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Sunday, October 2, 2016

हम चिल्लाते क्यों हैं गुस्से में? |

हम चिल्लाते क्यों हैं गुस्से में? |

एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। अचानक उन्होंने सभी शिष्यों से एक सवाल पूछा; “बताओ जब दो लोग एक दूसरे पर गुस्सा करते हैं तो जोर-जोर से चिल्लाते क्यों हैं?”
शिष्यों ने कुछ देर सोचा और एक ने उत्तर दिया : “हमअपनी शांति खो चुके होते हैं इसलिए चिल्लाने लगते हैं।”
संत ने मुस्कुराते हुए कहा : दोनों लोग एक दूसरे के काफी करीब होते हैं तो फिर धीरे-धीरे भी तो बात कर सकते हैं। आखिर वह चिल्लाते क्यों हैं?” कुछ और शिष्यों ने भी जवाब दिया लेकिन संत संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने खुद उत्तर देना शुरू किया।
वह बोले : “जब दो लोग एक दूसरे से नाराज होते हैं तो उनके दिलों में दूरियां बहुत बढ़ जाती हैं। जब दूरियां बढ़ जाएं तो आवाज को पहुंचाने के लिए उसका तेज होना जरूरी है। दूरियां जितनी ज्यादा होंगी उतनी तेज चिल्लाना पड़ेगा। दिलों की यह दूरियां ही दो गुस्साए लोगों को चिल्लाने पर मजबूर कर देती हैं।
जब दो लोगों में प्रेम होता है तो वह एक दूसरे से बड़े आराम से और धीरे-धीरे बात करते हैं। प्रेम दिलों को करीब लाता है और करीब तक आवाज पहुंचाने के लिए चिल्लाने की जरूरत नहीं।
जब दो लोगों में प्रेम और भी प्रगाढ़ हो जाता है तो वह खुसफुसा कर भी एक दूसरे तक अपनी बात पहुंचा लेते हैं। इसके बाद प्रेम की एक अवस्था यह भी आती है कि खुसफुसाने की जरूरत भी नहीं पड़ती।
एक दूसरे की आंख में देख कर ही समझ आ जाता है कि क्या कहा जा रहा है।
शिष्यों की तरफ देखते हुए संत बोले : “अब जब भी कभी बहस करें तो दिलों की दूरियों को न बढ़ने दें। शांत चित्त और धीमी आवाज में बात करें। ध्यान रखें कि कहीं दूरियां इतनी न बढ़े जाएं कि वापस आना ही मुमकिन न हो




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Monday, July 18, 2016

Sandeep Maheshwari संदीप माहेश्वरी के ये Quotes आपकी ज़िदगी बदल सकते हैं, क्या आप संदीप माहेश्वरी को जानते हैं

Sandeep Maheshwari
संदीप माहेश्वरी के ये Quotes आपकी ज़िदगी बदल सकते हैं, 
क्या आप संदीप माहेश्वरी को जानते हैं 

Sandeep Maheshwari

Sandeep Maheshwari : क्या आप संदीप माहेश्वरी को जानते हैं ? अगर नही जानते तो आज जान जाइए.. Q कि ये एक ऐसा शख्स हैं जो आपकी ज़िंदगी बदल सकता हैं। कहने को तो “संदीप” एक आम-सा नाम हैं, और आप संदीप नाम के बहुत से लोगो को जानते होंगे.. लेकिन आज हम जिस संदीप के बारे में बताने जा रहे हैं वो स्पेशल हैं ..Q कि इस Sandeep ने न सिर्फ अपनी life चेंज की हैं बल्कि seminaar करके लाखों-करोड़ो लोगो को एक बेहतर ज़िंदगी जीने के लिए inspire किया हैं. आइए जानते हैं ऐसे Quotes जो आपकी ज़िंदगी बदल सकते हैं..


जन्म : 28 सितम्बर 1980, दिल्ली (Age: 34 Years)

क्यों famous हैं? अपनी कंपनी Imagesbazaar.com के लिए, और उससे अधिक अपनी motivational seminars के लिए, जिन्हें आप YouTube पर देख सकते हैं।

शिक्षा : College dropout, B.Com की पढाई अधूरी छोड़ दी।

Awards & Recognition Creative Entrepreneur of the Year 2013 by Entrepreneur India Summit
One of India’s Most Promising Entrepreneurs by “Business World” magazine

Star Youth Achiever Award instituted by the Global Youth Marketing Forum

Young Creative Entrepreneur Award by the British Council, a division of the British High Commission

Pioneer of Tomorrow Award by the “ET Now” television channel



1. अगर मेरे जैसा लड़का जो दब्बू था.. जो शर्माता था.. वो अगर स्टेज पर आकर बोल सकता हैं तो दुनिया का कोई भी आदमी कुछ भी कर सकता हैं।



2. ज़िन्दगी में कभी भी कुछ करना हैं तो सच बोल दो, घुमा-फिरा कर बात मत करो।

3. जो मन करे वही करो.. Q कि यह दिन दोबारा नही आने वाला।

4. आज मैं जो कुछ भी हूँ, अपनी failures की वज़ह से हूँ।

5. सफलता Experience से आती हैं और Experience.. Bad experience से।

6. जो लोग अपनी सोच नही नही बदल सकते वो जिंदगी में कुछ नही बदल सकते।

7. तुम अपने दिमाग को कंट्रोल कर लो, नहीं तो फिर यह तुम्हें कंट्रोल करेगा।

8. किसी भी काम में अगर आप अपना 100% देंगे तो आप सफल हो जाएंगे।

9. पैसा उतना ही ज़रूरी हैं जितना कार में पेट्रोल, न कम, न ज्यादा।

10. जिस व्यक्ति ने अपनी आदतें बदल लीं उसका कल अपने आप बदल जाएगा, और जिसने नहीं बदलीं, उसके साथ कल भी वही होगा जो आज तक होता आया हैं।

11. अगर आप उस इंसान की तलाश कर रहे हैं जो आपकी ज़िन्दगी बदलेगा, तो आईने में देख लें।

12. अगर आप महानता हासिल करना चाहते हैं तो इजाजत लेना बंद किजिए।

13. गलतियां इस बात का सबूत हैं कि आप कम से कम प्रयास तो कर रहे हैं।

14. एक ‘इच्छा’ कुछ नहीं बदलती, एक ‘निर्णय’ कुछ बदलता हैं, लेकिन एक ‘निश्चय’ सब कुछ बदल देता हैं।

15. सफलता हमेशा अकेले में गले लगाती हैं.. लेकिन असफलता हमेशा सबके सामने तमाचा मारेगी.. यही जीवन हैं।

16. चाहे तालियां गूँजें या फीकी पड़ जाएँ, अंतर क्या हैं ? इससे मतलब नहीं है कि आप सफल होते हैं या असफल. बस काम करिये, कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता।

17. मैं सिर्फ good luck को मानता हूँ, bad luck नाम की इस दुनिया में कोई चीज नहीं, क्योंकि जो होता हैं अच्छे के लिए होता हैं। इसका मतलब हमारे साथ कुछ बुरा भी हो रहा हैं तो बुरा लग रहा हैं बुरा हैं नहीं, आज बुरा लग रहा हैं आगे आने वाले टाइम पर पता चलता हैं कि वो भी अच्छे के लिए हुआ हैं।

18. वो क्या सोचेगा…ये मत सोचो…वो भी यही सोच रहा हैं. एक समय लोग मुझसे कहते थे.. ये ले दस रुपये और मेरी photo खींच दे.. अगर मैं यही सोचता कि लोग क्या कहेंगे तो मैं आज यहाँ नहीं होता.. “दुनिया का सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग”।

19. सीखो सबसे, परन्‍तु follow किसी को मत करो।

20. अगर आपके पास ज़रूरत से ज़्यादा हैं तो उसे उनसे बाँटिये जिन्हें इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत हैं।

21. मैं इस वजह से successful नहीं हूँ कि कुछ लोगों को लगता हैं कि मैं successful हूँ.. मैं इस वजह से successful हूँ Q कि मुझे लगता हैं कि मैं successful हूँ..

