ताज महल , आगरा (TAJ MAHAL , AGRA )
प्रस्तुतकर्ता – हरेन्द्र धर्रा (Blog - http://yaadsafarki.blogspot.in/2015/03/taj-mahal-agra_6.html
काफी दिन से या यूँ कहिये कि कई वर्षों से इच्छा थी कि एक बार , पूरी दुनिया में भारत को एक अलग पहचान देने वाले , अद्भुत प्रेम की निशानी , दुनिया के सात अजूबों में से एक , बेहतरीन कारीगरी की मिसाल , बेहतरीन वास्तुकला के उदाहरण ताजमहल को प्रत्यक्ष आँखों से देख कर आए | डिस्कवरी या नेशनल ज्योग्राफिक चैनल पर जब कोई प्रोग्राम आता या कोई अपने आगरा के अनुभव बताता या फिर कहीं ताज की तस्वीर दिख जाती तो इच्छा और प्रबल हो जाती | वैसे कई बार योजना बन चुकी थी , लेकिन सिरे कोई नहीं चढ़ पाई थी | वैसे भी हम सलमान खान तो है नहीं के एक बार जो कमेन्टमेंट कर दी फिर अपने आप की भी न सुनु ? सबकी सुननी पड़ती है वो भी कान खोल कर |
अबकी बार इच्छा ने पूरा जोर मारा पूरी एडी से चोटी तक , तो फरवरी में जाने की बात हुई | कहीं ये भी योजना ही न रह जाये इसलिए हम ने आरक्षण करा लिया | जाने का भी , आने का भी , ताज की टिकट भी ऑनलाइन करा ली थी | अब तो कैंसिल होने से रहा प्रोग्राम | मैं और नितीश जाने वाले थे लेकिन नितीश का एक दोस्त भी चलने को तैयार हो गया था | तो तीन लोगो की टिकट हो चुकी थी | हमारी योजना थी कि २१ को शाम को निकलेंगे २२ को सुबह तीन चार बजे पहुँच जाएँगे ताज देखकर दोपहर साढ़े तीन की ट्रेन है उससे वापस आ जाएँगे | २३ को मैं ट्रेक्टर चला पाउँगा और वो दोनों ऑफिस चले जाएँगे |
जाने से कई दिन पहले मेरे भाई का फोन आया की गो आइबिबो वाले एक हजार का कूपन दे रहें हैं साइन अप करने पर | झट से आईडी बनाइ और आगरा में होटल देखा | एक होटल में रूम था एक हजार रुपए में , कर दिया बुक | होटल मुश्किल से 50 मीटर दूर था ताज महल से | वैसे तो हजार रुपए बहुत होते हैं लेकिन हमारी क्या जेब से निकाल रहे थे ? तो अब इन्तजार था २१ तारीख का | हमारी ट्रेन रात को 11 बजे निजामुद्दीन से थी | नितीश और राहुल का ऑफिस पीरागढ़ी था और निजामुद्दीन वाली ट्रेन शकूर बस्ती से शाम को जाती है | तो मैं अपना ट्रेक्टर का काम पूरा करके शाम को शकूर बस्ती पहुँच गया और उधर से वो दोनों ऑफिस से थोडा जल्दी छुट्टी लेकर आ गए | समय से पहले हम निजामुद्दीन पहुँच गए थे | इधर उधर घूम कर ,पुराने किस्से याद करके हमने समय काट लिया |
निरधारित समय पर गाड़ी आ गयी | एक लड़का कोई पंद्रह सोलह साल का पैरों को घसीटता हुआ नीचे फर्श पर आ रहा था और पैसे मांग रहा था , मेरे पास आया तो मैंने मना कर दिया | मैं क्यों की लास्ट वाली सीट पे बैठा था और आगे कोई सीट नहीं थी ,वो खड़ा हुआ , जी हाँ ! वो लड़का जो पैरो से लाचार था खड़ा हुआ और जाकर बहार निकाल गया | बड़ा अच्छा एक्टर था | कुछ रहम दिल वालों को ठग के ले गया था वो | मेरी और नितीश की सीट एक बर्थ में थी और राहुल की दुसरे में | नितीश के पास वाली सीट पर जो लड़का बैठा था हमने उससे कहा की हमारी एक सीट दुसरे डिब्बे में है तो हमारा दोस्त यहाँ बैठ जायेगा आप वहां चले जाइये | उसने कहा की ये मेरी सीट नहीं है | कोई बात नहीं , वहां एक और भी बैठा था हमने उससे भी यही बात की तो बोला के ठीक है | पर थोड़ी देर बाद एक जना और आया और तब पता चला के सीट का असली मालिक तो ये है | हमने उससे बात नहीं की | दो तीन घंटे की तो बात थी | राहुल नितीश एक सीट पर ही बैठ गए | निर्धारित समय पर हम आगरा पहुँच गए |
