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Monday, January 25, 2016

मुस्लिम गर्ल्स स्कूल में तिरंगा फहराने, आधुनिक शिक्षा का विरोध

मुस्लिम गर्ल्स स्कूल में तिरंगा फहराने, आधुनिक शिक्षा का विरोध

तनाव तब पैदा हो गया जब हमने हिंदी और अंग्रेजी पढ़ाने का फैसला किया। हम इस स्कूल को केंद्र सरकार की मदरसों के आधुनिकीकरण की योजना के आधार पर चलाएंगे। लेकिन, कुछ बदमाश समस्या खड़ा कर रहे हैं



ग्रेटर नोएडा के दनकौर में तब तनाव का माहौल बन गया जब कुछ कट्टरपंथियों ने सोमवार को एक मुस्लिम गर्ल्स स्कूल में तिरंगा फहराने और आधुनिक शिक्षा का विरोध किया। बताया जाता है कि यह स्कूल नवंबर 2011 से उत्तर प्रदेश सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग से रेकग्नाइज्ड और रजिस्टर्ड है।


दरअसल मुस्लिम गर्ल्स हाई स्कूल साल 2011 से यूपी सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अंतर्गत आता है। सोमवार को कुछ लोग गणतंत्र दिवस के मौके पर स्कूल में झंडा फहराने की तैयारी के लिए रॉड और दूसरे जरूरी सामान के साथ स्कूल पहुंचे थे कि तभी कुछ कट्टरपंथी लोगों ने उन्हें झंडा फहराने से मना कर दिया और गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी।मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद हो गया है।
धमकी देने वाले कुछ लोगों को जब पुलिस ने थाने में बुलाया तो उन्होंने पुलिस के सामने ही स्कूल में हिंदी और अंग्रेजी पढ़ाए जाने का विरोध शुरू कर दिया। जिसके बाद मामले को गंभीरता से लेते हुए पुलिस ने विरोध करने वाले सभी लोगों को चेतावनी दी कि अगर आज उन्होंने स्कूल में झंडा फहराने का विरोध किया तो उन्हें इसका गंभीर परिणाम भुगतना होगा।



सोमवार को स्कूल प्रशासन से जुड़े कुछ लोग स्कूल में तिरंगा फहराने के लिए लोहे का डंडा लगाने वहां पहुंचे, लेकिन बदमाशों ने मजदूर को हड़काकर स्कूल से बाहर कर दिया। मामले की सूचना मिलने के बाद पुलिस प्रशासन ऐक्शन में आ गया। पुलिस ने दनकौर के कुछ स्थानीय लोगों को थाने बुलाया। ये लोग पुलिस के सामने भी इस बात पर भड़क गए कि स्कूल में दूसरी भाषाओं की शिक्षा दी जाती है। हालांकि, पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए लोगों को अल्टिमेटम दिया कि अगर उन्होंने रिपब्लिक डे पर स्कूल में तिरंगा फहराने से रोका तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

दनकौर पुलिस स्टेशन ऑफिसर चक्रपाणि शर्मा ने कहा कि किसी को भी कानून हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जाएगी। घटना के बारे में उन्होंने कहा, 'कुछ अनपढ़ लोग झंडोत्तोलन समारोह का विरोध कर रहे थे। हमने अपने सीनियर अधिकारियों को घटना की सूचना दे दी है और मंगलवार को किसी भी अनहोनी को टालने के लिए भारी पुलिस बल की मौजूदगी में स्कूल में झंडा फहराया जाएगा। ये कट्टरपंथी लोग हिंदी और अंग्रेजी में पढ़ाई पर भी सवाल उठा रहे थे। रिपब्लिक डे के बाद हम उन्हें फिर से बुलाकर स्कूल में आधुनिक शिक्षा सुनिश्चित करेंगे।'

हजरत सैयद भुरेशाह कमिटी के सेक्रटरी आदिर खान जयसवाल ने कहा, 'सैयद भुरेशाह मुस्लिम गर्ल स्कूल वक्फ कमिटी की जमीन पर चल रहा है। 2011 से यहां 5वीं क्लास तक के बच्चों की पढ़ाई हो रही है। शुरुआत में सबकुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन तनाव तब पैदा हो गया जब हमने हिंदी और अंग्रेजी पढ़ाने का फैसला किया। हम इस स्कूल को केंद्र सरकार की मदरसों के आधुनिकीकरण की योजना के आधार पर चलाएंगे। लेकिन, कुछ बदमाश समस्या खड़ा कर रहे हैं।'

उन्होंने कहा, 'अब हालात बद से बदतर हो गए हैं। शिक्षकों के स्कूल आने का विरोध किया गया और ऐसा माहौल बनाया गया कि स्कूल में पढ़ाई नहीं हो। हमने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा राज्यपाल के साथ-साथ जीबी नगर के डीएम, एसएसपी और स्थानीय दनकौर थाने से शिकायत की है। इसके बावजूद कुछ कट्टरपंथी हमपर आधुनिक शिक्षा की पढ़ाई वापस लेने का दबाव बना रहे हैं।'

आदिर खान ने कहा, 'ये बदमाश गणतंत्र दिवस पर झंडा फहराने का भी विरोध कर रहे हैं। उन्होंने झंडा फहराए जाने पर हमें गंभीर नतीजे भुगतने की धमकी दी है। सोमवार को हमारे स्टाफ झंडोत्तोलन समारोह का इंतजाम करने के लिए स्कूल गए, लेकिन बदमाशों ने उनके साथ बदतमीजी की और स्कूल से निकल जाने को कहा।' उन्होंने बताया कि सोमवार को जीबी नगर के डीएम ऑफिस और एसएसपी से फिर से शिकायत की गई ताकि झंडोत्तोलन समारोह सुनिश्चित की जा सके। साथ ही किसी भी अनहोनी को टालने के लिए पुलिस बल मुहैया कराए जाने की भी मांग की गई।








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Sunday, January 24, 2016

दलित आईएएस ने इस्‍लाम कबूला, सरकार पर भेदभाव का आरोप

दलित आईएएस ने इस्‍लाम कबूला, सरकार पर भेदभाव का आरोप



राजस्थान पथ परिवहन निगम के अध्यक्ष और भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी उमराव सालोदिया नेेे अपने साथ भेदभाव से दुखी होकर धर्म परिवर्तन कर लिया और इस्‍लाम अपना लिया है। अपनी उपेक्षा से दुखी होकर उन्होंने वीआरएस लेने का भी फैसला किया है। 6 महीने बाद रिटायर हो जा रहे सालोदिया ने मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे को पत्र लिखकर चीफ सेक्रेटरी नहीं बनाए जाने पर नाराजगी जाहिर की


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धर्म परिवर्तन
सदियों से हिन्दू धर्म से टूट टूट कर लोग इस्लाम अपनाते आये हैं -
कारण - जजिया ,दबाब में , परेशान हो कर
वहीँ इस्लाम धर्म प्रचार प्रसार में यकीन रखता है - चार शादीयां , अधिक बच्चे , दूसरे धर्म के लोगो के परिवर्तन से , जबरन (इतिहास बताता है )
लेकिन ये सब तो सही है , लेकिन इसके बाद अगर शरिया इस्लामी नियम पालन करना , 5 बार नमाज अदा करना , वैज्ञानिक दृश्टिकोण अपनाना
आदि अपनाना आसान नहीं होता
वैसे ही हिन्दू धर्म में भी लोगो को तमाम संस्कार - जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी संस्कारों के लिए ब्राह्मण (जैसे शादी विवाह कराने के लिए ब्राह्मण , मृत्यु पर ),
धार्मिक रीति रिवाज , तो समाज के कुछ वर्ग उपेक्षा का शिकार भी महसूस करते हैं

और इसी कारण बौद्ध धर्म और इस्लाम धर्म के सबसे ज्यादा लोग भारत में है , कई लोग सिख धर्म में भी शामिल हुए हैं और ईसाई भी बने ।
पर हिन्दू धर्म में इसको फ़ैलाने का प्रावधान बहुत कम था , और ईसाई , इस्लाम धर्म इसको फैलाने में यकीन रखते थे ।
और इसी कारण ईसाई मिशनरीज़ ने नागालैंड , मिजोरम इत्यादि जगह ईसाई धर्म के आदिवासियों के बीच अपना प्रसार कर दिया
आधा अफ्रीका ईसाई और आधा इस्लाम में परिवर्तित हो गया ।


हिन्दू धर्म में सुधार की सम्भावना तो है और इसी कारण - बाल विवाह , सती प्रथा , बलि प्रथा जैसी कुरीतियां समाप्त हो गयी ,और आगे भी सुधार होता रहेगा

