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Saturday, December 29, 2012

Motivational Hindi Stories - उधार का धन, भाग्य और ज्ञान काम नहीं आता


उधार का धन, भाग्य और ज्ञान काम नहीं आता

एक प्रेरणाप्रद कथा जो अवश्य हम सबका मार्ग दर्शन करेगी

उधार का धन, भाग्य और ज्ञान काम नहीं आता. वह अपने साथ मुसीबतें भी लाता है. अपने आप अर्जित किया हुआ ही फलदायी होता है".

स्कूल के प्रिंसीपल माइक के पास पहुँचे. उन्होने सामने बैठी और खड़ी
भीड़ को देखा और बोलना शुरु किया.

आज मैं अंतिम बार इस स्कूल के प्रिंसीपल के रुप में आप सबसे बात कर रहा हूँ. इसी जगह खड़े होकर मैंने बरसों भाषण दिये हैं.आज जब मेरी नौकरी का अंतिम दिन है
इस परिसर में इस मंच से अपने अंतिम सम्बोधन में एक कथा आप सबसे, विधार्थियों से खास तौर पर, कहना चाहूँगा.

बहुत साल पहले की बात है एक लड़का था. उम्र तकरीबन आठ-नौ साल रही होगी उस समय उसकी. एक शाम वह तेजी से लपका हुआ घर की ओर जा रहा था. दोनों हाथ उसने अपने सीने पर कस कर जकड़ रखे थे और हाथों में कोई चीज छिपा रखी थी. साँस उसकी तेज चल रही थी.घर पहुँच कर वह सीधा अपने दादा के पास पहुँचा.

बाबा, देखो आज मुझे क्या मिला ?

उसने दादा के हाथ में पर्स की शक्ल का एक छोटा सा बैग थमा दिया.

ये कहाँ मिला तुझे बेटा ?

खोल कर तो देखो बाबा, कितने सारे रुपये हैं इसमें।

इतने सारे रुपये? कहाँ से लाया है तू इसे?

बाबा सड़क किनारे मिला. मेरे पैर से ठोकर लगी तो मैंने उठाकर देखा. खोला तो रुपये मिले. कोई नहीं था वहाँ मैं इसे उठा लाया.

तूने देखा वहाँ ढ़ंग से कोई खोज नहीं रहा था इसे ?

नहीं बाबा वहाँ कोई भी नहीं था. आप और बाबूजी उस दिन पैसों की बात कर रहे थे अब तो हमारे बहुत सारे काम हो जायेंगे।

पर बेटा ये हमारा पैसा नहीं है.

पर बाबा मुझे तो ये सड़क पर मिला अब तो ये मेरा ही हुआ.

दादा के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आयीं.

नहीं बेटा, ये तुम्हारा पैसा नहीं है. उस आदमी के बारे में सोचो जिसका इतना सारा पैसा खो गया है. कौन जाने कितने जरुरी काम के लिये वह इस पैसे को लेकर कहीं जा रहा हो. पैसा खो जाने से उसके सामने कितनी बड़ी परेशानी आ जायेगी. उस दुखी आदमी की आह भी तो इस पैसे से जुड़ी हुयी है। हो सकता है इस पैसे से हमारे कुछ काम हो जायें और कुछ आर्थिक परेशानियाँ इस समय कम हो जायें पर यह पैसा हमारा कमाया हुआ नहीं है, इस पैसे के साथ किसी का दुख दर्द जुड़ा हो सकता है, इन सबसे पैदा होने वाली परेशानियों की बात तो हम जानते नहीं. जाने कैसी मुसीबतें इस पैसे के साथ आकर हमें घेर लें. उस आदमी का दुर्भाग्य था कि उसके हाथ से बैग गिर गया पर वह दुर्भाग्य तो इस पैसे से जुड़ा हुआ है ही. हमें तो इसे इसके असली मालिक के पास पहुँचाना ही होगा.

किस्सा तो लम्बा है. संक्षेप में इतना बता दूँ कि लड़के के पिता और दादा ने पैसा उसके मालिक तक पँहुचा दिया.

