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Thursday, September 12, 2024

Must Read Story : गोलगप्पे की रेहड़ी

Must Read Story : गोलगप्पे की रेहड़ी

तुम्हे कुछ दिन से देख रहा हूं, यहां रोज गोलगप्पे की रेहड़ी लगाते हो, स्कूल क्यों नहीं जाते....

शर्मा जी ने सड़क किनारे रेहड़ी लगाए 14-15 साल के लड़के से कहा...

बस अंकल जी...अपनी हालत कुछ ऐसी ही है...

मै एक संस्था चलाता हूं, यहा गरीब बच्चों के लिए कक्षाएं चलाई जाती है, तुम भी आ सकते हो....

अंकल जी....फिर गोलगप्पे कौन बेचेगा...

घर कैसे चलेगा....

क्यो, तुम्हारे माता -पिता नही है क्या

है.... अंकल जी, भाई है बहन भी है...

पर घर की जिम्मेदारी मुझ पर है, वैसे भी पढ़ -लिख कर क्या करूँगा,

पढ़ कर तुम बड़े आदमी बन सकते हो....

लड़का ज़ोर से हँसा -अंकल जी...

बड़ा आदमी...वो सूट_बूट वाला,

जो गरीब मां -बाप से किनारा कर लेता है,

सुनिए अंकल जी - मेरे बापू चपरासी थे...

मामूली तनख्वाह थी हम दो भाई ,एक बहन है...

बापू ने बड़ी मेहनत से भाई ,बहन को पढ़ाया...कर्ज़ा लिया,

फिर भाई अफसर बन गया...कालेज में अपनी पसंद की लडकी से शादी की और पत्नी को साथ ले शहर निकल गया...

पलट कर देखा तक नही....

बहन बड़े स्कूल की प्रिंसिपल है ।

उसे व उसके पति को, चपरासी पिता, अनपढ़ मां, और सिर्फ छठी पास भाई धब्बा लगते है...

कभी मिलने तक नही आती...

उनकी बड़ी शिक्षा पर हम पैबंद से लगते है....

अब बापू के पास काम नहीं रहा

मां बीमार रहती है...

मैं घर चलाउ या पढूं...

"वैसे भी अंकल जी... आदमी सोच से बड़ा होता है, डिग्रियों से नहीं !

पढ़ना तो मैं भी चाहता हूँ, लेकिन ज़िमेदारीयां नहीं पढ़ने देगी

फिर मैंने तय किया कि, जिन माता -पिता ने कष्ट सह कर पाला, उन्हें सुख दे सकूं इसी में खुद को बड़ा आदमी मान लूँगा..

चलिए अंकल जी...

गोलगप्पे खाइये....

कुछ कमाई तो हो, कल माँ की दवाईयां खत्म हो गई, वो भी लानी है

शर्मा जी कुछ सोचे और कहा, तुम अच्छे गोलगप्पे बनाते हो, घरवालों के लिए भी 100 रुपए के पैक कर दो, पैसे देकर शर्मा जी नीची गर्दन करते हुए धीमे धीमे चले गए

लेकिन शर्मा जी तो अकेले रहते है

उनके बच्चे विदेश में शेटल हो गए

ऐसे ना जाने कितने बच्चे बचपन खो देते हैं, पढ़ नहीं पाते, और जो ज्यादा पढ़ लिए, वो घर नहीं आते



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Wednesday, September 11, 2024

