जानिए की कैसे करें असली रुद्राक्ष की पहचान और रुद्धाक्ष प्रयोग
आमतौर पर आपने देखा होगा की आजकल किसी भी शहर के बाजार में रुद्राक्ष हर दुकान ,चौराहे पर बक रहा हैं और कई नामी कम्पनिया भी इसे बेच रही है, परन्तु इसकी पहचान करना बहुत ही कठिन है। एक मुखी व एकाधिक मुखी रुद्राक्ष महंगे होने के कारण नकली भी बाजार में बिक रहेहै। नकली मनुष्य असली के रूप में इन्हे खरीद तो लेता है परन्तु उसका फल नहीमिलता। जिस कारण वह रुद्राक्ष के फायदे से वंचित रह जाता है व जीवन भर उसकी मन में यह धारणा रहती है कि रुद्राक्ष एक बेकार वस्तु है।
कई लोग लाभ के लालच में कैमिकल का इस्तेमाल कर इसका रंग रूप असली रूद्राक्ष जैसा कर देतेहै व इसके ऊपर धारिया बना कर मंहगे भाव में बेच देते है। कई बार दो रुद्राक्षों को बड़ीसफाई से जोड़ कर बेचा जाता है। आपने देखा होगा कि कई रूद्राक्षों पर गणेश, सर्प, शिवलिंग की आकृति बना कर भी लाभ कमाया जाता है।
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब.–09669290067) के अनुसार रूद्राक्ष का उपयोग केवल धारण करने में ही नहीं होता है अपितु हम रूद्राक्ष के माध्यम से किसी भी प्रकार के रोग कुछ ही समय में पूर्णरूप से मुक्ति प्राप्त कर सकते है। ज्योतिष के आधार पर किसी भी ग्रह की शांति के लिए रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। असली रत्न अत्यधिक मंहगा होने के कारण हर व्यक्ति धारण नहीं कर सकता।रूद्राक्ष की महिमा का वर्णन शिवपुराण, रूद्रपुराण, लिंगपुराण श्रीमद्भागवत गीता में पूर्ण रूप से मिलता है। सभी जानते हैं कि रूद्राक्ष को भगवान शिव का पूर्ण प्रतिनिधित्व प्राप्त है।चंद्रमा शिवजी के भाल पर सदा विराजमान रहता है अतः चंद्र ग्रह जनित कोई भी कष्ट हो तो रुद्राक्ष धारण से बिल्कुल दूर हो जाता है। किसी भी प्रकार की मानसिक उद्विग्नता, रोग एवं शनि के द्वारा पीड़ित चंद्र अर्थात साढ़े साती से मुक्ति में रुद्राक्ष अत्यंत उपयोगी है। शिव सर्पों को गले में माला बनाकर धारण करते हैं। अतः काल सर्प जनित कष्टों के निवारण में भी रुद्राक्ष विशेष उपयोगी होता है।
रूद्राक्ष धारण करने से जहां आपको ग्रहों से लाभ प्राप्त होगा वहीं आप शारीरिक रूप से भी स्वस्थ रहेंगे। ऊपरी हवाओं से भी सदैव मुक्त रहेंगे क्योंकि जो व्यक्ति कोई भी रूद्राक्ष धारण करता है उसे भूत पिशाच आदि की कभी भी कोई समस्या नहीं होती है। वह व्यक्ति बिना किसी भय के कहीं भी भ्रमण कर सकता हैं| रुद्राक्ष सिद्धिदायक, पापनाशक, पुण्यवर्धक, रोगनाशक, तथा मोक्ष प्रदान करने वाला है| शिव पुराण में कहा गया है कि रुद्राक्ष या इसकी भस्म को धारण करके ‘नमः शिवाय’ मंत्र का जप करने वाला मनुष्य शिव रूप हो जाता है|
ऐसी और भी अनेक बातों के कारण रूद्राक्ष मंहगे भाव में बेच दिय जाते हैं पर देखा जाये तो जो आदमी अध्यात्मिक विश्वास में रुद्राक्ष खरीदता है अगर उसे ऐसा रुद्राक्ष मिल जाये तो उसे कोई लाभ नही बल्कि उसके अध्यात्मिक मन के साथ धोखा होता है। आप ने कभी भी कोई रुद्राक्ष लेना तो विश्वसनीय स्थान से ही खरीदे। परन्तु आप भी अपने ढंग से जान सकते है असली और नकली रुद्राक्ष कैसे होते है।
शास्त्रों में कहा गया है की जो भक्त रुद्राक्ष धारण करते हैं भगवान भोलेनाथ उनसे हमेशा प्रसन्न रहते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है अक्सर लोगों को रुद्राक्ष की असली माला नहीं मिल पाती है जिससे भगवान शिव की आराधना में खासा प्रभाव नहीं पड़ता है। अब हम आपको रुद्राक्ष के बारे में कुछ जानकारियां देने जा रहे हैं जिसके द्वारा आप असली और नकली रूद्राक्ष की पहचान कर सकते है और किस तरह नकली रूद्राक्ष बनाया जाता है…रुद्राक्ष तन-मन की बहुत सी बीमारियों में राहत पहुँचाता है। इसे पहनने से दिल की धड़कन तथा रक्तचाप नियंत्रण में रहता है। ऐसा कहा जाता है कि रुद्राक्ष धारण करनेवाले व्यक्ति को देर से बुढ़ापा आता है।
रुद्राक्ष क्या है ?
– रुद्राक्ष (English name :- “Rudraksh // Rudraksha”) एक किसिम के दाना(फल) हे !
रुद्राक्ष के वृक्ष और पेड़ को ‘रुद्राक्ष के पेड़’ कहते है ! वही महत्वपूर्ण पेड़ मे फल्ने वाला दाना(फल) को ही रुद्राक्ष कहते हे !हिन्दु धर्म मे रुद्राक्ष के पेड़ और रुद्राक्षदाना दोनो का बराबर महत्वपूर्ण हे ! आज भी हम विभिन्न घरवो मे रुद्राक्ष के पेड़ को पुजा कररहे और रुद्राक्ष समन्धी ज्ञात महापुरुष भक्तोने एक दाना रुद्राक्ष को लकेट बनाकर और १०८ रुद्राक्ष दाना से बनाहुवा रुद्राक्ष की माला गले मे धारण किया हुवा देख्ने मे मिलसकता है !हिन्दु धर्म मे रुद्राक्ष के बहुत उचाई हे ! ये भी कहाँगया हे की रुद्राक्ष स्वोयम भगवान शिव ही हे और रुद्राक्ष दाना भगवान महादेव(पशुपतिनाथ) जी के प्रिये आभूषण भी हे! रुद्राक्ष से समन्धीत सम्पूर्ण जानकारी हमारे हिन्दु धर्म के विभिन्न ज्ञानबर्द्धक पुस्तको और बढे बढे पुस्तक जैसे शिव पुराण,देवी भागवत गीता मे सम्पूर्ण जानकारी सहित मिलता है और विस्तार किया गया हे !
