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Thursday, December 24, 2015

एक आदमी जब ससुराल से बीवी लेकर चलने लगा तो उसकी सास ने उसको 100 रूपये दिए।

एक आदमी जब ससुराल से बीवी लेकर चलने लगा तो उसकी सास ने उसको 100 रूपये दिए।
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घर पहुँचते ही उसने पत्नी से कहा, "तेरी माँ ने मेरी बेइज़्ज़ती कर दी......मैं 150 रूपये के केले लेकर गया था और उन को मुझे 100 रूपये पकड़ाते शरम नहीं आयी।
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इतना सुनकर पत्नी माथा पकड़कर बैठ गयी,
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बोली, "तू मुझे लेने गया था या वहाँ केले बेचने गया था........!"



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Monday, December 21, 2015

जन गण मन' का सच

जन गण मन' का सच


Infromartion Sabhar : panchjanya.com website


अक्सर यह चर्चा उठती है कि "जन-गण-मन' जार्ज पंचम की स्तुति में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने रचा था। बाद में ब्रिटिश दबाव पर भारत सरकार ने वन्देमातरम् को नकार "जन-गण-मन' को ही अपनाया। आखिर सच क्या है? कुछ समय पूर्व पाञ्चजन्य में श्री जंगबहादुर का इस संबंध में पत्र छपा था, जिस पर हमें देशभर से प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई थीं। कोलकाता से श्री असीम कुमार मित्र ने इस विषय में गहन अनुसंधान के बाद लिखा है कि "जन-गण-मन' को जार्ज पंचम की स्तुति में रचा गीत कहना कम्युनिस्टों द्वारा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर को बदनाम करने की एक चाल थी, जिसने पूरे देश में एक गलतफहमी पैदा की। प्रस्तुत है, "जन-गण-मन' के संबंध में यह शोधपूर्ण आलेख-

दअसीम कुमार मित्र

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित जन गण मन अधिनायक गीत का मूल अविकल पाठ इस प्रकार है। भारत सरकार ने राष्ट्रगीत के रूप में इसका प्रारम्भिक अनुच्छेद ही स्वीकार किया है।