गुस्सैल पत्नी और कीलों से भरा एक थैला









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एक था तिलका

एक था तिलका

भैंस पालता था। अपनी भैंस का दूध भी बेचता था और अड़ोस पड़ोस के लोगों की भैंसों का भी दूध बेचा करता था। दूध में पानी भी मिलाता था मगर शुद्ध हैंडपंप का पानी। गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गर्म।
कभी कभी पापा जी शिकायत भी करते... तिलके आजकल पानी ज्यादा मिला रहे दिक्खो।
ना जी... बिल्कुल नि मिलात्ता। अर तम्है तो मैं खास तौर पै अपनी ई भैंस का दूं। और यही एक्सप्लेनेशन वह अपने हर ग्राहक को दिया करता था।
कभी कभी सफाई बिल्कुल वैज्ञानिक अंदाज में देता। जी पानी बिलकुल नि मिलाया। अभी निकाल कर लाया। चाहे देख लो निवाया (हल्का गर्म) है कि नहीं।
एक दिन पापाजी ने दूध का बर्तन हाथ में लिया तो वह सामान्य से ज्यादा गर्म लगा। तो पापाजी तुरंत बोले... तिलके थारी भैंस कू बुखार हो रा दिक्खे आज तो। दूध घणा ई गर्म सा।
इन फैक्ट तिलका सर्दियों में पानी को गर्म करके मिलाया करता था ताकि दूध के तापमान में कोई अंतर न आए और वह धारोष्ण लगे। उस दिन पानी ज्यादा गर्म हो गया होगा!!!
पशु के शरीर से जब दूध निकल कर आता है तो वह बॉडी टेंपरेचर के आसपास होता है। जैसे हमारा सामान्य तापमान 98.6 डिग्री होता है उसी तरह भैंस का सामान्य तापमान 101 डिग्री और गाय का 101.5 डिग्री होता है। इसलिए जब दूध थनों से बाहर आता है तो वह उस पशु के शरीर के तापमान के आसपास होता है और उसे धारोष्ण दूध कहा जाता है।
पुराने जमाने में लोग दूध की धार सीधे मुंह में मारकर भी पी लिया करते थे। आयुर्वेद में भी धारोष्ण दूध पीने की सलाह दी जाती है।
मगर अब जमाना बदल चुका है। जिन तथ्यों का हमें पहले पता नहीं था अब पता है तो अब धारोष्ण दूध या कच्चा दूध या बिना उबला दूध पीने की सख्त मनाही की गई है।
ऐसा दूध पीने से पीने वाला बहुत सी बीमारियों से ग्रस्त हो सकता है। इनमें सबसे प्रमुख है टीबी। इसके अलावा बिना उबले दूध में सालमोनेला, ई कोलाई, लिस्टेरिया, कैंपीलोबैक्टर आदि बैक्टीरिया भी हो सकते हैं जिनसे फूड प्वाइजनिंग हो सकती है। पेट में गैस, जी मिचलाना, उल्टी आदि लक्षण आ सकते हैं।
इसलिए दूध को भली भांति उबाल कर ही प्रयोग करें। यहां तक कि पश्चुरीकृत दूध को भी उबालने के बाद ही प्रयोग में लाए। जय हो।




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व्रत के फायदे: एंटी एजिंग लंबी आयु दीर्घ जीवी

व्रत के फायदे: एंटी एजिंग लंबी आयु दीर्घ जीवी


पूर्णिमा.... 
फिर चौदह दिन बाद अमावस्या और फिर चौदह दिन बाद फिर से पूर्णिमा। महीने में कम से कम दो अवसर व्रत रखने के।
थोड़ा और धार्मिक हो जाएं तो एकादशी।
थोड़ी और श्रद्धा हो तो सप्ताह के सभी दिन किसी ना किसी भगवान से जुड़े हुए। जितनी श्रद्धा हो व्रत किए जाओ। 
यह व्रत रखना मात्र धार्मिक क्रियाकलाप नहीं है। इसके पीछे छिपा है विज्ञान। 
सबसे पहला फ़ायदा होता है न्यूट्रिएंट्स की आपूर्ति में थोड़ी कटौती करके वजन को संतुलित रखना।
दूसरा फायदा है कि व्रत की स्थिति में ब्लड में ग्लूकोज का स्तर घट जाता है। मगर शरीर की विभिन्न कोशिकाओं को अपना कार्य सुचारू रूप से चलाने के लिए तो ग्लूकोज चाहिए ही। तो इस अवस्था में लीवर में वसा अम्लों के पाचन से ग्लूकोज के स्थान पर एक अन्य रसायन पैदा होता है जिसका नाम है बीटा हाईड्रॉक्सी ब्यूटाइरेट। ग्लूकोज ना होने पर कोशिकाएं इसी बीटा हाईड्रॉक्सी ब्यूटाइरेट से ही एनर्जी प्राप्त करती हैं। यह है इतने कमाल का कि यह ब्लड ब्रेन बैरियर को भी पार कर सकता है। 
बस यही बीएचबीए कमाल का है। यही वह जादूगर है जो देता है लम्बी आयु। एजिंग का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है हमारे वैस्कुलर सिस्टम पर। बोले तो हमारी धमनियों (आर्टरीज) और शिराओं (वेन्स) पर। बुढ़ापे के कारण शरीर के विभिन्न अंगों तक रक्त लेकर जाने वाली धमनियां बूढ़ी होने लगती हैं। और एक दिन थक जाती हैं।
यहीं रोल आता है बीएचबीए का। इसके कारण सेल डिवीजन बढ़ जाता है और ब्लड वैसल्स के अंदर की लाइनिंग की कोशिकाओं की संख्या बढ़ने लगती हैं। पुरानी कोशिकाओं का स्थान नई कोशिकाएं लेने लगती हैं और बस कृपा स्टार्ट।
व्रत के अलावा व्यायाम करने से भी बीएचबीए का उत्पादन बढ़ता है। शायद इसीलिए हमारे पूर्वज दीर्घजीवी होते थे। क्योंकि वह कम से कम साप्ताहिक व्रत तो करते ही थे साथ ही साथ व्यायाम भी किया करते थे। 
इसलिए कल से डोमेस्टिक हेल्प को कीजिये टाटा बाई बाई और अपना काम स्वयं कीजिए और साथ ही शुरू कीजिए कम से कम एक साप्ताहिक व्रत।
और हां.... व्रत के स्थान पर चरत मत रख लेना। कभी सारा दिन कुछ न कुछ चरते ही रहो जैसा अभी जन्माष्टमी के चरत में किया आप लोगों ने।