Note: अगर आप अपने किसी दोस्त की ज़िंदगी बदलना चाहते हैं तो उसे इस पोस्ट के बारे में बताएं। और फेसबुक पर शेयर करना न भूलें।

निवेदन: कृप्या अपने comments के माध्यम से बताएं कि ये Sandeep maheshwari का Quotes आपको कैसे लगे।




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Inspirational Motivational quotes in hindi सुविचार जो जिंदगी बदल दें


Inspirational Motivational quotes in hindi
सुविचार जो जिंदगी बदल दें

सुविचार तो बहुत पढ़े होंगे लेकिन आज जैसे नही पढ़े होंगे। दोस्तों कई बार ऐसा होता हैं कि हम भले ही बड़े motivation के साथ कोई काम शुरू करें पर किन्हीं कारणों से कुछ समय बाद हम अपना motivation lose कर देते हैं, और वापस track पर आना मुश्किल लगने लगता हैं. आज GazabHindi.com पर मैं आपके साथ ऐसी ही state से बाहर निकलने के 30 Motivational quotes in hindi share कर रहा हूँ. उम्मीद हैं, आपको 100% Motivate करेंगे.

Motivational Quotes in hindi

Quote 1. जब लोग आपको Copy करने लगें तो समझ लेना जिंदगी में Success हो रहे हों. (My Whatsapp Status).



Quote 2. कमाओ…कमाते रहो और तब तक कमाओ, जब तक महंगी चीज सस्ती न लगने लगे.

Quote 3. जिस व्यक्ति का लालच खत्म, उसकी तरक्की भी खत्म.

Quote 4. यदि “Plan A” काम नही कर रहा, तो कोई बात नही 25 और Letters बचे हैं उन पर Try करों.

Quote 5. जिस व्यक्ति ने कभी गलती नहीं कि उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की.

Quote 6. भीड़ हौंसला तो देती हैं लेकिन पहचान छिन लेती हैं.

Quote 7. अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने में लग जाती हैं.

Quote 8. कोई भी महान व्यक्ति अवसरों की कमी के बारे में शिकायत नहीं करता.

Quote 9. महानता कभी ना गिरने में नहीं है, बल्कि हर बार गिरकर उठ जाने में है.

Quote 10. जिस चीज में आपका Interest हैं उसे करने का कोई टाईम फिक्स नही होता. चाहे रात के 1 ही क्यों न बजे हो.

Quote 11. अगर आप चाहते हैं कि, कोई चीज अच्छे से हो तो उसे खुद कीजिये.

Quote 12. सिर्फ खड़े होकर पानी देखने से आप नदी नहीं पार कर सकते.

Quote 13. जीतने वाले अलग चीजें नहीं करते, वो चीजों को अलग तरह से करते हैं.

Quote 14. जितना कठिन संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी.

Quote 15. यदि लोग आपके लक्ष्य पर हंस नहीं रहे हैं तो समझो आपका लक्ष्य बहुत छोटा हैं.

Quote 16. विफलता के बारे में चिंता मत करो, आपको बस एक बार ही सही होना हैं.

Quote 17. सबकुछ कुछ नहीं से शुरू हुआ था.

Quote 18. हुनर तो सब में होता हैं फर्क बस इतना होता हैं किसी का छिप जाता हैं तो किसी का छप जाता हैं.

Quote 19. दूसरों को सुनाने के लिऐ अपनी आवाज ऊँची मत करिऐ, बल्कि अपना व्यक्तित्व इतना ऊँचा बनाऐं कि आपको सुनने की लोग मिन्नत करें.

Quote 20. अच्छे काम करते रहिये चाहे लोग तारीफ करें या न करें आधी से ज्यादा दुनिया सोती रहती है ‘सूरज’ फिर भी उगता हैं.

Quote 21. पहचान से मिला काम थोडे बहुत समय के लिए रहता हैं लेकिन काम से मिली पहचान उम्रभर रहती हैं.

Quote 22. जिंदगी अगर अपने हिसाब से जीनी हैं तो कभी किसी के फैन मत बनो.

Quote 23. जब गलती अपनी हो तो हमसे बडा कोई वकील नही जब गलती दूसरो की हो तो हमसे बडा कोई जज नही.

Quote 24. आपका खुश रहना ही आपका बुरा चाहने वालो के लिए सबसे बडी सजा हैं.

Quote 25. कोशिश करना न छोड़े, गुच्छे की आखिरी चाबी भी ताला खोल सकती हैं.

Quote 26. इंतजार करना बंद करो, क्योकिं सही समय कभी नही आता.

Quote 27. जिस दिन आपके Sign #Autograph में बदल जाएंगे, उस दिन आप बड़े आदमी बन जाओगें.

Quote 28. काम इतनी शांति से करो कि सफलता शोर मचा दे.

Quote 29. तब तक पैसे कमाओ जब तक तुम्हारा बैंक बैलेंस तुम्हारे फोन नंबर की तरह न दिखने लगें.

Quote 30. अगर एक हारा हुआ इंसान हारने के बाद भी मुस्करा दे तो जीतने वाला भी जीत की खुशी खो देता हैं. ये हैं मुस्कान की ताकत.



निवेदन: कृपया अपने comments के मध्यम से बताएं कि ये motivational quotes in hindi आपको कैसे लगे.




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Monday, October 19, 2015

King 's Question

King 's  Question



It was summer time. King  Krishnadeva Raya realised  that  his courtiers had  become lazy and slow in their daily routine. Perhaps it was the heat, so to pep
them up, he decided to hold a quiz contest.
He came up with three questions and  told his courtiers that the one who comes up with the most satisfactory  answer  will be rewarded with 10 gold  coins. 

The question were  : What is the greatest thing of all?  What is the best of all things? And,
what  is the quickest thing of all?  Every one  tried  their luck in their bid to win the gold
coins. But none could come up with a satisfactory reply. The king then  turn to his  witty court jester for a reply. Tenali  said,
"Your  honour!  Space is  the greatest of all things. It contains all that has been created."
"And the  best  thing  ? "the  kind  asked.
"Virtue, Your  Honour, "said  Tenali. "There is  nothing  better  then  virtue. "And the  quickest thing? "
"Thought, your Honour,
for a less then a minute, thought  fly to the end of the universe. "
The king  was  very  pleased with the answer and gave Tenali his  reward of 10
gold coins. 



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Wednesday, September 9, 2015

विद्यालय में बच्चों में मिठाई बांटी जा रही थी|

विद्यालय में बच्चों में मिठाई बांटी जा रही थी|
जब एक १० वर्ष
के बालक को मिठाई का टुकड़ा दिया गया तो उसने पूछा : - मिठाई किस बात की है?

कैसा बुद्धीमान रहा होगा वह बालक!
जीभ का लंपट नहीं रहा होगा |

बालक को बताया गया : आज महारानी विक्टोरिया का बर्थडे है.
इसलिये खुशी मनाई जा रही है |

बालक ने फटाक से उस मिठाई के टुकड़े को नाली में फेक दिया और
कहा : रानी विक्टोरिया अंग्रेजो की रानी है और उन अंग्रेजों ने हमको गुलाम बनाया है |
गुलाम बनाने वालों के जन्म दिन की खुशियाँ हम क्यूं मनायें?
हम तो तब खुशियाँ मनायेंगे जब हम
अपने भारत देश को आजाद कर पायेंगे |

उस बालक का नाम था "केशव राम बलिराम हेडगेवार" |
आगे चलकर उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की, जिसके
संस्कार आज दुनिया भर के बच्चों और जवानों के दिल तक पहुँच चुके हैं |

वन्दे मातरम् जय हिन्द जय मातृभूमि


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Sunday, February 1, 2015

Fabulous Motivational Hindi Stories - कमजोर बनाने वाली आवाज़ के प्रति बहरे एवं द्रश्य के प्रति अंधे बने

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Fabulous Motivational Hindi Stories -
 कमजोर बनाने वाली आवाज़ के प्रति बहरे एवं द्रश्य के प्रति अंधे बने 


बहुत  समय  पहले  की  बात  है  एक  सरोवर  में  बहुत  सारे  मेंढक  रहते  थे . सरोवर  के   बीचों -बीच  एक  बहुत  पुराना  धातु   का  खम्भा  भी  लगा  हुआ   था  जिसे  उस  सरोवर  को  बनवाने  वाले  राजा    ने   लगवाया  था . खम्भा  काफी  ऊँचा  था  और  उसकी  सतह  भी  बिलकुल  चिकनी  थी .

एक  दिन  मेंढकों  के  दिमाग  में  आया  कि  क्यों  ना  एक  रेस  करवाई  जाए . रेस  में  भाग  लेने  वाली  प्रतियोगीयों  को  खम्भे  पर  चढ़ना  होगा , और  जो  सबसे  पहले  एक  ऊपर  पहुच  जाएगा  वही  विजेता  माना  जाएगा .