आधुनिक समय में धर्म की महत्ता गौण हो चली है , समय के साथ विकास की और चलें , अपनी और समाज की समस्याओं को हल करने की कोशिश करें ,
धर्म परिवर्तन से आपकी मानसिक हालात  कुछ हद तक ही संतुष्ट होंगे , लेकिन क्या जिस धर्म में जा रहे हैं , उसमे कोई समस्या नहीं है या होगी ।
इंसान और इंसानियत ये है की समस्याओं से न भागें , अपितु डट कर मुकाबला करें जिससे इंसानीयत और समाज का भला हो सके
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सालोदिया ने कहा कि दलित होने के कारण उन्‍हें प्रताड़ित किया गया इसलिए उन्‍होंने इस्लाम अपनाने का फैसला किया है। उनका कहना है कि इस्लाम में ऊंच-नीच का भेदभाव नहीं है। उन्‍होंने भारतीय संविधान में प्राप्त मूलभूत अधिकारों के तहत धर्म-परिवर्तन किया है
जयपुर में एक संवाददाता सम्‍मेलन में धर्म परिवर्तन की घोषणा करते हुए सालोदिया ने कहा कि अब उनका नाम उमराव सालोदिया नहीं बल्कि उमराव खान होगा। एक दलित अधिकारी होने के कारण उनकी अनदेखी की जा रही है। इस प्रताड़ना से आहत होकर उन्‍होंने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को अपनी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आवेदन भेज दिया है। इस सिलसिले में वह भारत सरकार को भी पत्र भेज रहे हैं।
सालोदिया ने पुलिस के कामकाज पर अफसोस जताते हुए कहा कि उनके खिलाफ कई गलत शिकायतें करने वाले एक सेवानिवृत जिला अधिकारी के खिलाफ उन्‍होंने जयपुर के एक थाने में मुकदमा दर्ज करवाया था लेकिन पुलिस ने इस मामले में आरोपी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। उन्होंने कहा, जब मेरे मामले में यह स्थिति है तो आम आदमी, दलित की क्या स्थिति होगी।
गौरतलब है कि राजस्थान सरकार ने मौजूदा मुख्य सचिव सीएस राजन को तीन माह का सेवा विस्तार दिलाया है। सालोदिया इसी बात से नाराज हैं। मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि पहली बार कोई दलित अफसर राजस्थान का मुख्य सचिव बन रहा था, वह वरिष्ठता क्रम में सबसे ऊपर थे लेकिन मौजूदा सीएस को तीन माह का एक्सटेंशन दे दिया गया। राजन को दिए गए एक्सटेंशन के कारण उन्‍हें मुख्य सचिव बनने का मौका नहीं मिला।
1978 बैच के आईएएस अधिकारी उमराव सालोदिया के साथ भेदभाव के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए राजस्‍थान सरकार के वरिष्‍ठ मंत्री राजेंद्र राठौड ने उनके खिलाफ कार्रवाई के संकेत दिए हैं। राठौड़ ने कहा कि भारतीय सेवा आचरण नियम 1968 नियम सात के तहत पद पर रहते हुए सार्वजनिक तौर पर या संवाददाता सम्मेलन के माध्यम से सरकार की नीति और रीति की आलोचना नहीं कर सकते हैं। सेवानिवृति से छह माह पहले इस तरह के मिथ्या आरोप लगाना उन्हें शोभा नहीं देता

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सालोदिया ने ये बताई इसकी वजह...
- गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में सालोदिया ने कहा, "मेरे साथ हिंदू धर्म में भेदभाव हुआ है। मुझे चीफ सेक्रेटरी नहीं बनाया गया।"
- "दलित होने की वजह से मेरे साथ अत्याचार किए गए। इस्लाम में ऐसा नहीं होता है।"
सालोदिया ने धर्म बदलने को लेकर चिट्ठी में क्या लिखा है...
- "भारत के संविधान में आर्टिकल 25 (1) में नागरिकों को यह आजादी दी गई है कि वे किसी भी धर्म में अपनी आस्था जाहिर कर सकते है।"
- "मैं इसी हक के तहत आज 31 दिसंबर, 2015 को हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम अपना रहा हूं।"
CM वसुंधरा राजे को लिखी चिट्ठी में सालोदिया ने क्या कहा?
- "मैं एससी/एसटी कोटा से आईएएस हूं, जिसे सीनियरिटी की बुनियाद पर चीफ सेक्रेटरी बनाया जाना चाहिए था।"
- "लेकिन मौजूदा चीफ सेक्रेटरी सी.एस. राजन को 31 मार्च, 2016 तक 3 महीने का एक्सटेंशन दिया गया है।" 
- "राजन को दिए गए एक्सटेंशन के कारण मुझे सीएस बनने का मौका नहीं मिला।"
- "अगर एक्सटेंशन नहीं दिया जाता तो सीनियरिटी के हिसाब से मुझे ही सीएस बनाया जाता।"
- "यह सब राज्य सरकार के कहने पर हुआ है। इन सब बातों के चलते मैं वीआरएस के लिए सरकार से गुजारिश करता हूं।"
आरोपों पर सरकार का क्या है रिएक्शन?
- राजस्थान के संसदीय कार्य मंत्री राजेंद्र राठौड़ ने कहा, "चीफ सेक्रेटरी राजन को तीन महीने का एक्सटेंशन रूल्स के तहत दिया गया है।"
- "राजन सीनियर आईएएस हैं। कई पोस्ट पर रहते हुए उन्होंने अपनी काबिलियत दिखाई है।"
- "सालोदिया की सर्विस केवल 6 महीने बाकी थी। अगर वे 31 मार्च तक इंतजार करते तो शायद उनके लिए रास्ते खुले होते।"
- "इतने सीनियर होते हुए भी सालोदिया ने इस तरह के आरोप लगाए हैं, यह बेहद शर्मनाक है।"
- "धर्म बदलना उनका निजी मामला हो सकता है, लेकिन मैं ऐसे आरोपों की निंदा करता हूं।"
'सालोदिया को यह शोभा नहीं देता'
- राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने कहा, "यह तरीका गलत था। किसी भी धर्म को कोई भी माने, उसकी मनाही नहीं है।"
- कटारिया के मुताबिक, सालोदिया जैसे पढ़े-लिखे आदमी को यह शोभा नहीं देता है। ड‌्यूटी में 6 महीने ही बचे हैं, ऐसे में यह फैसला ठीक नहीं है।

कौन हैं उमराव सालोदिया?
- 1978 बैच के आईएएस सालोदिया जयपुर के ही रहने वाले हैं। 
- वे राजस्थान रोडवेज के चेयरमैन हैं। 
- इससे पहले वे जवाहर कला केंद्र के डायरेक्टर के साथ-साथ ट्रांसपोर्ट और रेवेन्यू डिपार्टमेंट में भी एडिशनल चीफ सेक्रेटरी रहे हैं।
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Friday, January 22, 2016

An Eye Opener Video about Rohit Vemula (Must Watch - How He Expelled)

An Eye Opener Video about Rohit Vemula (Must Watch - How He Expelled)


A perfect debate focussing issues concerning death of a Ph D Scholar Student and what leads to him for suicide.

A social boycott he faced after suspension from University. Even he had not blamed on any authority but what leads to him to do such things.

TV anchor showed some documents - Where at the initial stage Proctor of University did not find any evidences / issues and wrote to give them warning and let off them. But when ABVP tried to create pressure and Bandaru Datttrey wrote a letter to Vice Chancellor to take action against incident, thereafter committee report changed and wrote about suspension & punishment of students.
Subsequently Rohit including 5 members of Ambedkar Student Association (ASA) was punished,


BJP spokesperson trying to divert the topic on Malda incident that why media not covers Malda issue.
Trying to divert on Highcourt case, where Rohit Vemula and his expelled colleagues filed a case.

Ovesi take benefit of this death, where BJP becomes weak.
TV ancor again and again asked BJP spokesperson Sambit Patra - Did Bandaru Dattatrey not write a letter to VC? And on what authority he wrote this letter.







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हैदराबाद यूनिवर्सिटी के बारे में एक और विवाद अप्पाराव जो की इस समय वाइस चांसलर हैं , वह जब 2002 में चीफ वार्डन थे तो उन्होंने 10 दलित छात्रों को निष्कासन किया था ।

हैदराबाद यूनिवर्सिटी के बारे में एक और विवाद 

अप्पाराव जो की इस समय वाइस चांसलर हैं , वह जब 2002 में चीफ वार्डन थे तो उन्होंने 10 दलित छात्रों को निष्कासन किया था । 

दलित छात्रों ने चीफ वार्डन अप्पाराव से पूछा था की क्यों दलित वार्डन को डिमोट कर गार्डनिंग व् सेनिटेशन का काम दिया है । 
अप्पाराव नाराज हुए , कमेटी बनी और 10 दलित छात्रों का निष्कासन कर दिया गया । 


उन दस दलित छात्रों में से 5 दलित छात्रों ने यू जी सी की फेलोशिप परीक्षा पास की थी , 2 छात्रों ने इंटरनेशनल जनरल में परचा लिखा था ,
1 छात्र अपने कॉलेज में प्रथम स्थान पर रहा था 
सभी छात्र खेतिहर मजदूर के बच्चे थे । 


बाद में यही चीफ वार्डन अप्पाराव आज हैदराबाद यूनवर्सिटी के कुलपति है 

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न्यूज़ वीडियो यहाँ देखें ->> https://www.youtube.com/watch?v=ZEeoEKak1xQ
हमारा यही कहना है की हमारे देश की एकता अखंडता के लिए दलित और सामान्य में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए । 
देश की बाहरी ताकतें पहले भी देश की अंदरुनी कमजोरी का फायदा उठाकर देश पर राज कर चुकी हैं । 
देश को विकासवाद और इंसानियत की जरूरत है , कोई अगर राह भटक जाए तो समुचित राह दिखाए जाने की जरूरत है 
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Wednesday, January 20, 2016

News - रोहित ने लिखा- मरकर ज्यादा खुश हूं, पढ़ें- सुसाइड लेटर

News - रोहित ने लिखा- मरकर ज्यादा खुश हूं, पढ़ें- सुसाइड लेटर 



हैदराबाद।
हैदराबाद यूनिवर्सिटी के हॉस्टल से निकाले गए पांच दलित छात्रों में से एक के रविवार को खुदकुशी करने के मामले में स्टूडेंट यूनियनों ने विरोध तेज कर दिया है। बता दें कि पांचों छात्रों को पिछले साल अगस्त में एबीवीपी के कार्यकर्ताओं से झड़प के बाद निलंबित कर दिया गया था। इनमें से एक रोहित वमुला ने रविवार को सुसाइड कर लिया। रोहित वमुला ने सुसाइड से पहले एक नोट भी छोड़ा। 




