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Tuesday, June 21, 2016

जानिए की कैसे करें असली रुद्राक्ष की पहचान और रुद्धाक्ष प्रयोग

जानिए की कैसे करें असली रुद्राक्ष की पहचान और रुद्धाक्ष प्रयोग


आमतौर पर आपने देखा होगा की आजकल किसी भी शहर के बाजार में रुद्राक्ष हर दुकान ,चौराहे पर बक रहा हैं और कई नामी कम्पनिया भी इसे बेच रही है, परन्तु इसकी पहचान करना बहुत ही कठिन है। एक मुखी व एकाधिक मुखी रुद्राक्ष महंगे होने के कारण नकली भी बाजार में बिक रहेहै। नकली मनुष्य असली के रूप में इन्हे खरीद तो लेता है परन्तु उसका फल नहीमिलता। जिस कारण वह रुद्राक्ष के फायदे से वंचित रह जाता है व जीवन भर उसकी मन में यह धारणा रहती है कि रुद्राक्ष एक बेकार वस्तु है।

कई लोग लाभ के लालच में कैमिकल का इस्तेमाल कर इसका रंग रूप असली रूद्राक्ष जैसा कर देतेहै व इसके ऊपर धारिया बना कर मंहगे भाव में बेच देते है। कई बार दो रुद्राक्षों को बड़ीसफाई से जोड़ कर बेचा जाता है। आपने देखा होगा कि कई रूद्राक्षों पर गणेश, सर्प, शिवलिंग की आकृति बना कर भी लाभ कमाया जाता है।

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब.–09669290067) के अनुसार रूद्राक्ष का उपयोग केवल धारण करने में ही नहीं होता है अपितु हम रूद्राक्ष के माध्यम से किसी भी प्रकार के रोग कुछ ही समय में पूर्णरूप से मुक्ति प्राप्त कर सकते है। ज्योतिष के आधार पर किसी भी ग्रह की शांति के लिए रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। असली रत्न अत्यधिक मंहगा होने के कारण हर व्यक्ति धारण नहीं कर सकता।रूद्राक्ष की महिमा का वर्णन शिवपुराण, रूद्रपुराण, लिंगपुराण श्रीमद्भागवत गीता में पूर्ण रूप से मिलता है। सभी जानते हैं कि रूद्राक्ष को भगवान शिव का पूर्ण प्रतिनिधित्व प्राप्त है।चंद्रमा शिवजी के भाल पर सदा विराजमान रहता है अतः चंद्र ग्रह जनित कोई भी कष्ट हो तो रुद्राक्ष धारण से बिल्कुल दूर हो जाता है। किसी भी प्रकार की मानसिक उद्विग्नता, रोग एवं शनि के द्वारा पीड़ित चंद्र अर्थात साढ़े साती से मुक्ति में रुद्राक्ष अत्यंत उपयोगी है। शिव सर्पों को गले में माला बनाकर धारण करते हैं। अतः काल सर्प जनित कष्टों के निवारण में भी रुद्राक्ष विशेष उपयोगी होता है।

रूद्राक्ष धारण करने से जहां आपको ग्रहों से लाभ प्राप्त होगा वहीं आप शारीरिक रूप से भी स्वस्थ रहेंगे। ऊपरी हवाओं से भी सदैव मुक्त रहेंगे क्योंकि जो व्यक्ति कोई भी रूद्राक्ष धारण करता है उसे भूत पिशाच आदि की कभी भी कोई समस्या नहीं होती है। वह व्यक्ति बिना किसी भय के कहीं भी भ्रमण कर सकता हैं| रुद्राक्ष सिद्धिदायक, पापनाशक, पुण्यवर्धक, रोगनाशक, तथा मोक्ष प्रदान करने वाला है| शिव पुराण में कहा गया है कि रुद्राक्ष या इसकी भस्म को धारण करके ‘नमः शिवाय’ मंत्र का जप करने वाला मनुष्य शिव रूप हो जाता है|

ऐसी और भी अनेक बातों के कारण रूद्राक्ष मंहगे भाव में बेच दिय जाते हैं पर देखा जाये तो जो आदमी अध्यात्मिक विश्वास में रुद्राक्ष खरीदता है अगर उसे ऐसा रुद्राक्ष मिल जाये तो उसे कोई लाभ नही बल्कि उसके अध्यात्मिक मन के साथ धोखा होता है। आप ने कभी भी कोई रुद्राक्ष लेना तो विश्वसनीय स्थान से ही खरीदे। परन्तु आप भी अपने ढंग से जान सकते है असली और नकली रुद्राक्ष कैसे होते है।

शास्त्रों में कहा गया है की जो भक्त रुद्राक्ष धारण करते हैं भगवान भोलेनाथ उनसे हमेशा प्रसन्न रहते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है अक्सर लोगों को रुद्राक्ष की असली माला नहीं मिल पाती है जिससे भगवान शिव की आराधना में खासा प्रभाव नहीं पड़ता है। अब हम आपको रुद्राक्ष के बारे में कुछ जानकारियां देने जा रहे हैं जिसके द्वारा आप असली और नकली रूद्राक्ष की पहचान कर सकते है और किस तरह नकली रूद्राक्ष बनाया जाता है…रुद्राक्ष तन-मन की बहुत सी बीमारियों में राहत पहुँचाता है। इसे पहनने से दिल की धड़कन तथा रक्तचाप नियंत्रण में रहता है। ऐसा कहा जाता है कि रुद्राक्ष धारण करनेवाले व्यक्ति को देर से बुढ़ापा आता है।

रुद्राक्ष क्या है ?

– रुद्राक्ष (English name :- “Rudraksh // Rudraksha”) एक किसिम के दाना(फल) हे !
रुद्राक्ष के वृक्ष और पेड़ को ‘रुद्राक्ष के पेड़’ कहते है ! वही महत्वपूर्ण पेड़ मे फल्ने वाला दाना(फल) को ही रुद्राक्ष कहते हे !हिन्दु धर्म मे रुद्राक्ष के पेड़ और रुद्राक्षदाना दोनो का बराबर महत्वपूर्ण हे ! आज भी हम विभिन्न घरवो मे रुद्राक्ष के पेड़ को पुजा कररहे और रुद्राक्ष समन्धी ज्ञात महापुरुष भक्तोने एक दाना रुद्राक्ष को लकेट बनाकर और १०८ रुद्राक्ष दाना से बनाहुवा रुद्राक्ष की माला गले मे धारण किया हुवा देख्ने मे मिलसकता है !हिन्दु धर्म मे रुद्राक्ष के बहुत उचाई हे ! ये भी कहाँगया हे की रुद्राक्ष स्वोयम भगवान शिव ही हे और रुद्राक्ष दाना भगवान महादेव(पशुपतिनाथ) जी के प्रिये आभूषण भी हे! रुद्राक्ष से समन्धीत सम्पूर्ण जानकारी हमारे हिन्दु धर्म के विभिन्न ज्ञानबर्द्धक पुस्तको और बढे बढे पुस्तक जैसे शिव पुराण,देवी भागवत गीता मे सम्पूर्ण जानकारी सहित मिलता है और विस्तार किया गया हे !