रुद्राक्ष के वृक्ष विशेषकर नेपाल मे मिलता है!कीसी भी अवस्था में यदि दुसरा स्थान मिल जाएगी तो भक्त जनको नेपाल का ही रुद्राक्ष पुजा और धारण करने मे लाभदायिक होगा क्युकी नेपाल का रुद्राक्ष ही शक्तिशालि होता है ! इंडिया मे भी किसी किसी जगामे रुद्राक्ष मिलता है लेकिन नेपाल की तरह गुणवत्ता नही होती है !भारत मे खासकर रुद्राक्ष आसम और हरिद्वार मे मिलता है लेकिन रुद्राक्ष मे ज्यादा तर छेद नही होता है ! रुद्राक्ष आदिकाल से बढे बढे ऋषि,मुनि,साधु,सन्त,तपवस्यीने पसंद और रोजा हुवा है !भारत से विभिन्न श्रदालु भक्तजन नेपाल भ्रमण मे श्री पशुपतिनाथ मन्दिर दर्शन करके यहाँ से रुद्राक्ष खरिद कर लेजाते है !नेपाल मे रुद्राक्ष खासकर काठमाडौँ,झापा,सिन्धुपाल्चोव्क ,भोजपुर.बिराटनगर,काब्रे आदि विभिन्न जगहों मे उत्पादन होता है !
रुद्राक्ष के पेड़ भारत समेत विश्व के अनेक देशों में पाए जाते हैं| भारत में रुद्राक्ष के पेड़ पहाड़ी और मैदानी दोनों इलाकों में पाया जाता है| रुद्राक्ष के पेड़ की लम्बाई 50 से लेकर 200 फिट तक होती है| इसके फूलों का रंग सफेद होता है तथा इस पर लगने वाला फल गोल आकार का होता है जिसके अंदर से गुठली रुप में रुद्राक्ष प्राप्त होता है|
रुद्राक्ष भारत, के हिमालय के प्रदेशों में पाए जाते हैं. इसके अतिरिक्त असम, मध्य प्रदेश, उतरांचल, अरूणांचल प्रदेश, बंगाल, हरिद्वार, गढ़वाल और देहरादून के जंगलों में पर्याप्त मात्र में यह रुद्राक्ष पाए जाते हैं| इसके अलावा दक्षिण भारत में नीलगिरि और मैसूर में तथा कर्नाटक में भी रुद्राक्ष के वृक्ष देखे जा सकते हैं| रामेश्वरम में भी रुद्राक्ष पाया जाता है यहां का रुद्राक्ष काजू की भांति होता है| गंगोत्री और यमुनोत्री के क्षेत्र में भी रुद्राक्ष मिलते हैं|
भारत में ये मुख्यतः असम, अरुणांचल प्रदेश एवं देहरादून में पाए जाते हैं । रुद्राक्ष के फल से छिलका उतारकर उसके बीज को पानी में गलाकर साफ किया जाता है। इसके बीज ही रुद्राक्ष रूप में माला आदि बनाने में उपयोग में लाए जाते हैं । इसके अंदर प्राकृतिक छिद्र होते हैं एवं संतरे की तरह फांकें बनी होती हैं जो मुख कहलाती हैं।
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब.–09669290067) के अनुसार रुद्राक्ष की उत्पन्न समन्धी प्रसङ्ग मे पुराण के अनुसार “रुद्राक्ष भगवान शिवजी के आँख के अश्रु से उत्पन्न हुवा गया है!कहा जाता है कि सती की मृत्यु पर शिवजी को बहुत दुख हुआ और उनके आंसू अनेक स्थानों पर गिरे जिससे रुद्राक्ष (रुद्र$अक्ष अर्थात शिव के आंसू) की उत्पत्ति हुई।
भगवान शिव ने अपने पुत्र कुमार से ए भी कहाँ हे कि है “हे कुमार मे सम्पूर्ण देवी देवता के साथ रुद्राक्ष मे विराजमान हु और किसिभी मनुष्य,ऋषि ,साधु ,सन्त रुद्राक्ष को पुजन और धारण करता हे मे उसके कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहता हु !”.
१८ पुराण मे से कुछ पुराण मे ये भी लिखा है कि रुद्राक्ष भगवान शिव शंकर भोले बाबा के शरीर से कुछ बुन्द पसीना गिरने से भी उत्पन हुवा है! ये लिखा है कि रुद्राक्ष के पेड भगवान शिव के पसिना से उत्पन हुवा है !भगवान शिव के रुद्राक्ष पेड मे हि विभिन्न प्रकार के रुद्राक्ष उत्पादित होता है ! विभिन्न प्रकार के रुद्राक्ष के जानकारी सभी पुराण मे बिस्तृत कियागया है !
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब.–09669290067) के अनुसार रुद्राक्ष शब्द संस्कृत भाषा से आया हुआ है !संस्कृत भाषामे रुद्राक्ष दो शब्द से बना हुआ है ! दो शब्द के नाम रुद्र + आक्ष है जिसमे रुद्र भगवान शिव के अनेक नामो मे से एक है और आक्ष का अर्थ—आँख के आंसू होता है !
रुद्राक्ष भगवान शिव की आँख के आंसू के बुन्द से उत्पन्न होने के कारण रुद्राक्ष नाम पडा हुवा है !
इकलौता रुद्राक्ष की पेड़ मे विभिन्न प्रकार और भेद के रुद्राक्ष दाना(फल) पाया जाता है ! रुद्राक्ष प्रकार के सम्पूर्ण जानकारी पुराण मे मिलाजासकता है ! रुद्राक्ष के प्रकार और रुप को रुद्राक्ष मुखी कहते है और जाना जा सकता है ! रुद्राक्ष १ से 14 मुखी तक पुराण मे उल्लेख कियागया है और आजकाल रुद्राक्ष १५ से २१ मुखी रुद्राक्ष तक भी मिला गया है ! ये १५ से २१ मुखी रुद्राक्ष को भी बहुत अच्छा मानाजाता है और ये दुर्लभ भी होता है !
प्रत्यक रुद्राक्ष के दाना(फल) मे मुखी होता है ! मुखी का अर्थ है रुद्राक्ष मे होने वाला प्राकृतिक धार! विभिन्न प्रकारके रुद्राक्ष मे विभिन्न मात्रामे धार होता है ! कुछ रुद्राक्ष मे १ धार होता और कुछ मे २ धार , कुछमे ३ और र कुछ मे १० धार भी होता है ! रुद्राक्ष दाना(फल) मे हुवा होगा धारी को आंख और हाथ से गिन्ना मिलसकता है!रुद्राक्ष का प्रकार वोही धार की संख्या से होती है !रुद्राक्ष के पेड़ मे कोई भी मुखी(किसी भी संख्या मे धार हुवा रुद्राक्ष) उत्पादित होता है !येही फरक हे कि कुछ रुद्राक्ष पाने के लिए दुर्लब होता है !इकलौता पेड़ मे सबी रुद्राक्ष के मुखी संयुक्त होकर फलता है ! ज्यादा जैसा रुद्राक्ष के पेड़ मे एकिसाथ २,३,४.५ मुखी भी वोही और ज्यादा अनेक मुखी भी उसी पेड़ मे फलता है ! रुद्राक्ष के पेड़ मे किसी मुखी भी फल सकता है !
रुद्राक्ष के पेड के लिए विभिन्न मुखी के लिए हवा पानी का भी असर पड़ता है !