जन गण मन-अधिनायक

जनगणमन-अधिनायक जय हे भारत भाग्यविधाता।

पंजाब सिंधु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग

विंध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छलजलधितरंग

तब शुभ नामे जागे, तब शुभ आशिस मंागे,

गाहे तब जय गाथा।

जनगणमंगलदायक जय हे भारत भाग्यविधाता।

जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।

अहरह तब आह्वान प्रचारित, शुनि तव उदार वाणी

हिंदु बौद्ध सिख जैन पारसिक मुसलमान ख्रिस्टानी

पूरब-पश्चिम आसे तब सिंहासन-पाशे,

प्रेमहार हय गाथा।

जनगण-ऐक्यविधायक जय हे भारत भाग्यविधाता।

जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय हे।।

पतन-अभ्युदय बंधुर पन्था, युगयुगधावित यात्री,

हे चिरसारथि, तब रथचक्रे मुखरित पथ दिनरात्रि।

दारुण-विपल्व माझे तब शंखध्वनि बाजे,

संकटदु:खत्राता।

जनगणपथ परिचायक जय हे भारत भाग्यविधाता।

जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे।।

घोर तिमिरघन निविड़ निशीथे पीड़ित मूर्छित देशे

जाग्रत छिल तब अविचल मंगल नतनयने अनिमेषे।

दु:स्वप्ने आतंके रक्षा करिले अंके,

स्नेहमयी तुमि माता।

जनगणदु:खत्रायक जय हे भारत भाग्यविधाता।

जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे।।

रात्रि प्रभातिल, उदिल रविच्छवि पूर्व-उदयगिरिभाले,

गाहे विहंगम, पुण्य समीरण नवजीवनरस ढाले।

तव करुणारुण-रागे निद्रित भारत जागे

तव चरणे नत माथा।

जय जय जय हे, जय राजेश्वर, भारत भाग्यविधाता।

जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे।। हमारे देश के राष्ट्रगान को लेकर आज भी अनेक भ्रम बने हुए हैं। दु:ख की बात तो यह है कि इस देश के पढ़े-लिखे लोग भी अनायास ही इन गलतफहमियों का शिकार बन जाते हैं। उनमें असलियत पता लगाने का धैर्य या मानसिकता दिखाई नहीं देती। शायद यही कारण है कि "पाञ्चजन्य' ने भी 16 फरवरी, 2003 के अंक में "किस दृष्टि से यह "गान' राष्ट्रीय है?' शीर्षक पत्र प्रकाशित किया। पत्र लेखक मुम्बई के श्री जंग बहादुर जब यह लिखते हैं, "यह गान ब्रिटिश सम्राट के लिए है और आज भी हम और हमारी सेनाएं ब्रिटिश सम्राट और (अब) सम्राज्ञी के लिए इसे गाते आ रहे हैं' तब हमें न केवल दु:ख होता है बल्कि क्रोध से मन तिलमिला उठता है।

भावावेग की दुनिया से हटकर वास्तविकता के धरातल पर उतरकर इस विषय को देखने की कोशिश करें तो हमें असलियत का पता चल सकता है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर एक कवि थे, राजनीतिक आंदोलनकारी नहीं। फिर भी जलियांवाला बाग में ब्रिटिश सैनिकों ने जब हमारे देशवासियों को गोलियों से भून डाला था और पूरे देश में कुछ इस तरह से आतंक छा गया था कि ब्रिटिश राज की इस करतूत के विरोध में प्रतिवाद करने तक का साहस किसी राजनेता के अन्दर दिखाई नहीं दिया था, तब रवीन्द्रनाथ आगे आए। उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गयी उपाधि "नाइटहुड' त्याग देने की घोषणा की। मात्र इतने से वे नहीं रुके। घटना की निन्दा करने के लिए उन्होंने कोलकाता के टाउन हाल में आमसभा बुलाई। सभा में इतनी ज्यादा संख्या में लोग आए कि सभागार में सबको जगह देना संभव नहीं हुआ। रवीन्द्रनाथ सभा में आए और सबको लेकर मानमेन्ट मैदान (अब इसका नाम है शहीद मीनार मैदान) चले आए और खुद "वन्देमातरम्' गीत गाकर सभा की शुरुआत की थी।बचपन से ही रवीन्द्रनाथ स्वदेशी वातावरण में पले तथा बड़े हुए थे। उन दिनों बंगाल में हर वर्ष नवगोपाल मित्र द्वारा आयोजित होने वाले "हिन्दू मेले' में रवीन्द्रनाथ नियमित रूप से भाग लेते थे। स्वदेशी आन्दोलन की शुरुआत भी बंगाल में ही हुई थी, जिसमें रवीन्द्रनाथ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। सन् 1905 में जब ब्रिटिश राज ने बंगाल विभाजन का षड्यंत्र रचा तो रवीन्द्रनाथ ने रक्षाबन्धन को लोगों के सामने प्रस्तुत किया तथा इसे लोगों को जोड़ने वाले आन्दोलन के रूप में खड़ा किया।

रवीन्द्रनाथ के मन में हमारी राष्ट्रीयता के बारे में कोई भ्रम नहीं था। उन्होंने आत्मपरिचय लेख में लिखा था- "हिन्दुस्थान में बसने वाले सभी व्यक्ति हिन्दू हैं। मेरा धर्म चाहे कुछ भी हो, मेरी राष्ट्रीयता हिन्दू ही है। इसलिए परिचय देते समय मैं यह कहता हूं कि मैं हिन्दू ब्राह्म हूं, गोपाल हिन्दू वैष्णव है, सुधीर हिन्दू-शैव है, रहीम हिन्दू-इस्लाम और जान हिन्दू-ईसाई है....।'

