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Saturday, November 14, 2015

भले ही ताज महल आगरा में हो लेकिन आगरा सबसे गन्दा शहर है पर्यटन आकर्षणों के बावजूद सर्वे में आगरा को सबसे गंदा शहर बताया गया है Agra is dirtiest place in World Tourism According to Survey Report, Even Taj Mehal is in Agra. Who is responsible for Rubbish City Agra ? What is Government of India, UP State Government is doing for City of Taj - Agra

भले ही ताज महल आगरा में हो लेकिन आगरा सबसे गन्दा शहर है 
पर्यटन आकर्षणों के बावजूद सर्वे में आगरा को सबसे गंदा शहर बताया गया है
Agra is dirtiest place in World Tourism According to Survey Report, Even Taj Mehal is in Agra.
Who is responsible for Rubbish City Agra ?  What is Government of India, UP State Government is doing for City of Taj - Agra




जितने भी लोग ताज महल घूमने जाते हैं , और आगरा शहर देखते हैं तो वो शहर की गंदगी को देख कर बहुत बुराई करते हैं । 

यहाँ  तक की यमुना किनारे ताज महल के पास ही गंदगी देखने को मिलती है 

आगरा की सड़कें नहीं गलियां हैं , गंदी बसें , ट्रांसपोर्ट के अच्छे साधन नहीं 


दुनिया भर के सैलानियों को रिझाते ताजमहल और स्मारकों की लंबी श्रृंखला वाले शहर की स्थिति हॉलीडे आईक्यू डॉट कॉम द्वारा कराए गए सर्वे में शर्मसार करती है। एक से बढ़कर एक पर्यटन आकर्षणों के बावजूद सर्वे में आगरा को सबसे गंदा शहर बताया गया है। यह स्थिति तब है, जबकि ताजनगरी स्मार्ट सिटी बनाने के लिए चुने गए देश के 100 शहरों में शुमार है।
देश के बड़े ट्रैवल पोर्टल में शुमार हॉलीडे आईक्यू डॉट कॉम द्वारा एक सर्वे भारतीय पर्यटकों के बीच कराया गया था। जिसमें शहर की गंदगी, प्रदूषण, अव्यवस्था, संसाधन, यातायात के साधन की स्थिति के आधार पर्यटकों से शहरों के बारे में उनके विचार लिए गए थे। कंपनी ने इस सर्वे के आधार पर देश के 10 गंदे शहरों की सूची जारी की है। जिनमें आगरा टॉप पर है। इस सूची के अन्य शहरों में बेंगलुरू, चेन्नई, दिल्ली, मुंबई, गोवा, जयपुर, अजमेर, इलाहाबाद और हैदराबाद हैं।

पता नहीं नरेंद्र मोदी जी कौन सा स्वच्छ्ता अभियान चला रहे हैं और स्मार्ट सिटी बना रहे हैं , दुनिया भर के पर्यटक हिंदुस्तान में सबसे पहले ताजमहल का दीदार करने आते हैं , और जब उस आगरा शहर की गंदगी को देखते हैं तो क्या हिंदुस्तान की छवि बनती होगी । 

आगरा में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी नहीं है , अंतरराष्ट्रीय टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा होना भी जरूरी है , भले ही हफ्ते, महीने  एक फ्लाइट मुख्य शहरों के बीच (उदाहरणार्थ - न्यूयॉर्क से आगरा, लन्दन से आगरा ) उड़ाई जाए 

दिल्ली की होटल लॉबी नहीं और खास नेतागण अपने निहित स्वार्थ के लिए नहीं चाहते की आगरा में सीधी फ्लाइट आएं और सीधे आगरा के होटलों में ठहरें । 
बात सिर्फ अपने फायदे की नहीं देश के फायदे की सोचें की अगर हिंदुस्तान को अंतरराष्ट्रीय टूरिज्म में पहचान बनानी है तो उसके विकास के लिए खर्च करना भी जरूरी है 

बहुत से टूरिस्ट्स के पास इतना समय नहीं होता की आगरा से बाई रोड आएं और आगरा एक दिन में घूमकर वापस लोट सकें 