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब.–09669290067) के अनुसार रुद्राक्ष मे होने वाला ‘रुद्राक्ष मुखी’ और ‘रुद्राक्ष प्रकार’ पहिचान रुद्राक्ष मे होने वाला धार से किया जाता है ! रुद्राक्ष के प्रकार के नाम पहिचान भी वोही रुद्राक्ष मे होने वाला धार की संख्या से राखा जाता है ! उदाहरण के लिए – मात्र एक धार होने वाला रुद्राक्ष दाना(फल) को एक मुखी रुद्राक्ष कहाँ जाता है , १० धार होने वाला रुद्राक्ष को ‘दश मुखी रुद्राक्ष’ रुद्राक्ष कहा जाता है ! रुद्राक्ष मे जित्ना धार हो उसी अनुसार से मुखी पहिचान नाम दिया जाता है ! आजतक नेपाल मे १ मुखी से २१ मुखी तक उत्पादन हुवा है ! २१ मुखी रुद्राक्ष मे २१ धार होता है ! मैने ये भी सुना है की नेपाल मे २७ मुखी रुद्राक्ष भी फला हुवा है जिसमे २७ धार होता ,ये रुद्राक्ष बहुत दुर्लभ होता है ! सम्पूर्ण रुद्राक्ष प्रकार के देवी देवता का महत्व और पुजन और धारण का फल हमारे हिन्दु धर्म के पुराण मे दिया हुवा हे !
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कैसे करें असली रुद्राक्ष की पहचान..????
रुद्राक्ष की पहचान के लिए रुद्राक्ष को कुछ घंटे के लिए पानी में उबालें यदि रुद्राक्ष का रंग न निकले या उस पर किसी प्रकार का कोई असर न हो, तो वह असली होगा। इसके अलावा आप रुद्राक्ष को पानी में डाल दें अगर वह डूब जाता है तो असली नहीं नहीं नकली। लेकिन यह जांच अच्छी नहीं मानी जाती है क्योंकि रुद्राक्ष के डूबने या तैरने की क्षमता उसके घनत्व एवं कच्चे या पके होने पर निर्भर करती है और रुद्राक्ष मेटल या किसी अन्य भारी चीज से भी बना रुद्राक्ष भी पानी में डूब जाता है। रुद्राक्ष सरसों के तेल मे डालने पर रुद्राक्ष अपने रंग से गहरा दिखे तो समझो वो एक दम असली है।
1- रूद्राक्ष को जल में डालने से यह डूब जाये तो असली अन्यथा नकली। किन्तु अब यह पहचान व्यापारियों के शिल्प ने समाप्त कर दी। शीशम की लकड़ी के बने रूद्राक्ष आसानी से पानी में डूब जाते हैं।
2- तांबे का एक टुकड़ा नीचे रखकर उसके ऊपर रूद्राक्ष रखकर फिर दूसरा तांबे का टुकड़ा रूद्राक्ष के ऊपर रख दिया जाये और एक अंगुली से हल्के से दबाया जाये तो असली रूद्राक्ष नाचने लगता है। यह पहचान अभी तक प्रमाणिक हैं।
3- शुद्ध सरसों के तेल में रूद्राक्ष को डालकर 10 मिनट तक गर्म किया जाये तो असली रूद्र्राक्ष होने पर वह अधिक चमकदार हो जायेगा और यदि नकली है तो वह धूमिल हो जायेगा। प्रायः पानी में डूबने वाला रूद्राक्ष असली और जो पानी पर तैर जाए उसे नकली माना जाता है।लेकिन यह सच नहीं है। पका हुआ रूद्राक्ष पानी में डूब जाता है जबकी कच्चा रूद्राक्ष पानी पर तैर जाता है। इसलिए इस प्रक्रिया से रूद्राक्ष के पके या कच्चे होने का पता तो लग सकता है, असली या नकली होने का नहीं।
4) प्रायः गहरे रंग के रूद्राक्ष को अच्छा माना जाता है और हल्के रंग वाले को नहीं। असलियत में रूद्राक्ष का छिलका उतारने के बाद उस पर रंग चढ़ाया जाता है। बाजार में मिलने वाली रूद्राक्ष की मालाओं को पिरोने के बाद पीले रंग से रंगा जाता है। रंग कम होने से कभी- कभी हल्का रह जाता है। काले और गहरे भूरे रंग के दिखने वाले रूद्राक्ष प्रायः इस्तेमाल किए हुए होते हैं, ऐसा रूद्राक्ष के तेल या पसीने के संपर्क में आने से होता है।
5) कुछ रूद्राक्षों में प्राकृतिक रूप से छेद होता है ऐसे रूद्राक्ष बहुत शुभ माने जाते हैं। जबकि ज्यादातर रूद्राक्षों में छेद करना पड़ता है।
7) दो अंगूठों या दो तांबे के सिक्कों के बीच घूमने वाला रूद्राक्ष असली है यह भी एक भ्रांति ही है। इस तरह रखी गई वस्तु किसी दिशा में तो घूमेगी ही। यह उस पर दिए जाने दबाव पर निर्भर करता है।
8) रूद्राक्ष की पहचान के लिए उसे सुई से कुरेदें। अगर रेशा निकले तो असली और न निकले तो नकली होगा।
9) नकली रूद्राक्ष के उपर उभरे पठार एकरूप हों तो वह नकली रूद्राक्ष है। असली रूद्राक्ष की उपरी सतह कभी भी एकरूप नहीं होगी। जिस तरह दो मनुष्यों के फिंगरप्रिंट एक जैसे नहीं होते उसी तरह दो रूद्राक्षों के उपरी पठार समान नहीं होते। हां नकली रूद्राक्षों में कितनों के ही उपरी पठार समान हो सकते हैं।
10) कुछ रूद्राक्षों पर शिवलिंग, त्रिशूल या सांप आदी बने होते हैं। यह प्राकृतिक रूप से नहीं बने होते बल्कि कुशल कारीगरी का नमूना होते हैं। रूद्राक्ष को पीसकर उसके बुरादे से यह आकृतियां बनाई जाती हैं। इनकी पहचान का तरीका आगे लिखूंगा।
11) कभी-कभी दो या तीन रूद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े होते हैं। इन्हें गौरी शंकर या गौरी पाठ रूद्राक्ष कहते हैं। इनका मूल्य काफी अधिक होता है इस कारण इनके नकली होने की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाती है। कुशल कारीगर दो या अधिक रूद्राक्षों को मसाले से चिपकाकर इन्हें बना देते हैं।
12) प्रायः पांच मुखी रूद्राक्ष के चार मुंहों को मसाला से बंद कर एक मुखी कह कर बेचा जाता है जिससे इनकी कीमत बहुत बढ़ जाती है। ध्यान से देखने पर मसाला भरा हुआ दिखायी दे जाता है। कभी-कभी पांच मुखी रूद्राक्ष को कुशल कारीगर और धारियां बना अधिक मुख का बना देते हैं। जिससे इनका मूल्य बढ़ जाता है।
13) प्राकृतिक तौर पर बनी धारियों या मुख के पास के पठार उभरे हुए होते हैं जबकी मानव निर्मित पठार सपाट होते हैं। ध्यान से देखने पर इस बात का पता चल जाता है। इसी के साथ मानव निर्मित मुख एकदम सीधे होते हैं जबकि प्राकृतिक रूप से बने मुख पूरी तरह से सीधे नहीं होते।
