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Saturday, August 27, 2011

Hindi Poems, हिंदी कविताएँ

Hindi Poems, हिंदी कविताएँ

अयोध्यासिह उपाध्यायहरिऔध


खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्य प्रियप्रवास’ के रचियता अयोध्यासिह उपाध्यायहरिऔध’(15 अप्रैल, 1965-16 मार्च, 1947) का साहित्यकाल  हिन्दी के तीन युगों भारतेन्दु युग, द्विवेदी युग और छायावादी युग तक है। उन्होंने पर्याप् मात्रा में बाल साहित् का भी सृजन किया-

 

बाल साहित्य

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एक तिनका - अयोध्यासिह उपाध्याय (Ek Tinka - Ayodhya Singh Upadhyaya 'Hariodh')

मैं घमडों में भरा ऐंठा हुआ
एक दिन जब था मुडेरे पर खड़ा,
अचानक दूर से उड़ता हुआ
एक तिनका आख में मेरी पड़ा।
मैं झिझक उट्ठा, हुआ बेचैन-सा
लाल होकर आख भी दुखने लगी,
मूठ देने लोग कपड़े की लगे
ऐंठ बेचारी दबे पावों भागी।
जब किसी ढब से निकल तिनका गया
तब समझ ने यों मुझे ताने दिए,
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा
एक तिनका है बहुत तेरे लिए।
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एक बूंद

ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी,
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी
हाय क्यों घर छोड़कर मैं यों बढ़ी।
मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में,
चू पड़ूँगी या कमल के फूल में।
बह गई उस काल एक ऐसी हवा
वो समदर ओर आई अनमनी,
एक सुदर सीप का मुँह था खुला
वो उसी में जा गिरी मोती बनी।
लोग यों ही हैं झिझकते सोचते
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर,
कितु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें
बूँद लौं कुछ और ही देता है कर।
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जागो प्यारे

उठो लाल अब आँखें खोलो,
पानी लाई हूँ, मुँह धो लो।
बीती रात कमल-दल फूले,
उनके ऊपर भौंरे झूले।
चिड़ियाँ चहक उठी पेड़ों पर,
बहने लगी हवा अति सुदर।
नभ में न्यारी लाली छाई,
धरती ने प्यारी छवि पाई।
भोर हुआ सूरज उग आया,
जल में पड़ी सुनहरी छाया।
ऐसा सुदर समय खोओ,
मेरे प्यारे अब मत सोओ।

 

चंदा मामा

चंदा मामा दौड़े आओ,
दूध कटोरा भर कर लाओ।
उसे प्यार से मुझे पिलाओ,
मुझ पर छिड़क चाँदनी जाओ।
मैं तैरा मृग छौना लूँगा,
उसके साथ हँसूँ खेलूँगा।
उसकी उछल कूछ देखूँगा,
उसको चाटूँगा चूमूँगा।

पुरानी यादे ताज़ा करो achhi kavitaayein Hindi Poems, हिंदी कविताएँ

पुरानी यादे ताज़ा करो achhi kavitaayein Hindi Poems,
हिंदी कविताएँ
(Chilhood Days Golden Old Days ) 
सुन्दर बचपन (Childhood Hindi Poems Which you miss) / flash back of childhood
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पोशम्पा भाई पोशम्पा,लालकिले मे क्या हुआ
सौ रुपये की घडी चुराई।

अब तो जेल मे जाना पडेगा,जेल की रोटी खानी पडेगी,जेल का पानी पीना पडेगा।
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झूठ बोलना पाप है,नदी किनारे सांप है।
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मछली जल की रानी है,जीवन उसका पानी है।
हाथ लगाओ डर जायेगी

बाहर निकालो मर जायेगी।
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थै थैयाप्पा थुश
मदारी बाबा खुश।
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काली माई आयेगी,तुमको उठा ले जायेगी।
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आलू-कचालू बेटा कहा गये थे,बन्दर की झोपडी मे सो रहे थे।
बन्दर ने लात मारी रो रहे थे,मम्मी ने पैसे दिये हंस रहे थे।

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चन्दा मामा दूर के,पूए पकाये भूर के।
आप खाएं थाली मे,मुन्ने को दे प्याली मे...

