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Saturday, September 28, 2024



*एक बार दशहरा बीत चुका था , दीपावली समीप थी , तभी एक दिन कुछ युवक - युवतियों की NGO टाइप टोली एक कॉलेज में आई !*

*उन्होंने छात्रों से कुछ प्रश्न पूछे ; किन्तु एक प्रश्न पर कॉलेज में सन्नाटा छा गया !*

*उन्होंने पूछा , " जब दीपावली भगवान राम के 14 वर्षो के वनवास से अयोध्या लौटने के उत्साह में मनाई जाती है , तो दीपावली पर " लक्ष्मी पूजन " क्यों होता है ? श्री राम की पूजा क्यों नही ?"*

*प्रश्न पर सन्नाटा छा गया , क्यों कि उस समय कोई सोशल मीडिया तो था नहीं , स्मार्ट फोन भी नहीं थे ! किसी को कुछ नहीं पता ! तब , सन्नाटा चीरते हुए , हममें से ही एक हाथ , प्रश्न का उत्तर देने हेतु ऊपर उठा !*

*उसने  बताया कि " दीपावली " उत्सव दो युग " सतयुग " और " त्रेता युग " से जुड़ा हुआ है !"*

*" सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थी !" इसलिए " लक्ष्मी पूजन " होता है !*

*भगवान श्री राम भी त्रेता युग मे इसी दिन अयोध्या लौटे थे ! तो अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था ! इसलिए इसका नाम दीपावली है !*

*इसलिए इस पर्व के दो नाम हैं , " लक्ष्मी पूजन " जो सतयुग से जुड़ा है , और दूजा " दीपावली " जो त्रेता युग , प्रभु श्री राम और दीपो से जुड़ा है !*

*हमारे उत्तर के बाद थोड़ी देर तक सन्नाटा छाया रहा , क्यों कि किसी को भी उत्तर नहीं पता था ! यहां तक कि प्रश्न पूछ रही टोली को भी नहीं !* 
*बाद में पता चला , कि वो टोली आज की शब्दावली अनुसार " लिबरर्ल्स " ( वामपंथियों ) की थी , जो हर कॉलेज में जाकर युवाओं के मस्तिष्क में यह बात डाल रही थी , कि " लक्ष्मी पूजन " का औचित्य क्या है , जब दीपावली श्री राम से जुड़ी है ?" कुल मिलाकर वह छात्रों का ब्रेनवॉश कर रही थी !* 

*लेकिन हमारे उत्तर के बाद , वह टोली गायब हो गई !*

*एक और प्रश्न भी था , कि लक्ष्मी और श्री गणेश का आपस में क्या रिश्ता है ?*

*और दीपावली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है ?* 

*सही उत्तर है :*

*लक्ष्मी जी जब सागर मन्थन में मिलीं , और भगवान विष्णु से विवाह किया , तो उन्हें  धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया, उन्होंने धन को बाँटने के लिए मैनेजर कुबेर को बनाया !*
*कुबेर कुछ कंजूस वृति के थे ! वे धन बाँटते नहीं थे , स्वयं धन के भंडारी बन कर बैठ गए !*

*माता लक्ष्मी परेशान हो गई ! उनकी सन्तान को कृपा नहीं मिल रही थी !*

*उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई ! भगवान विष्णु ने उन्हें कहा , कि " तुम मैनेजर बदल लो !"*

*माँ लक्ष्मी बोली : " यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं ! उन्हें बुरा लगेगा !"*

*तब भगवान विष्णु ने उन्हें श्री गणेश जी की दीर्घ और विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी !* 

*माँ लक्ष्मी ने श्री गणेश जी को " धन का डिस्ट्रीब्यूटर " बनने को कहा !*

*श्री गणेश जी ठहरे महा बुद्धिमान, वे बोले : " माँ, मैं जिसका भी नाम बताऊंगा , उस पर आप कृपा कर देना ! कोई किंतु , परन्तु नहीं !" माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी !*

*अब श्री गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न / रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे !*

*कुबेर भंडारी ही बनकर रह गए ! श्री गणेश जी पैसा प्रदान करने  वाले बन गए !*
 
*गणेश जी की दरियादिली देख , माँ लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्री गणेश को आशीर्वाद दिया , कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों , वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें !*

*दीपावली आती है कार्तिक अमावस्या को ! भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं ! वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद , देव उठावनी एकादशी को !*

*माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है , शरद पूर्णिमा से दीवाली के बीच के पन्द्रह दिनों में , तो वे सँग ले आती हैं श्री गणेश जी को ! इसलिए दीपावली को लक्ष्मी - गणेश की पूजा होती है !*
🙏🌹🙏
*( यह कैसी विडंबना है , कि देश और हिंदुओ के सबसे बड़े त्यौहार का पाठ्यक्रम में कोई विस्तृत वर्णन नहीं है ? औऱ जो वर्णन है , वह अधूरा है !)*

*इस लेख को पढ़ कर स्वयं भी लाभान्वित हों , अपनी अगली पीढी को बतायें और दूसरों के साथ साझा करना ना भूलें !*


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*एक डॉक्टर साहब अपने अस्पताल में मरीज देख रहे थे। 100 से ज्यादा मरीज अपने नम्बर का इन्तजार कर रहे थे। कई मरीज तो करोड़पति भी थे।*

*महीने की सात तारीख को डॉक्टर साहब बिना शुल्क के मरीजों को देखते थे। ये उनका चैरिटी करने का अपना अंदाज था जिसके बारे में कम लोग जानते थे। लेकिन उस दिन वह तारीख नहीं थी।*

*इतने में एक मरीज पर्चा लिखवाने के बाद बोला, मेरे पास फीस के पैसे नहीं हैं तो डॉक्टर ने पर्चा फाड़ दिया और बोला बिना फीस मैं मरीज नहीं देखता।*

*मरीज रुआंसा हुआ बाहर आ गया। लोगों ने उसके उतरे चेहरे देख कारण पूछा तो उसने पूरी कहानी बताई।*

*डॉक्टर का यह आचरण जान कर मरीजों में चर्चा शुरू हो गई। ऐसे भी डॉक्टर होते हैं ! मानवता नाम की चीज नहीं बची, केवल पैसे के लिए जीते हैं। डॉक्टर भी सीसीटीवी कैमरा रिकॉर्डर से सभी मरीजों की बात ईयर फोन पर सुन रहा था। लगभग सभी मरीजों, जिसमें बड़े-बड़े धन्ना सेठ भी थे, ने विभिन्न गरिमामय गालियों से डॉक्टर को नवाजा।*