14) प्रायः बेर की गुठली पर रंग चढ़ाकर उन्हें असली रूद्राक्ष कहकर बेच दिया जाता है। रूद्राक्ष की मालाओं में बेर की गुठली का ही उपयोग किया जाता है।
15) रूद्राक्ष की पहचान का तरीका- एक कटोरे में पानी उबालें। इस उबलते पानी में एक-दो मिनट के लिए रूद्राक्ष डाल दें। कटोरे को चूल्हे से उतारकर ढक दें। दो चार मिनट बाद ढक्कन हटा कर रूद्राक्ष निकालकर ध्यान से देखें।
—यदि रूद्राक्ष में जोड़ लगाया होगा तो वहफट जाएगा। दो रूद्राक्षों को चिपकाकर गौरीशंकर रूद्राक्ष बनाया होगा या शिवलिंग, सांप आदी चिपकाए होंगे तो वह अलग हो जाएंगे।
—-जिन रूद्राक्षों में सोल्यूशन भरकर उनके मुख बंद करे होंगे तो उनके मुंह खुल जाएंगे। यदि रूद्राक्ष प्राकृतिक तौर पर फटा होगा तो थोड़ा और फट जाएगा। बेर की गुठली होगी तो नर्म पड़ जाएगी, जबकि असली रूद्राक्ष में अधिक अंतर नहीं पड़ेगा। यदि रूद्राक्ष पर से रंग उतारना हो तो उसे नमक मिले पानी में डालकर गर्म करें उसका रंग हल्का पड़ जाएगा।वैसे रंग करने से रूद्राक्ष को नुकसान नहीं होता है।
—-अकसरयह माना जाता है की पानी में डूबने वाला रुद्राक्ष असली और तैरने वालानकली होता है। यह सत्य नही है रुद्राक्ष का डूबना व तैरना उसके कच्चे पन वतेलियता की मात्रा पर निर्भर होता है पके होने पर व पानी में डूब जायेगा।
—-दुसरा कारण तांबे के दो सिक्को के बीच रुद्राक्ष को रख कर दबाने पर यो घूमताहै यह भी सत्य नही। कोई दबाव अधिक लगायेगा तो वो किसी न किसी दिशा मेंअसली घूमेगा ही इस तरह की और धारणाये है जो की रुद्राक्ष के असली होने काप्रणाम नही देती।
—-असली के लिए रुद्राक्ष को सुई से कुदेरने पर रेशा निकले तोअसली और कोई और रसायन निकले तो नकली असली रुद्राक्ष देखे तो उनके पठार एकदुसरे से मेल नही खाते होगे पर नकली रुद्राक्ष देखो या उनके ऊपरी पठार एकजैसे नजर आयेगा जैसे गोरी शंकर व गोरी पाठ रुद्राक्ष कुदरती रूप से जुड़ेहोते है परन्तु नकली रुद्राक्ष को काट कर इन्हे जोड़ना कुशल कारीगरों कीकला है परन्तु यह कला किसी को फायदा नही दे सकती।
—-ऐसे ही एक मुखी गोल दाना रुद्राक्ष काफी महंगा व अप्राप्त है पर कारीगर इसे भीबना कर लाभ ले रहे है। परन्तु पहनने वाले को इसका दोष लगता है। नकलीरुद्राक्ष की धारिया सीधी होगी पर असली रुद्राक्ष की धारिया आढी टेडी होगी।कभी कबार बेर की गुठली पर रंग चढ़ाकर कारीगर द्वारा उसे रुद्राक्ष काआकार दे कर भी बाजार में बेचा जाता है।
—-इसकी परख के लिए इसे काफी पानी मेंउबालने से पता चल जाता है। परन्तु असल में कुछ नही होता वो पानी ठण्डा होनेपर वैसा ही निकलेगा। कोई भी दो जोड़े हुए रुद्राक्षों को आप अलग करेंगेतो बीच में से वो सपाट निकलेगें परन्तु असली आढा टेढा होकर टुटेगा। नोमुखी से लेकर 21 मुखी व एक मुखी गोल दाना गोरी शंकर ,गोरीपाठ आदि यह मंहगे रुद्राक्ष है।
अन्य रुद्राक्ष-
गणेश रुद्राक्ष- एक मुखी से लेकर चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष के बाद भी कुछ अन्य रुद्राक्ष होते हैं जैसे गणेश रुद्राक्ष| गणेश रुद्राक्ष की पहचान है उस पर प्राकृतिक रूप से रुद्राक्ष पर एक उभरी हुई सुंडाकृति बनी रहती है। यह अत्यंत दुर्लभ तथा शक्तिशाली रुद्राक्ष है। यह गणेशजी की शक्ति तथा सायुज्यता का द्योतक है। धारण करने वाले को यह बुद्धि, रिद्धी-सिद्धी प्रदान कर व्यापार में आश्चर्यजनक प्रगति कराता है। विद्यार्थियों के चित्त में एकाग्रता बढ़ाकर सफलता प्रदान करने में सक्षम होता है। यहाँ रुद्राक्ष आपकी विघ्न-बाधाओं से रक्षा करता है|
गौरीशंकर रुद्राक्ष- यह शिव और शक्ति का मिश्रित स्वरूप माना जाता है। उभयात्मक शिव और शक्ति की संयुक्त कृपा प्राप्त होती है। यह आर्थिक दृष्टि से विशेष सफलता दिलाता है। पारिवारिक सामंजस्य, आकर्षण, मंगलकामनाओं की सिद्धी में सहायक है।
शेषनाग रुद्राक्ष- जिस रुद्राक्ष की पूँछ पर उभरी हुई फनाकृति हो और वह प्राकृतिक रूप से बनी रहती है, उसे शेषनाग रुद्राक्ष कहते हैं। यह अत्यंत ही दुर्लभ रुद्राक्ष है। यह धारक की निरंतर प्रगति कराता है। धन-धान्य, शारीरिक और मानसिक उन्नति में सहायक सिद्ध होता है।
रुद्राक्ष के बड़े दानों की मालाएं छोटे दानों की मालाओं की अपेक्षा सस्ती होती हैं। साफ, स्वच्छ, सख्त, चिकने व साफ मुख दिखाई देने वाले दानों की माला काफी महंगी होती है। रुद्राक्ष के अन्य रूपों में गौरी शंकर, गौरी गणेश, गणेश एवं त्रिजुटी आदि हैं। गौरी शंकर रुद्राक्ष में दो रुद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े होते हैं। ये दोनों रुद्राक्ष गौरी एवं शंकर के प्रतीक हैं। इसे धारण करने से दाम्पत्य जीवन में मधुरता बनी रहती है। इसी प्रकार गौरी गणेश में भी दो रुद्राक्ष जुड़े होते हैं एक बड़ा एक छोटा, मानो पार्वती की गोद में गणेश विराजमान हों।
रुद्राक्ष पहनने में किसी विशेष सावधानी की आवश्यकता नहीं है, लेकिन जिस प्रकार दैवी शक्तियों को हम पवित्र वातावरण में रखने का प्रयास करते हैं, उसी प्रकार रुद्राक्ष पहनकर शुचिता बरती जाए, तो उत्तम है। अतः साधारणतया रुद्राक्ष को रात को उतार कर रख देना चाहिए और प्रातः स्नानादि के पश्चात मंत्र जप कर धारण करना चाहिए। इससे यह रात्रि व प्राः की अशुचिता से बचकर जप की ऊर्जा से परिपूर्ण होकर हमें ऊर्जा प्रदान करता है। शिव सदैव शक्ति के साथ ही पूर्ण हैं। दैवी शक्तियों में लिंग भेद नहीं होता है। स्त्री-पुरुष का भेद केवल पृथ्वी लोक में ही होता है। रुद्राक्ष, जिसमें दैवी शक्तियां विद्यमान हैं, स्त्रियां अवश्य धारण कर सकती हैं।
गौरी शंकर रुद्राक्ष व गौरी गणेश रुद्राक्ष खासकर स्त्रियों के लिए ही हैं। पहला सफल वैवाहिक जीवन के लिए एवं दूसरा संतान सुख के लिए। हां शुचिता की दृष्टि से राजो दर्शन के तीन दिनों तक रुद्राक्ष न धारण किया जाए, तो अच्छा है।
