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Wednesday, October 14, 2015

Breaking News :- ISIS अमेरिका, रूस व् तेल की हकीकत , क्या है अंदरुनी'खेल

Breaking News :- ISIS अमेरिका, रूस व् तेल की हकीकत , क्या है अंदरुनी'खेल


हमारे देश में बहुत से लोग सीरिया में ISIS पर चल रहे रूसी हमलों के विषय में वास्तविक  तथ्यों से अनजान हैं,
हमने इस विषय में इंटरनेट पर विविध न्यूज़ व जानकारी की पड़ताल की और आपको इस विषय को इन तथ्यों के साथ समझते हैं

पहले समझते हैं की ये ISIS कहाँ से आया :-

 सद्दाम हुसैन के बाद ईराक में परिस्थितियां को सम्भालने के लिए अमेरिका ने कुछ बेरोजगार कट्टरपंथी लड़ाकों को हथियार व् धन उपलब्ध कराना चालू कर दिया । 




समय के साथ साथ  धन व् शक्ति के नाम पर और बेरोजगार लोग इन कट्टर पंथी लड़ाकों से जुड़ते गए , और अब यह एक संगठन बन गया, और इसकी धन की आवश्यकता भी बढ़ चुकी थी,
शक्ति व् आधिपत्य की बढ़ती भूख ने नए स्थानों की ओर ध्यान दिया गया व्  लोगों पर अत्याचार कर अपना भय व्याप्त किया गया, महिलाओं व् नशीली दवाओ की  तस्करी भी चालू हो गयी , अमेरिका इन परिस्थतियों पर नजर रखे हुआ था और उसने इन लड़ाकों को तेल के कुओं पर कब्जा करने का सुझाव दे डाला जिससे की उसे  इन लड़ाकों को कम धन देना पड़े,

जब तेल के कुओं पर कब्ज़ा होने लगा तो इन लड़ाकों  ने अंतरराष्ट्रीय दामों से कम दाम पर अमेरिका व् उसके सहयोगियों को तेल बेचना आरम्भ किया,
इस से अमेरिका व् उसके सहयोगियों को तो फायदा होने ही लगा था , लेकिन इन लड़ाकों की महत्वकांक्षाएं भी बढ़ रही थी और अब ये अपने लिए एक देश का निर्माण करना चाहते थे जहाँ इनकी सत्ता हो और इन्होने इस काम को अंजाम देने के लिए इस्लामिक कानून शरीयत का सहारा लेना चालू कर दिया , जिससे अधिक से अधिक बेरोजगार लड़ाके मुफ्त में या कम खर्च में इस काम को अंजाम दे सकें ,

इसके लिए इन लड़ाकों ने  कमजोर बशर अल असद के शासन वाले सीरिया की ओर रुख किया जिसके पास बड़े तेल भण्डार थे , ये तेल भंडार सीरिया की आय का मुख्य  स्रोत थे ,
इन लड़ाकों ने तमाम देशों के मुस्लिम लड़ाकों को इस्लामिक स्टेट के नाम पर दिवा स्वप्न दिखाने चालू कर दीये , जिससे सीरिया की सत्ता आसानी से
हथियाई जा सके
इनकी बढ़ती भूख बड़ा राज्य और अधिक धन की चाहत ने धीरे-धीरे इराक व् सीरिया के बड़े हिस्से पर कब्जा बनाने की चाल को कामयाब कर दिया ,
साथ ही नशीली दवाओं, महिलाओं की तस्करी व् अमेरिका और उसके सहयोगियों को तेल बेचकर अपने को आर्थिक रूप से सुदृढ़ कर लिया,

अमेरिका व् ISIS के इस छुपे गठबंधन के मार्फ़त अमेरिका एवं उसके सहयोगियो व् ISIS, तीनों को परस्पर लाभ मिल रहा था, मतलब एक पक्ष को धन व् शक्ति व् दुसरे को सस्ता तेल,
किन्तु इसका परिणाम ये हुआ की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की मांग कम होती चली गई , क्योंकि बहुत से देशों को अब सस्ता तेल मिल रहा था तो उन्होंने भी अंतर्राष्ट्रीय बाजार से तेल खरीदना बहुत कम कर दिया, जब तेल की मांग गिरी तो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम भी गिरते चले  गए


एक तरफ अमरीका अपने छुपे इरादों में कामयाब हो रहा था मतलब सब कुछ अमेरिका व् उसके सहयोगियों के हित में चल रहा था,

किंतु दुसरी तरफ ISIS की महत्वाकांक्षा भी बढ़ रही थी , और इसके चलते इस्लामिक देश के नाम पर इन्होने  इस्लामिक कट्टरपंथ व् अत्याचारों
के जरिये मीडिया में सुर्खियां बटोरनी चालू  कर दी , और अब विश्व की जनता में ISIS की छवि बिगड़ने लगी ,
तो  अमेरिका ने दिखावे  के लिए ही सही लेकिन इनके विरोध में उतर गया ,
किन्तु कहावत है की सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को अर्थात व् सस्ता तेल देने वाले को कौन मारता है.....

अतः यह विरोध एक औपचारिकता मात्र  बनकर रह गया, और सब कुछ पहले के जैसा  चलने लगा,
इसके बाद आये दिन नई नई विभीत्स, हिंसक व् पैशाचिक कृत्यों के समाचार सुर्ख़ियों में आते रहे, और विश्व को अपनी गम्भीरता प्रदर्शित करने के लिए कभी कभी एक दो ड्रोन भेजकर एक दो मिसाइल लौंच का दिखावा कर वैश्विक महाशक्तियों ने अपने दायित्व की इतिश्री कर ली ।




 



अब ये समझते हैं की रूस के इस युद्द में शामिल होने का क्या कारण है -

यदि आप सोच रहे हैं  की ISIS पर रूस के इन आक्रमण का उद्देश्य मात्र मानवता की रक्षा व् सेवा है तो आप गलत है, रूस भले ही ISIS को समाप्त कर मानवता का भला ही कर रहा हो, किन्तु साथ ही वह अपना महत्वपूर्ण  हित भी साध रहा है,

अब आप पूछेंगे कि भाई ऐसा कैसे ?
तो आपको बता दें की रूस की आय का मुख्य स्रोत हथियार व् तेल बेचकर होने वाली आय है, रूस के पास भी बड़े तेल भंडार हैं ,
, किन्तु आजकल रूसी हथियारों की मांग कम होने के कारण , और अमेरिका द्वारा कई प्रकार के आर्थिक प्रतिबंध लगाने व् तेल के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम कम होने से व् रूसी मुद्रा बुरी तरह टूट गयी है
रूसी मुद्रा के 44% टूटने के फलस्वरूप रूस वह एक बड़ी आर्थिक कठिनाई से जूझ रहा हैं ।
इस संकट को सँभालने के लिए उसे अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में तेल के बढ़े दाम चाहिए 


 इसके लिए ISIS द्वारा चलाये जा रहे तेल के इस ग्रे मार्किट/ सस्ता तेल को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचना बन्द हो जाना  रूस के लिए अति आवश्यक है,

 इसीलिए जैसे ही बशर अल असद ने वलादमीर पुतिन को दोनों देशों के पुराने पारस्परिक सम्बंधों का हवाला देते हुए अपना राज्य व् शासन बचाने के लिए सैन्य कार्यवाही का आग्रह किया तो पुतिन तुरन्त तैयार हो गए, जैसे उनकी मन माफिक मुराद पूरी हो गई ।
क्योंकि इससे  एक ओर रूस चेचन मुस्लिम आतंकी जो ISIS के लिए लड़ रहे थे उनसे निपट सकता था, वहीँ तेल का ग्रे मार्केट नष्ट कर अतन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में तेल की कीमत पुनः वहीं लाकर अपने को आर्थिक संकट से उबार सकता था, साथ ही अमेरिका को दोहरा सबक सिखा सकता था, क्योंकि अमेरिका सुपर पावर है और उसके होते हुए विश्व के सामने ISIS का सफाया कर रूस का नायक के रूप में उभरना , रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने वाले अमेरिका व् उसके सहयोगियों को मिल रहे सस्ते तेल का मार्ग बन्द कर अपना प्रतिशोध भी ले लेना जैसा अच्छा अवसर रूस को नहीं मिल सकता था,

 अतः रूस ने आक्रमण के पहले दिन ही अपने इरादे स्पष्ट कर दिए  की वो गम्भीरता से युद्ध लड़ने उतरा है
Su 27 व् Su 34 ने ताबड़तोड़ हमले करने आरम्भ किये, आक्रमण की तीक्ष्णता का का अनुमान इसी से लगा लीजिये की 24 घण्टों में लड़ाकू विमानों ने 67 ठिकानो को बुरी तरह से नेस्तनाबूद कर दिया व् कैस्पियन सी से भी लम्बी रेंज की सुपर क्रूज़ मिसाइलों द्वारा ISIS पर  आक्रमण कर उसकी कमर तोड़ दी ।
ISIS  आतंकी लड़ाके भागने लगे,
अल कायदा के संग़ठन नुसरत फ़तेह ने रूसी सेनिको को पकड़ कर लाने पर एक लाख सीरियन पाउंड का इनाम रख दिया , जिससे वह पहले की तरह दुनिया के सामने रशियन सैनिकों का सर कलम कर मुस्लिम बेरोजगार लड़ाकों को लुभा सके और अपनी साख कायम कर सके ।