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तितली उडी, बस मे चढी।
सीट ना मिली,तो रोने लगी।।
driver ड्राईवर
बोला आजा मेरे पास,तितली बोली " हट बदमाश "
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आज सोमवार है,चूहे को बुखार है।
चूहा गया डाक्टर के पास,डाक्टर ने लगायी सुई,चूहा बोला उईईईईई।
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आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की -प्रदीप ( Aao Bachhon Tumhein Dikhain Jhanki Hindustan Kee - Pradeep)


आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की
इस मिट्टी से तिलक करो, यह धरती है बलिदान की
वंदेमातरम! वंदेमातरम!

जलियाँवाला बाग ये देखो, यहीं चलीं थीं गोलियाँ,
यह मत पूछो किसने खेलीं यहाँ खून की होलियाँ,
एक तरफ बंदूकें दन-दन, एक तरफ थीं टोलियाँ,
मरने वाले बोल रहे थे इन्क़लाब की बोलियाँ,
यहाँ लगा दी बहनों ने भी बाज़ी अपनी जान की।
इस मिट्टी से तिलक करो, यह धरती है बलिदान की
वंदेमातरम! वंदेमातरम!

देखो मुल्क मराठों का यह, यहाँ शिवाजी डोला था,
मुग़लों की ताक़त को जिसने, तलवारों पे तोला था,
हर पर्वत पर आग लगी थी, हर पत्थर इक शोला था,
बोली हर-हर महादेव की, बच्चा-बच्चा बोला था,
वीर शिवाजी ने रक्खी थी, लाज हमारी शान की।
इस मिट्टी से तिलक करो, यह धरती है बलिदान की
वंदेमातरम! वंदेमातरम!

ये है राजपुताना, नाज़ इसे तलवारों पे,
इसने अपना जीवन काटा, बरछी तीर कटारों पे,
ये प्रताप का वतन पला है, आज़ादी के नारों पे,
कूद पड़ीं थीं यहाँ हज़ारों, पद्मिनियाँ अंगारों पे,
बोल रही है कण-कण से क़ुरबानी राजस्थान की।
इस मिट्टी से तिलक करो, यह धरती है बलिदान की
वंदेमातरम! वंदेमातरम!

-प्रदीप

आई रेल-आई रेल
धक्का-मुक्की रेलम-पेल, आई रेल-आई रेल|
इंजन चलता सबसे आगे, पीछे-पीछे डिब्बे भागे|
हार्न बजाता, धुआँ छोड़ता, पटरी पर यह तेज़ दौड़ता|
जब स्टेशन जाता है, सिग्नल पर यह रुक जाता है|
जब तक बत्ती लाल रहेगी, इसकी ज़ीरो चाल रहेगी|
हरा रङ्ग जब हो जाता है, तब आगे तो बढ़ जाता है|
बच्चों को यह बहुत सुहाती, नानी के घर तक ले जाती|
छुक-छुक करती आती रेल, आओ मिल कर खेलें खेल|
धक्का-मुक्की रेलम-पेल, आई रेल-आई रेल
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खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी
सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी
बूढ़े भारत में आई, फ़िर नयी जवानी थी
गुमी हुई आज़ादी की, कीमत सबने पहचानी थी
दूर फ़िरंगी को करने की, सबने मन में ठानी थी|
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह, हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसी वाली रानी थी||
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी
लक्ष्मीबाई नाम पिता की, वह संतान अकेली थी
नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी
बरछी ढाल कृपाण कटारी, उसकी यही सहेली थी|
वीर शिवाजी की गाथायें, उसको याद ज़बानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह, हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसी वाली रानी थी||