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Saturday, June 20, 2015

VISHWA YOGA DIVAS 21 JUNE - SWASTHYA KI DISHA MEIN EK BEHTAR PRYAS.


VISHWA YOGA DIVAS 21 JUNE - SWASTHYA KI DISHA MEIN EK BEHTAR PRYAS. 
BHARAT KA NAAM UNCHA RAKHNE KA EK UMDA KADAM







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Wednesday, June 3, 2015

मुहासों के दागों को दूर करने के घरेलू उपाय

++++++मुहासों के दागों को दूर करने के घरेलू उपाय++++++++
मुहासों के दागों को दूर करने के घरेलू उपाय
चेहरे पर होने वाले मुहांसे कई बार दाग छोड़ जाते हैं, यह आपके चेहरे पर धब्‍बे की तरह होते हैं। इसलिए मुहांसों की समस्‍या होने पर कभी इसको फोड़े नहीं, क्‍योंकि इससे होने वाला कालापन दूर होने में समय लगता है। इसके दाग को छुड़ाने के लिए नींबू का जूस लीजिए और उसे चेहरे पर मसाज करके इसे 15-20 मिनट तक लगा रहने दीजिए, इससे धब्‍बा सामान्‍य हो जायेगा। छोटे वाले एलोवेरा के पौधे को लेकर उसकी पत्‍ती तोड़कर उसका ताजा जेल निकाल लीजिए, इसे दाग पर लगाने से दाग दूर हो जाते हैं।
. . . . . स्वास्थ्य, सौंदर्य से जुड़ी ज्यादा जानकारी के लिये मेरे अन्य पोस्ट देखे लाइक करे पोस्ट को आपका एक लाइक मदत करता है मेरी अन्य लोगो तक जानकारी पहुचाने मे एक लाइक जरूर करे l


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कमजोरी दूर करने का एक असरदार अनुभूत प्रयोग:

कमजोरी दूर करने का एक असरदार अनुभूत प्रयोग::
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--जिनको कमजोरी लगती है, बुढ़ापा लगता है तो
देशी गाय का दूध, जितना दूध पीते है उससे आधा पानी डाल दे | समझो ४०० ग्राम दूध है तो २०० ग्राम पानी डाल दे, एक चम्मच घी डाल दे, {बल्य रसायन चाहिए तो बल्य रसायन भी डाल दे (लेकिन रात को बल्य रसायन उपयोग करे दिन में नही) } सोने का गहना हो, अथवा चाँदी का गहना हो, बर्तन हो, ग्लास आदि वो दूध में डाल दे | गाय के दूध में स्वर्ण क्षार होते है | तो जितना दूध उससे आधा पानी डाल दो और सोने का गहना हो तो डाल दो दूध में तो गाय दूध की स्वर्ण क्षार और सोने की सुवर्ण क्षार दूध को बलवान बना देगी | थोडा गाय का घी मिल जाय |
कैसा भी कमजोर व्यक्ति हो, दुर्बल व्यक्ति बलवान हो जाएगा | और बड़ी उमर वालों को ये पिलाते रहो तो बीमार नहीं होगा | जल्दी बुढ्ढे न होंगे | रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी |


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#‎त्वचा‬ की देखभाल: छ सरल ‪#‎टिप्स‬ (Six Easy Care Tips For Skin)

#‎त्वचा‬ की देखभाल: छ सरल ‪#टिप्स‬ (Six Easy Care Tips For Skin)
%धुप से बचें (Avoid Sun): धूप से त्वचा को बचा के रखना, अच्छी त्वचा के लिए अनिवार्य है। अधिक समय तक धूप में रहने से त्वचा पर झुर्रियां पड़ जाती हैं तथा और भी बहुत सी बीमारियां हो जाती हैं और इसके साथ - साथ त्वचा के कैंसर का खतरा भी बड़ जाता है।
%धूम्रपान न करें (Avoid Smoking): धूम्रपान न केवल आपके फेफड़ों पर ही बुरा असर डालती है बल्कि धूम्रपान झुर्रियां और सूखी त्वचा का कारण भी होता है। धूम्रपान सिर्फ त्वचा को नुकसान ही नहीं पहुंचाता है बल्कि उसे नष्ट भी कर देता है। निकोटिन रक्त धमनियों को पतला कर देता है जिससे त्वचा तक ऑक्सीजन की भरपूर पहुंच नहीं पाती है। ऐसे में त्वचा को पुनर्जीवित करने की क्षमता खत्म हो जाती है। लंबे समय तक धूम्रपान करने से त्वचा पर असमय झुर्रियां नज़र आने लगती हैं। इसलिए त्वचा को चमकदार बनाये रखने के लिए धूम्रपान से दूरी बहुत ज़रूरी है।
%सनस्क्रीन का इस्तेमाल (Use Sunscreen): धूप में निकलने से कम से कम 15-20 मिनट पहले सनस्क्रीन का इस्तेमाल अपने चेहरे के साथ-साथ अपने हाथों पर भी करें। सनस्क्रीन आपकी त्वचा को किसी भी प्रकार के नुकसान से बचाने का काम करती है। सही सनस्क्रीन आपकी त्वचा को बाहरी और भीतरी दोनों प्रकार के नुकसान से बचाती है।
%पानी की पर्याप्त मात्रा (Drink Lots of Water): त्वचा को ज़रूरी पोषण और नमी प्रदान कराने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीना बहुत ज़रूरी होता है। आपको कम से कम 8-10 गिलास पानी नियमित रूप से पीना चाहिए। इसके साथ विटामिन सी युक्त फलों का सेवन भी आपकी त्वचा के लिए लाभप्रद होता है।
%तनाव मुक्त रहें (Be Stress Free): तनाव एक ऐसी अवस्था है जिसका अंदरूनी असर ज्यादा होता है और वह असर सबसे पहले आपकी त्वचा पर झलकता है। इसलिए अगर अच्छी त्वचा चाहिए तो तनाव मुक्त रहे, इसका कोई विकल्प नहीं है।
%अपने खाने पीने पर ध्यान दें (Be Careful about your Food): तले खाने व जंक फूड से त्वचा को नुकसान पहुंचता है। इससे त्वचा पर मुंहासे व झुर्रियों जैसी कई समस्याएं नज़र आने लगती हैं। शरीर में प्रोटीन और ज़रुरी पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, जिसके कारण त्वचा पर झुर्रियां पड़ जाती है।


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माहवारी (पीरिएड) के दौरान दर्द रहता हो तो

माहवारी (पीरिएड) के दौरान दर्द रहता हो तो...
