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Saturday, December 1, 2012

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती


कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।


पंद्रह अगस्त का दिन कहता


पंद्रह अगस्त का दिन कहता 

पंद्रह अगस्त का दिन कहता -- 
आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है, 
रावी की शपथ न पूरी है।।

जिनकी लाशों पर पग धर कर
आज़ादी भारत में आई।
वे अब तक हैं खानाबदोश 
ग़म की काली बदली छाई।।

कलकत्ते के फुटपाथों पर 
जो आँधी-पानी सहते हैं।
उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के 
बारे में क्या कहते हैं।।

हिंदू के नाते उनका दु:ख
सुनते यदि तुम्हें लाज आती।
तो सीमा के उस पार चलो 
सभ्यता जहाँ कुचली जाती।।

इंसान जहाँ बेचा जाता, 
ईमान ख़रीदा जाता है।
इस्लाम सिसकियाँ भरता है, 
डालर मन में मुस्काता है।।

भूखों को गोली नंगों को 
हथियार पिन्हाए जाते हैं।
सूखे कंठों से जेहादी 
नारे लगवाए जाते हैं।।

लाहौर, कराची, ढाका पर 
मातम की है काली छाया।
पख्तूनों पर, गिलगित पर है 
ग़मगीन गुलामी का साया।।

बस इसीलिए तो कहता हूँ 
आज़ादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं? 
थोड़े दिन की मजबूरी है।।

दिन दूर नहीं खंडित भारत को 
पुन: अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक 
आज़ादी पर्व मनाएँगे।।

उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से 
कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएँ, 
जो खोया उसका ध्यान करें।।

- अटल बिहारी वाजपेयी

तलब होती है बावली


तलब होती है बावली

तलब होती है बावली,
क्योंकि रहती है उतावली।

बौड़म जी ने
सिगरेट ख़रीदी
एक जनरल स्टोर से,
और फ़ौरन लगा ली
मुँह के छोर से।

ख़ुशी में गुनगुनाने लगे,
और वहीं सुलगाने लगे।

दुकानदार ने टोका,
सिगरेट जलाने से रोका-

श्रीमान जी!मेहरबानी कीजिए,
पीनी है तो बाहर पीजिए।

बौड़म जी बोले-कमाल है,
ये तो बड़ा गोलमाल है।

पीने नहीं देते
तो बेचते क्यों हैं?

दुकानदार बोला-
इसका जवाब यों है

कि बेचते तो हम लोटा भी हैं,
और बेचते जमालगोटा भी हैं,
अगर इन्हें ख़रीदकर
आप हमें निहाल करेंगे,
तो क्या यहीं
उनका इस्तेमाल करेंगे?

-अशोक चक्रधर



पथ विमुख मत होना


पथ विमुख मत होना

पथ विमुख मत होना , कठिन कंटीली राहों को देखकर।

जीवन में हर एक को इस पथ से गुजरना परता है ।

राहें मंजिल की पथरीली ही हुआ करती है ।

हर ठोकरों से गिरकर संभलना होता है

दिल में तमन्ना है अगर कुछ पाना है तुम्हें ,

समझा लो दिल को तुम अपने ,

की कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है।

जिंदगी फूलों की सेज नहीं है , अगर जीना है इसे ,

तो काँटों से भी चलकर सवरना होता है




कालिज स्टूडैंट


 कालिज स्टूडैंट

फ़ादर ने बनवा दिये, तीन कोट छै पैंट 

लल्ला मेरा बन गया, कालिज स्टूडैंट 

कालिज स्टूडैंट, हुये होस्टल में भरती

दिन भर बिस्कुट चरैं, शाम को खायें इमरती

कहँ 'काका' कविराय, बुद्धि पर डाली चादर

मौज़ कर रहे पुत्र, हड्डियां घिसते फ़ादर

- काका हाथरसी

नर हो न निराश करो मन को- मैथिलीशरण गुप्त


नर हो न निराश करो मन को- मैथिलीशरण गुप्त

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।

संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को 

Wednesday, September 21, 2011

Hindi Poem - बडे बाग के बडे पेड पर छोटी चिडिया रहती है

Hindi Poem - बडे बाग के बडे पेड पर छोटी चिडिया रहती है

बडे बाग के बडे पेड पर छोटी चिडिया रहती है,मौज-मजे से जीवन जी लो, सबसे वो ये कहती है
दाना चुनती, तिनका चुनती,तिनके से अपना घर बुनती,आँधी आये,या फिर तूफाँ, सबसे डटकर लडती है!

Hindi Poem - Maa kii Mamta

Hindi Poem - Maa kii Mamta
                                
जब मैं छोटी बच्ची थी
माँ की प्यारी दुलारी थी,
 माँ तो हमको दूध पिलाती
माँ भी कितनी भोली-भाली ।

माखन मिश्री घोल खिलाती
बड़े मजे से गोद में खिलाती,
माँ तो कितनी अच्छी है
सारी दुनिया उसमें है ।

Hindi Poem - ज़िन्दगी प्यार की दो चार घड़ी होती

Hindi Poem - ज़िन्दगी प्यार की दो चार घड़ी होती है। 

 
ज़िन्दगी है छोटी, हर पल में खुश रहो,आफिस में खुश रहो, घर में खुश रहो....
आज पनीर नही है, दाल में खुश रहो,आज जिम जाने का समय नही, दो कदम चलके ही खुश रहो...
 
आज दोस्तों का साथ नही, टी०वी० देख के ही खुश रहो...
 
घर जा नही सकते तो फोन करके ही खुश रहो,आज कोई नाराज़ है, उसके इस अन्दाज़ में खुश रहो...
जिसे देख नही सकते उसकी आवाज़ में खुश रहो
जिस पा नही सकते उसकी याद में खुश रहो.....
बीता हुआ कल जो जा चुका है, उससे मीठी यादें है, उनमें ही खुश रहो.....
 
आने वाले पल का पता नही।।सपनों मे ही खुश रहो
ज़िन्दगी है छोटी, हर पल में खुश रहो.....
यह मत सोचो कि ज़िन्दगी मे कितने पल है ये सोचो कि....हर पल में कितनी ज़िन्दगी है......