रुद्राक्ष के वृक्ष विशेषकर नेपाल मे मिलता है!कीसी भी अवस्था में यदि दुसरा स्थान मिल जाएगी तो भक्त जनको नेपाल का ही रुद्राक्ष पुजा और धारण करने मे लाभदायिक होगा क्युकी नेपाल का रुद्राक्ष ही शक्तिशालि होता है ! इंडिया मे भी किसी किसी जगामे रुद्राक्ष मिलता है लेकिन नेपाल की तरह गुणवत्ता नही होती है !भारत मे खासकर रुद्राक्ष आसम और हरिद्वार मे मिलता है लेकिन रुद्राक्ष मे ज्यादा तर छेद नही होता है ! रुद्राक्ष आदिकाल से बढे बढे ऋषि,मुनि,साधु,सन्त,तपवस्यीने पसंद और रोजा हुवा है !भारत से विभिन्न श्रदालु भक्तजन नेपाल भ्रमण मे श्री पशुपतिनाथ मन्दिर दर्शन करके यहाँ से रुद्राक्ष खरिद कर लेजाते है !नेपाल मे रुद्राक्ष खासकर काठमाडौँ,झापा,सिन्धुपाल्चोव्क ,भोजपुर.बिराटनगर,काब्रे आदि विभिन्न जगहों मे उत्पादन होता है !

रुद्राक्ष के पेड़ भारत समेत विश्व के अनेक देशों में पाए जाते हैं| भारत में रुद्राक्ष के पेड़ पहाड़ी और मैदानी दोनों इलाकों में पाया जाता है| रुद्राक्ष के पेड़ की लम्बाई 50 से लेकर 200 फिट तक होती है| इसके फूलों का रंग सफेद होता है तथा इस पर लगने वाला फल गोल आकार का होता है जिसके अंदर से गुठली रुप में रुद्राक्ष प्राप्त होता है|

रुद्राक्ष भारत, के हिमालय के प्रदेशों में पाए जाते हैं. इसके अतिरिक्त असम, मध्य प्रदेश, उतरांचल, अरूणांचल प्रदेश, बंगाल, हरिद्वार, गढ़वाल और देहरादून के जंगलों में पर्याप्त मात्र में यह रुद्राक्ष पाए जाते हैं| इसके अलावा दक्षिण भारत में नीलगिरि और मैसूर में तथा कर्नाटक में भी रुद्राक्ष के वृक्ष देखे जा सकते हैं| रामेश्वरम में भी रुद्राक्ष पाया जाता है यहां का रुद्राक्ष काजू की भांति होता है| गंगोत्री और यमुनोत्री के क्षेत्र में भी रुद्राक्ष मिलते हैं|
भारत में ये मुख्यतः असम, अरुणांचल प्रदेश एवं देहरादून में पाए जाते हैं । रुद्राक्ष के फल से छिलका उतारकर उसके बीज को पानी में गलाकर साफ किया जाता है। इसके बीज ही रुद्राक्ष रूप में माला आदि बनाने में उपयोग में लाए जाते हैं । इसके अंदर प्राकृतिक छिद्र होते हैं एवं संतरे की तरह फांकें बनी होती हैं जो मुख कहलाती हैं।

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब.–09669290067) के अनुसार रुद्राक्ष की उत्पन्न समन्धी प्रसङ्ग मे पुराण के अनुसार “रुद्राक्ष भगवान शिवजी के आँख के अश्रु से उत्पन्न हुवा गया है!कहा जाता है कि सती की मृत्यु पर शिवजी को बहुत दुख हुआ और उनके आंसू अनेक स्थानों पर गिरे जिससे रुद्राक्ष (रुद्र$अक्ष अर्थात शिव के आंसू) की उत्पत्ति हुई।
भगवान शिव ने अपने पुत्र कुमार से ए भी कहाँ हे कि है “हे कुमार मे सम्पूर्ण देवी देवता के साथ रुद्राक्ष मे विराजमान हु और किसिभी मनुष्य,ऋषि ,साधु ,सन्त रुद्राक्ष को पुजन और धारण करता हे मे उसके कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहता हु !”.

१८ पुराण मे से कुछ पुराण मे ये भी लिखा है कि रुद्राक्ष भगवान शिव शंकर भोले बाबा के शरीर से कुछ बुन्द पसीना गिरने से भी उत्पन हुवा है! ये लिखा है कि रुद्राक्ष के पेड भगवान शिव के पसिना से उत्पन हुवा है !भगवान शिव के रुद्राक्ष पेड मे हि विभिन्न प्रकार के रुद्राक्ष उत्पादित होता है ! विभिन्न प्रकार के रुद्राक्ष के जानकारी सभी पुराण मे बिस्तृत कियागया है !

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब.–09669290067) के अनुसार रुद्राक्ष शब्द संस्कृत भाषा से आया हुआ है !संस्कृत भाषामे रुद्राक्ष दो शब्द से बना हुआ है ! दो शब्द के नाम रुद्र + आक्ष है जिसमे रुद्र भगवान शिव के अनेक नामो मे से एक है और आक्ष का अर्थ—आँख के आंसू होता है !
रुद्राक्ष भगवान शिव की आँख के आंसू के बुन्द से उत्पन्न होने के कारण रुद्राक्ष नाम पडा हुवा है !

इकलौता रुद्राक्ष की पेड़ मे विभिन्न प्रकार और भेद के रुद्राक्ष दाना(फल) पाया जाता है ! रुद्राक्ष प्रकार के सम्पूर्ण जानकारी पुराण मे मिलाजासकता है ! रुद्राक्ष के प्रकार और रुप को रुद्राक्ष मुखी कहते है और जाना जा सकता है ! रुद्राक्ष १ से 14 मुखी तक पुराण मे उल्लेख कियागया है और आजकाल रुद्राक्ष १५ से २१ मुखी रुद्राक्ष तक भी मिला गया है ! ये १५ से २१ मुखी रुद्राक्ष को भी बहुत अच्छा मानाजाता है और ये दुर्लभ भी होता है !
प्रत्यक रुद्राक्ष के दाना(फल) मे मुखी होता है ! मुखी का अर्थ है रुद्राक्ष मे होने वाला प्राकृतिक धार! विभिन्न प्रकारके रुद्राक्ष मे विभिन्न मात्रामे धार होता है ! कुछ रुद्राक्ष मे १ धार होता और कुछ मे २ धार , कुछमे ३ और र कुछ मे १० धार भी होता है ! रुद्राक्ष दाना(फल) मे हुवा होगा धारी को आंख और हाथ से गिन्ना मिलसकता है!रुद्राक्ष का प्रकार वोही धार की संख्या से होती है !रुद्राक्ष के पेड़ मे कोई भी मुखी(किसी भी संख्या मे धार हुवा रुद्राक्ष) उत्पादित होता है !येही फरक हे कि कुछ रुद्राक्ष पाने के लिए दुर्लब होता है !इकलौता पेड़ मे सबी रुद्राक्ष के मुखी संयुक्त होकर फलता है ! ज्यादा जैसा रुद्राक्ष के पेड़ मे एकिसाथ २,३,४.५ मुखी भी वोही और ज्यादा अनेक मुखी भी उसी पेड़ मे फलता है ! रुद्राक्ष के पेड़ मे किसी मुखी भी फल सकता है !

रुद्राक्ष के पेड के लिए विभिन्न मुखी के लिए हवा पानी का भी असर पड़ता है !

