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Friday, February 8, 2013

Santa Banta Hindi Chutkule: संता बंता हिन्दी चुटकुले


Santa Banta Hindi Chutkule: संता बंता हिन्दी चुटकुले


संता: तेरा भाई आजकल क्या कर रहा है?
बंता: एक दुकान खोली थी, पर अब जेल में है!
संता: वो क्यों?
बंता: दुकान हथोड़े से खोली थी!
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Santa Banta Hindi Chutkule: संता बंता हिन्दी चुटकुले
 संता: भैया बाल छोटे कर दो.
नाई: कितने छोटे कर दूं साहब?
संता: बस भाई इतने कर दे की बीवी के हाथों में ना आ सके.
Read: Santa Banta Chutkule in hindi
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Santa Banta Hindi Chutkule: संता बंता हिन्दी चुटकुले
 चोर (बन्दूक तनते हुए): ज़िन्दगी चाहते हो तो अपना पर्स मेरे हवाले कर दो.
संता: यह लो.
चोर: कितने मुर्ख हो तुम, मेरी बंदुक मे तो गोली ही नही थी। हा..हा...हा. 
संता: और मेरे पर्स मे भी कहां रुपये थे. .

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Santa Banta Hindi Chutkule: संता बंता हिन्दी चुटकुले
अर्ज किया है:
बहार आने से पहले फिजा आ गई,
कि बहार आने से पाहेल फिजा आ गई,
और फूल खिलने से पहले बकरी खा गई.

SANTA BANTA JOKES : संता का लाजवाब साक्षात्कार


SANTA BANTA JOKES : संता का लाजवाब साक्षात्कार

संता को एक कंपनी में साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था। संता सही समय पर दफ्तर पहुंच गया। जल्द ही उसे अंदर बुलाया गया। अधिकारी संता के प्रमाणपत्रों को गौर से देख रहा था।    

अधिकारी: संता तुम्हारे प्रमाणपत्रों को देखते हुए मैंने तय किया है कि मैं तुमसे कुछ मामूली सवाल करूंगा। अगर तुम सभी सवालों के जवाब दे देते हो तो यह नौकरी तुम्हें मिल जाएगी। मैं कुछ शब्द कहता हूं तुम्हें उनके विपरीतार्थक बताने हैं।

संता ने जवाब दिया, “जी ठीक है”।  
   
अधिकारी: एबव(Above) 

संता: बिलो(Below) 

अधिकारी: फ्रंट 

संता: बैक 

अधिकारी: लेफ्ट 

संता: राइट

अधिकारी: मेल 

संता: फीमेल

अधिकारी: अग्ली(Ugly)

संता: पिछली(पीछे)

अधिकारी हैरान हुआ।

अधिकारी: अग्ली, यू..जी.एल..वाइ..( हैरान अधिकारी ने वर्तनी पर जोर डालते हुए कहा) 

संता: पिछली, पि..छ..ली.(संता ने वर्तनी पर जोर देते हुए कहा)

अधिकारी गुस्सा हो गया, उसने संता से कहा, “गेट आउट”

संता ने जवाब दिया, “कम इन”। 

अधिकारी: क्वाइट प्लीज़। 

संता: टॉक प्लीज़।

खीज कर अधिकारी ने कहा: यू आर रिजेक्टेड(तुम निकाले जा रहे हो)।

संता: आइ एम सेलेक्टेड (मैं चुना जाता हूं)।

और हार कर अधिकारी ने संता को नौकरी पर रख लिया




Thursday, February 7, 2013

Joke तुम शादीशुदा हो!


Joke तुम शादीशुदा हो!


एक दुबला पतला और घबराया हुआ गवाह कटघरे में खड़ा था और वकील उससे पूछताछ कर रहा था!

वकील जोर से चिल्लाकर क्या तुम पहले से ही शादीशुदा हो?

जी हाँ, साहब गवाह ने बड़ी धीमी आवाज में कहा!

तुमने किससे शादी की है? वकील ने पूछा!

एक औरत के साथ गवाह ने जवाब दिया!

वकील ने गुस्से में कहा नि:संदेह तुमने एक औरत से शादी की है पर क्या तमने कभी ये सुना कि किसी ने आदमी से शादी की!

गवाह ने बहुत सादगी से कहा जी हाँ साहब मेरी बहन ने की है!



Santa Banta Lotry Joke : लॉटरी जितवा दो!


Santa Banta Lotry Joke : लॉटरी जितवा दो!


संता बहुत बड़ी मुसीबत में था उसका सारा बिजनेस ठप्प पड़ गया, और वह बहुत बड़े आर्थिक संकट में फंस गया वह बहुत निराश हुआ और आखिर में भगवान से मदद के लिए गुहार करने लगा!

वह मंदिर में गया और भगवान से प्रार्थना करने लगा, हे भगवान मेरी मदद करो! मेरा सारा बिजनेस ठप्प पड़ गया और मेरे पास एक भी पैसा नहीं बचा है, अब तो हालात ये है कि मुझे अपना घर भी बेचना पड़ सकता है, इसलिए हे भगवान, मुझे कोई लॉटरी जितवा दो!

इतना कहकर संता अपने घर चला गया जिस दिन लॉटरी निकली तो दुर्भाग्य से संता की लॉटरी नहीं निकली और वह फिर मंदिर में भगवान के पास चला गया फिर से वही गुहार लगाने लगा हे भगवान मुझे लॉटरी जितवा दो संता फिर अपने घर चला गया फिर से लॉटरी निकली पर इस बार भी सांता को निराशा का ही मुहं देखना पड़ा!

संता फिर भगवान के पास गया हे भगवान मुझे लॉटरी जितवा दो पर संता कई दिन तक लॉटरी नही जीत पाया!

एक दिन उदास होकर भगवान के पास पहुंचा और भारी मन से भगवान से कहने लगा..

हे भगवान! तुम मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हो अब तो स्थिति ये बन गयी है कि मेरा घर गाड़ी सब बिक गए है, और मेरा परिवार भूखे मर रहा है... हे भगवान अब तो मुझे लॉटरी जितवा दे और संता निराश होकर वापिस जाने लगा और तभी..

एक जोर कि बिजली कड़की जिसकी रोशनी संता के मुहं पर पड़ी और आकाशवाणी हुई...

अरे उल्लू के पट्ठे संता पहले लॉटरी का टिकट तो खरीद!

SANTA BANTA JOKES : बहुत शर्म आती है


SANTA BANTA JOKES : बहुत शर्म आती है!

संता की शादी हुई पर अभी तक उसे कोई नौकरी नहीं मिल पाई थी वो बिल्कुल आलसी था एक दिन उसकी बीवी ने बहुत गुस्से होते हुए कहा मुझे तो बहुत शर्म आती है जिस तरह की जिन्दगी हम जी रहे है!

मेरे पापा ने हमारे घर का किराया दिया, माँ ने घर में खाने पीने का सामान भर दिया, मेरी बहन ने कपड़े दिए और चाचा चाची ने कार खरीद कर दी, मुझे तो बहुत शर्म आती है!

संता ने सोफे पर लोटपोट होते हुए कहा डार्लिंग शर्म तो तुम्हें आनी ही चाहिए, क्योंकि जो तुम्हारे दो भाई है बेकार में घूमते रहते है उन्होंने तो हमें फूटी कौड़ी भी नहीं दी!

Santa Banta Joke : चश्मदीद गवाह!


Santa Banta Joke : चश्मदीद गवाह!


एक आदमी एक गाड़ी के एक्सिडेंट का चश्मदीद गवाह था! वकील और गवाह के बीच कुछ ऐसे सवाल जवाब हो रहे थे!

वकील: क्या तुमने सच में एक्सिडेंट देखा?

गवाह: जी हाँ साहब!

वकील: जब एक्सिडेंट हुआ तो तुम उस जगह से कितनी दूरी पर खड़े थे?

गवाह: 30 फुट और सवा 6 इंच!

वकील: थोड़ा सोचकर, तो श्रीमान जी, क्या आप जज साहब को बता सकते है कि, आप इस दूरी को इतनी प्रमाणिकता से कैसे कह सकते हो कि, ये इतनी ही थी, जितनी आप ने कही?
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गवाह: क्योंकि जब एक्सिडेंट हुआ तो मैंने उसी वक़्त उस दूरी को इंच टेप से नाप लिया और मैं जानता था कि कोर्ट में बेवकूफ वकील इस प्रश्न को जरुर पूछेगा!