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१ * दर्द से बचने के लिए आठ – दस बादाम रात में पानी में भिगोकर रख दें। सुबह छिलका उतारकर खाली पेट सेवन करें।
२ * मासिक के दौरान कमर में दर्द हो तो बरगद का दूध निकालकर कमर पर सुबह शाम मलें।
३ * तीन ग्राम कुटी हुई अदरक, ३ – ४ काली मिर्च का चूर्ण और एक बड़ी इलायची का चूर्णं, काली चाय, दूध व पानी एक साथ मिलाकर अच्‍छी तरह पकाएं। पानी आधा रह जाने पर उतार लें और कुनकुना ही पिएं। आपको माहवारी के दर्द में आराम मिलेगा।
४ * पीरिएड से संबधित कोई भी दिक्‍कत हो तो गरम पानी का सेवन अच्‍छा रहता है। माहवारी शुरू होने के दस दिन पहले से गरम पानी पीना शुरू कर दें।
अनियमित माहवारी ::
~~~~~~~~~~~~~~~
१ * गर्म दूध के साथ ५ – ६ ग्राम अजवायन खाने से लाभ होता है।
२ * दालचीनी का चूर्णं २ – ३ ग्राम पानी के साथ खाने से पीरिएड साफ होता है और शा‍रीरिक पीड़ा भी दूर होती है।
३ * खाना खाने के समय पहले निवाले में २ – ३ ग्राम राई पीसकर खाने से माहवारी की सभी परेशानियां दूर होती हैं।
४ * यदि पीरिएड नियमित न हो तो दो सौ ग्राम गाजर का रस सुबह शाम पानी के साथ पीने से पीरिएड नियमित हो जाता है।
५ * दस ग्राम तिल को २०० ग्राम पानी में उबालें। फिर एक चौथाई रह जाने पर उसे उतारकर, उसमें गुड़ मिलाकर पिएं। पीरिएड नियमित होगा और दर्द भी दूर हो जाएगा।
६ * गुड़ के साथ काले तिल को पानी में उबालकर दिन में २ – ३ बार पीने से मासिक धर्म खुल कर होता है।
७ * तुलसी के १० – १५ बीजों को पानी मे उबालकर पीने से पीरिएड ठीक से होता है।
८ * गाजर का सूप पीने से भी माहवारी की अनियमितता दूर हो जाती है।

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भगन्दर रोग उपचार। (FISTULA-IN-ANO)

भगन्दर रोग उपचार। (FISTULA-IN-ANO)
कृपया इस पोस्ट को जितना हो सके शेयर करना हैं, इस रोग के मरीज को बेचारे को ना दिन को चैन हैं ना रात को आराम।
परिचय :
बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अंग़जी में फिस्टुला कहते हें। इसलिए बवासीर को नज़र अंदाज़ ना करे। भगन्दर का इलाज़ अगर ज्यादा समय तक ना करवाया जाये तो केंसर का रूप भी ले सकता है। जिसको रिक्टम केंसर कहते हें। जो कि जानलेवा साबित होता है। ऐसा होने की सम्भावना बहुत ही कम होती है ।
यह एक प्रकार का नाड़ी में होने वाला रोग है, जो गुदा और मलाशय के पास के भाग में होता है। ये रोग हमारी आज कल की घटिया जीवन शैली की देन हैं, जिसको हम बदलना नहीं चाहते। अपने खान पान पर पूरा ध्यान दे, कूड़ा करकट भोजन ना खाए, कोल्ड ड्रिंक्स तो बिलकुल भी ना पिए। भगन्दर में पीड़ाप्रद दानें गुदा के आस-पास निकलकर फूट जाते हैं। इस रोग में गुदा और वस्ति के चारो ओर योनि के समान त्वचा फैल जाती है, जिसे भगन्दर कहते हैं। `भग´ शब्द को वह अवयव समझा जाता है, जो गुदा और वस्ति के बीच में होता है। इस घाव (व्रण) का एक मुंख मलाशय के भीतर और दूसरा बाहर की ओर होता है। भगन्दर रोग अधिक पुराना होने पर हड्डी में सुराख बना देता है जिससे हडि्डयों से पीव निकलता रहता है और कभी-कभी खून भी आता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से मल भी आने लगता है।
भगन्दर रोग अधिक कष्टकारी होता है। यह रोग जल्दी खत्म नहीं होता है। इस रोग के होने से रोगी में चिड़चिड़ापन हो जाता है। इस रोग को फिस्युला अथवा फिस्युला इन एनो भी कहते हैं।
इस रोग के उपचार में रोगी को पूरी तपस्या करनी पड़ती हैं, अपने खाने पीने के मामले में।
रोग के प्रकार :
भगन्दर आठ प्रकार का होता है-1. वातदोष से शतपोनक 2. पित्तदोष से उष्ट्र-ग्रीव 3. कफदोष से होने वाला 4. वात-कफ से ऋजु 5. वात-पित्त से परिक्षेपी 6. कफ पित्त से अर्शोज 7. शतादि से उन्मार्गी और 8. तीनों दोषों से शंबुकार्त नामक भगन्दर की उत्पति होती है।
1. शतपोनक नामक भगन्दर : शतपोनक नामक भगन्दर रोग कसैली और रुखी वस्तुओं को अधिक खाने से होता है। जिससे पेट में वायु (गैस) बनता है जो घाव पैदा करती है। चिकित्सा न करने पर यह पक जाते हैं, जिससे अधिक दर्द होता हैं। इस व्रण के पक कर फूटने पर इससे लाल रंग का झाग बहता है, जिससे अधिक घाव निकल आते हैं। इस प्रकार के घाव होने पर उससे मल मूत्र आदि निकलने लगता है।
2. पित्तजन्य उष्ट्रग्रीव भगन्दर : इस रोग में लाल रंग के दाने उत्पन्न हो कर पक जाते हैं, जिससे दुर्गन्ध से भरा हुआ पीव निकलने लगता है। दाने वाले जगह के आस पास खुजली होने के साथ हल्के दर्द के साथ गाढ़ी पीव निकलती रहती है।
3. वात-कफ से ऋजु : वात-कफ से ऋजु नामक भगन्दर होता है जिसमें दानों से पीव धीरे-धीरे निकलती रहती है।
4. परिक्षेपी नामक भगन्दर : इस रोग में वात-पित्त के मिश्रित लक्षण होते हैं।
5. ओर्शेज भगन्दर : इसमें बवासीर के मूल स्थान से वात-पित्त निकलता है जिससे सूजन, जलन, खाज-खुजली आदि उत्पन्न होती है।
4. शम्बुकावर्त नामक भगन्दर : इस तरह के भगन्दर से भगन्दर वाले स्थान पर गाय के थन जैसी फुंसी निकल आती है। यह पीले रंग के साथ अनेक रंगो की होती है तथा इसमें तीन दोषों के मिश्रित लक्षण पाये जाते हैं।
5. उन्मार्गी भगन्दर : उन्मर्गी भगन्दर गुदा के पास कील-कांटे या नख लग जाने से होता है, जिससे गुदा में छोटे-छोटे कृमि उत्पन्न होकर अनेक छिद्र बना देते हैं। इस रोग का किसी भी दोष या उपसर्ग में शंका होने पर इसका जल्द इलाज करवाना चाहिए अन्यथा यह रोग धीरे-धीरे अधिक कष्टकारी हो जाता है।
लक्षण :
भगन्दर रोग उत्पंन होने के पहले गुदा के निकट खुजली, हडि्डयों में सुई जैसी चुभन, दर्द, दाह (जलन) तथा सूजन आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। भगन्दर के पूर्ण रुप से निकलने पर तीव्र वेदना (दर्द), नाड़ियों से लाल रंग का झाग तथा पीव आदि निकलना इसके मुख्य लक्षण हैं।
भोजन और परहेज :
आहार-विहार के असंयम से ही रोगों की उत्पत्ति होती है। इस तरह के रोगों में खाने-पीने का संयम न रखने पर यह बढ़ जाता है। अत: इस रोग में खास तौर पर आहार-विहार पर सावधानी बरतनी चाहिए। इस प्रकार के रोगों में सर्व प्रथम रोग की उत्पति के कारणों को दूर करना चाहिए क्योंकि उसके कारण को दूर किये बिना चिकित्सा में सफलता नहीं मिलती है। इस रोग में रोगी और चिकित्सक दोनों को सावधानी बरतनी चाहिए।
चिकित्सा
चोपचीनी और मिस्री
भगंदर के लिए चोपचीनी और मिस्री पीस कर इनके बराबर देशी घी मिलाइए।20-20 ग्राम के लड्डू बना कर सुबह शाम खाइए। परहेज नमक तेल खटाई चाय मसाले आदि हैं। अर्थात फीकी रोटी घी शक्कर से खा सकते हैं। दलिया बिना नमक का हलवा आदि खा सकते हैं। इससे 21 दिन में भगन्दर सही हो जायेगा। इसके साथ सुबह शाम १-१ चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ ले। 21 दिन में भगन्दर सही हो जायेगा।
पुनर्नवाः
पुनर्नवा, हल्दी, सोंठ, हरड़, दारुहल्दी, गिलोय, चित्रक मूल, देवदार और भारंगी के मिश्रण को काढ़ा बनाकर पीने से सूजनयुक्त भगन्दर में अधिक लाभकारी होता है। पुनर्नवा शोथ-शमन कारी गुणों से युक्त होता है।
पुनर्नवा के मूल को वरुण (वरनद्ध की छाल के साथ काढ़ा बनाकर पीने से आंतरिक सूजन दूर होती है। इससे भगन्दर के नाड़ी-व्रण को बाहर-भीतर से भरने में सहायता मिलती है।
नीम:
नीम की पत्तियां, घी और तिल 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर कूट-पीसकर उसमें 20 ग्राम जौ के आटे को मिलाकर जल से लेप बनाएं। इस लेप को वस्त्र के टुकड़े पर फैलाकर भगन्दर पर बांधने से लाभ होता है।