राष्ट्रवादी रवीन्द्रनाथ को कम्युनिस्टों ने 1940 के दशक से ही बदनाम करना शुरू कर दिया था। रवीन्द्रनाथ ने ब्रिटिश सम्राट पंचम जार्ज की वन्दना में "जन-गण-मन....' गीत लिखा था, यह अफवाह भी शुरू में कम्युनिस्टों ने फैलायी थी। अब जब प. बंगाल में 25 सालों से कम्युनिस्टों की सरकार चल रही है, तब पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु और वर्तमान मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य आये दिन इस झूठे प्रचार के लिए आम जनता से क्षमा याचना कर रहे हैं। मुझे लगता है, पाञ्चजन्य के पत्र लेखक श्री जंग बहादुर को इस तरह की कोई पुरानी पुस्तक हाथ लग गयी होगी और बिना सोचे-समझे उन्होंने यह पत्र लिख दिया।

असल में "जन-गण-मन....' गान सन् 1911 के 27 दिसम्बर को कलकत्ता में शुरू होने वाले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन के उपलक्ष्य में लिखा गया था और इस अधिवेशन के दूसरे दिन यह "गान' गाया भी गया था। परन्तु अफवाह यह फैलायी गयी थी कि दिसम्बर, 1911 में किंग जार्ज पंचम के भारत आगमन के उपलक्ष्य में दिल्ली दरबार में गाए जाने के लिए रवीन्द्रनाथ ने यह गीत लिखा था। अगर यह सच है तो यह रपट क्या है, जिसमें लिखा गया गया है-

"जो भी इस मामले में रुचि रखते हैं, उन्हें 1911 में भारत के शाही दौरे के ऐतिहासिक दस्तावेजों के सन्दर्भ जरूर देखने चाहिए। 1914 में भारत के वायसराय के आदेश से लंदन में जान मुरे द्वारा प्रकाशित इन दस्तावेजों से स्पष्ट हो जाता है कि शाही दौरे के समय दिसम्बर, 1911 में आयोजित दिल्ली दरबार में यह गीत कभी नहीं गाया गया था।' (इंडियाज नेशनल एंथम-प्रबोध चन्द्र सेन, पृ. 43)

श्री प्रबोध चन्द्र सेन द्वारा लिखी गयी इंडियाज नेशनल एंथम (भारत का राष्ट्र गान) पुस्तक के उन पृष्ठ 43 पर रवीन्द्रनाथ के दो पत्रों का भी उल्लेख है जो कवि ने बहुत ही दु:खी होकर लिखे थे-

"एक पत्र द्वारा इस अफवाह के संदर्भ में ध्यान आकर्षित किए जाने के बाद, उसका उत्तर देते हुए कवि ने लिखा, "इस गीत में मैंने सनातन सारथि की बात की है, जो मनुष्य की नियति का संचालक है, जिसके साथ-साथ राष्ट्रों का उत्थान और पतन भी जुड़ा हुआ है। युगों-युगों से मनुष्य की नियति के विधान का संचालक जार्ज पंचम, जार्ज षष्टम् या और कोई जार्ज नहीं हो सकता।'

1939 में लिखे एक अन्य पत्र में वह लिखते हैं, "यह मेरे अपने लिए अपमान की बात होगी अगर मैं ऐसे लोगों की बातों का जवाब दूं जो समझते हैं कि मैं जार्ज चतुर्थ या पंचम को अनंतकाल से मानव को तीर्थाटन की राह ले जाने वाले दैवीय रथ के सारथि की तरह पूजने जैसी मूर्खता कर सकता हूं।'