रोहित वमुला का सुसाइड नोट  - > 
सुप्रभात, 
जब आप ये पत्र पढ़ेंगे तब मैं जिंदा नहीं रहूंगा। गुस्सा मत होइएगा। मैं जानता हूं आप में से कुछ लोग मेरी बहुत चिंता करते हैं, मुझे बहुत प्यार करते हैं और मुझसे बहुत अच्छा बर्ताव करते हैं। मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है। समस्या हमेशा मेरे साथ ही रही। मेरे शरीर और मेरी आत्मा के बीच फासला बढ़ता जा रहा है और इससे मैं एक शैतान बन रहा हूं। मैं हमेशा से एक लेखक बनना चाहता था। विज्ञान का लेखक, कार्ल सगन की तरह। कम से कम मुझे ये पत्र तो लिखने को मिल रहा है। मुझे विज्ञान, सितारों और प्रकृति से प्यार रहा। लेकिन इसके बाद मुझे इंसानों से भी प्यार हो गया, ये जाने बिना कि इंसानों का इन सब चीजों से बहुत पहले ही नाता टूट चुका है।
मैं पहली बार इस तरह का पत्र लिख रहा हूं। एक अंतिम पत्र का पहला मौका। अगर मैं बात समझाने में विफल रहूं तो माफ करिएगा। शायद मैं दुनिया को, प्यार, दर्द, जीवन, मौत को समझने में असफल रहा। कोई जल्द नहीं थी, मगर मैं न जाने क्यों भाग रहा था। मैं एक नया जीवन शुरू करने के लिए काफी तत्पर था। कुछ लोगों के लिए जीवन ही एक श्राप होता है। मेरे लिए तो मेरा जन्म लेना ही हादसा था। मैं दु:खी नहीं हूं, उदास नहीं हूं। मैं सिर्फ खाली हूं। मुझे अपनी चिंता नहीं है। इसीलिए मैं ये कर रहा हूं।
मेरे जाने के बाद लोग मुझे कायर, स्वार्थी, मूर्ख कह सकते हैं। इससे मैं परेशान नहीं हूं। मैं मौत के बाद की कहानियों, भूत-प्रेत आत्माओं पर यकीन नहीं करता। मैं सिर्फ ये यकीन रखता हूं कि मैं सितारों तक की यात्रा कर सकता हूं और दूसरी दुनिया के बारे में जान सकता हूं
आप, जो इस वक्त मेरा पत्र पढ़ रहे हैं, अगर मेरे लिए कुछ कर सकते हैं तो मुझे मेरी सात महीनों की छात्रवृत्ति एक लाख पचहत्तर हजार रुपए मिलनी है, कृपया उस संबंध में कुछ करिएगा। वह राशि मेरे परिवार को दे दीजिएगा। मुझे करीब चालीस हजार रुपए रामजी को देने हैं। उन्होंने कभी मुझसे वापस नहीं मांगे, मगर कृपया उन्हें उसी राशि में से पैसे दे दीजिएगा
मेरी अंतिम यात्रा शांतिपूर्वक निकालिएगा। ऐसा बर्ताव करें कि मैं बस आया और चला गया। मेरे लिए आंसू मत बहाइएगा। ये जान लीजिए कि मैं जिंदा रहने की बजाय मरकर ज्यादा खुश हूं। बाय

मैं औपचारिकताएं लिखना तो भूल ही गया। मेरे इस कृत्य के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है। किसी ने भी अपने किसी काम या शब्द द्वारा मुझे उकसाया नहीं। ये मेरा निर्णय है और इसके लिए मैं ही जिम्मेदार हूं। मेरे जाने के बाद मेरे इस कृत्य को लेकर मेरे दोस्तों या दुश्मनों को परेशान मत कीजिएगा

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Rajasthan TET /  RTET,  BETET / Bihar TET,   PSTET / Punjab State Teacher Eligibility TestWest Bengal TET / WBTETMPTET / Madhya Pradesh TETASSAM TET / ATET
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Friday, January 8, 2016

बाहुबली पार्ट 2 सीक्रेट लीक्ड , क्यों कटप्पा ने बाहुबली को मारा , पार्ट 2 में नायक अपने पिता की मौत का बदला लेगा Why Katappa Killed Bahubali , Story Leaked Bahubali Part 2

बाहुबली पार्ट 2 सीक्रेट लीक्ड , क्यों कटप्पा ने बाहुबली को मारा , पार्ट 2 में नायक अपने पिता की मौत का बदला लेगा
Why Katappa Killed Bahubali , Story Leaked Bahubali Part 2





Once Bahubali becomes the emperor of the kingdom, he falls in love with certain Devasena (played by Anushka Shetty). The twist in the tale is that Bhallala Deva (played by Rana Daggubati) is also in love with Devasena. According to the instructions of Rajmata Shivagami (played by Ramya Krishnan), whoever marries Devasena will have to leave the empire and will be exiled. Bahubali agrees to this condition and decides to marry Devasena and leave Mahishmati
kingdom.
Once Bahubali departs the kingdom, it comes under the attack of son of Kalakeya King, which forces Bahubali to return Mahishmati and save his kingdom. This drastic change of scenario sparks fear in Bhallala Deva, who thinks Rajmata will give reins back to Bahubali. Then, Bhallala Deva orders Kattappa to kill Bahubali. Kattappa, who is under the oath of obeying the king’s order does what is told.
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चेन्नई  :ब्लॉकबस्टर फिल्म 'बाहुबली' के पार्ट 2
 ये जानकारी फिल्म में लीड भूमिका निभाने वाले अभिनेता प्रभास ने दी है।




पार्ट-2 को 'बाहुबली द कॉन्क्लूज़न' के नाम से रिलीज़ किया जाएगा।
पार्ट -2 में दिखाया जाएगा कि फिल्म का मुख्य किरदार शिवुडु (प्रभास) किस तरह अपने पिता की मौत का बदला लेता है।

पार्ट 2 का 40 फीसदी हिस्सा शूट किया जा चुका है। अब ज़्यादातर युद्ध के दृश्यों की शूटिंग बाकी है।
एस एस राजमौली के निर्देशन में बनी इस फिल्म में प्रभास, राना दग्गुबाती, तमन्नाह भाटिया और अनुष्का शेट्टी की मुख्य भूमिकाएं हैं।
बाहुबली के पार्ट 1 को 10 जुलाई को रिलीज़ किया गया था। तब से ये फिल्म 350 करोड़ रुपये से अधिका का कलेक्शन कर चुकी है





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एफसीआई के मजदूरों की तनख्वाह राष्ट्रपति से भी ज्यादा FCI Labour has more salary than President of India, Labour salary 4.5 Lakh Rs Per Month

एफसीआई के मजदूरों की तनख्वाह राष्ट्रपति से भी ज्यादा
FCI Labour has more salary than President of India, Labour salary 4.5 Lakh Rs Per Month







 दिल्‍ली, भारतीय खाद्य निगम(एफसीआई) के मजदूर की तनख्वाह साढ़े चार लाख रुपये प्रति महीने। सुनने में भले ही आश्चर्यजनक लगता हो लेकिन यह हकीकत है। यह चौंकाने वाली बात शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची तो वह भी हैरान हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफसीआई के मजदूरों जितना वेतन तो राष्ट्रपति तक को नहीं मिलता।

सुप्रीम कोर्ट को अंदाजा नहीं था कि अनाज के बोरे ढोने वाले की तनख्वाह महीने का साढ़े चार लाख रुपये होगी। मजदूरों पर यह मेहरबानी केंद्र सरकार की उस नीति के कारण हो रही है जिसके तहत एफसीआई ठेके पर बाहर से मजदूर को नहीं रख सकता। इस कारण एफसीआई को अपने मजदूर (कर्मचारी) को इतना वेतन देना पड़ रहा है। सरकार को एफसीआई में अनाज प्रबंधन के लिए 18000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं।

एफसीआई केमजदूरों का वेतन सुन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि इस तरह का दस्तूर वास्तव में एफसीआई की हत्या करने केसमान है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अब ऐसा नहीं चलेगा। अदालत ने कहा कि अनाज केसंग्रह के लिए सालाना करीब 18 हजार करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं।

पीठ ने कहा कि इसकेलिए सरकार जिम्मेदार है। पीठ ने यह भी कहा कि पर्याप्त मात्रा में अनाज भंडार है। लेकिन सरकार गरीब लोगों को मुफ्त में अनाज वितरित नहीं कर रही है। बड़े पैमाने पर हानि होने केबावजूद सरकार गंभीर नहीं है।
370 मजदूर जिनका मासिक वेतन चार लाख रुपये से अधिक

शीर्ष अदालत ने सरकार को 10 दिनों के भीतर यह बताने के लिए कहा है कि आम लोगों के हितों को ताक पर रखकर इस तरह की जा रही उदारता को कैसे रोका जाए। अदालत ने सरकार से यह भी पूछा है कि एफसीआई ने मजूदरों की मनमानी रोकने और घाटे से बचने केलिए ठेके पर मजदूर रखने केलिए जो आग्रह किया था, उस पर संबंधित अथॉरिटी ने क्या निर्णय लिया।

पीठ ने सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार से पूछा है कि पूर्व केंद्रीय खाद्य मंत्री शांता कुमार की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय कमेटी की सिफारिशों पर सरकार अमल करना चाहती है या नहीं। सॉलिसिटर जनरल को इस संबंध में सरकार की ओर से निर्देश लाने के लिए कहा गया है।

