#NEWS साबूदाना- शाकाहारी है या मांसाहारी ? #SABDANA
***********************SABUDANA KE BAARE MEIN MENE YEH POST FACEBOOK SE LEE,
KUCH BATEN JANNNE SE BADA DUKH HUAA,
AGAR ISMEN JARA BHEE JHOOTH HAI TO SARKAR MEDIA KO ISKO SANGYAN MEIN LENE CHAIHYE, AURLOGO KO SACH SE AVGAT KARANA CHAHIYE.
AGAR YEH BAAT SACH HAI TO BHEE LOGO KE HAQIQAT SE WAKIF KARAYAA JAANA CHAHIYE,
VRAT / UPVAS KE DORAAN LOG SAHEE VA UCHIT CHEEJEN LE SAKEN, VA CHALE NA JAYEN IS BAAT KA DHYAN RAKHNA CHAHIYE
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साबूदाना- शाकाहारी है या मांसाहारी ?
आइये देखते हैं आपके पंसदीदा साबूदाना बनाने के तरीके को। यह तो हम सभी जानते हैं कि साबूदाना व्रत में खाया जाने वाला एक शुद्ध खाद्य माना जाता है, पर क्या हम जानते हैं कि साबूदाना बनता कैसे है?
आमतौर पर साबूदाना शाकाहार कहा जाता है और व्रत, उपवास में इसका बहुतायत में प्रयोग होता है, लेकिन शाकाहार होने के बावजूद भी साबूदाना पवित्र नहीं है। अब आपके मन में यह प्रश्न भी उठा होगा कि भला यह कैसे हो सकता है?
आइए देखते हैं साबूदाने की हकीक़त को, फिर आप खुद ही निश्चय कर सकते हैं कि आखिर साबूदाना शाकाहारी है या मांसाहारी।
साबूदाना किसी पेड़ पर नहीं उगत। यह कासावा या टैपियोका नामक कंद से बनाया जाता है। कासावा वैसे तो दक्षिण अमेरिकी पौधा है, लेकिन अब भारत में यह तमिलनाडु,केरल, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में भी बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। केरल में इस पौधे को ‘कप्पा’ कहा जाता है। इस पौधे की जड़ को काट कर साबूदाना बनाया जाता है जो शकरकंदी की तरह होती है। इस कंद में भरपूर मात्रा में स्टार्च होता है। यह सच है कि साबूदाना टैपियोका कसावा के गूदे से बनाया जाता है, परंतु इसकी निर्माण विधि इतनी अपवित्र है कि इसे किसी भी सूरत में शाकाहार एवं स्वास्थ्यप्रद नहीं कहा जा सकता।
तमिलनाडु प्रदेश में सालेम से कोयम्बटूर जाते समय रास्ते में साबूदाने की बहुत सी फैक्ट्रियाँ पड़ती हैं, यहाँ पर फैक्ट्रियों के आस-पास भयंकर बदबू ने हमारा स्वागत किया।
तब हमने जाना साबूदाने कि सच्चाई को। साबूदाना विशेष प्रकार की जड़ों से बनता है। यह जड़ केरला में होती है। इन फैक्ट्रियों के मालिक साबूदाने को बहुत ज्यादा मात्रा में खरीद कर उसका गूदा बनाकर उसे 40 फीट से 25 फीट के बड़े गड्ढे में डाल देते हैं, सड़ने के लिए। महीनों तक साबूदाना वहाँ सड़ता रहता है।
साबूदाना बनाने के लिए सबसे पहले कसावा को खुले मैदान में पानी से भरी बड़ी-बड़ी कुंडियों में डाला जाता है और रसायनों की सहायता से उन्हें लंबे समय तक गलाया-सड़ाया जाता है। इस प्रकार सड़ने से तैयार हुआ गूदा महीनों तक खुले आसमान के नीचे पड़ा रहता है। रात में कुंडियों को गर्मी देने के लिए उनके आस-पास बड़े-बड़े बल्ब जलाए जाते हैं। इससे बल्ब के आस-पास उड़ने वाले कई छोटे-मोटे जहरीले जीव भी इन कुंडियों में गिर कर मर जाते हैं।
यह गड्ढे खुले में हैं और हजारों टन सड़ते हुए साबूदाने पर बड़ी-बड़ी लाइट्स से हजारों कीड़े मकोड़े गिरते हैं। फैक्ट्री के मजदूर इन साबूदाने के गड्ढो में पानी डालते रहते हैं, इसकी वजह से इसमें सफेद रंग के कीट पैदा हो जाते हैं। यह सड़ने का, कीड़े-मकोड़े गिरने का और सफेद कीट पैदा होेने का कार्य 5-6 महीनों तक चलता रहता है।
