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Saturday, August 27, 2011

Hindi Poems, हिंदी कविताएँ

Hindi Poems, हिंदी कविताएँ

कभी जो ख्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गयी वो चीज़ क्या थी
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साँसों के मुसाफ़िर
इसको भी अपनाता चल,
उसको भी अपनाता चल,
राही हैं सब एक डगर के, सब पर प्यार लुटाता चल।
बिना प्यार के चले कोई, आँधी हो या पानी हो,
नई उमर की चुनरी हो या कमरी फटी पुरानी हो,
तपे प्रेम के लिए, धरिनी, जले प्रेम के लिए दिया,
कौन हृदय है नहीं प्यार की जिसने की दरबानी हो,
तट-तट रास रचाता चल,
पनघट-पनघट गाता चल,
प्यासी है हर गागर दृग का गंगाजल छलकाता चल।
राही हैं सब एक डगर के सब पर प्यार लुटाता चल।
कोई नहीं पराया, सारी धरती एक बसेरा है,
इसका खेमा पश्चिम में तो उसका पूरब डेरा है,
श्वेत बरन या श्याम बरन हो सुन्दर या कि असुन्दर हो,
सभी मछरियाँ एक ताल की क्या मेरा क्या तेरा है?
गलियाँ गाँव गुँजाता चल,
पथ-पथ फूल बिछाता चल,
हर दरवाज़ा राम दुआरा सबको शीश झुकाता चल।
राही हैं सब एक डगर के सब पर प्यार लुटाता चल।
हृदय हृदय के बीच खाइयाँ, लहू बिछा मैदानों में,
धूम रहे हैं युद्ध सड़क पर, शान्ति छिपी शमशानों में,
जंज़ीरें कट गई, मगर आज़ाद नहीं इन्सान अभी
दुनिया भर की खुशी कैद है चाँदी जड़े मकानों में,
सोई किरन जगाता चल,
रूठी सुबह मनाता चल,
प्यार नकाबों में बन्द हो हर घूँघट खिसकाता चल।
राही हैं सब एक डगर के, सब पर प्यार लुटाता चल।

-गोपाल दास 'नीरज'
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जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए

नई ज्योति के धर नये पंख झिलमिल,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन-स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण-द्वार जगमग,
उषा जा न पाए, निशा आ ना पाए।

जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए

सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यों ही,
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए।

जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए

मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ़ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,
उतर क्यों न आएँ नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे हृदय में उजेरा,
कटेगे तभी यह अँधेरे घिरे अब
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए

जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए

- नीरज
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
पुस्तकों में है नहीं
छापी गई इसकी कहानी
हाल इसका ज्ञात होता
है न औरों की जबानी
अनगिनत राही गए
इस राह से उनका पता क्या
पर गए कुछ लोग इस पर
छोड़ पैरों की निशानी
यह निशानी मूक होकर
भी बहुत कुछ बोलती है
खोल इसका अर्थ पंथी
पंथ का अनुमान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
यह बुरा है या कि अच्छा
व्यर्थ दिन इस पर बिताना
अब असंभव छोड़ यह पथ
दूसरे पर पग बढ़ाना
तू इसे अच्छा समझ
यात्रा सरल इससे बनेगी
सोच मत केवल तुझे ही
यह पड़ा मन में बिठाना
हर सफल पंथी यही
विश्वास ले इस पर बढ़ा है
तू इसी पर आज अपने
चित्त का अवधान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
है अनिश्चित किस जगह पर
सरित गिरि गह्वर मिलेंगे
है अनिश्चित किस जगह पर
बाग वन सुंदर मिलेंगे
किस जगह यात्रा खतम हो
जाएगी यह भी अनिश्चित
है अनिश्चित कब सुमन कब
कंटकों के शर मिलेंगे
कौन सहसा छू जाएँगे
मिलेंगे कौन सहसा
आ पड़े कुछ भी रुकेगा
तू न ऐसी आन कर ले।
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।