Saturday, January 26, 2013

गाँव में बिजली


गाँव में बिजली 


दिन भर खेतों में काम करके 
मिटाने अपनी थकान 
लोग बैठा करते थे शाम को 
गाँव की चौपाल में 
या बरगद या नीम के पेड़ के नीचे 
बने हुए कच्चे चबूतरों पर 
और होती थी आपस में 
सुख दुःख की बातें
और हो जाती थी कुछ 
हंसी ठिठोली भी 
महिलायें भी मिल लेती थीं आपस में 
पनघट पर पानी भरने के बहाने 
और कर लेती थीं साझा 
अपना अपना सुख&दुःख
मगर अब गाँव में 
बिजली आ जाने से   
बदल गए हैं हालात 
और सूने से रहने लगे हैं 
चौपाल और चबूतरे
अब नहीं होती हैं पनघट पर 
आपस में सुख&दुःख की बातें 
गाँव में बिजली आ जाने से 
अब आ गए हैं टेलीविजन 
लग गए हैं नल भी अब घरों में 
ख़त्म हो गए हैं बहाने 
अब घर से निकलने के 
गर्मी लगने पर चला लेते हैं पंखे 
नहीं बैठते नीम के पेड़ के नीचे
फुर्सत भी अब किसे है
किसी के पास बैठने की 
अब टी-वी- पर आते हैं इतने प्रोग्राम 
चौपाल जाने की जरूरत ही नहीं लगती 
पहले होली पर जहाँ 
गाये जाते थे फाग&गीत 
और जाते थे लोग 
एक , दूसरे के घर मिलने 
होली के बहाने 
अब रहते हैं अपने ही घरों में 
बजा लेते हैं लाउडस्पीकर 
पर ही फाग&गीत 
और अगर कोई गाना भी चाहे
तो दबकर रह जाती है उसकी आवाज़ 
बेतहाशा बजते हुए कानफोडू 
लाउडस्पीकर के बीच  
सचमुच बिजली आने से
कितना बदल गया है हमारा गाँव -  कृष्ण धर शर्मा 



हिंदी कहावतें

हिंदी कहावतें



घर आए नाग न पूजिए, बामी पूजन जाय : किसी निकटस्थ तपस्वी सन्त की पूजा न करके किसी साधारण साधु का आदर-सत्कार करना.

घर कर सत्तर बला सिर कर : ब्याह करने और घर बनबाने में बहुत-से झंझटों का सामना करना पड़ता है.

घर का भेदी लंका ढाये : आपसी फूट से सर्वनाश हो जाता है.

घर की मुर्गी दाल बराबर : घर की वस्तु या व्यक्ति का उचित आदर नहीं होता.

घर घर मटियारे चूल्हे : सब लोगों में कुछ न कुछ बुराइयाँ होती हैं, सब लोगों को कुछ न कुछ कष्ट होता है.

घर में नहीं दाने, बुढ़िया चली भुनाने : झूठे दिखावे पर उक्ति.

घायल की गति घायल जाने : दुखी व्यक्ति की हालत दुखी ही जानता है.

घी खाया बाप ने सूंघो मेरा हाथ : दूसरों की कीर्ति पर डींग मारने वालों पर उक्ति.

घोड़ा घास से यारी करे तो खाय क्या : मेहनताना या किसी चीज का दाम मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए

चक्की में कौर डालोगे तो चून पाओगे : पहले कुछ रुपया पैसा खर्च करोगे या पहले कुछ खिलाओगे तभी काम हो सकेगा.

चट मँगनी पट ब्याह : शीघ्रतापूर्वक मंगनी और ब्याह कर देना, जल्दी से अपना काम पूरा कर देने पर उक्ति.

चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय : बहुत अधिक कंजूसी करने पर उचित.

चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात : थोड़े दिनों के लिए सुख तथा आमोद-प्रमोद और फिर दु:ख.

चाह है तो राह भी : जब किसी काम के करने की इच्छा होती है तो उसकी युक्ति भी निकल आती है.

चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता : बेशर्म आदमी पर किसी बात का असर नहीं होता.

चिकने मुँह सब चूमते हैं : सभी लोग बड़े और धनी आदमियों की हाँ में हाँ मिलाते हैं.

चित भी मेरी, पट भी मेरी : हर तरह से अपना लाभ चाहने पर उक्ति.

चिराग तले अँधेरा : जहाँ पर विशेष विचार, न्याय या योग्यता आदि की आशा हो वहाँ पर यदि कुविचार, अन्याय या अयोग्यता पाई जाए.

बेवकूफ मर गए औलाद छोड़ गए : जब कोई बहुत मूर्खता का काम करता है तब उसके लिए ऐसा कहते हैं.

चूल्हे में जाय : नष्ट हो जाय। उपेक्षा और तिरस्कारसूचक शाप जिसका प्रयोग स्त्रियाँ करती हैं.

चोर उचक्का चौधरी, कुटनी भई प्रधान : जब नीच और दुष्ट मनुष्यों के हाथ में अधिकार होता है.

चोर की दाढ़ी में तिनका : यदि किसी मनुष्य में कोई बुराई हो और कोई उसके सामने उस बुराई की निंदा करे, तो वह यह समझेगा कि मेरी ही बुराई कर रहा है, वास्तविक अपराधी जरा-जरा-सी बात पर अपने ऊपर संदेह करके दूसरों से उसका प्रतिवाद करता है.

चोर-चोर मौसेरे भाई : एक व्यवसाय या स्वभाव वालों में जल्द मेल-जोल हो जाता है.

चोरी और सीनाजोरी : अपराध करना और जबरदस्ती दिखाना, अपराधी का अपने को निरपराध सिद्ध करना और अपराध को दूसरे के सिर मढ़ना.

चौबे गए छब्बे होने दुबे रह गए : यदि लाभ के लिए कोई काम किया जाय परन्तु उल्टे उसमें हानि हो.

छूछा कोई न पूछा : गरीब आदमी का आदर-सत्कार कोई नहीं करता.

छोटा मुँह बड़ी बात : छोटे मनुष्य का लम्बी-चौड़ी बातें करना.

जंगल में मोर नाचा किसने देखा : जब कोई ऐसे स्थान में अपना गुण दिखावे जहाँ कोई उसका समझने वाला न  हो.

जने-जने से मत कहो, कार भेद की बात : अपने रोजगार और भेद की बात हर एक व्यक्ति से नहीं कहनी चाहिए.

जब आया देही का अन्त, जैसा गदहा वैसा सन्त : सज्जन और दुर्जन सभी को मरना पड़ता है.

जब ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्या डर : जब कष्ट सहने के लिए तैयार हुआ हूँ तब चाहे जितने कष्ट आवें, उनसे क्या डरना.

जब तक जीना तब तक सीना : जब तक मनुष्य जीवित रहता है तब तक उसे कुछ न कुछ करना ही पड़ता है.

जबरा मारे और रोने न दे : जो मनुष्य जबरदस्त होता है उसके अत्याचार को चुपचाप सहना होता है.

जर, जोरू, ज़मीन जोर की, नहीं और की : धन, स्त्री और ज़मीन बलवान् मनुष्य के पास होती है, निर्बल के पास  नहीं.

जल की मछली जल ही में भली : जो जहाँ का होता है उसे वहीं अच्छा लगता है.
थोथा चना बाजे घना : दिखावा बहुत करना परन्तु सार न होना.

दूर के ढोल सुहावने : किसी वस्तु से जब तक परिचय न हो तब तक ही अच्छी लगती है.

नदी में रहकर मगरमच्छ से बैर : अपने को आश्रय देने वाले से ही शत्रुता करना.

बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया : रुपये वाला ही ऊँचा समझा जाता है.

भेड़ जहाँ जायेगी, वहीं मुँडेगी : सीधे-सादे व्यक्ति को सब लोग बिना हिचक ठगते हैं.

रस्सी जल गई पर बल नहीं गया : बरबाद हो गया, पर घमंड अभी तक नहीं गया.

अपने बेरों को कोई खट्टा नहीं बताता : अपनी वस्तु को कोई बुरी नहीं बताता.

अपने मुँह मियाँ मिट्ठू : अपने मुँह अपनी प्रशंसा करना.

अन्त भले का भला : अच्छे आदमी की अन्त में भलाई होती है.