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब.–09669290067) के अनुसार रुद्राक्ष मे होने वाला ‘रुद्राक्ष मुखी’ और ‘रुद्राक्ष प्रकार’ पहिचान रुद्राक्ष मे होने वाला धार से किया जाता है ! रुद्राक्ष के प्रकार के नाम पहिचान भी वोही रुद्राक्ष मे होने वाला धार की संख्या से राखा जाता है ! उदाहरण के लिए – मात्र एक धार होने वाला रुद्राक्ष दाना(फल) को एक मुखी रुद्राक्ष कहाँ जाता है , १० धार होने वाला रुद्राक्ष को ‘दश मुखी रुद्राक्ष’ रुद्राक्ष कहा जाता है ! रुद्राक्ष मे जित्ना धार हो उसी अनुसार से मुखी पहिचान नाम दिया जाता है ! आजतक नेपाल मे १ मुखी से २१ मुखी तक उत्पादन हुवा है ! २१ मुखी रुद्राक्ष मे २१ धार होता है ! मैने ये भी सुना है की नेपाल मे २७ मुखी रुद्राक्ष भी फला हुवा है जिसमे २७ धार होता ,ये रुद्राक्ष बहुत दुर्लभ होता है ! सम्पूर्ण रुद्राक्ष प्रकार के देवी देवता का महत्व और पुजन और धारण का फल हमारे हिन्दु धर्म के पुराण मे दिया हुवा हे !
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कैसे करें असली रुद्राक्ष की पहचान..????

रुद्राक्ष की पहचान के लिए रुद्राक्ष को कुछ घंटे के लिए पानी में उबालें यदि रुद्राक्ष का रंग न निकले या उस पर किसी प्रकार का कोई असर न हो, तो वह असली होगा। इसके अलावा आप रुद्राक्ष को पानी में डाल दें अगर वह डूब जाता है तो असली नहीं नहीं नकली। लेकिन यह जांच अच्छी नहीं मानी जाती है क्योंकि रुद्राक्ष के डूबने या तैरने की क्षमता उसके घनत्व एवं कच्चे या पके होने पर निर्भर करती है और रुद्राक्ष मेटल या किसी अन्य भारी चीज से भी बना रुद्राक्ष भी पानी में डूब जाता है। रुद्राक्ष सरसों के तेल मे डालने पर रुद्राक्ष अपने रंग से गहरा दिखे तो समझो वो एक दम असली है।

1- रूद्राक्ष को जल में डालने से यह डूब जाये तो असली अन्यथा नकली। किन्तु अब यह पहचान व्यापारियों के शिल्प ने समाप्त कर दी। शीशम की लकड़ी के बने रूद्राक्ष आसानी से पानी में डूब जाते हैं।

2- तांबे का एक टुकड़ा नीचे रखकर उसके ऊपर रूद्राक्ष रखकर फिर दूसरा तांबे का टुकड़ा रूद्राक्ष के ऊपर रख दिया जाये और एक अंगुली से हल्के से दबाया जाये तो असली रूद्राक्ष नाचने लगता है। यह पहचान अभी तक प्रमाणिक हैं।

3- शुद्ध सरसों के तेल में रूद्राक्ष को डालकर 10 मिनट तक गर्म किया जाये तो असली रूद्र्राक्ष होने पर वह अधिक चमकदार हो जायेगा और यदि नकली है तो वह धूमिल हो जायेगा। प्रायः पानी में डूबने वाला रूद्राक्ष असली और जो पानी पर तैर जाए उसे नकली माना जाता है।लेकिन यह सच नहीं है। पका हुआ रूद्राक्ष पानी में डूब जाता है जबकी कच्चा रूद्राक्ष पानी पर तैर जाता है। इसलिए इस प्रक्रिया से रूद्राक्ष के पके या कच्चे होने का पता तो लग सकता है, असली या नकली होने का नहीं।

4) प्रायः गहरे रंग के रूद्राक्ष को अच्छा माना जाता है और हल्के रंग वाले को नहीं। असलियत में रूद्राक्ष का छिलका उतारने के बाद उस पर रंग चढ़ाया जाता है। बाजार में मिलने वाली रूद्राक्ष की मालाओं को पिरोने के बाद पीले रंग से रंगा जाता है। रंग कम होने से कभी- कभी हल्का रह जाता है। काले और गहरे भूरे रंग के दिखने वाले रूद्राक्ष प्रायः इस्तेमाल किए हुए होते हैं, ऐसा रूद्राक्ष के तेल या पसीने के संपर्क में आने से होता है।

5) कुछ रूद्राक्षों में प्राकृतिक रूप से छेद होता है ऐसे रूद्राक्ष बहुत शुभ माने जाते हैं। जबकि ज्यादातर रूद्राक्षों में छेद करना पड़ता है।

7) दो अंगूठों या दो तांबे के सिक्कों के बीच घूमने वाला रूद्राक्ष असली है यह भी एक भ्रांति ही है। इस तरह रखी गई वस्तु किसी दिशा में तो घूमेगी ही। यह उस पर दिए जाने दबाव पर निर्भर करता है।

8) रूद्राक्ष की पहचान के लिए उसे सुई से कुरेदें। अगर रेशा निकले तो असली और न निकले तो नकली होगा।
9) नकली रूद्राक्ष के उपर उभरे पठार एकरूप हों तो वह नकली रूद्राक्ष है। असली रूद्राक्ष की उपरी सतह कभी भी एकरूप नहीं होगी। जिस तरह दो मनुष्यों के फिंगरप्रिंट एक जैसे नहीं होते उसी तरह दो रूद्राक्षों के उपरी पठार समान नहीं होते। हां नकली रूद्राक्षों में कितनों के ही उपरी पठार समान हो सकते हैं।

10) कुछ रूद्राक्षों पर शिवलिंग, त्रिशूल या सांप आदी बने होते हैं। यह प्राकृतिक रूप से नहीं बने होते बल्कि कुशल कारीगरी का नमूना होते हैं। रूद्राक्ष को पीसकर उसके बुरादे से यह आकृतियां बनाई जाती हैं। इनकी पहचान का तरीका आगे लिखूंगा।

11) कभी-कभी दो या तीन रूद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े होते हैं। इन्हें गौरी शंकर या गौरी पाठ रूद्राक्ष कहते हैं। इनका मूल्य काफी अधिक होता है इस कारण इनके नकली होने की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाती है। कुशल कारीगर दो या अधिक रूद्राक्षों को मसाले से चिपकाकर इन्हें बना देते हैं।

12) प्रायः पांच मुखी रूद्राक्ष के चार मुंहों को मसाला से बंद कर एक मुखी कह कर बेचा जाता है जिससे इनकी कीमत बहुत बढ़ जाती है। ध्यान से देखने पर मसाला भरा हुआ दिखायी दे जाता है। कभी-कभी पांच मुखी रूद्राक्ष को कुशल कारीगर और धारियां बना अधिक मुख का बना देते हैं। जिससे इनका मूल्य बढ़ जाता है।

13) प्राकृतिक तौर पर बनी धारियों या मुख के पास के पठार उभरे हुए होते हैं जबकी मानव निर्मित पठार सपाट होते हैं। ध्यान से देखने पर इस बात का पता चल जाता है। इसी के साथ मानव निर्मित मुख एकदम सीधे होते हैं जबकि प्राकृतिक रूप से बने मुख पूरी तरह से सीधे नहीं होते।