उस जमाने में कोलकाता से "दैनिक बसुमती' नामक एक दैनिक समाचार पत्र प्रकाशित होता था, जिसके संपादक थे हेमेन्द्र प्रसाद घोष। बंगाल के पत्रकार उन्हें जीवित वि·श्वकोष के रूप में जानते थे। जब हेमेन्द्र बाबू को इस अफवाह के बारे में बहुत दुखी हुए और खुद रवीन्द्रनाथ के पास गए और पूछा, "आपके बारे में ये सब क्या सुन रहा हूं?' रवीन्द्रनाथ ने उस जमाने के सबसे नामी संपादक से कहा, "हेमेन्द्र बाबू आप तो मुझे जानते हैं, चाहे कुछ भी हो जाए, मैं कभी किसी राजशक्ति की "भारत भाग्यविधाता' के रूप में कल्पना भी नहीं सकता।' वास्तव में उस समय अंग्रेज सरकार के दफ्तर में काम करने वाले एक प्रभावशाली व्यक्ति ने रवीन्द्रनाथ से अनुरोध किया था कि ब्रिटिश सम्राट भारत में आ रहे हैं तो उनकी सराहना करते हुए एक कविता लिखें। इसकी प्रतिक्रिया में रवीन्द्रनाथ ने कहा था, "सरकार में एक प्रभावी पद पर आसीन एक मित्र ने मुझसे बार-बार आग्रह किया कि मैं राजा की प्रशंसा में एक गीत की रचना करूं। उसके आग्रह ने मुझे आश्चर्य-चकित कर दिया और उस आश्चर्य में मेरे भीतर का आक्रोश भी मिल गया।' उसी हिंसक प्रतिक्रिया के दबाव में मैंने जन-गण-मन अधिनायक गीत में कालबाह्र सनातन सारथि भाग्यविधाता की अर्चना की है, जो युगों-युगों से राष्ट्रों को उत्थान-पतन की राह पर ले जाता है। यह उस भाग्यविधाता की अर्चना है, जो हमारे अन्तर्मन में वास करता है। किसी भी स्थिति में वह महान सनातन सारथि जार्ज पंचम् या जार्ज षष्टम या कोई और जार्ज नहीं हो सकता। हालांकि मेरे उस स्वामिभक्त मित्र को अहसास हो गया कि राजा के प्रति उसकी स्वामिभक्ति चाहे कितनी भी अडिग क्यों न हो, वह उस स्तर तक नहीं पहुंच सकता।' (इंडियाज नेशनल एंथम, प्रबोध चन्द्र सेन पृष्ठ-7)

12, दिसम्बर, 1911 को ब्रिटिश सम्राट के भारत पधारने के दो सप्ताह पहले ही बंगाल का विभाजन रद्द कर दिया गया था। इससे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बेहद खुश हुई थी। उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे सुरेन्द्रनाथ बनर्जी। उन्होंने एक दूत भेजकर गुरुदेव रवीन्द्रनाथ को राजा के सम्मान में एक गीत लिखने के लिए आग्रह किया था। रवीन्द्रनाथ यह सुनते ही बहुत क्रोधित हुए। बाद में उन्होंने कहा था कि यह "जन-गण-मन...' एक क्रोधित कवि के क्रोध की अभिव्यक्ति है। ब्रिटिश सम्राट की प्रशंसा में कविता लिखे जाने को रवीन्द्रनाथ ने निरी मूर्खता बताया था। कोलकाता कांग्रेस अधिवेशन के दूसरे दिन यानी 27 दिसम्बर, 1911 का अधिवेशन जन-गण-मन... गान से ही शुरू हुआ था। इसके बाद एक हिन्दी गीत गाया गया था जो कि ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंजम के भारत आगमन के उपलक्ष्य में विशेष रूप से लिखवाया गया था। कांग्रेस के 28वें अधिवेशन की रपट में लिखा गया है, "अधिवेशन की कार्यवाही बाबू रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित देशभक्ति गीत के साथ शुरू हुई। (इसके बाद मित्रों द्वारा भेजे गए संदेश पढ़े गए और राजा के प्रति स्वामिभक्ति प्रदर्शित करने वाले प्रस्ताव पारित किए गए।) उसके बाद इस अवसर पर राजा के स्वागत के लिए विशेष रूप से रचित गीत गाया गया। (इंडियाज नेशनल एंथम, प्रबोध चन्द्र सेन, पृष्ठ-9)'