इस घटना के कुछ ही दिनों बाद की बात है. लड़का अपने दादा जी के साथ टहल रहा था. चलते हुये लड़के को रास्ते में दस पैसे मिले, उसने झुककर सिक्का उठा लिया.

उसने दादा की तरफ देखकर पूछा,"बाबा, इसका क्या करेंगे क्या इसे यहीं पड़ा रहने दें अब इसके मालिक को कैसे ढ़ूँढ़ेंगे ?”
दादा ने मुस्कुरा कर कहा, "हमारे देश की मुद्रा है बेटा नोट छापने, सिक्के बनाने में देश का पैसा खर्च होता है. इसका सम्मान करना हर देशवासी का कर्तव्य है. इसे रख लो. कहीं दान-पात्र में जमा कर देंगे.

बाबा, इसके साथ इसके मालिक की आह नहीं जुड़ी होगी ?

बेटा, इतने कम पैसे खोने वाले का दुख भी कम होगा. इससे उसका बहुत बड़ा काम सिद्ध नहीं होने वाला था. हाँ तुम्हारे लिये इसे भी रखना गलत है. इसे दान-पात्र में डाल दो, किसी अच्छे काम को करने में इसका उपयोग हो जायेगा.

लड़के को कुछ असमंजस में पाकर दादा ने कहा, "बेटा उधार का धन, भाग्य और ज्ञान काम नहीं आता. वह अपने साथ मुसीबतें भी लाता है. अपने आप अर्जित किया हुआ ही फलदायी होता है".

आज वह लड़का आपके सामने आपके प्रिंसीपल के रुप में खड़ा है.

हंस और हंसिनी और उल्लू


हंस और हंसिनी और  उल्लू 

MUST READ MUST READ, TRUE FACT 

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए उजड़े, वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये ! हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ? यहाँ न तो जल है,
न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं ! यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !

भटकते २ शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज कि रात बितालो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !

रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे उस पर एक उल्लू बैठा था। वह जोर २ से चिल्लाने लगा। हंसिनी ने हंस से कहा, अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते। ये उल्लू चिल्ला रहा है।

हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ? ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।
पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों कि बात सुन रहा
था।

सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।
हंस ने कहा, कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद !

यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा, पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।
हंस चौंका, उसने कहा, आपकी पत्नी? अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है, मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही
है !

उल्लू ने कहा, खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है। दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग इक्कठा हो गये। कई गावों की जनता बैठी।

पंचायत बुलाई गयी। पंच लोग भी आ गये ! बोले, भाई किस बात का विवाद है ?
लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है ! लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पञ्च लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे।
हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है। इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना है ! फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों कि जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है ! यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया।
उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली ! रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई !

ऐ मित्र हंस, रुको ! हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ? पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ? उल्लू ने कहा, नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी !

लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है !

मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है ।
यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पञ्च रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं !

शायद ६५ साल कि आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने हमेशा अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है ।

इस देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं।

हर पढने वाला ध्यान से मनन करे क़ि इस बिगड़ी हुई व्यवस्था को सुधारने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

जय श्री राधे कृष्णा जी...

Motivational Hindi Stories - कितनी ज़मीन?


कितनी ज़मीन?

Leo Tolstoy
यह लेव तॉल्स्तॉय की प्रसिद्ध कहानी है :


Very good story. memory of my childhood days

एक आदमी के घर एक संन्यासी मेहमान आया – एक परिव्राजक. रात को बातें हुईं. उस परिव्राजक ने कहा, “तुम यहाँ क्या छोटी-मोटी खेती में लगे हो. साइबेरिया में मैं यात्रा पर था तो वहाँ जमीन इतनी सस्ती है कि मुफ्त ही मिलती है. तुम यह जमीन वगैरह छोड़कर साइबेरिया चले जाओ. वहाँ हजारों एकड़ जमीन मिल जाएगी. बड़ी ज़मीन में मनचाही फसल उगाओ. और लोग वहाँ के इतने सीधे-सादे हैं कि करीब-करीब मुफ्त ही जमीन दे देते हैं.”