रुद्राक्ष धारण करने के लिए सोमवार को प्रातः काल पहले कच्चे दूध से और फिर गंगाजल से धोकर व अष्टगंध लगाकर ऊँ नमः शिवाय मंत्र का जप कर धारण करना चाहिए।
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कई लोग लाभ के लालच में कैमिकल का इस्तेमाल कर इसका रंग रूप असली रूद्राक्ष जैसा कर देतेहै व इसके ऊपर धारिया बना कर मंहगे भाव में बेच देते है। कई बार दो रुद्राक्षों को बड़ीसफाई से जोड़ कर बेचा जाता है। आपने देखा होगा कि कई रूद्राक्षों पर गणेश, सर्प, शिवलिंग की आकृति बना कर भी लाभ कमाया जाता है।
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब.–09669290067) के अनुसार रूद्राक्ष का उपयोग केवल धारण करने में ही नहीं होता है अपितु हम रूद्राक्ष के माध्यम से किसी भी प्रकार के रोग कुछ ही समय में पूर्णरूप से मुक्ति प्राप्त कर सकते है। ज्योतिष के आधार पर किसी भी ग्रह की शांति के लिए रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। असली रत्न अत्यधिक मंहगा होने के कारण हर व्यक्ति धारण नहीं कर सकता।रूद्राक्ष की महिमा का वर्णन शिवपुराण, रूद्रपुराण, लिंगपुराण श्रीमद्भागवत गीता में पूर्ण रूप से मिलता है। सभी जानते हैं कि रूद्राक्ष को भगवान शिव का पूर्ण प्रतिनिधित्व प्राप्त है।चंद्रमा शिवजी के भाल पर सदा विराजमान रहता है अतः चंद्र ग्रह जनित कोई भी कष्ट हो तो रुद्राक्ष धारण से बिल्कुल दूर हो जाता है। किसी भी प्रकार की मानसिक उद्विग्नता, रोग एवं शनि के द्वारा पीड़ित चंद्र अर्थात साढ़े साती से मुक्ति में रुद्राक्ष अत्यंत उपयोगी है। शिव सर्पों को गले में माला बनाकर धारण करते हैं। अतः काल सर्प जनित कष्टों के निवारण में भी रुद्राक्ष विशेष उपयोगी होता है।
रूद्राक्ष धारण करने से जहां आपको ग्रहों से लाभ प्राप्त होगा वहीं आप शारीरिक रूप से भी स्वस्थ रहेंगे। ऊपरी हवाओं से भी सदैव मुक्त रहेंगे क्योंकि जो व्यक्ति कोई भी रूद्राक्ष धारण करता है उसे भूत पिशाच आदि की कभी भी कोई समस्या नहीं होती है। वह व्यक्ति बिना किसी भय के कहीं भी भ्रमण कर सकता हैं| रुद्राक्ष सिद्धिदायक, पापनाशक, पुण्यवर्धक, रोगनाशक, तथा मोक्ष प्रदान करने वाला है| शिव पुराण में कहा गया है कि रुद्राक्ष या इसकी भस्म को धारण करके ‘नमः शिवाय’ मंत्र का जप करने वाला मनुष्य शिव रूप हो जाता है|
ऐसी और भी अनेक बातों के कारण रूद्राक्ष मंहगे भाव में बेच दिय जाते हैं पर देखा जाये तो जो आदमी अध्यात्मिक विश्वास में रुद्राक्ष खरीदता है अगर उसे ऐसा रुद्राक्ष मिल जाये तो उसे कोई लाभ नही बल्कि उसके अध्यात्मिक मन के साथ धोखा होता है। आप ने कभी भी कोई रुद्राक्ष लेना तो विश्वसनीय स्थान से ही खरीदे। परन्तु आप भी अपने ढंग से जान सकते है असली और नकली रुद्राक्ष कैसे होते है।
शास्त्रों में कहा गया है की जो भक्त रुद्राक्ष धारण करते हैं भगवान भोलेनाथ उनसे हमेशा प्रसन्न रहते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है अक्सर लोगों को रुद्राक्ष की असली माला नहीं मिल पाती है जिससे भगवान शिव की आराधना में खासा प्रभाव नहीं पड़ता है। अब हम आपको रुद्राक्ष के बारे में कुछ जानकारियां देने जा रहे हैं जिसके द्वारा आप असली और नकली रूद्राक्ष की पहचान कर सकते है और किस तरह नकली रूद्राक्ष बनाया जाता है…रुद्राक्ष तन-मन की बहुत सी बीमारियों में राहत पहुँचाता है। इसे पहनने से दिल की धड़कन तथा रक्तचाप नियंत्रण में रहता है। ऐसा कहा जाता है कि रुद्राक्ष धारण करनेवाले व्यक्ति को देर से बुढ़ापा आता है।
रुद्राक्ष क्या है ?
– रुद्राक्ष (English name :- “Rudraksh // Rudraksha”) एक किसिम के दाना(फल) हे !
रुद्राक्ष के वृक्ष और पेड़ को ‘रुद्राक्ष के पेड़’ कहते है ! वही महत्वपूर्ण पेड़ मे फल्ने वाला दाना(फल) को ही रुद्राक्ष कहते हे !हिन्दु धर्म मे रुद्राक्ष के पेड़ और रुद्राक्षदाना दोनो का बराबर महत्वपूर्ण हे ! आज भी हम विभिन्न घरवो मे रुद्राक्ष के पेड़ को पुजा कररहे और रुद्राक्ष समन्धी ज्ञात महापुरुष भक्तोने एक दाना रुद्राक्ष को लकेट बनाकर और १०८ रुद्राक्ष दाना से बनाहुवा रुद्राक्ष की माला गले मे धारण किया हुवा देख्ने मे मिलसकता है !हिन्दु धर्म मे रुद्राक्ष के बहुत उचाई हे ! ये भी कहाँगया हे की रुद्राक्ष स्वोयम भगवान शिव ही हे और रुद्राक्ष दाना भगवान महादेव(पशुपतिनाथ) जी के प्रिये आभूषण भी हे! रुद्राक्ष से समन्धीत सम्पूर्ण जानकारी हमारे हिन्दु धर्म के विभिन्न ज्ञानबर्द्धक पुस्तको और बढे बढे पुस्तक जैसे शिव पुराण,देवी भागवत गीता मे सम्पूर्ण जानकारी सहित मिलता है और विस्तार किया गया हे !
रुद्राक्ष के वृक्ष विशेषकर नेपाल मे मिलता है!कीसी भी अवस्था में यदि दुसरा स्थान मिल जाएगी तो भक्त जनको नेपाल का ही रुद्राक्ष पुजा और धारण करने मे लाभदायिक होगा क्युकी नेपाल का रुद्राक्ष ही शक्तिशालि होता है ! इंडिया मे भी किसी किसी जगामे रुद्राक्ष मिलता है लेकिन नेपाल की तरह गुणवत्ता नही होती है !भारत मे खासकर रुद्राक्ष आसम और हरिद्वार मे मिलता है लेकिन रुद्राक्ष मे ज्यादा तर छेद नही होता है ! रुद्राक्ष आदिकाल से बढे बढे ऋषि,मुनि,साधु,सन्त,तपवस्यीने पसंद और रोजा हुवा है !भारत से विभिन्न श्रदालु भक्तजन नेपाल भ्रमण मे श्री पशुपतिनाथ मन्दिर दर्शन करके यहाँ से रुद्राक्ष खरिद कर लेजाते है !नेपाल मे रुद्राक्ष खासकर काठमाडौँ,झापा,सिन्धुपाल्चोव्क ,भोजपुर.बिराटनगर,काब्रे आदि विभिन्न जगहों मे उत्पादन होता है !