इस रपट से भी यह स्पष्ट है कि रवीन्द्रनाथ का जन-गण-मन... एक देशात्मबोधक गीत ही था न कि वह किसी व्यक्ति की वन्दना में लिखा गया था। फिर यह अफवाह उड़ी कैसे? इसके लिए ब्रिटिश सम्राट तथा शासन के समर्थक तीन प्रचार माध्यमों की रपटें उत्तरदायी हैं- (1)"द इंग्लिश मैन' (28 दिसम्बर, 1911) (2) "द स्टेट्समैन (28 दिसम्बर, 1911) तथा (3) रायटर-इन तीनों ने यह लिख दिया था कि कांग्रेस अधिवेशन में ब्रिटिश सम्राट की स्तुति में गाया गया गीत रवीन्द्रनाथ का था।' जबकि ऐसा कोई गीत रवीन्द्र नाथ द्वारा लिखा ही नहीं गया था। इस झूठे प्रचार के कारण आज भी कुछ लोग इस विषय को लेकर अफवाह फैलाने का साहस करते हैं।




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जन गण मन में अधिनायक कौन?

जन गण मन में अधिनायक कौन?



राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह चाहते हैं कि हमारे राष्ट्रीय गान में कुछ शब्दों को बदल दिया जाए. बीजेपी नेता रहे कल्याण सिंह के मुताबिक राष्ट्रगान में इस्तेमाल हुए अधिनायक शब्द ब्रिटिश राज की याद दिलाने वाला है और इसकी जगह मंगल शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. कल्याण सिंह के इस बयान के बाद बहस खड़ी हो गई है.
ऐसा कोई भारतीय नहीं है जो गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के लिखे गीत के इन शब्दों और उन्हीं की दी गई धुन से ना गुजरा हो. ये अब हमारा राष्ट्रगान है और हमारी राष्ट्रीय धुन भी है. राष्ट्रगान के बोल पिछले 65 साल से हमारी आजादी और संप्रभुता पर गर्व करने का मौका देते रहे हैं.
1911 में रवींद्रनाथ टैगोर की कलम से निकले इस गीत को 24 जनवरी साल 1950 को भारत का राष्ट्रगान घोषित किया गया था. तब से ही ये हमारी राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक बना हुआ है लेकिन अब 65 साल बाद राजस्थान के गर्वनर और इससे पहले बीजेपी के नेता रहे कल्याण सिंह को राष्ट्रगान में इस्तेमाल हुए इस अधिनायक शब्द पर ऐतराज हो रहा है.
कल्याण सिंह राष्ट्रगान की पहली पंक्ति में आने वाले अधिनायक शब्द की जगह मंगल शब्द का इस्तेमाल करने की सिफारिश कर रहे हैं ये कहते हुए कि अधिनायक शब्द उन्हें ब्रिटिश राज की याद दिलाता है जिसे अब मिटा देना चाहिए. उनके इस तर्क का समर्थन बीजेपी के नेता भी कर रहे हैं.
बीजेपी साथ खड़ी है लेकिन वामदल और कांग्रेस ने कल्याण सिंह के इस बयान को ना सिर्फ सिरे से खारिज कर दिया है बल्कि ये भी पूछ रहे हैं कि 65 साल बाद क्यों?
इस बहस में राज्यपाल भी कूद पड़े हैं. राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह को त्रिपुरा के गवर्नर तथागत राय ने मशविरा दिया है कि बदलाव की बात ठीक नहीं है.
कल्याणजी, प्रणाम| 68 साल हुए भारत को आजाद हुए तो अब हमारे अधिनायक अंग्रेज क्यों होंगे ? मैं राष्ट्रगान में किसी भी परिवर्तन को उचित नहीं समझता हूं.
कल्याण सिंह के ताजा बयान ने एक बार फिर उस आरोप को भी हवा दे दी है जिसके मुताबिक बीजेपी और आरएसएस देश के इतिहास में बदलाव की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन देश की जनता पूछ रही है कि क्या वाकई राष्ट्रगान जैसे प्रतीकों को भी अब राजनीति में घसीटा जाएगा?
अधिनायक कौन है?
राष्ट्रगान में इस्तेमाल हुए अधिनायक शब्द पर आपत्ति दरअसल नई नहीं है. ये विवाद तो तब से चला आ रहा है जब ये तय हुआ था कि रवींद्रनाथ टैगोर के लिए जन गण मन को भारत अपना राष्ट्रगान मानेगा. उस दौर का इतिहास में ही ऐसे बीज पड़ गए थे जो आज एक बार फिर विवाद की वजह बन गए हैं और आज भी यही सवाल उठा है अधिनायक कौन है?
15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ था लेकिन तब दुनिया के दूसरे आजाद मुल्कों की तरह भारत के पास अपना नेशनल एंथम यानी राष्ट्रगान नहीं था. तब जिस गीत ने आजादी के जश्न को मुकम्मल किया था वो था वंदे मातरम. 14 और 15 जून की आधी रात उसी वंदेमातरम के साथ पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आजादी का ऐलान किया था.