दुसरी तरफ अमेरिका ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया द्वारा रूस के विरुद्ध प्रोपगैंडा चलाने का प्रयास किया किंतु व् निरर्थक ही रहा, उलटे ईराक  भी रूस के साथ  ISIS के खात्मे के लिए जुड़ गया है और  रूस को कार्यवाही करने के लिए एक सैन्य बेस व् हवाई अड्डा देने का निर्णय लिया है, जिससे विश्व पटल पर अमेरिका की छवि को गहरा धक्का लगा है वहीं रूस एक सशक्त जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में उभरा है।
अब इराक ईरान और रूस तीनो ISIS के विरुद्द लड़ रहे हैं



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Sunday, October 11, 2015

Breaking News -आई एस आई एस (ISIS) पर रूस के कहर बरपाने से अमेरिका नाखुश

Breaking News -आई  एस आई  एस (ISIS) पर रूस के कहर बरपाने से अमेरिका नाखुश 

ISIS के सफाये में रूस के हस्तक्षेप से नाराज हुआ अमेरिका
व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जोश अर्नेस्ट ने मंगलवार को संवाददाताओं को बताया, ‘राष्ट्रपति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि -
रूस को 65 सदस्यों वाले उस अंतरराष्ट्रीय गठबंधन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जो आईएसआईएस को नष्ट करना चाहता है

अमरीका का कहना है की सीरिया में रूस सीरियन प्रेजिडेंट बशर समर्थकों पर भी बम बरसा रहा है । 

सीरिया में कई उग्रवादी गुट हैं उनमें से कुछ बशर समर्थक हैं तो कुछ बशर विरोधी । 

रूस बिना देखे सभी उग्रवादी गुटों पर बम बरसा रहा है , जबकि  अमेरिका का कहना है की वह सिर्फ बशर विरोधी और आई  एस आई  एस पर ही बम बरसा रहा । 
रूस का कहना है की हम सिर्फ आई  एस आई  एस पर बम बरसा रहे हैं , जिस से आई  एस आई  एस के रूस में पैर पसारने से पहले ही उसीकी जमीन पर उसका 
पूरा सफाया कर दें । 

देखें - 

रूसी 'सिजलर' मिसाइल ISIS पर बरपा रही कहर, 2,225 मील/घंटे है रफ्तार


कैस्पियन सागर में तैनात हैं रूसी जंगी जहाज

मिसाइल की खासियत
यह मिसाइल अपने साथ 900 lb (408 किलोग्राम) विस्फोटक साथ ले जाने में सक्षम है। Kalibr NK (Klub) 1,550 मील (लगभग 2,500 किमी) की दूरी से अधिकतम 2,225 मील प्रति घंटे (लगभग 3,581 किमी प्रति घंटे) की रफ्तार से टारगेट को निशाना बना सकती है। इस मिसाइल की लंबाई 29 फीट है। नाटो ने इस मिसाइल को 'सिजलर' कोडनेम दिया है।
सुपरसोनिक स्पीड से करती है अटैक
बता दें कि 3M14TE Kalibr NK (Klub) रूस की सबसे पावरफुल क्रूज मिसाइलों में से है। ये लेजर गाइडेड मिसाइल सिस्टम से लैस है। मिसाइल लॉन्च होने के वॉरहेड (जिसमें विस्फोटक सामग्री होती है) टारगेट से 25 मील की दूरी से पहले ही डिटैच हो जाता है। इसके बाद सुपरसोनिक स्पीड (2,225 मील प्रति घंटे) से टारगेट को अटैक करता है। इसे जंगी जहाज या सबमरीन दोनों से लॉन्च किया जा सकता है।
क्रूज मिसाइल से जुड़े कुछ फैक्ट्स
> मिसाइल के कुल पांच वेरिएंट हैं। जिनके नाम में Klub लिखा है, वो एक्सपोर्ट मिसाइल हैं।
> इसका वजन 1,300 किग्रा से लेकर 2,300 किग्रा तक हो सकता है।
> मिसाइल की लंबाई उसके वेरिएंट के हिसाब से है। अधिकतम लंबाई 8.9 मीटर (29 फीट) है।
> यह टर्बोजेट इंजन से लैस है।
> ऑपरेशनल रेंज 2,500 किमी तक है।
> इसे जंगी जहाज या सबमरीन से भी लॉन्च किया जा सकता है।




















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Saturday, October 10, 2015

SNAPDEAL LAUNCHED ITS OFFER ALSO FROM 12TH TO OCTOBER 2015 TO COMPETE WITH #FLIPKART , #AMAZON

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दिवाली की महा सेल की लड़ाई - फ्लिपकार्ट , अमेज़न और स्नैपडील में 

अब आएगा महा मजा - जब मुक़ाबला होगा फ्लिपकार्ट , अमेज़न और 
स्नैपडील में 

फ्लिपकार्ट की 13TH से 17 ऑक्टोबर को बिग निलयन डे की घोषणा के बाद ,
अमेज़न  ने भी 13TH से 17 ऑक्टोबर को दिवाली की महासेल शुरुआत की घोषणा  कर दी है 
और स्नैपडील ने भी , स्नेप डील 12 अक्टूबर से शुरआत कर रहा है 


इस महा मुकाबले में ग्राहकों को पसंदीदा प्रोडक्ट अच्छे दामो में मिलने की पूरी सम्भावना है 





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ताजमहल का नया रहस्य - इतिहासकार पुरुषोत्तम ओक का दावा, यह ताजमहल नहीं बल्कि तेजोमहालय शिव मंदिर है

ताजमहल का नया रहस्य - इतिहासकार पुरुषोत्तम ओक का दावा, यह ताजमहल नहीं बल्कि तेजोमहालय शिव मंदिर है

   

     शाहजहां ने दरअसल, वहां अपनी लूट की दौलत छुपा रखी थी इसलिए उसे कब्र के रूप में प्रचारित किया गया। यदि शाहजहां चकाचौंध कर देने वाले ताजमहल का वास्तव में निर्माता होता तो इतिहास में ताजमहल में मुमताज को किस दिन बादशाही ठाठ के साथ दफनाया गया, उसका अवश्य उल्लेख होता।

   यमुना नदी के किनारे सफेद पत्थरों से निर्मित अलौकिक सुंदरता की 
तस्वीर 'ताजमहल' न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में अपनी पहचान बना चुका है। ताजमहल को दुनिया के सात आश्चर्यों में शामिल किया गया है। हालांकि इस बात को लेकर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं कि ताजमहल को शाहजहां ने बनवाया है या फिर किसी और ने।
      भारतीय इतिहास के पन्नो में यह लिखा है कि ताजमहल को शाहजहां 
ने मुमताज के लिए बनवाया था। वह मुमताज से प्यार करता था। दुनिया भर में ताजमहल को प्रेम का प्रतीक माना जाता है, लेकिन कुछ इतिहासकार इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उनका मानना है कि ताजमहल को शाहजहां ने नहीं बनवाया था वह तो पहले से बना हुआ था। उसने इसमें हेर-फेर करके इसे इस्लामिक लुक दिया था।  इसे शाहजहां और मुमताज का मकबरा माना जाता है। उल्लेखनीय है कि ताजमहल के पूरा होने के तुरंत बाद ही शाहजहां को उसके पुत्र औरंगजेब द्वारा अपदस्थ कर आगरा के किले में कैद कर दिया गया था। शाहजहां की मृत्यु के बाद उसे उसकी पत्नी के बराबर में दफना दिया गया। प्रसिद्ध शोधकर्ता और इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक ने अपनी शोधपूर्ण पुस्तक में तथ्‍यों के माध्यम से ताजमहल के रहस्य से पर्दा उठाया है। 

दौलत छुपाने की जगह या मुमताज का मकबरा? 

  कुछ इतिहासकार पुरुषोत्तम ओक ने अपनी पुस्तक में लिखा हैं कि 
शाहजहां ने दरअसल, वहां अपनी लूट की दौलत छुपा रखी थी इसलिए उसे कब्र के रूप में प्रचारित किया गया। यदि शाहजहां चकाचौंध कर देने वाले ताजमहल का वास्तव में निर्माता होता तो इतिहास में ताजमहल में मुमताज को किस दिन बादशाही ठाठ के साथ दफनाया गया, उसका अवश्य उल्लेख होता।
  ओक अनुसार जयपुर राजा से हड़प किए हुए पुराने महल में दफनाए जाने 
के कारण उस दिन का कोई महत्व नहीं? शहंशाह के लिए मुमताज के कोई मायने नहीं थे। क्योंकि जिस जनानखाने में हजारों सुंदर स्त्रियां हों उसमें भला प्रत्येक स्त्री की मृत्यु का हिसाब कैसे रखा जाए। जिस शाहजहां ने जीवित मुमताज के लिए एक भी निवास नहीं बनवाया वह उसके मरने के बाद भव्य महल बनवाएगा?