अन्धे के हाथ बटेर : अयोग्य व्यक्ति को कोई अच्छी वस्तु मिल जाना.
जिसकी बंदरी वही नचावे और नचावे तो काटन धावे : जिसकी जो
काम होता है वही उसे कर सकता है.
जिसकी बिल्ली उसी से म्याऊँ करे : जब किसी के द्वारा पाला हुआ
व्यक्ति उसी से गुर्राता है।
जिसकी लाठी उसकी भैंस : शक्ति अनधिकारी को भी अधिकारी बना
देती है, शक्तिशाली की ही विजय होती है.
जिसके पास नहीं पैसा, वह भलामानस कैसा : जिसके पास धन होता
है उसको लोग भलामानस समझते हैं, निर्धन को लोग
भलामानस नहीं समझते.
जिसके राम धनी, उसे कौन कमी : जो भगवान के भरोसे रहता है,
उसे किसी चीज की कमी नहीं होती.
जिसके हाथ डोई (करछी) उसका सब कोई : सब लोग धनवान का
साथ देते हैं और उसकी खुशामद करते हैं.
जिसे पिया चाहे वही सुहागिन : जिस पर मालिक की कृपा होती है
उसी की उन्नति होती है और उसी का सम्मान होता है.
जी कहो जी कहलाओ : यदि तुम दूसरों का आदर करोगे, तो लोग
तुम्हारा भी आदर करेंगे.
जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है : कम बोलने और कम
खर्च करने से बड़ा लाभ होता है.
जीभ भी जली और स्वाद भी न पाया : यदि किसी को बहुत थोड़ी-सी
चीज खाने को दी जाये.
जीये न मानें पितृ और मुए करें श्राद्ध : कुपात्र पुत्रों के लिए कहते हैं
जो अपने पिता के जीवित रहने पर उनकी सेवा-सुश्रुषा नहीं
करते, पर मर जाने पर श्राद्ध करते हैं.
जी ही से जहान है : यदि जीवन है तो सब कुछ है. इसलिए सब तरह
से प्राण-रक्षा की चेष्टा करनी चाहिए.
जुत-जुत मरें बैलवा, बैठे खाय तुरंग : जब कोई कठिन परिश्रम करे और उसका आनंद दूसरा उठावे तब कहते हैं, जैसे गरीब
आदमी परिश्रम करते हैं और पूँजीपति उससे लाभ उठाते हैं.
जूँ के डर से गुदड़ी नहीं फेंकी जाती : साधारण कष्ट या हानि के डर से कोई व्यक्ति काम नहीं छोड़ देता.
जेठ के भरोसे पेट : जब कोई मनुष्य बहुत निर्धन होता है और उसकी स्त्री का पालन-पोषण उसका बड़ा भाई (स्त्री का जेठ) करता है तब कहते हैं.
जेते जग में मनुज हैं तेते अहैं विचार : संसार में मनुष्यों की प्रकृति-प्रवृत्ति तथा अभिरुचि भिन्न-भिन्न हुआ करती है.
जैसा ऊँट लम्बा, वैसा गधा खवास : जब एक ही प्रकार के दो मूर्खों का साथ हो जाता है.
जैसा कन भर वैसा मन भर : थोड़ी-सी चीज की जाँच करने से पता चला जाता है कि राशि कैसी है.
जैसा काछ काछे वैसा नाच नाचे : जैसा वेश हो उसी के अनुकूल काम करना चाहिए.
जैसा तेरा ताना-बाना वैसी मेरी भरनी : जैसा व्यवहार तुम मेरे साथ करोगे, वैसा ही मैं तुम्हारे साथ करूँगा.
जैसा देश वैसा वेश : जहाँ रहना हो वहीं की रीतियों के अनुसार आचरण करना चाहिए.
जैसा मुँह वैसा तमाचा : जैसा आदमी होता है वैसा ही उसके साथ व्यवहार किया जाता है.
जैसी औढ़ी कामली वैसा ओढ़ा खेश : जैसा समय आ पड़े उसी के अनुसार अपना रहन-सहन बना लेना चाहिए.
जैसी चले बयार, तब तैसी दीजे ओट : समय और परिस्थिति के अनुसार काम करना चाहिए.
जैसी तेरी तोमरी वैसे मेरे गीत : जैसी कोई मजदूरी देगा, वैसा ही उसका काम होगा.
जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे विदेश : निकम्मे आदमी के घर रहने से न तो कोई लाभ होता है और न बाहर रहने से कोई हानि होती है.
जैसे को तैसा मिले, मिले डोम को डोम,
दाता को दाता मिले, मिले सूम को सूम :
जो व्यक्ति जैसा होता है उसे जीवन में वैसे ही लोगों से पाला पड़ता है.
जैसे बाबा आप लबार, वैसा उनका कुल परिवार : जैसे बाबास्वयं झूठे हैं वैसे ही उनके परिवार वाले भी हैं.
जैसे को तैसा मिले, मिले नीच में नीच,
पानी में पानी मिले, मिले कीच में कीच
जो जैसा होता है उसका मेल वैसों से ही होता है.
जो अति आतप व्याकुल होई, तरु छाया सुख जाने सोई : जिस व्यक्ति पर जितनी अधिक विपत्ति पड़ी रहती है उतना ही अधिक वह सुख का आनंद पाता है.
जो करे लिखने में गलती, उसकी थैली होगी हल्की : रोकड़ लिखने में गलती करने से सम्पत्ति का नाश हो जाता है.
जो गंवार पिंगल पढ़ै, तीन वस्तु से हीन,
बोली, चाली, बैठकी, लीन विधाता छीन :
चाहे गंवार पढ़-लिख ले तिस पर भी उसमें तीन गुणों का अभाव पाया जाता है. बातचीत करना, चाल-ढाल और  बैठकबाजी.
जो गुड़ खाय वही कान छिदावे : जो आनंद लेता हो वही परिश्रम भी करे और कष्ट भी उठावे.
जो गुड़ देने से मरे उसे विषय क्यों दिया जाए : जो मीठी-मीठी बातों या सुखद प्रलोभनों से नष्ट हो जाय उससे लड़ाई-झगड़ा नहीं करना चाहिए.
जो टट्टू जीते संग्राम, तो क्यों खरचैं तुरकी दाम : यदि छोटे आदमियों से काम चल जाता तो बड़े लोगों को कौन पूछता.
जो दूसरों के लिए गड्ढ़ा खोदता है उसके लिए कुआँ तैयार रहता है : जो दूसरे लोगों को हानि पहुँचाता है उसकी हानि अपने आप हो जाती है.
जो धन दीखे जात, आधा दीजे बाँट : यदि वस्तु के नष्ट हो जाने की आशंका हो तो उसका कुछ भाग खर्च करके शेष भाग बचा लेना चाहिए.
जो धावे सो पावे, जो सोवे सो खोवे : जो परिश्रम करता है उसे लाभ होता है, आलसी को केवल हानि ही हानि होती है.
जो पूत दरबारी भए, देव पितर सबसे गए : जो लोग दरबारी या परदेसी होते हैं उनका धर्म नष्ट हो जाता है और वे संसार के कर्तव्यों का भी समुचित पालन नहीं कर सकते.
जो बोले सो कुंडा खोले : यदि कोई मनुष्य कोई काम करने का उपाय बतावे और उसी को वह काम करने का भार सौपाजाये.
जो सुख छज्जू के चौबारे में, सो न बलख बुखारे में : जो सुखअपने घर में मिलता है वह अन्यत्र कहीं भी नहीं मिल सकता.
जोगी काके मीत, कलंदर किसके भाई : जोगी किसी के मित्र नहीं होते और फकीर किसी के भाई नहीं होते, क्योंकि वे नित्य एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं.
जोगी जुगत जानी नहीं, कपड़े रंगे तो क्या हुआ : गैरिक वस्त्र पहनने से ही कोई जोगी नहीं हो जाता.
जोगी जोगी लड़ पड़े, खप्पड़ का नुकसान : बड़ों की लड़ाई मेंगरीबों की हानि होती है.
जोरू चिकनी मियाँ मजूर : पति-पत्नी के रूप में विषमता हो, पत्नी तो सुन्दर हो परन्तु पति निर्धन और कुरूप हो.
जोरू टटोले गठरी, माँ टटोले अंतड़ी : स्त्री धन चाहती है औरमाता अपने पुत्र का स्वास्थ्य चाहती है. स्त्री यह देखना चाहती है कि मेरे पति ने कितना रुपया कमाया. माता यह देखती है कि मेरा पुत्र भूखा तो नहीं है.
जोरू न जांता, अल्लाह मियां से नाता : जो संसार में अकेला हो, जिसके कोई न हो.
ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय : जितना ही अधिक ऋण लिया जाएगा उतना ही बोझ बढ़ता जाएगा.
ज्यों-ज्यों मुर्गी मोटी हो, त्यों-त्यों दुम सिकुड़े : ज्यों-ज्यों आमदनी बढ़े, त्यों-त्यों कंजूसी करे.
ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध : जब कोई व्यक्तिकिसी दोषी पुरुष के दोष को बतलाता है तो उसे बहुत बुरा लगता है।
झगड़े की तीन जड़, जन, जमीन, जर : स्त्री, पृथ्वी और धन इन्हीं तीनों के कारण संसार में लड़ाई-झगड़े हुआ करते हैं.
झट मँगनी पट ब्याह : किसी काम के जल्दी से हो जाने पर उक्ति.
झटपट की धानी, आधा तेल आधा पानी : जल्दी का काम अच्छा नहीं होता.
झड़बेरी के जंगल में बिल्ली शेर : छोटी जगह में छोटे आदमी बड़े समझे जाते हैं.
झूठ के पांव नहीं होते : झूठा आदमी बहस में नहीं ठहरता, उसे हार माननी होती है.
झूठ बोलने में सरफ़ा क्या : झूठ बोलने में कुछ खर्च नहीं होता.
झूठे को घर तक पहुँचाना चाहिए : झूठे से तब तक तर्क-वितर्क करना चाहिए जब तक वह सच न कह दे.
टंटा विष की बेल है : झगड़ा करने से बहुत हानि होती है.
टका कर्ता, टका हर्ता, टका मोक्ष विधायकाः
टका सर्वत्र पूज्यन्ते,बिन टका टकटकायते :
संसार में सभी कर्म धन से होते हैं,बिना धन के कोई काम नहीं होता.
टका हो जिसके हाथ में, वह है बड़ा जात में : धनी लोगों का आदर- सत्कार सब जगह होता है.
टट्टू को कोड़ा और ताजी को इशारा : मूर्ख को दंड देने की आवश्यकता पड़ती है और बुद्धिमानों के लिए इशारा काफी होता है.
टाट का लंगोटा नवाब से यारी : निर्धन व्यक्ति का धनी-मानी व्यक्तियों के साथ मित्रता करने का प्रयास.
टुकड़ा खाए दिल बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए : ऐसा काम करना जिसमें केवल भरपेट भोजन मिले, कोई लाभ न हो.
टेर-टेर के रोवे, अपनी लाज खोवे : जो अपनी हानि की बात सबसे कहा करता है उसकी साख जाती रहती है.
ठग मारे अनजान, बनिया मारे जान : ठग अनजान आदमियों को ठगता है, परन्तु बनिया जान-पहचान वालों को ठगता है.
ठुक-ठुक सोनार की, एक चोट लोहार की : जब कोई निर्बल मनुष्य किसी बलवान्‌ व्यक्ति से बार-बार छेड़खानी करता है.
ठुमकी गैया सदा कलोर : नाटी गाय सदा बछिया ही जान पड़ती है. नाटा आदमी सदा लड़का ही जान पड़ता है.
ठेस लगे बुद्धि बढ़े : हानि सहकर मनुष्य बुद्धिमान होता है.
डरें लोमड़ी से नाम शेर खाँ : नाम के विपरीत गुण होने पर.
डायन को भी दामाद प्यारा : दुष्ट स्त्र्िायाँ भी दामाद को प्यार करती हैं.
डूबते को तिनके का सहारा : विपत्त्िा में पड़े हुए मनुष्यों को थोड़ा सहारा भी काफी होता है.
डेढ़ पाव आटा पुल पर रसोई : थोड़ी पूँजी पर झूठा दिखावा करना.
डोली न कहार, बीबी हुई हैं तैयार : जब कोई बिना बुलाए कहीं जाने को तैयार हो.
ढाक के वही तीन पात : सदा से समान रूप से निर्धन रहने पर उक्त, परिणाम कुछ नहीं, बात वहीं की वहीं.
ढाक तले की फूहड़, महुए तले की सुघड़ : जिसके पास धन नहीं होता वह गुणहीन और धनी व्यक्ति गुणवान्‌ माना जाता है.
ढेले ऊपर चील जो बोलै, गली-गली में पानी डोलै : यदि चील ढेले पर बैठकर बोले तो समझना चाहिए कि बहुत अधिक वर्षा होगी