14) प्रायः बेर की गुठली पर रंग चढ़ाकर उन्हें असली रूद्राक्ष कहकर बेच दिया जाता है। रूद्राक्ष की मालाओं में बेर की गुठली का ही उपयोग किया जाता है।
15) रूद्राक्ष की पहचान का तरीका- एक कटोरे में पानी उबालें। इस उबलते पानी में एक-दो मिनट के लिए रूद्राक्ष डाल दें। कटोरे को चूल्हे से उतारकर ढक दें। दो चार मिनट बाद ढक्कन हटा कर रूद्राक्ष निकालकर ध्यान से देखें।
—यदि रूद्राक्ष में जोड़ लगाया होगा तो वहफट जाएगा। दो रूद्राक्षों को चिपकाकर गौरीशंकर रूद्राक्ष बनाया होगा या शिवलिंग, सांप आदी चिपकाए होंगे तो वह अलग हो जाएंगे।

—-जिन रूद्राक्षों में सोल्यूशन भरकर उनके मुख बंद करे होंगे तो उनके मुंह खुल जाएंगे। यदि रूद्राक्ष प्राकृतिक तौर पर फटा होगा तो थोड़ा और फट जाएगा। बेर की गुठली होगी तो नर्म पड़ जाएगी, जबकि असली रूद्राक्ष में अधिक अंतर नहीं पड़ेगा। यदि रूद्राक्ष पर से रंग उतारना हो तो उसे नमक मिले पानी में डालकर गर्म करें उसका रंग हल्का पड़ जाएगा।वैसे रंग करने से रूद्राक्ष को नुकसान नहीं होता है।

—-अकसरयह माना जाता है की पानी में डूबने वाला रुद्राक्ष असली और तैरने वालानकली होता है। यह सत्य नही है रुद्राक्ष का डूबना व तैरना उसके कच्चे पन वतेलियता की मात्रा पर निर्भर होता है पके होने पर व पानी में डूब जायेगा।
—-दुसरा कारण तांबे के दो सिक्को के बीच रुद्राक्ष को रख कर दबाने पर यो घूमताहै यह भी सत्य नही। कोई दबाव अधिक लगायेगा तो वो किसी न किसी दिशा मेंअसली घूमेगा ही इस तरह की और धारणाये है जो की रुद्राक्ष के असली होने काप्रणाम नही देती।
—-असली के लिए रुद्राक्ष को सुई से कुदेरने पर रेशा निकले तोअसली और कोई और रसायन निकले तो नकली असली रुद्राक्ष देखे तो उनके पठार एकदुसरे से मेल नही खाते होगे पर नकली रुद्राक्ष देखो या उनके ऊपरी पठार एकजैसे नजर आयेगा जैसे गोरी शंकर व गोरी पाठ रुद्राक्ष कुदरती रूप से जुड़ेहोते है परन्तु नकली रुद्राक्ष को काट कर इन्हे जोड़ना कुशल कारीगरों कीकला है परन्तु यह कला किसी को फायदा नही दे सकती।
—-ऐसे ही एक मुखी गोल दाना रुद्राक्ष काफी महंगा व अप्राप्त है पर कारीगर इसे भीबना कर लाभ ले रहे है। परन्तु पहनने वाले को इसका दोष लगता है। नकलीरुद्राक्ष की धारिया सीधी होगी पर असली रुद्राक्ष की धारिया आढी टेडी होगी।कभी कबार बेर की गुठली पर रंग चढ़ाकर कारीगर द्वारा उसे रुद्राक्ष काआकार दे कर भी बाजार में बेचा जाता है।
—-इसकी परख के लिए इसे काफी पानी मेंउबालने से पता चल जाता है। परन्तु असल में कुछ नही होता वो पानी ठण्डा होनेपर वैसा ही निकलेगा। कोई भी दो जोड़े हुए रुद्राक्षों को आप अलग करेंगेतो बीच में से वो सपाट निकलेगें परन्तु असली आढा टेढा होकर टुटेगा। नोमुखी से लेकर 21 मुखी व एक मुखी गोल दाना गोरी शंकर ,गोरीपाठ आदि यह मंहगे रुद्राक्ष है।

अन्य रुद्राक्ष-

गणेश रुद्राक्ष- एक मुखी से लेकर चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष के बाद भी कुछ अन्य रुद्राक्ष होते हैं जैसे गणेश रुद्राक्ष| गणेश रुद्राक्ष की पहचान है उस पर प्राकृतिक रूप से रुद्राक्ष पर एक उभरी हुई सुंडाकृति बनी रहती है। यह अत्यंत दुर्लभ तथा शक्तिशाली रुद्राक्ष है। यह गणेशजी की शक्ति तथा सायुज्यता का द्योतक है। धारण करने वाले को यह बुद्धि, रिद्धी-सिद्धी प्रदान कर व्यापार में आश्चर्यजनक प्रगति कराता है। विद्यार्थियों के चित्त में एकाग्रता बढ़ाकर सफलता प्रदान करने में सक्षम होता है। यहाँ रुद्राक्ष आपकी विघ्न-बाधाओं से रक्षा करता है|

गौरीशंकर रुद्राक्ष- यह शिव और शक्ति का मिश्रित स्वरूप माना जाता है। उभयात्मक शिव और शक्ति की संयुक्त कृपा प्राप्त होती है। यह आर्थिक दृष्टि से विशेष सफलता दिलाता है। पारिवारिक सामंजस्य, आकर्षण, मंगलकामनाओं की सिद्धी में सहायक है।

शेषनाग रुद्राक्ष- जिस रुद्राक्ष की पूँछ पर उभरी हुई फनाकृति हो और वह प्राकृतिक रूप से बनी रहती है, उसे शेषनाग रुद्राक्ष कहते हैं। यह अत्यंत ही दुर्लभ रुद्राक्ष है। यह धारक की निरंतर प्रगति कराता है। धन-धान्य, शारीरिक और मानसिक उन्नति में सहायक सिद्ध होता है।

रुद्राक्ष के बड़े दानों की मालाएं छोटे दानों की मालाओं की अपेक्षा सस्ती होती हैं। साफ, स्वच्छ, सख्त, चिकने व साफ मुख दिखाई देने वाले दानों की माला काफी महंगी होती है। रुद्राक्ष के अन्य रूपों में गौरी शंकर, गौरी गणेश, गणेश एवं त्रिजुटी आदि हैं। गौरी शंकर रुद्राक्ष में दो रुद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े होते हैं। ये दोनों रुद्राक्ष गौरी एवं शंकर के प्रतीक हैं। इसे धारण करने से दाम्पत्य जीवन में मधुरता बनी रहती है। इसी प्रकार गौरी गणेश में भी दो रुद्राक्ष जुड़े होते हैं एक बड़ा एक छोटा, मानो पार्वती की गोद में गणेश विराजमान हों।

रुद्राक्ष पहनने में किसी विशेष सावधानी की आवश्यकता नहीं है, लेकिन जिस प्रकार दैवी शक्तियों को हम पवित्र वातावरण में रखने का प्रयास करते हैं, उसी प्रकार रुद्राक्ष पहनकर शुचिता बरती जाए, तो उत्तम है। अतः साधारणतया रुद्राक्ष को रात को उतार कर रख देना चाहिए और प्रातः स्नानादि के पश्चात मंत्र जप कर धारण करना चाहिए। इससे यह रात्रि व प्राः की अशुचिता से बचकर जप की ऊर्जा से परिपूर्ण होकर हमें ऊर्जा प्रदान करता है। शिव सदैव शक्ति के साथ ही पूर्ण हैं। दैवी शक्तियों में लिंग भेद नहीं होता है। स्त्री-पुरुष का भेद केवल पृथ्वी लोक में ही होता है। रुद्राक्ष, जिसमें दैवी शक्तियां विद्यमान हैं, स्त्रियां अवश्य धारण कर सकती हैं।