  आगरा से 600 किलोमीटर दूर बुरहानपुर में मुमताज की कब्र है, जो आज 
भी ज्यों‍ की त्यों है। बाद में उसके नाम से आगरे के ताजमहल में एक और कब्र बनी और वे नकली है। बुरहानपुर से मुमताज का शव आगरे लाने का ढोंग क्यों किया गया? माना जाता है कि मुमताज को दफनाने के बहाने शहजहां ने राजा जयसिंह पर दबाव डालकर उनके महल (ताजमहल) पर कब्जा किया और वहां की संपत्ति हड़पकर उनके द्वारा लूटा गया खजाना छुपाकर सबसे नीचले माला पर रखा था जो आज भी रखा है।

   मुमताज का इंतकाल 1631 को बुरहानपुर के बुलारा महल में हुआ था। 
वहीं उन्हें दफना दिया गया था। लेकिन माना जाता है कि उसके 6 महीने बाद राजकुमार शाह शूजा की निगरानी में उनके शरीर को आगरा लाया गया। आगरा के दक्षिण में उन्हें अस्थाई तौर फिर से दफन किया गया और आखिर में उन्हें अपने मुकाम यानी ताजमहल में दफन कर दिया गया।
     पुरुषोत्तम अनुसार क्योंकि शाहजहां ने मुमताज के लिए दफन स्थान 
बनवाया और वह भी इतना सुंदर तो इतिहासकार मानने लगे कि निश्‍चित ही फिर उनका मुमताज के प्रति प्रेम होना ही चाहिए। तब तथाकथित इतिहासकारों ने इसे प्रेम का प्रतीक लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने उनकी गाथा को लैला-मजनू, रोमियो-जूलियट जैसा लिखा जिसके चलते फिल्में भी बनीं और दुनियाभर में ताजमहल प्रेम का प्रतीक बन गया।

     मुमताज से विवाह होने से पूर्व शाहजहां के कई अन्य विवाह हुए थे 
अत: मुमताज की मृत्यु पर उसकी कब्र के रूप में एक अनोखा खर्चीला ताजमहल बनवाने का कोई कारण नजर नहीं आता। मुमताज किसी सुल्तान या बादशाह की बेटी नहीं थी। उसे किसी विशेष प्रकार के भव्य महल में दफनाने का कोई कारण नजर नहीं अता। उसका कोई खास योगदान भी नहीं था। उसका नाम चर्चा में इसलिए आया क्योंकि युद्ध के रास्ते के दौरान उसने एक बेटी को जन्म दिया था और वह मर गई थी।

    शाहजहां के बादशाह बनने के बाद ढाई-तीन वर्ष में ही मुमताज की मृत्यु 
हो गई थी। इतिहास में मुमताज से शाहजहां के प्रेम का उल्लेख जरा भी नहीं मिलता है। यह तो अंग्रेज शासनकाल के इतिहासकारों की मनगढ़ंत कल्पना है जिसे भारतीय इतिहासकारों ने विस्तार दिया। शाहजहां युद्ध कार्य में ही व्यस्त रहता था। वह अपने सारे विरोधियों की की हत्या करने के बाद गद्दी पर बैठा था। ब्रिटिश ज्ञानकोष के अनुसार ताजमहल परिसर में ‍अतिथिगृह, पहरेदारों के लिए कक्ष, अश्वशाला इत्यादि भी हैं। मृतक के लिए इन सबकी क्या आवश्यकता?

ताजमहल के हिन्दू मंदिर होने के सबूत...

    इतिहासकार पुरुषोत्त ओक ने अपनी किताब में लिखा है कि ताजमहल 
के हिन्दू मंदिर होने के कई सबूत मौजूद हैं। सबसे पहले यह कि मुख्य गुम्बद के किरीट पर जो कलश वह हिन्दू मंदिरों की तरह है। यह शिखर कलश आरंभिक 1800 ईस्वी तक स्वर्ण का था और अब यह कांसे का बना है। आज भी हिन्दू मंदिरों पर स्वर्ण कलश स्थापित करने की परंपरा है। यह हिन्दू मंदिरों के शिखर पर भी पाया जाता है।
    इस कलश पर चंद्रमा बना है। अपने नियोजन के कारण चन्द्रमा एवं 
कलश की नोक मिलकर एक त्रिशूल का आकार बनाती है, जो कि हिन्दू भगवान शिव का चिह्न है। इसका शिखर एक उलटे रखे कमल से अलंकृत है। यह गुम्बद के किनारों को शिखर पर सम्मिलन देता है।

     इतिहास में पढ़ाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में 
शुरू और लगभग 1653 में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। अब सोचिए कि जब मुमताज का इंतकाल 1631 में हुआ तो फिर कैसे उन्हें 1631 में ही ताजमहल में दफना‍ दिया गया, जबकि ताजमहल तो 1632 में बनना शुरू हुआ था। यह सब मनगढ़ंत बातें हैं जो अंग्रेज और मुस्लिम इतिहासकारों ने 18वीं सदी में लिखी।

     दरअसल 1632 में हिन्दू मंदिर को इस्लामिक लुक देने का कार्य शुरू 
हुआ। 1649 में इसका मुख्य द्वार बना जिस पर कुरान की आयतें तराशी गईं। इस मुख्य द्वार के ऊपर हिन्‍दू शैली का छोटे गुम्‍बद के आकार का मंडप है और अत्‍यंत भव्‍य प्रतीत होता है। आस पास मीनारें खड़ी की गई और फिर सामने स्थित फव्वारे को फिर से बनाया गया।

     ओक ने लिखा है कि जेए मॉण्डेलस्लो ने मुमताज की मृत्यु के 7 वर्ष 
पश्चात voyoges and travels into the east indies नाम से निजी पर्यटन के संस्मरणों में आगरे का तो उल्लेख किया गया है किंतु ताजमहल के निर्माण का कोई उल्लेख नहीं किया। टॉम्हरनिए के कथन के अनुसार 20 हजार मजदूर यदि 22 वर्ष तक ताजमहल का निर्माण करते रहते तो मॉण्डेलस्लो भी उस विशाल निर्माण कार्य का उल्लेख अवश्य करता।

    ताज के नदी के तरफ के दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़े की एक 
अमेरिकन प्रयोगशाला में की गई कार्बन जांच से पता चला है कि लकड़ी का वो टुकड़ा शाहजहां के काल से 300 वर्ष पहले का है, क्योंकि ताज के दरवाजों को 11वीं सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है और फिर से बंद करने के लिए दूसरे दरवाजे भी लगाए गए हैं। ताज और भी पुराना हो सकता है। असल में ताज को सन् 1115 में अर्थात शाहजहां के समय से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था।

       ताजमहल के गुम्बद पर जो अष्टधातु का कलश खड़ा है वह त्रिशूल 
आकार का पूर्ण कुंभ है। उसके मध्य दंड के शिखर पर नारियल की आकृति बनी है। नारियल के तले दो झुके हुए आम के पत्ते और उसके नीचे कलश दर्शाया गया है। उस चंद्राकार के दो नोक और उनके बीचोबीच नारियल का शिखर मिलाकर त्रिशूल का आकार बना है। हिन्दू और बौद्ध मंदिरों पर ऐसे ही कलश बने होते हैं। कब्र के ऊपर गुंबद के मध्य से अष्टधातु की एक जंजीर लटक रही है। शिवलिंग पर जल सिंचन करने वाला सुवर्ण कलश इसी जंजीर पर टंगा रहता था। उसे निकालकर जब शाहजहां के खजाने में जमा करा दिया गया तो वह जंजीर लटकी रह गई। उस पर लॉर्ड कर्जन ने एक दीप लटकवा दिया, जो आज भी है।

कब्रगाह या महल...

कब्रगाह को महल क्यों कहा गया? मकबरे को महल क्यों कहा गया? क्या 
किसी ने इस पर कभी सोचा, क्योंकि पहले से ही निर्मित एक महल को कब्रगाह में बदल दिया गया। कब्रगाह में बदलते वक्त उसका नाम नहीं बदला गया। यहीं पर शाहजहां से गलती हो गई। उस काल के किसी भी सरकारी या शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में 'ताजमहल' शब्द का उल्लेख नहीं आया है। ताजमहल को ताज-ए-महल समझना हास्यास्पद है।

    पुरुषोत्तम लिखते हैं कि 'महल' शब्द मुस्लिम शब्द नहीं है। अरब, 
ईरान, अफगानिस्तान आदि जगह पर एक भी ऐसी मस्जिद या कब्र नहीं है जिसके बाद महल लगाया गया हो। यह ‍भी गलत है कि मुमताज के कारण इसका नाम मुमताज महल पड़ा, क्योंकि उनकी बेगम का नाम था मुमता-उल-जमानी। यदि मुमताज के नाम पर इसका नाम रखा होता तो ताजमहल के आगे से मुम को हटा देने का कोई औचित्य नजर नहीं आता।


     विंसेंट स्मिथ अपनी पुस्तक 'Akbar the Great Moghul' में लिखते हैं,
 'बाबर ने सन् 1630 में आगरा के वाटिका वाले महल में अपने उपद्रवी जीवन से मुक्ति पाई। वाटिका वाला वो महल यही ताजमहल था। यह इतना विशाल और भव्य था कि इसके जितान दूसरा कोई भारत में महल नहीं था।   बाबर की पुत्री गुलबदन 'हुमायूंनामा' नामक अपने ऐतिहासिक वृत्तांत में ताज का संदर्भ 'रहस्य महल' (Mystic House) के नाम से देती है।


 ताज नहीं पहले था तेजो महालय...

