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आरथ्राइटिस से पीडि़त प्रत्येक दस में से एक व्यक्ति अपने रोजमर्रा के कामकाज भी ठीक से नहीं कर पाता, सामान्य जीवन नहीं जी पाता! शरीर को पंगु बना देने वाली इस गंभीर समस्या को ज्यादातर लोग बढ़ती उम्र का तकाजा समझकर और लाइलाज मानकर नजरअंदाज करते रहते हैं। नेचुरोपैथी के चार-पांच हफ्ते के इलाज से गंभीर से गंभीर आरथ्राइटिस रोगी भी इस समस्या से पचास प्रतिशत तक आराम पा सकते हैं।
घुटने में तकलीफ रहती है तो सावधान हो जाएं। यह आर्थराइटिस की समस्या भी हो सकती है। अब तो यह समस्या उम्र भी नहीं देखती। बुजुर्गों के साथ अब यह समस्या युवाओं और बच्चों को भी परेशान करने लगी है।
अर्थराइटिस यानी घुटनों में दर्द की समस्या को बुजुर्गों की समस्या माना जाता था, लेकिन पिछले कुछ सालों में युवा और बच्चों तक इस बीमारी के शिकार होते जा रहे हैं। खासकर दिल्ली व तमाम शहरों में तेज रफ्तार जिंदगी के कारण खानपान, व्यायाम आदि पर उचित ध्यान न दिए जाने से यह समस्या पैदा होती है।
आर्थराइटिस एक ऐसी बीमारी है, जिसका शरीर के जोड़ों और मांसपेशियों पर असर पड़ता है। मरीज के पैरों और हड्डियों के जोड़ों में तेज दर्द होता है, जिससे चलने-फिरने में भी तकलीफ हो सकती है। कुछ खास तरह के आर्थराइटिस में शरीर के दूसरे अंग भी प्रभावित होते हैं। ऐसे में दर्द के साथ दूसरी समस्याएं भी हो सकती हैं।
आमतौर पर देखा जाता है कि हर घुटने के दर्द को लोग आर्थराइटिस समझ लेते हैं, जबकि घुटनों में दर्द के कई कारण हो सकते हैं तथा उनका इलाज भी भिन्न-भिन्न है। सही जांच तथा समय पर सही फिजियोथेरेपी महत्वपूर्ण है। फिजियोथेरेपी से तो हड्डियों की कई बीमारियां जड़ से दूर हो जाती हैं। इसमें व्यायाम के जरिय मांसपेशियों को सक्रिय बनाकर इलाज किया जाता है। इसमें एक सप्ताह से लेकर कई महीने लग जाते हैं।
आर्थराइटिस के कारण
- घुटने में चोट लगना, घुटनों पर ज्यादा जोर देना।
- लंबे समय तक एक ही अवस्था में बैठना या खड़े रहना।
- हड्डियों का बढ़ जाना एवं मांसपेशियों का कमजोर हो जाना।
- उम्र का 40 वर्ष से ज्यादा होना जिससे हड्डियां प्राय: घिस जाती हैं या कमजोर हो जाती हैं।
- जिम में विशेषज्ञों की अनुपस्थिति में व्यायाम करना।
- अपना वजन, खान-पान का स्तर, उम्र, दर्द के कारण, शरीरिक संरचना को जाने बिना टीवी पर देखकर या दूसरे व्यक्ति को देखकर योग व अन्य व्यायाम करना।
- घुटनों से सायनोवियल फ्लड (घुटनों के जोड़ के बीच मौजूद तरल पदार्थ) का निकलना।
- घुटनों के ऑपरेशन के बाद फिजियोथेरेपी नहीं करवाना।
- ऑटोइम्यून (भ्रमित प्रतिरक्षी प्रक्रिया के कारण होने वाली) बीमारियों का होना। रिवमेट्वायड आर्थराइटिस यानी रुमेटी गठिया इसी श्रेणी में आती है।
- गलत नाप, आकार-प्रकार तथा हील के चप्पल जूते पहनना।
- व्यायाम अचानक छोड़ देना।
घुटने का दर्द