पीठ ने पाया कि रिपोर्ट के मुताबिक अगस्त 2014 में एफसीआई के 370 मजदूर ऐसे हैं, जिनका मासिक वेतन चार लाख रुपये से अधिक है। जबकि करीब 400 मजदूर ऐसे हैं जिनका वेतन दो से ढाई लाख रुपये के बीच है। पीठ ने कहा कि क्या एक मजदूर प्रति महीने साढ़े लाख रुपये कमा सकता है।

आखिर यह कैसे संभव है। इतना तो राष्ट्रपति का वेतन नहीं है। गौरतलब है राष्ट्रपति का वेतन डेढ़ लाख रुपये महीना है। यही कारण है कि सरकार को सालाना करीब 18 हजार करोड़ रुपये का भारी-भरकम बोझ उठाना पड़ रहा है। पीठ ने कहा कि हम इस तरह अनियमितता को कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते। पीठ ने कहा कि यह बेहद गंभीर बात है।

'अनाज खुले में पड़ा रहता है और बर्बाद हो जाता'
मामले की सुनवाई केदौरान अदालत में मौजूद सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार को पीठ ने इस मामले में मदद करने के लिए कहा है। पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि उच्च स्तरीय कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी है। इसकेअलावा बांबे हाईकोर्ट ने गत 20 नवंबर को सरकार को एक महीने में एफसीआई के आग्रह पर निर्णय लेने के लिए कहा था।

पीठ ने कहा कि आखिर सरकार क्या कर रही है। अगर आप अपने द्वारा गठित कमेटी की बात नहीं मानेंगे तो हमें इस मामले में उच्च स्तरीय कमेटी का गठन करना होगा। पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि एफसीआई पर लगातार आरोप लगते रहे हैं कि वह अनाज का सही तरीके से भंडार नहीं कर पा रहा है।

अनाज खुले में पड़ा रहता है और बर्बाद हो जाता है। अदालत ने एक बार यह भी कहा था कि अनाज को मुफ्त में गरीब लोगों में वितरित कर दिया जाए लेकिन सरकार ऐसा करने को तैयार नहीं है। पीठ ने केंद्र सरकार को 18 जनवरी तक जवाब दाखिल करने केलिए कहा है।





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इंडियन क्रूड बॉस्केट में भाव 30 डॉलर के नीचे, पेट्रोल में 4 रुपए कटौती की गुंजाइश... अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतें 11 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई हैं

इंडियन क्रूड बॉस्केट में भाव 30 डॉलर के नीचे, पेट्रोल में 4 रुपए कटौती की गुंजाइश... 
अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतें 11 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई हैं

सऊदी अरब और इरान के बीच तनातनी का असर कच्चे तेल की कीमतों पर देखा जा रहा है। तेल के जमा भंडार की कम खपत की वजह से कीमतों में कमी दर्ज हो रही है


नई दिल्ली। 
डियन क्रूड बॉस्केट का भाव 29.24 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है। इससे घरेलू मार्केट में पेट्रोल की कीमतों में बड़ी कटौती की उम्मीद बन गई है। 31 दिसंबर को तेल कंपनियों ने पेट्रोल के दाम 63 पैसे प्रति लीटर घटाए थे, तब इंडियन क्रूड बॉस्केट का भाव 35.95 डॉलर प्रति बैरल था। अब, जबकि भाव 30 डॉलर से नीचे हैं, ऐसे में 15 जनवरी को पेट्रोल कीमतों की समीक्षा में 4 रुपए प्रति लीटर कटौती की गुंजाइश है


केडिया कमोडिटी के हेड अजय केडिया का कहना है कि इंडियन क्रूड बॉस्केट का भाव 30 डॉलर से नीचे आ गया है। ऐसे में तेल कंपनियों के लिए पेट्रोल की कीमतों में 4 रुपए प्रति लीटर के कटौती की गुंजाइश है। जनवरी में क्रूड दिसंबर के लेवल से नीचे आ गया है। ऐसे में कटौती की संभावना ज्यादा है



अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतें 11 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई हैं

सऊदी अरब और इरान के बीच तनातनी का असर कच्चे तेल की कीमतों पर देखा जा रहा है। तेल के जमा भंडार की कम खपत की वजह से कीमतों में कमी दर्ज हो रही है



>नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतें 11 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई हैं। सऊदी अरब और इरान के बीच तनातनी की वजह से कच्चे तेल की कीमतें 35 डॉलर प्रति बैरेल पर पहुंच गई हैं। बुधवार को बेंचमार्क क्रूड ऑयल का वायदा भाव 35.07 डॉलर प्रति बैरल पर था जिसमें 1.35 डॉलर प्रति बैरल की गिरावट दर्ज की गई। इसके साथ ही तेल का भाव गिरकर 2004 के शुरुआती दिनों के निचले स्तर पर आ गया था

पिछले पांच सालों में प्रतिशत के आधार पर ये सबसे बड़ी गिरावट है। अमेरिका में तेल का वायदा भाव 88 सेंट्स गिरकर 35.09 डॉलर प्रति बैरल था जबकि मंगलवार को पहले ही 79 सेंट्स की गिरावट दर्ज की गयी थी।

बताया जा रहा है कि सऊदी अरब और इरान के बीच तनातनी की वजह से दोनों देश तेल का उत्पादन कम नहीं करने वाले हैं। इसके अलावा ये भी डर है कि चीन और भारत में आर्थिक विकास की रफ्तार कम होने से पहले से ही जमा तेल के भंडार की खपत नहीं हो पाएगी। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में और गिरावट दर्ज की जा सकती है



क्यों है पेट्रोल में 4 रुपए कटौती की गुंजाइश

- नवंबर 2015 में इंडियन क्रूड बॉस्केट का औसत भाव 42.05 डॉलर प्रति बैरल था। तब, पेट्रोल की दिल्ली में कीमत 61.06 रुपए प्रति लीटर थी। 
- दिसंबर 2015 में इंडियन क्रूड बॉस्केट का औसत भाव 35.95 डॉलर प्रति बैरल था। तब, पेट्रोल की दिल्ली में कीमत 59.35 रुपए प्रति लीटर थी। 
 7 जनवरी 2015 को इंडियन क्रूड बॉस्केट का भाव 29.24 डॉलर प्रति बैरल आ गया है। इस तरह पिछले दो महीने में पेट्रोल और क्रूड की कीमतों में गिरावट का रेश्यो 1.45 फीसदी से 1.65 फीसदी के बीच रहा।
- अजय केडिया का कहना है कि इस रेश्यो के आधार पर 15 जनवरी को तेल कंपनियों के पास पेट्रोल की कीमतों में 4 रुपए प्रति लीटर के कटौती की गुंजाइश है। 


एक्‍साइज न हो तो पेट्रोल करीब 10 रुपए सस्‍ता होगा
एक्‍साइज ड्यूटी न हो तो दिल्ली में पेट्रोल की कीमत करीब 49.05 रुपए प्रति लीटर और डीजल की 35.06 रुपए प्रति लीटर होगी। फिलहाल दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 59.35 रुपए प्रति लीटर है और डीजल की कीमत 45.04 रुपए प्रति लीटर है।






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शिया सपा नेता बोले बुक्कल नवाब, अयोध्या में बने भव्य राम मंदिर, 10 लाख रुपये दान करूंगा और भगवान राम के लिए सोने का मुकुट भी दान करूंगा

शिया सपा नेता बोले बुक्कल नवाब, अयोध्या में बने भव्य राम मंदिर, 10 लाख रुपये दान करूंगा और भगवान राम के लिए सोने का मुकुट भी दान करूंगा


समाजवादी पार्टी के नेता बुक्कल नवाब ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर बड़ा बयान दिया है। उनका कहना है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनना चाहिए।




बुक्कल नवाब का कहना है, जब मंदिर का निर्माण शुरू होगा तो मैं 10 लाख रुपये दान करूंगा और भगवान राम के लिए सोने का मुकुट भी दान करूंगा।

उन्होंने कहा, मुस्लिम हूं और भगवान राम का बहुत सम्मान करता हूं। अयोध्या में भव्य राम मंद‌िर बनना चाह‌िए। बता दें कि बुक्कल नवाब उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य हैं।

बुक्कल नवाब का ये बयान ऐसे समय आया जब उत्तर प्रदेश में मंदिर निर्माण को लेकर माहौल पहले से ही गर्म है।





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Monday, January 4, 2016

जूही चावला ने क्यों सोचा कि 'दिलवाले' ना ही देखी जाए तो ठीक है...

जूही चावला ने क्यों सोचा कि 'दिलवाले' ना ही देखी जाए तो ठीक है...


Last Updated: सोमवार जनवरी 4, 2016 06:45 PM IST


जूही चावला ने क्यों सोचा कि 'दिलवाले' ना ही देखी जाए तो ठीक है...