दूसरी ओर इस गूदे में पानी डाला जाता है, जिससे उसमें सफेद रंग के करोड़ों लंबे कृमि पैदा हो जाते हैं। इसके बाद इस गूदे को मजदूरों के पैरों तले रौंदा जाता है। आज-कल कई जगह मशीनों से भी मसला जाता है। इस प्रक्रिया में गूदे में गिरे हुए कीट-पतंग तथा सफेद कृमि भी उसी में समा जाते हैं। यह प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है। पूरी प्रक्रिया होने के बाद जो स्टार्च प्राप्त होता है उसे धूप में सुखाया जाता है। धूप में वाष्पीकरण के बाद जब इस स्टार्च में से पानी उड़ जाता है तो यह गाढ़ा यानी लेईनुमा हो जाता है। इसके बाद इसे मशीनों की सहायता से इसे छन्नियों पर डालकर महीन गोलियों में तब्दील किया जाता है। यह प्रक्रिया ठीक वैसे ही होती है, जैसे बेसन की बूंदी छानी जाती है
इन गोलियों के सख्त बनने के बाद इन्हें नारियल का तेल लगी कढ़ाही में भूना जाता है और अंत में गर्म हवा से सुखाया जाता है।
फिर मशीनों से इस कीड़े-मकोड़े युक्त गुदे को छोटा-छोटा गोल आकार देकर इसे पाॅलिश किया जाता है
इतना सब होने के बाद अंतिम उत्पाद के रूप में हमारे सामने आता है मोतियों जैसा साबूदाना। बाद में इन्हें आकार, चमक और सफेदी के आधार पर अलग-अलग छांट लिया जाता है और बाजार में पहुंचा दिया जाता है, परंतु इस चमक के पीछे कितनी अपवित्रता छिपी है वह तो अब आप जान ही चुके होंगे।
आप लोगों की बातों में आकर साबूदाने को शुद्ध ना समझें। साबूदाना बनाने का यह तरीका सौ प्रतीषत सत्य है। इस वजह से बहुत से लोगों ने साबूदाना खाना छोड़ दिया है।
तो चलिये उपवास के दिनों में (उपवास करें न करें यह अलग बात है) साबूदाने की स्वादिष्ट खिचड़ी या खीर या बर्फी खाते हुए साबूदाने की निर्माण प्रक्रिया को याद कीजिए कि क्या साबूदाना एक खद्य पदार्थ है। ये छोटे-छोटे मोती की तरह सफेद और गोल होते हैं। यह सैगो पाम नामक पेड़ के तने के गूदे से बनता है। सागो, ताड़ की तरह का एक पौधा होता है। ये मूलरूप से पूर्वी अफ्रीका का पौधा है। पकने के बाद यह अपादर्शी से हल्का पारदर्शी, नर्म और स्पंजी हो जाता है।
भारत में इसका उपयोग अधिकतर पापड़, खीर और खिचड़ी बनाने में होता है। सूप और अन्य चीजों को गाढ़ा करने के लिए भी इसका उपयोग होता है। भारत में साबूदाने का उत्पादन सबसे पहले तमिलनाडु के सेलम में हुआ था। लगभग 1943-44 में भारत में इसका उत्पादन एक कुटीर उद्योग के रूप में हुआ था। इसमें पहले टैपियाका की जड़ों को मसल कर उसके दूध को छानकर उसे जमने देते थे, फिर उसकी छोटी-छोटी गोलियां बनाकर सेंक लेते थे। टैपियाका के उत्पादन में भारत अग्रिम देशों में है। लगभग 700 इकाइयां सेलम में स्थित हैं। साबूदाने में कार्बोहाइड्रेट की प्रमुखता होती है और इसमें कुछ मात्रा में कैल्शियम व विटामिन सी भी होता है।
साबूदाना की कई किस्में बाजार में उपलब्ध हैं। उनके बनाने की गुणवत्ता अलग होने पर उनके नाम बदल और गुण बदल जाते हैं अन्यथा यह एक ही प्रकार का होता है, आरारोट भी इसी का एक उत्पाद है
जब आपको साबूदाना का सत्य पता चल गया है, तो इसे खाकर अपना जीवन दूषित ना करें। कृपया इस पोस्ट को समस्त सधर्मी बंधुओं के साथ शेयर करके उनका व्रत और त्यौहार अशुद्ध होने से बचाएँ
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