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हॉन्टेड विलेज "कुलधरा"(Haunted Village Kuldhara) - एक श्राप के कारण 170 सालों से हैं वीरान - रात को रहता है भूत प्रेतों का डेरा
हमारे देश भारत के कई शहर अपने दामन में कई रहस्यमयी घटनाओ को समेटे हुए है ऐसी ही एक घटना हैं राजस्थान के जैसलमेर जिले के कुलधरा(Kuldhara) गाँव कि, यह गांव पिछले 170 सालों से वीरान पड़ा हैं।कुलधरा(Kuldhara) गाँव के हज़ारों लोग एक ही रात मे इस गांव को खाली कर के चले गए थे और जाते जाते श्राप दे गए थे कि यहाँ फिर कभी कोई नहीं बस पायेगा। तब से गाँव वीरान पड़ा
जैसलमेर से 15 किलोमीटर दूर स्थित यह गांव अब एक बड़ा टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन चुका है और हर रोज सैकड़ों सैलानी यहां आते हैं। आज से लगभग 170 साल पहले कुलधरा गांव में बसे सैकड़ों लोग अपना घरबार छोड़कर रातों-रात ऐसे गायब हुए कि उनका नामो-निशान नहीं मिला।
यह गांव रातों रात क्यों खाली हुआ, किस समाज के लोग यहां रहते थे, आखिर इस गांव के लोग कहां चले गए। आज तक यह गांव दुबारा क्यों नही बस सका? ऐसे सैकड़ों सवाल आपके जेहन में भी कौंध रहे होंगे। चलो अब हम इस गांव से जुड़ी एक-एक कहानी को आपसे साझा करते हैं।
कुलधरा के वीरान होने कि कहानी (Story of Kuldhara) :
जो गाँव इतना विकसित था तो फिर क्या वजह रही कि वो गाँव रातों रात वीरान हो
गया। इसकी वजह था गाँव का अय्याश दीवान सालम सिंह जिसकी गन्दी
नज़र गाँव कि एक खूबसूरत लड़की पर पड़ गयी थी। दीवान उस लड़की के पीछे इस
कदर पागल था कि बस किसी तरह से उसे पा लेना चाहता था। उसने इसके लिए
ब्राह्मणों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। हद तो तब हो गई कि जब सत्ता के मद
में चूर उस दीवान ने लड़की के घर संदेश भिजवाया कि यदि अगले पूर्णमासी तक
उसे लड़की नहीं मिली तो वह गांव पर हमला करके लड़की को उठा ले जाएगा।
गांववालों के लिए यह मुश्किल की घड़ी थी। उन्हें या तो गांव बचाना था या
फिर अपनी बेटी। इस विषय पर निर्णय लेने के लिए सभी 84 गांव वाले एक मंदिर
पर इकट्ठा हो गए और पंचायतों ने फैसला किया कि कुछ भी हो जाए अपनी लड़की उस
दीवान को नहीं देंगे।
फिर क्या था, गांव वालों ने गांव खाली करने का निर्णय कर लिया और रातोंरात
सभी 84 गांव आंखों से ओझल हो गए। जाते-जाते उन्होंने श्राप दिया कि आज के
बाद इन घरों में कोई नहीं बस पाएगा। आज भी वहां की हालत वैसी ही है जैसी उस
रात थी जब लोग इसे छोड़ कर गए थे।
कहा जाता है कि यह गांव रूहानी ताकतों के कब्जे में हैं :
आज भी है श्राप का असर:
पालीवाल ब्राह्मणों के श्राप का असर यहां आज भी देखा जा सकता है। जैसलमेर के स्थानीय निवासियों की मानें तो कुछ परिवारों ने इस जगह पर बसने की कोशिश की थी, लेकिन वह सफल नहीं हो सके। स्थानिय लोगों का तो यहां तक कहना है कि कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जो वहां गए जरूर लेकिन लौटकर नहीं आए। उनका क्या हुआ, वे कहां गए कोई नहीं जानता
एक बेटी की इज्जत के लिए उजड़ गया पूरा गांव !