*डॉक्टर साहब अपने केबिन से बाहर आये। सभी मरीज चुप।*

*डॉक्टर ने पूछा, "आप लोग मेरी ही तारीफ कर रहे थे न ! मुझे मालूम है, लेकिन जिस गरीब मरीज का पर्चा फीस के अभाव में मैंने फाड़ा था, वह मेरा ही कर्मचारी था। मैंने तो यह देखने के लिए यह नाटक रचा था कि यहां कितने लोगों में इन्सानियत बची है जो गरीब आदमी की फीस भर सकते थे।*

*लेकिन मैंने देखा आप में से एक भी व्यक्ति ने उस गरीब व्यक्ति की मदद नहीं की। आप बोल सकते थे कि उसकी फीस मैं दे देता हूं, लेकिन नहीं, आपको तो केवल डॉक्टर में दोष देखना है, स्वयं में नहीं।" सबके चेहरे देखने लायक थे।*

*कलियुग की यही सच्चाई है। दान धर्मादा सभी चाहते हैं, किन्तु स्वयं नहीं करेंगे, दूसरों से करवाना चाहते हैं।*

🌹🙏


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Sunday, September 22, 2024

Happy Life Quote

Happy Life Quote




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अगर सच मे देश्भक्त हो तो दिपावली मे देशी दीये जलाओ

अगर सच मे देश्भक्त  हो तो दिपावली मे देशी दीये जलाओ

हर हिंदुस्तानी दीपावली पे अपने घर को इन लोगो द्वारा बनाये दीपों से जगमग करेंगे तो इनके घर से हमेशा के लिए अँधेरा दूर हो जायेगा। #Diwali2016 #BoycottChinaProducts #Diwali शेयर करें
घोषणा -
मैं यह घोषणा करता हूँ कि  इस दीपावली कोई भी चाइनीज सामान नही खरीदूँगा, भले ही वो भारतीय सामान की तुलना में कितना ही सस्ता क्यों ने हो क्योंकि जो चीन देश के दुश्मन के साथ खड़ा है । उस देश में मेरा एक रुपया जाना मेरे देश के खिलाप जाना है। ।
हो सकता है केंद्र सरकार की कोई चाइना माल मंगवाने की कोई अन्तर्राष्टीय मजबूरी हो ।।
मेरी कोई मज़बूरी नही है 
इस लिए आप सभी से 👏 हाथ जोड़ कर निवेदन है आप चाइनीज उत्पाद नही खरीदे ।।
भारत माता की जय 









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मैं ही कृष्ण मैं ही कंस

मैं ही कृष्ण मैं ही कंस.....

क चित्रकार था, जो अद्धभुत चित्र बनाता था।
लोग उसकी चित्रकारी की
काफी तारीफ़ करते थे।
एक दिन कृष्ण मंदिर के भक्तों ने उनसे कृष्ण और कंस का एक
चित्र बनाने की इच्छा प्रगट की।
चित्रकार इसके लिये तैयार हो गया आखिर भगवान् का काम था, पर
उसने कुछ शर्ते रखी।
उसने कहा मुझे योग्य पात्र चाहिए, अगर वे मिल जाए तो में
आसानी से चित्र बना दूंगा।
कृष्ण के चित्र लिए एक योग्य नटखट बालक और कंस के लिए
एक क्रूर भाव वाला व्यक्ति लाकर दे तब मैं चित्र बनाकर दूंगा।
कृष्ण मंदिर के भक्त एक बालक ले आये, बालक सुन्दर था।
चित्रकार ने उसे पसंद किया और उस बालक को सामने रख
बालकृष्ण का एक सुंदर चित्र बनाया।
अब बारी कंस की थी पर
क्रूर भाव वाले व्यक्ति को ढूंढना थोडा मुस्किल था।
जो व्यक्ति कृष्ण मंदिर वालो को पसंद आता वो चित्रकार को पसंद
नहीं आता उसे वो भाव मिल नहीं रहे
थे...
वक्त गुजरता गया।
आखिरकार थक-हार कर सालों बाद वो अब जेल में चित्रकार को ले
गए, जहा उम्रकेद काट रहे अपराधी थे।
उन अपराधीयों में से एक को चित्रकार ने पसंद किया
और उसे सामने रखकर उसने कंस का एक चित्र बनाया।
कृष्ण और कंस की वो तस्वीर आज
सालों के बाद पूर्ण हुई।
कृष्ण मंदिर के भक्त वो तस्वीरे देखकर मंत्रमुग्ध
हो गए।
उस अपराधी ने भी वह
तस्वीरे देखने की इच्छा व्यक्त
की।
उस अपराधी ने जब वो तस्वीरे
देखी तो वो फुट-फुटकर रोने लगा।
सभी ये देख अचंभित हो गए।
चित्रकार ने उससे इसका कारण बड़े प्यार से पूछा।
तब वह अपराधी बोला "शायद आपने मुझे पहचाना
नहीं, मैं वो ही बच्चा हुँ जिसे सालों
पहले आपने बालकृष्ण के चित्र के लिए पसंद किया था।
मेरे कुकर्मो से आज में कंस बन गया, इस तस्वीर में
मैं ही कृष्ण मैं ही कंस हुँ।
 हमारे कर्म ही हमे अच्छा और बुरा
इंसान बनाते है।




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Saturday, September 21, 2024