रेस  का  दिन  आ   पंहुचा , चारो  तरफ   बहुत  भीड़  थी ; आस -पास  के  इलाकों  से  भी  कई  मेंढक  इस  रेस  में  हिस्सा   लेने  पहुचे   . माहौल  में  सरगर्मी थी   , हर  तरफ  शोर  ही  शोर  था .
रेस  शुरू  हुई …

लेकिन  खम्भे को देखकर  भीड़  में  एकत्र  हुए  किसी  भी  मेंढक  को  ये  यकीन  नहीं हुआकि  कोई  भी  मेंढक   ऊपर  तक  पहुंच  पायेगा …

हर  तरफ  यही सुनाई  देता …

“ अरे  ये   बहुत  कठिन  है ”

“ वो  कभी  भी  ये  रेस  पूरी  नहीं  कर  पायंगे ”

“ सफलता  का  तो  कोई  सवाल ही  नहीं  , इतने  चिकने  खम्भे पर चढ़ा ही नहीं जा सकता  ”

और  यही  हो  भी  रहा  था , जो भी  मेंढक  कोशिश  करता , वो  थोडा  ऊपर  जाकर  नीचे  गिर  जाता , कई  मेंढक  दो -तीन  बार  गिरने  के  बावजूद  अपने  प्रयास  में  लगे  हुए  थे …

पर  भीड़  तो अभी भी  चिल्लाये  जा  रही  थी , “ ये  नहीं  हो  सकता , असंभव ”, और  वो  उत्साहित  मेंढक  भी ये सुन-सुनकर हताश हो गए और अपना  प्रयास  छोड़  दिया .

लेकिन  उन्ही  मेंढकों  के  बीच  एक  छोटा  सा  मेंढक  था , जो  बार -बार  गिरने  पर  भी  उसी  जोश  के  साथ  ऊपर  चढ़ने  में  लगा  हुआ  था ….वो लगातार   ऊपर  की  ओर  बढ़ता  रहा ,और  अंततः  वह  खम्भे के  ऊपर  पहुच  गया  और इस रेस का  विजेता  बना .

उसकी  जीत  पर  सभी  को  बड़ा  आश्चर्य  हुआ , सभी मेंढक  उसे  घेर  कर  खड़े  हो  गए  और  पूछने  लगे   ,” तुमने  ये  असंभव  काम  कैसे  कर  दिखाया , भला तुम्हे   अपना  लक्ष्य   प्राप्त  करने  की  शक्ति  कहाँ  से  मिली, ज़रा हमें भी तो बताओ कि तुमने ये विजय कैसे प्राप्त की ?”

तभी  पीछे  से  एक  आवाज़  आई … “अरे  उससे  क्या  पूछते  हो , वो  तो  बहरा  है ”

अक्सर हमारे अन्दर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की काबीलियत होती है, पर हम अपने चारों तरफ मौजूद नकारात्मकता की वजह से खुद को कम आंक बैठते हैं और हमने जो बड़े-बड़े सपने देखे होते हैं उन्हें पूरा किये बिना ही अपनी ज़िन्दगी गुजार देते हैं . आवश्यकता  इस बात की है हम हमें कमजोर बनाने वाली हर एक आवाज के प्रति बहरे और ऐसे हर एक दृश्य के प्रति अंधे हो जाएं. और तब हमें सफलता के शिखर पर पहुँचने से कोई नहीं रोक पायेगा.




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Saturday, January 31, 2015

Gautam Budda Prerak Prasang

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 Gautam Budda Prerak Prasang
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एक बार वैशाली के बाहर जाते धम्म प्रचार के लिए जाते हुए गौतम बुद्ध ने देखा कि कुछ सैनिक तेजी से भागती हुयी एक लड़की का पीछा कर रहे हैं। वह डरी हुई लड़की एक कुएं के पास जाकर खड़ी हो गई। वह हांफ रही थी और प्यासी भी थी। बुद्ध ने उस बालिका को अपने पास बुलाया और कहा कि वह उनके लिए कुएं से पानी निकाले, स्वयं भी पिए और उन्हें भी पिलाये। इतनी देर में सैनिक भी वहां पहुँच गये। बुद्ध ने उन सैनिकों को हाथ के संकेत से रुकने को कहा।

उनकी बात पर वह कन्या कुछ झेंपती हुई बोली ‘महाराज! मै एक अछूत कन्या हूँ। मेरे कुएं से पानी निकालने पर जल दूषित हो जायेगा।’

बुद्ध ने उस से फिर कहा ‘पुत्री, बहुत जोर की प्यास लगी है, पहले तुम पानी पिलाओ।’

इतने में वैशाली नरेश भी वहां आ पहुंचे। उन्हें बुद्ध को नमन किया और सोने के बर्तन में केवड़े और गुलाब का सुगन्धित पानी पानी पेश किया। बुद्ध ने उसे लेने से इंकार कर दिया। बुद्ध ने एक बार फिर बालिका से अपनी बात कही। इस बार बालिका ने साहस बटोरकर कुएं से पानी निकल कर स्वयं भी पिया और गौतम बुद्ध को भी पिलाया। पानी पीने के बाद बुद्ध ने बालिका से भय का कारण पूछा। कन्या ने बताया मुझे संयोग से राजा के दरबार में गाने का अवसर मिला था। राजा ने मेरा गीत सुन मुझे अपने गले की माला पुरस्कार में दी। लेकिन उन्हें किसी ने बताया कि मै अछूत कन्या हूँ। यह जानते ही उन्होंने अपने सिपाहियों को मुझे कैद खाने में डाल देने का आदेश दिया। मै किसी तरह उनसे बचकर यहाँ तक पहुंची थी।

इस पर बुद्ध ने कहा, सुनो राजन! यह कन्या अछूत नहीं है, आप अछूत हैं। जिस बालिका के मधुर कंठ से निकले गीत का आपने आनंद उठाया, उसे पुरस्कार दिया, वह अछूत हो ही नहीं सकती। गौतम बुद्ध के सामने वह राजा लज्जित ही हो सकते थे



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Sunday, October 26, 2014

Gautam Budda Prerak Prasang

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 Gautam Budda Prerak Prasang
 
एक बार वैशाली के बाहर जाते धम्म प्रचार के लिए जाते हुए गौतम बुद्ध ने देखा कि कुछ सैनिक तेजी से भागती हुयी एक लड़की का पीछा कर रहे हैं। वह डरी हुई लड़की एक कुएं के पास जाकर खड़ी हो गई। वह हांफ रही थी और प्यासी भी थी। बुद्ध ने उस बालिका को अपने पास बुलाया और कहा कि वह उनके लिए कुएं से पानी निकाले, स्वयं भी पिए और उन्हें भी पिलाये। इतनी देर में सैनिक भी वहां पहुँच गये। बुद्ध ने उन सैनिकों को हाथ के संकेत से रुकने को कहा।

उनकी बात पर वह कन्या कुछ झेंपती हुई बोली ‘महाराज! मै एक अछूत कन्या हूँ। मेरे कुएं से पानी निकालने पर जल दूषित हो जायेगा।’

बुद्ध ने उस से फिर कहा ‘पुत्री, बहुत जोर की प्यास लगी है, पहले तुम पानी पिलाओ।’

इतने में वैशाली नरेश भी वहां आ पहुंचे। उन्हें बुद्ध को नमन किया और सोने के बर्तन में केवड़े और गुलाब का सुगन्धित पानी पानी पेश किया। बुद्ध ने उसे लेने से इंकार कर दिया। बुद्ध ने एक बार फिर बालिका से अपनी बात कही। इस बार बालिका ने साहस बटोरकर कुएं से पानी निकल कर स्वयं भी पिया और गौतम बुद्ध को भी पिलाया। पानी पीने के बाद बुद्ध ने बालिका से भय का कारण पूछा। कन्या ने बताया मुझे संयोग से राजा के दरबार में गाने का अवसर मिला था। राजा ने मेरा गीत सुन मुझे अपने गले की माला पुरस्कार में दी। लेकिन उन्हें किसी ने बताया कि मै अछूत कन्या हूँ। यह जानते ही उन्होंने अपने सिपाहियों को मुझे कैद खाने में डाल देने का आदेश दिया। मै किसी तरह उनसे बचकर यहाँ तक पहुंची थी।

इस पर बुद्ध ने कहा, सुनो राजन! यह कन्या अछूत नहीं है, आप अछूत हैं। जिस बालिका के मधुर कंठ से निकले गीत का आपने आनंद उठाया, उसे पुरस्कार दिया, वह अछूत हो ही नहीं सकती। गौतम बुद्ध के सामने वह राजा लज्जित ही हो सकते थे


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Saturday, October 11, 2014

चाणक्य के 15 अमर वाक्य :

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चाणक्य के 15 अमर वाक्य :