हिंदी कहावतें


हिंदी कहावतें


अन्धों में काना राजा : मूर्ख मण्डली में थोड़ा पढ़ा-लिखा भी विद्वान् और ज्ञानी माना जाता है.

अक्ल बड़ी या भैंस : शारीरिक बल से बुद्धि बड़ी है.

अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग : सबका अलग-अलग रंग-ढंग होना.

अपनी करना पार उतरनी : अपने ही कर्मों का फल मिलता है.

अब पछताये होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत : समय बीत जाने पर पछताने का क्या लाभ.

आँख का अन्धा नाम नैनसुख : नाम अच्छा पर काम कुछ नहीं.

आगे कुआँ पीछे खाई : सब ओर विपत्ति.

आ बैल मुझे मार : जान-बूझकर आपत्ति मोल लेना।

आम खाने हैं या पेड़ गिनने : काम की बात करनी चाहिए, व्यर्थ की बातों से कोई लाभ नहीं.

Saturday, January 19, 2013

Funny Act

Funny Act



1 Admi Public Toilet Mein Betha Tha K
Achanak Sath Wale Toilet Se Awaz Aai:
Kya Haal Hai?
.
Admi Ghabra Kr:
Theek Hon, .
Phr Awaz Aai:
Kya Kr Rahe Ho?
.
Admi:
Bhai Jo Sab Yahan Karte Hain, .
Phir Awaz Aai:
Main Aa Jaun?
.
Admi Pareshan Ho Gya 0r Jaldi Se Bola:
. Nahi Nahi Main Busy Hon.
.
Phir Awaz Aai:
.
.
. .
.
Acha Yaar Main Tumhen Baad Mein Call
Karta Hon.
Abhi Koi Ullu Ka Patha Sath Wale Toilet
Se Meri Hr Baat Ka Jawab DeRaha
Hai.:D :D :D


Thursday, January 17, 2013

YAMRAJ JOKE : कोई जगह नहीं!

YAMRAJ JOKE : कोई जगह नहीं!


एक वकील मरने के बाद स्वर्ग चला गया जैसे ही स्वर्ग के दरवाजे पर पहुँचा वहां यमदूत बैठा हुआ था यमदूत ने कहा कि वकील साहब कहाँ चले हो यहाँ तो आपके लिए कोई जगह नहीं है!

वकील ने थोड़ा नाराज होते हुए कहा कि क्या कहा आपने?

तुमने सुना नहीं कि वकीलों के लिए कोई जगह नहीं है! 

वकील ने कहा पर मैं एक अच्छा इंसान हूँ!

यमदूत ने कहा... अच्छा! तो बताओ जरा कौन कौन से अच्छे काम आपने किये है!

वकील ने कहा मरने से तीन हफ्ते पहले मैंने एक भूखे और गरीब आदमी को 1000 रूपए दिए!

यमदूत ने कहा अच्छा और कुछ!

मरने से दो हफ्ते पहले मैंने एक बेघर आदमी को 1000 रूपए दिए!

यमदूत ने कहा और कुछ!

वकील ने कहा मरने से एक हफ्ता पहले मैंने एक गूंगे और बहरे बच्चे को 1000 रूपए दिए!

यमदूत ने कहा ठीक है तुम यही ठहरो मैं पांच मिनट में यमराज जी से पूछ कर आता हूँ कि क्या करना है?

पांच मिनट बाद यमदूत आया और वकील से कहने लगा देखो मैंने यमराज जी से बात की उन्होंने कहा कि ये लो उसके 3000 रूपए और कहो कि यहाँ से चला जाए!



Yamraj ji and Lalu Yadav Telephone Call

Yamraj ji and Lalu Yadav Telephone Call


After Death, Laloo Yadav, L. K. Advani& Vajpeyi Ji Went To Hell. After Some Years Of Hardwork At Hell, 
They Remembered Their Families. They Requested Yamraj To Let Them Make A Call. 

The Nearest P. C. O. Booth Was 10 Miles Away, So After Walking For 3 Days, They Reached It. 

First Mr. Vajpeyi Made A Call For 2 Minutes. Bill--Rs. 1000. 

Next Mr. Advani Made A Call For 10 Minutes. Bill--Rs. 5000. 

Then Laloo Ji Went In And Made A Call To Bihar For 2 Hours. Bill--Rs. 20. 
The Other Two Went And Reported This To Yamraj, To Which He Replied,"What Can I Do If There Is A Local Connection Between Hell & Bihar?!"

Thursday, January 10, 2013

बदबूदार घोंसला

बदबूदार घोंसला

कबूतर के एक जोड़े ने अपने लिए घोंसला बनाया. परंतु जब कबूतर जोड़े उस घोंसले में रहते तो अजीब बदबू आती रहती थी. उन्होंने उस घोंसले को छोड़ कर दूसरी जगह एक नया घोंसला बनाया. मगर स्थिति वैसी ही थी. बदबू ने यहाँ भी पीछा नहीं छोड़ा. 
परेशान होकर उन्होंने वह मोहल्ला ही छोड़ दिया और नए मोहल्ले में घोंसला बनाया. घोंसले के लिए साफ सुथरे तिनके जोड़े. मगर यह क्या! इस घोंसले में भी वही, उसी तरह की बदबू आती रहती थी. 
थक हार कर उन्होंने अपने एक बुजुर्ग, चतुर कबूतर से सलाह लेने की ठानी और उनके पास जाकर तमाम वाकया बताया. 
चतुर कबूतर उनके घोंसले में गया, आसपास घूमा फिरा और फिर बोला – “घोंसला बदलने से यह बदबू नहीं जाएगी. बदबू घोंसले से नहीं, तुम्हारे अपने शरीर से आ रही है. खुले में तुम्हें अपनी बदबू महसूस नहीं होती, मगर घोंसले में घुसते ही तुम्हें यह महसूस होती है और तुम समझते हो कि बदबू घोंसले से आ रही है. अब जरा अपने आप को साफ करो.”
"दुनिया जहान में खामियाँ निकालने और बदबू ढूंढने के बजाए अपने भीतर की खामियों और बदबू को हटाएँ. दुनिया सचमुच खूबसूरत, खुशबूदार हो जाएगी"
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आत्मोन्नति के लिए यदि अधिक से अधिक समय लगायें तो दूसरों की आलोचना करने का समय नही मिलेगा "

बद से बदतर तरीका


बद से बदतर तरीका

एक महाराजा समुद्र की यात्रा के दौरान भयंकर तूफान में फंस गए। उनका एक गुलाम जो पहली बार जहाज पर चढ़ा था, डर के मारे कांपने लगा और चिल्ला-चिल्ला के रोने लगा। वह इतनी जोर से रोया कि जहाज पर सवार बाकी सभी लोग उसकी कायरता देख गुस्सा हो गए। महाराजा ने भी गुस्सा होकर उसे समुद्र में फेंकने का आदेश दे दिया। 
लेकिन राजा के सलाहकार, जो कि एक संन्यासी थे, ने उन्हें रोकते हुए कहा - "कृपया यह मामला मुझे निपटाने दें। शायद मैं उसका इलाज कर सकता हूं।" 
राजा ने उनकी बात मान ली। उन्होंने कुछ नाविकों से उस गुलाम को समुद्र में फेंक देने का आदेश दिया। जैसे ही उस गुलाम को समुद्र में फेंका गया वह बेचारा गुलाम जोर से चिल्लाया और अपनी जान बचाने के लिए कठोर संघर्ष करने लगा।
कुछ ही पलों में संन्यासी ने उसे दोबारा जहाज पर खींच लेने का आदेश दिया। जहाज पर वापस आकर वह गुलाम चुपचाप एक कोने में जाकर खड़ा हो गया। जब महाराजा ने संन्यासी से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा - "जब तक स्थितियां बद से बदतर न हो जाए, हम यह जान नहीं पाते कि हम कितने भाग्यशाली हैं।"
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आत्मोन्नति के लिए यदि अधिक से अधिक समय लगायें तो दूसरों की आलोचना करने का समय नही मिलेगा "