घुटना एक कमजोर सायनोवियल जोड़ हैं। यह शरीर का सबसे बड़ा तथा जटिल जोड़ है। इस जोड़ में चार हड्डियां शामिल होती हैं। लगभग 15 मांसपेशियां, 13 वर्सा (गद्दीदार संरचनाएं), कई लिगामेंट, मेनिस्कस आदि भी इस जोड़ से संबद्घ होती हैं। इन कारणों से घुटने में दर्द के कारण तथा स्थान अलग हो सकते हैं।
इस दर्द से बचाव
- अपने वजन को उम्र, ऊंचाई एवं शारीरिक बनावट के अनुसार उचित रखना चाहिए। इसके लिए प्रिवेंटिव फिजियोथेरेपी के अन्तर्गत विशेष व्यायाम करना चाहिए।
- औसतन 1 से डेढ़ घंटे लगातार खड़े रहने के पश्चात् घुटनों को 5-10 मिनट का आराम देना चाहिए।
- चप्पल, जूते सही आकार-प्रकार के ही प्रयोग में लाना चाहिए।
- जिम में हमेशा विशेषज्ञों तथा कुशल फिजियोथेरेपिस्ट के निर्देशन में ही व्यायाम करना चाहिए तथा वजन उठाना चाहिए।
- नियमित रूप से डॉक्टर या फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा बताए गए घुटनों के विशिष्ट व्यायाम करना लाभदायक होता है।
- खानपान में कैल्शियम से परिपूर्ण आहार लेना चाहिए।
कैसे पाएं आराम
यह बीमारी आजीवन रहने वाली है, लेकिन अपने शरीर में कुछ बदलाव लाकर आप आर्थराइटिस के तीव्र दर्द को कम कर सकते हैं। इसके लिए कुछ उपाय भी जरूरी हैं।
- अपना वजन नियंत्रित रखें क्योंकि ज्यादा वजन से घुटने तथा कूल्हों पर दबाव पड़ता है।
- कसरत तथा जोड़ों को हिलाने से भी आपको मदद मिलेगी। जोड़ों को हिलाने में आपके डॉक्टर या नर्स भी आपकी मदद कर सकते हैं।
- समय-समय पर अपनी दवा लेते रहें। इनसे दर्द और अकड़न में राहत मिलेगी।
- सुबह गर्म पानी से नहाएं।
- डॉक्टर से समय-समय पर जांच कराते रहें।
मजबूत हड्डियों के लिए खाने की 10 चीजें
1. कम फैट वाला दूध
2. अंडे
3. पनीर
4. रागी या मड़आ
5. पालक
6. अंजीर
7. अजवाइन के पत्ते
8.मेथी के पत्ते
9.मछली
10. बादाम
क्यों होता है आरथ्राइटिस
आजकल हमारे खानपान में एसिडिक खाद्य पदार्थों की मात्रा काफी बढ़ गई है। जब हम कोई चीज खाते या पीते हैं, तो उसमें मौजूद एसिड का कुछ अंश शरीर में शेष रह जाता है और यूरिक एसिड के रूप में शरीर के विभिन्न हिस्सों, खासकर जोड़ों के बीच जमा होने लगता है। सालों जमा होते रहने के बाद यूरिक एसिड "क्रिस्टल" [ठोस] का रूप ले लेता है और जोड़ों तथा पेशियों की सामान्य गतिविधि को प्रभावित करने लगता है। पेशियों में जमा यूरिक एसिड क्रिस्टल, मस्क्युलर रिह्यूमेटिज्म के रू प में सामने आता है, तो जोड़ों के बीच जमा एसिड क्रिस्टल आरथ्राइटिस के रू प में। जोड़ों के बीच एसिड क्रिस्टल जमा होने से चलने-फिरने पर चुभने जैसा दर्द और टीस होती है। जोड़ों में जकड़न आ सकती है।