नीम की पत्तियों को पीसकर भगन्दर पर लेप करने से भगन्दर की विकृति नष्ट होती है।
गुड़:
पुराना गुड़, नीलाथोथा, गन्दा बिरोजा तथा सिरस इन सबको बराबर मात्रा लेकर थोड़े से पानी में घोंटकर मलहम बना लें तथा उसे कपड़े पर लगाकर भगन्दर के घाव पर रखने से कुछ दिनों में ही यह रोग ठीक हो जाता है।
शहद:
शहद और सेंधानमक को मिलाकर बत्ती बनायें। बत्ती को नासूर में रखने से भगन्दर रोग में आराम मिलता है।
केला और कपूर।
एक पके केले को बीच में चीरा लगा कर इस में चने के दाने के बराबर कपूर रख ले और इसको खाए, और खाने के एक घंटा पहले और एक घंटा बाद में कुछ भी नहीं खाना पीना।
अगर भगन्दर बहुत पुरानी हो और इन प्रयोगो से भी सही ना हो तो कृपया उचित शल्य कर्म करवाये।


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भगन्दर रोग उपचार। (FISTULA-IN-ANO)

भगन्दर रोग उपचार। (FISTULA-IN-ANO)
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परिचय :
बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अंग़जी में फिस्टुला कहते हें। इसलिए बवासीर को नज़र अंदाज़ ना करे। भगन्दर का इलाज़ अगर ज्यादा समय तक ना करवाया जाये तो केंसर का रूप भी ले सकता है। जिसको रिक्टम केंसर कहते हें। जो कि जानलेवा साबित होता है। ऐसा होने की सम्भावना बहुत ही कम होती है ।
यह एक प्रकार का नाड़ी में होने वाला रोग है, जो गुदा और मलाशय के पास के भाग में होता है। ये रोग हमारी आज कल की घटिया जीवन शैली की देन हैं, जिसको हम बदलना नहीं चाहते। अपने खान पान पर पूरा ध्यान दे, कूड़ा करकट भोजन ना खाए, कोल्ड ड्रिंक्स तो बिलकुल भी ना पिए। भगन्दर में पीड़ाप्रद दानें गुदा के आस-पास निकलकर फूट जाते हैं। इस रोग में गुदा और वस्ति के चारो ओर योनि के समान त्वचा फैल जाती है, जिसे भगन्दर कहते हैं। `भग´ शब्द को वह अवयव समझा जाता है, जो गुदा और वस्ति के बीच में होता है। इस घाव (व्रण) का एक मुंख मलाशय के भीतर और दूसरा बाहर की ओर होता है। भगन्दर रोग अधिक पुराना होने पर हड्डी में सुराख बना देता है जिससे हडि्डयों से पीव निकलता रहता है और कभी-कभी खून भी आता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से मल भी आने लगता है।
भगन्दर रोग अधिक कष्टकारी होता है। यह रोग जल्दी खत्म नहीं होता है। इस रोग के होने से रोगी में चिड़चिड़ापन हो जाता है। इस रोग को फिस्युला अथवा फिस्युला इन एनो भी कहते हैं।
इस रोग के उपचार में रोगी को पूरी तपस्या करनी पड़ती हैं, अपने खाने पीने के मामले में।
रोग के प्रकार :
भगन्दर आठ प्रकार का होता है-1. वातदोष से शतपोनक 2. पित्तदोष से उष्ट्र-ग्रीव 3. कफदोष से होने वाला 4. वात-कफ से ऋजु 5. वात-पित्त से परिक्षेपी 6. कफ पित्त से अर्शोज 7. शतादि से उन्मार्गी और 8. तीनों दोषों से शंबुकार्त नामक भगन्दर की उत्पति होती है।
1. शतपोनक नामक भगन्दर : शतपोनक नामक भगन्दर रोग कसैली और रुखी वस्तुओं को अधिक खाने से होता है। जिससे पेट में वायु (गैस) बनता है जो घाव पैदा करती है। चिकित्सा न करने पर यह पक जाते हैं, जिससे अधिक दर्द होता हैं। इस व्रण के पक कर फूटने पर इससे लाल रंग का झाग बहता है, जिससे अधिक घाव निकल आते हैं। इस प्रकार के घाव होने पर उससे मल मूत्र आदि निकलने लगता है।
2. पित्तजन्य उष्ट्रग्रीव भगन्दर : इस रोग में लाल रंग के दाने उत्पन्न हो कर पक जाते हैं, जिससे दुर्गन्ध से भरा हुआ पीव निकलने लगता है। दाने वाले जगह के आस पास खुजली होने के साथ हल्के दर्द के साथ गाढ़ी पीव निकलती रहती है।
3. वात-कफ से ऋजु : वात-कफ से ऋजु नामक भगन्दर होता है जिसमें दानों से पीव धीरे-धीरे निकलती रहती है।
4. परिक्षेपी नामक भगन्दर : इस रोग में वात-पित्त के मिश्रित लक्षण होते हैं।
5. ओर्शेज भगन्दर : इसमें बवासीर के मूल स्थान से वात-पित्त निकलता है जिससे सूजन, जलन, खाज-खुजली आदि उत्पन्न होती है।
4. शम्बुकावर्त नामक भगन्दर : इस तरह के भगन्दर से भगन्दर वाले स्थान पर गाय के थन जैसी फुंसी निकल आती है। यह पीले रंग के साथ अनेक रंगो की होती है तथा इसमें तीन दोषों के मिश्रित लक्षण पाये जाते हैं।
5. उन्मार्गी भगन्दर : उन्मर्गी भगन्दर गुदा के पास कील-कांटे या नख लग जाने से होता है, जिससे गुदा में छोटे-छोटे कृमि उत्पन्न होकर अनेक छिद्र बना देते हैं। इस रोग का किसी भी दोष या उपसर्ग में शंका होने पर इसका जल्द इलाज करवाना चाहिए अन्यथा यह रोग धीरे-धीरे अधिक कष्टकारी हो जाता है।
लक्षण :
भगन्दर रोग उत्पंन होने के पहले गुदा के निकट खुजली, हडि्डयों में सुई जैसी चुभन, दर्द, दाह (जलन) तथा सूजन आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। भगन्दर के पूर्ण रुप से निकलने पर तीव्र वेदना (दर्द), नाड़ियों से लाल रंग का झाग तथा पीव आदि निकलना इसके मुख्य लक्षण हैं।
भोजन और परहेज :
आहार-विहार के असंयम से ही रोगों की उत्पत्ति होती है। इस तरह के रोगों में खाने-पीने का संयम न रखने पर यह बढ़ जाता है। अत: इस रोग में खास तौर पर आहार-विहार पर सावधानी बरतनी चाहिए। इस प्रकार के रोगों में सर्व प्रथम रोग की उत्पति के कारणों को दूर करना चाहिए क्योंकि उसके कारण को दूर किये बिना चिकित्सा में सफलता नहीं मिलती है। इस रोग में रोगी और चिकित्सक दोनों को सावधानी बरतनी चाहिए।
चिकित्सा
चोपचीनी और मिस्री
भगंदर के लिए चोपचीनी और मिस्री पीस कर इनके बराबर देशी घी मिलाइए।20-20 ग्राम के लड्डू बना कर सुबह शाम खाइए। परहेज नमक तेल खटाई चाय मसाले आदि हैं। अर्थात फीकी रोटी घी शक्कर से खा सकते हैं। दलिया बिना नमक का हलवा आदि खा सकते हैं। इससे 21 दिन में भगन्दर सही हो जायेगा। इसके साथ सुबह शाम १-१ चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ ले। 21 दिन में भगन्दर सही हो जायेगा।
पुनर्नवाः
पुनर्नवा, हल्दी, सोंठ, हरड़, दारुहल्दी, गिलोय, चित्रक मूल, देवदार और भारंगी के मिश्रण को काढ़ा बनाकर पीने से सूजनयुक्त भगन्दर में अधिक लाभकारी होता है। पुनर्नवा शोथ-शमन कारी गुणों से युक्त होता है।
पुनर्नवा के मूल को वरुण (वरनद्ध की छाल के साथ काढ़ा बनाकर पीने से आंतरिक सूजन दूर होती है। इससे भगन्दर के नाड़ी-व्रण को बाहर-भीतर से भरने में सहायता मिलती है।
नीम:
नीम की पत्तियां, घी और तिल 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर कूट-पीसकर उसमें 20 ग्राम जौ के आटे को मिलाकर जल से लेप बनाएं। इस लेप को वस्त्र के टुकड़े पर फैलाकर भगन्दर पर बांधने से लाभ होता है।
नीम की पत्तियों को पीसकर भगन्दर पर लेप करने से भगन्दर की विकृति नष्ट होती है।
गुड़:
पुराना गुड़, नीलाथोथा, गन्दा बिरोजा तथा सिरस इन सबको बराबर मात्रा लेकर थोड़े से पानी में घोंटकर मलहम बना लें तथा उसे कपड़े पर लगाकर भगन्दर के घाव पर रखने से कुछ दिनों में ही यह रोग ठीक हो जाता है।
शहद:
शहद और सेंधानमक को मिलाकर बत्ती बनायें। बत्ती को नासूर में रखने से भगन्दर रोग में आराम मिलता है।
केला और कपूर।
एक पके केले को बीच में चीरा लगा कर इस में चने के दाने के बराबर कपूर रख ले और इसको खाए, और खाने के एक घंटा पहले और एक घंटा बाद में कुछ भी नहीं खाना पीना।
अगर भगन्दर बहुत पुरानी हो और इन प्रयोगो से भी सही ना हो तो कृपया उचित शल्य कर्म करवाये।


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डिलीवरी आसानी से हो

डिलीवरी आसानी से हो...