     ओक के अनुसार प्राप्त सबूतों के आधार पर ताजमहल का निर्माण 
राजा परमर्दिदेव के शासनकाल में 1155 अश्विन शुक्ल पंचमी, रविवार को हुआ था। अत: बाद में मुहम्मद गौरी सहित कई मुस्लिम आक्रांताओं ने ताजमहल के द्वार आदि को तोड़कर उसको लूटा। यह महल आज के ताजमहल से कई गुना ज्यादा बड़ा था और इसके तीन गुम्बद हुआ करते थे। हिन्दुओं ने उसे फिर से मरम्मत करके बनवाया, लेकिन वे ज्यादा समय तक इस महल की रक्षा नहीं कर सके।


    पुरषोत्तम नागेश ओक ने ताजमहल पर शोधकार्य करके बताया कि 
ताजमहल को पहले 'तेजो महल' कहते थे। वर्तमन ताजमहल पर ऐसे 700 चिन्ह खोजे गए हैं जो इस बात को दर्शाते हैं कि इसका रिकंस्ट्रक्शन किया गया है। इसकी मीनारे बहुत बाद के काल में निर्मित की गई। 


   वास्तुकला के विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में 
'तेज-लिंग' का वर्णन आता है। ताजमहल में 'तेज-लिंग' प्रतिष्ठित था इसीलिए उसका नाम 'तेजोमहालय' पड़ा था। शाहजहां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख 'ताज-ए-महल' के नाम से किया है, जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम 'तेजोमहालय' से मेल खाता है। इसके विरुद्ध शाहजहां और औरंगजेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर भी प्रयोग न करते हुए उसके स्थान पर पवित्र मकबरा शब्द का ही प्रयोग किया है।


    ओक के अनुसार अनुसार हुमायूं, अकबर, मुमताज, एतमातुद्दौला और 
सफदरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिन्दू महलों या मंदिरों में दफनाया गया है। इस बात को स्वीकारना ही होगा कि ताजमहल के पहले से बने ताज के भीतर मुमताज की लाश दफनाई गई न कि लाश दफनाने के बाद उसके ऊपर ताज का निर्माण किया गया।

     'ताजमहल' शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द 'तेजोमहालय' शब्द 
का अपभ्रंश है। तेजोमहालय मंदिर में अग्रेश्वर महादेव प्रतिष्ठित थे। देखने वालों ने अवलोकन किया होगा कि तहखाने के अंदर कब्र वाले कमरे में केवल सफेद संगमरमर के पत्थर लगे हैं जबकि अटारी व कब्रों वाले कमरे में पुष्प लता आदि से चित्रित पच्चीकारी की गई है। इससे साफ जाहिर होता है कि मुमताज के मकबरे वाला कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगृह है। संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं, हिन्दू मंदिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है।


तेजो महालय होने के सबूत...

     तेजोमहालय उर्फ ताजमहल को नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता 
था, क्योंकि उसके जलहरी को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था। यह मंदिर विशालकाय महल क्षेत्र में था। आगरा को प्राचीनकाल में अंगिरा कहते थे, क्योंकि यह ऋषि अंगिरा की तपोभूमि थी। अं‍गिरा ऋषि भगवान शिव के उपासक थे। बहुत प्राचीन काल से ही आगरा में 5 शिव मंदिर बने थे। यहां के निवासी सदियों से इन 5 शिव मंदिरों में जाकर दर्शन व पूजन करते थे। लेकिन अब कुछ सदियों से बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, मनकामेश्वर और राजराजेश्वर नामक केवल 4 ही शिव मंदिर शेष हैं। 5वें शिव मंदिर को सदियों पूर्व कब्र में बदल दिया गया। स्पष्टतः वह 5वां शिव मंदिर आगरा के इष्टदेव नागराज अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर ही हैं, जो कि तेजोमहालय मंदिर उर्फ ताजमहल में प्रतिष्ठित थे।

    इतिहासकार ओक की पुस्तक अनुसार ताजमहल के हिन्दू निर्माण का 
साक्ष्य देने वाला काले पत्थर पर उत्कीर्ण एक संस्कृत शिलालेख लखनऊ के वास्तु संग्रहालय के ऊपर तीसरी मंजिल में रखा हुआ है। यह सन् 1155 का है। उसमें राजा परमर्दिदेव के मंत्री सलक्षण द्वारा कहा गया है कि 'स्फटिक जैसा शुभ्र इन्दुमौलीश्‍वर (शंकर) का मंदिर बनाया गया। (वह इ‍तना सुंदर था कि) उसमें निवास करने पर शिवजी को कैलाश लौटने की इच्छा ही नहीं रही। वह मंदिर आश्‍विन शुक्ल पंचमी, रविवार को बनकर तैयार हुआ।

     ताजमहल के उद्यान में काले पत्थरों का एक मंडप था, यह एक 
ऐतिहासिक उल्लेख है। उसी में वह संस्कृत शिलालेख लगा था। उस शिलालेख को कनिंगहम ने जान-बूझकर वटेश्वर शिलालेख कहा है ताकि इतिहासकारों को भ्रम में डाला जा सके और ताजमहल के हिन्दू निर्माण का रहस्य गुप्त रहे। आगरे से 70 मिल दूर बटेश्वर में वह शिलालेख नहीं पाया गया अत: उसे बटेश्वर शिलालेख कहना अंग्रेजी षड्‍यंत्र है।

     शाहजहां ने तेजोमहल में जो तोड़फोड़ और हेराफेरी की, उसका एक सूत्र 
सन् 1874 में प्रकाशित पुरातत्व खाते (आर्किओलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) के वार्षिक वृत्त के चौथे खंड में पृष्ठ 216 से 17 पर अंकित है। उसमें लिखा है कि हाल में आगरे के वास्तु संग्रहालय के आंगन में जो चौखुंटा काले बसस्ट का प्रस्तर स्तंभ खड़ा है वह स्तंभ तथा उसी की जोड़ी का दूसरा स्तंभ उसके शिखर तथा चबूतरे सहित कभी ताजमहल के उद्यान में प्रस्थापित थे। इससे स्पष्ट है कि लखनऊ के वास्तु संग्रहालय में जो शिलालेख है वह भी काले पत्थर का होने से ताजमहल के उद्यान मंडप में प्रदर्शित था।

      हिन्दू मंदिर प्रायः नदी या समुद्र तट पर बनाए जाते हैं। ताज भी 
यमुना नदी के तट पर बना है, जो कि शिव मंदिर के लिए एक उपयुक्त स्थान है। शिव मंदिर में एक मंजिल के ऊपर एक और मंजिल में दो शिवलिंग स्थापित करने का हिन्दुओं में रिवाज था, जैसा कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और सोमनाथ मंदिर में देखा जा सकता है। ताजमहल में एक कब्र तहखाने में और एक कब्र उसके ऊपर की मंजिल के कक्ष में है तथा दोनों ही कब्रों को मुमताज का बताया जाता है।

     जिन संगमरमर के पत्थरों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं उनके रंग 
में पीलापन है जबकि शेष पत्थर ऊंची गुणवत्ता वाले शुभ्र रंग के हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि कुरान की आयतों वाले पत्थर बाद में लगाए गए हैं। ताज के दक्षिण में एक प्राचीन पशुशाला है। वहां पर तेजोमहालय की पालतू गायों को बांधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गाय कोठा होना एक असंगत बात है।

     ताजमहल में चारों ओर चार एक समान प्रवेशद्वार हैं, जो कि हिन्दू 
भवन निर्माण का एक विलक्षण तरीका है जिसे कि चतुर्मुखी भवन कहा जाता है। ताजमहल में ध्वनि को गुंजाने वाला गुम्बद है। हिन्दू मंदिरों के लिए गूंज उत्पन्न करने वाले गुम्बजों का होना अनिवार्य है। बौद्धकाल में इसी तरह के शिव मंदिरों का अधिक निर्माण हुआ था। ताजमहल का गुम्बज कमल की आकृति से अलंकृत है। आज हजारों ऐसे हिन्दू मंदिर हैं, जो कि कमल की आकृति से अलंकृत हैं।  ताजमहल के गुम्बज में सैकड़ों लोहे के छल्ले लगे हुए हैं जिस पर बहुत ही कम लोगों का ध्यान जा पाता है। इन छल्लों पर मिट्टी के आलोकित दीये रखे जाते थे जिससे कि संपूर्ण मंदिर आलोकमय हो जाता था। ताजमहल की चारों ‍मीनारें बाद में बनाई गईं।


 ताजमहल का गुप्त स्थान...