kuldhara_haunted_village_1सबसे ज्यादा प्रचलित कहानी के दौरान राजस्थान के कुलधरा गांव के रातों-रात खाली होने के पीछे यह दावा किया जा रहा है कि इस गांव के लोग अपनी बेटी की इज्जत बचाने के लिए रातों-रात गायब हो गए थे। ऐसा माना जाता है कि गांव के खाली होने के पीछे सबसे बड़ा कारण एक सिरफिरा दीवान था, जिसकी नीयत गांव की लड़की पर बिगड़ गई थी।
मान्यता के अनुसार कुलधरा गांव में पालीवाल ब्राह्मण रहा करते थे। ऐसा कहा जाता है कि गांव को यहां के अय्याश दीवान सालम सिंह की बुरी नजर गांव के ही एक ब्राह्मण की लड़की पर पड़ी। दीवान उस लड़की के पीछे इस कदर पागल था कि किसी भी कीमत पर उसे पा लेना चाहता था। उसने इसके लिए ब्राह्मणों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया।
kuldhara-village-jaisalmer-ruins-and-remainsहद तो तब हो गई कि जब सत्ता के मद में चूर उस दीवान ने लड़की के घर संदेश भिजवाया कि यदि अगली पूर्णमासी तक उसे लड़की नहीं मिली तो वह गांव पर हमला करके लड़की को उठा ले जाएगा। ग्रामीणों के लिए यह मुश्किल की घड़ी थी। उन्हें या तो गांव बचाना था या फिर अपनी बेटी।
इस विषय पर निर्णय लेने के लिए सभी ग्रामीण एक मंदिर में एकत्र हो गए और पंचायतों ने फैसला किया कि कुछ भी हो जाए अपनी लड़की उस अय्याश दीवान को नहीं सौंपेंगे। फिर क्या था, गांव वालों ने गांव खाली करने का निर्णय कर लिया और रातों-रात सभी ग्रामीण गांव छोड़ कर चले गए।
ग्रामीणों ने ही दिया श्राप अपने गांव को दीवान के खौफ और अत्याचार के कारण अपना गांव तो छोड़कर ग्रामीण चले गए, लेकिन जाते-जाते उन्होंने अपने गांव को श्राप दिया कि आज के बाद यहां के घरों में कोई नहीं बस पाएगा। 170 साल बीतने के बाद भी आज भी इस गांव की हालत वैसी ही है जैसी उस रात थी, जब ग्रामीण इसे छोड़ कर गए थे।
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राजा के अत्याचार के कारण भी गांव छोड़ने की कहानी
एक अन्य मान्यता के अनुसार कुलधरा गांव पर शासन करने वाला राजा गांव के पालीवाल ब्राह्मणों को खत्म कर देना चाहते था। वह आए दिन इन ब्राह्मणों पर अत्याचार करता था। राजा के ब्राह्मणों से क्रूर व्यवहार तो करता ही था, साथ ही उन्हें गुलाम बनाकर रखना चाहता था।
इसी कारण गांव के लोगों ने यह निर्णय लिया कि वे इस जगह को छोड़ देंगे और जाते समय उन्होंने इस गांव को शापित कर दिया कि उनके बाद यहां पर कोई बस नहीं सकेगा।
रुहानी ताकतों का हर कदम पर होता है आभास
कुलधरा गांव आज एक बड़ा टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन चुका है और हर रोज सैकड़ों सैलानी यहां आते हैं। kuldhara-village-jaisalmer-temple-steepleअधिकतर सैलानी दावा करते हैं कि उन्हें यहां कदम-कदम पर रुहानी ताकतों के होने का आभास होता है। 170 साल पहले जैसलमेर के पास बसे इस गांव में एक रात में ही ऐसी वीरानी छा गई, जो आज तक कायम है। गांव के लोग कहां गए और कैसे गए, यह सवाल आज भी एक रहस्य बना हुआ है।
चूड़ियों की खनक और पायल की झनकार देती है सुनाई
टूरिस्ट प्लेस में बदल चुके कुलधरा गांव घूमने आने वालों के अनुसार यहां रहने वाले पालीवाल ब्राह्मण परिवारों की महिलाओं की उपस्थिति आज भी महसूस होती है।