उस आदमी के मन में लालसा जगी. उसने तुरंत ही सब बेच-बाचकर साइबेरिया की राह पकड़ी. जब पहुँचा तो उसे बात सच्ची मालूम पड़ी. उसने वहां के ज़मींदारों से कहा, “मैं जमीन खरीदना चाहता हूँ.” वे बोले, “ठीक है. जमीन खरीदने का तुम जितना पैसा लाए हो उसे मुनीम के पास जमा करा दो. जमीन बेचने का हमारा तरीका यह है कि कल सुबह सूरज के निकलते ही तुम चल पड़ो और सूरज के डूबते तक जितनी जमीन घेर सकते हो घेर लो. वह सारी जमीन तुम्हारी होगी. बस चलते जाना, चाहो तो दौड़ भी लेना. भरपूर बड़ी जमीन घेर लेना और सूरज के डूबते-डूबते ठीक उसी जगह पर लौट आना जहाँ से चले थे. बस यही शर्त है. जितनी जमीन तुम घेर लोगे, उतनी जमीन तुम्हारी हो जाएगी.”

यह सुनकर रात-भर तो सो न सका वह आदमी. कोई और भी नहीं सो पाता. ऐसे क्षणों में कोई सोता है? रात भर वह ज्यादा से ज्यादा ज़मीन घेरने की तरकीबें लगाता रहा. सुबह सूरज निकलने के पहले ही भागा. उसका कारनामा देखने के लिए पूरा गाँव इकट्ठा हो गया था. सुबह का सूरज ऊगा, वह भागा. उसने साथ अपनी रोटी भी ले ली थी, पानी का भी इंतजाम कर लिया था. रास्ते में भूख लगे, प्यास लगे तो सोचा था चलते ही चलते खाना भी खा लूँगा, पानी भी पी लूँगा. रुकना नहीं है; चलना भी नहीं है, बस दौड़ते रहना है. सोचा उसने, चलने से तो आधी ही जमीन कर पाऊँगा, दौड़ने से दुगनी हो सकेगी – वह भागा… बहुत तेज भागा….

उसने सोचा था कि ठीक बारह बजे लौट पड़ूँगा, ताकि सूरज डूबते-डूबते पहुँच जाऊँ. बारह बज गए, मीलों चल चुका है, मगर वासना का कोई अंत है? उसने सोचा कि बारह तो बज गए, लौटना चाहिए; लेकिन सामने और उपजाऊ जमीन, और उपजाऊ जमीन… थोड़ी सी और घेर लूँ तो क्या हर्ज़ है! वापसी में ज्यादा तेज़ दौड़ लूँगा. इतनी ही बात है, फिर तो पूरी ज़िंदगी आराम ही करना है. एक ही दिन की तो बात है!

उसने पानी भी न पीया, क्योंकि उसके लिए रुकना पड़ेगा. सोचा, एक दिन की ही तो बात है, बाद में पी लेंगे पानी, फिर जीवन भर पीते रहेंगे. उस दिन उसने खाना भी न खाया. रास्ते में उसने खाना भी फेंक दिया, पानी भी फेंक दिया, क्योंकि उनका वजन भी ढोना पड़ा रहा है, इसलिए दौड़ ठीक से नहीं पा रहा है. उसने अपना कोट भी उतार दिया, अपनी टोपी भी उतार दी, जितना हल्का हो सकता था हो गया.

एक बज गया, लेकिन लौटने का मन नहीं होता, क्योंकि आगे और अच्छी ज़मीन नज़र आती है. लेकिन लौटना तो था ही, दोपहर के दो बज रहे थे. वह घबरा गया. अब शरीर जवाब दे रहा था. सारी ताकत लगाई; लेकिन ताकत तो चुकने के करीब आ गई थी. सुबह से दौड़ रहा था, हाँफ रहा था, घबरा रहा था कि पहुँच पाऊँगा सूरज डूबते तक कि नहीं. सारी ताकत लगा दी. पागल होकर दौड़ा. सब दाँव पर लगा दिया. और सूरज डूबने लगा… ज्यादा दूरी भी नहीं रह गई है, लोग दिखाई पड़ने लगे. गाँव के लोग खड़े हैं और आवाज दे रहे हैं कि आ जाओ, आ जाओ! उत्साह दे रहे हैं, भागे आओ! कैसे देहाती लोग हैं, – सोचने लगा मन में; इनको तो सोचना चाहिए कि मैं मर ही जाऊँ, तो इनको धन भी मिल जाए और जमीन भी न जाए. मगर वे बड़ा उत्साह दे रहे हैं कि भागे आओ!