1) दूसरों की गलतियों से सीखो अपने ही ऊपर प्रयोग करके सीखने को तुम्हारी आयु कम पड़ेगी।
2) किसी भी व्यक्ति को बहुत ईमानदार नहीं होना चाहिए। सीधे वृक्ष और व्यक्ति पहले काटे जाते हैं।
3) अगर कोई सर्प जहरीला नहीं है तब भी उसे जहरीला दिखना चाहिए वैसे दंश भले ही न दो पर दंश दे सकने की क्षमता का दूसरों को अहसास करवाते रहना चाहिए।
4) हर मित्रता के पीछे कोई स्वार्थ जरूर होता है, यह कड़वा सच है।
5) कोई भी काम शुरू करने के पहले तीन सवाल अपने आपसे पूछो… मैं ऐसा क्यों करने जा रहा हूँ ? इसका क्या परिणाम होगा ? क्या मैं सफल रहूँगा?
6) भय को नजदीक न आने दो अगर यह नजदीक आये इस पर हमला कर दो यानी भय से भागो मत इसका सामना करो।
7) दुनिया की सबसे बड़ी ताकत पुरुष का विवेक और महिला की सुन्दरता है।
8) काम का निष्पादन करो, परिणाम से मत डरो।
9) सुगंध का प्रसार हवा के रुख का मोहताज़ होता है पर अच्छाई सभी दिशाओं में फैलती है।”
10) ईश्वर चित्र में नहीं चरित्र में बसता है अपनी आत्मा को मंदिर बनाओ।
11) व्यक्ति अपने आचरण से महान होता है जन्म से नहीं।
12) ऐसे व्यक्ति जो आपके स्तर से ऊपर या नीचे के हैं उन्हें दोस्त न बनाओ,वह तुम्हारे कष्ट का कारण बनेगे। समान स्तर के मित्र ही सुखदायक होते हैं।
13) अपने बच्चों को पहले पांच साल तक खूब प्यार करो। छः साल से पंद्रह साल तक कठोर अनुशासन और संस्कार दो। सोलह साल से उनके साथ मित्रवत व्यवहार करो। आपकी संतति ही आपकी सबसे अच्छी मित्र है।”
14) अज्ञानी के लिए किताबें और अंधे के लिए दर्पण एक समान उपयोगी है।
15) शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। शिक्षित व्यक्ति सदैव सम्मान पाता है। शिक्षा की शक्ति के आगे युवा शक्ति और सौंदर्य दोनों ही कमजोर है।



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Sunday, October 5, 2014

BOSS VS LEADER

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BOSS VS LEADER

WHICH IS BETTER ACCORDING TO YOU ??

TANASHAHEE VS DEMOCRACY
WHICH IS BETTER ACCORDING TO U ??







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Sunday, June 8, 2014

सीख वाली कहानी

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सीख वाली कहानी

कर्ज से अच्छे खजूर

एक स्कूल के छात्रों ने एक बार पिकनिक का प्रोग्राम बनाया। सभी बच्चे इसके लिए अपने घर से कुछ न कुछ खास खाने की चीज बनवाकर लाने वाले थे। स्कूल के स्टूडेंट्‍स में एक गरीब छात्र भी था। उसने घर आकर माँ को सारी बात बताई। माँ ने बताया कि घर में बनाने के लिए कोई खास चीज नहीं है। बालक दुखी हो गया।

तभी माँ ने कहा कि घर में कुछ खजूर रखे हैं तू उन्हें ले जा। कुछ देर बाद माँ को लगा कि पिकनिक पर बाकी सभी बच्चे खाने-पीने की अच्छी चीजें लेकर आएँगे, ऐसे में बेटा खजूर ले जाएगा तो ठीक नहीं लगेगा।

माँ ने तुरंत बेटे से कहा कि तुम्हारे पिताजी आने वाले हैं। जैसे ही वे आएँगे, मैं बाजार से अच्‍छी चीज मँगवा लूँगी। बच्चा निराश होकर एक तरफ बैठ गया। थोड़ी देर बाद पिता घर आए। बेटे को उदास बैठा देखकर उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा - क्या हुआ? और पत्नी ने उन्हें सारी बात बताई। पति-पत्नी देर तक आपस में विचार कर रहे थे।

आँगन में बैठा बालक उन्हें देखता रहा उसे दुख था कि उसके कारण उसके माता-पिता परेशानी में हैं। कुछ देर बाद बालक ने देखा कि उसके पिता चप्पल पहनकर बाहर जा रहे हैं। बालक ने पूछा - 'पिताजी क्या जान सकता हूँ कि आप कहाँ जा रहे हैं। बेटा तेरी उदासी मुझसे देखी नहीं जाती, मैं अपने मित्र से कुछ पैसे उधार लेने जा रहा हूँ जिससे तू भी पिकनिक पर ‍अच्छी चीजें ले जा सकेगा।

बालक ने जवाब दिया - नहीं पिताजी उधार माँगना अच्‍छी बात नहीं है। मैं पिकनिक पर ये खजूर ही ले जाऊँगा। कर्ज लेकर शान दिखाना बुरी बात है। पिता ने पुत्र को सीने से लगा लिया। यह बालक पंजाब के लाला लाजपतराय के नाम से विख्‍यात हुआ।
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Thursday, September 12, 2013

Good Story : राजा और बकरा

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Good Story : राजा और  बकरा 



किसी राजा के पास एक बकरा था. एक बार उसने एलान किया की जो कोई एस बकरे को जंगल में चराकर तृप्त करेगा मैं उसे आधा राज्य दे दूंगा. किंतु बकरे का पेट पूरा भरा है या नहीं इसकी परीक्षा मैं खुद करूँगा. इस एलान को सुनकर एक मनुष्य राजा के पास आकर कहने लगा की बकरा चरना कोई बड़ी बात नहीं है.वह बकरे को लेकर जंगल में गया और सारे दिन उसे घास चरता रहा. शाम तक उसने बकरे को खूब घास खिलाई और फिर सोचा की सारे दिन इसने इतनी घास खाई है अब तो इसका पेट भर गया होगा तो अब इसको राजा के पास ले चलूँ. बकरे के साथ वह राजा के पास गया. राजा ने थोड़ी सी हरी घास बकरे के सामने रखी तो बकरा उसे खाने लगा. इसपर राजा ने उस मनुष्य से कहा की तूने उसे पेट भर खिलाया ही नहीं वर्ना वह घास क्यों खाने लगता. बहुतों ने बकरे का पेट भरने का प्रयत्न किया किंतु ज्योंही दरबार में उसके सामने घास डाली जाती की वह खाने लगता. एक सत्संगी ने सोचा इस एलान का कोई रहस्य है, तत्व है. मैं युक्ति से काम लूँगा. वह बकरे को चराने के लिए ले गया. जब भी बकरा घास खाने के लिए जाता तो वह उसे लकड़ी से मार देता. सारे दिन में ऐसा कई बार हुआ. अंत में बकरे ने सोचा की यदि मैं घास खाने का प्रयत्न करूँगा तो मार खानी पड़ेगी. श्याम को वह सत्संगी बकरे को लेकर राजदरबार में लौटा. बकरे को उसने बिलकुल घास नहीं खिलाई थी फिर भी राजा से कहा मैंने इसको भरपेट खिलाया है. अत: यह अब बिलकुल घास नहीं खायेगा. कर लीजिये परीक्षा. राजा से घास डाली लेकिन उस बकरे ने उसे खाया तो क्या देखा और सूंघा तक नहीं. बकरे के मन में यह बात बैठ गयी थी की घास खाऊंगा तो मार पड़ेगी. अत: उसने घास नहीं खाई.
यह बकरा हमारा मन ही है. बकरे को घास चराने ले जाने वाला जीवात्मा है. राजा परमात्मा है. मन को मारो, मन पर अंकुश रखो. मन सुधरेगा तो जीवन सुधरेगा. मन को विवेकरूपी लकड़ी से रोज पीटो. भोग से जीव तृप्त नहीं हो सकता. भोगी रोगी होता है. भोगी की भूख कभी शांत नहीं होती. त्याग में ही तृप्ति समाई हुई है ||



Saturday, May 25, 2013

हाथी और छह अंधे व्यक्ति


हाथी और छह अंधे व्यक्ति

बहुत समय पहले की बात है , किसी गावं में 6 अंधे आदमी रहते थे. एक दिन गाँव वालों ने उन्हें बताया , ” अरे , आज गावँ में हाथी आया है.”  उन्होंने आज तक बस हाथियों के बारे में सुना था पर कभी छू कर महसूस नहीं किया था. उन्होंने ने निश्चय किया, ” भले ही हम हाथी को देख नहीं सकते , पर आज हम सब चल कर उसे महसूस तो कर सकते हैं ना?” और फिर वो सब उस जगह की तरफ बढ़ चले जहाँ हाथी आया हुआ था.