जोड़ों को ढकने वाली झिल्लियां साइनोवियल द्रव नामक तरल पदार्थ का रिसाव करती हैं, जो जोड़ों के मूवमेंट के लिए लुब्रिकेंट का काम करता है और हमारे शरीर के विभिन्न जोड़ बिना दर्द के आसानी से हिलते-डुलते रहते हैं। जोड़ों के बीच एसिड क्रिस्टल के जमा होने पर साइनोवियल झिल्ली घिसने लगती है और सूख जाती है। नतीजतन, जोड़ फ्री होकर "मूव" नहीं कर पाते ,कभी-कभार तो हडि्डयों की सतहें भी घिस जाती है और आरथ्राइटिस की समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है। मरीज की कार्य क्षमता या तो आंशिक तौर पर घट जाती है या पूरी तरह खत्म हो जाती है। मॉडर्न मेडिकल साइंस में इलाज के तौर पर दर्द निवारक दवाओं के सेवन की सलाह दी जाती है, बीमारी का कोई इलाज नहीं बताया जाता। खानपान की आदतों में उचित बदलाव लाकर, उचित व्यायाम और नेचुरोपैथी इलाजों के द्वारा आरथ्राइटिस की समस्या पर काफी हद तक नियंत्रण संभव है।
खान-पान की आदत बदलें
शरीर में जमा अतिरिक्त यूरिक एसिड को न्यूट्रल करने के लिए खानपान में क्षारीय या अल्कली पदार्थों की मात्रा को बढ़ाना चाहिए। फलों, हरी सब्जियों, दूध, बिना पॉलिश किए गए अनाज इत्यादि में अल्कली की मात्रा अधिक होती है ,जबकि पॉलिश किए गए अनाज, मांसाहारी खाद्य पदार्थों, तेल-मसाले वाले फास्ट फूड्स में एसिड की अधिकता होती है। अल्कली खाद्य पदार्थों के अधिक मात्रा में सेवन और एसिडिक पदार्थों के सेवन में कमी लाकर आरथ्राइटिस की रोकथाम संभव है। जोड़ों में जमा यूरिक एसिड क्रिस्टल को निकाल बाहर करने के लिए इलाज भी जरूरी है। प्रकृति प्रदत्त शहद,काला शीरा,एपलसाइडर विनेगर,एप्सम साल्ट जैसे पदार्थों में जोड़ों के बीच जमा क्रिस्टल को गलाने की अचूक क्षमता है।
एपल साइडर विनेगर
आरथ्राइटिस के इलाज में इसका सर्वाधिक योगदान होता है, परिणाम नजर आने में तीन से चार सप्ताह तक का समय लग सकता है। बीमारी अगर शुरूआती अवस्था में है, तो 1 से 2 सप्ताह में ही सुधार आना प्रारंभ हो जाता है। इसे दस मिली. की मात्रा में शहद के साथ दिन में तीन बार लें। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि खून में साइडर विनेगर का स्तर इतना हो जाए कि वह विभिन्न जोड़ों में जमा यूरिक एसिड को खून में घोल सके। बाद में यह यूरिक एसिड खून से किडनी द्वारा साफ होकर मूत्र मार्ग से मूत्र के साथ बाहर निकल जाता है। कभी-कभी एपल साइडर विनेगर के सेवन से रोगी का दर्द बढ़ जाता है। यह दर्द अस्थाई होता है। जोड़ों में जमा यूरिक एसिड के हिलने-गलने से ऎसा होता है। दर्द तीन-चार दिन में अपने आप ठीक हो जाता है। 4 से 5 सप्ताह तक इसका नियमित सेवन करें।
एप्सम सॉल्ट
आरथ्राइटिस के इलाज में एप्सम सॉल्ट का प्रयोग बाहरी तौर पर होता है। एप्सम सॉल्ट को गर्म स्नान के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। शरीर को सहन हो इतने गरम पानी में एप्सम सॉल्ट मिलाकर स्नान करें। स्नान के लिए बाथ टब का प्रयोग ज्यादा बेहतर होता है। पांच मिनट नहाने के बाद शरीर को पोंछ लें। मौसम इजाजत दे, तो कंबल ओढ़कर सो जाएं , ताकि शरीर गर्म रहे और पसीना आ जाए। अगर बाथ टब की सुविधा नहीं है अथवा बाथ टब