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१ * बथुआ के दस ग्राम बीज को ५०० ग्राम पानी में अच्‍छी तरह औटाएं, जब पानी आधा रह जाए तो उतार कर छान लें और प्रसूता को पिलाएं। इससे प्रसव पीड़ा में आराम मिलता है व बच्‍चा आसानी से हो जाता है।
२ * नीम की जड़ को कमर में बांधने से प्रसव तुरंत हो जाता है।
३ * २०० मि.ली. पानी में ५० ग्राम हरे या सूखे आंवलों को उबाल लें। जब अस्‍सी मि.ली. पानी शेष रह जाए, तो इसे आंच पर से उतार लें। ठंडा होने पर इस पानी में शहद मिलाकर समय – समय पर गर्भवती महिला को पिलाते रहें। इससे डिलीवरी बिना किसी कष्‍ट के हो जाती है।
४* अमलतास के छिलकों के ५ ग्राम चूर्णं को दो सौ ग्राम पानी में अच्‍छी तरह औटाकर उसे छान लें। फिर शक्‍कर मिलाकर गर्भवती स्‍त्री को पिला दें। इससे प्रसव पीड़ा में आराम मिलता है।
५ – मकोय की जड़ पीसकर नाभि के नीचे लेप करने से गर्भ आसानी से बाहर आ जाता है।


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कैसे पाएं सन डैमेज से छुटकारा

++++++कैसे पाएं सन डैमेज से छुटकारा++++++
+ गर्मियों के मौसम में आम है त्वचा पर सन डैमेज।
+ धूप के सीधे संपर्क में आने से होती हैं स्किन समस्याएं।
+ केमिकल एक्सफोलिएशन से दूर होता है इसका असर।
+ ब्लीच और एंटी एंटीऑक्सिडेंट क्रीम का करें इस्तेमाल।
गर्मी का मौसम अपने साथ त्वचा के लिए ढेरों परेशानियां भी लेकर आता है। सबसे आम परेशानी है टैनिंग और सन डैमेज की। यूवीबी व यूवीए किरणें त्वचा की नमी को चुरा लेती हैं, जिससे त्वचा की रंगत कम हो जाती है और चेहरे पर काले दाग धब्बे भी पड़ जाते हैं।
क्या है सन डैमेज :-
सन डैमेज और टैनिंग धूप के सीधे संपर्क में आने से होती है। यूवीए किरणें मेलैनोसाइट्स को प्रभावित करती हैं। ये मेलैनोसाइट्स मेलानिन को पैदा करते हैं। इस मेलानिन से ही त्वचा की रंगत तय होती है और यही त्वचा को सुरक्षा कवच भी प्रदान करते हैं। अगर आपकी त्वचा सीधे धूप के संपर्क में काफी देर तक रहे तो मेलानिन का बनना बढ़ जाता है। इससे त्वचा की ऊपरी परत प्रभावित होती है और त्वचा काली पड़ने लगती है। साथ ही, यूवी रेडियेशन त्वचा के सेल्स को प्रभावित करके डीएनए तक में परिवर्तन कर सकता है। जिससे कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं।
भले ही आप सनस्क्रीन लगाती हों, लेकिन फिर भी आपको सन डैमेज हो सकता है। अगर आपको सन डैमेज हुआ है तो आप कुछ आसान तरीकों से इससे निजात पा सकती हैं।
सन डैमेड को ऐसे करें ठीक :-
अगर आप अपनी त्वचा को सन डैमेज के बाद फिर से पहले जैसी निखरी हुई बनाना चाहती हैं तो केमिकल एक्सफोलिएशन सबसे अच्छा तरीका है। केमिकल एक्सफोलिएशन डेड स्किन को डिसॉल्व कर देता है। जबकि अन्य सिर्फ स्क्रबिंग कर पाते हैं। इसके बाद आपको सन डैमेज के रूप में उभरे ब्राउन स्पॉट्स को दूर करने का स्टेप आता है। इसके लिए आपको स्किन ब्लीच का इस्तेमाल करना होगा। इससे आपकी त्वचा के ब्राउन एरिया क्लीन हो जाएंगे।
अपनी इंप्रूवमेंट को बनाए रखने के लिए एसपीएफ 15 से अधिक की सनस्क्रीन लगाएं। धूप में जाने से 30 मिनट पहले सनस्क्रीन लगाएं। इसके अलावा त्वचा के डीएनए की कैंसर से सुरक्षा के लिए एंटीऑक्सिडेंट क्रीम लगानी चाहिए। इससे सन डैमेज भी ठीक होता है। इसके अलावा ऐसा खानपान होना चाहिए जिसमें एंटीऑक्सिडेंट भरपूर मात्रा में हो।
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खून की कमी

खून की कमी ::
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१ * गाजर का रस और चुकंदर का रस मिलाकर पीना बहुत लाभकारी होता है।
२ * रोजाना एक ग्‍लास टमाटर का रस पीने से भी खून की कमी दूर होती है।
३ * रोज ५ – १० खजूर खाकर ऊपर से एक कप गर्म दूध पीने से थोड़े ही दिन में नया खून बनना शुरू हो जाता है। जिससे शरीर में स्‍फूर्ति और ताकत बढ़ती है।
४ * सुबह शाम दूध के साथ एक-एक नग आंवले का मुरब्‍बा खाने से खून की कमी दूर हो जाती है।
५ * अंजीर को दूध में उबालें। फिर उसे खाकर दूध पी जाएं। इससे खून की कमी दूर होती है।
६ * गन्‍ने के रस में आंवले का रस और शहद मिलाकर पीने से खून बढ़ता है।
७ * रोजाना पपीते का सेवन करने से भी खून की कमी नहीं होती। इसमें लौह तत्‍व की अधिकता होती है। जो खून बनाने में सहायक होता है।
८ * गाजर की सलाद या फिर गाजर का मुरब्‍बा भी लाभकारी होता है। गाजर के मुरब्‍बे के लिए अच्‍छी मोटी गाजर को छीलकर बीच का कड़ा भाग निकाल दें। गूदे को कांटे से गोद कर पानी में हल्‍का सा उबालकर कपड़े पर फैला दें। इसके बाद एक किलो शक्‍कर की एक तार वाली चाशनी बनाकर गाजर पकाएं। पकाते वक्‍त नींबू का रस भी डाल दें। ठंडा होने पर कांच के बर्तन में भरकर रख लें और रोज सुबह खाएं।
९ * बथुआ के साग का सेवन भी बहुत फाएदेमंद होता है। इससे खून में हीमोग्‍लोबिन की मात्रा बढ़ती है।
१० * ठंडे पानी में साफ किए गए चोकर को उसके वजन के छह गुना पानी में किसी बर्तन में ढंक कर आधे घंटे तक उबालें। स्‍वाद के लिए इसमें शहद व नींबू का रस मिला सकते हैं। एक-एक कप सुबह शाम पीने से खून की कमी दूर होती है।


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अंकोल / कोकल


अंकोल / कोकल ...