रुद्राक्ष के पेड़ भारत समेत विश्व के अनेक देशों में पाए जाते हैं| भारत में रुद्राक्ष के पेड़ पहाड़ी और मैदानी दोनों इलाकों में पाया जाता है| रुद्राक्ष के पेड़ की लम्बाई 50 से लेकर 200 फिट तक होती है| इसके फूलों का रंग सफेद होता है तथा इस पर लगने वाला फल गोल आकार का होता है जिसके अंदर से गुठली रुप में रुद्राक्ष प्राप्त होता है|
रुद्राक्ष भारत, के हिमालय के प्रदेशों में पाए जाते हैं. इसके अतिरिक्त असम, मध्य प्रदेश, उतरांचल, अरूणांचल प्रदेश, बंगाल, हरिद्वार, गढ़वाल और देहरादून के जंगलों में पर्याप्त मात्र में यह रुद्राक्ष पाए जाते हैं| इसके अलावा दक्षिण भारत में नीलगिरि और मैसूर में तथा कर्नाटक में भी रुद्राक्ष के वृक्ष देखे जा सकते हैं| रामेश्वरम में भी रुद्राक्ष पाया जाता है यहां का रुद्राक्ष काजू की भांति होता है| गंगोत्री और यमुनोत्री के क्षेत्र में भी रुद्राक्ष मिलते हैं|
भारत में ये मुख्यतः असम, अरुणांचल प्रदेश एवं देहरादून में पाए जाते हैं । रुद्राक्ष के फल से छिलका उतारकर उसके बीज को पानी में गलाकर साफ किया जाता है। इसके बीज ही रुद्राक्ष रूप में माला आदि बनाने में उपयोग में लाए जाते हैं । इसके अंदर प्राकृतिक छिद्र होते हैं एवं संतरे की तरह फांकें बनी होती हैं जो मुख कहलाती हैं।
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब.–09669290067) के अनुसार रुद्राक्ष की उत्पन्न समन्धी प्रसङ्ग मे पुराण के अनुसार “रुद्राक्ष भगवान शिवजी के आँख के अश्रु से उत्पन्न हुवा गया है!कहा जाता है कि सती की मृत्यु पर शिवजी को बहुत दुख हुआ और उनके आंसू अनेक स्थानों पर गिरे जिससे रुद्राक्ष (रुद्र$अक्ष अर्थात शिव के आंसू) की उत्पत्ति हुई।
भगवान शिव ने अपने पुत्र कुमार से ए भी कहाँ हे कि है “हे कुमार मे सम्पूर्ण देवी देवता के साथ रुद्राक्ष मे विराजमान हु और किसिभी मनुष्य,ऋषि ,साधु ,सन्त रुद्राक्ष को पुजन और धारण करता हे मे उसके कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहता हु !”.
१८ पुराण मे से कुछ पुराण मे ये भी लिखा है कि रुद्राक्ष भगवान शिव शंकर भोले बाबा के शरीर से कुछ बुन्द पसीना गिरने से भी उत्पन हुवा है! ये लिखा है कि रुद्राक्ष के पेड भगवान शिव के पसिना से उत्पन हुवा है !भगवान शिव के रुद्राक्ष पेड मे हि विभिन्न प्रकार के रुद्राक्ष उत्पादित होता है ! विभिन्न प्रकार के रुद्राक्ष के जानकारी सभी पुराण मे बिस्तृत कियागया है !
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब.–09669290067) के अनुसार रुद्राक्ष शब्द संस्कृत भाषा से आया हुआ है !संस्कृत भाषामे रुद्राक्ष दो शब्द से बना हुआ है ! दो शब्द के नाम रुद्र + आक्ष है जिसमे रुद्र भगवान शिव के अनेक नामो मे से एक है और आक्ष का अर्थ—आँख के आंसू होता है !
रुद्राक्ष भगवान शिव की आँख के आंसू के बुन्द से उत्पन्न होने के कारण रुद्राक्ष नाम पडा हुवा है !
इकलौता रुद्राक्ष की पेड़ मे विभिन्न प्रकार और भेद के रुद्राक्ष दाना(फल) पाया जाता है ! रुद्राक्ष प्रकार के सम्पूर्ण जानकारी पुराण मे मिलाजासकता है ! रुद्राक्ष के प्रकार और रुप को रुद्राक्ष मुखी कहते है और जाना जा सकता है ! रुद्राक्ष १ से 14 मुखी तक पुराण मे उल्लेख कियागया है और आजकाल रुद्राक्ष १५ से २१ मुखी रुद्राक्ष तक भी मिला गया है ! ये १५ से २१ मुखी रुद्राक्ष को भी बहुत अच्छा मानाजाता है और ये दुर्लभ भी होता है !
प्रत्यक रुद्राक्ष के दाना(फल) मे मुखी होता है ! मुखी का अर्थ है रुद्राक्ष मे होने वाला प्राकृतिक धार! विभिन्न प्रकारके रुद्राक्ष मे विभिन्न मात्रामे धार होता है ! कुछ रुद्राक्ष मे १ धार होता और कुछ मे २ धार , कुछमे ३ और र कुछ मे १० धार भी होता है ! रुद्राक्ष दाना(फल) मे हुवा होगा धारी को आंख और हाथ से गिन्ना मिलसकता है!रुद्राक्ष का प्रकार वोही धार की संख्या से होती है !रुद्राक्ष के पेड़ मे कोई भी मुखी(किसी भी संख्या मे धार हुवा रुद्राक्ष) उत्पादित होता है !येही फरक हे कि कुछ रुद्राक्ष पाने के लिए दुर्लब होता है !इकलौता पेड़ मे सबी रुद्राक्ष के मुखी संयुक्त होकर फलता है ! ज्यादा जैसा रुद्राक्ष के पेड़ मे एकिसाथ २,३,४.५ मुखी भी वोही और ज्यादा अनेक मुखी भी उसी पेड़ मे फलता है ! रुद्राक्ष के पेड़ मे किसी मुखी भी फल सकता है !
रुद्राक्ष के पेड के लिए विभिन्न मुखी के लिए हवा पानी का भी असर पड़ता है !
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब.–09669290067) के अनुसार रुद्राक्ष मे होने वाला ‘रुद्राक्ष मुखी’ और ‘रुद्राक्ष प्रकार’ पहिचान रुद्राक्ष मे होने वाला धार से किया जाता है ! रुद्राक्ष के प्रकार के नाम पहिचान भी वोही रुद्राक्ष मे होने वाला धार की संख्या से राखा जाता है ! उदाहरण के लिए – मात्र एक धार होने वाला रुद्राक्ष दाना(फल) को एक मुखी रुद्राक्ष कहाँ जाता है , १० धार होने वाला रुद्राक्ष को ‘दश मुखी रुद्राक्ष’ रुद्राक्ष कहा जाता है ! रुद्राक्ष मे जित्ना धार हो उसी अनुसार से मुखी पहिचान नाम दिया जाता है ! आजतक नेपाल मे १ मुखी से २१ मुखी तक उत्पादन हुवा है ! २१ मुखी रुद्राक्ष मे २१ धार होता है ! मैने ये भी सुना है की नेपाल मे २७ मुखी रुद्राक्ष भी फला हुवा है जिसमे २७ धार होता ,ये रुद्राक्ष बहुत दुर्लभ होता है ! सम्पूर्ण रुद्राक्ष प्रकार के देवी देवता का महत्व और पुजन और धारण का फल हमारे हिन्दु धर्म के पुराण मे दिया हुवा हे !