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Sunday, September 8, 2024

Motivational Hindi Stories परीक्षा

परीक्षा 
Motivational Hindi Stories

बहुत पुरानी बात है, उन दिनों आज की तरह स्कूल नहीं होते थें। गुरुकुल  शिक्षा प्रणाली थी और छात्र गुरुकुल में ही रहकर पढ़ते थे। उन्हीं दिनों की बात है, एक विद्वान पंडित थे, उनका नाम था- राधे गुप्त। उनका गुरुकुल बड़ा ही प्रसिद्ध था, जहाँ दूर दूर से बालक शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे।

राधे गुप्त की पत्नी का देहांत हो चूका था, उनकी उम्र भी ढलने लगी थी, घर में विवाह योग्य एक कन्या थी, जिनकी चिंता उन्हें हर समय सताती थी। पंडित राधे गुप्त उसका विवाह ऐसे योग्य व्यक्ति से करना चाहते थे, जिसके पास सम्पति भले न हो पर बुद्धिमान हो।


एक दिन उनके मन में विचार आया, उन्होंने सोचा कि क्यों न वे अपने शिष्यों में ही योग्य वर की तलाश करें। ऐसा विचार कर उन्होंने बुद्धिमान शिष्य की परीक्षा लेने का निर्णय लिया, उन्होंने सभी शिष्यों को एकत्र किया और उनसे कहा- मैं एक परीक्षा आयोजित करना चाहता हूँ, इसका उद्देश्य यह जानना है कि कौन सबसे बुद्धिमान है।

मेरी पुत्री विवाह योग्य हो गई है और मुझे उसके विवाह की चिंता है, लेकिन मेरे पास पर्याप्त धन नहीं है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि सभी शिष्य विवाह में लगने वाली सामग्री एकत्र करें। भले ही इसके लिए चोरी का रास्ता क्यों न चुनना पड़े। लेकिन सभी को एक शर्त का पालन करना होगा, शर्त यह है कि किसी भी शिष्य को चोरी करते हुए कोई देख न सके।

अगले दिन से सभी शिष्य अपने अपने काम में जुट गये। हर दिन कोई न कोई शिष्य अलग अलग तरह की वस्तुएं चुरा कर ला रहा था और गुरूजी को दे रहा था। राधे गुप्त उन वस्तुओं को सुरक्षित स्थान पर रखते जा रहे थे। क्योंकि परीक्षा के बाद उन्हें सभी वस्तुएं उनके मालिक को वापिस करनी थी।


परीक्षा से वे यही जानना चाहते थे कि कौन सा शिष्य उनकी बेटी से विवाह करने योग्य है। सभी शिष्य अपने अपने दिमाग से कार्य कर रहे थे। लेकिन उनमें से एक छात्र रामास्वामी, जो गुरुकुल का सबसे होनहार छात्र था, चुपचाप एक वृक्ष के नीचे बैठा कुछ सोच रहा था।

उसे सोच में बैठा देख राधे गुप्त ने कारण पूछा। रामास्वामी ने बताया, “आपने परीक्षा की शर्त के रूप में कहा था कि चोरी करते समय कोई देख न सके। लेकिन जब हम चोरी करते हैं, तब हमारी अंतरात्मा तो सब देखती है, हम खुद से उसे छिपा नहीं सकते। इसका अर्थ यही हुआ न कि चोरी करना व्यर्थ है।”

उसकी बात सुनकर राधे गुप्त का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा। उन्होंने उसी समय सभी शिष्यों को एकत्र किया और उनसे पूछा- आप सबने चारी की.. क्या किसी ने देखा ? सभी ने इनकार में सिर हिलाया। तब राधे गुप्त बोले “बच्चों ! क्या आप अपने अंतर्मन से भी इस चोरी को छुपा सके ?”

इतना सुनते ही सभी बच्चों ने सिर झुका लिया। इस तरह गुरूजी को अपनी पुत्री के लिए योग्य और बुद्धिमान वर मिल गया। उन्होंने रामास्वामी के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। साथ ही शिष्यों द्वारा चुराई गई वस्तुएं उनके मालिकों को वापिस कर बड़ी विनम्रता से क्षमा मांग ली।


शिक्षा:-
इस प्रसंग से यह  शिक्षा मिलती है कि कोई भी कार्य अंतर्मन से छिपा नहीं रहता और अंतर्मन ही व्यक्ति को सही रास्ता दिखाता है। इसलिए मनुष्य को कोई भी कार्य करते समय अपने मन को जरुर टटोलना चाहिए, क्योंकि मन सत्य का ही साथ देता है।

*सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।




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