सभी ने हाथी को छूना शुरू किया.

” मैं समझ गया, हाथी एक खम्भे की तरह होता है”,  पहले व्यक्ति ने हाथी का पैर छूते हुए कहा.

“अरे नहीं, हाथी तो रस्सी की तरह होता है.” दूसरे व्यक्ति ने पूँछ पकड़ते हुए कहा.

“मैं बताता हूँ,  ये तो पेड़ के तने की तरह है.”,  तीसरे व्यक्ति ने सूंढ़ पकड़ते हुए कहा.

” तुम लोग क्या बात कर रहे हो, हाथी  एक बड़े हाथ के पंखे की तरह होता है.” , चौथे व्यक्ति ने कान छूते हुए सभी को समझाया.

“नहीं-नहीं , ये तो एक दीवार की तरह है.”, पांचवे व्यक्ति ने पेट पर हाथ रखते हुए कहा.

” ऐसा नहीं है , हाथी तो एक कठोर नली की तरह होता है.”, छठे व्यक्ति ने अपनी बात रखी.

और फिर सभी आपस में बहस करने लगे और खुद को सही साबित करने में लग गए.. ..उनकी  बहस तेज होती गयी और ऐसा लगने लगा मानो वो आपस में लड़ ही पड़ेंगे.

तभी वहां से एक बुद्धिमान व्यक्ति गुजर रहा था. वह रुका और उनसे पूछा,” क्या बात है तुम सब आपस में झगड़ क्यों रहे हो?”

” हम यह नहीं तय कर पा रहे हैं कि आखिर हाथी दीखता कैसा है.” , उन्होंने ने उत्तर दिया.

और फिर बारी बारी से उन्होंने अपनी बात उस व्यक्ति को समझाई.

बुद्धिमान व्यक्ति ने सभी की बात शांति से सुनी और बोला ,” तुम सब अपनी-अपनी जगह सही हो. तुम्हारे वर्णन में अंतर इसलिए है क्योंकि तुम सबने हाथी के अलग-अलग भाग छुए

हैं, पर देखा जाए तो तुम लोगो ने जो कुछ भी बताया वो सभी बाते हाथी के वर्णन के लिए सही बैठती हैं.”

” अच्छा !! ऐसा है.” सभी ने एक साथ उत्तर दिया . उसके बाद कोई विवाद नहीं हुआ ,और सभी खुश हो गए कि वो सभी सच कह रहे थे.

दोस्तों,  कई बार ऐसा होता है कि हम अपनी  बात को लेकर अड़ जाते हैं कि हम ही सही हैं और बाकी सब गलत है. लेकिन यह संभव है कि हमें सिक्के का एक ही पहलु दिख रहा हो और उसके आलावा भी कुछ ऐसे तथ्य हों जो सही हों. इसलिए हमें अपनी बात तो रखनी चाहिए पर दूसरों की बात भी सब्र से सुननी चाहिए , और कभी भी बेकार की बहस में नहीं पड़ना चाहिए. वेदों में भी कहा गया है कि एक सत्य को कई तरीके से बताया जा सकता है. तो , जब अगली बार आप ऐसी किसी बहस में पड़ें तो याद कर लीजियेगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आपके हाथ में सिर्फ पूँछ  है और बाकी हिस्से किसी और के पास हैं.

कुछ भी काम पूरा करने के लिए कारण ज़रूरी हैं !


कुछ भी काम पूरा करने के लिए कारण ज़रूरी हैं !

एक डाकू गुरु नानकदेवजी के पास आया और चरणों में माथा टेकते हुएबोला- “मैं डाकू हूँ, अपने जीवन से तंग हूँ। मैं सुधरना चाहता हूँ, मेरा मार्गदर्शन कीजिए, मुझे अंधकार से उजाले की ओर ले चलिए।

“नानकदेवजी ने कहा-”तुम आज से चोरी करना और झूठ बोलना छोड़ दो, सब ठीक हो जाएगा।

“ डाकू प्रणाम करके चला गया।

कुछ दिनों बाद वहफिर आया और कहने लगा-”मैंने झूठ बोलने और

 चोरी से मुक्त होने का भरसक प्रयत्न किया, किंतु मुझसे ऐसा न हो सका।

 मैं चाहकर बदलनहीं सका। आप मुझे उपाय अवश्य बताइए।”

गुरु नानक सोचने लगे कि इस डाकू को सुधरने का क्या उपाय बताया जाए।

उन्होंने अंत में कहा-”जो तुम्हारे मन में जो आए करो, लेकिनदिनभर झूठ बोलने,

चोरी करने और डाका डालने के बाद शाम को लोगों के सामने किए हुए कामों का

 बखान कर दो।”

डाकू को यह उपाय सरल जान पड़ा। इस बार डाकू पलटकर नानकदेवजी के पास नहीं आया क्योंकि जब वह दिनभर चोरी आदि करता

और शामको जिसके घर से चोरी की है उसकी चौखट पर यह सोचकर पहुँचता कि

नानकदेवजी ने जो कहा था कि तुम अपने दिनभर के कर्म का बखानकरके

आना लेकिन वह अपने बुरे कामों के बारे में बताते में बहुत संकोच करता और

आत्मग्लानि से पानी-पानी हो जाता। वह बहुत हिम्मतकरता कि

मैं सारे काम बता दूँ लेकिन वह नहीं बता पाता। हताश-निराश मुँह लटकाए वह डाकू एक

दिन अचानक नानकदेवजी के सामने आया।

अब तक न आने का कारण बताते हुए उसने कहा-”मैंने तो उस उपाय को बहुत सरल

समझा था, लेकिन वह तो बहुत कठिन निकला।

 लोगों केसामने अपनी बुराइयाँ कहने में लज्जा आती है, अतः मैंने बुरे काम करना ही

छोड़ दिया।” नानकदेवजी ने उसे अपराधी से अच्छा बना दिया।

मंत्र : अपने आप को किसी काम के लायक बनाने के लिए किसी ज़रूरी कारण को खोजिये ,वोह काम स्वयं हो जायेगा

फूटा घड़ा


फूटा घड़ा

बहुत  समय  पहले  की  बात  है  , किसी  गाँव  में  एक   किसान  रहता  था . वह  रोज़   भोर  में  उठकर  दूर  झरनों  से  स्वच्छ  पानी  लेने  जाया   करता  था . इस  काम  के  लिए  वह  अपने  साथ  दो  बड़े  घड़े  ले  जाता  था , जिन्हें  वो  डंडे  में   बाँध  कर  अपने कंधे पर  दोनों  ओर  लटका  लेता  था .

उनमे  से  एक  घड़ा  कहीं  से  फूटा  हुआ  था  ,और  दूसरा  एक  दम  सही  था . इस  वजह  से  रोज़  घर  पहुँचते -पहुचते  किसान  के  पास  डेढ़  घड़ा   पानी  ही बच  पाता  था .ऐसा  दो  सालों  से  चल  रहा  था .

सही  घड़े  को  इस  बात  का  घमंड  था  कि  वो  पूरा  का  पूरा  पानी  घर  पहुंचता  है  और  उसके  अन्दर  कोई  कमी  नहीं  है  ,  वहीँ  दूसरी  तरफ  फूटा  घड़ा  इस  बात  से  शर्मिंदा  रहता  था  कि  वो  आधा  पानी  ही  घर  तक  पंहुचा   पाता  है  और  किसान  की  मेहनत  बेकार  चली  जाती  है .   फूटा घड़ा ये  सब  सोच  कर  बहुत  परेशान  रहने  लगा  और  एक  दिन  उससे  रहा  नहीं  गया , उसने  किसान   से  कहा , “ मैं  खुद  पर  शर्मिंदा  हूँ  और  आपसे  क्षमा  मांगना  चाहता  हूँ ?”

“क्यों  ? “ , किसान  ने  पूछा  , “ तुम  किस  बात  से  शर्मिंदा  हो ?”

“शायद  आप  नहीं  जानते  पर  मैं  एक  जगह  से  फूटा  हुआ  हूँ , और  पिछले  दो  सालों  से  मुझे  जितना  पानी  घर  पहुँचाना  चाहिए  था  बस  उसका  आधा  ही  पहुंचा  पाया  हूँ , मेरे  अन्दर  ये  बहुत बड़ी  कमी  है , और  इस  वजह  से  आपकी  मेहनत  बर्वाद  होती  रही  है .”, फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा.