   इतिहासकार ओक के अनुसार ताज एक सात मंजिला भवन है। शहजादे 
औरंगजेब के शाहजहां को लिखे पत्र में भी इस बात का विवरण है। भवन की चार मंजिलें संगमरमर पत्थरों से बनी हैं जिनमें चबूतरा, चबूतरे के ऊपर विशाल वृत्तीय मुख्य कक्ष और तहखाने का कक्ष शामिल है। मध्य में दो मंजिलें और हैं जिनमें 12 से 15 विशाल कक्ष हैं। संगमरमर की इन चार मंजिलों के नीचे लाल पत्थरों से बनी दो और मंजिलें हैं, जो कि पिछवाड़े में नदी तट तक चली जाती हैं। सातवीं मंजिल अवश्य ही नदी तट से लगी भूमि के नीचे होनी चाहिए, क्योंकि सभी प्राचीन हिन्दू भवनों में भूमिगत मंजिल हुआ करती है।


नदी तट के भाग में संगमरमर की नींव के ठीक नीचे लाल पत्थरों वाले 22 
कमरे हैं जिनके झरोखों को शाहजहां ने चुनवा दिया है। इन कमरों को, जिन्हें कि शाहजहां ने अतिगोपनीय बना दिया है, भारत के पुरातत्व विभाग द्वारा तालों में बंद रखा जाता है। सामान्य दर्शनार्थियों को इनके विषय में अंधेरे में रखा जाता है। इन 22 कमरों की दीवारों तथा भीतरी छतों पर अभी भी प्राचीन हिन्दू चित्रकारी अंकित हैं। इन कमरों से लगा हुआ लगभग 33 फुट लंबा गलियारा है। गलियारे के दोनों सिरों में एक-एक दरवाजे बने हुए हैं। इन दोनों दरवाजों को इस प्रकार से आकर्षक रूप से ईंटों और गारे से चुनवा दिया गया है कि वे दीवार जैसे प्रतीत हों।

     स्पष्टत: मूल रूप से शाहजहां द्वारा चुनवाए गए इन दरवाजों को कई 
बार खुलवाया और फिर से चुनवाया गया है। सन् 1934 में दिल्ली के एक निवासी ने चुनवाए हुए दरवाजे के ऊपर पड़ी एक दरार से झांककर देखा था। उसके भीतर एक वृहत कक्ष (huge hall) और वहां के दृश्य को‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ देखकर वह हक्का-बक्का रह गया तथा भयभीत-सा हो गया। वहां बीचोबीच भगवान शिव का चित्र था जिसका सिर कटा हुआ था और उसके चारों ओर बहुत सारी मूर्तियों का जमावड़ा था। ऐसा भी हो सकता है कि वहां पर संस्कृत के शिलालेख भी हों। यह सुनिश्चित करने के लिए कि ताजमहल हिन्दू चित्र, संस्कृत शिलालेख, धार्मिक लेख, सिक्के तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं जैसे कौन-कौन-से साक्ष्य छुपे हुए हैं, उसकी सातों मंजिलों को खोलकर साफ-सफाई कराने की नितांत आवश्यकता है।


फ्रांसीसी यात्री बेर्नियर ने लिखा है कि ताज के निचले रहस्यमय कक्षों में 
गैर मुस्लिमों को जाने की इजाजत नहीं थी, क्योंकि वहां चौंधिया देने वाली वस्तुएं थीं। यदि वे वस्तुएं शाहजहां ने खुद ही रखवाई होती तो वह जनता के सामने उनका प्रदर्शन गौरव के साथ करता, परंतु वे तो लूटी हुई वस्तुएं थीं और शाहजहां उन्हें अपने खजाने में ले जाना चाहता था इसीलिए वह नहीं चाहता था कि कोई उन्हें देखे।  नदी के पिछवाड़े में हिन्दू बस्तियां, बहुत से हिन्दू प्राचीन घाट और प्राचीन हिन्दू शवदाह गृह हैं। यदि शाहजहां ने ताज को बनवाया होता तो इन सबको नष्ट कर दिया गया होता।


राजा जयसिंह से छीना था यह महल...

  पुरुषोत्तम ओक के अनुसार बादशाहनामा, जो कि शाहजहां के दरबार के 
लेखा-जोखा की पुस्तक है, में स्वीकारोक्ति है (पृष्ठ 403 भाग 1) कि मुमताज को दफनाने के लिए जयपुर के महाराजा जयसिंह से एक चमकदार, बड़े गुम्बद वाला विशाल भवन (इमारत-ए-आलीशान व गुम्बज) लिया गया, जो कि राजा मानसिंह के भवन के नाम से जाना जाता था।


    जयपुर के पूर्व महाराजा ने अपनी दैनंदिनी में 18 दिसंबर, 1633 को 
जारी किए गए शाहजहां के ताज भवन समूह को मांगने के बाबत दो फरमानों (नए क्रमांक आर. 176 और 177) के विषय में लिख रखा है। यह बात जयपुर के उस समय के शासक के लिए घोर लज्जाजनक थी और इसे कभी भी आम नहीं किया गया।


    ताजमहल के बाहर पुरातत्व विभाग में रखे हुए शिलालेख में वर्णित है 
कि शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल को दफनाने के लिए एक विशाल इमारत बनवाई जिसे बनाने में सन् 1631 से लेकर 1653 तक 22 वर्ष लगे। यह शिलालेख ऐतिहासिक घपले का नमूना है।


     ओक लिखते हैं कि शहजादा औरंगजेब द्वारा अपने पिता को लिखी 
गई चिट्ठी को कम से कम तीन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक वृत्तांतों में दर्ज किया गया है जिनके नाम 'आदाब-ए-आलमगिरी', 'यादगारनामा' और 'मुरुक्का-ए-अकबराबादी' (1931 में सैद अहमद, आगरा द्वारा संपादित, पृष्ठ 43, टीका 2) हैं। उस चिट्ठी में सन् 1662 में औरंगजेब ने खुद लिखा है कि मुमताज के सात मंजिला लोकप्रिय दफन स्थान के प्रांगण में स्थित कई इमारतें इतनी पुरानी हो चुकी हैं कि उनमें पानी चू रहा है और गुम्बद के उत्तरी सिरे में दरार पैदा हो गई है। इसी कारण से औरंगजेब ने खुद के खर्च से इमारतों की तुरंत मरम्मत के लिए फरमान जारी किया और बादशाह से सिफारिश की कि बाद में और भी विस्तारपूर्वक मरम्मत कार्य करवाया जाए। यह इस बात का साक्ष्य है कि शाहजहां के समय में ही ताज प्रांगण इतना पुराना हो चुका था कि तुरंत मरम्मत करवाने की जरूरत थी।


     शाहजहां के दरबारी लेखक मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी ने अपने 
'बादशाहनामा' में मुगल शासक बादशाह का संपूर्ण वृत्तांत 1000 से ज्यादा पृष्ठों में लिखा है जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है कि शाहजहां की बेगम मुमताज-उल-मानी जिसे मृत्यु के बाद बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके 6 माह बाद तारीख 15 मदी-उल-अउवल दिन शुक्रवार को अकबराबाद आगरा लाया गया फिर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) में पुनः दफनाया गया।


     लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों की इस आलीशान 
मंजिल से बेहद प्यार करते थे, पर बादशाह के दबाव में वे इसे देने के लिए तैयार हो गए थे। इस बात की पुष्टि के लिए यहां यह बताना अत्यंत आवश्यक है कि जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनों आदेश अभी तक रखे हुए हैं, जो शाहजहां द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा जयसिंह को दिए गए थे










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ताज महल , आगरा (TAJ MAHAL , AGRA )



ताज महल , आगरा (TAJ MAHAL , AGRA )



प्रस्तुतकर्ता – हरेन्द्र धर्रा (Blog - http://yaadsafarki.blogspot.in/2015/03/taj-mahal-agra_6.html