पांच घंटियों वाली योजना


पांच घंटियों वाली योजना

किसी जमाने में एक होटल हुआ करता था जिसका नाम "द सिल्वर स्टार"
था। होटल मालिक के तमाम प्रयासों के बावजूद वह होटल बहुत अच्छा नहीं चल रहा था। होटल मालिक ने होटल को आरामदायक, कर्मचारियों को विनम्र बनाने के अलावा किराया भी कम करके देख लिया, पर वह ग्राहकों को आकर्षित करने में नाकाम रहा। इससे निराश होकर वह एक साधु के पास सलाह लेने पहुंचा। 
उसकी व्यथा सुनने के बाद साधु ने उससे कहा - "इसमें चिंता की क्या बात है? बस तुम अपने होटल का नाम बदल दो।" 
होटल मालिक ने कहा - "यह असंभव है। कई पीढ़ियों से इसका नाम "द सिल्वर स्टार" है और यह देशभर में प्रसिद्ध है।" 
साधु ने उससे फिर कहा - "पर अब तुम इसका नाम बदल कर "द फाइव वैल" रख दो और होटल के दरवाज़े पर छह घंटियाँ लटका दो।" 
होटल मालिक ने कहा - "छह घंटियाँ? यह तो और भी बड़ी बेवकूफी होगी। आखिर इससे क्या लाभ होगा?" 
साधु ने मुस्कराते हुए कहा - यह प्रयास करके भी देख लो। 
होटल मालिक ने वैसा ही किया। 
इसके बाद जो भी राहगीर और पर्यटक वहां से गुजरता, होटल मालिक की गल्ती बताने चला आता। अंदर आते ही वे होटल की व्यवस्था और विनम्र सेवा से प्रभावित हो जाते। धीरे - धीरे वह होटल चल निकला। होटल मालिक इतने दिनों से जो चाह रहा था, वह उसे मिल गया।
"दूसरे की गल्ती बताने में भी कुछ व्यक्तियों का अहं संतुष्ट होता है।"
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जीवन में हर चीज़ परफेक्ट हो


जीवन में हर चीज़ परफेक्ट हो

एक आदमी रोज़ नदी से पानी भर कर साहेब के घर तक ले जाया करता था. कन्धों पर एक लम्बी लकड़ी होती, जिसके दोनों सिरों पर एक एक घड़ा बंधा होता | उनमे से एक घड़ा थोडा सा क्रैक्ड था, तो सारे रास्ते उसमे से पानी रिसता रहता | तो मंजिल तक आते आते – एक घड़ा पूरा भरा होता, तो दूसरा सिर्फ आधा रह जाता | पहला घड़ा तो अपने पर्फोमेंस से काफी खुश था लेकिन यह घड़ा हमेशा हीन भावना में घिरा रहता |

एक दिन इस घड़े ने आदमी से कहा – तुम मुझे फेंक दो – और दूसरा घड़ा ले आओ – क्योंकि मैं अपना काम ठीक से नहीं कर पाता हूँ | तुम इतना भार उठा कर शुरू करते हो लेकिन पहुँचने तक मैं आधा खाली होता हूँ | 

इस पर आदमी ने उसे कहा – की आज जाते हुए तुम नीचे पगडण्डी को देखते चलना | घड़े ने ऐसा ही किया – रस्ते भर रंग बिरंगे फूलों से भरे पौधे थे | लेकिन मंजिल आते आते वह फिर आधा खाली हो जाने से दुखी था – उसने बोलना शुरू ही किया था की आदमी ने कहा – अभी कुछ मत कहो – लौटने के समय रास्ते की दूसरी तरफ भी देखते जाना | और लौटते हुए घड़े ने यह भी किया – लेकिन इस तरफ कोई फूल न थे |

नदी के किनारे अपने घर लौट कर उस आदमी ने घड़े को समझाया – मैं पहले से जानता हूँ की तुमसे पानी नहीं संभल पाता – पर यह बुरा ही हो ऐसा ज़रूरी तो नहीं !!! मैंने तुम्हारी और फूलों के पौधे रोप दिए थे – जिनमे तुम्हारे द्वारा रोज़ पानी पड़ता रहा – और वे खिलते रहे |

इसीलिए – हमें समझना है की जीवन में हर चीज़ परफेक्ट हो ऐसा कोई आवश्यक तो नहीं – ज़रुरत इस बात की है की हम हर कमी को पोजिटिव बना पाते हैं – या नहीं ….. | तो अब से हम – किसी को क्रैक्ड पोट कहने या- कोई हमें कहे तो हर्ट होने – से पहले यह कहानी याद करें |

वसीयत का बंटवारा


वसीयत का बंटवारा 

बहुत पुरानी कहानी है। किसी गांव में एक चतुर किसान रहता था। मरते समय वह अपनी वसीयत का बंटवारा निम्न प्रकार कर गया। बड़े बेटे को उसकी सम्पति का आधा हिस्सा मिले, मंझले बेटे को एक चैथाई व उसकी सम्पति का छठाँ भाग सबसे छोटे बेटे को मिले। किसान की कुल जमा पूंजी उसकी ग्यारह गायंे थी। उसके मरने पर बंटवारे का चक्कर पड़ गया। गायों का बंटवारा 1/2, 1/4, 1/6, कैसे करें।
अन्त में गंाव के एक समझदार व्यक्ति ने कहा कि उसकी पूंजी में मेरी एक गाय मिला लो, फिर उसका बंटवारा कर दो। अब तो बात बहुत साफ हो गई। बड़े बेटे को बारह की आधी यानी छः गायें दे दी गई। मझले बेटे को बारह की चैथाई यानी तीन गायंे बांटी गई। छोटे बेटे को बारह का छठा हिस्सा दो गायें दे दी गई।इस प्रकार छः योग तीन योग दो कुल मिलाकर ग्यारह गायें तीनों बेटो में बांट दी गई। बची शेष गाय गांव के समझदार व्यक्ति को पुनः सोंप दी गई।
यह गाय शब्द है जो आपके भावों को जगा सके। यह मेरी गाय संकेत करती है आपको जगाने हेतु, आपकी पूंजी को प्राप्त करने में। अगर प्राप्त कर सके तो यह लेखक आभारी रहेगा।



विचारों का प्रभाव: राजा किसी सेठ को फांसी पर क्यों चढा़ना चाहता है ?


विचारों का प्रभाव: राजा किसी सेठ को फांसी पर क्यों चढा़ना चाहता है ?


हमारा मन विचारों से ही बनता है। हम मन के अनुसार अर्थात विचारों के अनुसार चलते है। अतः विचारों को बदलना स्वयं को बदलने हेतु जरूरी है।
एक राजा ने अपने जन्म दिन पर नगर के प्रमुख साहुकारों को भोज दिया। भोज के दौरान प्रत्येक सेठ से राजा स्वंय मिला। राजा सभी सेठों से मिलकर प्रसन्न हुआ। लेकिन एक सेठ से मिलने पर राजा के मन में भाव आया कि इस सेठ को फांसी दे दी जानी चाहिए। राजा ने तब तो कुछ नहीं कहा लेकिन इस तरह का विचार मन में उठने का कारण खोजने लगा।
दूसरे दिन राजा ने अपने मन्त्रियों से उसके मन में उक्त विचार आने का कारण पूछा। एक बुद्धिमान मन्त्री ने कहा कि इसका पता लगाने का वक्त दिया जाय। मन्त्री ने अपने गुप्तचरों से उस सेठ के बारे में जानकारी इकट्ठी करवाई।
कुछ दिनों बाद गुप्तचरों ने बताया कि वह सेठ चन्दन लकड़ी का व्यापारी है। लेकिन विगत तीन-चार माह से उसका व्यवसाय ठीक नहीं चल रहा था। अतः वह सोचता है कि राजा की मृत्यु हो जाय तो उसकी ढेर सारी चन्दन की लकड़ी बिक जाय। अतः वह राजा की मौत की कामना करने लगा। सम्राट के सेठ से मिलने पर सम्राट के अचेतन मन ने सेठ के मन के भावों को पढ़ कर प्रतिक्रिया कि सेठ को फांसी पर चढ़ाना चाहिए।
मन्त्री बड़ा चतुर था। उसने सोचा सम्राट को यह बता दे तो सेठ अनावश्यक खतरे में पड़ जाएगा। इसलिए उसने एक तरकीब सोची। सेठ से प्रतिदिन दो किलो चन्दन की लकड़ी महलों में उपयोग हेतु खरीदनी शुरू की। अब प्रतिदिन दो किलो चन्दन की लकड़ी बिकने लगी। सेठ सोचने लगा कि राजा चिरायु हो। उनसे उसका व्यवसाय हो रहा है। राजा के बदलने पर नया राजा रोज लकड़ी खरीदे या नहीं इसलिए वह राजा की लम्बी उम्र की कामना करने लगा।
राजा ने अगले वर्ष फिर अपने जन्म दिन पर बड़े सेठों को भोजन पर बुलाया। इस बार राजा उस सेठ से व्यक्तिगत रूप से मिले तो उसे लगा सेठ बहुत अच्छा है। इसकी आयु लम्बी होनी चाहिए। अब इस तरह के विचार आने का कारण राजा ने फिर मन्त्री से पूछा। मन्त्री ने बताया कि राजा हम सब का मन बहुत सूक्ष्म है, हमारा अचेतन मन सामने वाले के मन में गुप्त चलते विचारों का चुपचाप पकड़ लेता है। उस पर स्वतः प्रतिक्रिया करता है। इस बार सेठ आप की आयु बढ़ाने की प्रार्थना मन ही मन करता था। चूंकि इससे उसका व्यवसाय चल निकला था। प्रतिदिन दो किलो चन्दन की लकड़ी बिक रहीं थी। अतः उसके मन में चलते गुप्त विचारों को आपके मन को पकड़ लेता है।
हम विश्वास कर विश्वास पाते हंै। अविश्वास कर दूसरे को अविश्वास करने का अवसर देते है। हम यदि जीवन में सुख चाहते हैं तो हमें दूसरों पर बिना कारण अविश्वास नहीं करना चाहिए। हमारे यहाँ अभी चारों तरफ अविश्वास हैं। अविश्वास संदेह को बढ़ाता है।
हमें सकारात्मक होने के लिए बिना कारण किसी पर भी अविश्वास नहीं करना चाहिए। जीवन में सफल होने के लिये दूसरों पर भरोसा कराना चाहिए। यथापि इसमें कभी कभी अस्सी बीस का सिद्धान्त लागू करें। भरोसा करेगें तो आप के काम बनेंगे। कभी ठोकर लगे तो इसे अपवाद मान ले। बिना परीक्षण किए सब को गलत या चोर मानना गलत है।
जब हम किसी से घृणा करते हंै तो हम अनजाने ही उस व्यक्ति को घृणा करने के लिए प्रेरित करते है। हम सब के व्यक्तित्व में कुछ गुण जन्मजात होते है। उनको तो बदलना थोड़ा कठिन है। लेकिन कुछ गुण हम यहीं पर सीखते है, उन्हें बदलना आसान होता है। यदि कोई पूरी तरह जन्मजात नकारात्मक है तो उसे हम इस तरह सकारात्मक विचार कर नहीं बदल सकते हैं। लेकिन जिसने वातावरण से नकारात्मकता सीखी है उसे हम अच्छे विचार कर बदल सकते है