किसान  को  घड़े  की  बात  सुनकर  थोडा  दुःख  हुआ  और  वह  बोला , “ कोई  बात  नहीं , मैं  चाहता  हूँ  कि  आज  लौटते  वक़्त  तुम   रास्ते में  पड़ने  वाले  सुन्दर  फूलों  को  देखो .”

घड़े  ने  वैसा  ही  किया , वह  रास्ते  भर  सुन्दर  फूलों  को  देखता  आया , ऐसा करने से  उसकी  उदासी  कुछ  दूर  हुई  पर  घर  पहुँचते – पहुँचते   फिर  उसके  अन्दर  से  आधा  पानी  गिर  चुका  था, वो  मायूस  हो  गया  और   किसान  से  क्षमा  मांगने  लगा .

किसान  बोला ,” शायद  तुमने  ध्यान  नहीं  दिया  पूरे  रास्ते  में  जितने   भी  फूल  थे  वो  बस  तुम्हारी  तरफ  ही  थे , सही  घड़े  की  तरफ  एक  भी  फूल  नहीं  था . ऐसा  इसलिए  क्योंकि  मैं  हमेशा  से  तुम्हारे  अन्दर  की  कमी को   जानता  था , और  मैंने  उसका  लाभ  उठाया . मैंने  तुम्हारे  तरफ  वाले  रास्ते  पर   रंग -बिरंगे  फूलों के  बीज  बो  दिए  थे  , तुम  रोज़  थोडा-थोडा  कर  के  उन्हें  सींचते  रहे  और  पूरे  रास्ते  को  इतना  खूबसूरत  बना  दिया . आज तुम्हारी  वजह  से  ही  मैं  इन  फूलों  को  भगवान  को  अर्पित  कर  पाता  हूँ  और   अपना  घर  सुन्दर  बना  पाता  हूँ . तुम्ही  सोचो  अगर  तुम  जैसे  हो  वैसे  नहीं  होते  तो  भला  क्या  मैं  ये  सब  कुछ  कर  पाता ?”

दोस्तों  हम  सभी  के  अन्दर  कोई  ना  कोई  कमी  होती है  , पर यही कमियां हमें अनोखा  बनाती हैं . उस किसान की  तरह  हमें  भी  हर  किसी  को  वो  जैसा  है  वैसे  ही स्वीकारना चाहिए  और  उसकी  अच्छाई  की  तरफ  ध्यान  देना  चाहिए, और जब हम ऐसा करेंगे तब “फूटा घड़ा” भी “अच्छे घड़े” से मूल्यवान हो जायेगा.



विजेता मेंढक


विजेता मेंढक

बहुत  समय  पहले  की  बात  है  एक  सरोवर  में  बहुत  सारे  मेंढक  रहते  थे . सरोवर  के   बीचों -बीच  एक  बहुत  पुराना  धातु   का  खम्भा  भी  लगा  हुआ   था  जिसे  उस  सरोवर  को  बनवाने  वाले  राजा    ने   लगवाया  था . खम्भा  काफी  ऊँचा  था  और  उसकी  सतह  भी  बिलकुल  चिकनी  थी .

एक  दिन  मेंढकों  के  दिमाग  में  आया  कि  क्यों  ना  एक  रेस  करवाई  जाए . रेस  में  भाग  लेने  वाली  प्रतियोगीयों  को  खम्भे  पर  चढ़ना  होगा , और  जो  सबसे  पहले  एक  ऊपर  पहुच  जाएगा  वही  विजेता  माना  जाएगा .

रेस  का  दिन  आ   पंहुचा , चारो  तरफ   बहुत  भीड़  थी ; आस -पास  के  इलाकों  से  भी  कई  मेंढक  इस  रेस  में  हिस्सा   लेने  पहुचे   . माहौल  में  सरगर्मी थी   , हर  तरफ  शोर  ही  शोर  था .

रेस  शुरू  हुई …

…लेकिन  खम्भे को देखकर  भीड़  में  एकत्र  हुए  किसी  भी  मेंढक  को  ये  यकीन  नहीं हुआकि  कोई  भी  मेंढक   ऊपर  तक  पहुंच  पायेगा …

हर  तरफ  यही सुनाई  देता …

“ अरे  ये   बहुत  कठिन  है ”

“ वो  कभी  भी  ये  रेस  पूरी  नहीं  कर  पायंगे ”

“ सफलता  का  तो  कोई  सवाल ही  नहीं  , इतने  चिकने  खम्भे पर चढ़ा ही नहीं जा सकता  ”

और  यही  हो  भी  रहा  था , जो भी  मेंढक  कोशिश  करता , वो  थोडा  ऊपर  जाकर  नीचे  गिर  जाता ,

कई  मेंढक  दो -तीन  बार  गिरने  के  बावजूद  अपने  प्रयास  में  लगे  हुए  थे …

पर  भीड़  तो अभी भी  चिल्लाये  जा  रही  थी , “ ये  नहीं  हो  सकता , असंभव ”, और  वो  उत्साहित  मेंढक  भी ये सुन-सुनकर हताश हो गए और अपना  प्रयास  छोड़  दिया .

लेकिन  उन्ही  मेंढकों  के  बीच  एक  छोटा  सा  मेंढक  था , जो  बार -बार  गिरने  पर  भी  उसी  जोश  के  साथ  ऊपर  चढ़ने  में  लगा  हुआ  था ….वो लगातार   ऊपर  की  ओर  बढ़ता  रहा ,और  अंततः  वह  खम्भे के  ऊपर  पहुच  गया  और इस रेस का  विजेता  बना .

उसकी  जीत  पर  सभी  को  बड़ा  आश्चर्य  हुआ , सभी मेंढक  उसे  घेर  कर  खड़े  हो  गए  और  पूछने  लगे   ,” तुमने  ये  असंभव  काम  कैसे  कर  दिखाया , भला तुम्हे   अपना  लक्ष्य   प्राप्त  करने  की  शक्ति  कहाँ  से  मिली, ज़रा हमें भी तो बताओ कि तुमने ये विजय कैसे प्राप्त की ?”

तभी  पीछे  से  एक  आवाज़  आई … “अरे  उससे  क्या  पूछते  हो , वो  तो  बहरा  है ”

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मित्रों, सफलता के  लिए नकारात्मक विचार त्यागो , अक्सर हमारे अन्दर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की काबीलियत होती है, पर हम अपने चारों तरफ मौजूद नकारात्मकता की वजह से खुद को कम आंक बैठते हैं और हमने जो बड़े-बड़े सपने देखे होते हैं उन्हें पूरा किये बिना ही अपनी ज़िन्दगी गुजार देते हैं . आवश्यकता  इस बात की है हम हमें कमजोर बनाने वाली हर एक आवाज के प्रति बहरे और ऐसे हर एक दृश्य के प्रति अंधे हो जाएं. और तब हमें सफलता के शिखर पर पहुँचने से कोई नहीं रोक पायेगा



राजा की सोच


राजा की सोच 

एक राजा था। वह बेहद न्यायप्रिय, दयालु और विनम्र था। उसके तीन बेटे थे। जब राजा बूढ़ा हुआ तो उसने किसी एक बेटे को राजगद्दी सौंपने का निर्णय किया। इसके लिए उसने तीनों की परीक्षा लेनी चाही। उसने तीनों राजकुमारों को अपने पास बुलाया और कहा, ‘मैं आप तीनों को एक छोटा सा काम सौंप रहा हूं। उम्मीद करता हूं कि आप सभी इस काम को अपने सर्वश्रेष्ठ तरीके से करने की कोशिश करेंगे।’

राजा के कहने पर राजकुमारों ने हाथ जोड़कर कहा, ‘पिताजी, आप आदेश दीजिए। हम अपनी ओर से कार्य को सर्वश्रेष्ठ तरीके से करने का भरपूर प्रयास करेंगे।’ राजा ने प्रसन्न होकर उन तीनों को कुछ स्वर्ण मुद्राएं दीं और कहा कि इन मुद्राओं से कोई ऐसी चीज खरीद कर लाओ जिससे कि पूरा कमरा भर जाए और वह वस्तु काम में आने वाली भी हो। यह सुनकर तीनों राजकुमार स्वर्ण मुद्राएं लेकर अलग-अलग दिशाओं में चल पड़े। बड़ा राजकुमार बड़ी देर तक माथापच्ची करता रहा। उसने सोचा कि इसके लिए रूई उपयुक्त रहेगी। उसने उन स्वर्ण मुद्राओं से काफी सारी रूई खरीद कर कमरे में भर दी और सोचा कि इससे कमरा भी भर गया और रूई बाद में रजाई भरने के काम आ जाएगी। मंझले राजकुमार ने ढेर सारी घास से कमरा भर दिया। उसे लगा कि बाद में घास गाय व घोड़ों के खाने के काम आ जाएगी। उधर छोटे राजकुमार ने तीन दीये खरीदे। पहला दीया उसने कमरे में जलाकर रख दिया। इससे पूरे कमरे में रोशनी भर गई। दूसरा दीया उसने अंधेरे चौराहे पर रख दिया जिससे वहां भी रोशनी हो गई और तीसरा दीया उसने अंधेरी चौखट पर रख दिया जिससे वह हिस्सा भी जगमगा उठा। बची हुई स्वर्ण मुद्राओं से उसने गरीबों को भोजन करा दिया। राजा ने तीनों राजकुमारों की वस्तुओं का निरीक्षण किया। अंत में छोटे राजकुमार के सूझबूझ भरे निर्णय को देखकर वह बेहद प्रभावित हुआ और उसे ही राजगद्दी सौंप दी