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कैसे करें असली रुद्राक्ष की पहचान..????
रुद्राक्ष की पहचान के लिए रुद्राक्ष को कुछ घंटे के लिए पानी में उबालें यदि रुद्राक्ष का रंग न निकले या उस पर किसी प्रकार का कोई असर न हो, तो वह असली होगा। इसके अलावा आप रुद्राक्ष को पानी में डाल दें अगर वह डूब जाता है तो असली नहीं नहीं नकली। लेकिन यह जांच अच्छी नहीं मानी जाती है क्योंकि रुद्राक्ष के डूबने या तैरने की क्षमता उसके घनत्व एवं कच्चे या पके होने पर निर्भर करती है और रुद्राक्ष मेटल या किसी अन्य भारी चीज से भी बना रुद्राक्ष भी पानी में डूब जाता है। रुद्राक्ष सरसों के तेल मे डालने पर रुद्राक्ष अपने रंग से गहरा दिखे तो समझो वो एक दम असली है।
1- रूद्राक्ष को जल में डालने से यह डूब जाये तो असली अन्यथा नकली। किन्तु अब यह पहचान व्यापारियों के शिल्प ने समाप्त कर दी। शीशम की लकड़ी के बने रूद्राक्ष आसानी से पानी में डूब जाते हैं।
2- तांबे का एक टुकड़ा नीचे रखकर उसके ऊपर रूद्राक्ष रखकर फिर दूसरा तांबे का टुकड़ा रूद्राक्ष के ऊपर रख दिया जाये और एक अंगुली से हल्के से दबाया जाये तो असली रूद्राक्ष नाचने लगता है। यह पहचान अभी तक प्रमाणिक हैं।
3- शुद्ध सरसों के तेल में रूद्राक्ष को डालकर 10 मिनट तक गर्म किया जाये तो असली रूद्र्राक्ष होने पर वह अधिक चमकदार हो जायेगा और यदि नकली है तो वह धूमिल हो जायेगा। प्रायः पानी में डूबने वाला रूद्राक्ष असली और जो पानी पर तैर जाए उसे नकली माना जाता है।लेकिन यह सच नहीं है। पका हुआ रूद्राक्ष पानी में डूब जाता है जबकी कच्चा रूद्राक्ष पानी पर तैर जाता है। इसलिए इस प्रक्रिया से रूद्राक्ष के पके या कच्चे होने का पता तो लग सकता है, असली या नकली होने का नहीं।
4) प्रायः गहरे रंग के रूद्राक्ष को अच्छा माना जाता है और हल्के रंग वाले को नहीं। असलियत में रूद्राक्ष का छिलका उतारने के बाद उस पर रंग चढ़ाया जाता है। बाजार में मिलने वाली रूद्राक्ष की मालाओं को पिरोने के बाद पीले रंग से रंगा जाता है। रंग कम होने से कभी- कभी हल्का रह जाता है। काले और गहरे भूरे रंग के दिखने वाले रूद्राक्ष प्रायः इस्तेमाल किए हुए होते हैं, ऐसा रूद्राक्ष के तेल या पसीने के संपर्क में आने से होता है।
5) कुछ रूद्राक्षों में प्राकृतिक रूप से छेद होता है ऐसे रूद्राक्ष बहुत शुभ माने जाते हैं। जबकि ज्यादातर रूद्राक्षों में छेद करना पड़ता है।
7) दो अंगूठों या दो तांबे के सिक्कों के बीच घूमने वाला रूद्राक्ष असली है यह भी एक भ्रांति ही है। इस तरह रखी गई वस्तु किसी दिशा में तो घूमेगी ही। यह उस पर दिए जाने दबाव पर निर्भर करता है।
8) रूद्राक्ष की पहचान के लिए उसे सुई से कुरेदें। अगर रेशा निकले तो असली और न निकले तो नकली होगा।
9) नकली रूद्राक्ष के उपर उभरे पठार एकरूप हों तो वह नकली रूद्राक्ष है। असली रूद्राक्ष की उपरी सतह कभी भी एकरूप नहीं होगी। जिस तरह दो मनुष्यों के फिंगरप्रिंट एक जैसे नहीं होते उसी तरह दो रूद्राक्षों के उपरी पठार समान नहीं होते। हां नकली रूद्राक्षों में कितनों के ही उपरी पठार समान हो सकते हैं।
10) कुछ रूद्राक्षों पर शिवलिंग, त्रिशूल या सांप आदी बने होते हैं। यह प्राकृतिक रूप से नहीं बने होते बल्कि कुशल कारीगरी का नमूना होते हैं। रूद्राक्ष को पीसकर उसके बुरादे से यह आकृतियां बनाई जाती हैं। इनकी पहचान का तरीका आगे लिखूंगा।
11) कभी-कभी दो या तीन रूद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े होते हैं। इन्हें गौरी शंकर या गौरी पाठ रूद्राक्ष कहते हैं। इनका मूल्य काफी अधिक होता है इस कारण इनके नकली होने की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाती है। कुशल कारीगर दो या अधिक रूद्राक्षों को मसाले से चिपकाकर इन्हें बना देते हैं।
12) प्रायः पांच मुखी रूद्राक्ष के चार मुंहों को मसाला से बंद कर एक मुखी कह कर बेचा जाता है जिससे इनकी कीमत बहुत बढ़ जाती है। ध्यान से देखने पर मसाला भरा हुआ दिखायी दे जाता है। कभी-कभी पांच मुखी रूद्राक्ष को कुशल कारीगर और धारियां बना अधिक मुख का बना देते हैं। जिससे इनका मूल्य बढ़ जाता है।
13) प्राकृतिक तौर पर बनी धारियों या मुख के पास के पठार उभरे हुए होते हैं जबकी मानव निर्मित पठार सपाट होते हैं। ध्यान से देखने पर इस बात का पता चल जाता है। इसी के साथ मानव निर्मित मुख एकदम सीधे होते हैं जबकि प्राकृतिक रूप से बने मुख पूरी तरह से सीधे नहीं होते।
14) प्रायः बेर की गुठली पर रंग चढ़ाकर उन्हें असली रूद्राक्ष कहकर बेच दिया जाता है। रूद्राक्ष की मालाओं में बेर की गुठली का ही उपयोग किया जाता है।
15) रूद्राक्ष की पहचान का तरीका- एक कटोरे में पानी उबालें। इस उबलते पानी में एक-दो मिनट के लिए रूद्राक्ष डाल दें। कटोरे को चूल्हे से उतारकर ढक दें। दो चार मिनट बाद ढक्कन हटा कर रूद्राक्ष निकालकर ध्यान से देखें।
—यदि रूद्राक्ष में जोड़ लगाया होगा तो वहफट जाएगा। दो रूद्राक्षों को चिपकाकर गौरीशंकर रूद्राक्ष बनाया होगा या शिवलिंग, सांप आदी चिपकाए होंगे तो वह अलग हो जाएंगे।