मुंबई: जूही चावला और शाहरुख खान की जोड़ी को एक समय में बड़े पर्दे पर काफी सराहना मिली थी। कोलकाता की आईपीएल टीम में भी ये दोनों साथ हैं, लेकिन इन सबके बावजूद जूही चावला ने शाहरुख की नई फिल्म 'दिलवाले' देखना जरूरी नहीं समझा। वजह पूछे जाने पर जूही ने कहा, 'मैंने फिल्म के बारे में कुछ बहुत अच्छी बातें नहीं सुनी। इसलिए मैंने सोचा कि इसे ना ही देखा जाए। अगर मैं नहीं भी देखती हूं तो यह कोई बड़ी बात तो नहीं है।’’

वैसे शाहरुख़ के साथ 'यस बॉस', 'राजू बन गया जेंटलमेन', 'डर' जैसी यादगार फिल्में देने वाली जूही का कहना है कि वह एक बार फिर किंग खान के साथ काम करने के लिए तैयार हैं। आखिरी बार 2005 में आई फिल्म ‘पहेली’ में ये दोनों एक साथ नजर आए थे। वहीं ‘दिलवाले’ के जरिये शाहरुख और काजोल करीब 5 साल बाद साथ नज़र आए हैं। यह पूछे जाने पर कि शाहरुख के साथ जूही फिर किस फिल्म में नज़र आएंगी, जवाब मिला - 'अगली बार जब आप शाहरुख से मिलें तो उन्हीं से आप यह सवाल पूछ लें। अगर मेरा बस चले तो मैं इसी साल उनके साथ काम करूंगी। मुझे उनके साथ फिर से काम करना अच्छा लगेगा।'

जूही ने आमिर खान के साथ काम करने की भी इच्छा जताई, जिनके साथ उन्होंने अपनी पहली फिल्म 'क़यामत से क़यामत तक' की थी। उन्होंने कहा आमिर और शाहरुख़ मेरे पसंदीदा को-स्टार हैं। मैंने अपने करियर में उनके साथ तरक्की की है। मैं आमिर के साथ काम करना चाहूंगी।' इन सबके बीच जूही अपने एक और मित्र सलमान ख़ान का ज़िक्र करना नहीं भूलीं, जिन्होंने 'दीवाना मस्ताना' में एक छोटे से सीन के अलावा कभी भी स्क्रीन शेयर नहीं किया है। जूही ने कहा कि उन्हें सलमान के साथ काम करने में मज़ा आएगा। जूही अपनी नई फिल्म 'चॉक एंड डस्टर' में शबाना आज़मी और दिव्या दत्ता के साथ दिखाई देंगी। फिल्म 15 जनवरी को रिलीज होगी।




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Monday, December 21, 2015

जन गण मन' का सच

जन गण मन' का सच


Infromartion Sabhar : panchjanya.com website


अक्सर यह चर्चा उठती है कि "जन-गण-मन' जार्ज पंचम की स्तुति में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने रचा था। बाद में ब्रिटिश दबाव पर भारत सरकार ने वन्देमातरम् को नकार "जन-गण-मन' को ही अपनाया। आखिर सच क्या है? कुछ समय पूर्व पाञ्चजन्य में श्री जंगबहादुर का इस संबंध में पत्र छपा था, जिस पर हमें देशभर से प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई थीं। कोलकाता से श्री असीम कुमार मित्र ने इस विषय में गहन अनुसंधान के बाद लिखा है कि "जन-गण-मन' को जार्ज पंचम की स्तुति में रचा गीत कहना कम्युनिस्टों द्वारा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर को बदनाम करने की एक चाल थी, जिसने पूरे देश में एक गलतफहमी पैदा की। प्रस्तुत है, "जन-गण-मन' के संबंध में यह शोधपूर्ण आलेख-

दअसीम कुमार मित्र

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित जन गण मन अधिनायक गीत का मूल अविकल पाठ इस प्रकार है। भारत सरकार ने राष्ट्रगीत के रूप में इसका प्रारम्भिक अनुच्छेद ही स्वीकार किया है।

जन गण मन-अधिनायक

जनगणमन-अधिनायक जय हे भारत भाग्यविधाता।

पंजाब सिंधु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग

विंध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छलजलधितरंग

तब शुभ नामे जागे, तब शुभ आशिस मंागे,

गाहे तब जय गाथा।

जनगणमंगलदायक जय हे भारत भाग्यविधाता।

जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।

अहरह तब आह्वान प्रचारित, शुनि तव उदार वाणी

हिंदु बौद्ध सिख जैन पारसिक मुसलमान ख्रिस्टानी

पूरब-पश्चिम आसे तब सिंहासन-पाशे,

प्रेमहार हय गाथा।

जनगण-ऐक्यविधायक जय हे भारत भाग्यविधाता।

जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय हे।।

पतन-अभ्युदय बंधुर पन्था, युगयुगधावित यात्री,

हे चिरसारथि, तब रथचक्रे मुखरित पथ दिनरात्रि।

दारुण-विपल्व माझे तब शंखध्वनि बाजे,

संकटदु:खत्राता।

जनगणपथ परिचायक जय हे भारत भाग्यविधाता।

जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे।।

घोर तिमिरघन निविड़ निशीथे पीड़ित मूर्छित देशे

जाग्रत छिल तब अविचल मंगल नतनयने अनिमेषे।

दु:स्वप्ने आतंके रक्षा करिले अंके,

स्नेहमयी तुमि माता।

जनगणदु:खत्रायक जय हे भारत भाग्यविधाता।

जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे।।

रात्रि प्रभातिल, उदिल रविच्छवि पूर्व-उदयगिरिभाले,

गाहे विहंगम, पुण्य समीरण नवजीवनरस ढाले।

तव करुणारुण-रागे निद्रित भारत जागे

तव चरणे नत माथा।

जय जय जय हे, जय राजेश्वर, भारत भाग्यविधाता।

जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे।। हमारे देश के राष्ट्रगान को लेकर आज भी अनेक भ्रम बने हुए हैं। दु:ख की बात तो यह है कि इस देश के पढ़े-लिखे लोग भी अनायास ही इन गलतफहमियों का शिकार बन जाते हैं। उनमें असलियत पता लगाने का धैर्य या मानसिकता दिखाई नहीं देती। शायद यही कारण है कि "पाञ्चजन्य' ने भी 16 फरवरी, 2003 के अंक में "किस दृष्टि से यह "गान' राष्ट्रीय है?' शीर्षक पत्र प्रकाशित किया। पत्र लेखक मुम्बई के श्री जंग बहादुर जब यह लिखते हैं, "यह गान ब्रिटिश सम्राट के लिए है और आज भी हम और हमारी सेनाएं ब्रिटिश सम्राट और (अब) सम्राज्ञी के लिए इसे गाते आ रहे हैं' तब हमें न केवल दु:ख होता है बल्कि क्रोध से मन तिलमिला उठता है।

भावावेग की दुनिया से हटकर वास्तविकता के धरातल पर उतरकर इस विषय को देखने की कोशिश करें तो हमें असलियत का पता चल सकता है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर एक कवि थे, राजनीतिक आंदोलनकारी नहीं। फिर भी जलियांवाला बाग में ब्रिटिश सैनिकों ने जब हमारे देशवासियों को गोलियों से भून डाला था और पूरे देश में कुछ इस तरह से आतंक छा गया था कि ब्रिटिश राज की इस करतूत के विरोध में प्रतिवाद करने तक का साहस किसी राजनेता के अन्दर दिखाई नहीं दिया था, तब रवीन्द्रनाथ आगे आए। उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गयी उपाधि "नाइटहुड' त्याग देने की घोषणा की। मात्र इतने से वे नहीं रुके। घटना की निन्दा करने के लिए उन्होंने कोलकाता के टाउन हाल में आमसभा बुलाई। सभा में इतनी ज्यादा संख्या में लोग आए कि सभागार में सबको जगह देना संभव नहीं हुआ। रवीन्द्रनाथ सभा में आए और सबको लेकर मानमेन्ट मैदान (अब इसका नाम है शहीद मीनार मैदान) चले आए और खुद "वन्देमातरम्' गीत गाकर सभा की शुरुआत की थी।बचपन से ही रवीन्द्रनाथ स्वदेशी वातावरण में पले तथा बड़े हुए थे। उन दिनों बंगाल में हर वर्ष नवगोपाल मित्र द्वारा आयोजित होने वाले "हिन्दू मेले' में रवीन्द्रनाथ नियमित रूप से भाग लेते थे। स्वदेशी आन्दोलन की शुरुआत भी बंगाल में ही हुई थी, जिसमें रवीन्द्रनाथ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। सन् 1905 में जब ब्रिटिश राज ने बंगाल विभाजन का षड्यंत्र रचा तो रवीन्द्रनाथ ने रक्षाबन्धन को लोगों के सामने प्रस्तुत किया तथा इसे लोगों को जोड़ने वाले आन्दोलन के रूप में खड़ा किया।

रवीन्द्रनाथ के मन में हमारी राष्ट्रीयता के बारे में कोई भ्रम नहीं था। उन्होंने आत्मपरिचय लेख में लिखा था- "हिन्दुस्थान में बसने वाले सभी व्यक्ति हिन्दू हैं। मेरा धर्म चाहे कुछ भी हो, मेरी राष्ट्रीयता हिन्दू ही है। इसलिए परिचय देते समय मैं यह कहता हूं कि मैं हिन्दू ब्राह्म हूं, गोपाल हिन्दू वैष्णव है, सुधीर हिन्दू-शैव है, रहीम हिन्दू-इस्लाम और जान हिन्दू-ईसाई है....।'

राष्ट्रवादी रवीन्द्रनाथ को कम्युनिस्टों ने 1940 के दशक से ही बदनाम करना शुरू कर दिया था। रवीन्द्रनाथ ने ब्रिटिश सम्राट पंचम जार्ज की वन्दना में "जन-गण-मन....' गीत लिखा था, यह अफवाह भी शुरू में कम्युनिस्टों ने फैलायी थी। अब जब प. बंगाल में 25 सालों से कम्युनिस्टों की सरकार चल रही है, तब पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु और वर्तमान मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य आये दिन इस झूठे प्रचार के लिए आम जनता से क्षमा याचना कर रहे हैं। मुझे लगता है, पाञ्चजन्य के पत्र लेखक श्री जंग बहादुर को इस तरह की कोई पुरानी पुस्तक हाथ लग गयी होगी और बिना सोचे-समझे उन्होंने यह पत्र लिख दिया।