बाहर आकर ऑटो किया और होटल की तरफ चल पड़े | होटल के पास जाकर ऑटो वाला बोला की आपका रूम बुक है तो ही जाना नहीं तो न तो अभी रूम मिलेगा और बाहर घूमोगे तो पुलिस वाले तंग करेंगे | हमने पूछा की क्यों तो बोला की ताजमहल के बिलकुल पास में रात को किसी को घूमने नहीं देते और आपका होटल बिल्कुल पास में है ताज के | हमने कहा के हमारा रूम बुक है | वो बोला के तब तो ठीक है l हम तीन बजे होटल के बाहर थे | दरवाजा खटखटाया तो एक लड़का बाहर आया | हमने कहा की हमारा कमरा है ,तो उसने कहा की भाई कमरा खाली नहीं है | हमने कहा की नहीं भाई हमने तो पहले से बुक करवा रखा है | तो वो बोला भाई कुछ भी हो रूम नहीं है | काफी देर तक राहुल उससे भिड़ा रहा | लेकिन कोई वो कहता रहा की दस बजे से पहले कोई रूम नहीं है बुक कर रखा है तो जहाँ से किया था वहां जाओ | कोई फायदा नहीं हुआ तो उसने कहा चाहो तो गार्डन में बैठ जाओ | गार्डन में एक छोटा सा रेस्टोरेंट था | कुर्सियां सीधी की और बैठे कर ही मेज पर सो गए l राहुल बार बार हमें दुत्कार रहा था | लेकिन हमारे मन में तो ये था की कम से कम बैठने को तो जगह मिल गयी | फिर जब कुछ रौशनी सी हुई तो एक कपल एक रूम खाली कर के गया | हमने उस लड़के से जो हमें चोकीदार लग रहा था | हमने कहा की भाई अब तो रूम खाली हो गया अब तो दे | उसने कहा की नहीं अभी नहीं दस बजे | लेकिन थोड़ी देर बाद उसने साफ़ करके और चादर बदल कर हमें रूम दे दिया | वैसे भी उनका चेक इन का समय १० बजे था पर उसने हमें ५ बजे रूम दे दिया | मैं सोया नहीं बल्कि फ्रेश होकर बहार निकल गया |
टिकट तो हमारे पास थे ताज के लेकिन ऑनलाइन टिकट में सिर्फ तीन घंटे का समय होता है | हमारा नो से बारह तक था | जबकि काउंटर से ख़रीदे टिकट का समय पूरे दिन का होता है | मैं चाहता था की सूर्योदय हम ताज परिसर में ही देखें मैं साढ़े पांच बजे जाकर लाइन में लग गया | टिकट मिलने का समय था साढ़े छे बजे का | साढ़े पांच बजे भी मुझसे आगे कई लोग थे | खैर साढ़े छे बजे काउंटर खुला और मेरा नम्बर आया तो मैंने सौ का नोट दिया उसने फेंक कर वापस कर दिया की खुल्ले लाओ | यार जब हैं ही नहीं तो कहाँ से लाऊं खुल्ले ? मैंने कहा चालीस रुपए तू रख पर मुझे टिकट दे | साथ वाली लाइन में जो लड़का था वो हंस पड़ा और सारा मामला गलत करा दिया | वो और भड़क गया शायद बेइज्जती महसूस कर गया जबकि मेरा ऐसा इरादा नहीं था | मुझे मेरा एक घंटा पानी में जाता लग रहा था की एक लड़का साइड से आया और बोला भाई दो टिकट मेरी भी ले दो ना | अब मुझे पांच टिकट मिल गयी | दो उस भाई को दी और उसने मेरा धन्यवाद किया और मैंने उसका |
