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Saturday, March 21, 2015

चांद का कुर्ता ~~~ (#Chand Ka Kurta~~~ ) #रामधारी सिंह "दिनकर" (Ramdhari Singh Dinkar~~~)

#चांद का कुर्ता ~~~ (#Chand Ka Kurta~~~ ) #रामधारी सिंह "दिनकर"   (Ramdhari Singh Dinkar~~~)

हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला

सिलवा दो मा मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला

सन सन चलती हवा रात भर जाड़े से मरता हूँ

ठिठुर ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ

आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का

न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही को भाड़े का

बच्चे की सुन बात, कहा माता ने 'अरे सलोने`कुशल करे भगवान, लगे मत तुझको जादू टोने

जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ

एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ

कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा

बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा

घटता-बढ़ता रोज, किसी दिन ऐसा भी करता है

नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है

अब तू ही ये बता, नाप तेरी किस रोज लिवायें

सी दे एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आये~~~



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Wednesday, March 4, 2015

HOLI रंग-गुलाल-अबीर उड़े गगन में ..

#HOLI
रंग-गुलाल-अबीर उड़े गगन में ..
रंगों में धुल गये बैर थे जो मन में ....
आओ हम मिलकर एक नया जहाँ बनायें ...
होली की हार्दिक-हार्दिक शुभकामनायें ...बधाइयाँ ||



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HOLI #होली आई होली आई

#HOLI
होली आई होली आई
रंग बिरंगी होली आई


सबके मन में खुशिया छाई
साल में एक बार होली आती हैं
सबका मन बहलाती है
हरी ,नारंगी रंग लाती है
बच्चे पिचकारी मे रंग भरते है
रंग डालने मे किसी से नहीं डरते है
बच्चो का त्यौहार यह होता है
बच्चे रंग को नहीं खोता है
ऊचा , नीच का भाव छोड़कर
जाती , पाती का भाव छोड़कर
आपस मे मिल जाते है
एक दुसरे को अबीर लगाते है
खूब मिठाई खाते है
होली आई होली आई
रंग ,बिरंगी होली आई
गाँव ,शहर में खुशियाँ छाई
धूम ,धड़ाका खूब मचाई
होली आई होली आई

................................................................

होली में रासायनिक रंगो से सावधान रहें, ये मिलावती रंग आपकी त्वाचा के लिए हानिकारक हो सकते है। जिसका असर आपकी सेहत पर भी पड़ सकता है।

.................................................................

रंग बिरंगे रंग---यही तो पहचान है होली की .. आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनायें!!............


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Monday, April 22, 2013

Hindi Poems : माँ कह एक कहानी


Hindi Poems : माँ कह एक कहानी


"माँ कह एक कहानी।"
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?

"कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?
माँ कह एक कहानी।"

"तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे,
तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभी मनमानी।"
"जहाँ सुरभि मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।"

वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,
हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।"
"लहराता था पानी, हाँ हाँ यही कहानी।"

"गाते थे खग कल कल स्वर से, सहसा एक हँस ऊपर से,
गिरा बिद्ध होकर खर शर से, हुई पक्षी की हानी।"
"हुई पक्षी की हानी? करुणा भरी कहानी!"

चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म सा उसने पाया,
इतने में आखेटक आया, लक्ष सिद्धि का मानी।"
"लक्ष सिद्धि का मानी! कोमल कठिन कहानी।"

"माँगा उसने आहत पक्षी, तेरे तात किन्तु थे रक्षी,
तब उसने जो था खगभक्षी, हठ करने की ठानी।"
"हठ करने की ठानी! अब बढ़ चली कहानी।"

हुआ विवाद सदय निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में,
गयी बात तब न्यायालय में, सुनी सब ने जानी।"
"सुनी सब ने जानी! व्यापक हुई कहानी।"

राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?"
"माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी।
कोई निरपराध को मारे तो क्यों न उसे उबारे?
रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।"
"न्याय दया का दानी! तूने गुनी  कहानी।"
                                                                         - मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित

Hindi Poems : खग उड़ते रहना


खग उड़ते रहना


खग उड़ते रहना जीवन भर !
भूल गया है तू अपना पथ , और नहीं पंखो में भी गति ,
किन्तु लौटना पीछे पथ पर , अरे मौत से भी है बदतर |

खग उड़ते रहना जीवन भर !
मत डर प्रलय-झकोरो से तू ,बढ़ आशा-हलकोरों से तू ,
क्षण में अरि–दल मिट जायेगा, तेरे पंखो से पिसकर |
खग उड़ते रहना जीवन भर !