श्राद्ध खाने नहीं आऊंगा कौआ बनकर।🌹🙏🌹


श्राद्ध खाने नहीं आऊंगा कौआ बनकर।
🌹🙏🌹

आँखो में आंसू ला दिये इस कहानी ने .......
"अरे! भाई बुढापे का कोई ईलाज नहीं होता . अस्सी पार चुके हैं . अब बस सेवा कीजिये ." डाक्टर पिता जी को देखते हुए बोला .
"डाक्टर साहब ! कोई तो तरीका होगा . साइंस ने बहुत तरक्की कर ली है ."
"शंकर बाबू ! मैं अपनी तरफ से दुआ ही कर सकता हूँ . बस आप इन्हें खुश रखिये . इस से बेहतर और कोई दवा नहीं है और इन्हें लिक्विड पिलाते रहिये जो इन्हें पसंद है ." डाक्टर अपना बैग सम्हालते हुए मुस्कुराया और बाहर निकल गया .
शंकर पिता को लेकर बहुत चिंतित था . उसे लगता ही नहीं था कि पिता के बिना भी कोई जीवन हो सकता है . माँ के जाने के बाद अब एकमात्र आशीर्वाद उन्ही का बचा था . उसे अपने बचपन और जवानी के सारे दिन याद आ रहे थे . कैसे पिता हर रोज कुछ न कुछ लेकर ही घर घुसते थे . बाहर हलकी-हलकी बारिश हो रही थी . ऐसा लगता था जैसे आसमान भी रो रहा हो . शंकर ने खुद को किसी तरह समेटा और पत्नी से बोला -
"सुशीला ! आज सबके लिए मूंग दाल के पकौड़े , हरी चटनी बनाओ . मैं बाहर से जलेबी लेकर आता हूँ ."
पत्नी ने दाल पहले ही भिगो रखी थी . वह भी अपने काम में लग गई . कुछ ही देर में रसोई से खुशबू आने लगी पकौड़ों की . शंकर भी जलेबियाँ ले आया था . वह जलेबी रसोई में रख पिता के पास बैठ गया . उनका हाथ अपने हाथ में लिया और उन्हें निहारते हुए बोला -
"बाबा ! आज आपकी पसंद की चीज लाया हूँ . थोड़ी जलेबी खायेंगे ."
पिता ने आँखे झपकाईं और हल्का सा मुस्कुरा दिए . वह अस्फुट आवाज में बोले -
"पकौड़े बन रहे हैं क्या ?"
"हाँ, बाबा ! आपकी पसंद की हर चीज अब मेरी भी पसंद है . अरे! सुषमा जरा पकौड़े और जलेबी तो लाओ ." शंकर ने आवाज लगाईं .
"लीजिये बाबू जी एक और . " उसने पकौड़ा हाथ में देते हुए कहा.
"बस ....अब पूरा हो गया . पेट भर गया . जरा सी जलेबी दे ." पिता बोले .
शंकर ने जलेबी का एक टुकड़ा हाथ में लेकर मुँह में डाल दिया . पिता उसे प्यार से देखते रहे .
"शंकर ! सदा खुश रहो बेटा. मेरा दाना पानी अब पूरा हुआ ." पिता बोले.
"बाबा ! आपको तो सेंचुरी लगानी है . आप मेरे तेंदुलकर हो ." आँखों में आंसू बहने लगे थे .
वह मुस्कुराए और बोले - "तेरी माँ पेवेलियन में इंतज़ार कर रही है . अगला मैच खेलना है . तेरा पोता बनकर आऊंगा , तब खूब खाऊंगा बेटा ."
पिता उसे देखते रहे . शंकर ने प्लेट उठाकर एक तरफ रख दी . मगर पिता उसे लगातार देखे जा रहे थे . आँख भी नहीं झपक रही थी . शंकर समझ गया कि यात्रा पूर्ण हुई .
तभी उसे ख्याल आया , पिता कहा करते थे -
"श्राद्ध खाने नहीं आऊंगा कौआ बनकर , जो खिलाना है अभी खिला दे ."
माँ बाप का सम्मान करें और उन्हें जीते जी खुश रखे।🙏🙏🙏🙏.




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Thursday, September 12, 2024

Must Read Story : गोलगप्पे की रेहड़ी

Must Read Story : गोलगप्पे की रेहड़ी

तुम्हे कुछ दिन से देख रहा हूं, यहां रोज गोलगप्पे की रेहड़ी लगाते हो, स्कूल क्यों नहीं जाते....

शर्मा जी ने सड़क किनारे रेहड़ी लगाए 14-15 साल के लड़के से कहा...

बस अंकल जी...अपनी हालत कुछ ऐसी ही है...

मै एक संस्था चलाता हूं, यहा गरीब बच्चों के लिए कक्षाएं चलाई जाती है, तुम भी आ सकते हो....

अंकल जी....फिर गोलगप्पे कौन बेचेगा...

घर कैसे चलेगा....

क्यो, तुम्हारे माता -पिता नही है क्या

है.... अंकल जी, भाई है बहन भी है...

पर घर की जिम्मेदारी मुझ पर है, वैसे भी पढ़ -लिख कर क्या करूँगा,

पढ़ कर तुम बड़े आदमी बन सकते हो....

लड़का ज़ोर से हँसा -अंकल जी...

बड़ा आदमी...वो सूट_बूट वाला,

जो गरीब मां -बाप से किनारा कर लेता है,

सुनिए अंकल जी - मेरे बापू चपरासी थे...

मामूली तनख्वाह थी हम दो भाई ,एक बहन है...

बापू ने बड़ी मेहनत से भाई ,बहन को पढ़ाया...कर्ज़ा लिया,

फिर भाई अफसर बन गया...कालेज में अपनी पसंद की लडकी से शादी की और पत्नी को साथ ले शहर निकल गया...

पलट कर देखा तक नही....

बहन बड़े स्कूल की प्रिंसिपल है ।

उसे व उसके पति को, चपरासी पिता, अनपढ़ मां, और सिर्फ छठी पास भाई धब्बा लगते है...

कभी मिलने तक नही आती...

उनकी बड़ी शिक्षा पर हम पैबंद से लगते है....

अब बापू के पास काम नहीं रहा

मां बीमार रहती है...

मैं घर चलाउ या पढूं...

"वैसे भी अंकल जी... आदमी सोच से बड़ा होता है, डिग्रियों से नहीं !

पढ़ना तो मैं भी चाहता हूँ, लेकिन ज़िमेदारीयां नहीं पढ़ने देगी

फिर मैंने तय किया कि, जिन माता -पिता ने कष्ट सह कर पाला, उन्हें सुख दे सकूं इसी में खुद को बड़ा आदमी मान लूँगा..

चलिए अंकल जी...

गोलगप्पे खाइये....

