प्रेरणादायक कथा...
एक गरीब वृद्ध पिता के पास अपने अंतिम समय में, दो बेटों को देने के लिए मात्र एक आम था। पिताजी आशीर्वाद स्वरूप दोनों को वही देना चाहते थे, किंतु बड़े भाई ने आम हठपूर्वक ले लिया। रस चूस लिया, छिलका अपनी गाय को खिला दिया। गुठली छोटे भाई के आँगन में फेंकते हुए कहा, "लो ! ये पिताजी का तुम्हारे लिए आशीर्वाद है..."
छोटे भाई ने बड़ी श्रद्धापूर्वक गुठली को अपनी आँखों व सिर से लगाकर गमले में गाड़ दिया। छोटी बहू पूजा के बाद बचा हुआ जल गमले में डालने लगी। कुछ समय बाद आम का पौधा उग आया, जो देखते ही देखते बढ़ने लगा।
छोटे भाई ने उसे गमले से निकाल कर अपने आँगन में लगा दिया। कुछ वर्षों बाद उसने वृक्ष का रूप ले लिया। वृक्ष के कारण घर की धूप से रक्षा होने लगी, साथ ही प्राणवायु भी मिलने लगी। बसंत में कोयल की मधुर कूक सुनाई देने लगी। बच्चे पेड़ की छाँव में किलकारियाँ भरकर खेलने लगे। पेड़ की शाख से झूला बाँधकर झूलने लगे। पेड़ की छोटी-छोटी लक़िड़याँ हवन करने एवं बड़ी लकड़ियाँ घर के दरवाजे खिड़कियों में भी काम आने लगीं। आम के पत्ते त्योहारों पर तोरण बाँधने के काम में आने लगे।
धीरे-धीरे वृक्ष में कैरियाँ लग गईं। कैरियों से अचार व मुरब्बा डाल दिया गया। आम के रस से घर परिवार के सदस्य रस-विभोर हो गए, तो बाजार में आम के अच्छे दाम मिलने से आर्थिक स्थिति मजबूत हो गई। रस से पाप़ड़ भी बनाए गए, जो पूरे साल मेहमानों व घर वालों को आम रस की याद दिलाते रहते।
बड़े बेटे को आम फल का सुख क्षणिक ही मिला, तो छोटे बेटे को पिता का "आशीर्वाद" दीर्घकालिक व सुख-समृद्धि दायक मिला।
यही हाल हमारा भी है, परमात्मा हमें सब कुछ देता है, सही उपयोग हम करते नही हैं, दोष परमात्मा और किस्मत को देते हैं..
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