हरिवंश राय बच्चन

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मुंह की बात सुने हर कोई
दिल के दर्द को जाने कौन
आवाजों के बाजारों में
ख़ामोशी पहचाने कौन
सदियों-सदियों वही तमाशा
रस्ता-रस्ता लम्बी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं
खो जाता है जाने कौन
- राही मासूम रज़ा
हमारे शौक़ की ये इन्तहा थी
क़दम रखा कि मंजिल रास्ता थी
बिछड़ के डार से बन बन फिरा वो
हिरन को अपनी कस्तूरी सजा थी
कभी जो ख्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गयी वो चीज़ क्या थी
मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था
मेरे अंजाम की वो इब्तिदा थी
मुहब्बत मर गयी मुझको भी ग़म है
मेरे अच्छे दिनों कि आशना थी
जिसे छू लूं वो हो जाए सोना
तुझे देखा तो जाना बददुआ थी
मरीज़--ख्वाब को तो अब शफा है
मगर दुनिया बड़ी कडवी दवा थी
- जावेद अख्तर
धुंधली हुई दिशाएँ, छाने लगा कुहासा
कुचली हुई शिखा से, आने लगा धुआँ सा
कोई मुझे बता दे क्या आज हो रहा है?मुंह को छिपा तिमिर में, क्यों तेज सो रहा है?दाता पुकार मेरी, संदीप्ति को जिला दे,बुझती हुयी शिखा को संजीवनी पिला दे
प्यारे स्वदेश के हित अंगार मांगता हूँ
चढ़ती जवानियों का श्रृंगार मांगता हूँ
बेचैन हैं हवाएं, सब ओर बेकली है
कोई नहीं बताता कश्ती किधर चली है?मंझधार है, भंवर है या पास है किनारा?यह नाश रहा है, या सौभाग्य का सितारा?आकाश पर अनल से लिख दे अदृष्ट मेरा,भगवान् इस तरी को भरमा दे अँधेरा
तमवेधिनी किरण का संधान मांगता हूँ
ध्रुव की कठिन घडी में पहचान मांगता हूँ
आगे पहाड़ को पा धारा रुकी हुयी है
बलपुंज केसरी की ग्रीवा झुकी हुयी है,अग्निस्फुलिंग राख का बुझ ढेर हो रहा है
है रो रही जवानी अंधेर हो रहा है
निर्वाक है हिमालय, गंगा डरी हुयी है
निस्तब्धता निशा की दिन में भरी हुयी है
पंचास्यनाद भीषण, विकराल मांगता हूँ जड़ता विनाश को फिर भूचाल मांगता हूँ
मन की बंधी उमंगें असहाय जल रही हैं
अरमान आरज़ू की लाशें निकल रही हैं
भीगी ख़ुशी पलों में रातें गुजारते हैं
सोती वसुंधरा जब तुझको पुकारते हैं
इनके लिए कहीं से निर्भीक तेज ला दे
पिघले हुए अनल का इनको अमृत पिला दे
उन्माद, बेकली का उत्थान मांगता हूँ
विस्फोट मांगता हूँ, तूफ़ान मांगता हूँ
आंसूं भरे दृगों में, चिंगारियां सजा दे,मेरे शमशान में श्रंगी ज़रा बजा दे
फिर एक तीर सीनों के आर पार कर दे,हिमशीत प्राण में फिर अंगार स्वच्छ भर दे
आमर्ष को जगाने वाली शिखा नयी दे,अनुभूतियाँ हृदय में दाता अनलमयी दे
विष का सदा लहू में संचार मागता हूँ
बेचैन ज़िन्दगी का मैं प्यार मांगता हूँ
ठहरी हुई तरी को ठोकर लगा चला दे
जो राह हो हमारी उस पर दिया जला दे
गति में प्रभंजनों का आवेग फिर सबल दे
इस जांच की घडी में निष्ठा कड़ी अचल दे
हम दे चुके लहू हैं, तू देवता विभा दे
अपने अनल विशिख से आकाश जगमगा दे
प्यारे स्वदेश  के हित वरदान मांगता हूँ
तेरी दया विपद में भगवान् मांगता हूँ