Motivational Hindi Stories : Swami Vivekanad

Motivational Hindi Stories : Swami Vivekanad



लक्ष्य पर ध्यान लगाओ

स्वामी विवेकानंद अमेरिका में भ्रमण कर रहे थे . एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने पुल पर खड़े  कुछ लड़कों को नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बन्दूक से निशाना लगाते देखा . किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था . तब उन्होंने ने एक लड़के से बन्दूक ली और खुद निशाना लगाने लगे . उन्होंने पहला निशाना लगाया और वो बिलकुल सही लगा ….. फिर एक के बाद एक उन्होंने कुल 12 निशाने लगाये और सभी बिलकुल सटीक लगे . ये देख लड़के दंग रह गए और उनसे पुछा , ” भला आप ये कैसे कर लेते हैं ?”
स्वामी जी बोले , “तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी एक काम में लगाओ. अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए. तब तुम कभी चूकोगे नहीं . अगर तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो . मेरे देश में बच्चों को ये करना सिखाया जाता है. ”
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डर का सामना 

एक बार बनारस में स्वामी जी दुर्गा जी के मंदिर से निकल रहे थे की तभी वहां मौजूद  बहुत सारे बंदरों ने उन्हें घेर लिया. वे उनके नज़दीक आने लगे और डराने लगे . स्वामी जी भयभीत हो गए और खुद को बचाने के लिए दौड़ कर भागने लगे, पर बन्दर तो मानो पीछे ही पड़ गए, और वे उन्हें दौडाने लगे. पास खड़ा एक वृद्ध सन्यासी ये सब देख रहा था , उसने स्वामी जी को रोका और बोला , ” रुको ! उनका सामना करो !”
स्वामी जी तुरन्त पलटे  और बंदरों के तरफ बढ़ने लगे , ऐसा करते ही सभी बन्दर भाग गए . इस घटना से स्वामी जी को एक गंभीर सीख मिली और कई सालों बाद उन्होंने एक संबोधन में कहा भी – ” यदि तुम कभी किसी चीज से भयभीत हो तो उससे भागो मत , पलटो और सामना करो.”
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सच बोलने की हिम्मत

स्वामी विवेकानंदा प्रारंभ से ही एक मेधावी छात्र थे और सभी उनके व्यक्तित्व और वाणी से प्रभावित  रहते थे. जब वो साथी छात्रों से कुछ बताते तो सब मंत्रमुग्ध हो उन्हें सुनते. एक दिन इंटरवल के दौरान वो कक्षा में कुछ मित्रों को कहानी सुना रहे थे , सभी उनकी बातें सुनने में इतने मग्न थे की उन्हें पता ही नहीं चला की कब मास्टर जी कक्षा में आये और पढ़ाना शुरू कर दिया.
मास्टर जी ने अभी पढ़ना शुरू ही किया था कि उन्हें कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी.
” कौन बात कर रहा है ?” उन्होंने तेज आवाज़ में पूछा . सभी ने स्वामी जी और उनके साथ बैठे छात्रों किई तरफ इशारा कर दिया.
मास्टर जी  तुरंत क्रोधित हो गए, उन्होंने तुरंत उन छात्रों को बुलाया और  पाठ से संबधित एक प्रश्न पूछने लगे. जब कोई भी उत्तर न दे सका ,तब अंत में मास्टर जी ने  स्वामी जी से भी वही प्रश्न किया . पर स्वामी जी तो मानो सब कुछ पहले से ही जानते हों , उन्होंने आसानी से उत्तर दे दिया.
यह देख उन्हें यकीन हो गया कि स्वामी जी पाठ पर ध्यान दे रहे थे और बाकी छात्र बात-चीत में लगे हुए थे. फिर क्या था उन्होंने स्वामी जी को छोड़ सभी को बेंच पर खड़े होने की सजा दे दी . सभी छात्र एक -एक कर बेच पर खड़े होने लगे, स्वामी जे ने भी यही किया.
तब मास्टर जी बोले, ” नरेन्द्र (स्वामी विवेकानंद )) तुम बैठ जाओ.”
” नहीं सर , मुझे भी खड़ा होना होगा क्योंकि वो मैं ही था जो इन छात्रों से बात कर रहा था.”,स्वामी जी ने आग्रह किया.
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स्वामी विवेकानंद :प्रेरक प्रसंग


एक बार बनारस में स्वामी जी दुर्गा जी के मंदिर से निकल रहे थे की तभी वहां मौजूद बहुत सारे बंदरों ने उन्हें घेर लिया. वे उनके नज़दीक आने लगे और डराने लगे . स्वामी जी भयभीत हो गए और खुद को बचाने के लिए दौड़ कर भागने लगे, पर बन्दर तो मानो पीछे ही पड़ गए, और वे उन्हें दौडाने लगे. पास खड़ा एक वृद्ध सन्यासी ये सब देख रहा था , उसने स्वामी जी को रोका और बोला , ” रुको ! उनका सामना करो !”

स्वामी जी तुरन्त पलटे और बंदरों के तरफ बढ़ने लगे , ऐसा करते ही सभी बन्दर भाग गए . इस घटना से स्वामी जी को एक गंभीर सीख मिली और कई सालों बाद उन्होंने एक संबोधन में कहा भी – ” यदि तुम कभी किसी चीज से भयभीत हो तो उससे भागो मत , पलटो और सामना करो.”



Must Read Story : पचास का नोट / Fifty Rupee Note


Must Read Story : पचास का नोट / Fifty Rupee Note

एक  व्यक्ति  office में देर  रात तक काम  करने  के  बाद  थका -हारा घर  पहुंचा  . दरवाजा  खोलते  ही  उसने  देखा  कि  उसका  पांच  वर्षीय  बेटा  सोने  की  बजाये  उसका  इंतज़ार  कर  रहा  है .
अन्दर  घुसते  ही  बेटे  ने  पूछा —“ पापा  , क्या  मैं  आपसे  एक  question पूछ  सकता  हूँ ?”
“ हाँ -हाँ  पूछो , क्या  पूछना  है ?” पिता  ने  कहा .

बेटा - “ पापा , आप  एक  घंटे  में  कितना  कमा लेते  हैं ?”

“ इससे  तुम्हारा  क्या  लेना  देना …तुम  ऐसे  बेकार  के  सवाल  क्यों  कर  रहे  हो ?” पिता  ने  झुंझलाते  हुए  उत्तर  दिया .


बेटा - “ मैं  बस  यूँही जानना  चाहता  हूँ . Please  बताइए  कि  आप  एक  घंटे   में  कितना  कमाते  हैं ?”

पिता  ने  गुस्से  से  उसकी  तरफ  देखते  हुए  कहा , “ 100 रुपये  .”

“अच्छा ”, बेटे  ने  मासूमियत   से   सर  झुकाते   हुए  कहा -, “  पापा  क्या  आप  मुझे  50 रूपये  उधार  दे  सकते  हैं ?”

इतना  सुनते  ही  वह   व्यक्ति  आग  बबूला  हो  उठा , “ तो  तुम इसीलिए  ये  फ़ालतू  का  सवाल  कर  रहे  थे ताकि  मुझसे  पैसे  लेकर तुम  कोई  बेकार  का  खिलौना   या  उटपटांग  चीज  खरीद  सको ….चुप –चाप  अपने  कमरे  में  जाओ  और  सो  जाओ ….सोचो  तुम  कितने  selfish हो …मैं  दिन  रात  मेहनत  करके  पैसे  कमाता  हूँ  और  तुम  उसे  बेकार  की  चीजों  में  बर्वाद  करना  चाहते  हो ”

यह सुन बेटे  की  आँखों  में  आंसू  आ  गए  …और   वह  अपने  कमरे  में चला गया .