इन महिलाओं की चूड़ियों की खनक यहां आने वाले कई सैलानियों को सुनाई दी हैं। इन सैलानियों को यहां हरपल ऐसा आभास होता है कि उनके आसपास कोई चल रहा है। गांव के उजाड़ पड़े बाजार में भी चहल-पहल की आवाजें आती हैं, साथ ही महिलाओं के बात करने, उनकी पायलों की छन-छन की आवाज माहौल को डरावना बना देती हैं, जबकि यह गांव पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो चुका है और सुनसान है।
kuldhara-village-jaisalmer-umbrella हर मौसम में अनुकूल था कुलधरा
खंडहर में तब्दील हो चुके इस गांव का गहन अध्ययन करने वालों का कहा है कि रेगिस्तान में बसे इस गांव के निर्माण में पूरी वैज्ञानिक तरीके का इस्तेमाल किया गया थ। झुलसा देने वाली भयंकर गर्मी में भी यहां के मकान ऐसे ठंडे रहते थे, जैसे एयरकंडीशनर चल रहा हो, साथ ही सर्दी के मौसम में इन घरों का तापमान सामान्य बना रहता था। गर्मी के मौसम में हवा दीवारों से टकराती हुई हर घर के भीतर होकर गुजरती थी। घरों के बीच फासले को कम करने के लिए झरोखों की मदद ली गई थी। ईंट-पत्थर से बने इस गांव की बनावट ऐसी थी कि यहां कभी गर्मी का अहसास नहीं होता था।
श्राप का असर है आज भी कायम
पालीवाल ब्राह्मणों के श्राप का असर यहां आज भी देखा जा सकता है। जैसलमेर के स्थानीय निवासियों की मानें तो कुछ परिवारों ने इस जगह पर बसने की कोशिश की थी, लेकिन अलौकिक शक्तियों के प्रकोप के कारण उलटे पांव उन्हें इस गांव से भागना पड़ा। जैसलमेर के स्थानीय निवासियों का तो यहां तक कहना है कि कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जो कुलधरा गांव में बसने के लिए गए जरूर थे, लेकिन वे कभी लौटकर नहीं आए। उनका क्या हुआ, वे कहां गए, इस बारे में कोई नहीं जानता। नहीं लगते थे घरों दरवाजों पर ताले जैसलमेर के आसपास बसे लगभग 84 गांवों में से केवल कुलधरा गांव ही ऐसा था, जिसके घरों के दरवाजों पर कभी ताला नहीं लगाया जाता था। इस गांव की एक और यह खासियत थी कि इसके दो घरों के बीच काफी दूरी होती थी, लेकिन इसके बावजूद जैसे ही कोई इंसान गांव के मुख्य द्वार पर आता था उसके चलने की आवाज गांव के हर घर में सुनाई देती थी।
सोने की चाह में जगह-जगह हो चुकी है खुदाई
देश-विदेश से यहां लोग जहां पुरा महत्व की चीजों को समझने के लिए आते हैं, वहीं कई लोग यहां जमीन में दबे सोने की खोज में खाक छानते हैं।इतिहासकारों के अनुसार पालीवाल ब्राह्मणों ने अपनी संपत्ति, जिसमें भारी मात्रा में सोना-चांदी और हीरे-जवाहरात थे, उसे जमीन के अंदर दबा रखा था। यही कारण है कि जो कोई भी यहां आता है, वह जगह-जगह खुदाई करने लग जाता है। इस उम्मीद से कि शायद वह सोना उनके हाथ लग जाए। यह गांव आज भी जगह-जगह से खुदा हुआ मिलता है
पेरानार्मल सोसायटी की टीम ने कि कुलधरा में पड़ताल :-