गौरी शंकर रुद्राक्ष व गौरी गणेश रुद्राक्ष खासकर स्त्रियों के लिए ही हैं। पहला सफल वैवाहिक जीवन के लिए एवं दूसरा संतान सुख के लिए। हां शुचिता की दृष्टि से राजो दर्शन के तीन दिनों तक रुद्राक्ष न धारण किया जाए, तो अच्छा है।

रुद्राक्ष धारण करने के लिए सोमवार को प्रातः काल पहले कच्चे दूध से और फिर गंगाजल से धोकर व अष्टगंध लगाकर ऊँ नमः शिवाय मंत्र का जप कर धारण करना चाहिए।


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Sunday, April 12, 2015

SUGREEV CAVE, EVIDENCES OF BHAGWAN RAM

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Saturday, November 15, 2014

Hindu Religion पत्नी वामांग क्यों

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पत्नी वामांग क्यों
पति के बायीं ओर ही क्यों बैठती है पत्नी?
पति-पत्नी का रिश्ता बड़ा ही कोमल और पवित्र होता है। यह विश्वास की डोर से बंधा होता है।
कहते हैं पत्नी, पति का आधा अंग होती है। दोनों में कोई भेद नहीं होता। पर जहां तक धार्मिक अनुष्ठानों का सवाल है, पत्नी को हमेशा पति के बायीं ओर ही बिठाया जाता है।
क्या इसके पीछे कोई मान्यता है या पुराने रीति-रिवाज?
हमारे धर्म-ग्रथों में पत्नी को पति का आधा अंग कहा जाता है। उसमें भी उसे वामांगी कहा जाता है अर्थात पति का बायां भाग। शरीर विज्ञान और ज्योतिष ने पुरुष के दाएं और महिलाओं के बाएं हिस्से को शुभ माना है।
हस्त ज्योतिष में भी महिलाओं का बायां हाथ ही देखा जाता है। मनुष्य के शरीर का बायां हिस्सा खास तौर पर मस्तिष्क रचनात्मकता का प्रतीक माना जाता है। दायां हिस्सा कर्म प्रधान होता है।
हमारा मस्तिष्क भी दो हिस्सों में बंटा होता है दायां हिस्सा कर्म प्रधान और बायां कला प्रधान। महिलाओं को पुरुषों के बायीं ओर बैठाने के पीछे भी यही कारण है।
स्त्री का स्वभाव सामान्यत: वात्सल्य का होता है और किसी भी कार्य में रचनात्मकता तभी आ सकती है जब उसमें स्नेह का भाव हो। दायीं ओर पुरुष होता है जो किसी शुभ कर्म या पूजा में कर्म के प्रति दृढ़ता के लिए होता है, बायीं ओर पत्नी होती है जो रचनात्मकता देती है, स्नेह लाती है।
जब कोई कर्म दृढ़ता और रचनात्मकता के साथ किया जाए तो उसमें सफलता मिलनी तय है

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Sunday, June 8, 2014

Hindu Religion : पत्नी वामांग क्यों

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Hindu Religion : पत्नी वामांग क्यों

पति के बायीं ओर ही क्यों बैठती है पत्नी?

पति-पत्नी का रिश्ता बड़ा ही कोमल और पवित्र होता है। यह विश्वास की डोर से बंधा होता है।
कहते हैं पत्नी, पति का आधा अंग होती है। दोनों में कोई भेद नहीं होता। पर जहां तक धार्मिक अनुष्ठानों का सवाल है, पत्नी को हमेशा पति के बायीं ओर ही बिठाया जाता है।
क्या इसके पीछे कोई मान्यता है या पुराने रीति-रिवाज?
हमारे धर्म-ग्रथों में पत्नी को पति का आधा अंग कहा जाता है। उसमें भी उसे वामांगी कहा जाता है अर्थात पति का बायां भाग। शरीर विज्ञान और ज्योतिष ने पुरुष के दाएं और महिलाओं के बाएं हिस्से को शुभ माना है।
हस्त ज्योतिष में भी महिलाओं का बायां हाथ ही देखा जाता है। मनुष्य के शरीर का बायां हिस्सा खास तौर पर मस्तिष्क रचनात्मकता का प्रतीक माना जाता है। दायां हिस्सा कर्म प्रधान होता है।
हमारा मस्तिष्क भी दो हिस्सों में बंटा होता है दायां हिस्सा कर्म प्रधान और बायां कला प्रधान। महिलाओं को पुरुषों के बायीं ओर बैठाने के पीछे भी यही कारण है।
स्त्री का स्वभाव सामान्यत: वात्सल्य का होता है और किसी भी कार्य में रचनात्मकता तभी आ सकती है जब उसमें स्नेह का भाव हो। दायीं ओर पुरुष होता है जो किसी शुभ कर्म या पूजा में कर्म के प्रति दृढ़ता के लिए होता है, बायीं ओर पत्नी होती है जो रचनात्मकता देती है, स्नेह लाती है।
जब कोई कर्म दृढ़ता और रचनात्मकता के साथ किया जाए तो उसमें सफलता मिलनी तय है।

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Saturday, June 7, 2014

Hindu Religion : सावन में हरी सब्जियां क्यों नहीं खाना चाहिए?

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Hindu Religion : सावन में हरी सब्जियां क्यों नहीं खाना चाहिए?
कहते हैं पहला सुख निरोगी काया यानी स्वस्थ्य शरीर ही सबसे बड़ा धन है। जिसके पास स्वस्थ्य शरीर नहीं होता है उसके लिए दुनिया के सारे सुख व ऐश्वर्य व्यर्थ हो जाते हैं। स्वस्थ्य शरीर के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है संतुलित भोजन। हमारा खान-पान ही हमारे शरीर को पूरी तरह तंदुस्त रखता है। अच्छे भोजन से हमारी कार्यक्षमता सही बनी रहती है, जल्दी थकान नहीं होती और साथ ही कई छोटी-छोटी बीमारियां हमेशा ही हमसे दूर रहती है। बारिश के मौसम में स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। इसीलिए हमारे धर्मशास्त्रों में भी इस मौसम के लिए कुछ विशेष नियम बनाए गए हैं।

हमारे शास्त्रों में साल के हर महीने में कोई ना कोई चीज भोजन में वर्जित मानी गई है। सावन के महीने में हरी सब्जियों का सेवन वर्जित माना गया है। इसका धार्मिक कारण तो यह है कि हमारे धर्म शास्त्रों में मान्यता है कि सावन में हरी सब्जी का त्याग कर देने से व नियम से उपवास यानी सावन स्नान करने से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है। लेकिन इस मान्यता के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। दरअसल बारिश में हरी सब्जियों में बीमारी फैलाने वाले कीटाणु बहुत अधिक आते हैं। जिससे पेट व त्वचा से संबंधित बीमारियां होती हैं। इस मौसम में बॉडी का इम्युनिटी पॉवर भी कम हो जाता है इसीलिए हर व्यक्ति बीमारियों की चपेट में आने की संभावना बढ़ जाती है। इसीलिए सावन में हरी सब्जियां नहीं खाना चाहिए

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Hindu Religion : सावन में शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाया जाता है?

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Hindu Religion : सावन में शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाया जाता है?