यदि तू लौट पड़ेगा थककर अंधड़ काल-बवंडर से डर ,
प्यार तुझे करने वाले ही ,देखेंगे तुझको हँस हँस कर |
खग उड़ते रहना जीवन भर !

और मिट गया चलते-चलते मंजिल पथ तय करते-करते,
खाक चढ़ाएगा जग , उन्नत भाल और आँखों पर |
खग उड़ते रहना जीवन भर !

                                                                            गोपाल दास नीरज द्वारा रचित ..

Sunday, March 10, 2013

कठपुतली~~ भवानीप्रसाद मिश्र~~~


कठपुतली~~ भवानीप्रसाद मिश्र~~~ 
          
कठपुतली
गुस्से से उबली
बोली - ये धागे
क्यों हैं मेरे पीछे आगे ?


तब तक दूसरी कठपुतलियां
बोलीं कि हां हां हां
क्यों हैं ये धागे
हमारे पीछे-आगे ?
हमें अपने पांवों पर छोड दो,
इन सारे धागों को तोड दो !


बेचारा बाज़ीगर
हक्का-बक्का रह गया सुन कर
फिर सोचा अगर डर गया
तो ये भी मर गयीं मैं भी मर गया
और उसने बिना कुछ परवाह किए
जोर जोर धागे खींचे
उन्हें नचाया !


कठपुतलियों की भी समझ में आया
कि हम तो कोरे काठ की हैं
जब तक धागे हैं,बाजीगर है
तब तक ठाट की हैं
और हमें ठाट में रहना है
याने कोरे काठ की रहना है~~ 


जय सांई राम~~~

क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं ?


क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं ? 

ॐ सांई राम~~~

क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं? 

अगणित उन्मादों के क्षण हैं,
अगणित अवसादों के क्षण हैं,
रजनी की सूनी की घडियों को किन-किन से आबाद करूं मैं!
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!

याद सुखों की आसूं लाती,
दुख की, दिल भारी कर जाती,
दोष किसे दूं जब अपने से, अपने दिन बर्बाद करूं मैं!
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!

दोनो करके पछताता हूं,
सोच नहीं, पर मैं पाता हूं,
सुधियों के बंधन से कैसे अपने को आबाद करूं मैं!
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!

~~हरिवंशराय बच्चन

जय सांई राम~~

उफ् ये पढ़ाई !!!


ॐ सांई राम~~~

उफ् ये पढ़ाई !!!

उफ् ये पढ़ाई,किसने बनाई,
कहाँ से ये जन्मी,कहाँ से आई ??
पापा कहते पढ़ो केमेस्ट्री,
याद करो इक्वेशन ।
मम्मी कहती पढ़्प् हिस्ट्री,
रटो सिविलाईज़ेशन ।
भैया कहते पढ़ो मैथ्स,
शीखो कैलक्युलेशन ।
आ रहे है एग्ज़ामिनेशन,
खत्म हो इम्तिहान का मौसम,
और करूं सैलिब्रेशन ।

बाबा तुम हमको शक्ति देना,
डर को मन से तुम हर लेना,
हमारी मेहनत सफल कर देना,
हन को पास ज़रूर कर देना~~~

जय सांई राम~~~

पढ़ाई~~~


पढ़ाई~~~

पढ़ाई पढ़ाई पढ़ाई।
हाय! यह कैसी बला जो
हमारी समझ में न आयी।
तब हमारे माता पिता ने ही
इसकी महत्ता बताई
वे कहते है
अगर तुम न करोगे पढ़ाई,
तो तुम नहीं कर सकोगे कमाई,
पढ़ाई ही तुम्हारा मान है,
इसने बढ़ाई कई लोगों की शान है।
पढ़ाई के बिना नहीं चलते कारखाने,
इसके बिना नहीं हो सकते बङे-बङे कारनामे।
पढ़ाई के बिना तुम्हारा जीवन है अधूरा,
इसलिए तुम्हें उस उद्देश्य को करना है पूरा~~~



बच्चे कुछ बर्बाद करेंगे~~~

बच्चे कुछ बर्बाद करेंगे~~~


बच्चे कुछ बर्बाद करेंगे,
फिर उसको आबाद करेंगे।
भागेंगे तितली के पीछे,
चिङिया से संवाद करेंगे।
उअनको पाकर चहक उठेंगे,
जो उअनको आज़ाद करेंगे।
पत्थर से वे टकराएंगे,
खूलों से फरियाद करेंगे।
सपनों में जो साथ रहेंगा,
उनको हरदम याद करेंगे~~~