उसने आखिरी दम लगा दी – भागा, भागा… सूरज डूबने लगा; इधर सूरज डूब रहा है, उधर भाग रहा है… सूरज डूबते-डूबते बस जाकर गिर पड़ा. कुछ पाँच-सात गज की दूरी रह गई है; घिसटने लगा.

अभी सूरज की आखिरी कोर क्षितिज पर रह गई – घिसटने लगा. और जब उसका हाथ उस जमीन के टुकड़े पर पहुँचा, जहाँ से भागा था, उस खूँटी पर, सूरज डूब गया. वहाँ सूरज डूबा, यहाँ यह आदमी भी मर गया. इतनी मेहनत कर ली! शायद दिल का दौरा पड़ गया. और सारे गाँव के लोग जिन्हें वह सीधा-सादा समझ रहा था, वे हँसने लगे और एक-दूसरे से बात करने लगे!

“ये पागल आदमी आते ही जाते हैं! इस तरह के पागल लोग आते ही रहते हैं!”

यह कोई नई घटना न थी, अक्सर लोग आ जाते थे खबरें सुनकर, और इसी तरह मरते थे. यह कोई अपवाद नहीं था, यही नियम था. अब तक ऐसा एक भी आदमी नहीं आया था, जो घेरकर जमीन का मालिक बन पाया हो. उस गाँव के लोगों के खाने-कमाने का जरिया थे ऐसे आदमी.

यह कहानी तुम्हारी कहानी है, तुम्हारी जिंदगी की कहानी है, सबकी जिंदगी की कहानी है. यही तो तुम कर रहे हो – दौड़ रहे हो कि कितनी जमीन घेर लें! बारह भी बज जाते हैं, दोपहर भी आ जाती है, लौटने का भी समय होने लगता है – मगर थोड़ा और दौड़ लें! न भूख की फिक्र है, न प्यास की फिक्र है.

जीने का समय कहाँ है? पहले जमीन घेर लें, पहले तिजोरी भर लें, पहले बैंक में रुपया इकट्ठा हो जाए; फिर जी लेंगे, फिर बाद में जी लेंगे, एक ही दिन का तो मामला है. और कभी कोई नहीं जी पाता. गरीब मर जाते हैं भूखे, अमीर मर जाते हैं भूखे, कभी कोई नहीं जी पाता. जीने के लिए थोड़ा सुकून चाहिए. जीने के लिए थोड़ी समझ चाहिए. जीवन मुफ्त नहीं मिलता. जीने के लिए बोध चाहिए.


Motivational Hindi Stories - जेब कट चुकी थी

 Motivational Hindi Stories - जेब कट चुकी थी


बस से उतरकर जेब में हाथ डाला। मैं चौंक पड़ा।
जेब कट चुकी थी। जेब में था भी क्या? कुल
नौ रुपए और एक खत,
जो मैंने
माँ को लिखा था कि—मेरी नौकरी छूट गई है;

अभी पैसे नहीं भेज पाऊँगा…।
तीन दिनों से वह पोस्टकार्डजेब में पड़ाथा।
पोस्ट करने को मन ही नहीं कर रहा था।
नौ रुपए जा चुके थे।यूँ नौ रुपए कोई बड़ी रकम