इंटरनेट के द्वारा  संकलित जानकारी -
आगरा को दुनिया में प्रमुख पयर्टन स्थल के रूप में जाना जाता है. पूरे साल यहां पयर्टक लाखों की संख्या में आते हैं. प्रत्येक वर्ष करो़डों डॉलर की आय ताजमहल के कारण होती है. विश्व स्तर पर भारत का पयर्टन व्यवसाय ताजमहल के इर्द-गिर्द ही निर्भर है लेकिन ताजनगरी की गिनती देश के बीग्रेड शहरों में होने लगी है या कहें तो आगरा को मेट्रो सिटी कहा जाने लगा है. वैश्विक ऐतिहासिक धरोहर की पहचान रखने वाले मोहब्बत के शहर की एक ओर पहचान बन चुकी है. आगरा शहर को गंदगी के कारण अब पूरे भारत सहित दुनियां में जाना जाने लगा है, तो इसका एकमात्र श्रेय आगरा नगर-निगम को जाता है.

नगर-निगम आगरा ने ताजनगरी को एक ऐसी पहचान दे दी है, जिस पर प्रत्येक शहरवासी शर्मिंदा है. शहरी क्षेत्र का कोई ऐसा इलाक़ा नहीं है, जहां गंदगी और कूड़े का ढेर न लगा हों. आश्चर्यजनक रूप से आगरा का जो क्षेत्र नगर-निगम की सीमा में आ जाता है, वहां गंदगी अपना पैर पसारती है. शहरवासी अब सवाल करने लगे है कि यदि नगर-निगम के कारण शहर इतना गंदा बना हुआ है, तो विभाग का औचित्य क्या है? दूसरी तऱफ विभागीय नकारापन और अधिकारियों के हवाई दावों ने शहर की स्थिति को नारकीय बना डाला है. जनसमस्याओं के लिए प्रत्येक सप्ताह तहसील दिवस मनाया जाता है, जहां जनसाधारण की समस्याओं को लिखित रूप से स्वीकार कर के आला अधिकारियों द्वारा सक्षम अधिकारी अथवा विभाग को निर्देशित किया जाता है. नियमानुसार समस्या का निस्तारण एक सप्ताह तक हो जाना चाहिए, अथवा संबधित विभाग द्वारा उचित जबावदेही भी होनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. शहर की स़फाई को लेकर क्षेत्रवासियों ने अनेकों बार तहसील दिवस पर प्रार्थनापत्र दिए हैं लेकिन इन पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है. सूचना के अधिकार के अर्तगत पूछे जाने वाले सवालों का भी गोलमटोल उत्तर दिया जाता है.
शहरभर में अनेकों स्थानों पर प्रदूषित गंदे पानी मलमूत्र आदि की निकासी के लिए बनाए गए नाले-नालियों पर दबंगों द्वारा अतिक्रमण कर निर्माण कार्य करा लिया गया है, जिसके कारण क्षेत्रिय नागरिकों को स्थान-स्थान पर दुर्गंधयुक्त जलभराव की समस्या से दो चार होना पड़ रहा है. नाली चोक किए जाने से नगर के व्यस्ततम बोदला चौराहे पर पुलिस चौकी के सामने स्थित मकानों में दरार आ चुका है. स्थानीय लोगों ने महापौर से इसकी शिकायत की. नगर-निगम को पिछले तीन वर्षों से लगातार प्रार्थनापत्र दिया जा रहा है, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला. इस क्षेत्र में कभी भी कोई अप्रिय घटना घट सकती है. घनी आबादी वाले इस क्षेत्र में विभागीय कारीस्तानी के कारण अनेकों रिहायशी मकान गिरने की स्थिति में आ गए है. यह तो एक उदाहरण मात्र है, यह स्थिति शहर के हर जगह है. कई साल पहले विभाग में बाबा के नाम से मशहूर अधिकारी ने ज़रूर कुछ लोकप्रिय कार्य किए थे, जिसकी सराहना पूरे शहर ने की थी. लेकिन विभागीय कर्मचारियों और अधिनस्थ अधिकारियों को उनकी चुस्ती-फुरती रास नहीं आई थी, उनका तबादला हो गया. शहर के रिहायशी इलाक़ों में बच्चों के खेलने के लिए निर्धारित पार्कों पर कूड़े के ढेर लगा दिए गए है. कॉलोनियों के बीचों-बीच इस तरह के कूड़े के ढेर नगर-निगम के दावों को खोखला साबित करने के लिए पर्याप्त है. शाहगंज स्थित सत्य नगर कॉलोनी में पार्कस्थल पर नगर-निगम द्वारा खत्ताघर बना दिया गया है. यहां के नागरिकों ने अनेकों बार शिकायत की है लेकिन विभाग द्वारा समस्या का निस्तारण नहीं किया गया. ताजमहल के आसपास के दो किलोमीटर के क्षेत्र में जहां देसी-विदेशी सैलानी और वीआईपी होकर गुजरते हैं. यहां अनेकों फाइव स्टार होटल, थ्री स्टार होटल और लॉज एंपोरियम स्थित है. इस क्षेत्र में नगर-निगम द्वारा गंदगी की समस्या पर किसी प्रकार ध्यान नहीं दिया गया है. इस इलाक़े में अक्सर विदेशी पयर्टकों को शहर की गंदगी के नज़ारे को कैमरे में क़ैद करते हुए आसानी से देखा जा सकता है. पूरे नगर की स्थिति नारकीय बनी हुई है. पॉश इलाक़े वाले क्षेत्रों में भी स्थिति कहीं से भी ठीक नहीं है. सूर्यनगर, नेहरूनगर, जयपुर हाइस, विभव नगर कावेरी कुंज जैसे अधिकांश मंहगे रिहायशी इलाक़ों में विभाग की कारगुज़ारियां आसानी से प्रमाणित होती है. शहर की झुग्गी-झोंपड़ियों वाले क्षेत्रों की बात तो छोड़ दें. यहां तो खरंजों पर दुर्गंधयुक्त कीचड़ आसानी से देखा जा सकता है जिसके कारण अनेकों संक्रामक बीमारियां फैल रही है. आर्थिक रूप से कमज़ोर तबकों के लिए इलाज़ में आ रही दिक्कतों के लिए परोक्षरूप से विभाग ज़िम्मेदार है. यहीं नहीं मध्यम आयवर्ग, घनी आबादी वाले क्षेत्रों, आगरा विकास प्राधिकरण की कॉलोनियों, आवास-विकास की कॉलोनियों सहित तमाम शहर में कोई ऐसी जगह नहीं बची है, जहां स़फाई व्यवस्था दुरूस्त हो. गंदगी के कारण मच्छरों से आए दिन शहरवासी बीमार हो रहे हैं तो विभाग के पास इतने बड़े शहर में मच्छरों से निजात पाने के लिए मात्र दो फोगिंग मशीन है.