काफी दिन से या यूँ कहिये कि कई वर्षों से इच्छा थी कि एक बार , पूरी दुनिया में भारत को एक अलग पहचान देने वाले , अद्भुत प्रेम की निशानी , दुनिया के सात अजूबों में से एक , बेहतरीन कारीगरी की मिसाल , बेहतरीन वास्तुकला के उदाहरण ताजमहल को प्रत्यक्ष आँखों से देख कर आए | डिस्कवरी या नेशनल ज्योग्राफिक चैनल पर जब कोई प्रोग्राम आता या कोई अपने आगरा के अनुभव बताता या फिर कहीं ताज की तस्वीर दिख जाती तो इच्छा और प्रबल हो जाती | वैसे कई बार योजना बन चुकी थी , लेकिन सिरे कोई नहीं चढ़ पाई थी | वैसे भी हम सलमान खान तो है नहीं के एक बार जो कमेन्टमेंट कर दी फिर अपने आप की भी न सुनु ? सबकी सुननी पड़ती है वो भी कान खोल कर |
                         अबकी बार इच्छा ने पूरा जोर मारा पूरी एडी से चोटी तक , तो फरवरी में जाने की बात हुई | कहीं ये भी योजना ही न रह जाये इसलिए हम ने आरक्षण करा लिया | जाने का भी , आने का भी , ताज की टिकट भी ऑनलाइन करा ली थी | अब तो कैंसिल होने से रहा  प्रोग्राम | मैं और नितीश जाने वाले थे लेकिन नितीश का एक दोस्त भी चलने को तैयार हो गया था | तो तीन लोगो की टिकट हो चुकी थी | हमारी योजना थी कि २१ को शाम को निकलेंगे २२ को सुबह तीन चार बजे पहुँच जाएँगे  ताज देखकर दोपहर साढ़े तीन की ट्रेन है उससे वापस आ जाएँगे | २३ को मैं ट्रेक्टर चला पाउँगा और वो दोनों ऑफिस चले जाएँगे |
                              जाने से कई दिन पहले मेरे भाई का फोन आया की गो आइबिबो वाले एक हजार का कूपन दे रहें हैं साइन अप करने पर | झट से आईडी बनाइ और आगरा में होटल देखा | एक होटल में रूम था एक हजार रुपए में , कर दिया बुक | होटल मुश्किल से 50 मीटर दूर था ताज महल से | वैसे तो हजार रुपए बहुत होते हैं लेकिन हमारी क्या जेब से निकाल रहे थे ? तो अब इन्तजार था २१ तारीख का | हमारी ट्रेन रात को 11 बजे निजामुद्दीन से थी | नितीश और राहुल का ऑफिस पीरागढ़ी था और निजामुद्दीन वाली ट्रेन शकूर बस्ती से शाम को जाती है | तो मैं अपना ट्रेक्टर का काम पूरा करके शाम को शकूर बस्ती पहुँच गया और उधर से वो दोनों ऑफिस से थोडा जल्दी छुट्टी लेकर आ गए | समय से पहले हम निजामुद्दीन पहुँच गए थे | इधर उधर घूम कर ,पुराने किस्से याद करके हमने समय काट लिया |
                                     निरधारित समय पर गाड़ी आ गयी | एक लड़का कोई पंद्रह सोलह साल का पैरों को घसीटता हुआ नीचे फर्श पर आ रहा था और पैसे मांग रहा था , मेरे पास आया तो मैंने मना कर दिया | मैं क्यों की लास्ट वाली सीट पे बैठा था और आगे कोई सीट नहीं थी ,वो खड़ा हुआ , जी हाँ ! वो लड़का जो पैरो से लाचार था खड़ा हुआ और जाकर बहार निकाल गया | बड़ा अच्छा एक्टर था | कुछ रहम दिल वालों को ठग के ले गया था वो | मेरी और नितीश की सीट एक बर्थ में थी और राहुल की दुसरे में | नितीश के पास वाली सीट पर जो लड़का बैठा था हमने उससे कहा की हमारी एक सीट दुसरे डिब्बे में है तो हमारा दोस्त यहाँ बैठ जायेगा आप वहां चले जाइये | उसने कहा की ये मेरी सीट नहीं है | कोई बात नहीं , वहां एक और भी बैठा था हमने उससे भी यही बात की तो बोला के ठीक है | पर थोड़ी देर बाद एक जना और आया और तब पता चला के सीट का असली मालिक तो ये है | हमने उससे बात नहीं की | दो तीन घंटे की तो बात थी | राहुल नितीश एक सीट पर ही बैठ गए | निर्धारित समय पर हम आगरा पहुँच गए |
                                    बाहर आकर ऑटो किया और होटल की तरफ चल पड़े | होटल के पास जाकर ऑटो वाला बोला की आपका रूम बुक है तो ही जाना नहीं तो न तो अभी रूम मिलेगा और बाहर घूमोगे तो पुलिस वाले तंग करेंगे | हमने पूछा की क्यों तो बोला की ताजमहल के बिलकुल पास में रात को किसी को घूमने नहीं देते और आपका होटल बिल्कुल पास में है ताज के | हमने कहा के हमारा रूम बुक है | वो बोला के तब तो ठीक है l हम तीन बजे होटल के बाहर थे | दरवाजा खटखटाया तो एक लड़का बाहर आया | हमने कहा की हमारा कमरा है ,तो उसने कहा की भाई कमरा खाली नहीं है | हमने कहा की नहीं भाई हमने तो पहले से बुक करवा रखा है | तो वो बोला भाई कुछ भी हो रूम नहीं है | काफी देर तक राहुल उससे भिड़ा रहा | लेकिन कोई वो कहता रहा की दस बजे से पहले कोई रूम नहीं है बुक कर रखा है तो जहाँ से किया था वहां जाओ | कोई फायदा नहीं हुआ तो उसने कहा चाहो तो गार्डन में बैठ जाओ | गार्डन में एक छोटा सा रेस्टोरेंट था | कुर्सियां सीधी की और बैठे कर ही मेज पर सो गए l राहुल बार बार हमें दुत्कार रहा था | लेकिन हमारे मन में तो ये था की कम से कम बैठने को तो जगह मिल गयी | फिर जब कुछ रौशनी सी हुई तो एक कपल एक रूम खाली कर के गया | हमने उस लड़के से जो हमें चोकीदार लग रहा था | हमने कहा की भाई अब तो रूम खाली हो गया अब तो दे | उसने कहा की नहीं अभी नहीं दस बजे | लेकिन थोड़ी देर बाद उसने साफ़ करके और चादर बदल कर हमें रूम दे दिया | वैसे भी उनका चेक इन का समय १० बजे था पर उसने हमें ५ बजे रूम दे दिया | मैं सोया नहीं बल्कि फ्रेश होकर बहार निकल गया |
                                            टिकट तो हमारे पास थे ताज के लेकिन ऑनलाइन टिकट में सिर्फ तीन घंटे का समय होता है | हमारा नो से बारह तक था | जबकि काउंटर से ख़रीदे टिकट का समय पूरे दिन का होता है | मैं चाहता था की सूर्योदय हम ताज परिसर में ही देखें  मैं साढ़े पांच बजे जाकर लाइन में लग गया | टिकट मिलने का समय था साढ़े छे बजे का | साढ़े पांच बजे भी मुझसे आगे कई लोग थे | खैर साढ़े छे बजे काउंटर खुला और मेरा नम्बर आया तो मैंने सौ का नोट दिया उसने फेंक कर वापस कर दिया की खुल्ले लाओ | यार जब हैं ही नहीं तो कहाँ से लाऊं खुल्ले ? मैंने कहा चालीस रुपए तू रख पर मुझे टिकट दे | साथ वाली लाइन में जो लड़का था वो हंस पड़ा और सारा मामला गलत करा दिया | वो और भड़क गया शायद बेइज्जती महसूस कर गया जबकि मेरा ऐसा इरादा नहीं था | मुझे मेरा एक घंटा पानी में जाता लग रहा था की एक लड़का साइड से आया और बोला भाई दो टिकट मेरी भी ले दो ना | अब मुझे पांच टिकट मिल गयी | दो उस भाई को दी और उसने मेरा धन्यवाद किया और मैंने उसका |
                                 फिर मैं भाग के होटल गया और नितीश को जगाया | राहुल ने कहा की वो नहा के आएगा | तब तक रिसेप्सन पे वोही लड़का जो हमें चौकीदार लग रहा था नहा धो के बैठा था | असल में वो मनेजर का लड़का था | उसने फार्म भरवाया आईडी प्रूफ की कॉपी लगा के साईन वगरह करवाए | फिर हम दोनों ताजमहल की तरफ चल पड़े | काफी लम्बी लाइन थी | देशी से अधिक विदेशी पर्यटक थे |  लेकिन उनकी लाइन अलग थी | मन में काफी उत्सुकता थी | उस बेहतरीन ईमारत को देखने की जो मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने अपनी तीसरी पत्नी अर्जुमंद बानो जिसका दूसरा नाम मुमजाज अधिक प्रचलित है , की याद में बनवाई थी | अजीब बात है प्रेम की मिसाल माने जाने वाली इस जोड़ी का अजीब सत्य ये भी है की मुमताज शाहजहाँ की तीसरी पत्नी थी परन्तु आखिरी नहीं | क्योंकि मुमताज के बाद भी उसने छे विवाह और भी किये थे | मुमताज शाहजहाँ की सोतेली माँ नूरजहाँ के भाई की लड़की थी | हुई तो एक तरीके से मामा की लड़की ही न | पर छोड़िये हमको उनकी रिश्तेदारी में घुसकर क्या करना है ? चिड़िया की आँख पर फोकस करते है | मुमताज हर लड़ाई में या दौरे पर शाहजहाँ के साथ जाती थी | सन १६३१ में जब शाहजहाँ दक्कन के विद्रोह को दबाने के अभियान पर था | तो रस्ते में बुरहान पुर में अपनी चोहदवीं संतान को जन्म देते समय मुमताज की मृत्यु हो गयी |  उस समय उसे वहीँ दफना दिया गया था बाद में उसके अवशेषों को ताज महल में लाया गया था  | अपनी सबसे प्रिय रानी की याद में दुनिया का सबसे शानदार मकबरा बनाने की चाहत ने ही दुनिया को ये नायाब तोहफा दिया |  सन १६३२ में ताजमहल का निर्माण शुरू हुआ और बीस वर्षों में बीस हजार लोगो की मेहनत ने इस सपने को मूर्त रूप दिया | सन १६५२ में ये बन कर तैयार हुआ था | जब ताज को बनाया गया तो उस समय इसमें चार करोड़ रुपए लगे थे जब सोने का मूल्य पंद्रह रुपए तौला था | तो विचार कर के देखिये की जनता पर टैक्स का कितना बोझ बढ़ा होगा | कहते है शाहजहाँ ने उन सब कारीगरों के हाथ कटवा दिए थे ताकि वे दूसरा ताज न बना सके | मुझे थोडा संदेह है इस बात पर |
                                खैर जो भी हो एक दो घंटे हम पूरा परिसर घूमने और थोड़ी बहुत वाहवाही करने के बाद हम वापस होटल में गए और खाना खाकर वर्ल्ड कप का भारत बनाम दक्षिण अफ्रीका का मैच देखने लगे | मैच ख़तम करके हम निकल पड़े ताज नेचर वाक् की तरफ | काफी बढ़िया जगह है | पेड़ों के बीच से ताज को देखना काफी अच्छा लगा | शाम को हम आगरा छावनी रेलवे स्टेशन पर थे | हमारी ट्रेन का समय तो दोपहर तीन का था पर हमें पता था की वो रोज चार पांच घंटे लेट होती है तो कोई जल्दी नहीं थी हमें | लेकिन आज तो ट्रेन को जैसे हमसे दुश्मनी हो गयी थी |  छे घंटे लेट , आठ घंटे लेट , दस घंटे लेट | राहुल फिर शुरू हो चुका था की यही ट्रेन मिली थी अगेरा वगेरा | मैं तो जा रहा हूँ | जा भाई ! तेरी यात्रा मंगलमय हो | वो दूसरी ट्रेन में चला गया | भगवान कसम इतनी ख़ुशी मुझे ताज देख कर नहीं हुई थी जितनी राहुल के जाने से हुई |
                             ट्रेन को देखा तो एक एक घंटा करके बारह घंटे लेट आई | चलो आ तो गयी | हमारी मंजिल तक पहुँचते पहुँचते ट्रेन सोलह घंटे लेट हो चुकी थी | मैं तो संकल्प कर चुका था की तूफ़ान एक्सप्रेस में कभी नहीं चढूँगा | अगला दिन ट्रेन की भेंट चढ़ चुका था | न मैं काम कर पाया और ना नितीश ऑफिस जा पाया |