इसके कई अन्य नाम भी हैं। यथा-अकोट कोकल, विषघ्न, अकोसर, ढेरा, टेरा, अक्रोड, अकोली, ढालाकुश, अक्षोलुम, इत्यादि
परिचय
अकोल का वृक्ष विषेश कर दो प्रकार का होता है एक श्वेत तथा दुसरा काला श्वेत की अपेक्षा काले अंकोल को अति दुर्लभ एवं तीव्र प्रभावशाली माना गया है परंतु यह बहुत कम मात्रा मे ही यदा-कदा देखने को मिल जाता है।
अंकोल का वृक्ष 35-40 फीट तक उंचा तथा 2-3 फीट तक चैड़ा होता है। इसके तने का रंग सफेदी लिए हुए भुरा होता है। प्रारंभ में जहां पर नवीन पत्र शाखायें निकलती हैं वह कंटक उक्त होते हैं परंतु बाद में वही कांटे डालियों की शक्ल ले लेती हैं। इसके कच्चे फल हरे तथा पकने पर काले हो जाते हैं जो जामुन की तरह दिखई देती हैं।
इसके बीजों में एक विशेष प्रकार तेल होता है जिसे पाताल यंत्र विधि से निकाला जाता है। आयुर्वेद शास्त्रोें में इस तेल को अत्यधिक दुर्लभ, उत्तम, मुल्यवान तथा चमत्कारिक बताया गया है। कहा जाता है कि अंकोल का एक बूंद तेल मृत व्यति के मुंह मे डाल दिया जाए तो मृत व्यक्ति भी कुछ प्रहर के लिए जींदा हो जाता है।
अंकोल के आयुर्वेदिक प्रयोग
दस्त तथा कब्ज
इसके जड़ की छाल को छाया में सुखाकर चुर्णं बना कर 1-1 ग्राम चावल के धोवन के साथ सेवन करने से दस्त तथा कब्ज दुर हो जाता है।
जलोदर:- इसके जड़ के चुर्णं को 2-3 मासा जवाखार मिलाकर नित्य सेवन करने से जलोदर रोग में आराम मिलता है।
अस्थमा- अंकोल के जड़ को निम्बु के रस के साथ घिस कर आधा चम्मच सुबह शाम सेवन करने से अस्थमा रोग समाप्त हो जाता है।
गांठ या सुजन:- इसकी जड़ को घिसकर सुजन अथवा गांठों पर लगाने से सुजन मे आराम तथा गांठों से मुक्ति मिलती है।
विष निवारण:- कोई व्यक्ति चाहे कैसा भी जहर सेवन कर लिया हो यदि अंकोल की जड़ की छाल को पानी में पीसकर थोड़ी-थोड़ी देर में पिलाने से उल्टी तथा दस्त से सारा जहर निकल जाता है।
बुखार:- अंकोल के जड़ की छाल तथा सोंठ को पानी में पीसकर शरीर में लगाएं तथा अंकोल का चुर्ण 4-5 रत्ती की मात्रा में सुबह शाम सेवन करें। ऐसा करने से पसीना आकर तुरंत बुखार उतर जाता है।
चर्म विकार:- इसके 50 ग्राम पत्तों को 5 ग्राम काली मिर्च के साथ पीस कर सरसो तेल में पकाकर लगाने से सभी प्रकार के चर्म रोग नष्ट होते हैं।
प्रमेह:- अंकोल के पुष्पों को छाया में सुखाकर बराबर मात्रा में हल्दी तथा आंवला मिलाकर चुर्णं बना लें। आधा चम्मच चुर्णं शहद के साथ सेवन करने से प्रमह रोग दुर होता है।
कुष्ट रोग:- अंकोल के जड़ की छाल, जायफल, जावित्री, तथा लौंग सबको बराबर मात्रा में लेकर चुर्ण बना कर 3-4 मासा सेवन करें तो कुष्ट रोग में लाभ मिलता है।

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मोतियाबिंद का #आयुर्वेदिक इलाज

मोतियाबिंद का #आयुर्वेदिक इलाज :::
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त्रिफला के जल से आंखें धोना::
आयुर्वेद में हरड़ की छाल (छिलका), बहेड़े की छाल और आमले की छाल - इन तीनों को त्रिफला कहते हैं । कभी-कभी स्वस्थ मनुष्यों को भी त्रिफला के जल से अपने नेत्र धोते रहना चाहिये । नेत्रों के लिए अत्यन्त लाभदायक है । कभी-कभी त्रिफला की सब्जी खाना भी हितकर है ।
धोने की विधि - त्रिफला को जौ से समान (यवकुट) कूट लो और रात्रि के समय किसी मिट्टी, शीशे वा चीनी के पात्र में शुद्ध जल में भिगो दो । दो तोले वा एक छटांक त्रिफला को आधा सेर वा एक सेर शुद्ध जल में भिगोवो । प्रातःकाल पानी को ऊपर से नितारकर छान लो । उस जल से नेत्रों को खूब छींटे लगाकर धोवो । सारे जल का उपयोग एक बार के धोने में ही करो । इससे निरन्तर धोने से आंखों की उष्णता, रोहे, खुजली, लाली, जाला, मोतियाबिन्द आदि सभी रोगों का नाश होता है । आंखों की पीड़ा (दुखना) दूर होती है, आंखों की ज्योति बढ़ती है । शेष बचे हुए फोकट सिर पर रगड़ने से लाभ होता है ।
त्रिफला की टिकिया
(१) त्रिफला को जल के साथ पीसकर टिकिया बनायें और आंखों पर रखकर पट्टी बांध दें । इससे तीनों दोषों से दुखती हुई आंखें ठीक हो जाती हैं ।
(२) हरड़ की गिरी (बीज) को जल के साथ निरन्तर आठ दिन तक खरल करो । इसको नेत्रों में डालते रहने से मोतियाबिन्द रुक जाता है । यह रोग के आरम्भ में अच्छा लाभ करता है
* मोतियाबिंद की शुरुआती अवस्था में भीमसेनी कपूर स्त्री के दूध में घिसकर नित्य लगाने पर यह ठीक हो जाता है।
* हल्के बड़े मोती का चूरा 3 ग्राम और काला सुरमा 12 ग्राम लेकर खूब घोंटें। जब अच्छी तरह घुट जाए तो एक साफ शीशी में रख लें और रोज सोते वक्त अंजन की तरह आंखों में लगाएं। इससे मोतियाबिंद अवश्य ही दूर हो जाता है।
* छोटी पीपल, लाहौरी नमक, समुद्री फेन और काली मिर्च सभी 10-10 ग्राम लें। इसे 200 ग्राम काले सुरमा के साथ 500 मिलीलीटर गुलाब अर्क या सौंफ अर्क में इस प्रकार घोटें कि सारा अर्क उसमें सोख लें। अब इसे रोजाना आंखों में लगाएं।
* 10 ग्राम गिलोय का रस, 1 ग्राम शहद, 1 ग्राम सेंधा नमक सभी को बारीक पीसकर रख लें। इसे रोजाना आंखों में अंजन की तरह प्रयोग करने से मोतियाबिंद दूर होता है।
अन्य उपाय ;;
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१) सौंफ़ नेत्रों के लिये हितकर है। मोतियाबिंद रोकने के लिये इसका पावडर बनालें। एक बडा चम्मच भर सुबह शाम पानी के साथ लेते रहें। नजर की कमजोरी वाले भी यह उपाय करें।
२) विटामिन ए नेत्रों के लिये अत्यंत फ़ायदेमंद होता है। इसे भोजन के माध्यम से ग्रहण करना उत्तम रहता है। गाजर में भरपूर बेटा केरोटिन पाया जाता है जो विटामिन ए का अच्छा स्रोत है। गाजर कच्ची खाएं और जिनके दांत न हों वे इसका रस पीयें। २०० मिलि.रस दिन में दो बार लेना हितकर माना गया है। इससे आंखों की रोशनी भी बढेगी। मोतियाबिंद वालों को गाजर का उपयोग अनुकूल परिणाम देता है।
३) आंखों की जलन,रक्तिमा और सूजन हो जाना नेत्र की अधिक प्रचलित व्याधि है। धनिया इसमें उपयोगी पाया गया है।सूखे धनिये के बीज १० ग्राम लेकर ३०० मिलि. पानी में उबालें। उतारकर ठंडा करें। फ़िर छानकर इससे आंखें धोएं। जलन,लाली,नेत्र शौथ में तुरंत असर मेहसूस होता है।
४) आंवला नेत्र की कई बीमारियों में लाभकारी माना गया है। ताजे आंवले का रस १० मिलि. ईतने ही शहद में मिलाकर रोज सुबह लेते रहने से आंखों की ज्योति में वृद्धि होती है। मोतियाबिंद रोकने के तत्व भी इस उपचार में मौजूद हैं।
५) भारतीय परिवारों में खाटी भाजी की सब्जी का चलन है। खाटी भाजी के पत्ते के रस की कुछ बूंदें आंख में सुबह शाम डालते रहने से कई नेत्र समस्याएं हल हो जाती हैं। मोतियाबिंद रोकने का भी यह एक बेहतरीन उपाय है।
६) अनुसंधान में साबित हुआ है कि कद्दू के फ़ूल का रस दिन में दो बार आंखों में लगाने से मोतियाबिंद में लाभ होता है। कम से कम दस मिनिट आंख में लगा रहने दें।
७) घरेलू चिकित्सा के जानकार विद्वानों का कहना है कि शहद आंखों में दो बार लगाने से मोतियाबिंद नियंत्रित होता है।
८) लहसुन की २-३ कुली रोज चबाकर खाना आंखों के लिये हितकर है। यह हमारे नेत्रों के लेंस को स्वच्छ करती है।
९) पालक का नियमित उपयोग करना मोतियाबिंद में लाभकारी पाया गया है। इसमें एंटीआक्सीडेंट तत्व होते हैं। पालक में पाया जाने वाला बेटा केरोटीन नेत्रों के लिये परम हितकारी सिद्ध होता है। ब्रिटीश मेडीकल रिसर्च में पालक का मोतियाबिंद नाशक गुण प्रमाणित हो चुका है।
१०) एक और सरल उपाय बताते हैं- अपनी दोनों हथेलियां आंखों पर ऐसे रखें कि ज्यादा दबाव मेहसूस न हो। हां, हल्का सा दवाब लगावे। दिन में चार-पांच बार और हर बार आधा मिनिट के लिये करें। मोतियाबिंद से लडाई का अच्छा तरीका है।
११) किशमिश ,अंजीर और खारक पानी में रात को भिगो दें और सुबह खाएं । मोतियाबिंद की अच्छी घरेलू दवा है।
१२) भोजन के साथ सलाद ज्यादा मात्रा में शामिल करें । सलाद पर थोडा सा जेतून का तेल भी डालें। इसमें प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने के गुण हैं जो नेत्रों के लिये भी हितकर है।
मोतियाबिंद दो प्रकार का होता है---
1.nuclear cataract.
2.cortical cataract.