कुछ कमाई तो हो, कल माँ की दवाईयां खत्म हो गई, वो भी लानी है

शर्मा जी कुछ सोचे और कहा, तुम अच्छे गोलगप्पे बनाते हो, घरवालों के लिए भी 100 रुपए के पैक कर दो, पैसे देकर शर्मा जी नीची गर्दन करते हुए धीमे धीमे चले गए

लेकिन शर्मा जी तो अकेले रहते है

उनके बच्चे विदेश में शेटल हो गए

ऐसे ना जाने कितने बच्चे बचपन खो देते हैं, पढ़ नहीं पाते, और जो ज्यादा पढ़ लिए, वो घर नहीं आते



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Wednesday, September 11, 2024

गुस्सैल पत्नी और कीलों से भरा एक थैला









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एक था तिलका

एक था तिलका

भैंस पालता था। अपनी भैंस का दूध भी बेचता था और अड़ोस पड़ोस के लोगों की भैंसों का भी दूध बेचा करता था। दूध में पानी भी मिलाता था मगर शुद्ध हैंडपंप का पानी। गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गर्म।
कभी कभी पापा जी शिकायत भी करते... तिलके आजकल पानी ज्यादा मिला रहे दिक्खो।
ना जी... बिल्कुल नि मिलात्ता। अर तम्है तो मैं खास तौर पै अपनी ई भैंस का दूं। और यही एक्सप्लेनेशन वह अपने हर ग्राहक को दिया करता था।
कभी कभी सफाई बिल्कुल वैज्ञानिक अंदाज में देता। जी पानी बिलकुल नि मिलाया। अभी निकाल कर लाया। चाहे देख लो निवाया (हल्का गर्म) है कि नहीं।
एक दिन पापाजी ने दूध का बर्तन हाथ में लिया तो वह सामान्य से ज्यादा गर्म लगा। तो पापाजी तुरंत बोले... तिलके थारी भैंस कू बुखार हो रा दिक्खे आज तो। दूध घणा ई गर्म सा।
इन फैक्ट तिलका सर्दियों में पानी को गर्म करके मिलाया करता था ताकि दूध के तापमान में कोई अंतर न आए और वह धारोष्ण लगे। उस दिन पानी ज्यादा गर्म हो गया होगा!!!
पशु के शरीर से जब दूध निकल कर आता है तो वह बॉडी टेंपरेचर के आसपास होता है। जैसे हमारा सामान्य तापमान 98.6 डिग्री होता है उसी तरह भैंस का सामान्य तापमान 101 डिग्री और गाय का 101.5 डिग्री होता है। इसलिए जब दूध थनों से बाहर आता है तो वह उस पशु के शरीर के तापमान के आसपास होता है और उसे धारोष्ण दूध कहा जाता है।
पुराने जमाने में लोग दूध की धार सीधे मुंह में मारकर भी पी लिया करते थे। आयुर्वेद में भी धारोष्ण दूध पीने की सलाह दी जाती है।
मगर अब जमाना बदल चुका है। जिन तथ्यों का हमें पहले पता नहीं था अब पता है तो अब धारोष्ण दूध या कच्चा दूध या बिना उबला दूध पीने की सख्त मनाही की गई है।
ऐसा दूध पीने से पीने वाला बहुत सी बीमारियों से ग्रस्त हो सकता है। इनमें सबसे प्रमुख है टीबी। इसके अलावा बिना उबले दूध में सालमोनेला, ई कोलाई, लिस्टेरिया, कैंपीलोबैक्टर आदि बैक्टीरिया भी हो सकते हैं जिनसे फूड प्वाइजनिंग हो सकती है। पेट में गैस, जी मिचलाना, उल्टी आदि लक्षण आ सकते हैं।
इसलिए दूध को भली भांति उबाल कर ही प्रयोग करें। यहां तक कि पश्चुरीकृत दूध को भी उबालने के बाद ही प्रयोग में लाए। जय हो।




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व्रत के फायदे: एंटी एजिंग लंबी आयु दीर्घ जीवी

व्रत के फायदे: एंटी एजिंग लंबी आयु दीर्घ जीवी


पूर्णिमा.... 
फिर चौदह दिन बाद अमावस्या और फिर चौदह दिन बाद फिर से पूर्णिमा। महीने में कम से कम दो अवसर व्रत रखने के।
थोड़ा और धार्मिक हो जाएं तो एकादशी।
थोड़ी और श्रद्धा हो तो सप्ताह के सभी दिन किसी ना किसी भगवान से जुड़े हुए। जितनी श्रद्धा हो व्रत किए जाओ। 
यह व्रत रखना मात्र धार्मिक क्रियाकलाप नहीं है। इसके पीछे छिपा है विज्ञान। 
सबसे पहला फ़ायदा होता है न्यूट्रिएंट्स की आपूर्ति में थोड़ी कटौती करके वजन को संतुलित रखना।
दूसरा फायदा है कि व्रत की स्थिति में ब्लड में ग्लूकोज का स्तर घट जाता है। मगर शरीर की विभिन्न कोशिकाओं को अपना कार्य सुचारू रूप से चलाने के लिए तो ग्लूकोज चाहिए ही। तो इस अवस्था में लीवर में वसा अम्लों के पाचन से ग्लूकोज के स्थान पर एक अन्य रसायन पैदा होता है जिसका नाम है बीटा हाईड्रॉक्सी ब्यूटाइरेट। ग्लूकोज ना होने पर कोशिकाएं इसी बीटा हाईड्रॉक्सी ब्यूटाइरेट से ही एनर्जी प्राप्त करती हैं। यह है इतने कमाल का कि यह ब्लड ब्रेन बैरियर को भी पार कर सकता है। 
बस यही बीएचबीए कमाल का है। यही वह जादूगर है जो देता है लम्बी आयु। एजिंग का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है हमारे वैस्कुलर सिस्टम पर। बोले तो हमारी धमनियों (आर्टरीज) और शिराओं (वेन्स) पर। बुढ़ापे के कारण शरीर के विभिन्न अंगों तक रक्त लेकर जाने वाली धमनियां बूढ़ी होने लगती हैं। और एक दिन थक जाती हैं।
यहीं रोल आता है बीएचबीए का। इसके कारण सेल डिवीजन बढ़ जाता है और ब्लड वैसल्स के अंदर की लाइनिंग की कोशिकाओं की संख्या बढ़ने लगती हैं। पुरानी कोशिकाओं का स्थान नई कोशिकाएं लेने लगती हैं और बस कृपा स्टार्ट।
व्रत के अलावा व्यायाम करने से भी बीएचबीए का उत्पादन बढ़ता है। शायद इसीलिए हमारे पूर्वज दीर्घजीवी होते थे। क्योंकि वह कम से कम साप्ताहिक व्रत तो करते ही थे साथ ही साथ व्यायाम भी किया करते थे। 
इसलिए कल से डोमेस्टिक हेल्प को कीजिये टाटा बाई बाई और अपना काम स्वयं कीजिए और साथ ही शुरू कीजिए कम से कम एक साप्ताहिक व्रत।
और हां.... व्रत के स्थान पर चरत मत रख लेना। कभी सारा दिन कुछ न कुछ चरते ही रहो जैसा अभी जन्माष्टमी के चरत में किया आप लोगों ने।