हमारे हिंदू धर्म में त्रिदेवों अर्थात भगवान ब्रह्मा, विष्णु व शंकर का अपना एक विशिष्ट स्थान है और इसमें भी भगवान शंकर का चरित्र जहाँ अत्यधिक रोचक हैं वहीं यह पौराणिक कथाओं में अत्यधिक गूढ रहस्यों से भी भरा हुआ है। भगवान शिव को विश्वास का प्रतीक माना गया है क्योंकि उनका अपना चरित्र अनेक विरोधाभासों से भरा हुआ है जैसे शिव का अर्थ है जो शुभकर व कल्याणकारी हो, जबकि शिवजी का अपना व्यक्तित्व इससे जरा भी मेल नहीं खाता, क्योंकि वे अपने शरीर में इत्र के स्थान पर चिता की राख मलते हैं तथा गले में फूल-मालाओं के स्थान पर विषैले सर्पों को धारण करते हैं। वे अकेले ही ऐसे देवता हैं जो लिंग के रूप में पूजे जाते हैं। सावन में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का विशेष महत्व माना गया है। इसीलिए शिव भक्त सावन के महीने में शिवजी को प्रसन्न करने के लिए उन पर दूध की धार अर्पित करते हैं।
पुराणों में भी कहा गया है कि इससे पाप क्षीण होते हैं। लेकिन सावन में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का सिर्फ धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है। सावन के महीने में दूध का सेवन नहीं करना चाहिए। शिव ऐसे देव हैं जो दूसरों के कल्याण के लिए हलाहल भी पी सकते हैं। इसीलिए सावन में शिव को दूध अर्पित करने की प्रथा बनाई गई है क्योंकि सावन के महीने में गाय या भैस घास के साथ कई ऐसे कीड़े-मकोड़ो को भी खा जाती है। जो दूध को स्वास्थ्य के लिए गुणकारी के बजाय हानिकारक बना देती है। इसीलिए सावन मास में दूध का सेवन न करते हुए उसे शिव को अर्पित करने का विधान बनाया गया है।
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शनिदेव को मनाने के लिए हनुमानजी को तेल क्यों चढ़ाते हैं?

हनुमानजी को संकटमोचन कहा जाता है। कहते हैं हनुमानजी अपने सभी भक्तों के जीवन से संकट को हर लेते हैं। अधिकतर ज्योतिष शनि देव को प्रसन्न करने के लिए या उनके कोप को कम करने के लिए हनुमान के पूजन को कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार शनि और हनुमान से जुड़ी एक कथा है।
कथा के अनुसार शनि को स्वभाव से क्रुर ग्रह माना गया है। शनि का स्वभाव कुछ उद्दण्ड था। अपने स्वभाव के चलते उन्होंने श्री हनुमानजी को तंग करना शुरू कर दिया। बहुत समझाने पर भी वह नहीं माने तब हनुमानजी ने उसको सबक सिखाया। हनुमान की मार से पीडि़त शनि ने उनसे क्षमा याचना की तो करुणावश हनुमानजी ने उनको घावों पर लगाने के लिए तेल दिया। शनि महाराज ने वचन दिया जो हनुमान का पूजन करेगा और उन्हें तेल अर्पित करेगा वे उस पर कृपा करेंगे। इसीलिए शनि की साढ़े-साती या किसी भी तरह से शनि का अशुभ प्रभाव होने पर उससे मुक्ति के लिए हनुमानजी को तेल अर्पित किया जाता है।

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नजर से बचने के लिए काला धागा क्यों बांधा जाता है?

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नजर से बचने के लिए काला धागा क्यों बांधा जाता है?

जब भी हमारे खुशियां दुख में बदल जाए या हमेशा प्राप्त होने वाला धन लाभ अचानक हानि में बदल जाए या परिवार का आपसी तालमेल बिगड़ जाए इसी प्रकार की घटनाएं होने लगे तक संभव है कि आपको या आपके परिवार या आपकी जॉब या व्यवसाय को किसी की बुरी नजर लगी हो। इससे बचने के लिए ज्योतिष में कई तरीके बताए गए हैं। जैसे छोटे बच्चों या लड़कियों की सुंदरता को किसी भी बुरी नजर न लगे इसके लिए उन्हें काला टीका लगाना चाहिए।

बुरी नजर लगने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी मौजूद हैं। हमारा शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है। यह पंच तत्व हैं- पृथ्वी, वायु, अग्नि, जल और आकाश।
इन्हीं पंच तत्वों से मिलने वाली ऊर्जा ही हमारे शरीर का संचालन करती हैं। इनसे मिलने वाली ऊर्जा से ही हम सभी सुविधाओं को प्राप्त करते हैं। जब किसी इंसान की बुरी नजर हमारी सुविधाओं को लगती है तब इन पंच तत्वों से मिलने वाली संबंधित सकारात्मक ऊर्जा हम तक नहीं पहुंच पाती है। इसीलिए गले में काला धागा बांधा जाता है।

यह तो वैज्ञानिक मान्यता है कि काला रंग उष्मा का अवशोषक होता है। यह माना जाता है कि काला धागा बुरी नजर को या बुरा ऊर्जाओं को अवशोषित कर लेता है व उनका प्रभाव हम पर नहीं पडऩे देता है। इसीलिए बुरी नजर लगने पर काला धागा बांधा जाता है


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धर्मशास्त्रों के अनुसार बर्थ-डे पर क्या और क्यों नहीं करना चाहिए?

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धर्मशास्त्रों के अनुसार बर्थ-डे पर क्या और क्यों नहीं करना चाहिए?

जन्मदिन हर व्यक्ति के जीवन का बहुत ही विशेष दिन होता है। इसीलिए सभी लोग चाहे वो आम हो या खास अपने बर्थ-डे को विशेष तरह से मनाना पसंद करते हैं। कुछ लोग इस दिन अपने घर में कोई धार्मिक अनुष्ठान करना पसंद करते हैं तो कुछ अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के साथ पार्टी करना पसंद करते हैं। जन्मदिन चाहे कैसे भी मनाएं। मतलब सिर्फ अपनी खुशियों और खास लम्हों को अपनों के साथ बांटने से है या कहें सेलीब्रेशन से है। हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार यदि हम अपना जन्मदिन मनाएं तो हमारे शास्त्रों के अनुसार जन्मदिन के दिन  


कुछ कार्य ऐसे हैं जिन्हें करना शास्त्रों में अच्छा नहीं माना गया है। ये कार्य इस प्रकार है :-
जन्मदिन पर नाखून एवं बाल काटना, वाहन से यात्रा करना, कलह, हिंसाकर्म, अभक्ष्यभक्षण (न खाने योग्य पदार्थ खाना), अपेयपान (न पीने योग्य पदार्थ पीना), स्त्रीसंपर्क से प्रयत्नपूर्वक बचना चाहिए। इसी तरह दीपक का बुझना आकस्मिक मृत्यु, अर्थात् अपमृत्युसे संबंधित है। इसे अशुभ माना गया है। इसीलिए मोमबत्ती जलाकर जन्मदिन नहीं मनाना चाहिए। हिंदू संस्कृति के अनुसार दिन सूर्योदयसे आरंभ होता है। यह समय ऋषि-मुनियोंकी साधना का समय है, इसलिए वातावरणमें सात्त्विकता अधिक होती है और सूर्योदयके पश्चात् दी गई शुभकामनाएं फलदायी सिद्ध होती हैं। इसलिए रात के समय जन्मदिन की बधाई देने से बचना चाहिए।



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बिना चावल रखे भगवान को दीपक नहीं लगाना चाहिए क्योंकि...