उक्त दोनो तरह के मोतियाबिंद बनने से रोकने के लिये विटामिन ए तथा बी काम्प्प्लेक्स का दीर्घावधि तक उपयोग करने की सलाह दी जाती है। अगर मोतियाबिंद प्रारंभिक हालत में है तो रोक लगेगी।
खाने वाली औषधियाँ-
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* 500 ग्राम सूखे आँवले गुठली रहित, 500 ग्राम भृंगराज का संपूर्ण पौधा, 100 ग्राम बाल हरीतकी, 200 ग्राम सूखे गोरखमुंडी पुष्प और 200 ग्राम श्वेत पुनर्नवा की जड़ लेकर सभी औषधियों को खूब बारीक पीस लें। इस चूर्ण को अच्छे प्रकार के काले पत्थर के खरल में 250 मिलीलीटर अमरलता के रस और 100 मिलीलीटर मेहंदी के पत्रों के रस में अच्छी तरह मिला लें। इसके बाद इसमें शुद्ध भल्लातक का कपड़छान चूर्ण 25 ग्राम मिलाकर कड़ाही में लगातार तब तक खरल करें, जब तक वह सूख न जाए। इसके बाद इसे छानकर कांच के बर्तन में सुरक्षित रख लें। इसे रोगी की शक्ति व अवस्था के अनुसार 2 से 4 ग्राम की मात्रा में ताजा गोमूत्र से खाली पेट सुबह-शाम सेवन करें।
फायदेमन्द व्यायाम व योगासन-
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* औषधियाँ प्रयोग करने के साथ-साथ रोज सुबह नियमित रूप से सूर्योदय से दो घंटे पहले नित्य क्रियाओं से निपटकर शीर्षासन और आंख का व्यायाम अवश्य करें।
* आंख के व्यायाम के लिए पालथी मारकर पद्मासन में बैठें। सबसे पहले आंखों की पुतलियों को एक साथ दाएँ-बाएँ घुमा-घुमाकर देखें फिर ऊपर-नीचे देखें। इस प्रकार यह अभ्यास कम से कम 10-15 बार अवश्य करें। इसके बाद सिर को स्थिर रखते हुए दोनों आंखों की पुतलियों को एक गोलाई में पहले सीधे फिर उल्टे (पहले घड़ी की गति की दिशा में फिर विपरीत दिशा में) चारों ओर घुमाएँ। इस प्रकार कम से कम 10-15 बार करें। इसके बाद शीर्षासन करें।
कुछ खास हिदायतें--
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* मोतियाबिंद के रोगी को गेहूँ की ताजी रोटी खानी चाहिए। गाय का दूध बगैर चीनी का ही पीएँ। गाय के दूध से निकाला हुआ घी भी सेवन करें। आंवले के मौसम में आंवले के ताजा फलों का भी सेवन अवश्य करें। फलों में अंजीर व गूलर अवश्यक खाएं।
* सुबह-शाम आंखों में ताजे पानी के छींटे अवश्य मारें। मोतियाबिंद के रोगी को कम या बहुत तेज रोशनी में नहीं पढ़ना चाहिए और रोशनी में इस प्रकार न बैठें कि रोशनी सीधी आंखों पर पड़े। पढ़ते-लिखते समय रोशनी बार्ईं ओर से आने दें।
* वनस्पति घी, बाजार में मिलने वाले घटिया-मिलावटी तेल, मांस, मछली, अंडा आदि सेवन न करें। मिर्च-मसाला व खटाई का प्रयोग न करें। कब्ज न रहने दें। अधिक ठंडे व अधिक गर्म मौसम में बाहर न निकलें


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आँखों की देखभाल के कुछ उपाय

आँखों की देखभाल के कुछ उपाय ::
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कम उम्र में चश्मा लग जाना आजकल एक सामान्य सी बात है।...
- पैर के तलवों पर सरसों के तेल की मालिश करके सोएं। सुबह के समय नंगे पैर हरी घास पर चलें व नियमित रूप से अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें आंखों की कमजोरी दूर हो जाएगी।
- एक चने के दाने जितनी फिटकरी को सेंककर सौ ग्राम गुलाबजल में डालें और रोजाना रात को सोते समय इस गुलाबजल की चार-पांच बूंद आंखों में डाले साथ पैर के तलवों पर घी की मालिश करें इससे चश्में के नंबर कम हो जाते हैं।
- आंवले के पानी से आंखें धोने से या गुलाबजल डालने से आंखें स्वस्थ रहती है।
- बादाम की गिरी, बड़ी सौंफ व मिश्री तीनों को समान मात्रा में मिला लें। रोज इस मिश्रण को एक चम्मच मात्रा में एक गिलास दूध के साथ रात को सोते समय लें।
- बेलपत्र का 20 से 50 मि.ली. रस पीने और 3 से 5 बूंद आंखों में काजल की तरह लगाने से रतौंधी रोग में आराम होता है।
- आंखों के हर प्रकार के रोग जैसे पानी गिरना , आंखें आना, आंखों की दुर्बलता, आदि होने पर रात को आठ बादाम भिगोकर सुबह पीस कर पानी में मिलाकर पी जाएं।
- कनपटी पर गाय के घी की हल्के हाथ से रोजाना कुछ देर मसाज करने पर आंखों की रोशनी बढ़ती है।
- रात्रि में सोते समय अरण्डी का तेल या शहद आंखों में डालने से आंखों की सफेदी बढ़ती है।
- नींबू एवं गुलाबजल का समान मात्रा का मिश्रण एक-एक घण्टे के अंतर से आंखों में डालने से आखों को ठंडक मिलती है। हैं।
- त्रिफला चूर्ण को रात्रि में पानी में भीगोकर, सुबह छानकर उस पानी से आंखें धोने से नेत्रज्योति बढ़ती है।
- लघुपाठा नामक लता के पत्तियों के रस को भी नेत्र रोगों में प्रयोग कराने का विधान है।
- रोजाना दिन में कम से कम दो बार अपनी आंखों पर ठंडे पानी के छींटे जरूर मारें। रात को त्रिफला (हरड़, बहेड़ा व आंवला) को भिगोकर सुबह उस पानी से आंखे धोने से आंखों की बीमारियां दूर होती है व ज्योति बढ़ती है।
- एक चम्मच पानी में एक बूंद नींबू का रस डालकर दो-दो बूंद करके आंखों में डालें। इससे आंखें स्वस्थ रहती है।
- आंखों पर चोट लगी हो, जल गई हो, मिर्च मसाला गिरा हो, कोई कीड़ा गिर गया हो, आंख लाल हो, तो दूध गर्म करके उसमें रूई का फुआ डालकर ठंडा करके आंखों पर रखने से लाभ होता है।
- 1से 2 ग्राम मिश्री तथा जीरे को 2 से 5 ग्राम गाय के घी के साथ खाने से एवं लेंडीपीपर को छाछ में घिसकर आंखों में लगाने से रतौंधी में फायदा होता है।
- ठंडी ककड़ी या कच्चे आलू की स्लाइस काटकर दस मिनट आंखों पर रखें। पानी अधिक पीएं। पानी कमी से आंखों पर सूजन दिखाई देती हैं। सोने से 3 घंटे पहले भोजन करना चाहिए। ऐसा करने से आंखे स्वस्थ रहती हैं।
- गुलाब जल का फोहा आंखों पर पर एक घंटा बांधने से गर्मी से होने वाली परेशानी में तुरंत आराम मिल जाता है
- श्याम तुलसी के पत्तों का दो-दो बूंद रस 14 दिन तक आंखों में डालने से रतौंधी रोग में लाभ होता है। इस प्रयोग से आंखों का पीलापन भी मिटता है।
- केला, गन्ना खाना आंखों के लिए हितकारी है। गन्ने का रस पीएं। एक नींबू एक गिलास पानी में पीते रहने से जीवन भर नेत्र ज्योति बनी रहती है।
- हल्दी की गांठ को तुअर की दाल में उबालकर, छाया में सुखाकर, पानी में घिसकर सूर्यास्त से पूर्व दिन में दो बार आंख में काजल की तरह लगाने से आंखों की लालिमा दूर होती है व आंखें स्वस्थ रहती हैं।
- सुबह के समय उठकर बिना कुल्ला किये मुंह की लार (Saliva) अपनी आँखों में काजल की भाँती लगायें. लगातार ६ महीने करते रहने पर चश्मे का नंबर कम हो जाता है.


