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Wednesday, July 6, 2016

प्रियमित्रो,अपने इतिहास से परिचित कराती एक सत्य घटना है।कृपया अवश्य पढे । एक बार औरंगजेब के दरबार में एक शिकारी जंगल से पकड़कर एक बड़ा भारी शेर लाया !


प्रियमित्रो,अपने इतिहास से परिचित कराती एक सत्य घटना है।कृपया अवश्य पढे ।
एक बार औरंगजेब के दरबार
में एक शिकारी जंगल से
पकड़कर एक बड़ा भारी
शेर लाया !
लोहे के पिंजरे में बंद शेर
बार-बार दहाड़ रहा था !
बादशाह कहता था... इससे
बड़ा भयानक शेर दूसरा नहीं मिल
सकता ! दरबारियों ने
हाँ में हाँ मिलायी.. किन्तु वहाँ मौजूद
राजा यसवंत सिंह
जी ने कहा - इससे भी अधिक
शक्तिशाली शेर मेरे पास है !
क्रूर एवं अधर्मी औरंगजेब को बड़ा क्रोध
हुआ ! उसने
कहा तुम अपने शेर को इससे लड़ने
को छोडो..
यदि तुम्हारा शेर हार
गया तो तुम्हारा सर काट
लिया जायेगा ...... !
दुसरे दिन किले के मैदान में
दो शेरों का मुकाबला देखने
बहुत बड़ी भीड़
इकट्ठी हो गयी ! औरंगजेब बादशाह
भी ठीक समय पर आकर अपने सिंहासन
पर बैठ
गया !
राजा यशवंत सिंह अपने दस वर्ष के पुत्र
पृथ्वी सिंह के
साथ आये ! उन्हें देखकर बादशाह ने
पूछा-- आपका शेर
कहाँ है ? यशवंत सिंह बोले- मैं अपना शेर
अपने साथ
लाया हूँ ! आप केवल लडाई
की आज्ञा दीजिये !
बादशाह की आज्ञा से जंगली शेर
को लोहे के बड़े
पिंजड़े में
छोड़ दिया गया ! यशवंत सिंह ने अपने
पुत्र को उस पिंजड़े
में घुस जाने को कहा !
बादशाह एवं
वहां के लोग हक्के-
बक्के रह गए ! किन्तु दस वर्ष
का निर्भीक बालक
पृथ्वी सिंह पिता को प्रणाम करके
हँसते-हँसते शेर के
पिंजड़े में घुस गया ! शेर ने पृथ्वी सिंह
की ओर देखा !
उस तेजस्वी बालक के नेत्रों
में देखते ही एकबार तो वह
पूंछ दबाकर पीछे हट गया..
लेकिन सैनिकों द्वारा
भाले की नोक से उकसाए
जाने पर शेर क्रोध में दहाड़
मारकर पृथ्वी सिंह पर टूट पड़ा !
वार बचा कर वीर बालक एक ओर
हटा और
अपनी तलवार खींच ली !
पुत्र को तलवार निकालते हुए देखकर
यशवंत सिंह ने पुकारा - बेटा, तू यह
क्या करता है ? शेर के पास तलवार है
क्या जो तू उसपर तलवार चलाएगा ?
यह
हमारे हिन्दू-धर्म की शिक्षाओं के
विपरीत है और
धर्मयुद्ध नहीं है !
पिता की बात सुनकर पृथ्वी सिंह ने
तलवार फेंक
दी और
निहत्था ही शेर पर टूट पड़ा ! अंतहीन
से दिखने वाले
एक
लम्बे संघर्ष के बाद आख़िरकार उस छोटे
से बालक ने शेर
का जबड़ा पकड़कर फाड़ दिया और फिर
पूरे शरीर
को चीर
दो टुकड़े कर फेंक दिया !
भीड़ उस वीर
बालक
पृथ्वी सिंह
की जय-जयकार करने लगी ! अपने..
और
शेर के
खून से
लथपथ पृथ्वी सिंह जब पिंजड़े से बाहर
निकला तो पिता ने
दौड़कर अपने पुत्र को छाती से
लगा लिया !
तो ऐसे थे हमारे पूर्वजों के कारनामे..
जिनके मुख-मंडल
वीरता के ओज़ से ओतप्रोत रहते थे !
और आज हम क्या बना रहे हैं
अपनी संतति को..
सारेगामा लिट्ल चैंप्स के नचनिये.. ?
आज समय फिर से मुड़ कर इतिहास के
उसी औरंगजेबी काल की ओर
ताक
रहा है.. हमें
चेतावनी देता हुआ सा.. कि ज़रुरत है
कि हिन्दू अपने
बच्चों को फिर से वही हिन्दू संस्कार
दें..
ताकि वक़्त पड़ने पर वो शेर से भी भिड़
जाये..!!!!!जगन्नाथ रथयात्रा की हार्दिक शुभकामनाऐ ।आपका दिन मंगलमय हो जय,जय,श्रीराधे🙏🙏🙏



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