Wednesday, January 9, 2013

सिर्फ तुम


सिर्फ तुम

जब एक नए शिष्य ने मठ में प्रवेश लिया तो गुरू जी ने उससे सबसे पहले यह प्रश्न किया - 

"क्या तुम ऐसे व्यक्ति को जानते हो जो सारी उम्र तुम्हारा साथ नहीं छोड़ेगा?" 

"वह कौन है गुरूजी?" 

"सिर्फ तुम" 

"और क्या तुम ऐसे व्यक्ति को जानते हो जिसके पास तुम्हारे सभी प्रश्नों का उत्तर हो?" 

"वह कौन है गुरूजी?" 

"सिर्फ तुम" 

"और क्या तुम अपनी सभी समस्याओं का उत्तर जानते हो?" 

"मैं नहीं जानता गुरूजी।" 

"सिर्फ तुम"

इतिहास लिखें या बनाएँ


इतिहास लिखें या बनाएँ

नेताजी सुभाष चंद्र बोस सच्चे कर्मवीर थे. आमतौर पर वे आम सैनिकों की भांति ही कार्यरत रहते थे. एक मर्तबा अनौपचारिक बातचीत में आजाद हिंद फौज के एक अफसर ने नेताजी को सुझाव दिया कि आजाद हिंद फौज का इतिहास लिख लेना चाहिए.

नेताजी ने तत्काल जवाब दिया – “पहले हम इतिहास तो बना लें. फिर कोई न कोई तो लिख ही देगा!”

"इतिहास लिखा नहीं जाता अपितु इतिहास बनाया जाता हैं!
"

दुनिया का विनाश


दुनिया का विनाश

एक बौद्धलामा "दुनिया का विनाश" विषय पर एक व्याख्यान देने वाले थे। उनके इस व्याख्यान का बहुत प्रचार-प्रसार किया गया, जिसके परिणामस्वरूप बहुत बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ उन्हें सुनने के लिए मठ में एकत्र हो गयी।

लामाजी का व्याख्यान एक मिनट से कम समय में समाप्त हो गया।

उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा - "ये सारी चीजें मानवजाति का विनाश कर देंगी - अनुकंपा के बिना राजनीति, काम के बिना दौलत, मौन के बिना शिक्षा, निडरता के बिना धर्म और जागरूकता के बिना उपासना।"

मीठा बदला


मीठा बदला

एक बार एक देश के सिपाहियों ने शत्रुदेश का एक जासूस पकड़ लिया. जासूस के पास यूँ तो कोई आपत्तिजनक वस्तु नहीं मिली, मगर उसके पास स्वादिष्ट प्रतीत हो रहे मिठाइयों का एक डब्बा जरूर मिला.

सिपाहियों को मिठाइयों को देख लालच आया. परंतु उन्हें लगा कि कहीं यह जासूस उसमें जहर मिलाकर तो नहीं लाया है. तो इसकी परीक्षा करने के लिए उन्होंने पहले जासूस को मिठाई खिलाई. और जब जासूस ने प्रेम पूर्वक थोड़ी सी मिठाई खा ली तो सिपाहियों ने मिल कर मिठाई का पूरा डिब्बा हजम कर लिया और उस जासूस को जेल में डालने हेतु पकड़ कर ले जाने लगे.

इतने में उस जासूस को चक्कर आने लगे और वो उबकाइयाँ लेने लगा. उसकी इस स्थिति को देख कर सिपाहियों के होश उड़ गए. वह जासूस बोला – लगता है मिठाइयों में धीमा जहर मिला हुआ था. खाने के कुछ देर बाद इसका असर होना चालू होता है लगता है. और ऐसा कहते कहते वह जासूस जमीन में ढेर हो गया. वह बेहोश हो गया था.सिपाहियों की तो हवा निकल गई. वे जासूस को वहीं छोड़ कर चिकित्सक की तलाश में भाग निकले.

इधर जब सभी सिपाही भाग निकले तो जासूस उठ खड़ा हुआ और इस तरह अपने भाग निकलने के मीठे तरीके पर विजयी मुस्कान मारता हुआ वहां से छूमंतर हो हो गया

हर कोई नायक है


हर कोई नायक है

एक दिन एक गणितज्ञ ने जीरो से लेकर नौ अंक तक की सभा आयोजित की। सभा में जीरो कहीं दिखायी नहीं पड़ रहा था। सभी ने उसकी तलाश की और अंततः उसे एक झाड़ी के पीछे छुपा हुआ पाया। अंक एक और सात उसे सभा में लेकर आये।

गणितज्ञ ने जीरो से पूछा - "तुम छुप क्यों रहे थे?"

जीरो से उत्तर दिया - "श्रीमान, मैं जीरो हूं। मेरा कोई मूल्य नहीं है। मैं इतना दुःखी हूं कि झाड़ी के पीछे छुप गया।"

गणितज्ञ ने एक पल विचार किया और तब अंक एक से कहा कि समूह के सामने खड़े हो जाओ। अंक एक की ओर इशारा करते हुए उसने पूछा - "इसका मूल्य क्या है?" सभी ने कहा - "एक"। इसके बाद उसने जीरो को एक के दाहिनी ओर खड़े होने को कहा। फिर उसने सबसे पूछा कि अब इनका क्या मल्य है? सभी ने कहा - "दस"। इसके बाद उसने एक के दाहिनी ओर कई जीरो बना दिए। जिससे उसका मूल्य इकाई अंक से बढ़कर दहाई, सैंकड़ा, हजार और लाख हो गया।

गणितज्ञ जीरो से बोला - "अब देखिये। अंक एक का अपने आप में अधिक मूल्य नहीं था परंतु जब तुम इसके साथ खड़े हो गए, इसका मूल्य बढ़कर कई गुना हो गया। तुमने अपना योगदान दिया और बहुमूल्य हो गए।"

उस दिन के बाद से जीरो ने अपनेआप को हीन नहीं समझा। वह यह सोचने लगा - "यदि मैं अपनी भूमिका का सर्वश्रेष्ठ तरीके से निर्वहन करूं तो कुछ सार्थक होगा। जब हम एक-दूसरे के साथ मिलकर कार्य करते हैं तो हम सभी का मूल्य बढ़ता है।"

"जब हम एक दूसरे के साथ कार्य करते हैं, तो बेहतर कार्य करते हैं।



तो समस्या क्या है?


तो समस्या क्या है?



नसरूद्दीन एक दुकान पर गया जहाँ तमाम तरह के औजार और स्पेयरपार्ट्स मिलते थे.
“क्या आपके पास कीलें हैं?”
“हाँ”

“और चमड़ा, बढ़िया क्वालिटी का चमड़ा”
“हाँ है”

“और जूते बांधने का फीता”
“हाँ”

“और रंग”
“वह भी है”

“तो फिर तुम जूते क्यों नहीं बनाते?”




