बाड़मेर में मिला खरबों का खजाना, चीन को पछाड़ेगा भारत
बाड़मेर. ।
तेल और कोयले के बूते देश की खनिज की आर्थिक राजधानी बन रहे बाड़मेर जिले में एक बड़े खजाने के संकेत मिले हैं। भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग ने यहां रेअर अर्थ (दुर्लभ खनिज ) का बड़ा खजाना होने के प्रमाण दिए हैं। यह भारत का पहला टेरिस्टीअल (जमीन पर पाए जाने वाले खनिज) का बड़ा भण्डार है। पूरे विश्व में इसका 97 प्रतिशत निर्यात चीन करता है, जिसकी मॉनोपोली है। तीन प्रतिशत खजाना मलेशिया, अमरीका, आस्टे्रलिया, ब्राजील और भारत में है। बाड़मेर में मिला यह भण्डार न केवल भारत को सक्षम बनाएगा, बल्कि चीन की मॉनोपोली भी तोड़ेगा। जानकारों के मुताबिक करीब 900 अरब से भी ज्यादा का रेअर अर्थ यहां मौजूद है।
खजाना यहां होने के प्रमाण
जानकारों के अनुसार बाड़मेर में सिवाना क्षेत्र के कमठाई, दांता, लंगेरा, राखी, फूलन व डण्डाली में यह खजाना है। यहां 745 मिलियन वर्ष पुरानी चट्टानें हैं। सिवाना के चारों तरफ एक गड्ढेनुमा रचना है, जिसमें ग्रेनाइट और रॉयलाइट व एल्केलाइन आग्नेय चट्टानें हैं। इसे सिवाना रिंग्स कॉम्पलैक्स और मालानी रॉक्स के नाम से भी जाना जाता है।
15 प्रकार के रेअर अर्थ
गैलेनियम, रूबीडियम, इप्रीयम, थोरियम, यूरेनियम, जर्मेनियम, सीरियम, टिलूरियम, यूरेनियम सहित करीब 15 प्रकार के खनिज हैं, जो भू-वैज्ञानिकों के मुताबिक लेंथोनोइट ग्रुप के हैं।
यह है उपयोग
इन खनिज का उपयोग अंतरिक्ष क्षेत्र, सौर ऊर्जा, सामरिक उपकरण, केमिकल इंडस्ट्री के अलावा अत्याधुनिक तकनीक जैसे सुपर कंडक्टर, हाई प्लग्स, मैग्नेट, इलेक्ट्रोनिक पॉलिसिंग, ऑयल रिफाइनरी में केटिलिस्ट, हाईब्रिड कार कंपोनेंट एवं बैटरी के लिए किया जाता है।
चीन के पास 97 प्रतिशत खनिज
दुनिया में प्राप्त अब तक के भण्डारों में चीन के पास 97 प्रतिशत खनिज है। इसकी मांग बढऩे पर चीन ने 2010 के बाद निर्यात कम कर दिया है। चीन की मॉनोपोली चल रही है। भारत में मिला यह खजाना अब चीन की मॉनोपोली को भी तोड़ सकता है।
सिवाना में एेसे बना
करंट साइंस में 2010 में छपे शोध-पत्र में राखी-फूलन क्षेत्र से कोवेसाइट एवं टिसोवाइट नामक खनिजों को एक्सआरडी एवं एनएमआर तकनीक से प्रमाणित किया। ये खनिज सीलिका की पालीमोर्फ, जो 2000 डिग्री सेंटीगे्रड से ऊपर एवं दस जीपीए प्रेसर पर बनते हैं। साधारणत: यह खनिज ज्वालामुखी चट्टानों में नहीं पाए जाते, लेकिन 2005 में टीम का शोध-पत्र करंट साइंस में छपा। इसमें चुम्बकीय कांच के गोले की खोज की। वो भी उच्चतापक्रम पर बनते हैं।
इससे यह संकेत मिला कि पश्चिमी राजस्थान में कोई उच्च ताप-दाब की भू-वैज्ञानिक घटना घटी है। सिवाना रिंग का गोलाकार आकार उसकी भू-आकृति क्रिटिसियस काल (65 मिलियन वर्ष) की रेडियल डाइट्स मिलना यह संकेत देता है कि शायद 20 किलोमीटर त्रिज्या का उल्कापिण्ड यहां टकराया होगा। परिणामस्वरूप 200 किमी त्रिज्या की सिवाना संरचना बनी। इन्हीं डाइट्स में यह रेअर अर्थ खनिज भी मिलते हैं।
- प्रो. एससी माथुर, पूर्व विभागाध्यक्ष, भू-विज्ञान विभाग, जेएनवीयू जोधपुर
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