नहीं थी, लेकिन जिसकी नौकरी छूट चुकी हो,
उसके लिएनौ रुपए नौ सौ से कम नहीं होते।
कुछ दिन गुजरे। माँ का खत मिला। पढ़ने से पूर्वमैं
सहम गया।
जरूर पैसे भेजने को लिखाहोगा।….
लेकिन, खत पढ़कर मैं हैरान रह गया।
माँ ने लिखाथा—“बेटा, तेरा पचास रुपए
का भेजा हुआ मनीआर्डर मिल गया है।तू
कितना अच्छा है रे!…पैसे भेजने में
कभी लापरवाहीनहीं बरतता।”
मैं इसी उधेड़- बुन में लग गया कि आखिर
माँ को मनीआर्डर किसने भेजाहोगा?
कुछ दिन बाद, एक और पत्र मिला। चंद लाइनें
थीं—आड़ी-तिरछी। -­ ­
बड़ी मुश्किल से खत पढ़
पाया।
लिखा था—“भाई, नौ रुपए तुम्हारे और
इकतालीस रुपए अपनी ओर सेमिलाकर मैंने
तुम्हारी माँ को मनीआर्डर भेज दिया है। फिकर
न करना।….
माँ तो सबकी एक-जैसी होती है न।
वह क्यों भूखी रहे?…
तुम्हारा—जेबकतरां


Motivational Hindi Stories - सबसे बड़ा सबक


Motivational Hindi Stories - सबसे बड़ा सबक

चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में चीन से एक दूत आया. वह चाणक्य के साथ ‘राजनीति के दर्शन’ पर विचार-विमर्श करना चाहता था. चीनी राजदूत राजशाही ठाठबाठ वाला अक्खड़ किस्म का था. उसने चाणक्य से बातचीत के लिए समय मांगा. चाणक्य ने उसे अपने घर रात को आने का निमंत्रण दिया.

उचित समय पर चीनी राजदूत चाणक्य के घर पहुँचा. उसने देखा कि चाणक्य एक छोटे से दीपक के सामने बैठकर कुछ लिख रहे हैं. उसे आश्चर्य हुआ कि चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार का बड़ा ओहदेदार मंत्री इतने छोटे से दिए का प्रयोग कर रहा है.

चीनी राजदूत को आया देख चाणक्य खड़े हुए और आदर सत्कार के साथ उनका स्वागत किया. और इससे पहले कि बातचीत प्रारंभ हो, चाणक्य ने वह छोटा सा दीपक बुझा दिया और एक बड़ा दीपक जलाया. बातचीत समाप्त होने के बाद चाणक्य ने बड़े दीपक को बुझाया और फिर से छोटे दीपक को जला लिया.

चीनी राजदूत को चाणक्य का यह कार्य बिलकुल ही समझ में नहीं आया. चलते-चलते उसने पूछ ही लिया कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया.

चाणक्य ने कहा – जब आप मेरे घर पर आए तो उस वक्त मैं अपना स्वयं का निजी कार्य कर रहा था, तो उस वक्त मैं अपना स्वयं का दीपक प्रयोग में ले रहा था. जब हमने राजकाज की बातें प्रारंभ की तब मैं राजकीय कार्य कर रहा था तो मैंने राज्य का दीपक जलाया. जैसे ही हमारी राजकीय बातचीत समाप्त हुई, मैंने फिर से स्वयं का दीपक जला लिया.

चाणक्य ने आगे कहा - मैं कभी ‘राज्य का मंत्री’ होता हूँ, तो कभी राज्य का ‘आम आदमी’. मुझे दोनों के बीच अंतर मालूम है.

Motivational Hindi Stories - नदी का पानी बिकाऊ


नदी का पानी बिकाऊ

गुरू जी के प्रवचन में एक गूढ़ वाक्य शामिल था।

कटु मुस्कराहट के साथ वे बोले, "नदी के तट पर बैठकर नदी का पानी बेचना ही मेरा कार्य है"।

और मैं पानी खरीदने में इतना व्यस्त था कि मैं नदी को देख ही नहीं पाया।

"हम जीवन की समस्याओं और आपाधापी के कारण प्रायः सत्य को नहीं पहचान पाते।"


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Motivational Hindi Stories - रंग - रूप


रंग - रूप

कालिदास से एक बार राजा ने पूछा – कालिदास, ईश्वर ने आपको बुद्धि तो भरपूर दी है, मगर रूप-रंग देने में भी यदि ऐसी ही उदारता वे बरतते तो बात ही कुछ और होती. 