सुन्दर प्यारा देश हमारा


सुन्दर प्यारा देश हमारा




सुन्दर प्यारा
देश हमारा
बहे यहाँ
गंगा की धारा ।
शीश हिमालय
छूता अम्बर
धोता है पग
इसके सागर ।
है सबकी –
आँखों का तारा ।
इस पर अपने
प्राण लुटाएँ
हम सब इसका
मान बढ़ाएँ ।
‘भारत की जय !
‘भारत की जय’ !
अपना नारा।




कहां रहेगी चिड़िया / महादेवी वर्मा

कहां रहेगी चिड़िया / महादेवी वर्मा



ॐ सांई राम~~~

कहां रहेगी चिड़िया / महादेवी वर्मा
               
कहां रहेगी चिड़िया ?
आंधी आई जोर शोर से
डाली टूटी है झकोर से
उड़ा घोंसला बेचारी का
किससे अपनी बात कहेगी
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी ?
घर में पेड़ कहाँ से लाएँ
कैसे यह घोंसला बनाएँ
कैसे फूटे अंडे जोड़ें
किससे यह सब बात कहेगी
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी ? 



Saturday, January 26, 2013

गाँव में बिजली


गाँव में बिजली 


दिन भर खेतों में काम करके 
मिटाने अपनी थकान 
लोग बैठा करते थे शाम को 
गाँव की चौपाल में 
या बरगद या नीम के पेड़ के नीचे 
बने हुए कच्चे चबूतरों पर 
और होती थी आपस में 
सुख दुःख की बातें
और हो जाती थी कुछ 
हंसी ठिठोली भी 
महिलायें भी मिल लेती थीं आपस में 
पनघट पर पानी भरने के बहाने 
और कर लेती थीं साझा 
अपना अपना सुख&दुःख
मगर अब गाँव में 
बिजली आ जाने से   
बदल गए हैं हालात 
और सूने से रहने लगे हैं 
चौपाल और चबूतरे
अब नहीं होती हैं पनघट पर 
आपस में सुख&दुःख की बातें 
गाँव में बिजली आ जाने से 
अब आ गए हैं टेलीविजन 
लग गए हैं नल भी अब घरों में 
ख़त्म हो गए हैं बहाने 
अब घर से निकलने के 
गर्मी लगने पर चला लेते हैं पंखे 
नहीं बैठते नीम के पेड़ के नीचे
फुर्सत भी अब किसे है
किसी के पास बैठने की 
अब टी-वी- पर आते हैं इतने प्रोग्राम 
चौपाल जाने की जरूरत ही नहीं लगती 
पहले होली पर जहाँ 
गाये जाते थे फाग&गीत 
और जाते थे लोग 
एक , दूसरे के घर मिलने 
होली के बहाने 
अब रहते हैं अपने ही घरों में 
बजा लेते हैं लाउडस्पीकर 
पर ही फाग&गीत 
और अगर कोई गाना भी चाहे
तो दबकर रह जाती है उसकी आवाज़ 
बेतहाशा बजते हुए कानफोडू 
लाउडस्पीकर के बीच  
सचमुच बिजली आने से
कितना बदल गया है हमारा गाँव -  कृष्ण धर शर्मा 



Saturday, December 1, 2012

इतने ऊँचे उठो


इतने ऊँचे उठो

इतने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है।

देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से
सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से
जाति भेद की, धर्म-वेश की
काले गोरे रंग-द्वेष की
ज्वालाओं से जलते जग में
इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है॥

नये हाथ से, वर्तमान का रूप सँवारो
नयी तूलिका से चित्रों के रंग उभारो
नये राग को नूतन स्वर दो
भाषा को नूतन अक्षर दो
युग की नयी मूर्ति-रचना में
इतने मौलिक बनो कि जितना स्वयं सृजन है॥

लो अतीत से उतना ही जितना पोषक है
जीर्ण-शीर्ण का मोह मृत्यु का ही द्योतक है
तोड़ो बन्धन, रुके न चिन्तन
गति, जीवन का सत्य चिरन्तन
धारा के शाश्वत प्रवाह में
इतने गतिमय बनो कि जितना परिवर्तन है।

