किसी ने कहा 'बरसात और बहू की किस्मत में जस (यश) होता ही नहीं।'
पहले तो मुझे कुछ समझ नहीं आया, लेकिन बाद में सोचा तो बड़ी मज़ेदार समानताएँ दीख पड़ीं।
बरसात ना बरसे तो ख़राब, ज्यादा बरसे तो सत्यानाशी।
बहू भी ना बोले तो घुन्नी, बोले तो बड़बोली।
बरसात धीरे बरसे तो मरी-मरी, जोर से बरसे तो कमरतोड़। यही हाल बहू का , शांति से काम करे तो ढीली माई और फुर्ती से करे तो घास काटणी।
बरसात कभी भी कहीं भी बरसे हमेशा किसी न किसी को कोई न कोई परेशानी हो ही जाती है। " ये कोई बरसने का टाइम था दैया रे , मेरे कपड़े भीग गए।
इसी तरह बहू के द्वारा मसालेदार खाना बनाने पर " ये लो इत्ती मिर्ची, तेरे ससुर जी का मुँह जल जाएगा। मसाले कम होने पर, अरे कुछ तो मसाले डाला करो दाल में, मरीजों का सा काढ़ा घोल के रख दिया।
खाने में वैरायटी बनाने पर, ये क्या इडली-फिडली बना दी हमें नहीं भाती ये सब। सादा खाना बनाये तो,- फिर से रोटी थाप के पटक दी? कुछ और बनाने में जोर आता है।"
है ना दोनों का भाग्य एक सा....!!!
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