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Tuesday, July 12, 2016

"जीत की खातिर एक जूनून चाहिए, जिसमें हो ऊबाल ऐसा एक खून चाहिए. ये आसमां भी आयेगा जमीन पर, बस इरादों में ऐसी एक गूंज चाहिए." "विचारों और शब्दों" की ताकत

"जीत की खातिर एक जूनून चाहिए, जिसमें हो ऊबाल ऐसा एक खून चाहिए.
ये आसमां भी आयेगा जमीन पर, बस इरादों में ऐसी एक गूंज चाहिए."
"विचारों और शब्दों" की ताकत
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क्या हमें ये पता है कि हमारे "विचारों या शब्दों" में कितनी ताकत होती है ?
जी हाँ हम जो भी बोल दें वो पूरे होकर ही रहते हैं, क्या ये बात हम जानते हैं ?
बिलकुल सही, हमारे "विचारों या शब्दों" में इतनी ताकत होती है कि जो एक बार हमारे मुँह से निकला उसे "पूरा होना ही होना" है.
पर प्रश्न उठता है तो फिर हमारी कही हुई हर बात पूरी क्योँ नहीं होती.
इसका सिर्फ और सिर्फ 1 ही कारण है -
हम स्वयं ही अपने "विचारों और शब्दों" को काट देते हैं जैसे हम आकाश में पतंग उड़ाते समय खुद ही पतंग की डोर को काट दें तो पतंग कहीं ब्रम्हाण्ड में विलीन हो जाती है उसी तरह हमारे विचारों और शब्दों को हम स्वयं ही "क्या" का कट मार कर ब्रम्हाण्ड में विलीन होने के लिए छोड़ देते हैं.
नहीं तो इंसान कोई बात "विचारे या बोले" वो पूरी न हो, ऐसा हो नहीं सकता.
मित्रों हमारी आदत होती है कि हम कुछ सोचते या बोलते हैं और उसके तुरंत बाद अपने पर ही शक करने लगते हैं जैसे :-
(1) मैं अपनी क्लास में top करूँगा,ये सोच लिया.
अब अगले ही मिनट से सोचने लगेंगे, "क्या" मैं अपनी क्लास में top कर सकता हूँ. बस मित्रों हमने अपने विचार को "क्या" का कट लगा कर ब्रम्हाण्ड में छोड़ दिया. अब यकीन मानिये मैं क्लास में top कर ही नहीं सकता.
(2) मैं अपने ऑफिस में सबसे बढ़िया employee बनूगा,ये सोच लिया.
अब अगले ही मिनट से सोचने लगेंगे, "क्या" मैं सबसे बढ़िया employee बन सकता हूँ. बस मित्रों हमने अपने विचार को "क्या" का कट लगा कर ब्रम्हाण्ड में छोड़ दिया. अब यकीन मानिये मैं सबसे बढ़िया employee नहीं बन सकता.
(3) मैं अपने business में top में रहूँगा, ये सोच लिया.
अब अगले ही मिनट से सोचने लगेंगे, "क्या" मैं business में top में पहुंचूंगा. बस मित्रों हमने अपने विचार को "क्या" का कट लगा कर ब्रम्हाण्ड में छोड़ दिया. अब यकीन मानिये मैं business में top में नहीं पहुँच सकता.
मित्रों इसी तरह के जितने भी विचार हमें आते हैं, हम उनमें "क्या" का कट लगा कर ब्रम्हाण्ड में विलीन होने के लिए छोड़ देते हैं. हमारे अधिकतर कामों में असफल होने का यही एकमात्र राज़ है.
मित्रों, सबसे पहले अपने ऊपर यकीन रखिये की ये काम "होगा ही होगा" और इस काम को "होना ही होना" है, कोई भी ताकत इसको नहीं रोक सकती, मित्रों ध्यान रहे उस विचार पर "क्या" का कट कतई मत लगाइएगा, वर्ना वो विचार ब्रम्हाण्ड में स्वतः ही विलीन हो जायेंगे, उसके बाद कोई भी ताकत उनको नहीं रोक सकती.
इसमें हमें स्वामी विवेकानंद जी की बात को किसी भी हाल में याद रखना होगा :-
"एक विचार लो. उस विचार को अपना जीवन बना लो. उसके बारे में सोचो, उसके सपने देखो, उस विचार को जियो, अपने मस्तिस्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, इसके बाद हमारा सोचा हुआ कोई भी विचार और बोले हुए शब्द पूरे न हो, ऐसा हो नहीं सकता.




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