में स्नान करना सुविधाजनक नहीं हो, तो एक पतीले में पानी गर्म करके उसमें एप्सम सॉल्ट मिलाएं। इस पानी में पैरों को 10 से 15 मिनट तक डुबोकर रखें। इस दौरान पैरों को हल्का-हल्का मलते रहें। पानी की गर्मी और मालिश से त्वचा के रोम-छिद्र खुल जाते हैं और एप्सम सॉल्ट शरीर के अंदर से यूरिक एसिड को बाहर खींच लेता है। पैरों को पोंछ लें और ढंक दें। इसके बाद हाथ और कोहनी को भी डुबोएं। ध्यान रहे कि पानी गर्म ही रहे। 10 से 15 मिनट बाद हाथों को भी पोंछकर ढंक लें। ताकि पसीना आ जाए। दिन भर में तीन बार इस प्रक्रिया को दोहराएं। एप्सम साल्ट युक्त गर्म पानी में एक या कई तौलिए को भिगोकर सिलसिलेवार या एक साथ जोड़ों पर रखा जा सकता है। 10 से 15 मिनट बाद गीले तौलिए हटाकर जोड़ों को पोंछ लें और फौरन कुछ ओढ़कर सो जाएं। तुरंंत खुली हवा में न जाएं। इस प्रक्रिया के बाद जोड़ों का दर्द बढ़ सकता है। यूरिक एसिड के सोखे जाने, उसके हिलने-डुलने से ऎसा होता है, जो थोड़े समय बाद ठीक हो जाता है।
इन बातों पर भी ध्यान दें
आरथ्राइटिस का इलाज शुरू करने से पूर्व किडनी, एसिडिटी और लिवर क्लींजिंग क्रमवार करें तो इलाज और भी प्रभावी होता है।
4 से 5 सप्ताह तक इलाज करें। संभव हो तो व्यायाम करें। जॉगिंग, चलना-फिरना, तैरना, साइकिल चलाना इत्यादि से साइनोवियल झिल्ली को मजबूती मिलती है।
व्यायाम धीमी गति और ध्यान से करें, ताकि जोड़ों पर अतिरिक्त दबाव न पड़ें।
Arthritis Treatment : जोड़ों के दर्द का प्राकृतिक इलाज
आरथ्राइटिस से पीडि़त प्रत्येक दस में से एक व्यक्ति अपने रोजमर्रा के कामकाज भी ठीक से नहीं कर पाता, सामान्य जीवन नहीं जी पाता! शरीर को पंगु बना देने वाली इस गंभीर समस्या को ज्यादातर लोग बढ़ती उम्र का तकाजा समझकर और लाइलाज मानकर नजरअंदाज करते रहते हैं। नेचुरोपैथी के चार-पांच हफ्ते के इलाज से गंभीर से गंभीर आरथ्राइटिस रोगी भी इस समस्या से पचास प्रतिशत तक आराम पा सकते हैं।
घुटने में तकलीफ रहती है तो सावधान हो जाएं। यह आर्थराइटिस की समस्या भी हो सकती है। अब तो यह समस्या उम्र भी नहीं देखती। बुजुर्गों के साथ अब यह समस्या युवाओं और बच्चों को भी परेशान करने लगी है।
अर्थराइटिस यानी घुटनों में दर्द की समस्या को बुजुर्गों की समस्या माना जाता था, लेकिन पिछले कुछ सालों में युवा और बच्चों तक इस बीमारी के शिकार होते जा रहे हैं। खासकर दिल्ली व तमाम शहरों में तेज रफ्तार जिंदगी के कारण खानपान, व्यायाम आदि पर उचित ध्यान न दिए जाने से यह समस्या पैदा होती है।
आर्थराइटिस एक ऐसी बीमारी है, जिसका शरीर के जोड़ों और मांसपेशियों पर असर पड़ता है। मरीज के पैरों और हड्डियों के जोड़ों में तेज दर्द होता है, जिससे चलने-फिरने में भी तकलीफ हो सकती है। कुछ खास तरह के आर्थराइटिस में शरीर के दूसरे अंग भी प्रभावित होते हैं। ऐसे में दर्द के साथ दूसरी समस्याएं भी हो सकती हैं।