कालिदास ने राजा के व्यंग्यात्मक लहजे को पहचान लिया. कालिदास ने कुछ नहीं कहा, परंतु सेवक को पानी से भरे एक जैसे दो पात्र लाने को कहा – एक सोने का एक मिट्टी का. 

दोनों पात्र लाए गए. गर्मियों के दिन थे. कालिदास ने राजा से पूछा – राजन्! क्या आप बता सकते हैं कि इनमें से किस पात्र का पानी पीने के लिए उत्तम है? 

राजा ने छूटते ही उत्तर दिया – यह तो सीधी सी बात है, मिट्टी का. और फिर तुरंत उन्हें अहसास हुआ कि कालिदास क्या कहना चाहते हैं! 

"बाह्य रूपरंग सरसरी तौर पर लुभावना लग सकता है, मगर असली सुंदरता तो आंतरिक होती है. मिट्टी का घड़ा आपकी (वास्तविक) प्यास बुझा सकता है, सोने का घड़ा नहीं!"

Motivational Hindi Stories- मैं तुझे तो कल देख लूंगा


मैं तुझे तो कल देख लूंगा

सूफी संत जुनैद के बारे में एक कथा है.

एक बार संत को एक व्यक्ति ने खूब अपशब्द कहे और उनका अपमान किया. संत ने उस व्यक्ति से कहा कि मैं कल वापस आकर तुम्हें अपना जवाब दूंगा.

अगले दिन वापस जाकर उस व्यक्ति से कहा कि अब तो तुम्हें जवाब देने की जरूरत ही नहीं है.

उस व्यक्ति को बेहद आश्चर्य हुआ. उस व्यक्ति ने संत से कहा कि जिस तरीके से मैंने आपका अपमान किया और आपको अपशब्द कहे, तो घोर शांतिप्रिय व्यक्ति भी उत्तेजित हो जाता और जवाब देता. आप तो सचमुच विलक्षण, महान हैं.

संत ने कहा – मेरे गुरु ने मुझे सिखाया है कि यदि आप त्वरित जवाब देते हैं तो वह आपके अवचेतन मस्तिष्क से निकली हुई बात होती है. इसलिए कुछ समय गुजर जाने दो. चिंतन मनन हो जाने दो. कड़वाहट खुद ही घुल जाएगी. तुम्हारे दिमाग की गरमी यूँ ही ठंडी हो जाएगी. आपके आँखों के सामने का अँधेरा जल्द ही छंट जाएगा. चौबीस घंटे गुजर जाने दो फिर जवाब दो
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Motivational Hindi Stories - सूफी कथा


सूफी कथा 

यह एक सूफी कथा है. किसी गाँव में एक बहुत सरल स्वभाव का आदमी रहता था. वह लोगों को छोटी-मोटी चीज़ें बेचता था. उस गाँव के सभी निवासी यह समझते थे कि उसमें निर्णय करने, परखने और आंकने की क्षमता नहीं थी. इसीलिए बहुत से लोग उससे चीज़ें खरीदकर उसे खोटे सिक्के दे दिया करते थे. वह उन सिक्कों को ख़ुशी-ख़ुशी ले लेता था. किसी ने उसे कभी भी यह कहते नहीं सुना कि ‘यह सही है और यह गलत है’. कभी-कभी तो उससे सामान लेनेवाले लोग उसे कह देते थे कि उन्होंने दाम चुका दिया है, और वह उनसे पलटकर कभी नहीं कहता था कि ‘नहीं, तुमने पैसे नहीं दिए हैं’. वह सिर्फ इतना ही कहता ‘ठीक है’, और उन्हें धन्यवाद देता.

दूसरे गाँवों से भी लोग आते और बिना कुछ दाम चुकाए उससे सामान ले जाते या उसे खोटे पैसे दे देते. वह किसी से कोई शिकायत नहीं करता.

समय गुज़रते वह आदमी बूढ़ा हो गया और एक दिन उसकी मौत की घड़ी भी आ गयी. कहते हैं कि मरते हुए ये उसके अंतिम शब्द थे: – “मेरे खुदा, मैंने हमेशा ही सब तरह के सिक्के लिए, खोटे सिक्के भी लिए. मैं भी एक खोटा सिक्का ही हूँ, मुझे मत परखना. मैंने तुम्हारे लोगों का फैसला नहीं किया, तुम भी मेरा फैसला मत करना.”