—-जिन रूद्राक्षों में सोल्यूशन भरकर उनके मुख बंद करे होंगे तो उनके मुंह खुल जाएंगे। यदि रूद्राक्ष प्राकृतिक तौर पर फटा होगा तो थोड़ा और फट जाएगा। बेर की गुठली होगी तो नर्म पड़ जाएगी, जबकि असली रूद्राक्ष में अधिक अंतर नहीं पड़ेगा। यदि रूद्राक्ष पर से रंग उतारना हो तो उसे नमक मिले पानी में डालकर गर्म करें उसका रंग हल्का पड़ जाएगा।वैसे रंग करने से रूद्राक्ष को नुकसान नहीं होता है।
—-अकसरयह माना जाता है की पानी में डूबने वाला रुद्राक्ष असली और तैरने वालानकली होता है। यह सत्य नही है रुद्राक्ष का डूबना व तैरना उसके कच्चे पन वतेलियता की मात्रा पर निर्भर होता है पके होने पर व पानी में डूब जायेगा।
—-दुसरा कारण तांबे के दो सिक्को के बीच रुद्राक्ष को रख कर दबाने पर यो घूमताहै यह भी सत्य नही। कोई दबाव अधिक लगायेगा तो वो किसी न किसी दिशा मेंअसली घूमेगा ही इस तरह की और धारणाये है जो की रुद्राक्ष के असली होने काप्रणाम नही देती।
—-असली के लिए रुद्राक्ष को सुई से कुदेरने पर रेशा निकले तोअसली और कोई और रसायन निकले तो नकली असली रुद्राक्ष देखे तो उनके पठार एकदुसरे से मेल नही खाते होगे पर नकली रुद्राक्ष देखो या उनके ऊपरी पठार एकजैसे नजर आयेगा जैसे गोरी शंकर व गोरी पाठ रुद्राक्ष कुदरती रूप से जुड़ेहोते है परन्तु नकली रुद्राक्ष को काट कर इन्हे जोड़ना कुशल कारीगरों कीकला है परन्तु यह कला किसी को फायदा नही दे सकती।
—-ऐसे ही एक मुखी गोल दाना रुद्राक्ष काफी महंगा व अप्राप्त है पर कारीगर इसे भीबना कर लाभ ले रहे है। परन्तु पहनने वाले को इसका दोष लगता है। नकलीरुद्राक्ष की धारिया सीधी होगी पर असली रुद्राक्ष की धारिया आढी टेडी होगी।कभी कबार बेर की गुठली पर रंग चढ़ाकर कारीगर द्वारा उसे रुद्राक्ष काआकार दे कर भी बाजार में बेचा जाता है।
—-इसकी परख के लिए इसे काफी पानी मेंउबालने से पता चल जाता है। परन्तु असल में कुछ नही होता वो पानी ठण्डा होनेपर वैसा ही निकलेगा। कोई भी दो जोड़े हुए रुद्राक्षों को आप अलग करेंगेतो बीच में से वो सपाट निकलेगें परन्तु असली आढा टेढा होकर टुटेगा। नोमुखी से लेकर 21 मुखी व एक मुखी गोल दाना गोरी शंकर ,गोरीपाठ आदि यह मंहगे रुद्राक्ष है।
अन्य रुद्राक्ष-
गणेश रुद्राक्ष- एक मुखी से लेकर चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष के बाद भी कुछ अन्य रुद्राक्ष होते हैं जैसे गणेश रुद्राक्ष| गणेश रुद्राक्ष की पहचान है उस पर प्राकृतिक रूप से रुद्राक्ष पर एक उभरी हुई सुंडाकृति बनी रहती है। यह अत्यंत दुर्लभ तथा शक्तिशाली रुद्राक्ष है। यह गणेशजी की शक्ति तथा सायुज्यता का द्योतक है। धारण करने वाले को यह बुद्धि, रिद्धी-सिद्धी प्रदान कर व्यापार में आश्चर्यजनक प्रगति कराता है। विद्यार्थियों के चित्त में एकाग्रता बढ़ाकर सफलता प्रदान करने में सक्षम होता है। यहाँ रुद्राक्ष आपकी विघ्न-बाधाओं से रक्षा करता है|
गौरीशंकर रुद्राक्ष- यह शिव और शक्ति का मिश्रित स्वरूप माना जाता है। उभयात्मक शिव और शक्ति की संयुक्त कृपा प्राप्त होती है। यह आर्थिक दृष्टि से विशेष सफलता दिलाता है। पारिवारिक सामंजस्य, आकर्षण, मंगलकामनाओं की सिद्धी में सहायक है।
शेषनाग रुद्राक्ष- जिस रुद्राक्ष की पूँछ पर उभरी हुई फनाकृति हो और वह प्राकृतिक रूप से बनी रहती है, उसे शेषनाग रुद्राक्ष कहते हैं। यह अत्यंत ही दुर्लभ रुद्राक्ष है। यह धारक की निरंतर प्रगति कराता है। धन-धान्य, शारीरिक और मानसिक उन्नति में सहायक सिद्ध होता है।
रुद्राक्ष के बड़े दानों की मालाएं छोटे दानों की मालाओं की अपेक्षा सस्ती होती हैं। साफ, स्वच्छ, सख्त, चिकने व साफ मुख दिखाई देने वाले दानों की माला काफी महंगी होती है। रुद्राक्ष के अन्य रूपों में गौरी शंकर, गौरी गणेश, गणेश एवं त्रिजुटी आदि हैं। गौरी शंकर रुद्राक्ष में दो रुद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े होते हैं। ये दोनों रुद्राक्ष गौरी एवं शंकर के प्रतीक हैं। इसे धारण करने से दाम्पत्य जीवन में मधुरता बनी रहती है। इसी प्रकार गौरी गणेश में भी दो रुद्राक्ष जुड़े होते हैं एक बड़ा एक छोटा, मानो पार्वती की गोद में गणेश विराजमान हों।
रुद्राक्ष पहनने में किसी विशेष सावधानी की आवश्यकता नहीं है, लेकिन जिस प्रकार दैवी शक्तियों को हम पवित्र वातावरण में रखने का प्रयास करते हैं, उसी प्रकार रुद्राक्ष पहनकर शुचिता बरती जाए, तो उत्तम है। अतः साधारणतया रुद्राक्ष को रात को उतार कर रख देना चाहिए और प्रातः स्नानादि के पश्चात मंत्र जप कर धारण करना चाहिए। इससे यह रात्रि व प्राः की अशुचिता से बचकर जप की ऊर्जा से परिपूर्ण होकर हमें ऊर्जा प्रदान करता है। शिव सदैव शक्ति के साथ ही पूर्ण हैं। दैवी शक्तियों में लिंग भेद नहीं होता है। स्त्री-पुरुष का भेद केवल पृथ्वी लोक में ही होता है। रुद्राक्ष, जिसमें दैवी शक्तियां विद्यमान हैं, स्त्रियां अवश्य धारण कर सकती हैं।
गौरी शंकर रुद्राक्ष व गौरी गणेश रुद्राक्ष खासकर स्त्रियों के लिए ही हैं। पहला सफल वैवाहिक जीवन के लिए एवं दूसरा संतान सुख के लिए। हां शुचिता की दृष्टि से राजो दर्शन के तीन दिनों तक रुद्राक्ष न धारण किया जाए, तो अच्छा है।
रुद्राक्ष धारण करने के लिए सोमवार को प्रातः काल पहले कच्चे दूध से और फिर गंगाजल से धोकर व अष्टगंध लगाकर ऊँ नमः शिवाय मंत्र का जप कर धारण करना चाहिए।
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