आमतौर पर देखा जाता है कि हर घुटने के दर्द को लोग आर्थराइटिस समझ लेते हैं, जबकि घुटनों में दर्द के कई कारण हो सकते हैं तथा उनका इलाज भी भिन्न-भिन्न है। सही जांच तथा समय पर सही फिजियोथेरेपी महत्वपूर्ण है। फिजियोथेरेपी से तो हड्डियों की कई बीमारियां जड़ से दूर हो जाती हैं। इसमें व्यायाम के जरिय मांसपेशियों को सक्रिय बनाकर इलाज किया जाता है। इसमें एक सप्ताह से लेकर कई महीने लग जाते हैं।
आर्थराइटिस के कारण
- घुटने में चोट लगना, घुटनों पर ज्यादा जोर देना।
- लंबे समय तक एक ही अवस्था में बैठना या खड़े रहना।
- हड्डियों का बढ़ जाना एवं मांसपेशियों का कमजोर हो जाना।
- उम्र का 40 वर्ष से ज्यादा होना जिससे हड्डियां प्राय: घिस जाती हैं या कमजोर हो जाती हैं।
- जिम में विशेषज्ञों की अनुपस्थिति में व्यायाम करना।
- अपना वजन, खान-पान का स्तर, उम्र, दर्द के कारण, शरीरिक संरचना को जाने बिना टीवी पर देखकर या दूसरे व्यक्ति को देखकर योग व अन्य व्यायाम करना।
- घुटनों से सायनोवियल फ्लड (घुटनों के जोड़ के बीच मौजूद तरल पदार्थ) का निकलना।
- घुटनों के ऑपरेशन के बाद फिजियोथेरेपी नहीं करवाना।
- ऑटोइम्यून (भ्रमित प्रतिरक्षी प्रक्रिया के कारण होने वाली) बीमारियों का होना। रिवमेट्वायड आर्थराइटिस यानी रुमेटी गठिया इसी श्रेणी में आती है।
- गलत नाप, आकार-प्रकार तथा हील के चप्पल जूते पहनना।
- व्यायाम अचानक छोड़ देना।
घुटने का दर्द
घुटना एक कमजोर सायनोवियल जोड़ हैं। यह शरीर का सबसे बड़ा तथा जटिल जोड़ है। इस जोड़ में चार हड्डियां शामिल होती हैं। लगभग 15 मांसपेशियां, 13 वर्सा (गद्दीदार संरचनाएं), कई लिगामेंट, मेनिस्कस आदि भी इस जोड़ से संबद्घ होती हैं। इन कारणों से घुटने में दर्द के कारण तथा स्थान अलग हो सकते हैं।
इस दर्द से बचाव
- अपने वजन को उम्र, ऊंचाई एवं शारीरिक बनावट के अनुसार उचित रखना चाहिए। इसके लिए प्रिवेंटिव फिजियोथेरेपी के अन्तर्गत विशेष व्यायाम करना चाहिए।
- औसतन 1 से डेढ़ घंटे लगातार खड़े रहने के पश्चात् घुटनों को 5-10 मिनट का आराम देना चाहिए।
- चप्पल, जूते सही आकार-प्रकार के ही प्रयोग में लाना चाहिए।
- जिम में हमेशा विशेषज्ञों तथा कुशल फिजियोथेरेपिस्ट के निर्देशन में ही व्यायाम करना चाहिए तथा वजन उठाना चाहिए।
- नियमित रूप से डॉक्टर या फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा बताए गए घुटनों के विशिष्ट व्यायाम करना लाभदायक होता है।
- खानपान में कैल्शियम से परिपूर्ण आहार लेना चाहिए।
कैसे पाएं आराम
यह बीमारी आजीवन रहने वाली है, लेकिन अपने शरीर में कुछ बदलाव लाकर आप आर्थराइटिस के तीव्र दर्द को कम कर सकते हैं। इसके लिए कुछ उपाय भी जरूरी हैं।
- अपना वजन नियंत्रित रखें क्योंकि ज्यादा वजन से घुटने तथा कूल्हों पर दबाव पड़ता है।
- कसरत तथा जोड़ों को हिलाने से भी आपको मदद मिलेगी। जोड़ों को हिलाने में आपके डॉक्टर या नर्स भी आपकी मदद कर सकते हैं।
