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Monday, December 21, 2015

जन गण मन में अधिनायक कौन?

जन गण मन में अधिनायक कौन?



राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह चाहते हैं कि हमारे राष्ट्रीय गान में कुछ शब्दों को बदल दिया जाए. बीजेपी नेता रहे कल्याण सिंह के मुताबिक राष्ट्रगान में इस्तेमाल हुए अधिनायक शब्द ब्रिटिश राज की याद दिलाने वाला है और इसकी जगह मंगल शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. कल्याण सिंह के इस बयान के बाद बहस खड़ी हो गई है.
ऐसा कोई भारतीय नहीं है जो गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के लिखे गीत के इन शब्दों और उन्हीं की दी गई धुन से ना गुजरा हो. ये अब हमारा राष्ट्रगान है और हमारी राष्ट्रीय धुन भी है. राष्ट्रगान के बोल पिछले 65 साल से हमारी आजादी और संप्रभुता पर गर्व करने का मौका देते रहे हैं.
1911 में रवींद्रनाथ टैगोर की कलम से निकले इस गीत को 24 जनवरी साल 1950 को भारत का राष्ट्रगान घोषित किया गया था. तब से ही ये हमारी राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक बना हुआ है लेकिन अब 65 साल बाद राजस्थान के गर्वनर और इससे पहले बीजेपी के नेता रहे कल्याण सिंह को राष्ट्रगान में इस्तेमाल हुए इस अधिनायक शब्द पर ऐतराज हो रहा है.
कल्याण सिंह राष्ट्रगान की पहली पंक्ति में आने वाले अधिनायक शब्द की जगह मंगल शब्द का इस्तेमाल करने की सिफारिश कर रहे हैं ये कहते हुए कि अधिनायक शब्द उन्हें ब्रिटिश राज की याद दिलाता है जिसे अब मिटा देना चाहिए. उनके इस तर्क का समर्थन बीजेपी के नेता भी कर रहे हैं.
बीजेपी साथ खड़ी है लेकिन वामदल और कांग्रेस ने कल्याण सिंह के इस बयान को ना सिर्फ सिरे से खारिज कर दिया है बल्कि ये भी पूछ रहे हैं कि 65 साल बाद क्यों?
इस बहस में राज्यपाल भी कूद पड़े हैं. राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह को त्रिपुरा के गवर्नर तथागत राय ने मशविरा दिया है कि बदलाव की बात ठीक नहीं है.
कल्याणजी, प्रणाम| 68 साल हुए भारत को आजाद हुए तो अब हमारे अधिनायक अंग्रेज क्यों होंगे ? मैं राष्ट्रगान में किसी भी परिवर्तन को उचित नहीं समझता हूं.
कल्याण सिंह के ताजा बयान ने एक बार फिर उस आरोप को भी हवा दे दी है जिसके मुताबिक बीजेपी और आरएसएस देश के इतिहास में बदलाव की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन देश की जनता पूछ रही है कि क्या वाकई राष्ट्रगान जैसे प्रतीकों को भी अब राजनीति में घसीटा जाएगा?
अधिनायक कौन है?
राष्ट्रगान में इस्तेमाल हुए अधिनायक शब्द पर आपत्ति दरअसल नई नहीं है. ये विवाद तो तब से चला आ रहा है जब ये तय हुआ था कि रवींद्रनाथ टैगोर के लिए जन गण मन को भारत अपना राष्ट्रगान मानेगा. उस दौर का इतिहास में ही ऐसे बीज पड़ गए थे जो आज एक बार फिर विवाद की वजह बन गए हैं और आज भी यही सवाल उठा है अधिनायक कौन है?
15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ था लेकिन तब दुनिया के दूसरे आजाद मुल्कों की तरह भारत के पास अपना नेशनल एंथम यानी राष्ट्रगान नहीं था. तब जिस गीत ने आजादी के जश्न को मुकम्मल किया था वो था वंदे मातरम. 14 और 15 जून की आधी रात उसी वंदेमातरम के साथ पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आजादी का ऐलान किया था.
ऐसे में भारत का संविधान रचने और आजाद भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों को गढ़ने चुनने की जिम्मेदारी संविधान सभा पर छोड़ दी गई थी. ये संविधान सभा अगले तीन साल तक बैठकें और बहसें करती रही. तब तक भारत दो बार आजादी का जश्न भी मना चुका था लेकिन आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि संविधान सभा के सदस्यों की लगातार मांग के बावजूद राष्ट्रगान के मुद्दे पर कभी कोई बहस या चर्चा नहीं हुई. तब तक जब तक 24 जनवरी 1950 की तारीख ने दस्तक नहीं दे दी.