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प्रेग्‍नेंसी के दौरान उल्‍टी होने पर

प्रेग्‍नेंसी के दौरान उल्‍टी होने पर ::
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१ * एक कागज़ी नींबू को काटकर दो टुकड़े कर लें। दोनों भागों पर काली मिर्च का चूर्णं व नमक बुरक कर आग पर गर्म करके चूसें। आपको लाभ होगा।
२ * सुबह उठकर मुंह धोकर हल्‍के कुनकुने पानी में एक नींबू का रस निचोड़कर खाली पेट कुछ दिनों तक पिएं। इससे उल्टियां आना बंद हो जाएंगी।
३ * अनार के दानों का रस थोड़ा थोड़ा करके चूसने से भी उल्‍टी में बहुत लाभ होता है।
४ * गर्मी का मौसम हो तो बर्फ के पानी का सेवन करने से भी लाभ होता है।
५ * संतरे, मौसमी व पके आम का रस व नारियल पानी भी बहुत फाएदेमंद होता है।
६ * गर्भवती स्‍त्री के पेट पर पानी की पटटी रखने से भी उल्टियों में आराम मिलता है।
७ * गुलकंद और शक्‍कर बराबर मात्रा में मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से भी आराम मिलता है।


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गर्भवती स्त्री को खाने के प्रति अरूचि हो तो


गर्भवती स्त्री को खाने के प्रति अरूचि हो तो...
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१ * हरी धनिया, टमाटर काग़जी़ नींबू, हरी मिर्च, काला नमक, अदरक का सलाद या चटनी बनाकर खाएं। इससे भोजन के प्रति रूचि उत्‍पन्‍न होगी।
२ * सभी प्रकार के खटटे फलों या उनके रस का पानी में मिलाकर पीने से शरीर में दूषित पदार्थों की कमी होती है और रक्‍त क्षारीय होकर खाने के प्रति रूचि पैदा करता है।
३ * रोज नाश्‍ते में पपीते का सेवन करें। इससे भूख खुलकर लगती है।
४ * तरबूज के दस ग्राम बीज पीसकर आधे कप पानी में घोलकर, उसमें ५ ग्राम मिश्री और आधा नींबू का रस मिलाकर भोजन से १५ – २० मिनट पहले लेने से बहुत फाएदा होता है।
५ * धनिया, काला जीरा, सोंठ और सेंधा नमक को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्णं बना लें। फिर २ – २ ग्राम चूर्णं दिन में तीन चार बार लेने से भोजन के प्रति रूचि पैदा होती है।

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लाख दवाओं की एक दवा है बथुआ

लाख दवाओं की एक दवा है बथुआ -----
बथुआ एक हरी सब्जी का नाम है, यह शाक प्रतिदिन खाने से गुर्दों में पथरी नहीं होती। बथुआ आमाशय को बलवान बनाता है, गर्मी से बढ़े हुए यकृत को ठीक करता है। इसकी प्रकृति तर और ठंडी होती है, यह अधिकतर गेहूँ के खेत में गेहूँ के साथ उगता है और जब गेहूँ बोया जाता है, उसी सीजन में मिलता है।
रासायनिक सँघटन :-
बथुए में लोहा, पारा, सोना और क्षार पाया जाता है।
बथुए का साग जितना अधिक से अधिक सेवन किया जाए, निरोग रहने के लिए उपयोगी है। बथुए का सेवन कम से कम मसाले डालकर करें। नमक न मिलाएँ तो अच्छा है, यदि स्वाद के लिए मिलाना पड़े तो सेंधा नमक मिलाएँ और गाय या भैंस के घी से छौंक लगाएँ।
बथुए का उबाला हुआ पानी अच्छा लगता है तथा दही में बनाया हुआ रायता स्वादिष्ट होता है। किसी भी तरह बथुआ नित्य सेवन करें। बथुआ शुक्रवर्धक है।
बथुए की औषधीय प्रकृति:-
कब्ज : बथुआ आमाशय को ताकत देता है, कब्ज दूर करता है, बथुए की सब्जी दस्तावर होती है, कब्ज वालों को बथुए की सब्जी नित्य खाना चाहिए। कुछ सप्ताह नित्य बथुए की सब्जी खाने से सदा रहने वाला कब्ज दूर हो जाता है। शरीर में ताकत आती है और स्फूर्ति बनी रहती है।
पेट के रोग : जब तक मौसम में बथुए का साग मिलता रहे, नित्य इसकी सब्जी खाएँ। बथुए का रस, उबाला हुआ पानी पीएँ, इससे पेट के हर प्रकार के रोग यकृत, तिल्ली, अजीर्ण, गैस, कृमि, दर्द, अर्श पथरी ठीक हो जाते हैं।
* पथरी हो तो एक गिलास कच्चे बथुए के रस में शकर मिलाकर नित्य पिएँ तो पथरी टूटकर बाहर निकल आएगी। जुएँ, लीखें हों तो बथुए को उबालकर इसके पानी से सिर धोएँ तो जुएँ मर जाएँगी तथा बाल साफ हो जाएँगे।
* मासिक धर्म रुका हुआ हो तो दो चम्मच बथुए के बीज एक गिलास पानी में उबालें। आधा रहने पर छानकर पी जाएँ। मासिक धर्म खुलकर साफ आएगा। आँखों में सूजन, लाली हो तो प्रतिदिन बथुए की सब्जी खाएँ।
पेशाब के रोग : बथुआ आधा किलो, पानी तीन गिलास, दोनों को उबालें और फिर पानी छान लें। बथुए को निचोड़कर पानी निकालकर यह भी छाने हुए पानी में मिला लें। स्वाद के लिए नीबू, जीरा, जरा सी काली मिर्च और सेंधा नमक लें और पी जाएँ।
इस प्रकार तैयार किया हुआ पानी दिन में तीन बार पीएँ। इससे पेशाब में जलन, पेशाब कर चुकने के बाद होने वाला दर्द, टीस उठना ठीक हो जाता है, दस्त साफ आता है। पेट की गैस, अपच दूर हो जाती है। पेट हल्का लगता है। उबले हुए पत्ते भी दही में मिलाकर खाएँ।
* मूत्राशय, गुर्दा और पेशाब के रोगों में बथुए का साग लाभदायक है। पेशाब रुक-रुककर आता हो, कतरा-कतरा सा आता हो तो इसका रस पीने से पेशाब खुल कर आता है।
* कच्चे बथुए का रस एक कप में स्वादानुसार मिलाकर एक बार नित्य पीते रहने से कृमि मर जाते हैं। बथुए के बीज एक चम्मच पिसे हुए शहद में मिलाकर चाटने से भी कृमि मर जाते हैं तथा रक्तपित्त ठीक हो जाता है।
* सफेद दाग, दाद, खुजली, फोड़े, कुष्ट आदि चर्म रोगों में नित्य बथुआ उबालकर, निचोड़कर इसका रस पिएँ तथा सब्जी खाएँ। बथुए के उबले हुए पानी से चर्म को धोएँ। बथुए के कच्चे पत्ते पीसकर निचोड़कर रस निकाल लें। दो कप रस में आधा कप तिल का तेल मिलाकर मंद-मंद आग पर गर्म करें। जब रस जलकर पानी ही रह जाए तो छानकर शीशी में भर लें तथा चर्म रोगों पर नित्य लगाएँ। लंबे समय तक लगाते रहें, लाभ होगा।
* फोड़े, फुन्सी, सूजन पर बथुए को कूटकर सौंठ और नमक मिलाकर गीले कपड़े में बांधकर कपड़े पर गीली मिट्टी लगाकर आग में सेकें। सिकने पर गर्म-गर्म बाँधें। फोड़ा बैठ जाएगा या पककर शीघ्र फूट जाएगा।
* बालों को बनाए सेहतमंद
बालों का ओरिजनल कलर बनाए रखने में बथुआ आंवले से कम गुणकारी नहीं है। सच पूछिए तो इसमें विटामिन और खनिज तत्वों की मात्रा आंवले से ज्यादा होती है। इसमें आयरन, फास्फोरस और विटामिन ए व डी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
* दांतों की समस्या में असरदार
बथुए की पत्तियों को कच्चा चबाने से मुंह का अल्सर, श्वास की दुर्गध, पायरिया और दांतों से जुड़ी अन्य समस्याओं में बड़ा फायदा होता है।
*कब्ज को करे दूर
कब्ज से राहत दिलाने में बथुआ बेहद कारगर है। ठिया, लकवा, गैस की समस्या आदि में भी यह अत्यंत लाभप्रद है।
*बढ़ाता है पाचन शक्ति
भूख में कमी आना, भोजन देर से पचना, खट्टी डकार आना, पेट फूलना जैसी मुश्किलें दूर करने के लिए लगातार कुछ सप्ताह तक बथुआ खाना काफी फायदेमंद रहता है।
*बवासीर की समस्या से दिलाए निजात
सुबह शाम बथुआ खाने से बवासीर में काफी लाभ मिलता है। तिल्ली [प्लीहा] बढ़ने पर काली मिर्च और सेंधा नमक के साथ उबला हुआ बथुआ लें। धीरे-धीरे तिल्ली घट जाएगी।
*नष्ट करता है पेट के कीड़े
बच्चों को कुछ दिनों तक लगातार बथुआ खिलाया जाए तो उनके पेट के कीड़े मर जाते हैं



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गर्भवती स्त्री के पैरों में सूजन

गर्भवती स्त्री के पैरों में सूजन ;;
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१ * बरगद के पत्‍तों को घी में चुपड़कर उनको गर्म करके पैरों पर बांधने से गर्भवती स्‍त्री के पैरों की सूजन दूर हो जाती है।
२ * गर्भावस्‍था में पैरों की सूजन में काले जीरे के काढ़े से पैरों को धोने से भी बहुत आराम मिलता है।
३ * अजवायन का बारीक चूर्णं पैरों में धीरे धीरे मलें। आपको बहुत लाभ होगा।
४ * अनन्‍नास को छीलकर उसको गोल गोल टुकड़ों में काट लें। फिर उस पर काली मिर्च का चूर्णं और काला नमक बुरक कर खाने से बहुत फाएदा होता है। इससे मूत्र में वृद्धि होती है, जिससे सूजन कम हो जाती है।


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गर्भावस्‍था में गैस हो तो

गर्भावस्‍था में गैस हो तो...