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Sunday, September 8, 2024

Motivational Hindi Stories परीक्षा

परीक्षा 
Motivational Hindi Stories

बहुत पुरानी बात है, उन दिनों आज की तरह स्कूल नहीं होते थें। गुरुकुल  शिक्षा प्रणाली थी और छात्र गुरुकुल में ही रहकर पढ़ते थे। उन्हीं दिनों की बात है, एक विद्वान पंडित थे, उनका नाम था- राधे गुप्त। उनका गुरुकुल बड़ा ही प्रसिद्ध था, जहाँ दूर दूर से बालक शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे।

राधे गुप्त की पत्नी का देहांत हो चूका था, उनकी उम्र भी ढलने लगी थी, घर में विवाह योग्य एक कन्या थी, जिनकी चिंता उन्हें हर समय सताती थी। पंडित राधे गुप्त उसका विवाह ऐसे योग्य व्यक्ति से करना चाहते थे, जिसके पास सम्पति भले न हो पर बुद्धिमान हो।


एक दिन उनके मन में विचार आया, उन्होंने सोचा कि क्यों न वे अपने शिष्यों में ही योग्य वर की तलाश करें। ऐसा विचार कर उन्होंने बुद्धिमान शिष्य की परीक्षा लेने का निर्णय लिया, उन्होंने सभी शिष्यों को एकत्र किया और उनसे कहा- मैं एक परीक्षा आयोजित करना चाहता हूँ, इसका उद्देश्य यह जानना है कि कौन सबसे बुद्धिमान है।

मेरी पुत्री विवाह योग्य हो गई है और मुझे उसके विवाह की चिंता है, लेकिन मेरे पास पर्याप्त धन नहीं है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि सभी शिष्य विवाह में लगने वाली सामग्री एकत्र करें। भले ही इसके लिए चोरी का रास्ता क्यों न चुनना पड़े। लेकिन सभी को एक शर्त का पालन करना होगा, शर्त यह है कि किसी भी शिष्य को चोरी करते हुए कोई देख न सके।

अगले दिन से सभी शिष्य अपने अपने काम में जुट गये। हर दिन कोई न कोई शिष्य अलग अलग तरह की वस्तुएं चुरा कर ला रहा था और गुरूजी को दे रहा था। राधे गुप्त उन वस्तुओं को सुरक्षित स्थान पर रखते जा रहे थे। क्योंकि परीक्षा के बाद उन्हें सभी वस्तुएं उनके मालिक को वापिस करनी थी।


परीक्षा से वे यही जानना चाहते थे कि कौन सा शिष्य उनकी बेटी से विवाह करने योग्य है। सभी शिष्य अपने अपने दिमाग से कार्य कर रहे थे। लेकिन उनमें से एक छात्र रामास्वामी, जो गुरुकुल का सबसे होनहार छात्र था, चुपचाप एक वृक्ष के नीचे बैठा कुछ सोच रहा था।

उसे सोच में बैठा देख राधे गुप्त ने कारण पूछा। रामास्वामी ने बताया, “आपने परीक्षा की शर्त के रूप में कहा था कि चोरी करते समय कोई देख न सके। लेकिन जब हम चोरी करते हैं, तब हमारी अंतरात्मा तो सब देखती है, हम खुद से उसे छिपा नहीं सकते। इसका अर्थ यही हुआ न कि चोरी करना व्यर्थ है।”

उसकी बात सुनकर राधे गुप्त का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा। उन्होंने उसी समय सभी शिष्यों को एकत्र किया और उनसे पूछा- आप सबने चारी की.. क्या किसी ने देखा ? सभी ने इनकार में सिर हिलाया। तब राधे गुप्त बोले “बच्चों ! क्या आप अपने अंतर्मन से भी इस चोरी को छुपा सके ?”

इतना सुनते ही सभी बच्चों ने सिर झुका लिया। इस तरह गुरूजी को अपनी पुत्री के लिए योग्य और बुद्धिमान वर मिल गया। उन्होंने रामास्वामी के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। साथ ही शिष्यों द्वारा चुराई गई वस्तुएं उनके मालिकों को वापिस कर बड़ी विनम्रता से क्षमा मांग ली।


शिक्षा:-
इस प्रसंग से यह  शिक्षा मिलती है कि कोई भी कार्य अंतर्मन से छिपा नहीं रहता और अंतर्मन ही व्यक्ति को सही रास्ता दिखाता है। इसलिए मनुष्य को कोई भी कार्य करते समय अपने मन को जरुर टटोलना चाहिए, क्योंकि मन सत्य का ही साथ देता है।

*सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।




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Thursday, May 9, 2024

पिता जी के हाथ के निशान

*_पिता जी  के हाथ के निशान_*
                🙏🙏😭

*पिता जी बूढ़े हो गए थे और चलते समय दीवार का सहारा लेते थे। नतीजतन, दीवारें जहाँ भी छूती थीं, वहाँ रंग उड़ जाता था और दीवारों पर उनके उंगलियों के निशान पड़ जाते थे।*

*मेरी पत्नी ने यह देखा और अक्सर गंदी दिखने वाली दीवारों के बारे में शिकायत करती थी।*

*एक दिन, उन्हें सिरदर्द हो रहा था, इसलिए उन्होंने अपने सिर पर थोड़ा तेल मालिश किया। इसलिए चलते समय दीवारों पर तेल के दाग बन गए।*

*मेरी पत्नी यह देखकर मुझ पर चिल्लाई। और मैं भी अपने पिता पर चिल्लाया और उनसे बदतमीजी से बात की, उन्हें सलाह दी कि वे चलते समय दीवारों को न छुएँ।*

*वे दुखी लग रहे थे। मुझे भी अपने व्यवहार पर शर्म आ रही थी, लेकिन मैंने उनसे कुछ नहीं कहा। पिता जी ने चलते समय दीवार को पकड़ना बंद कर दिया। और एक दिन गिर पड़े। वे बिस्तर पर पड़ गए और कुछ ही समय में हमें छोड़कर चले गए।*

*मुझे अपने दिल में अपराधबोध महसूस हुआ और मैं उनके भावों को कभी नहीं भूल पाया और कुछ ही समय बाद उनके निधन के लिए खुद को माफ़ नहीं कर पाया।*