असल में "जन-गण-मन....' गान सन् 1911 के 27 दिसम्बर को कलकत्ता में शुरू होने वाले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन के उपलक्ष्य में लिखा गया था और इस अधिवेशन के दूसरे दिन यह "गान' गाया भी गया था। परन्तु अफवाह यह फैलायी गयी थी कि दिसम्बर, 1911 में किंग जार्ज पंचम के भारत आगमन के उपलक्ष्य में दिल्ली दरबार में गाए जाने के लिए रवीन्द्रनाथ ने यह गीत लिखा था। अगर यह सच है तो यह रपट क्या है, जिसमें लिखा गया गया है-

"जो भी इस मामले में रुचि रखते हैं, उन्हें 1911 में भारत के शाही दौरे के ऐतिहासिक दस्तावेजों के सन्दर्भ जरूर देखने चाहिए। 1914 में भारत के वायसराय के आदेश से लंदन में जान मुरे द्वारा प्रकाशित इन दस्तावेजों से स्पष्ट हो जाता है कि शाही दौरे के समय दिसम्बर, 1911 में आयोजित दिल्ली दरबार में यह गीत कभी नहीं गाया गया था।' (इंडियाज नेशनल एंथम-प्रबोध चन्द्र सेन, पृ. 43)

श्री प्रबोध चन्द्र सेन द्वारा लिखी गयी इंडियाज नेशनल एंथम (भारत का राष्ट्र गान) पुस्तक के उन पृष्ठ 43 पर रवीन्द्रनाथ के दो पत्रों का भी उल्लेख है जो कवि ने बहुत ही दु:खी होकर लिखे थे-

"एक पत्र द्वारा इस अफवाह के संदर्भ में ध्यान आकर्षित किए जाने के बाद, उसका उत्तर देते हुए कवि ने लिखा, "इस गीत में मैंने सनातन सारथि की बात की है, जो मनुष्य की नियति का संचालक है, जिसके साथ-साथ राष्ट्रों का उत्थान और पतन भी जुड़ा हुआ है। युगों-युगों से मनुष्य की नियति के विधान का संचालक जार्ज पंचम, जार्ज षष्टम् या और कोई जार्ज नहीं हो सकता।'

1939 में लिखे एक अन्य पत्र में वह लिखते हैं, "यह मेरे अपने लिए अपमान की बात होगी अगर मैं ऐसे लोगों की बातों का जवाब दूं जो समझते हैं कि मैं जार्ज चतुर्थ या पंचम को अनंतकाल से मानव को तीर्थाटन की राह ले जाने वाले दैवीय रथ के सारथि की तरह पूजने जैसी मूर्खता कर सकता हूं।'

उस जमाने में कोलकाता से "दैनिक बसुमती' नामक एक दैनिक समाचार पत्र प्रकाशित होता था, जिसके संपादक थे हेमेन्द्र प्रसाद घोष। बंगाल के पत्रकार उन्हें जीवित वि·श्वकोष के रूप में जानते थे। जब हेमेन्द्र बाबू को इस अफवाह के बारे में बहुत दुखी हुए और खुद रवीन्द्रनाथ के पास गए और पूछा, "आपके बारे में ये सब क्या सुन रहा हूं?' रवीन्द्रनाथ ने उस जमाने के सबसे नामी संपादक से कहा, "हेमेन्द्र बाबू आप तो मुझे जानते हैं, चाहे कुछ भी हो जाए, मैं कभी किसी राजशक्ति की "भारत भाग्यविधाता' के रूप में कल्पना भी नहीं सकता।' वास्तव में उस समय अंग्रेज सरकार के दफ्तर में काम करने वाले एक प्रभावशाली व्यक्ति ने रवीन्द्रनाथ से अनुरोध किया था कि ब्रिटिश सम्राट भारत में आ रहे हैं तो उनकी सराहना करते हुए एक कविता लिखें। इसकी प्रतिक्रिया में रवीन्द्रनाथ ने कहा था, "सरकार में एक प्रभावी पद पर आसीन एक मित्र ने मुझसे बार-बार आग्रह किया कि मैं राजा की प्रशंसा में एक गीत की रचना करूं। उसके आग्रह ने मुझे आश्चर्य-चकित कर दिया और उस आश्चर्य में मेरे भीतर का आक्रोश भी मिल गया।' उसी हिंसक प्रतिक्रिया के दबाव में मैंने जन-गण-मन अधिनायक गीत में कालबाह्र सनातन सारथि भाग्यविधाता की अर्चना की है, जो युगों-युगों से राष्ट्रों को उत्थान-पतन की राह पर ले जाता है। यह उस भाग्यविधाता की अर्चना है, जो हमारे अन्तर्मन में वास करता है। किसी भी स्थिति में वह महान सनातन सारथि जार्ज पंचम् या जार्ज षष्टम या कोई और जार्ज नहीं हो सकता। हालांकि मेरे उस स्वामिभक्त मित्र को अहसास हो गया कि राजा के प्रति उसकी स्वामिभक्ति चाहे कितनी भी अडिग क्यों न हो, वह उस स्तर तक नहीं पहुंच सकता।' (इंडियाज नेशनल एंथम, प्रबोध चन्द्र सेन पृष्ठ-7)

12, दिसम्बर, 1911 को ब्रिटिश सम्राट के भारत पधारने के दो सप्ताह पहले ही बंगाल का विभाजन रद्द कर दिया गया था। इससे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बेहद खुश हुई थी। उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे सुरेन्द्रनाथ बनर्जी। उन्होंने एक दूत भेजकर गुरुदेव रवीन्द्रनाथ को राजा के सम्मान में एक गीत लिखने के लिए आग्रह किया था। रवीन्द्रनाथ यह सुनते ही बहुत क्रोधित हुए। बाद में उन्होंने कहा था कि यह "जन-गण-मन...' एक क्रोधित कवि के क्रोध की अभिव्यक्ति है। ब्रिटिश सम्राट की प्रशंसा में कविता लिखे जाने को रवीन्द्रनाथ ने निरी मूर्खता बताया था। कोलकाता कांग्रेस अधिवेशन के दूसरे दिन यानी 27 दिसम्बर, 1911 का अधिवेशन जन-गण-मन... गान से ही शुरू हुआ था। इसके बाद एक हिन्दी गीत गाया गया था जो कि ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंजम के भारत आगमन के उपलक्ष्य में विशेष रूप से लिखवाया गया था। कांग्रेस के 28वें अधिवेशन की रपट में लिखा गया है, "अधिवेशन की कार्यवाही बाबू रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित देशभक्ति गीत के साथ शुरू हुई। (इसके बाद मित्रों द्वारा भेजे गए संदेश पढ़े गए और राजा के प्रति स्वामिभक्ति प्रदर्शित करने वाले प्रस्ताव पारित किए गए।) उसके बाद इस अवसर पर राजा के स्वागत के लिए विशेष रूप से रचित गीत गाया गया। (इंडियाज नेशनल एंथम, प्रबोध चन्द्र सेन, पृष्ठ-9)'

इस रपट से भी यह स्पष्ट है कि रवीन्द्रनाथ का जन-गण-मन... एक देशात्मबोधक गीत ही था न कि वह किसी व्यक्ति की वन्दना में लिखा गया था। फिर यह अफवाह उड़ी कैसे? इसके लिए ब्रिटिश सम्राट तथा शासन के समर्थक तीन प्रचार माध्यमों की रपटें उत्तरदायी हैं- (1)"द इंग्लिश मैन' (28 दिसम्बर, 1911) (2) "द स्टेट्समैन (28 दिसम्बर, 1911) तथा (3) रायटर-इन तीनों ने यह लिख दिया था कि कांग्रेस अधिवेशन में ब्रिटिश सम्राट की स्तुति में गाया गया गीत रवीन्द्रनाथ का था।' जबकि ऐसा कोई गीत रवीन्द्र नाथ द्वारा लिखा ही नहीं गया था। इस झूठे प्रचार के कारण आज भी कुछ लोग इस विषय को लेकर अफवाह फैलाने का साहस करते हैं।




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जन गण मन में अधिनायक कौन?

जन गण मन में अधिनायक कौन?



राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह चाहते हैं कि हमारे राष्ट्रीय गान में कुछ शब्दों को बदल दिया जाए. बीजेपी नेता रहे कल्याण सिंह के मुताबिक राष्ट्रगान में इस्तेमाल हुए अधिनायक शब्द ब्रिटिश राज की याद दिलाने वाला है और इसकी जगह मंगल शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. कल्याण सिंह के इस बयान के बाद बहस खड़ी हो गई है.
ऐसा कोई भारतीय नहीं है जो गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के लिखे गीत के इन शब्दों और उन्हीं की दी गई धुन से ना गुजरा हो. ये अब हमारा राष्ट्रगान है और हमारी राष्ट्रीय धुन भी है. राष्ट्रगान के बोल पिछले 65 साल से हमारी आजादी और संप्रभुता पर गर्व करने का मौका देते रहे हैं.
1911 में रवींद्रनाथ टैगोर की कलम से निकले इस गीत को 24 जनवरी साल 1950 को भारत का राष्ट्रगान घोषित किया गया था. तब से ही ये हमारी राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक बना हुआ है लेकिन अब 65 साल बाद राजस्थान के गर्वनर और इससे पहले बीजेपी के नेता रहे कल्याण सिंह को राष्ट्रगान में इस्तेमाल हुए इस अधिनायक शब्द पर ऐतराज हो रहा है.
कल्याण सिंह राष्ट्रगान की पहली पंक्ति में आने वाले अधिनायक शब्द की जगह मंगल शब्द का इस्तेमाल करने की सिफारिश कर रहे हैं ये कहते हुए कि अधिनायक शब्द उन्हें ब्रिटिश राज की याद दिलाता है जिसे अब मिटा देना चाहिए. उनके इस तर्क का समर्थन बीजेपी के नेता भी कर रहे हैं.
बीजेपी साथ खड़ी है लेकिन वामदल और कांग्रेस ने कल्याण सिंह के इस बयान को ना सिर्फ सिरे से खारिज कर दिया है बल्कि ये भी पूछ रहे हैं कि 65 साल बाद क्यों?
इस बहस में राज्यपाल भी कूद पड़े हैं. राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह को त्रिपुरा के गवर्नर तथागत राय ने मशविरा दिया है कि बदलाव की बात ठीक नहीं है.
कल्याणजी, प्रणाम| 68 साल हुए भारत को आजाद हुए तो अब हमारे अधिनायक अंग्रेज क्यों होंगे ? मैं राष्ट्रगान में किसी भी परिवर्तन को उचित नहीं समझता हूं.
कल्याण सिंह के ताजा बयान ने एक बार फिर उस आरोप को भी हवा दे दी है जिसके मुताबिक बीजेपी और आरएसएस देश के इतिहास में बदलाव की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन देश की जनता पूछ रही है कि क्या वाकई राष्ट्रगान जैसे प्रतीकों को भी अब राजनीति में घसीटा जाएगा?
अधिनायक कौन है?
राष्ट्रगान में इस्तेमाल हुए अधिनायक शब्द पर आपत्ति दरअसल नई नहीं है. ये विवाद तो तब से चला आ रहा है जब ये तय हुआ था कि रवींद्रनाथ टैगोर के लिए जन गण मन को भारत अपना राष्ट्रगान मानेगा. उस दौर का इतिहास में ही ऐसे बीज पड़ गए थे जो आज एक बार फिर विवाद की वजह बन गए हैं और आज भी यही सवाल उठा है अधिनायक कौन है?
15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ था लेकिन तब दुनिया के दूसरे आजाद मुल्कों की तरह भारत के पास अपना नेशनल एंथम यानी राष्ट्रगान नहीं था. तब जिस गीत ने आजादी के जश्न को मुकम्मल किया था वो था वंदे मातरम. 14 और 15 जून की आधी रात उसी वंदेमातरम के साथ पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आजादी का ऐलान किया था.
ऐसे में भारत का संविधान रचने और आजाद भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों को गढ़ने चुनने की जिम्मेदारी संविधान सभा पर छोड़ दी गई थी. ये संविधान सभा अगले तीन साल तक बैठकें और बहसें करती रही. तब तक भारत दो बार आजादी का जश्न भी मना चुका था लेकिन आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि संविधान सभा के सदस्यों की लगातार मांग के बावजूद राष्ट्रगान के मुद्दे पर कभी कोई बहस या चर्चा नहीं हुई. तब तक जब तक 24 जनवरी 1950 की तारीख ने दस्तक नहीं दे दी.
26 जनवरी 1950 को भारत गणतंत्र बनने जा रहा था इससे ठीक दो दिन पहले संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद ने सीधे एक बयान दिया और जन गण मन भारत का राष्ट्रगान बन गया.
24 जनवरी 1950 को संविधान सभा की कार्यवाही के मुताबिक डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा. एक मुद्दा काफी समय से चर्चा के लिए लंबित है जो कि हमारे राष्ट्रगान से जुड़ा है. मुझे ऐसा महसूस हुआ कि सदन में प्रस्ताव पेश करके किसी औपचारिक फैसले से बेहतर है कि राष्ट्रगान के बारे में एक बयान दे दूं. इसलिए मैं बयान देता हूं कि उस कंपोजीशन की धुन, संगीत और शब्द जिसे जन गण मन के नाम से जाना जाता है वही भारत का राष्ट्रगान है. इसमें अगर सरकार चाहे तो मौजूदा हालात के मुताबिक शब्दों को बदल सकती है.
इसके बाद राष्ट्रगान के शुरुआती हिस्से को ना सिर्फ राष्ट्रगान मान लिया गया बल्कि संविधान सभा की आखिरी बैठक 26 नवंबर 1949 को पूर्णिमा बनर्जी की आवाज में पहली बार राष्ट्रगान के तौर पर गाए गए जन गण मन गीत से खत्म हुई थी. लेकिन उस वक्त जो बहस संविधान सभा में नहीं हुई वही बहस आज फिर से उठ खड़ी हुई है.
जन गण मन को लेकर विवाद की जड़ें हमें साल 1911 में ले जाती हैं. उस दौर में भारत गुलाम था और अंग्रेजी हुकूमत ने अपने नए बादशाह जॉर्ज पंचम की लंदन में ताजपोशी की थी.
गुलाम भारत अपने हुक्मरानों के जश्न से पीछे कैसे रह सकता था. जॉर्ज पंचम ने भारत आने का कार्यक्रम बनाया. मुंबई में जॉर्ज पंचम के लिए भव्य गेट वे ऑफ इंडिया बनाया गया जहां से उन्हें भारत में कदम रखना था और भारत की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली लाने का अहम ऐलान करना था. इसके लिए दिल्ली में सजाया गया था दिल्ली दरबार – देश भर के राजा महाराजा ब्रिटेन के हुक्मरान जॉर्ज पंचम के लिए पलकें बिछाए बैठे थे.
ये साल 1911 का जुलाई महीना था और तब ही कोलकाता में जो तब कलकत्ता हुआ करता था कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था. अधिवेशन के दूसरे दिन यानी 27 दिसंबर 1911 को जॉर्ज पंचम के भारत आने की खुशी में कार्यक्रम होने थे वो भी जॉर्ज पंचम की गैरमौजूदगी में. इसी कार्यक्रम में जो कुछ हुआ उसकी वजह से जन गण मन को लेकर एक विवाद ने भी जन्म लिया.
1905 में बंगाल विभाजन के अंग्रेजों के विरोध में देशभक्ति के गीत रचने वाले रवींद्रनाथ टैगोर तब राजनीति से बाहर निकल कर साहित्य साधना में डूब चुके थे. कांग्रेस ने उनसे जॉर्ज पंचम का स्वागत गीत लिखने का अनुरोध किया था और 27 जुलाई 1911 को रवींद्रनाथ टैगोर का लिखा जन गण मन गीत कांग्रेस के अधिवेशन में गाया गया.
इस गीत की पहली पंक्ति में अधिनायक शब्द को तब के ब्रिटिश मीडिया ने जॉर्ज पंचम की प्रशंसा माना .
स्टेट्स मैन ने 28 जुलाई 1911 को लिखा
बंगाली कवि रवींद्रनाथ टैगौर ने खासतौर पर राजा जॉर्ज पंचम की प्रशंसा में अपनी धुन पर लिखा अपना ही गीत गाया.
इंग्लिशमैन ने भी 28 जुलाई को रिपोर्ट किया
कार्यवाही की शुरुआत रवींद्रनाथ टैगोर के गीत से हुई जो खासतौर पर उन्होंने राजा जॉर्ज पंचम के सम्मान में लिखा है.
रवींद्रनाथ टैगोर के गीत को लेकर ब्रिटिश मीडिया की इस रिपोर्टिंग ने ना सिर्फ जन गण मन को ब्रिटिश हुकूमत की प्रशंसा के विवाद में ला दिया बल्कि रवींद्रनाथ टैगोर की देशभक्ति पर भी सवाल उठाए गए. लेकिन क्या ये पूरा सच था?
28 जुलाई 1911 को रवींद्रनाथ टैगोर के बारे में भारत के अखबार क्या लिख रहे थे? 
अमृत बाजार पत्रिका ने लिखा
कांग्रेस का सेशन बंगाली भाषा में भगवान की स्तुति में लिखे गीत से हुई. इसके बाद राजा जॉर्ज पंचम के प्रति वफादारी का प्रस्ताव पास हुआ और उसके बाद किंग जॉर्ज पंचम के स्वागत में भी एक गीत हुआ.

अमृत बाजार पत्रिका, 28 जुलाई 1911
तो क्या साल 1911 में किंग जॉर्ज पंचम के स्वागत में जो गीत गाया गया था वो रवींद्रनाथ टैगोर ने नहीं लिखा था?
इतिहास के मुताबिक 27 जुलाई 1911 को एक नहीं तीन गीत गाए गए थे. शुरुआत में जन गण मन और फिर राजभुजादत्त चौधुरी का लिखा गीत ‘बादशाह हमारा’ गाया गया. कार्यक्रम के अंत में कवियत्री सरलादेवी ने भी एक गीत गाया था. तो क्या ब्रिटिश मीडिया ने ‘बादशाह हमारा’ गीत जो कि जॉर्ज पंचम की प्रशंसा में लिखा गया था उसे ही रवींद्रनाथ का गीत मान लिया या फिर वो जन गण मन के बारे में लिख रहे थे?
यही भ्रम विवाद की वजह बन गया. टैगोर के समर्थक इसे झूठ बताते रहे हैं. टैगोर की जीवनी रबींद्रजीबनी के मुताबिक टैगोर ने कांग्रेस अधिवेशन से पहले अपने मित्र पुलिन बिहारी मुखर्जी को एक खत लिखा था.
महामहिम की सेवा में लगे एक महान शख्स ने जो कि मेरे भी मित्र हैं अनुरोध किया है कि मैं राजा के स्वागत में गीत लिखूं. इस पेशकश ने मुझे चौंका दिया है. इसने मेरे हृदय को पीड़ा से भर दिया है. इस मानसिक आघात में मैंने देश की आजादी के लिए गीत लिखा है.
रवींद्र नाथ टैगोर ने इस बारे में कभी बड़ी सफाई नहीं दी. भारत के आजाद होने से पहले साल 1946 में उनका निधन हो गया. लेकिन उनके समर्थक उनके साहित्य से आज भी जन गण मन के समर्थन में तर्क निकाल लाते हैं.
19 मार्च 1939 को फिर लिखा
अगर मैं उन लोगों को जवाब दूंगा जो मुझे जॉर्ज चतुर्थ या पंचम की प्रशंसा में गीत लिखने की भयावह मूर्खता के लायक समझते हैं तो मैं अपना ही अपमान करूंगा.
(रवींद्र नाथ टैगोर , पूर्वासा में)
लेकिन राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग रवींद्रनाथ टैगोर के लिखे जन गण मन गीत के शब्दों को लेकर वार करते रहे हैं. राष्ट्रगान की पहली पंक्ति के अधिनायक शब्द को भी वो राजा जॉर्ज पंचम के लिए इस्तेमाल किया हुआ ही मानते हैं. इससे पहले भी राष्ट्रगान से सिंध शब्द को हटाकर कश्मीर शब्द को लाने की मांग उठी थी क्योंकि सिंध अब पाकिस्तान का हिस्सा है.