ऐसे में भारत का संविधान रचने और आजाद भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों को गढ़ने चुनने की जिम्मेदारी संविधान सभा पर छोड़ दी गई थी. ये संविधान सभा अगले तीन साल तक बैठकें और बहसें करती रही. तब तक भारत दो बार आजादी का जश्न भी मना चुका था लेकिन आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि संविधान सभा के सदस्यों की लगातार मांग के बावजूद राष्ट्रगान के मुद्दे पर कभी कोई बहस या चर्चा नहीं हुई. तब तक जब तक 24 जनवरी 1950 की तारीख ने दस्तक नहीं दे दी.
26 जनवरी 1950 को भारत गणतंत्र बनने जा रहा था इससे ठीक दो दिन पहले संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद ने सीधे एक बयान दिया और जन गण मन भारत का राष्ट्रगान बन गया.
24 जनवरी 1950 को संविधान सभा की कार्यवाही के मुताबिक डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा. एक मुद्दा काफी समय से चर्चा के लिए लंबित है जो कि हमारे राष्ट्रगान से जुड़ा है. मुझे ऐसा महसूस हुआ कि सदन में प्रस्ताव पेश करके किसी औपचारिक फैसले से बेहतर है कि राष्ट्रगान के बारे में एक बयान दे दूं. इसलिए मैं बयान देता हूं कि उस कंपोजीशन की धुन, संगीत और शब्द जिसे जन गण मन के नाम से जाना जाता है वही भारत का राष्ट्रगान है. इसमें अगर सरकार चाहे तो मौजूदा हालात के मुताबिक शब्दों को बदल सकती है.
इसके बाद राष्ट्रगान के शुरुआती हिस्से को ना सिर्फ राष्ट्रगान मान लिया गया बल्कि संविधान सभा की आखिरी बैठक 26 नवंबर 1949 को पूर्णिमा बनर्जी की आवाज में पहली बार राष्ट्रगान के तौर पर गाए गए जन गण मन गीत से खत्म हुई थी. लेकिन उस वक्त जो बहस संविधान सभा में नहीं हुई वही बहस आज फिर से उठ खड़ी हुई है.
जन गण मन को लेकर विवाद की जड़ें हमें साल 1911 में ले जाती हैं. उस दौर में भारत गुलाम था और अंग्रेजी हुकूमत ने अपने नए बादशाह जॉर्ज पंचम की लंदन में ताजपोशी की थी.
गुलाम भारत अपने हुक्मरानों के जश्न से पीछे कैसे रह सकता था. जॉर्ज पंचम ने भारत आने का कार्यक्रम बनाया. मुंबई में जॉर्ज पंचम के लिए भव्य गेट वे ऑफ इंडिया बनाया गया जहां से उन्हें भारत में कदम रखना था और भारत की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली लाने का अहम ऐलान करना था. इसके लिए दिल्ली में सजाया गया था दिल्ली दरबार – देश भर के राजा महाराजा ब्रिटेन के हुक्मरान जॉर्ज पंचम के लिए पलकें बिछाए बैठे थे.
ये साल 1911 का जुलाई महीना था और तब ही कोलकाता में जो तब कलकत्ता हुआ करता था कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था. अधिवेशन के दूसरे दिन यानी 27 दिसंबर 1911 को जॉर्ज पंचम के भारत आने की खुशी में कार्यक्रम होने थे वो भी जॉर्ज पंचम की गैरमौजूदगी में. इसी कार्यक्रम में जो कुछ हुआ उसकी वजह से जन गण मन को लेकर एक विवाद ने भी जन्म लिया.
1905 में बंगाल विभाजन के अंग्रेजों के विरोध में देशभक्ति के गीत रचने वाले रवींद्रनाथ टैगोर तब राजनीति से बाहर निकल कर साहित्य साधना में डूब चुके थे. कांग्रेस ने उनसे जॉर्ज पंचम का स्वागत गीत लिखने का अनुरोध किया था और 27 जुलाई 1911 को रवींद्रनाथ टैगोर का लिखा जन गण मन गीत कांग्रेस के अधिवेशन में गाया गया.
इस गीत की पहली पंक्ति में अधिनायक शब्द को तब के ब्रिटिश मीडिया ने जॉर्ज पंचम की प्रशंसा माना .
स्टेट्स मैन ने 28 जुलाई 1911 को लिखा
बंगाली कवि रवींद्रनाथ टैगौर ने खासतौर पर राजा जॉर्ज पंचम की प्रशंसा में अपनी धुन पर लिखा अपना ही गीत गाया.
इंग्लिशमैन ने भी 28 जुलाई को रिपोर्ट किया
कार्यवाही की शुरुआत रवींद्रनाथ टैगोर के गीत से हुई जो खासतौर पर उन्होंने राजा जॉर्ज पंचम के सम्मान में लिखा है.
रवींद्रनाथ टैगोर के गीत को लेकर ब्रिटिश मीडिया की इस रिपोर्टिंग ने ना सिर्फ जन गण मन को ब्रिटिश हुकूमत की प्रशंसा के विवाद में ला दिया बल्कि रवींद्रनाथ टैगोर की देशभक्ति पर भी सवाल उठाए गए. लेकिन क्या ये पूरा सच था?
28 जुलाई 1911 को रवींद्रनाथ टैगोर के बारे में भारत के अखबार क्या लिख रहे थे? 
अमृत बाजार पत्रिका ने लिखा
कांग्रेस का सेशन बंगाली भाषा में भगवान की स्तुति में लिखे गीत से हुई. इसके बाद राजा जॉर्ज पंचम के प्रति वफादारी का प्रस्ताव पास हुआ और उसके बाद किंग जॉर्ज पंचम के स्वागत में भी एक गीत हुआ.