 समाप्त : अब कुछ चित्र देखिये  





Taj Mehal Entrance - ताज परिसर का दरवाजा 



ताज परिसर में सूर्योदय 



ताज के चबूतरे से चारबाग का नजारा 




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Thursday, October 8, 2015

माँ का आँचल


माँ का आँचल
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दिन भर कमरतोड़ मेहनत करने के बाद घर में घुसते हुए अपनी पत्नी से, निठल्ले बैठे उनके पति ने कहा —अरे सुनो आज दिहाड़ी(दैनिक मजदूरी) तो मिल हीं गया होगा, चल जल्दी से बीस रुपए का नोट निकाल, इंतज़ार में मैं कब से बैठा पड़ा हूँ. मालूम है न कई दिन हो गए कंठ सूख रहा है. अध्धा या पौआ कुछ तो ले आऊं, बेचैन हो रहा हूँ. पत्नी के कान में जैसे हीं ये आवाज आई, वो बुदबुदाने लगी और बोली — निठल्ला खुद तो दिन भर कुछ करता नहीं है और बड़ा आया मुझसे पैसा माँगने. और फिर बोल पड़ी, नहीं हैं मेरे पास रुपए तुम्हे देने के लिए. इतना सुनते हीं पतिदेव की पौरुष शक्ति जाग पड़ी और फिर से जोर से चिल्लाकर बोला—अरे सुनाई नहीं दिया तुम्हे —-जल्दी निकाल वरना !
पत्नी फिर से बोल पड़ी —बोली न नहीं है मेरे पास . इसके बाद वो गुस्सा से आगबबुला होकर वो सामने आकर बोला : देख चुपचाप रुपए निकाल, वरना घुस्सा मारकर अधमरा कर डालूँगा, दिमाग मत ख़राब कर मेरा, अब जल्दी निकाल. चल बीस नहीं तो दस हीं निकाल. इतने में हीं काम चला लूंगा. पत्नी बोली : नहीं हैं मेरे पास दस रुपए.
इतना सुनते हीं वह घुस्से और लात अपनी पत्नी पर बरसाने लगा. और रात भर वो अपनी मर्दानगी अपने दिन भर की मेहनत करके आई पत्नी पर दिखाता रहा. सुबह हुई उनके घर में एक छोटा सा बच्चा जो डरा सहमा हुआ माँ की गोद में आया और बोला : माँ-माँ, आज फिर मेरी स्कुल में पिटाई होगी.....क्यूंकि किताब के लिए रुपए नहीं होगा देने के लिए. कल हीं मैडम ने रुपए लेकर आने के लिए बोला : नहीं तो पिटाई की बात कही है.
माँ ने बेटा को बड़े प्यार से अश्रु आँख में लिए और खुश होकर बोली— बेटा तुम्हारी स्कुल में मार न खानी पड़े इसलिए तो मैं सारी रात तेरे बाप से मार खाती रहीं, फिर ब्लाउज से बीस रुपए निकालकर अपने बेटे को दिए, बच्चे ने अपनी माँ की ओर देखा और गले लगा लिया.
Moral :- मां चाहे कितना भी दुःख क्यो न सह ले लेकिन अपने बेटे को दुःखी नही देखना चाहती हैं



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बचपन में दिवाली पर राकेट छोड़ते हुए अदभुत ज्ञान मिला था ,

बचपन में दिवाली पर राकेट छोड़ते हुए अदभुत ज्ञान मिला था ,


कि .....

आसमान छूने के लिए बोतल बहुत जरूरी है


Indian Super Idiot

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जरूरी नही जो मोहोब्बत करते हो उन्हें ही रात को नींद नही आती

जरूरी नही जो मोहोब्बत करते हो उन्हें ही रात को नींद नही आती
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खुछ बेवड़े भी होते है जिनको दारू नही मिली इसलिए जग रहे हो .


They are - Indian Idiots




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Wednesday, October 7, 2015

Its Hard to pedal a cycle,


Its Hard to pedal a cycle, so we shift to a bike...then we shift to more comfort, we buy a car...because of that we develop a tummy & join the Gym. In the Gym they again give us a cycle ...this is called a "Life Cycle" 😜



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Tuesday, October 6, 2015

बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए


😌😌😒😣

बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!

ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!

वक़्त ने कहा…..काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा….काश थोड़ा और वक़्त होता!!!

सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब…।।
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।

“हुनर” सड़कों पर तमाशा करता है और “किस्मत” महलों में राज करती है!!

“शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,

पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता”…

😊😊😊


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😎😳 झूठ बोलने की भी हद होती है।

😎😳
झूठ बोलने की भी हद होती है।

उधार दिए हुए पैसे वापस लेने के लिये मैने दोस्त के घर पर Landline पर फोन किया तो उसका जवाब सुन कर मैं तो बेहोश होते होते बचा।

बोला " Drive कर रहा हूँ
बाद में फोन करता हूँ।"
😜😝😛😂😀😀

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Sunday, October 4, 2015

अंधेर नगरी -भारतेन्दु


अंधेर नगरी -भारतेन्दु

अंधेर नगरी भारतेन्दु हरिश्चन्द्र कृत व्यंग्यात्मक और रोचक प्रहसन है।
  • इसका नायक 'अन्धेरनगरी' का राजा 'चौपट राजा' है।
  • यह प्रहसन अत्यंत प्रसिद्ध और लोक-प्रचलित है।
  • उसमें छ: अंक हैं।
पहला अंक
पहले अंक में एक महंत अपने दो शिष्यों, नारायणदास और गोबरधनदास में से दूसरे को भिक्षा माँगने के सम्बन्ध में अधिक लोभ न करने का उपदेश देता है।
दूसरा अंक
दूसरे अंक में बाज़ार के विभिन्न व्यापारियों के दृश्य हैं, जिनकी माल बेचने के लिए लगायी गयी आवाज़ों में व्यंग्य की तीव्रता है। शिष्य बाज़ार में हर एक चीज़ टके सेर पाता है और नगरी और राजा का नाम, अन्धेर नगरी - चौपट राजा, ज्ञातकर और मिठाई लेकर महंत के पास वापस आता है।
तीसरा अंक
गोबरधनदास से नगरी का हाल मालूम कर वह ऐसी नगरी में रहना उचित न समझ तीसरे अंक में वहाँ चलने के लिए अपने शिष्यों से कहता है। किंतु गोबरधनदास लोभ के वशीभूत हो वहीं रह जाता है और महंत तथा नारायणदास वहाँ से चले जाते हैं।
चौथा अंक
चौथे अंक में पीनक में बैठा राजा एक फरियादी की बकरी मर जाने पर कल्लू बनिया, कारीगर, चूनेवाले, भिश्ती, कसाई और गड़रिया को छोड़कर अंत में अपने कोतवाल को ही फाँसी का दण्ड देता है, क्योंकि अंततोगत्वा उसकी सवारी निकलने से ही बकरी दबकर मर गयी।
पाँचवा अंक
पाँचवें अंक में कोतवाल गर्दन पतली होने के कारण गोबरधनदास पकड़ा जाता है, ताकि उसकी मोटी गर्दन फाँसी के फन्दे में ठीक बैठे। अब उसे अपने गुरु की बात याद आती है।
छटा अंक
छठे अंक में जब वह फाँसी पर चढाया जाने को है, गुरु जी और नारायणदास आ जाते हैं। गुरु जी गोबरधनदास के कान में कुछ कहते हैं और उसके बाद दोनों में फाँसी पर चढ़ने के लिए होड़ लग जाती है। इसी समय राजा, मंत्री और कोतवाल आते हैं। गुरु जी के यह कहने पर कि इस साइत में जो मरेगा सीधा बैकुण्ठ को जाएगा, मंत्री और कोतवाल में फाँसी पर चढ़ने के लिए प्रतिद्वंतिता उत्पन्न हो जाती है, किंतु राजा के रहते बैकुण्ठ कौन जा सकता है, ऐसा कह राजा स्वयं फाँसी पर चढ़ जाता है।
प्रहसन का उद्देश्य
जिस राज्य में विवेक - अभिवेक का भेद न किया जाय वहाँ की प्रजा सुखी नहीं रह सकती, यह व्यक्त करना ही इस प्रहसन का उद्देश्य है।