मृगतृष्णा


मृगतृष्णा


जब महात्मा बुद्ध ने राजा प्रसेनजित की राजधानी में प्रवेश किया तो वे स्वयं उनकी आगवानी के लिए आये। वे महात्मा बुद्ध के पिता के मित्र थे एवं उन्होंने बुद्ध के संन्यास लेने के बारे में सुना था।

अतः उन्होंने बुद्ध को अपना भिक्षुक जीवन त्यागकर महल के ऐशोआराम के जीवन में लौटने के लिए मनाने का प्रयास किया। वे ऐसा अपनी मित्रता की खातिर कर रहे थे।

बुद्ध ने प्रसेनजित की आँखों में देखा और कहा, "सच बताओ। क्या समस्त आमोद-प्रमोद के बावजूद आपके साम्राज्य ने आपको एक भी दिन का सुख प्रदान किया है?"

प्रसेनजित चुप हो गए और उन्होंने अपनी नजरें झुका लीं।

"दुःख के किसी कारण के न होने से बड़ा सुख और कोई नहीं है; 
और अपने में संतुष्ट रहने से बड़ी कोई संपत्ति नहीं है



तुम्हारा फर्नीचर कहाँ है?


तुम्हारा फर्नीचर कहाँ है?


पिछली शताब्दी की बात है। एक अमेरिकी पर्यटक सुप्रसिद्ध पुलिस कर्मचारी रब्बी हॉफेज़ चैम से मिलने गया।

उसे यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि रब्बी सिर्फ एक कमरे में रहते थे और वह भी किताबों से भरा हुआ था। उसमें फर्नीचर के नाम पर सिर्फ एक मेज और कुर्सी थी।

"तुम्हारा फर्नीचर कहाँ हैं रब्बी?" - पर्यटक ने पूछा ।

"और तुम्हारा कहाँ हैं?" - रब्बी ने कहा ।

"मेरा फर्नीचर ! लेकिन मैं तो यहाँ एक पर्यटक हूँ और यहाँ से गुजर ही रहा था।"

"और मैं भी" -- -- -- रब्बी ने भोलेपन से कहा



Saturday, December 29, 2012

Motivational Hindi Stories - उधार का धन, भाग्य और ज्ञान काम नहीं आता


उधार का धन, भाग्य और ज्ञान काम नहीं आता

एक प्रेरणाप्रद कथा जो अवश्य हम सबका मार्ग दर्शन करेगी

उधार का धन, भाग्य और ज्ञान काम नहीं आता. वह अपने साथ मुसीबतें भी लाता है. अपने आप अर्जित किया हुआ ही फलदायी होता है".

स्कूल के प्रिंसीपल माइक के पास पहुँचे. उन्होने सामने बैठी और खड़ी
भीड़ को देखा और बोलना शुरु किया.

आज मैं अंतिम बार इस स्कूल के प्रिंसीपल के रुप में आप सबसे बात कर रहा हूँ. इसी जगह खड़े होकर मैंने बरसों भाषण दिये हैं.आज जब मेरी नौकरी का अंतिम दिन है
इस परिसर में इस मंच से अपने अंतिम सम्बोधन में एक कथा आप सबसे, विधार्थियों से खास तौर पर, कहना चाहूँगा.

बहुत साल पहले की बात है एक लड़का था. उम्र तकरीबन आठ-नौ साल रही होगी उस समय उसकी. एक शाम वह तेजी से लपका हुआ घर की ओर जा रहा था. दोनों हाथ उसने अपने सीने पर कस कर जकड़ रखे थे और हाथों में कोई चीज छिपा रखी थी. साँस उसकी तेज चल रही थी.घर पहुँच कर वह सीधा अपने दादा के पास पहुँचा.

बाबा, देखो आज मुझे क्या मिला ?

उसने दादा के हाथ में पर्स की शक्ल का एक छोटा सा बैग थमा दिया.

ये कहाँ मिला तुझे बेटा ?

खोल कर तो देखो बाबा, कितने सारे रुपये हैं इसमें।

इतने सारे रुपये? कहाँ से लाया है तू इसे?

बाबा सड़क किनारे मिला. मेरे पैर से ठोकर लगी तो मैंने उठाकर देखा. खोला तो रुपये मिले. कोई नहीं था वहाँ मैं इसे उठा लाया.

तूने देखा वहाँ ढ़ंग से कोई खोज नहीं रहा था इसे ?

नहीं बाबा वहाँ कोई भी नहीं था. आप और बाबूजी उस दिन पैसों की बात कर रहे थे अब तो हमारे बहुत सारे काम हो जायेंगे।

पर बेटा ये हमारा पैसा नहीं है.

पर बाबा मुझे तो ये सड़क पर मिला अब तो ये मेरा ही हुआ.

दादा के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आयीं.

नहीं बेटा, ये तुम्हारा पैसा नहीं है. उस आदमी के बारे में सोचो जिसका इतना सारा पैसा खो गया है. कौन जाने कितने जरुरी काम के लिये वह इस पैसे को लेकर कहीं जा रहा हो. पैसा खो जाने से उसके सामने कितनी बड़ी परेशानी आ जायेगी. उस दुखी आदमी की आह भी तो इस पैसे से जुड़ी हुयी है। हो सकता है इस पैसे से हमारे कुछ काम हो जायें और कुछ आर्थिक परेशानियाँ इस समय कम हो जायें पर यह पैसा हमारा कमाया हुआ नहीं है, इस पैसे के साथ किसी का दुख दर्द जुड़ा हो सकता है, इन सबसे पैदा होने वाली परेशानियों की बात तो हम जानते नहीं. जाने कैसी मुसीबतें इस पैसे के साथ आकर हमें घेर लें. उस आदमी का दुर्भाग्य था कि उसके हाथ से बैग गिर गया पर वह दुर्भाग्य तो इस पैसे से जुड़ा हुआ है ही. हमें तो इसे इसके असली मालिक के पास पहुँचाना ही होगा.

किस्सा तो लम्बा है. संक्षेप में इतना बता दूँ कि लड़के के पिता और दादा ने पैसा उसके मालिक तक पँहुचा दिया.

इस घटना के कुछ ही दिनों बाद की बात है. लड़का अपने दादा जी के साथ टहल रहा था. चलते हुये लड़के को रास्ते में दस पैसे मिले, उसने झुककर सिक्का उठा लिया.

उसने दादा की तरफ देखकर पूछा,"बाबा, इसका क्या करेंगे क्या इसे यहीं पड़ा रहने दें अब इसके मालिक को कैसे ढ़ूँढ़ेंगे ?”
दादा ने मुस्कुरा कर कहा, "हमारे देश की मुद्रा है बेटा नोट छापने, सिक्के बनाने में देश का पैसा खर्च होता है. इसका सम्मान करना हर देशवासी का कर्तव्य है. इसे रख लो. कहीं दान-पात्र में जमा कर देंगे.

बाबा, इसके साथ इसके मालिक की आह नहीं जुड़ी होगी ?

बेटा, इतने कम पैसे खोने वाले का दुख भी कम होगा. इससे उसका बहुत बड़ा काम सिद्ध नहीं होने वाला था. हाँ तुम्हारे लिये इसे भी रखना गलत है. इसे दान-पात्र में डाल दो, किसी अच्छे काम को करने में इसका उपयोग हो जायेगा.

लड़के को कुछ असमंजस में पाकर दादा ने कहा, "बेटा उधार का धन, भाग्य और ज्ञान काम नहीं आता. वह अपने साथ मुसीबतें भी लाता है. अपने आप अर्जित किया हुआ ही फलदायी होता है".

आज वह लड़का आपके सामने आपके प्रिंसीपल के रुप में खड़ा है.

हंस और हंसिनी और उल्लू


हंस और हंसिनी और  उल्लू 

MUST READ MUST READ, TRUE FACT 

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए उजड़े, वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये ! हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ? यहाँ न तो जल है,
न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं ! यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !

भटकते २ शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज कि रात बितालो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !

रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे उस पर एक उल्लू बैठा था। वह जोर २ से चिल्लाने लगा। हंसिनी ने हंस से कहा, अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते। ये उल्लू चिल्ला रहा है।

हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ? ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।
पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों कि बात सुन रहा
था।

सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।
हंस ने कहा, कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद !

यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा, पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।
हंस चौंका, उसने कहा, आपकी पत्नी? अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है, मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही
है !

उल्लू ने कहा, खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है। दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग इक्कठा हो गये। कई गावों की जनता बैठी।

पंचायत बुलाई गयी। पंच लोग भी आ गये ! बोले, भाई किस बात का विवाद है ?
लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है ! लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पञ्च लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे।
हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है। इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना है ! फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों कि जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है ! यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया।
उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली ! रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई !

ऐ मित्र हंस, रुको ! हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ? पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ? उल्लू ने कहा, नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी !

लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है !

मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है ।
यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पञ्च रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं !

शायद ६५ साल कि आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने हमेशा अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है ।

इस देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं।

हर पढने वाला ध्यान से मनन करे क़ि इस बिगड़ी हुई व्यवस्था को सुधारने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

जय श्री राधे कृष्णा जी...

Motivational Hindi Stories - कितनी ज़मीन?


कितनी ज़मीन?

Leo Tolstoy
यह लेव तॉल्स्तॉय की प्रसिद्ध कहानी है :


Very good story. memory of my childhood days

एक आदमी के घर एक संन्यासी मेहमान आया – एक परिव्राजक. रात को बातें हुईं. उस परिव्राजक ने कहा, “तुम यहाँ क्या छोटी-मोटी खेती में लगे हो. साइबेरिया में मैं यात्रा पर था तो वहाँ जमीन इतनी सस्ती है कि मुफ्त ही मिलती है. तुम यह जमीन वगैरह छोड़कर साइबेरिया चले जाओ. वहाँ हजारों एकड़ जमीन मिल जाएगी. बड़ी ज़मीन में मनचाही फसल उगाओ. और लोग वहाँ के इतने सीधे-सादे हैं कि करीब-करीब मुफ्त ही जमीन दे देते हैं.”

