एक शिष्य ने अपने गुरूजी से पूछा :
नष्ट होने वाले इस शरीर में नष्ट ना होने वाला आत्मा कैसे रहती है ।
गुरूजी का जवाब :
दूध उपयोगी है, किंतु एकही दिन के लिए। फिर वो बिगड जाता है ।
दूध में एक बूंद छाछ डालने से वह दही बन जाता है। जो केवल एक और दिन टिकता है ।
दही का मंथन करने पर मक्खन बन जाती है। यह एक और दिन टिकता है ।
मक्खन को उबालकर घी बनता है ।
धी कभी बिगडता नहीं ।
एक दिन में बिगडने वाले दूध में ना बिगड़ने वाला घी छिपा है ।
इसी तरह अशाश्वत शरीर में शाश्वत आत्मा रहती है ।
मानव शरीर दूध
दैवी स्मरण छाछ
सेवा भाव मक्खन
साधना करना घी
मानव शरीर को साधना से पिघलाने पर आत्मा पवित्रता प्राप्त करती है
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