मई 2013 मे दिल्ली से आई भूत प्रेत व आत्माओं पर रिसर्च करने वाली पेरानार्मल सोसायटी की टीम ने कुलधरा(Kuldhara) गांव में बिताई रात। टीम ने माना कि यहां कुछ न कुछ असामान्य जरूर है। टीम के एक सदस्य ने बताया कि विजिट के दौरान रात में कई बार मैंने महसूस किया कि किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, जब मुड़कर देखा तो वहां कोई नहीं था। पेरानॉर्मल सोसायटी के उपाध्यक्ष अंशुल शर्मा ने बताया था कि हमारे पास एक डिवाइस है जिसका नाम गोस्ट बॉक्स है। इसके माध्यम से हम ऐसी जगहों पर रहने वाली आत्माओं से सवाल पूछते हैं। कुलधरा में भी ऐसा ही किया जहां कुछ आवाजें आई तो कहीं असामान्य रूप से आत्माओं ने अपने नाम भी बताए। शनिवार चार मई की रात्रि में जो टीम कुलधरा गई थी उनकी गाडिय़ों पर बच्चों के हाथ के निशान मिले। टीम के सदस्य जब कुलधरा गांव में घूमकर वापस लौटे तो उनकी गाडिय़ों के कांच पर बच्चों के पंजे के निशान दिखाई दिए। (जैसा कि कुलधरा(Kuldhara) गई टीम के सदस्यों ने मीडिया को बताया )
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कुलधरा पालीवालों ब्राह्मणो का गांव था और एक दिन अचानक यहां फल-फूल रहे पालीवाल ब्राह्मण अपनी इस सरज़मीं को छोड़कर अन्यत्र चले गये । उसके बाद से कुलधरा पर कोई बस नहीं सका । कोशिशें बहुत हुईं पर नाकाम हो गयीं । कुलधरा के अवशेष आज भी विशेषज्ञों और पुरातत्वविदों के अध्ययन का केंद्र हैं । कई मायनों में पालीवालों ब्राह्मणो ने कुलधरा को वैज्ञानिक आधार पर विकसित किया था ।
कुलधरा जैसलमेर से लगभग अठारह किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है ।कहते हैं कि पालीवाल समुदाय के इस इलाक़े में चौरासी गांव थे और यह उनमें से एक था । मेहनती और रईस पालीवाल ब्राम्हणों की कुलधार शाखा ने सन 1291 में तकरीबन छह सौ घरों वाले इस गांव को बसाया था । पालीवाल नाम दरअसल इसलिए पड़ा क्योंकि वो राजस्थान के पाली इलाक़े के रहने वाले थे । पालीवाल ब्राम्हण होते हुए भी बहुत ही उद्यमी समुदाय था । अपनी बुद्धिमत्ता, अपने कौशल और अटूट परिश्रम के रहते पालीवालों ने धरती पर सोना उगाया था । हैरत की बात ये है कि पाली से कुलधरा आने के बाद पालीवालों ने रेगिस्तानी सरज़मीं के बीचोंबीच इस गांव को बसाते हुए खेती पर केंद्रित समाज की परिकल्पना की थी । रेगिस्तान में खेती । पालीवालों के समृद्धि का रहस्य था । जिप्सम की परत वाली ज़मीन को पहचानना और वहां पर बस जाना । पालीवाल अपनी वैज्ञानिक सोच, प्रयोगों और आधुनिकता की वजह से उस समय में भी इतनी तरक्की कर पाए थे ।
पालीवाल समुदाय आमतौर पर खेती और मवेशी पालने पर निर्भर रहता था । और बड़ी शान से जीता था । जिप्सम की परत बारिश के पानी को ज़मीन में अवशोषित होने से रोकती और इसी पानी से पालीवाल खेती करते । और ऐसी वैसी नहीं बल्कि जबर्दस्त फसल पैदा करते । पालीवालों के जल-प्रबंधन की इसी तकनीक ने थार रेगिस्तान को इंसानों और मवेशियों की आबादी या तादाद के हिसाब से दुनिया का सबसे सघन रेगिस्तान बनाया । पालीवालों ने ऐसी तकनीक विकसित की थी कि बारिश का पानी रेत में गुम नहीं होता था बल्कि एक खास गहराई पर जमा हो जाता था ।गांव के तमाम घर झरोखों के ज़रिए आपस में जुड़े थे इसलिए एक सिरे वाले घर से दूसरे सिरे तक अपनी बात आसानी से पहुंचाई जा सकती थी । घरों के भीतर पानी के कुंड, ताक और सीढि़यां कमाल के हैं । कहते हैं कि इस कोण में घर बनाए गये थे कि हवाएं सीधे घर के भीतर होकर गुज़रती थीं । कुलधरा के ये घर रेगिस्तान में भी वातानुकूलन का अहसास देते थे ।
ऐसा उन्नत और विकसित गांव एक दिन अचानक खाली कैसे हो गया ?