*कुछ समय बाद, हम अपने घर की पेंटिंग करवाना चाहते थे।  जब पेंटर आए, तो मेरे बेटे ने, जो अपने दादा को बहुत प्यार करता था, पेंटर को पिता के फिंगरप्रिंट साफ करने और उन जगहों पर पेंट करने की अनुमति नहीं दी।*

*पेंटर बहुत अच्छे और नए थे। उन्होंने उसे भरोसा दिलाया कि वे मेरे पिता के फिंगरप्रिंट/हाथ के निशान नहीं मिटाएंगे, बल्कि इन निशानों के चारों ओर एक सुंदर घेरा बनाकर एक अनूठी डिजाइन बनाएंगे।*

*इसके बाद यह सिलसिला चलता रहा और वे निशान हमारे घर का हिस्सा बन गए। हमारे घर आने वाला हर व्यक्ति हमारे अनोखे डिजाइन की प्रशंसा करता था।*

*समय के साथ, मैं भी बूढ़ा हो गया। अब मुझे चलने के लिए दीवार के सहारे की जरूरत थी। एक दिन चलते समय, मुझे अपने पिता से कहे गए शब्द याद आ गए और मैंने बिना सहारे के चलने की कोशिश की।*

*मेरे बेटे ने यह देखा और तुरंत मेरे पास आया और मुझे दीवार का सहारा लेने के लिए कहा, चिंता व्यक्त करते हुए कि मैं बिना सहारे के गिर जाऊंगा, मैंने महसूस किया कि मेरा बेटा मुझे पकड़ रहा था।*

*मेरी पोती तुरंत आगे आई और प्यार से, मुझे सहारा देने के लिए अपना हाथ उसके कंधे पर रखने के लिए कहा। मैं लगभग चुपचाप रोने लगा। अगर मैंने अपने पिता के लिए भी ऐसा ही किया होता, तो वे लंबे समय तक जीवित रहते।*

 *मेरी पोती मुझे साथ ले गई और सोफे पर बैठा दिया। फिर उसने मुझे दिखाने के लिए अपनी ड्राइंग बुक निकाली।*

*उसकी शिक्षिका ने उसकी ड्राइंग की प्रशंसा की और उसे बेहतरीन टिप्पणियाँ दीं! स्केच दीवारों पर मेरे पिता के हाथ के निशान का था।*

*स्केच के नीचे शीर्षक लिखा था.. “काश हर बच्चा बड़ों से इसी तरह प्यार करता”।*

*मैं अपने कमरे में वापस आ गया और अपने पिता से माफ़ी मांगते हुए फूट-फूट कर रोने लगा, जो अब इस दुनिया में नहीं थे।*

*हम भी समय के साथ बूढ़े हो जाते हैं /हो जाएंगे।आइए अपने बड़ों का ख्याल रखें और अपने बच्चों को भी यही सिखाएँ। केवल वाट्सएप पर कहानी बन कर न रह जाए यह पोस्ट। मैंने अपने सभी जानने वालों को पढ़ने के लिए प्रेषित कर दी है, आप भी चाहें तो ऐसा कर सकते हैं




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Sunday, April 21, 2024

मच्छरों को भगाने का तरीका


मच्छरों को भगाने का तरीका ::
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वैसे तो आजकल मच्छर मारने की टिकियाँ और दवाइयां आती हैं लेकिन इसके इस्तेमाल से हमारे शरीर को भी नुक्सान पहुंचता है।मच्छर भगाने वाली कवायल 100 सिग्रेट के बराबर नुकसान करता है इसलिए इनका इस्तेमाल करने की बजाय हमें प्राकृतिक तरीकों से मच्छरों को भगाना चाहिए।
-- नीम -केरोसीन लैम्प:- एक छोटी लैम्प में मिटटी के तेल में 30 बुँदे नीम के तेल की डालें, दो टिक्की कपूर को 20 ग्राम नारियल का तेल में पीस इसमें घोल लो
इसे जलाने पर मच्छर भाग जाते है और जब तक वो लैम्प जलती रहती है मच्छर नहीं आते वहाँ पर
--. दिया:- नारियल तेल में नीम के तेल को डाल कर उसका दिया जलाये इससे भी मच्छर नही आयेंगे--
--मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी का उपयोग करें।
--अजवाइन लें इसे पीसें अब इसमें समान भाग में सरसों का तेल मिलाकर इसमें गत्ते के टुकड़ों को तर करके कमरे में चारों तरफ उंचाई पर रख दें। ऐसा करने से मच्छर भाग जाएंगे।
जलते हुए कोयलों पर नारंगी के छिलके डाल दें। अब इससे जो धुंआ निकलेगा उससे मच्छर भाग जाएंगे।
--शरीर पर सरसों का तेल लगाने से मच्छर नहीं काटते।
--तुलसी के पत्तों का रस शरीर पर लगाने से भी मच्छर नहीं काटते।
--नीम की पत्तियों के जलाने से जो धुंआ निकलता है उससे भी मच्छर भाग जाते हैं।
--लौंग के तेल की महक से मच्छर दूर भागते हैं। लौंग के तेल को नारियल तेल में मिलाकर त्वचा पर लगाएं, इसका असर ओडोमॉस से कम नहीं होगा।
--सोयाबीन के तेल से त्वचा की हल्की मसाज करें। इससे मच्छर दूर रहेंगे। इसके अलावा यूकोलिप्टस का तेल भी बहुत कारगर है।
--गेंदे के फूल की सुगंध न सिर्फ आपको ताजगी से भर देती है बल्कि मच्छर भी दूर भगाती है। गेंदे का पौधा न सिर्फ अपने बगीचे में रखें बल्कि बालकनी में भी इन्हें लगाएं जिससे शाम के समय मच्छर घर में न घुसें।
--लहसुन की कच्ची कलियां चबाने से भी मच्छर दूर रहते हैं।
--काली मिर्च के अरोमा वाला तेल भी मच्छर भगाने में मददगार है।
--मच्छर मारने का एलेक्टिर्क बेट भी आता है उस से मारे जा सकते है




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लडकिया तो हिरे से भी ज्यादा अनमोल होती है


