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Thursday, August 10, 2017

तब ~~ एक तौलिया से पूरा घर नहाता था



~~ तब ~~
एक तौलिया से पूरा घर नहाता था।
दूध का नम्बर बारी-बारी आता था।
छोटा माँ के पास सो कर इठलाता था।
पिताजी से मार का डर सबको सताता था।
बुआ के आने से माहौल शान्त हो जाता था।
पूड़ी खीर से पूरा घर रविवार मनाता था।
बड़े भाई के कपड़े छोटे होने का इन्तजार रहता था।
स्कूल मे बड़े की ताकत से छोटा रौब जमाता था।
बहन-भाई के प्यार का सबसे बड़ा नाता था।
धन का महत्व कभी सोच भी न पाता था।
बड़े का बस्ता किताबें साईकिल कपड़े खिलोने पेन्सिल स्लेट स्टाईल चप्पल सब से मेरा नाता था।
मामा-मामी नाना-नानी पर हक जताता था।
एक छोटी से सन्दुक को अपनी जान से ज्यादा प्यारी तिजोरी बताता था।
                       
                   ~~ अब ~~
तौलिया अलग हुआ, दूध अधिक हुआ,
माँ तरसने लगी, पिता जी डरने लगे,
बुआ से कट गये, खीर की जगह पिज्जा बर्गर मोमो आ गये,
कपड़े भी व्यक्तिगत हो गये, भाईयो से दूर हो गये,
बहन के प्रेम की जगह गर्लफ्रेण्ड आ गई,
धन प्रमुख हो गया,अब सब नया चाहिये,
नाना आदि औपचारिक हो गये।
बटुऐ में नोट हो गये।
कई भाषायें तो सीखे मगर संस्कार भूल गये।
बहुत पाया पर कुछ खो गये।
रिश्तो के अर्थ बदल गये,
हम जीते तो लगते है
पर एहसास व संवेदनाहीन हो गये।

कृपया सोचें ,
कहां थे, कहां पहुँच गये।


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