26 जनवरी 1950 को भारत गणतंत्र बनने जा रहा था इससे ठीक दो दिन पहले संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद ने सीधे एक बयान दिया और जन गण मन भारत का राष्ट्रगान बन गया.
24 जनवरी 1950 को संविधान सभा की कार्यवाही के मुताबिक डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा. एक मुद्दा काफी समय से चर्चा के लिए लंबित है जो कि हमारे राष्ट्रगान से जुड़ा है. मुझे ऐसा महसूस हुआ कि सदन में प्रस्ताव पेश करके किसी औपचारिक फैसले से बेहतर है कि राष्ट्रगान के बारे में एक बयान दे दूं. इसलिए मैं बयान देता हूं कि उस कंपोजीशन की धुन, संगीत और शब्द जिसे जन गण मन के नाम से जाना जाता है वही भारत का राष्ट्रगान है. इसमें अगर सरकार चाहे तो मौजूदा हालात के मुताबिक शब्दों को बदल सकती है.
इसके बाद राष्ट्रगान के शुरुआती हिस्से को ना सिर्फ राष्ट्रगान मान लिया गया बल्कि संविधान सभा की आखिरी बैठक 26 नवंबर 1949 को पूर्णिमा बनर्जी की आवाज में पहली बार राष्ट्रगान के तौर पर गाए गए जन गण मन गीत से खत्म हुई थी. लेकिन उस वक्त जो बहस संविधान सभा में नहीं हुई वही बहस आज फिर से उठ खड़ी हुई है.
जन गण मन को लेकर विवाद की जड़ें हमें साल 1911 में ले जाती हैं. उस दौर में भारत गुलाम था और अंग्रेजी हुकूमत ने अपने नए बादशाह जॉर्ज पंचम की लंदन में ताजपोशी की थी.
गुलाम भारत अपने हुक्मरानों के जश्न से पीछे कैसे रह सकता था. जॉर्ज पंचम ने भारत आने का कार्यक्रम बनाया. मुंबई में जॉर्ज पंचम के लिए भव्य गेट वे ऑफ इंडिया बनाया गया जहां से उन्हें भारत में कदम रखना था और भारत की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली लाने का अहम ऐलान करना था. इसके लिए दिल्ली में सजाया गया था दिल्ली दरबार – देश भर के राजा महाराजा ब्रिटेन के हुक्मरान जॉर्ज पंचम के लिए पलकें बिछाए बैठे थे.
ये साल 1911 का जुलाई महीना था और तब ही कोलकाता में जो तब कलकत्ता हुआ करता था कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था. अधिवेशन के दूसरे दिन यानी 27 दिसंबर 1911 को जॉर्ज पंचम के भारत आने की खुशी में कार्यक्रम होने थे वो भी जॉर्ज पंचम की गैरमौजूदगी में. इसी कार्यक्रम में जो कुछ हुआ उसकी वजह से जन गण मन को लेकर एक विवाद ने भी जन्म लिया.
1905 में बंगाल विभाजन के अंग्रेजों के विरोध में देशभक्ति के गीत रचने वाले रवींद्रनाथ टैगोर तब राजनीति से बाहर निकल कर साहित्य साधना में डूब चुके थे. कांग्रेस ने उनसे जॉर्ज पंचम का स्वागत गीत लिखने का अनुरोध किया था और 27 जुलाई 1911 को रवींद्रनाथ टैगोर का लिखा जन गण मन गीत कांग्रेस के अधिवेशन में गाया गया.
इस गीत की पहली पंक्ति में अधिनायक शब्द को तब के ब्रिटिश मीडिया ने जॉर्ज पंचम की प्रशंसा माना .
स्टेट्स मैन ने 28 जुलाई 1911 को लिखा
बंगाली कवि रवींद्रनाथ टैगौर ने खासतौर पर राजा जॉर्ज पंचम की प्रशंसा में अपनी धुन पर लिखा अपना ही गीत गाया.
इंग्लिशमैन ने भी 28 जुलाई को रिपोर्ट किया
कार्यवाही की शुरुआत रवींद्रनाथ टैगोर के गीत से हुई जो खासतौर पर उन्होंने राजा जॉर्ज पंचम के सम्मान में लिखा है.
रवींद्रनाथ टैगोर के गीत को लेकर ब्रिटिश मीडिया की इस रिपोर्टिंग ने ना सिर्फ जन गण मन को ब्रिटिश हुकूमत की प्रशंसा के विवाद में ला दिया बल्कि रवींद्रनाथ टैगोर की देशभक्ति पर भी सवाल उठाए गए. लेकिन क्या ये पूरा सच था?
28 जुलाई 1911 को रवींद्रनाथ टैगोर के बारे में भारत के अखबार क्या लिख रहे थे? 
अमृत बाजार पत्रिका ने लिखा
कांग्रेस का सेशन बंगाली भाषा में भगवान की स्तुति में लिखे गीत से हुई. इसके बाद राजा जॉर्ज पंचम के प्रति वफादारी का प्रस्ताव पास हुआ और उसके बाद किंग जॉर्ज पंचम के स्वागत में भी एक गीत हुआ.