चाह रहे हम इस धरती को स्वर्ग बनाना
अगर कहीं हो स्वर्ग, उसे धरती पर लाना
सूरज, चाँद, चाँदनी, तारे
सब हैं प्रतिपल साथ हमारे
दो कुरूप को रूप सलोना
इतने सुन्दर बनो कि जितना आकर्षण है॥

- द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी



मेरे जन्मदिन पर by shailjapathak


मेरे जन्मदिन पर  by shailjapathak



अम्मा ने बताया था 
आज के दिन नैनीताल 
के रानीखेत में 
जन्म हुआ मेरा
सबने मेरे होने की 
बधाई की जगह 
आ कर दी थी 
सहानुभूति.. की 
सांवली लड़की हुई

मेरे बड़े और गोरे 
रंग वाले भाई बहन ने 
मुझे मुस्कराकर देखा था

सबसे ज्यादा खुश 
वो दाइ जी हुई थी 
जिसने अम्मा को 
अपने पहाड़ी नुस्खों से 
मुझे गोरा बना देने का 
भरोसा दिया था

खूब सफ़ेद बरफ गिरती थी 
अम्मा कहती वो मुझे 
शाल में लपेट कर रखती 
और कोट पैंट पहने हुए 
मेरे भाई बहन 
कभी कभी छूते मुझे

मैं पहाड़ी गाना सुन 
कर मालिश करावा लेती 
बरफ गिरने को 
टुकटुक कर देखती 
अम्मा के आँख में 
दूसरी लडकी होने की 
मायूसी को भी 
समझती

अम्मा बताती है 
कई बार जब रातें ठिठुरा देती 
मैं आखिरी बार हाथ उठाती 
जरा सी आँख खोल 
अम्मा को एकदम आखिरी बार 
देखती और मैं 
मरते मरते जी जाती

मुझे लगता है मेरे 
अंदर पहाड जीना चाहते थे 
नदियाँ झरने मुझमे 
बहते थे और मैं 
जीना चाहती थी 
ये जिंदगी अपनी 
कविताओं को जिंदा करने 
के लिए ………


Source : Shailja Pathak's Poem

Best Hindi Dohe - Raheem

Best Hindi Dohe - Raheem



बड़ा हुआ तो क्या हुआ,जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं,फल लागे अत्ती दूर.



शब्द बराबर धन नहीं, जो कोई जाने बोल |
हीरा तो दामो मिले, शब्द मोल न टोल ||



Best एक दिन ऐसा आएगा


एक दिन ऐसा आएगा

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय । 
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥


मातृभाषा के प्रति -भारतेंदु हरिश्चंद


मातृभाषा के प्रति -भारतेंदु हरिश्चंद


निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।

अंग्रेज़ी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन।
पै निज भाषाज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।

उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय।
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।।

निज भाषा उन्नति बिना, कबहुँ न ह्यैहैं सोय।
लाख उपाय अनेक यों भले करो किन कोय।।

इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग।
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।।

और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात।
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।।

तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय।
यह गुन भाषा और महं, कबहूँ नाहीं होय।।

विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।।

भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात।
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।।

सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय।
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।। 

-भारतेंदु हरिश्चंद्र



चारु चंद्र की चंचल किरणें

चारु चंद्र की चंचल किरणें


चारु चंद्र की चंचल किरणें,

खेल रहीं थीं जल थल में।

स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई थी,

अवनि और अम्बर तल में।

पुलक प्रकट करती थी धरती,

हरित तृणों की नोकों से।

मानो झूम रहे हों तरु भी,

मन्द पवन के झोंकों से।

पंचवटी की छाया में है,

सुन्दर पर्ण कुटीर बना।

जिसके बाहर स्वच्छ शिला पर,

धीर वीर निर्भीक मना।

जाग रहा है कौन धनुर्धर,

जब कि भुवन भर सोता है।

भोगी अनुगामी योगी सा,

बना दृष्टिगत होता है।

बना हुआ है प्रहरी जिसका,

उस कुटिया में क्या धन है।

जिसकी सेवा में रत इसका,

तन है, मन है, जीवन है


डॉ. ऐ पी जे अब्दुल कलाम के अनमोल सुविचार -


डॉ. ऐ पी जे अब्दुल कलाम के अनमोल सुविचार -

अंग्रेजी आवश्यक है क्योंकि वर्तमान में विज्ञान के मूल काम अंग्रेजी में हैं.
मेरा विश्वासहै कि अगले दो दशक में विज्ञान के मूल काम हमारी भाषाओँ में आने शुरू हो जायेंगे,
 तब हम जापानियों की तरह आगे बढ़ सकेंगे.