लडकिया तो हिरे से भी ज्यादा अनमोल होती है.!!
एक संत की कथा चल रही थी.!! अचानक एक बालिका खड़ी हो गई.!!
उसके चेहरे पर आक्रोश साफ दिखाई दे रहा था.!!
उसके साथ आए उसके परिजनों ने उसको बिठाने की कोशिश की,
लेकिन बालिका नहीं मानी.!!
संत ने पूछा...... बोलो बालिका क्या बात है?
बालिका ने कहा- महाराज,घर में लड़के को हर प्रकार की आजादी होती है.!!
वह कुछ भी करे, कहीं भी जाए उस पर कोई खास रोक टोक नहीं होती.!!
इसके विपरीत लड़कियों को बात बात पर टोका जाता है.!
यह मत करो, यहाँ मत जाओ, घर जल्दी आ जाओ, लड़को से मेल जोल मत रखो.. आदि आदि.!
संत ने उसकी बाते सुनी और मुस्कुराने लगे.!!
उसके बाद उन्होंने पूछा-
बालिके, तुमने कभी हार्डवेअर की दुकान देखी?
भारी से भारी लोहेकी वस्तुएं हरदम खुली पड़ी रहती है.!!
दुकानदार को भी उन चीजोंकी कोई चिंता नहीं रहती.!!
लड़कों की फितरत कुछ इसी प्रकार की है समाज में.!!
अब देखो जौहरी की दुकान का हाल....
जब भी कोई ग्राहक हीरा खरीदने आता है...
जौहरी एक बड़ी तिजोरी खोलता है.!!
तिजोरी के भीतर का कोई छोटा सा लॉकर खोलकर उसमे से छोटी सी डिब्बी निकालेगा.!!
डिब्बी में रेशमी मखमल बिछा होगा.!!
और उस पर होगा हीरा.!!
"अनमोल हीरा" क्योंकि जौहरी जानता है की अगर
हीरे में जरा भी खरोंच आ गई तो उसकी कोई कीमत नहीं रहेगी.!!
जरासी खरोंच से वह अनमोल हिरा,दो कवडी का हो सकता है.!!
बस समाज में लड़कियों की अहमियत कुछ इसी प्रकार की है.!! अनमोल हीरे की तरह.!!
लडकिया तो हिरे से भी ज्यादा अनमोल होती है.!!
इसलिए हर कोई बेटी की हिफाजत करता है.!!
बस यही अन्तर है लड़कीयों में और लड़कों में.!!
इस से साफ है कि परिवार लड़कियों की परवाह अधिक क्यों करता है??
बालिका को समझ में आ गया की बच्चियों की फिक्र ज्यादा क्यों होती है.!!




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एक बुढ़िया बड़ी सी गठरी लिए चली जा रही थी। चलते-चलते वह थक गई थी

एक बुढ़िया बड़ी सी गठरी लिए चली जा रही थी। चलते-चलते वह थक गई थी।
तभी उसने देखा कि एक घुड़सवार चला आ रहा है। उसे देख बुढ़िया ने आवाज दी,
‘अरे बेटा, एक बात तो सुन।’ घुड़सवार रुक गया। उसने पूछा, ‘क्या बात है माई?’
बुढ़िया ने कहा, ‘बेटा, मुझे उस सामने वाले गांव में जाना है। बहुत थक गई हूं।
यह गठरी उठाई नहीं जाती। तू भी शायद उधर ही जा रहा है।यह गठरी घोड़े पर रख ले।
मुझे चलने में आसानी हो जाएगी।’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘माई तू पैदल है। मैं घोड़े पर हूं।
गांव अभी बहुत दूर है। पता नहीं तू कब तक वहां पहुंचेगी।
मैं तो थोड़ी ही देर में पहुंच जाऊंगा। वहां पहुंचकर क्या तेरी प्रतीक्षा करता रहूंगा?’
यह कहकर वह चल पड़ा। कुछ ही दूर जाने के बाद उसने अपने आप से कहा,
‘तू भी कितना मूर्ख है। वह वृद्धा है, ठीक से चल भी नहीं सकती।
क्या पता उसे ठीक से दिखाई भी देता हो या नहीं। तुझे गठरी दे रही थी।
संभव है उस गठरी में कोई कीमती सामान हो। तू उसे लेकर भाग जाता तो कौन पूछता।
चल वापस, गठरी ले ले। ‘वह घूमकर वापस आ गया और बुढ़िया से बोला, ‘माई, ला अपनी गठरी।
मैं ले चलता हूं। गांव में रुककर तेरी राह देखूंगा।’ बुढ़िया ने कहा, ‘न बेटा, अब तू जा,
मुझे गठरी नहीं देनी।’ घुड़सवार ने कहा, ‘अभी तो तू कह रही थी कि ले चल।
अब ले चलने को तैयार हुआ तो गठरी दे नहीं रही। ऐसा क्यों?
यह उलटी बात तुझे किसने समझाई है?’ बुढ़िया मुस्कराकर बोली, ‘उसी ने समझाई है
जिसने तुझे यह समझाया कि माई की गठरी ले ले। जो तेरे भीतर बैठा है
वही मेरे भीतर भी बैठा है। तुझे उसने कहा कि गठरी ले और भाग जा।
मुझे उसने समझाया कि गठरी न दे, नहीं तो वह भाग जाएगा।
तूने भी अपने मन की आवाज सुनी और मैंने भी सुनी





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मति बदली , जीवन बदला


।। मति बदली , जीवन बदला ।।
एक कुम्हार माटी से चिलम बनाने जा रहा था..।
उसने चिलम का आकार दिया..।
थोड़ी देर में उसने चिलम को बिगाड़ दिया...l
माटी ने पूछा -: अरे कुम्हार, तुमने चिलम अच्छी बनाई फिर बिगाड़ क्यों दिया.?
कुम्हार ने कहा कि -: अरी माटी, पहले मैं चिलम बनाने की सोच रहा था, किन्तु मेरी मति (दिमाग) बदली और अब मैं सुराही बनाऊंगा,,,।
ये सुनकर माटी बोली -: रे कुम्हार, मुझे खुशी है कि, तेरी तो मति बदली, मेरी तो जिंदगी ही बदल गयी...l
चिलम बनती तो स्वयं भी जलती और दूसरों को भी जलाती ,,, अब सुराही बनूँगी तो स्वयं भी शीतल रहूँगी ...और दूसरों को भी शीतल रखूंगी...l
"यदि जीवन में हम सभी सही फैसला लें...तो हम स्वयं भी खुश रहेंगे.., एवं दूसरों को भी खुशियाँ दे सकेंगे।



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एक बार एक गुरु ने अपने सभी शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल प्रवचन में आते समय अपने साथ एक थैली में बड़े-बड़े आलू साथ लेकर आएं।