- समय-समय पर अपनी दवा लेते रहें। इनसे दर्द और अकड़न में राहत मिलेगी।
- सुबह गर्म पानी से नहाएं।
- डॉक्टर से समय-समय पर जांच कराते रहें।
मजबूत हड्डियों के लिए खाने की 10 चीजें
1. कम फैट वाला दूध
2. अंडे
3. पनीर
4. रागी या मड़आ
5. पालक
6. अंजीर
7. अजवाइन के पत्ते
8.मेथी के पत्ते
9.मछली
10. बादाम
क्यों होता है आरथ्राइटिस
आजकल हमारे खानपान में एसिडिक खाद्य पदार्थों की मात्रा काफी बढ़ गई है। जब हम कोई चीज खाते या पीते हैं, तो उसमें मौजूद एसिड का कुछ अंश शरीर में शेष रह जाता है और यूरिक एसिड के रूप में शरीर के विभिन्न हिस्सों, खासकर जोड़ों के बीच जमा होने लगता है। सालों जमा होते रहने के बाद यूरिक एसिड "क्रिस्टल" [ठोस] का रूप ले लेता है और जोड़ों तथा पेशियों की सामान्य गतिविधि को प्रभावित करने लगता है। पेशियों में जमा यूरिक एसिड क्रिस्टल, मस्क्युलर रिह्यूमेटिज्म के रू प में सामने आता है, तो जोड़ों के बीच जमा एसिड क्रिस्टल आरथ्राइटिस के रू प में। जोड़ों के बीच एसिड क्रिस्टल जमा होने से चलने-फिरने पर चुभने जैसा दर्द और टीस होती है। जोड़ों में जकड़न आ सकती है।
जोड़ों को ढकने वाली झिल्लियां साइनोवियल द्रव नामक तरल पदार्थ का रिसाव करती हैं, जो जोड़ों के मूवमेंट के लिए लुब्रिकेंट का काम करता है और हमारे शरीर के विभिन्न जोड़ बिना दर्द के आसानी से हिलते-डुलते रहते हैं। जोड़ों के बीच एसिड क्रिस्टल के जमा होने पर साइनोवियल झिल्ली घिसने लगती है और सूख जाती है। नतीजतन, जोड़ फ्री होकर "मूव" नहीं कर पाते ,कभी-कभार तो हडि्डयों की सतहें भी घिस जाती है और आरथ्राइटिस की समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है। मरीज की कार्य क्षमता या तो आंशिक तौर पर घट जाती है या पूरी तरह खत्म हो जाती है। मॉडर्न मेडिकल साइंस में इलाज के तौर पर दर्द निवारक दवाओं के सेवन की सलाह दी जाती है, बीमारी का कोई इलाज नहीं बताया जाता। खानपान की आदतों में उचित बदलाव लाकर, उचित व्यायाम और नेचुरोपैथी इलाजों के द्वारा आरथ्राइटिस की समस्या पर काफी हद तक नियंत्रण संभव है।
खान-पान की आदत बदलें
शरीर में जमा अतिरिक्त यूरिक एसिड को न्यूट्रल करने के लिए खानपान में क्षारीय या अल्कली पदार्थों की मात्रा को बढ़ाना चाहिए। फलों, हरी सब्जियों, दूध, बिना पॉलिश किए गए अनाज इत्यादि में अल्कली की मात्रा अधिक होती है ,जबकि पॉलिश किए गए अनाज, मांसाहारी खाद्य पदार्थों, तेल-मसाले वाले फास्ट फूड्स में एसिड की अधिकता होती है। अल्कली खाद्य पदार्थों के अधिक मात्रा में सेवन और एसिडिक पदार्थों के सेवन में कमी लाकर आरथ्राइटिस की रोकथाम संभव है। जोड़ों में जमा यूरिक एसिड क्रिस्टल को निकाल बाहर करने के लिए इलाज भी जरूरी है। प्रकृति प्रदत्त शहद,काला शीरा,एपलसाइडर विनेगर,एप्सम साल्ट जैसे पदार्थों में जोड़ों के बीच जमा क्रिस्टल को गलाने की अचूक क्षमता है।