अमृत बाजार पत्रिका, 28 जुलाई 1911
तो क्या साल 1911 में किंग जॉर्ज पंचम के स्वागत में जो गीत गाया गया था वो रवींद्रनाथ टैगोर ने नहीं लिखा था?
इतिहास के मुताबिक 27 जुलाई 1911 को एक नहीं तीन गीत गाए गए थे. शुरुआत में जन गण मन और फिर राजभुजादत्त चौधुरी का लिखा गीत ‘बादशाह हमारा’ गाया गया. कार्यक्रम के अंत में कवियत्री सरलादेवी ने भी एक गीत गाया था. तो क्या ब्रिटिश मीडिया ने ‘बादशाह हमारा’ गीत जो कि जॉर्ज पंचम की प्रशंसा में लिखा गया था उसे ही रवींद्रनाथ का गीत मान लिया या फिर वो जन गण मन के बारे में लिख रहे थे?
यही भ्रम विवाद की वजह बन गया. टैगोर के समर्थक इसे झूठ बताते रहे हैं. टैगोर की जीवनी रबींद्रजीबनी के मुताबिक टैगोर ने कांग्रेस अधिवेशन से पहले अपने मित्र पुलिन बिहारी मुखर्जी को एक खत लिखा था.
महामहिम की सेवा में लगे एक महान शख्स ने जो कि मेरे भी मित्र हैं अनुरोध किया है कि मैं राजा के स्वागत में गीत लिखूं. इस पेशकश ने मुझे चौंका दिया है. इसने मेरे हृदय को पीड़ा से भर दिया है. इस मानसिक आघात में मैंने देश की आजादी के लिए गीत लिखा है.
रवींद्र नाथ टैगोर ने इस बारे में कभी बड़ी सफाई नहीं दी. भारत के आजाद होने से पहले साल 1946 में उनका निधन हो गया. लेकिन उनके समर्थक उनके साहित्य से आज भी जन गण मन के समर्थन में तर्क निकाल लाते हैं.
19 मार्च 1939 को फिर लिखा
अगर मैं उन लोगों को जवाब दूंगा जो मुझे जॉर्ज चतुर्थ या पंचम की प्रशंसा में गीत लिखने की भयावह मूर्खता के लायक समझते हैं तो मैं अपना ही अपमान करूंगा.
(रवींद्र नाथ टैगोर , पूर्वासा में)
लेकिन राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग रवींद्रनाथ टैगोर के लिखे जन गण मन गीत के शब्दों को लेकर वार करते रहे हैं. राष्ट्रगान की पहली पंक्ति के अधिनायक शब्द को भी वो राजा जॉर्ज पंचम के लिए इस्तेमाल किया हुआ ही मानते हैं. इससे पहले भी राष्ट्रगान से सिंध शब्द को हटाकर कश्मीर शब्द को लाने की मांग उठी थी क्योंकि सिंध अब पाकिस्तान का हिस्सा है.