एक बार एक गुरु ने अपने सभी शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल प्रवचन में
आते समय अपने साथ एक थैली में बड़े-बड़े आलू साथ लेकर आएं। उन आलुओं पर
उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिए, जिनसे वे ईर्ष्या करते हैं। जो शिष्य
जितने व्यक्तियों से ईर्ष्या करता है, वह उतने आलू लेकर आए।अगले दिन सभी शिष्य आलू लेकर आए। किसी के पास चार आलू थे तो किसी के पास
छह। गुरु ने कहा कि अगले सात दिनों तक ये आलू वे अपने साथ रखें। जहां भी
जाएं, खाते-पीते, सोते-जागते, ये आलू सदैव साथ रहने चाहिए। शिष्यों को
कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन वे क्या करते, गुरु का आदेश था। दो-चार
दिनों के बाद ही शिष्य आलुओं की बदबू से परेशान हो गए। जैसे-तैसे
उन्होंने सात दिन बिताए और गुरु के पास पहुंचे। गुरु ने कहा, ‘यह सब
मैंने आपको शिक्षा देने के लिए किया था।जब मात्र सात दिनों में आपको ये आलू बोझ लगने लगे, तब सोचिए कि आप जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या करते हैं, उनका कितना बोझ आपके मन पर रहता होगा।
यह ईर्ष्या आपके मन पर अनावश्यक बोझ डालती है, जिसके कारण आपके मन में भी
बदबू भर जाती है, ठीक इन आलूओं की तरह। इसलिए अपने मन से गलत भावनाओं को
निकाल दो, यदि किसी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम नफरत तो मत करो।
इससे आपका मन स्वच्छ और हल्का रहेगा।’ यह सुनकर सभी शिष्यों ने आलुओं के
साथ-साथ अपने मन से ईर्ष्या को भी निकाल फेंका।




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एक कॉलेज में Happy married life के ऊपर एक workshop हो रही थी

एक कॉलेज में Happy married life के ऊपर एक workshop हो रही थी, जिसमे कुछ शादीशुदा couple हिस्सा ले रहे थे।जिस समय प्रोफेसर मंच पर आते है तो वो नोट करते है कि सभी पति- पत्नी आपस में शादी पर जोक कर रहे होते है और हँस रहे होते है... ये देख कर प्रोफेसर ने कहते है कि चलो पहले एक Game खेलते है... उसके बाद हम अपने विषय पर बातें करेंगे।
सभी खुश हो गए और कहा कोनसा Game ???
प्रोफ़ेसर ने एक married लड़की को खड़ा किया और कहा कि तुम ब्लेक बोर्ड पे तुम्हे जो सबसे अजीज और तुम्हारे सबसे नजदीक हो ऐसे कुछ लोगो के 25- 30 नाम लिखो....
लड़की ने पहले तो अपने परिवार के लोगो के नाम लिखे फिर अपने सगे सम्बन्धी, दोस्तों,पडोसी और सहकर्मियों के नाम लिख दिए...
अब प्रोफ़ेसर ने उसमे से कोई भी कम पसंद हो वैसे 5 नाम मिटाने को कहा... लड़की ने अपने सहकर्मियों के नाम मिटा दिए... फिर प्रोफ़ेसर ने और 5 नाम मिटाने को कहा... लड़की ने थोडा सोच के अपने पड़ोसियो के नाम मिटा दिए... अब प्रोफ़ेसर ने और 10 नाम मिटाने को कहा... लड़की ने अपने सगे सम्बन्धी और दोस्तों के नाम मिटा दिए...
अब बोर्ड पर सिर्फ 4 नाम बचे थे जो उसके मम्मी- पापा, पति और बच्चे का नाम था.. अब प्रोफ़ेसर ने कहा इसमें से और 2 नाम मिटा दो... लड़की असमंजस में पड गयी बहुत सोचने के बाद बहुत दुखी होते हुए उसने अपने मम्मी- पापा का नाम मिटा दिया...
सभी लोग स्तब्ध और शांत थे क्योकि वो जानते थे कि ये गेम सिर्फ वो लड़की ही नहीं खेल रही थी उनके दिमागों में भी यही सब चल रहा था।
अब सिर्फ 2 ही नाम बचे थे... पति और बेटे का... प्रोफ़ेसर ने कहा और एक नाम मिटा दो...
लड़की अब सहमी सी रह गयी... बहुत सोचने के बाद रोते हुए अपने बेटे का नाम काट दिया...
प्रोफ़ेसर ने अब उस लड़की को कहा तुम अपनी जगह पर जाके बैठ जाओ...
और सभी की तरफ गौर से देखा...और पूछा- क्या कोई बता सकता है कि ऐसा क्यों हुआ कि सिर्फ पति का ही नाम बोर्ड पर रह गया।
कोई जवाब नहीं दे पाया... सभी मुँह लटका के बैठे थे...
प्रोफ़ेसर ने फिर उस लड़की को खड़ा किया और कहा... ऐसा क्यों ! जिसने तुम्हे जन्म दिया और पाल पोस के इतना बड़ा किया उनका नाम तुमने मिटा दिया... और तो और तुमने अपनी कोख से जिस बच्चे जन्म दिया उसका भी नाम तुमने मिटा दिया ????
तो लड़की ने सुबकते हुए जवाब दिया कि अब मम्मी- पापा बूढ़े हो चुके है और कुछ साल के बाद वो मुझे और इस दुनिया को छोड़ के चले जायेंगे और मेरा बेटा जब बड़ा हो जायेगा तो जरूरी नहीं कि वो शादी के बाद मेरे साथ ही रहे।
पर मेरे पति जब तक मेरी जान में जान है तब तक मेरा आधा शरीर बनके मेरा साथ निभायेंगे इस लिए मेरे लिए सबसे अजीज मेरे पति है...
प्रोफ़ेसर और बाकी स्टूडेंट ने तालियों की गूंज से लड़की को सलामी दी...
प्रोफ़ेसर ने कहा तुमने बिलकुल सही कहा कि तुम और सभी के बिना रह सकती हो पर अपने आधे अंग अर्थात अपने पति के बिना नहीं रह सकती हो...
तो आप सभी सज्जनों एवं देवियों, ध्यान दे कि मजाक मस्ती तक तो ठीक है पर हर इंसान का अपना जीवन साथी ही उसको सब लोगो से ज्यादा अजीज होता है... यह बात कभी मत भूलना..!





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