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Thursday, October 1, 2015

Flipkart रिटर्न पॉलिसी का फायदा उठाते हुए लगाया 20 लाख का चूना

#Flipkart रिटर्न पॉलिसी का फायदा उठाते हुए लगाया 20 लाख का चूना


बेंगलुरू। भारत में ऑनलाइन शॉपिंग का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। इंटरनेट शॉपिंग करने वालों की संख्‍या भी तेजी से बढ़ी है। यही वजह है कि फ्लिपकार्ट, अमेजन और स्‍नैपडील जैसी कंपनियां कुछ ही वर्षों में प्रसिद्ध और मुनाफे में आती जा रही हैं।
सभी ऑनलाइन स्‍टोर अपने ग्राहकों को सामान खरीदने के साथ ही पसंद न आने पर या क्‍वालिटी ठीक न होने पर सामान वापसी तथा पैसे लौटाने की पेशकश भी करती हैं। इसी रिटर्न पॉलिसी का फायदा उठाते हुए बेंगलुरू के एक शख्‍स ने फ्लिपकार्ट कंपनी को लगभग 20 लाख रुपए का चूना लगा दिया है।
ऐसे लगाया चूना
अंग्रेजी अखबार टाइम्‍स ऑफ इंडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार वीरा स्‍वामी नाम के 32 वर्षीय व्‍यक्ति ने इस करतूत को अंजाम दिया है। वनस्‍थलीपुरम में रहने वाला स्‍वामी अपनी पत्‍नी, माता, पिता, भाइयों, बच्‍चों तथा पड़ोसियों के नाम से फ्लिपकार्ट का महंगा सामान मंगवाता था। सामान मिलने के बाद वो कस्‍टमर केयर को फोन करके सामान खराब होने की शिकायत करता था।
शिकायत मिलते ही फ्लिपकार्ट का प्रतिनिधि सामान वापस लेने पहुंच जाता था और यहीं पर स्‍वामी अपने कारनामे को अंजाम देता था। दरअसल वीरा स्‍वामी असली सामान को रखकर उसी बॉक्‍स में दूसरा या फिर सस्‍ता सामान रखकर वापस लौटा देता था। फ्लिपकार्ट की रिटर्न पॉलिसी के अनुसार सामान वापस मिलने पर मूल्‍य वापसी कर देती है।
इस तरह से पिछले 20 महीनों में स्‍वामी ने 200 से ज्‍यादा सामानों की खरीदारी अलग-अलग नाम से की और रिटर्न के नाम पर 20 लाख रुपए की चपत लगा दी। कंपनी ने वनस्‍थलीपुरम पुलिस थाने में उसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है

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Sunday, September 20, 2015

पेट पर लात मारने वाले इंस्‍पेक्‍टर को बुजुर्ग ने किया माफ, कहा- 'मैं भी बाप हूं'

पेट पर लात मारने वाले इंस्‍पेक्‍टर को बुजुर्ग ने किया माफ, कहा- 'मैं भी बाप हूं'



पुलिस की ज्यादती झेलने वाले कृष्‍ण कुमार ने इंस्‍पेक्‍टर प्रदीप कुमार को माफ कर दिया है। उनका कहना है कि इंस्‍पेक्‍टर से गलती हो गई। उसे उसकी सजा भी मिल चुकी है

पी की राजधानी के जीपीओ में सड़क के किनारे टाइपिंग करने वाले कृष्ण कुमार का टाइपराइटर सचिवालय चौकी इंचार्ज इंस्पेक्टर प्रदीप कुमार ने फेंक दिया था। बाद में प्रदीप को सस्पेंड कर दिया गया

शनिवार दोपहर राजधानी में हुई घटना ने प्रदेश के साथ-साथ पूरे देश के लोगों को झकझोर दिया है। करीब 50 रुपए की रोजाना दिहाड़ी से जैसे-तैसे अपने घरवालों का पेट पाल रहे कृष्‍ण कुमार की कमाई का जरिया उनका टाइपराइटर ही था, लेकिन प्रदीप कुमार को ये बात नागवार गुजरी। उसने वीवीआई मूवमेंट का हवाला देते हुए बुजुर्ग का टाइपराइटर उठाकर फेंक दिया था। यही नहीं आरोपी ने लात मारकर उनका टाइपराइटर भी तोड़ दिया। इस दौरान बुजुर्ग हाथ जोड़कर अपनी रोजी-रोटी की दुहाई देते रहे, लेकि‍न इंस्पेक्टर को जरा सी भी दया नहीं आई

सीएम अखिलेश ने खुद मामले पर लिया संज्ञान

कृष्‍ण कुमार मामले पर अभी तक हुई कार्रवाई से पूरी तरह से संतुष्‍ट हैं। वह कहते हैं कि उम्‍मीद नहीं थी सीएम अखिलेश यादव खुद संज्ञान लेंगे। यहां बता दें, घटना के बाद शनिवार देर शाम सीएम ने मामले को गंभीरता से लेते हुए पीड़ि‍त की हर संभव मदद करने का आदेश दिया था। यही नहीं डीएम और एसएसपी ने कृष्‍ण कुमार के घर जाकर उन्‍हें दो नए टाइपराइटर भी दिए थे। इनमें एक हिंदी और दूसरा अंग्रेजी का था। यहां भी कृष्‍ण कुमार ने खुद्दारी दिखाते हुए अंग्रेजी वाला टाइपराइटर वापस कर दिया। उनका कहना था कि उन्‍हें अंग्रेजी टाइपिंग नहीं आती। अब कृष्‍ण कुमार दोबारा अपने काम पर लौटेंगे और वहीं बैठकर अपनी जिंदगी चलाएंगे।

 इंस्पेक्टर ने धमकाया कहा, ‘मेरा नाम बड़े-बड़े अक्षरों में लिखना ताकि एसएसपी भी मेरे बारे में जान सकें



एसएसपी ने क्या कहा?

इस पूरे मामले में लखनऊ के एसएसपी राजेश पांडे ने कहा- इंस्पेक्टर ने जो कि‍या वह गलत था। उन्‍हें ऐसा करने का अधि‍कार नहीं है। हमने उन्‍हें तत्‍काल प्रभाव से सस्‍पेंड कर दि‍या है। सीओ हजरतगंज अशोक कुमार वर्मा को जांच सौंपी गई है। वे एक हफ्ते के अंदर अपनी रि‍पोर्ट सौंपेंगे।

एसपी ईस्‍ट ने भी इंस्पेक्टर की कार्रवाई को गलत बताया -

एसपी ईस्‍ट राजीव मल्‍होत्रा ने कहा कि  पुलिस मैनुअल के मुताबिक, किसी भी तरह की प्रॉपर्टी को पुलिस नुकसान नहीं पहुंचा सकती, लेकिन इंस्पेक्टर प्रदीप कुमार ने नियमों काे तोड़ा। उन्‍होंने कहा कि तस्वीरों में साफ है कि टाइपिस्ट इंस्पेक्टर से विनती कर रहे हैं, लेकिन इंस्पेक्टर ने उनकी एक न सुनी और तोड़फोड़ शुरू कर दी

dainikbhaskar.com के फोटो जर्नलिस्ट आशुतोष त्रिपाठी मौके पर ही मौजूद थे। जानिए, उनकी जुबानी इंस्पेक्टर की बदसलूकी का आंखों देखा हाल...
बुजुर्ग से बात की। पूछा तो उन्होंने नाम बताया- कृष्ण कुमार। रोजाना हिंदी टाइपिंग कर 50-100 रुपए कमा लेते हैं। गोमती नगर में एक छोटे से घर में रहते हैं। उम्र है 65 साल। जब वे टाइपराइटर उठा रहे थे तो कह रहे थे कि अब यह किसी काम नहीं है। इंसाफ भी मिलने से रहा। dainikbhaskar.com पर यह खबर आने के बाद हमने डीएम से संपर्क किया। उन्होंने बुजुर्ग के लिए कार्रवाई का भरोसा दिया और भास्कर की पहल की तारीफ की। देर रात यूपी के सीएम अखिलेश यादव ने भी ट्वीट किया। इसके बाद डीएम ने हमसे बुजुर्ग का एड्रेस लिया और वे एसएसपी के साथ उनके घर टाइपराइटर लेकर गए।












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