनुष भंग करके देवी सीता को पत्नी के रूप में प्राप्त किया था। श्री राम ने जिस धनुष को तोड़ा था वह भगवान शिव के द्वारा राजा जनक को प्राप्त हुआ था।
यह धनुष इतना भारी था कि बड़े-बड़े योद्घा और महाबली इसे हिला तक नहीं पाए थे। लेकिन देवी सीता ने बचपन में इसे एक हाथ से उठा लिया था और इसके नीचे की भूमि को साफ करके पुनः धनुष को अपने स्थान पर रख दिया।
जनक जी छुपकर इस दृश्य को देख रहे थे। इस घटना को देखकर जनक जी को एहसास हुआ कि देवी सीता कोई सामान्य कन्या नहीं है।
इसलिए इनका पति भी कोई साधारण व्यक्ति नहीं होना चाहिए। जनक जी ने तय किया कि देवी सीता का विवाह उसी पुरूष से होगा जो शिव जी के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा सकेगा।
शिव जी द्वारा जनक जी को दिए गए इस धनुष के विषय में कथा है कि यह धनुष जनक जी को भगवान अजगबीनाथ महादेव ने दिया था। अजगबीनाथ भगवान शिव का मंदिर बिहार के सुल्तानगंज में स्थित है। यह मंदिर गंगा नदी के तट पर स्थित है।
गंगा की धारा इस मंदिर को प्रणाम करते हुए अपना सफर तय करती है। देवघर में भगवान शिव को जल चढ़ाने के लिए सुल्तान गंज में जल लेते समय श्रद्घालु इस मंदिर में जाकर भगवान शिव का दर्शन करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान शिव ने राजा जनक को धनुष प्रदान किया था।
अजगबीनाथ महादेव के विषय में मान्यता है कि यह बाबा बैद्यनाथ की कचहरी है। यहां भक्त अपनी समस्याएं बाबा के पास दर्ज करवाते हैं और इसकी सुनवाई देवघर में होती है।
अजगबीनाथ महादेव के विषय में मान्यता है कि यह वही स्थान है जहां ऋषि जाह्नु तपस्या किया करते थे। यही कारण है कि सुल्तानगंज को पहले जहांगीरा कहा जाता था। जहांगीरा का अर्थ है जाह्नु की पहाड़ी।
यहां भगवान शिव ने अपनी जटाओं को फैलाकर गंगा के वेग को रोक लिया था। शिव की जटाओं में गुम गंगा को मुक्ति दिलाने के लिए जब देव और ऋषियों ने प्रार्थना की तब भगवान शिव ने अपनी जंघाओं के बीच से गंगा को जाने का रास्ता दिया।
इस तीर्थस्थान की एक बड़ी विशेषता यह है कि यहां पर आकर गंगा के बहने की दिशा बदल जाती है। गंगा दक्षिण की ओर बहती हुई आती है और उसे अपनी दिशा बदलकर उत्तर दिशा की ओर रुख करना पड़ता है।
सुल्तानगंज में उत्तरवाहिनी गंगा होने के कारण इस तीर्थ का अत्यधिक महत्व है। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर गंगाजल अर्पित करने के लिए भक्त सुल्तानगंज से जल लेकर जाते हैं
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