व्यक्ति  अभी  भी  गुस्से  में  था  और  सोच  रहा  था  कि  आखिर  उसके  बेटे  कि ऐसा करने कि  हिम्मत  कैसे  हुई ……पर  एक -आध  घंटा   बीतने  के  बाद  वह  थोडा  शांत  हुआ , और  सोचने  लगा  कि  हो  सकता  है  कि  उसके  बेटे  ने  सच -में  किसी  ज़रूरी  काम  के  लिए  पैसे  मांगे  हों , क्योंकि  आज  से  पहले   उसने  कभी  इस  तरह  से  पैसे  नहीं  मांगे  थे .

फिर  वह  उठ  कर  बेटे  के  कमरे  में  गया  और बोला , “ क्या तुम सो  रहे  हो ?”, “नहीं ” जवाब  आया .
“ मैं  सोच  रहा  था  कि  शायद  मैंने  बेकार  में  ही  तुम्हे  डांट  दिया , दरअसल  दिन भर  के  काम  से  मैं  बहुत थक   गया  था .” व्यक्ति  ने  कहा .

“I am sorry….ये  लो  अपने  पचास  रूपये .” ऐसा  कहते  हुए  उसने  अपने  बेटे  के  हाथ  में  पचास  की  नोट  रख  दी .

“Thank You पापा ” बेटा  ख़ुशी  से  पैसे  लेते  हुए  कहा , और  फिर  वह  तेजी  से  उठकर  अपनी  आलमारी  की  तरफ   गया , वहां  से  उसने  ढेर  सारे  सिक्के  निकाले  और  धीरे -धीरे  उन्हें  गिनने  लगा .
यह  देख  व्यक्ति  फिर  से  क्रोधित  होने  लगा , “ जब  तुम्हारे  पास  पहले  से  ही  पैसे  थे  तो  तुमने   मुझसे  और  पैसे  क्यों  मांगे ?”

“ क्योंकि  मेरे  पास पैसे कम  थे , पर  अब  पूरे  हैं ” बेटे  ने  कहा .

“ पापा  अब  मेरे  पास  100 रूपये  हैं . क्या  मैं  आपका  एक  घंटा  खरीद  सकता  हूँ ? Please आप ये पैसे ले लोजिये और  कल  घर  जल्दी  आ  जाइये  , मैं  आपके  साथ  बैठकर  खाना  खाना  चाहता  हूँ .”
दोस्तों ,  इस तेज रफ़्तार जीवन में हम कई बार खुद को इतना busy कर लेते हैं कि उन लोगो के लिए  ही समय नहीं निकाल पाते जो हमारे जीवन में सबसे ज्यादा importance रखते हैं. इसलिए हमें ध्यान रखना होगा कि इस आपा-धापी में भी हम अपने माँ-बाप, जीवन साथी, बच्चों और अभिन्न मित्रों के लिए समय निकालें, वरना एक दिन हमें भी अहसास होगा कि हमने छोटी-मोटी चीजें पाने के लिए कुछ बहुत बड़ा खो दिया

Saturday, December 29, 2012

Motivational Hindi Stories - उधार का धन, भाग्य और ज्ञान काम नहीं आता


उधार का धन, भाग्य और ज्ञान काम नहीं आता

एक प्रेरणाप्रद कथा जो अवश्य हम सबका मार्ग दर्शन करेगी

उधार का धन, भाग्य और ज्ञान काम नहीं आता. वह अपने साथ मुसीबतें भी लाता है. अपने आप अर्जित किया हुआ ही फलदायी होता है".

स्कूल के प्रिंसीपल माइक के पास पहुँचे. उन्होने सामने बैठी और खड़ी
भीड़ को देखा और बोलना शुरु किया.

आज मैं अंतिम बार इस स्कूल के प्रिंसीपल के रुप में आप सबसे बात कर रहा हूँ. इसी जगह खड़े होकर मैंने बरसों भाषण दिये हैं.आज जब मेरी नौकरी का अंतिम दिन है
इस परिसर में इस मंच से अपने अंतिम सम्बोधन में एक कथा आप सबसे, विधार्थियों से खास तौर पर, कहना चाहूँगा.

बहुत साल पहले की बात है एक लड़का था. उम्र तकरीबन आठ-नौ साल रही होगी उस समय उसकी. एक शाम वह तेजी से लपका हुआ घर की ओर जा रहा था. दोनों हाथ उसने अपने सीने पर कस कर जकड़ रखे थे और हाथों में कोई चीज छिपा रखी थी. साँस उसकी तेज चल रही थी.घर पहुँच कर वह सीधा अपने दादा के पास पहुँचा.

बाबा, देखो आज मुझे क्या मिला ?

उसने दादा के हाथ में पर्स की शक्ल का एक छोटा सा बैग थमा दिया.

ये कहाँ मिला तुझे बेटा ?

खोल कर तो देखो बाबा, कितने सारे रुपये हैं इसमें।

इतने सारे रुपये? कहाँ से लाया है तू इसे?

बाबा सड़क किनारे मिला. मेरे पैर से ठोकर लगी तो मैंने उठाकर देखा. खोला तो रुपये मिले. कोई नहीं था वहाँ मैं इसे उठा लाया.

तूने देखा वहाँ ढ़ंग से कोई खोज नहीं रहा था इसे ?

नहीं बाबा वहाँ कोई भी नहीं था. आप और बाबूजी उस दिन पैसों की बात कर रहे थे अब तो हमारे बहुत सारे काम हो जायेंगे।

पर बेटा ये हमारा पैसा नहीं है.

पर बाबा मुझे तो ये सड़क पर मिला अब तो ये मेरा ही हुआ.

दादा के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आयीं.

नहीं बेटा, ये तुम्हारा पैसा नहीं है. उस आदमी के बारे में सोचो जिसका इतना सारा पैसा खो गया है. कौन जाने कितने जरुरी काम के लिये वह इस पैसे को लेकर कहीं जा रहा हो. पैसा खो जाने से उसके सामने कितनी बड़ी परेशानी आ जायेगी. उस दुखी आदमी की आह भी तो इस पैसे से जुड़ी हुयी है। हो सकता है इस पैसे से हमारे कुछ काम हो जायें और कुछ आर्थिक परेशानियाँ इस समय कम हो जायें पर यह पैसा हमारा कमाया हुआ नहीं है, इस पैसे के साथ किसी का दुख दर्द जुड़ा हो सकता है, इन सबसे पैदा होने वाली परेशानियों की बात तो हम जानते नहीं. जाने कैसी मुसीबतें इस पैसे के साथ आकर हमें घेर लें. उस आदमी का दुर्भाग्य था कि उसके हाथ से बैग गिर गया पर वह दुर्भाग्य तो इस पैसे से जुड़ा हुआ है ही. हमें तो इसे इसके असली मालिक के पास पहुँचाना ही होगा.

किस्सा तो लम्बा है. संक्षेप में इतना बता दूँ कि लड़के के पिता और दादा ने पैसा उसके मालिक तक पँहुचा दिया.

इस घटना के कुछ ही दिनों बाद की बात है. लड़का अपने दादा जी के साथ टहल रहा था. चलते हुये लड़के को रास्ते में दस पैसे मिले, उसने झुककर सिक्का उठा लिया.

उसने दादा की तरफ देखकर पूछा,"बाबा, इसका क्या करेंगे क्या इसे यहीं पड़ा रहने दें अब इसके मालिक को कैसे ढ़ूँढ़ेंगे ?”
दादा ने मुस्कुरा कर कहा, "हमारे देश की मुद्रा है बेटा नोट छापने, सिक्के बनाने में देश का पैसा खर्च होता है. इसका सम्मान करना हर देशवासी का कर्तव्य है. इसे रख लो. कहीं दान-पात्र में जमा कर देंगे.

बाबा, इसके साथ इसके मालिक की आह नहीं जुड़ी होगी ?

बेटा, इतने कम पैसे खोने वाले का दुख भी कम होगा. इससे उसका बहुत बड़ा काम सिद्ध नहीं होने वाला था. हाँ तुम्हारे लिये इसे भी रखना गलत है. इसे दान-पात्र में डाल दो, किसी अच्छे काम को करने में इसका उपयोग हो जायेगा.

लड़के को कुछ असमंजस में पाकर दादा ने कहा, "बेटा उधार का धन, भाग्य और ज्ञान काम नहीं आता. वह अपने साथ मुसीबतें भी लाता है. अपने आप अर्जित किया हुआ ही फलदायी होता है".

आज वह लड़का आपके सामने आपके प्रिंसीपल के रुप में खड़ा है.