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बिना चावल रखे भगवान को दीपक नहीं लगाना चाहिए क्योंकि...

दीपक का पूजन में बहुत महत्व है। भगवान के समक्ष जब तक दीपक नहीं जलाया जाता है। हिन्दू पंरपराओं के अनुसार तब तक पूजन पूरा होना संभव ही नहीं है। इसीलिए पूजा शुरू होने से पहले दीपक जलाया जाता है। फिर पूजा के समापन के समय आरती की जाती है।
पूजा में दीपक के नीचे चावल रखे जाते हैं। चावल को शुद्धता का प्रतीक माना गया है।दीपक को पूर्णता का प्रतीक माना जाता है। हिन्दू धर्म में दीपक को देव रूप माना जाता है। इसीलिए किसी भी तरह की पूजा शुरू करने से पहले दीपक का तिलक लगाकर पूजन किया जाता है। उसके बाद दीपक को आसन दिया जाता है यानी दीपक को स्थान दिया जाता है।
दीपक के नीचे चावल ना रखें जाने पर इसे अपशकुन माना जाता है। यदि दीपक के नीचे चावल नहीं हो तो दीपक अपूर्ण होता है। मान्यता है कि यदि दीपक को आसन देकर पूजा में ना रखा जाए तो भगवान भी पूजन में आसन ग्रहण नहीं करते हैं। साथ ही चावल को लक्ष्मीजी का प्रिय धान भी माना जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि पूजन के समय दीपक को चावल का आसन देने से घर में स्थिर लक्ष्मी का निवास होता है। शास्त्रों में ऐसा उल्लेख भी मिलता है कि शुक्रवार के दिन लक्ष्मी मां के सामने चावल की ढेरी बनाकर उसके ऊपर घी का दीपक लगाने से धन लाभ होता है।
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स्त्रियां नारियल नहीं फोड़ती हैं

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स्त्रियां नारियल नहीं फोड़ती हैं

ये हैं नारियल से जुड़ी प्राचीन बातें हम सभी जानते हैं पूजन कर्म में नारियल का महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी देवी-देवता की पूजा नारियल के बिना अधूरी मानी जाती है। क्या आप जानते हैं कि नारियल खाने से शारीरिक दुर्बलता दूर होती है एवं भगवान को नारियल चढ़ाने से धन और घर-परिवार से संबंधित समस्याएं दूर हो जाती हैं। नारियल ऊपर से कठोर किंतु अंदर से नरम और मीठा होता है। हमें भी जीवन में नारियल की तरह अंदर से नरम व मधुर स्वभाव बनाना चाहिए। हम बाहर से जैसे भी दिखते हो, लेकिन अंदर से नारियल के समान व्यवहार रखना चाहिए। प्राचीन समय से ही नारियल से संबंधित कई प्रकार की परंपराएं प्रचलित हैं। इन परंपराओं में से एक अनिवार्य परंपरा यह है कि स्त्रियां नारियल नहीं फोड़ती हैं। आमतौर पर ऐसा स्त्रियों द्वारा नारियल फोड़ने को अपशकुन माना जाता है।




 यह एक महत्वपूर्ण परंपरा है कि महिलाएं नारियल नहीं फोड़तीं। वास्तव में नारियल बीज रूप है, इसलिए इसे उत्पादन (प्रजनन) क्षमता से जोड़कर देखा गया है। स्त्रियां प्रजनन क्रिया की कारक हैं और इसी वजह से स्त्रियों के लिए बीज रूपी नारियल को फोडऩा वर्जित किया गया है। इसके साथ ही नारियल बलि का प्रतीक है और बलि पुरुषों द्वारा ही दी जाती है। इस कारण से भी महिलाओ द्वारा नारियल नहीं फोड़ा जाता है। ऐसी प्राचीन परंपरा है। नारियल के जल से किया जाता है अभिषेक आमतौर पर नारियल को बधार कर (फोड़कर) ही देवी-देवताओं को चढ़ाते हैं। देवताओं को खुश करने के लिए पशुओं की बलि देने की परंपरा थी, लेकिन जब इस परंपरा पर रोक लगी तो नारियल की बली देने की प्रथा शुरु हो गई। देवी-देवताओं को श्रीफल चढ़ाने के बाद पुरुष ही इसे फोड़ते हैं। नारियल से निकले जल से भगवान की प्रतिमाओं का अभिषेक भी किया जाता है।


सौभाग्य का प्रतीक है नारियल नारियल को श्रीफल भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है, जब भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर अवतार लिया तो वे अपने साथ तीन चीजें- लक्ष्मी, नारियल का वृक्ष तथा कामधेनु लेकर आए थे। इसलिए नारियल के वृक्ष को कल्पवृक्ष भी कहते है। नारियल में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही देवताओं का वास माना गया है। श्रीफल भगवान शिव का परम प्रिय फल है। नारियल में बनी तीन आंखों को त्रिनेत्र के रूप में देखा जाता है।  


सम्मान का सूचक है नारियल श्रीफल शुभ, समृद्धि, सम्मान, उन्नति और सौभाग्य का सूचक है। सम्मान करने के लिए शॉल के साथ श्रीफल भी दिया जाता है। सामाजिक रीति-रिवाजों में भी नारियल भेंट करने की परंपरा है। जैसे बिदाई के समय तिलक कर नारियल और धनराशि भेंट की जाती है। रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों को राखी बांध कर नारियल भेंट करती हैं और रक्षा का वचन लेती हैं।

 एकाक्षी नारियल से होते हैं मालामाल एकाक्षी नारियल बहुत ही दुर्लभ है। आमतौर पर नारियल की जटा की नीचे दो बिंदू होते हैं, लेकिन एकाक्षी नारियल में यहां सिर्फ एक ही बिंदू होता है। यह एक बिंदू वाला नारियल बहुत चमत्कारी होता है। जिस घर में यह नारियल होता है वहां महालक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और पैसों की समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। इस नारियल के प्रभाव से घर से वास्तु दोष भी नष्ट होते हैं और परिवार के सदस्यों को कार्यों में सफलता मिलती है।

उत्तम औषधि : नारियल की गिरी
- जिन शिशुओं को दूध नहीं पचता उन्हें दूध के साथ नारियल पानी मिलाकर पिलाना चाहिए।
- शिशु को डि-हाइड्रेशन होने पर नारियल पानी में नीबू का रस मिलाकर पिलाएं। नरियल का पानी हैजे में रामबाण औषधि है।
- नारियल की गिरी (खोपरा) खाने से कामशक्ति बढ़ती है।
गर्भवती स्त्री की शारीरिक दुर्बलता दूर होती है
- मिश्री के साथ खाने से गर्भवती स्त्री की शारीरिक दुर्बलता दूर होती है तथा बच्चा सुंदर होता है।
- सूखी गिरी खाने से आंख की रोशनी तथा गुर्दे को शक्ति मिलती है।
- पौष, माघ और फाल्गुन माह में नियमित सुबह गिरी के साथ गुड़ खाने से वक्षस्थल में वृद्धि होती है, शारीरिक दुर्बलता दूर होती है।
नारियल से सीखें
नारियल ऊपर से कठोर किंतु अंदर से नरम और मीठा होता है। हमें भी जीवन में नारियल की तरह बाहर से कठोर और अंदर से नरम व मधुर स्वभाव बनाना चाहिए


Source : Collected info from internet

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Sunday, February 2, 2014

Radhe Krishna

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 Radhe Krishna

श्रद्धा रखो जगत के लोगो, अपने दीनानाथ में।
लाभ हानि जीवन और मृत्यु, सब कुछ उस के हाथ में..............