-
रामधारी सिंह 'दिनकर'
सच हम नही, सच तुम नही, सच है महज़ संघर्ष ही |
संघर्ष से हट कर जिए तो क्या जिए हम या की तुम |
जो नत हुआ वह मृत हुआ, ज्यों वृंत से झर कर कुसुम ||
जो लक्ष्य भूल रुका नही,
जो हार देख झुका नही,
जिसने प्रणय पाथेय मन जीत उसकी ही रही|
सच हम नही, सच तुम नही, सच है महज़ संघर्ष ही |
ऐसा करो जिससे प्राणों में कहीं जड़ता रहे|
जो है जहाँ, चुपचाप अपने आप से लड़ता रहे|
जो भी परिस्थितियाँ मिलें,
काटें चुभे कलियाँ खिले,
हारे नही इंसान , संदेश जीवन का यही|
सच हम नही, सच तुम नही, सच है महज़ संघर्ष ही |
हमने रचा आओ हमीं अब तोड़ दे इस प्यार को|
यह क्या मिलन, मिलना वही जो मोड़ दे मझधार को |
जो साथ फूलों के पले,
जो ढाल पाते ही ढले,
वह जिंदगी क्या जिंदगी, जो सिर्फ़ पानी सी बही|
सच हम नही, सच तुम नही, सच है महज़ संघर्ष ही |
संसार सारा आदमी की चल देख हुआ चकित|
पर झांक के देखो दृगों में, है सभी प्यासे थकित|
जब तक बंधी है चेतना,
जब तक ह्रदय दुःख से घना,
तब तक मानूंगा कभी, इस राह को ही मैं सही|
सच हम नही, सच तुम नही, सच है महज़ संघर्ष ही |
अपने ह्रदय का सत्य अपने आप हमको खोजना|
अपने नयन का नीर अपने आप हमको खोजना|
आकाश सुख देगा नही,
धरती पसीजी है कहीं,
जिससे ह्रदय हो बल मिले, है ध्येय अपना तो वही|
सच हम नही, सच तुम नही, सच है महज़ संघर्ष ही |
जगदीश गुप्त
हमारे शौक़ की ये इन्तहा थी
क़दम रखा कि मंजिल रास्ता थी
बिछड़ के डार से बन बन फिरा वो
हिरन को अपनी कस्तूरी सजा थी
कभी जो ख्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गयी वो चीज़ क्या थी
मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था
मेरे अंजाम की वो इब्तिदा थी
मुहब्बत मर गयी मुझको भी ग़म है
मेरे अच्छे दिनों कि आशना थी
जिसे छू लूं वो हो जाए सोना
तुझे देखा तो जाना बददुआ थी
मरीज़--ख्वाब को तो अब शफा है
मगर दुनिया बड़ी कडवी दवा थी
- जावेद अख्तर
मुंह की बात सुने हर कोई
दिल के दर्द को जाने कौन
आवाजों के बाजारों में
ख़ामोशी पहचाने कौन
सदियों-सदियों वही तमाशा
रस्ता-रस्ता लम्बी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं
खो जाता है जाने कौन
- राही मासूम रज़ा
मुंह की बात सुने हर कोई
दिल के दर्द को जाने कौन
आवाजों के बाजारों में
ख़ामोशी पहचाने कौन
सदियों-सदियों वही तमाशा
रस्ता-रस्ता लम्बी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं
खो जाता है जाने कौन
- राही मासूम रज़ा
मुंह की बात सुने हर कोई
दिल के दर्द को जाने कौन
आवाजों के बाजारों में
ख़ामोशी पहचाने कौन
सदियों-सदियों वही तमाशा
रस्ता-रस्ता लम्बी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं
खो जाता है जाने कौन
- राही मासूम रज़ा

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