ऐसे आदमी को खुदा कैसे परखता?

अच्छाई का बूमरैंग


अच्छाई का बूमरैंग
प्रेरक कहानियाँ -

हमारे विचारों में, कार्यों में, और व्यवहार में जो कुछ भी होता है वह देरसबेर हमारी और पलटकर वापस ज़रूर आता है. ऊपर जाते समय राह में मिलनेवालों से अच्छा बर्ताव करना चाहिए क्योंकि नीचे जाते समय वे रास्ते में फिर मिल सकते हैं.

कई साल पहले एक लड़का स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहा था. उसके सामने आर्थिक समस्या थी और पढ़ाई जारी रखने के लिए धन जुटाने का कोई रास्ता न था. उसे एक उपाय सूझा. उसने सोचा कि वह महान पियानो वादक इग्नेसी पेडेरेस्की का एक पियानो वादन कार्यक्रम आयोजित करके उससे होनेवाली आय से अपने रहने-खाने और पढ़ाई का खर्चा निकाल लेगा.

पेडेरेस्की के मैनेजर ने फीस के रूप में 2,000 डॉलर की मांग रखी. उस जमाने में यह बहुत बड़ी रकम होती थी लेकिन लड़के ने इसके लिए हामी भर दी और कार्यक्रम की तैयारी में जुट गया. उसने बहुत हाथ-पैर मारे लेकिन केवल 1,600 डॉलर ही जुटा पाया. कार्यक्रम की समाप्ति पर उसने पेडेरेस्की को इतनी ही रकम जमा कर पाने की सूचना दी और 1,600 डॉलर के साथ 400 डॉलर का एक वचनपत्र दिया जिसमें यह लिखा था कि वह यथासंभव बाकी की धनराशि जमा करके पेडेरेस्की को भेज देगा. उसका आर्थिक संकट अब और विकराल हो गया था.

“नहीं” – पेडेरेस्की बोले – “मुझे यह नहीं चाहिए” – और वचनपत्र को फाड़ते हुए कहा – “इन 1,600 डॉलर में से अपने सारे खर्चे निकालकर जो बचे उसमें से 10% रख लो और बाकी धन मुझे दे दो”. लड़के को यह सुनकर बड़ी राहत मिली.

हर्बर्ट हूवर और इग्नेसी पेडेरेस्की
साल गुज़रते चले गए. प्रथम विश्व युद्ध छिड़ा और चला गया. पेडेरेस्की अब पोलैंड के राष्ट्रपति थे और उनके देश में घोर अकाल पड़ने के कारण नागरिक अन्न को तरस रहे थे. पूरी दुनिया में एक ही आदमी उनकी मदद कर सकता था जिसका नाम हर्बर्ट हूवर था और वह यूएस खाद्य और सहायता ब्यूरो का प्रमुख था. हूवर ने पोलैंड पर आये संकट के बारे में सुनकर तुरंत हजारों टन अनाज जहाजों में लदवा कर पोलैंड भेज दिया और इसके लिए कोई पैसा नहीं लिया. जब पोलैंड की खाद्य समस्या का कुछ निराकरण हो गया तब पेडेरेस्की पेरिस में हूवर से मिले और उन्हें सहायता के लिए धन्यवाद दिया.

हूवर ने उनसे कहा – “कोई बात नहीं, मिस्टर पेडेरेस्की… शायद आपको याद नहीं पर मुझे याद है कि आपने संकट के क्षणों में मेरी सहायता की थी जब मैं स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ रहा था”.

आगे चलकर हर्बर्ट हूवर अमेरिका का इकतीसवां राष्ट्रपति बना और उसने पोलैंड की हर मामले में सहायता की.

अच्छाई बूमरैंग की तरह पलटकर वापस आती है. ऐसा अक्सर होता है.

(A motivational / inspiring anecdote – boomerang of goodness – Herbert Hoover and Ignacy Jan Pederewski – in Hindi)

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