मारने वाला है भगवान, बचाने वाला है भगवान।
बाल ना बांका होता उसका, जिसका रक्षक दयानिधान ........॥

त्याग दो रे भाई फल की आशा, स्वार्थ बिना प्रीत जोड़ो।
कल क्या होगा इस की चिंता, जगत पिता पर छोड़ो।
क्या होनी है क्या अनहोनी, सब का उसको ज्ञान॥........

जल थल अगन आकाश पवन पर केवल उसकी सत्ता।
प्रभु इच्छा बिना यहाँ पर हिल ना सके एक पत्ता।
उसी का सौदा यहाँ पे होता, उस की शक्ति महान॥...............


 

श्री विष्णु(Lord Vishnu Prayer)

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 श्री विष्णु(Lord Vishnu Prayer)

श्री विष्णु शत नाम स्तोत्र,,,,वासुदेवं ह्रषीकेशं वामनं जलशायिनम् l जनार्दनं हरिं कृष्णं श्रीवक्षं गरुडध्वजम ll
वाराहं पुण्डरीकाक्षं नृसिंहं नरकान्तकम् l अव्यक्तं शाश्वतं विष्णुमनन्तमजमव्ययम् ll
नारायणं गदाध्यक्षं गोविन्दं कीर्तिभाजनम l गोवर्धनोद्धरं देवं भूधरं भुवनेश्वरम ll
वेत्तारं यज्ञपुरुषं यज्ञेशं यज्ञवाहकम् l चक्रपाणिं गदापाणिं शंखपाणिं नरोत्तमम् ll
वैकुण्ठं दुष्टदमनं भूगर्भं पीतवाससम् l त्रिविक्रमं त्रिकालज्ञं त्रमूर्तिं नन्दिकेश्वरम् ll
रामं रामं हयग्रीवं भीमं रौद्रं भवोद्भवम् l श्रीपतिं श्रीधरं श्रीशं मंगलं मंगलायुधम् ll
दामोदरं दमोपेतं केशवं केशिसूदनम् l वरेण्यं वरदं विष्णुमानन्दं वसुदेवजम ll

हिरण्यरेतसं दीप्तं पुराणं पुरुषोत्तमम् l सकलं निष्कलं शुद्धं निर्गुणं गुणशाश्वतम् ll
हिरण्यतनुसंकाशं सूर्यायुतसमप्रभम् l मेघश्यामं चतुर्बाहुं कुशलं कमलेक्षणम् ll
ज्योतिरूपमरूपं च स्वरूपं रूपसंस्थितम् l सर्वज्ञं सर्वरूपस्थं सर्वेशं सर्वतोमुखम् ll
ज्ञानं कूटस्थमचलं ज्ञानदं परमं प्रभुम् l योगीशं योगनिष्णातं योगिनं योगरूपिणम् ll
ईश्वरं सर्वभूतानां वन्दे भूतमयं प्रभुम l इति नामशतं दिव्यं वैष्णवं खलु पापहम् ll
व्यासेन कथितं पूर्वं सर्वपापप्रणाशनम l यः पठेत प्रातरुत्थाय स भवेद्वैष्णवो नरः ll
सर्वपापविशुद्धात्मा विष्णुसायुज्यमाप्नुयात् l चान्द्रायणसहस्राणि कन्यादानशतानि च ll
गवां लक्षसहस्राणि मुक्तिभागी भवेन्नरः l अश्वमेधायुतं पुण्यं फलं प्राप्नोति मानवः ll

 

गौ माता कामधेनु

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गौ माता कामधेनु  

गौ माता कामधेनु गौ माता कामधेनु का वर्णन पौराणिक गाथाओं में एक ऐसी चमत्कारी गाय के रूप में मिलता है, जिसमें दैवीय शक्तियाँ थीं और जिसके दर्शन मात्र से ही लोगो के दुःख व पीड़ा दूर हो जाती थी। यह कामधेनु जिसके पास होती थी, उसे हर तरह से चमत्कारिक लाभ होता था। इस गाय का दूध अमृत के समान माना
जाता था।
 

सर्वपालनकर्ता कामधेनु सबका पालन करने वाली है। यह माता स्वरूपिणी है, सब इच्छाएँ पूर्ण करने वाली है। कृष्ण कथा में अंकित सभी पात्र किसी न किसी कारणवश शापग्रस्त होकर जन्मे थे। कश्यप ने वरुण से कामधेनु माँगी थी, लेकिन बाद में लौटायी नहीं। अत: वरुण के शाप से वे ग्वाले हुए। जैसे देवताओं में भगवान विष्णु, सरोवरों में समुद्र, नदियों में गंगा, पर्वतों में हिमालय, भक्तों में नारद, सभी पुरियों में कैलाश, सम्पूर्ण क्षेत्रों में केदार क्षेत्र श्रेष्ठ है, वैसे ही गऊओं में कामधेनु सर्वश्रेष्ठ है।
भगवान विष्णु स्वयं कच्छपरूप धारण करके समुद्र मंथन के समय मन्दराचल पर्वत के आधार बने। इस प्रकार मन्थन करने पर क्षीरसागर से क्रमश: 'कालकूट विष', 'कामधेनु', 'उच्चैश्रवा' नामक अश्व, 'ऐरावत' नामक हाथी, 'कौस्तुभ्रमणि', 'कल्पवृक्ष', 'अप्सराएँ', 'लक्ष्मी', 'वारुणी', 'चन्द्रमा', 'शंख', 'शांर्ग धनुष', 'धनवन्तरि' और 'अमृत' प्रकट हुए।
क्षीर-समुद्र का मन्थन
मथे जाते हुए समुद्र के चारों ओर बड़े ज़ोर की आवाज़ उठ रही थी। इस बार के मन्थन से देवकार्यों की सिद्धि के लिये साक्षात् सुरभि कामधेनु प्रकट हुईं। उन्हें काले, श्वेत, पीले, हरे तथा लाल रंग की सैकड़ों गौएँ घेरे हुए थीं। उस समय ऋषियों ने बड़े हर्ष में भरकर देवताओं और दैत्यों से कामधेनु के लिये याचना की और कहा- 'आप सब लोग मिलकर भिन्न-भिन्न गोत्रवाले ब्राह्मणों को कामधेनु सहित इन सम्पूर्ण गौओं का दान अवश्य करें।' ऋषियों के याचना करने पर देवताओं और दैत्यों ने भगवान शंकर की प्रसन्नता के लिये वे सब गौएँ दान कर दीं तथा यज्ञ कर्मों में भली-भाँति मन को लगाने वाले उन परम मंगलमय महात्मा ऋषियों ने उन गौओं का दान स्वीकार किया। तत्पश्चात सब लोग बड़े जोश में आकर क्षीरसागर को मथने लगे। तब समुद्र से कल्पवृक्ष, पारिजात, आम का वृक्ष और सन्तान- ये चार दिव्य वृक्ष प्रकट हुए।
ॐ जय कामधेनु गौ माता,, जय जय गोमाता सुखसागर। जय देवी अमृत की गागर॥जीवनरस सरिता तुम दाता। तेरी महिमा गाएँ विधाता॥वेद-पुराणों ने गुण गाया। ... कामधेनु बन झोली भरती॥ चरणों की रज अति उपकारी। महापापनाशक, सुखकारी॥ जगमाता हो पालनहारी