अमृत बाजार पत्रिका, 28 जुलाई 1911
तो क्या साल 1911 में किंग जॉर्ज पंचम के स्वागत में जो गीत गाया गया था वो रवींद्रनाथ टैगोर ने नहीं लिखा था?
इतिहास के मुताबिक 27 जुलाई 1911 को एक नहीं तीन गीत गाए गए थे. शुरुआत में जन गण मन और फिर राजभुजादत्त चौधुरी का लिखा गीत ‘बादशाह हमारा’ गाया गया. कार्यक्रम के अंत में कवियत्री सरलादेवी ने भी एक गीत गाया था. तो क्या ब्रिटिश मीडिया ने ‘बादशाह हमारा’ गीत जो कि जॉर्ज पंचम की प्रशंसा में लिखा गया था उसे ही रवींद्रनाथ का गीत मान लिया या फिर वो जन गण मन के बारे में लिख रहे थे?
यही भ्रम विवाद की वजह बन गया. टैगोर के समर्थक इसे झूठ बताते रहे हैं. टैगोर की जीवनी रबींद्रजीबनी के मुताबिक टैगोर ने कांग्रेस अधिवेशन से पहले अपने मित्र पुलिन बिहारी मुखर्जी को एक खत लिखा था.
महामहिम की सेवा में लगे एक महान शख्स ने जो कि मेरे भी मित्र हैं अनुरोध किया है कि मैं राजा के स्वागत में गीत लिखूं. इस पेशकश ने मुझे चौंका दिया है. इसने मेरे हृदय को पीड़ा से भर दिया है. इस मानसिक आघात में मैंने देश की आजादी के लिए गीत लिखा है.
रवींद्र नाथ टैगोर ने इस बारे में कभी बड़ी सफाई नहीं दी. भारत के आजाद होने से पहले साल 1946 में उनका निधन हो गया. लेकिन उनके समर्थक उनके साहित्य से आज भी जन गण मन के समर्थन में तर्क निकाल लाते हैं.
19 मार्च 1939 को फिर लिखा
अगर मैं उन लोगों को जवाब दूंगा जो मुझे जॉर्ज चतुर्थ या पंचम की प्रशंसा में गीत लिखने की भयावह मूर्खता के लायक समझते हैं तो मैं अपना ही अपमान करूंगा.
(रवींद्र नाथ टैगोर , पूर्वासा में)
लेकिन राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग रवींद्रनाथ टैगोर के लिखे जन गण मन गीत के शब्दों को लेकर वार करते रहे हैं. राष्ट्रगान की पहली पंक्ति के अधिनायक शब्द को भी वो राजा जॉर्ज पंचम के लिए इस्तेमाल किया हुआ ही मानते हैं. इससे पहले भी राष्ट्रगान से सिंध शब्द को हटाकर कश्मीर शब्द को लाने की मांग उठी थी क्योंकि सिंध अब पाकिस्तान का हिस्सा है.

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