फिर मैं भाग के होटल गया और नितीश को जगाया | राहुल ने कहा की वो नहा के आएगा | तब तक रिसेप्सन पे वोही लड़का जो हमें चौकीदार लग रहा था नहा धो के बैठा था | असल में वो मनेजर का लड़का था | उसने फार्म भरवाया आईडी प्रूफ की कॉपी लगा के साईन वगरह करवाए | फिर हम दोनों ताजमहल की तरफ चल पड़े | काफी लम्बी लाइन थी | देशी से अधिक विदेशी पर्यटक थे | लेकिन उनकी लाइन अलग थी | मन में काफी उत्सुकता थी | उस बेहतरीन ईमारत को देखने की जो मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने अपनी तीसरी पत्नी अर्जुमंद बानो जिसका दूसरा नाम मुमजाज अधिक प्रचलित है , की याद में बनवाई थी | अजीब बात है प्रेम की मिसाल माने जाने वाली इस जोड़ी का अजीब सत्य ये भी है की मुमताज शाहजहाँ की तीसरी पत्नी थी परन्तु आखिरी नहीं | क्योंकि मुमताज के बाद भी उसने छे विवाह और भी किये थे | मुमताज शाहजहाँ की सोतेली माँ नूरजहाँ के भाई की लड़की थी | हुई तो एक तरीके से मामा की लड़की ही न | पर छोड़िये हमको उनकी रिश्तेदारी में घुसकर क्या करना है ? चिड़िया की आँख पर फोकस करते है | मुमताज हर लड़ाई में या दौरे पर शाहजहाँ के साथ जाती थी | सन १६३१ में जब शाहजहाँ दक्कन के विद्रोह को दबाने के अभियान पर था | तो रस्ते में बुरहान पुर में अपनी चोहदवीं संतान को जन्म देते समय मुमताज की मृत्यु हो गयी | उस समय उसे वहीँ दफना दिया गया था बाद में उसके अवशेषों को ताज महल में लाया गया था | अपनी सबसे प्रिय रानी की याद में दुनिया का सबसे शानदार मकबरा बनाने की चाहत ने ही दुनिया को ये नायाब तोहफा दिया | सन १६३२ में ताजमहल का निर्माण शुरू हुआ और बीस वर्षों में बीस हजार लोगो की मेहनत ने इस सपने को मूर्त रूप दिया | सन १६५२ में ये बन कर तैयार हुआ था | जब ताज को बनाया गया तो उस समय इसमें चार करोड़ रुपए लगे थे जब सोने का मूल्य पंद्रह रुपए तौला था | तो विचार कर के देखिये की जनता पर टैक्स का कितना बोझ बढ़ा होगा | कहते है शाहजहाँ ने उन सब कारीगरों के हाथ कटवा दिए थे ताकि वे दूसरा ताज न बना सके | मुझे थोडा संदेह है इस बात पर |
खैर जो भी हो एक दो घंटे हम पूरा परिसर घूमने और थोड़ी बहुत वाहवाही करने के बाद हम वापस होटल में गए और खाना खाकर वर्ल्ड कप का भारत बनाम दक्षिण अफ्रीका का मैच देखने लगे | मैच ख़तम करके हम निकल पड़े ताज नेचर वाक् की तरफ | काफी बढ़िया जगह है | पेड़ों के बीच से ताज को देखना काफी अच्छा लगा | शाम को हम आगरा छावनी रेलवे स्टेशन पर थे | हमारी ट्रेन का समय तो दोपहर तीन का था पर हमें पता था की वो रोज चार पांच घंटे लेट होती है तो कोई जल्दी नहीं थी हमें | लेकिन आज तो ट्रेन को जैसे हमसे दुश्मनी हो गयी थी | छे घंटे लेट , आठ घंटे लेट , दस घंटे लेट | राहुल फिर शुरू हो चुका था की यही ट्रेन मिली थी अगेरा वगेरा | मैं तो जा रहा हूँ | जा भाई ! तेरी यात्रा मंगलमय हो | वो दूसरी ट्रेन में चला गया | भगवान कसम इतनी ख़ुशी मुझे ताज देख कर नहीं हुई थी जितनी राहुल के जाने से हुई |
ट्रेन को देखा तो एक एक घंटा करके बारह घंटे लेट आई | चलो आ तो गयी | हमारी मंजिल तक पहुँचते पहुँचते ट्रेन सोलह घंटे लेट हो चुकी थी | मैं तो संकल्प कर चुका था की तूफ़ान एक्सप्रेस में कभी नहीं चढूँगा | अगला दिन ट्रेन की भेंट चढ़ चुका था | न मैं काम कर पाया और ना नितीश ऑफिस जा पाया |
समाप्त : अब कुछ चित्र देखिये
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