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Breaking News : सुब्रमण्यम स्वामी ने राष्ट्र गान में बदलाव के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा

Breaking News : सुब्रमण्यम स्वामी ने राष्ट्र गान में बदलाव के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा

नयी दिल्ली : नेशनल हेराल्ड को लेकर पिछले दिनों सुर्खियों में रहे सुब्रमण्यम स्वामी एक बार फिर खबरों में है. स्वामी ने इस बार प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अपील की है कि राष्ट्रगान में बदलाव लाया जाये.

Dr @Swamy39 writes to our honourable PM @narendramodi for a slight change in national anthem. @jagdishshetty pic.twitter.com/LUPPJdi7TC

— harsh yadav (@harshyadav0012) December 21, 2015
 

उन्होंने पत्र में लिखा है कि प्रधानमंत्री आप जानते है कि देश में राष्ट्रगान 'जन गण मन ' को राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद के वोटिंग के बिना ही संविधान सभा ने स्वीकार कर लिया था. जन गण मन को  कांग्रेस के 1912 के अधिवेशन  में ब्रिटिश राजा के स्वागत में गाया गया था. उन्होंने लिखा कि इसके कुछ अंश अब भी विवादित है. इसलिए राष्ट्रगान में बदलाव करना चाहिए.

स्वामी ने लिखा है कि संसद में इसके लिए प्रस्ताव लाना चाहिए. इसके धुन को छेड़छाड़ किये बगैर इसके शब्दों में बदलाव लाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में सुभाष चंद बोस का सुझाव माना जा सकता है. स्वामी के अनुसार सुभाष चंद्र बोस ने सिर्फ 5 प्रतिशत शब्दों में बदलाव की बात कही थी.
#slight change | #national anthem | #PM narendramodi




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