एपल साइडर विनेगर
आरथ्राइटिस के इलाज में इसका सर्वाधिक योगदान होता है, परिणाम नजर आने में तीन से चार सप्ताह तक का समय लग सकता है। बीमारी अगर शुरूआती अवस्था में है, तो 1 से 2 सप्ताह में ही सुधार आना प्रारंभ हो जाता है। इसे दस मिली. की मात्रा में शहद के साथ दिन में तीन बार लें। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि खून में साइडर विनेगर का स्तर इतना हो जाए कि वह विभिन्न जोड़ों में जमा यूरिक एसिड को खून में घोल सके। बाद में यह यूरिक एसिड खून से किडनी द्वारा साफ होकर मूत्र मार्ग से मूत्र के साथ बाहर निकल जाता है। कभी-कभी एपल साइडर विनेगर के सेवन से रोगी का दर्द बढ़ जाता है। यह दर्द अस्थाई होता है। जोड़ों में जमा यूरिक एसिड के हिलने-गलने से ऎसा होता है। दर्द तीन-चार दिन में अपने आप ठीक हो जाता है। 4 से 5 सप्ताह तक इसका नियमित सेवन करें।
एप्सम सॉल्ट
आरथ्राइटिस के इलाज में एप्सम सॉल्ट का प्रयोग बाहरी तौर पर होता है। एप्सम सॉल्ट को गर्म स्नान के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। शरीर को सहन हो इतने गरम पानी में एप्सम सॉल्ट मिलाकर स्नान करें। स्नान के लिए बाथ टब का प्रयोग ज्यादा बेहतर होता है। पांच मिनट नहाने के बाद शरीर को पोंछ लें। मौसम इजाजत दे, तो कंबल ओढ़कर सो जाएं , ताकि शरीर गर्म रहे और पसीना आ जाए। अगर बाथ टब की सुविधा नहीं है अथवा बाथ टब में स्नान करना सुविधाजनक नहीं हो, तो एक पतीले में पानी गर्म करके उसमें एप्सम सॉल्ट मिलाएं। इस पानी में पैरों को 10 से 15 मिनट तक डुबोकर रखें। इस दौरान पैरों को हल्का-हल्का मलते रहें। पानी की गर्मी और मालिश से त्वचा के रोम-छिद्र खुल जाते हैं और एप्सम सॉल्ट शरीर के अंदर से यूरिक एसिड को बाहर खींच लेता है। पैरों को पोंछ लें और ढंक दें। इसके बाद हाथ और कोहनी को भी डुबोएं। ध्यान रहे कि पानी गर्म ही रहे। 10 से 15 मिनट बाद हाथों को भी पोंछकर ढंक लें। ताकि पसीना आ जाए। दिन भर में तीन बार इस प्रक्रिया को दोहराएं। एप्सम साल्ट युक्त गर्म पानी में एक या कई तौलिए को भिगोकर सिलसिलेवार या एक साथ जोड़ों पर रखा जा सकता है। 10 से 15 मिनट बाद गीले तौलिए हटाकर जोड़ों को पोंछ लें और फौरन कुछ ओढ़कर सो जाएं। तुरंंत खुली हवा में न जाएं। इस प्रक्रिया के बाद जोड़ों का दर्द बढ़ सकता है। यूरिक एसिड के सोखे जाने, उसके हिलने-डुलने से ऎसा होता है, जो थोड़े समय बाद ठीक हो जाता है।
इन बातों पर भी ध्यान दें
आरथ्राइटिस का इलाज शुरू करने से पूर्व किडनी, एसिडिटी और लिवर क्लींजिंग क्रमवार करें तो इलाज और भी प्रभावी होता है।
4 से 5 सप्ताह तक इलाज करें। संभव हो तो व्यायाम करें। जॉगिंग, चलना-फिरना, तैरना, साइकिल चलाना इत्यादि से साइनोवियल झिल्ली को मजबूती मिलती है।
व्यायाम धीमी गति और ध्यान से करें, ताकि जोड़ों पर अतिरिक्त दबाव न पड़ें।