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१ * ककड़ी, गाजर, टमाटर, मूली, पालक के सलाद में अदरक के बारीक टुकड़े काटकर उस पर नींबू निचोड़कर रोजाना सेवन करने से गर्भवती स्‍त्री को गैस की शिकायत नहीं होगी। साथ ही कब्‍ज भी दूर हो जाएगा।
२ * दो सौ ग्राम फालसे के रस में थोड़ी मिश्री, काला नमक व नींबू मिलाकर खाने से भी गैस की समस्‍या से छुटकारा मिलता है।
३ * बीस ग्राम सेंधा नमक और ५० ग्राम चीनी को एक साथ पीस कर किसी चीज में रख लें। फिर खाना खाने के बाद रोजाना आधा चम्‍मच खाने से गैस की शिकायत दूर हो जाएगी।
४ * गैस की शिकायत होने पर एक कप पानी में आधा नीबू का रस निचोड़कर उसमें थोड़ी सी सौंफ का चूर्णं व काला नमक मिलाकर कुछ दिनों तक रोजाना सेवन करें। इससे लाभ होगा।
५ * एक-एक नग आंवले का मुरब्‍बा सुबह शाम खाकर दूध पीने से भी गैस और अम्‍लपित्‍त की शिकायत दूर हो जाती है।
६ * भोजन से १५ मिनट पहले अजवायन का आधा चम्‍मच चूर्णं थोड़ा सा काला नमक मिलाकर सेवन करें और भोजन के १५ मिनट बाद भी यही प्रयोग करें। आपको आराम मिलेगा।


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वजन बढ़ाये, दुर्बलता को दूर भगाए

वजन बढ़ाये, दुर्बलता को दूर भगाए

दुर्बल शरीर होना भी उपहास का विषय बन जाता हैं।
जिस तरह लोग मोटापे से परेशान हैं उसी तरह लोग पतलेपन से भी परेशान हैं। कुछ लोग बहुत कमज़ोर होते हैं, और वह हम से अक्सर मोटे होने के लिए पूछते हैं, उनके लिए कुछ थोड़े से घरेलु उपाय।
नाश्ते में बादाम,दूध,मक्खन घी का पर्याप्त मात्रा में उपयोग करने से आप तंदुरस्त रहेंगे और वजन भी बढेगा।
आयुर्वेद में अश्वगंधा और सतावरी के उपयोग से वजन बढाने का उल्लेख मिलता है।अश्वगंधा और शतावर का चूर्ण मिक्स कर ले और दूध के साथ एक चम्मच रोज़ाना ले।
अखरोट में आवश्यक मोनोअनसेचुरेटेड फैट होता है जो स्वस्थ कैलोरी को उच्च मात्रा में प्रदान करता है। रोज़ 20 ग्राम अखरोट खाने से वजन तेजी से प्राप्त होगा।
तुरंत वजन बढाना हो तो केला खाइये। रोज़ दो या दो से अधिक केले खाने से आपका पाचन तंत्र भी अच्छा रहेगा। 3 केले खा कर ऊपर से गर्म दूध पिए। कुछ लोग केले को शेक बना कर पीते हैं, ऐसा ना करे।
आलू कार्बोहाइड्रेट और काम्प्लेक्स शुगर का अच्छा स्त्रोत है। ये ज्यादा खाने से शरीर में फैट की मात्रा बढ़ जाती है।
और सुबह उठ कर नित्य कर्म से फ्री हो कर कसरत ज़रूर करे।


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दही का प्रयोग

दही का प्रयोग ---
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दही बालों के लिए एक बेहतरीन कंडीशनर है , दही बालों में जड़ से लगायें और 15-20 मिनट लगे रहने दें फिर बाल धुल लें . यह उपाय बालों की रूसी ,रूखापन दूर कर बालों को चमकदार और मुलायम बनाता है.
बालो में अगर रूसी ज्यादा है तो दही में काली मिर्च पाउडर मिलाकर बालों की जड़ो में लगायें ,थोड़ी देर लगे रहने के बाद धो लें.
दही में काली मुल्तानी मिटटी मिलाकर बालों में लगायें ,यह शैम्पू का काम करता है साथ ही बालों को झड़ने से भी रोकता है.
दही में बेसन, चन्दन पाउडर और थोडा सा हल्दी मिलकर उबटन चेहरे और शरीर पर लगायें ,सूखने पर छुड़ा लें. आप की त्वचा पर बेहतरीन चमक,निखार और स्निग्धता आएगी.
अगर आपकी त्वचा तैलीय है तो दही -शहद मिलाकर चेहरे पर लगायें, यह उपाय चेहरे के अतिरिक्त तैलीय तत्व को दूर करता है .
चेहरे पर होने वाले दानो और मुहांसों के उपचार के लिए खट्टी दही का लेप चेहरे पर लगायें सूखने पर धोएं, फायदा होगा .
आयुर्वेद के अनुसार गाय के दूध से बनने वाला दही बलवर्धक, शीतल, पौष्टिक, पाचक और कफनाशक होता है.
भैंस के दूध से बनने वाला दही रक्त, पित्त, बल-वीर्यवर्धक, स्निग्ध, कफकारक और भारी होता है.
मख्खन निकाला हुआ दही शीतल, हल्का, भूख बढानेवाला, वातकारक और दस्त रोकने वाला होता है.
दही में कैल्सियम सबसे ज्यादा होता है जोकि हड्डी ,दांत ,नाखून आदि का विकास और संरक्षण करता है.
दही में कैल्सियम के अतिरिक्त विटामिन A, B6, B12 ,प्रोटीन, राइबोफ्लेविन पोषक तत्त्व पाए जाते हैं.
दही शरीर में श्वेत-रक्त कणिकाओं (White Blood Corpuscles) की संख्या बढाता है जिससे रोग-प्रतिरोधक क्षमता का तेजी से विकास होता है.
एंटीबायोटिक दवाइयों के सेवन के दुष्प्रभाव से बचने के लिए दही सेवन की सलाह डाक्टर भी देते हैं.
दही पेट के लिए अमृत समान माना गया है , दही आंतों और पेट की गर्मी दूर करता है और पाचन तंत्र को सबल बनाता है.
ह्रदय रोग ,हाई ब्लड प्रेशर ,गुर्दे की बिमारियों में दही का प्रयोग अच्छा माना गया है.
कोलेस्ट्रोल बढ़ने से रक्त-वाहिकाओं में रक्त प्रवाह में अवरोध पैदा होता है, दही कोलेस्ट्रोल बढ़ने से रोकता है.
बवासीर के उपचार के लिए छाछ में अजवायन मिला कर पिए ,लाभ होगा.
सर्दी, खांसी और अस्थमा के रोगियों को दही के सेवन से बचना चाहिए.
दही के ऊपर का पानी भी फायदेमंद माना जाता है, इससे दस्त, कब्ज, पीलिया, दमा के रोगियों को लाभ होता है.
मुह के छालों के उपचार के लिए दिन में 3-4 बार छालों पर दही लगायें.
दही के नुकसानरहित सेवन के लिए दही में काला नमक, सोंठ, पुदीना, जीरा पाउडर मिलाकर खाएं.
बहुत से लोगों को दूध आसानी से नहीं पचता है, वो लोग दही सेवन से दूध के सभी पोषक तत्वों को प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि दही सुपाच्य होता है.
दही हमेशा ताज़ा ही खाना चाहिए. दही के सेवन से नींद भी बढ़िया आती है.
दही से बहुत से बेहतरीन भोज्य पदार्थ बनते है जैसे लस्सी, छाछ, रायता आदि. दही से बहुत तरह के रायता बनाये जा सकते है जैसे ककड़ी, प्याज-खीरा-टमाटर का रायता, बूंदी का रायता, अनानास का रायता आदि. इनका सेवन गर्मियों में लू और डीहाईड्रेशन से बचाता है


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