मिसालें तो बहुत मिलती हैं ,पर कुछ मिसालें याद की जाती हैं । क्योंकि वो अनोखी होती हैं । मिसाल सिर्फ एक शख्स की नही ,एक घर की नही , एक कुनबे की नही , एक गाँव की भी नही यह मिसाल है 84 गांवों के हजारों लोगों की है ।एक तरफ लड़की की इज्ज़त और दूसरी तरफ हज्जारों लोग ।गाँव के हज्जारो ब्राह्मणो के पास समय था तो सिर्फ एक रात का एक रात मे ही उनको यह तय करना था की या अपनी लड़की की इज्जत का सोदा कर लो या सजा के लिए तैयार रहो । सजा भी एसी की खुद सजा भी काँप जाए । परंतु उन ब्राह्मणो ने रातो-रात एक फैसला किया और पूरे 84 गाँव के हज्जारो ब्राह्मणो ने रातो-रात गाव खाली कर जो बलिदान दिया ऊस की मिसाल दूसरी कोई नही हो सकती । असली मे इस गांव को गाँव के दीवान सालम सिंह की नजर लग गई । सालम सिंह एक अय्याश दीवान था । वो था तो सिर्फ एक दीवान परंतु बड़ों का मुह लगा था । इस दीवान की नजर ब्राह्मणो की एक लड़की पर पड गई । वो इस तरह उतावला हुआ की सब भूल गया । और किसी भी तरह उसको पा लेना चाहता था । उसने ब्राह्मणो पर दबाव बनाना शुरू कर दिया नही मानने पर मनमाने कर लगा दिये इसके बाद भी बस न चलने पर उस लड़की के घर संदेशा भिजवा दिया की अगली पूर्णमासी तक या तो लड़की दे दो नही तो सुबह होते ही गाँव पर धावा बोल कर लड़की को उठा ले जाएगा । गाँव के ब्राह्मणो ने दिये गए समय पर ध्यान नही दिया ,ध्यान दिया तो दी गई धमकी पर । 84 गांवों के ब्राह्मणो ने मिलकर एक जगह बैठक की जंहा
माता का मंदिर था । सभी 84 गाँव वाले मंदिर के पास इकट्ठा हो गए । ब्राह्मणो की पंचायत मे एक आव3आज पर फैसला हुआ की कुछ भी हो जाए अपनी लड़की उस दीवान को नही देंगे । यह अत्याचार के खिलाफ न झुकने की जिद के साथ-साथ एक वर्ण संकर संतान के जन्म और एक एसी संतान जो कलंकित भी होती और उसके कलंकित भविष्य का विषय भी था । गाँव वालों ने रातों-रात 84 गाँव खाली कर दिये । और जाते-जाते दे गए एक श्राप की दोबारा इन घरों मे कोई बस नही पाएगा । वो गए तो लौट कर कभी नही आए ?
समय बीतने के साथ-साथ कई लोगों और सरकार ने भी इन गांवों को बसाने की कोशिश की परंतु कामयाब नही हो सके । जो भी उन घरो मे रहने की कोशिश करता बर्बाद हो जाता या एसी मुसीबत आती की किसी न किसी की जान लेकर ही जाती ।
सरकार की यह कोशिश तो असफल रही पर दूसरी कोशिश जरूर शुरू कर दी । इन तमाम गांवों की घेराबंदी कर दी और मुख्य द्वार पर एक चौकीदार को बैठा दिया । गाँव न तो कभी आबाद हुआ न ही कभी आबाद होगा , परंतु उजड़ने के बाद भी यह गाँव पर्यटकों की जेब से पैसे निकालकर सरकार की झोली जरूर भरता रहा । घर की बहू बेटी की इज्ज़त की खातिर इन पत्थर के घरो मे रहने वालों ने जो बलिदान दिया वो कोई दूसरा नही दे सकता । यह पत्थर बिखरा तो है परंतु टूटा अब भी नही है
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