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Sunday, December 20, 2015

She left her MBA Degree Behind to Change the Lives of 400 Girls in Delhi Slums with Art & Colour

She left her MBA Degree Behind to Change the Lives of 400 Girls in Delhi Slums with Art & Colours


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A BIG SALUTE TO HER FROM OUR BLOG FOR A GOOD SOCIAL WORK
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Sonal is the founder of Protsahan, a social enterprise that uses creative education and art innovation to empower street children and young adolescent girls.




It all started when the 24-year-old Sonal was shooting a film for a corporate. She came across a pregnant woman who had six daughters and was expecting her seventh child. The young lady was sitting with one of her daughters when Sonal approached her with an apple. Seeing this, the mother told her that the little girl would not be able to recognize it as a fruit, simply because she had never seen one. As the conversation continued, Sonal heard this woman utter words that would change the trajectory of her own life.
The woman was living in poverty and obviously struggling to take care of her children. In a very matter-of-fact manner, she told Sonal, that if she had a daughter again she was quite prepared to strangle the child. So unfortunate was their condition that she was already planning on sending one of her daughters, 8-year-old Julie, to a brothel to bring in money that would in turn feed the rest of the family. Sonal says she froze on hearing these words. It took her just about an hour to make up her mind that she wanted to change the life of girls like Julie. And within three weeks, Protsahan started as a one room creative arts and design school in a dark slum in Delhi





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A VILLAGE IN BIHAR THAT HARNESSED THE SUN POWER / SOLAR ENERGY VILLAGE DHARNAI, JAHANABAD IN BIHAR / EFFORT BY GREENPEACE

A VILLAGE IN BIHAR THAT HARNESSED 

THE SUN POWER / SOLAR ENERGY 

VILLAGE DHARNAI, JAHANABAD IN 

BIHAR / EFFORT BY GREENPEACE



While the country is reeling under a severe power crisis, with the state unable to provide uninterrupted electricity supply even to the national capital, a small village in Bihar has tapped solar power to light up



Thirty-year-old Suresh Manjhi of Mahadalit tola in Dharnai will not have to walk five kilometres to and from the nearest Makhdumpur town every day to charge his mobile phone anymore. His world will not be engulfed in darkness once the sun goes down and neither will he have to depend on kerosene-fuelled earthen lamps as the only source of light once the darkness settles in.
Today, he can light up his home, charge his phone and have a bright street light glowing outside. Why? Because after 30 years of darkness, the lights are on in Dharnai! Located on National Highway 83, Dharnai revenue village, in Makhdumpur block of Jehanabad district in Bihar, declared itself energy-independent on July 20, this year, with the launch of Greenpeace India’s solar-powered smart micro-grid. The electrification project has made the lanes of this non-descript village the hub of community interaction after the sun goes down. Today, this village is the talk of the State. It is the first village in India where all aspects of life are powered by solar energy.
It is unbelievable that even 67 years after independence, a village so close to the State capital, Patna, and a world pilgrimage city, Gaya, was left in complete darkness — until, Dharnai broke free of the cliché and declared itself energy-independent by switching on the sun!
For over 30 years, high-tension electric wires have passed by this village without lighting up a single home. This incredible reality of Dharnai had impacted the dreams and hopes of Dharnai’s youth, who grew up in an era of darkness, often leading to despair. “While India was growing leaps and bounds, we were stuck here for the last 30 years, trying everything in the book to get electricity. We were forced to struggle with kerosene lamps and expensive diesel generators”, said 40-year-old entrepreneur Kamal Kishore who is a resident of the village.
But, today, the dark days are gone. Built within three months and on a test-run since March, the 100 kilowatt micro-grid, launched by Greenpeace with the help of NGOs, BASIX and Centre for Environment and Energy Development, is powering 60 street lights and serving the energy requirements of 450 homes which have 2,400 residents, 50 commercial establishments, two schools, a training centre and a healthcare facility. The system works even after dark and on cloudy days because of the battery bank that stores energy. “It does not feel like we are living in darkness. Today, children are studying well and women are able to cook late in the evening. Villagers are getting many benefits from this venture, including the commercial establishments”, 65-year-old farmer Ashok Kumar Singh, another resident, said.
As I walked through the muddy lanes deep into the village, I saw more happy faces with stories waiting to be shared. There were faces of optimism, of renewed hopes, and of empowerment. Gupendra Das shared his optimism as we waited at the Barabar Halt railway station. “Today, for the first time in ages we are seeing power supply. Now our children can study after dark. I hope with the light, the sun god will bring enlightenment to our homes too.”
Dharnai is a unique example of a community-driven electricity project. For the first time in India, an entire village has been electrified through 100 per cent renewable means, along with the involvement of the village community. The micro-grid has been set up with permissions from the gram sabha, the panchayat and the people of the village. The community has been part of the awareness drive as well as discussions about tariff and the working of the micro-grid. “The tariffs were, in fact, decided by the community itself after mutual understanding and discussions. The community is also part of the village electrification committees that will handle the day-to-day running of the micro-grid”, said Greenpeace coordinator Nagesh Anand.
For just Rs.75 a month, villagers like Suresh Manjhi and Gupendra Das can now light up their homes, charge their phones and have street light glowing outside. These, at such a price, were a distant dream for them even three months back when they either had to depend on kerosene lamps or diesel generators that were burning holes in their pockets and lungs.
The story of the micro-grid project is inspiring. Dharnai’s experience illustrates how, in a country like India, energy access can be achieved without compromising the environment with coal pollution. “The micro-grid intends to be the answer to the intense policy and vision paralysis that India’s energy sector faces today. The towns and villages of Bihar have been deprived of energy for decades now and we feel this is where the micro-grid can be bridge to empowerment. We urge the Bihar Government to follow and replicate this model”, said Naveen Mishra of CEED
Thirty years ago, due to various reasons, Dharnai lost its electricity infrastructure. Since then, the villagers have suffered due to lack of electricity and have been waiting to get electricity back to the village. Kolesar Ravidas of Jhitkoria tola lamented the poor condition of the village and continued political apathy in spite of changes in Government. “The political parties come to our village before the polls and promise empty rhetoric, raising our hopes. But once the elections are over, forget the power supply; the faces of our representatives disappear.” His anger is towards the current Chief Minister, Mr Jitan Ram Manjhi, who hails from Makhdumpur block too. “He is one of our own. When he visited Dharnai after becoming the Chief Minister we pleaded with him to at least light up the streets. But it seems all our cries fell on deaf ear”.
Sunil Kumar, the chairman of the village cooperative society, shared that successive State Governments turned a blind eye towards Dharnai. “We have paid the security deposit and completed the paper-work for reinstalling electricity 10 years back. But, since then we’re running from pillar to post to catch hold of the authorities.”
Bihar has been struggling with energy access for decades. The State faces chronic electricity supply shortages, resulting from inadequate investments in generation and distribution capacity. Acute poverty, paired with villages’ geographic concentration in remote, rural areas, have left much of the population in Bihar without access to electricity. In a nutshell, 82 per cent of the State lacks electricity. That has now changed in Dharnai. “The best part is there are no power-cuts in Dharnai”, said Santan Kumar, a local, who works as an electrician in this project. “Even in Patna, you are never sure if the lights will be on when you are studying or cooking at night. But our electric supply system is dependable, reliable and it is managed by us”, exclaimed Santan with pride.
Lighting up homes in a village like Dharnai means giving women and girls in rural India a chance at education; a chance to live their lives with dignity and respect; and a chance for better health and livelihood. Ranti Devi, a local resident, sounded confident when she said: “We had a lot of problems in the past, but since the lights have been installed in our homes it has been easier for us to cook and for our children to study. We can walk around in the streets at night without any fear”.
Samit Aich, executive director of Greenpeace India, said at the launch of the project: “The coal-fired and nuclear-fired power plants of the country will not be able to reach the Dharnais of the country. Nor will they be able to address global climate concerns and India's commitments towards those concerns. India needs to seriously reconsider its energy strategy and prioritise renewable energy for social and climate justice.”
There is a story here that goes well beyond India. For decades, Dharnai was subjected to apathy. But, today it is self-reliant. People of Dharnai don’t depend on the conventional grid to empower their lives anymore. In a power-deficit country, where thousands of villages are still living in darkness, where the state is unable to provide uninterrupted electricity even to the metros, Dharnai has set a benchmark on how decentralised renewable energy is a workable solution.
When, in the name of development and power generation, ancient forests are being cleared, communities displaced, wildlife disturbed, Dharnai provides a roadmap for sustainable development. The village has shattered all the myths that cynics have been propagating about the supposed non-feasibility of renewable energy. Its solar-powered micro-grid could be a game-changer, a model for bringing clean and reliable energy to millions across the world.




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