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Tuesday, October 18, 2016

.......जीवनसाथी......... ....तुमसे रुठ भी जाऊं मेरे प्रिय

.......जीवनसाथी.........
....तुमसे रुठ भी जाऊं मेरे प्रिय ,
....तुम्हारे लौटने का इंतज़ार होता है ।
....तैरती खामोशियो के मंजर पर,
..."सुनो तो" का असर हर बार होता है ।
....शिकवे अपनी जगह इस रिश्ते में,
 ....मुस्कुराना ही मनुहार होता है ।
.... संग न महज आसां राहों का मगर  ,
.... दुःखो पर भी मेरा अधिकार होता है ।
......मन की गिरह जब जब खुले  ,
....नयी शुरुवात जैसे त्यौहार होता है ।
..... व्रत ,पूजन सब तुम्हारी खातिर,
.... ..चाँद से सजदा मेरा हर बार होता है ।
......ये कैसा रिश्ता सात फेरो में बंधा ,
.... शिकायत जिनसे उन्ही से प्यार होता है।
 ( ..आप सभी को अपनी "कहानी" लगने वाली इस आत्मीय कविता के साथ ."करवाचौथ"  की शुभकामनाये और अनंत बधाइयां  )

अखंड सुहाग रहे सबका,      माथे पर बिंदीया चमकती रहे,
 हाथों में चूड़ा और पांवों में पायल,                                 सर पर चुनड़ लाल सजती रहे।
 हे चौथ माता सब पर कृपा रखना।                                     एक दूजे का साथ बनाए रखना।  🙏



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