उस आदमी के मन में लालसा जगी. उसने तुरंत ही सब बेच-बाचकर साइबेरिया की राह पकड़ी. जब पहुँचा तो उसे बात सच्ची मालूम पड़ी. उसने वहां के ज़मींदारों से कहा, “मैं जमीन खरीदना चाहता हूँ.” वे बोले, “ठीक है. जमीन खरीदने का तुम जितना पैसा लाए हो उसे मुनीम के पास जमा करा दो. जमीन बेचने का हमारा तरीका यह है कि कल सुबह सूरज के निकलते ही तुम चल पड़ो और सूरज के डूबते तक जितनी जमीन घेर सकते हो घेर लो. वह सारी जमीन तुम्हारी होगी. बस चलते जाना, चाहो तो दौड़ भी लेना. भरपूर बड़ी जमीन घेर लेना और सूरज के डूबते-डूबते ठीक उसी जगह पर लौट आना जहाँ से चले थे. बस यही शर्त है. जितनी जमीन तुम घेर लोगे, उतनी जमीन तुम्हारी हो जाएगी.”

यह सुनकर रात-भर तो सो न सका वह आदमी. कोई और भी नहीं सो पाता. ऐसे क्षणों में कोई सोता है? रात भर वह ज्यादा से ज्यादा ज़मीन घेरने की तरकीबें लगाता रहा. सुबह सूरज निकलने के पहले ही भागा. उसका कारनामा देखने के लिए पूरा गाँव इकट्ठा हो गया था. सुबह का सूरज ऊगा, वह भागा. उसने साथ अपनी रोटी भी ले ली थी, पानी का भी इंतजाम कर लिया था. रास्ते में भूख लगे, प्यास लगे तो सोचा था चलते ही चलते खाना भी खा लूँगा, पानी भी पी लूँगा. रुकना नहीं है; चलना भी नहीं है, बस दौड़ते रहना है. सोचा उसने, चलने से तो आधी ही जमीन कर पाऊँगा, दौड़ने से दुगनी हो सकेगी – वह भागा… बहुत तेज भागा….

उसने सोचा था कि ठीक बारह बजे लौट पड़ूँगा, ताकि सूरज डूबते-डूबते पहुँच जाऊँ. बारह बज गए, मीलों चल चुका है, मगर वासना का कोई अंत है? उसने सोचा कि बारह तो बज गए, लौटना चाहिए; लेकिन सामने और उपजाऊ जमीन, और उपजाऊ जमीन… थोड़ी सी और घेर लूँ तो क्या हर्ज़ है! वापसी में ज्यादा तेज़ दौड़ लूँगा. इतनी ही बात है, फिर तो पूरी ज़िंदगी आराम ही करना है. एक ही दिन की तो बात है!

उसने पानी भी न पीया, क्योंकि उसके लिए रुकना पड़ेगा. सोचा, एक दिन की ही तो बात है, बाद में पी लेंगे पानी, फिर जीवन भर पीते रहेंगे. उस दिन उसने खाना भी न खाया. रास्ते में उसने खाना भी फेंक दिया, पानी भी फेंक दिया, क्योंकि उनका वजन भी ढोना पड़ा रहा है, इसलिए दौड़ ठीक से नहीं पा रहा है. उसने अपना कोट भी उतार दिया, अपनी टोपी भी उतार दी, जितना हल्का हो सकता था हो गया.

एक बज गया, लेकिन लौटने का मन नहीं होता, क्योंकि आगे और अच्छी ज़मीन नज़र आती है. लेकिन लौटना तो था ही, दोपहर के दो बज रहे थे. वह घबरा गया. अब शरीर जवाब दे रहा था. सारी ताकत लगाई; लेकिन ताकत तो चुकने के करीब आ गई थी. सुबह से दौड़ रहा था, हाँफ रहा था, घबरा रहा था कि पहुँच पाऊँगा सूरज डूबते तक कि नहीं. सारी ताकत लगा दी. पागल होकर दौड़ा. सब दाँव पर लगा दिया. और सूरज डूबने लगा… ज्यादा दूरी भी नहीं रह गई है, लोग दिखाई पड़ने लगे. गाँव के लोग खड़े हैं और आवाज दे रहे हैं कि आ जाओ, आ जाओ! उत्साह दे रहे हैं, भागे आओ! कैसे देहाती लोग हैं, – सोचने लगा मन में; इनको तो सोचना चाहिए कि मैं मर ही जाऊँ, तो इनको धन भी मिल जाए और जमीन भी न जाए. मगर वे बड़ा उत्साह दे रहे हैं कि भागे आओ!

उसने आखिरी दम लगा दी – भागा, भागा… सूरज डूबने लगा; इधर सूरज डूब रहा है, उधर भाग रहा है… सूरज डूबते-डूबते बस जाकर गिर पड़ा. कुछ पाँच-सात गज की दूरी रह गई है; घिसटने लगा.

अभी सूरज की आखिरी कोर क्षितिज पर रह गई – घिसटने लगा. और जब उसका हाथ उस जमीन के टुकड़े पर पहुँचा, जहाँ से भागा था, उस खूँटी पर, सूरज डूब गया. वहाँ सूरज डूबा, यहाँ यह आदमी भी मर गया. इतनी मेहनत कर ली! शायद दिल का दौरा पड़ गया. और सारे गाँव के लोग जिन्हें वह सीधा-सादा समझ रहा था, वे हँसने लगे और एक-दूसरे से बात करने लगे!

“ये पागल आदमी आते ही जाते हैं! इस तरह के पागल लोग आते ही रहते हैं!”

यह कोई नई घटना न थी, अक्सर लोग आ जाते थे खबरें सुनकर, और इसी तरह मरते थे. यह कोई अपवाद नहीं था, यही नियम था. अब तक ऐसा एक भी आदमी नहीं आया था, जो घेरकर जमीन का मालिक बन पाया हो. उस गाँव के लोगों के खाने-कमाने का जरिया थे ऐसे आदमी.

यह कहानी तुम्हारी कहानी है, तुम्हारी जिंदगी की कहानी है, सबकी जिंदगी की कहानी है. यही तो तुम कर रहे हो – दौड़ रहे हो कि कितनी जमीन घेर लें! बारह भी बज जाते हैं, दोपहर भी आ जाती है, लौटने का भी समय होने लगता है – मगर थोड़ा और दौड़ लें! न भूख की फिक्र है, न प्यास की फिक्र है.

जीने का समय कहाँ है? पहले जमीन घेर लें, पहले तिजोरी भर लें, पहले बैंक में रुपया इकट्ठा हो जाए; फिर जी लेंगे, फिर बाद में जी लेंगे, एक ही दिन का तो मामला है. और कभी कोई नहीं जी पाता. गरीब मर जाते हैं भूखे, अमीर मर जाते हैं भूखे, कभी कोई नहीं जी पाता. जीने के लिए थोड़ा सुकून चाहिए. जीने के लिए थोड़ी समझ चाहिए. जीवन मुफ्त नहीं मिलता. जीने के लिए बोध चाहिए.


Motivational Hindi Stories - जेब कट चुकी थी

 Motivational Hindi Stories - जेब कट चुकी थी


बस से उतरकर जेब में हाथ डाला। मैं चौंक पड़ा।
जेब कट चुकी थी। जेब में था भी क्या? कुल
नौ रुपए और एक खत,
जो मैंने
माँ को लिखा था कि—मेरी नौकरी छूट गई है;

अभी पैसे नहीं भेज पाऊँगा…।
तीन दिनों से वह पोस्टकार्डजेब में पड़ाथा।
पोस्ट करने को मन ही नहीं कर रहा था।
नौ रुपए जा चुके थे।यूँ नौ रुपए कोई बड़ी रकम

नहीं थी, लेकिन जिसकी नौकरी छूट चुकी हो,
उसके लिएनौ रुपए नौ सौ से कम नहीं होते।
कुछ दिन गुजरे। माँ का खत मिला। पढ़ने से पूर्वमैं
सहम गया।
जरूर पैसे भेजने को लिखाहोगा।….
लेकिन, खत पढ़कर मैं हैरान रह गया।
माँ ने लिखाथा—“बेटा, तेरा पचास रुपए
का भेजा हुआ मनीआर्डर मिल गया है।तू
कितना अच्छा है रे!…पैसे भेजने में
कभी लापरवाहीनहीं बरतता।”
मैं इसी उधेड़- बुन में लग गया कि आखिर
माँ को मनीआर्डर किसने भेजाहोगा?
कुछ दिन बाद, एक और पत्र मिला। चंद लाइनें
थीं—आड़ी-तिरछी। -­ ­
बड़ी मुश्किल से खत पढ़
पाया।
लिखा था—“भाई, नौ रुपए तुम्हारे और
इकतालीस रुपए अपनी ओर सेमिलाकर मैंने
तुम्हारी माँ को मनीआर्डर भेज दिया है। फिकर
न करना।….
माँ तो सबकी एक-जैसी होती है न।
वह क्यों भूखी रहे?…
तुम्हारा—जेबकतरां