नगर-निगम में स़फाई कर्मचारियों की संख्या 2600 है जबकि लगभग एक हज़ार स़फाईकर्मी संविदा पर रखे हुए है. जबकि शहर की व्यवस्था को ठीक रखने के लिए कम से कम दस हज़ार स़फाईकर्मियों एवं मशीनों की पर्याप्त संख्या में आवश्कता है. शहरी विकास के लिए केंद्र सरकार की जेएनआरयूएम योजना के अंतर्गत सात हज़ार आठ सौ करोड़ की विकास योजनाओं का बंटाधार किया जा चुका है. संबंधित विभागों द्वारा समय से प्रोजेक्ट नहीं बन पाने के कारण धनराशि आवंटित नहीं हो पाई. कुछ माह पहले पूर्व नगर आयुक्त विनय शंकर पांडे ने ताजनगरी को गंदगी और पर्यावरण की दृष्टि से कुछ कल्याणकारी निर्णय लिए थे, जिसमें शहर को पॉलिथिन मुक्त बनाने का संकल्प लिया गया था. उनकी पहल का पूरे शहरवासियों ने सहयोग भी किया था. स्कूलों, कॉलेजों में ही नहीं शहर के गणमान्यों सहित व्यापारियों ने ताजनगरी को पॉलिथिनमुक्त बनाने के लिए अभियान को समर्थन दिया था. इसका व्यापक असर देखने को मिला. शहरभर में पॉलिथिन का प्रयोग बंद भी हो गया था, विभाग द्वारा अनेक जगहों पर जुर्माना भी वसूला गया लेकिन, उनका स्थानांतरण होते ही पॉलिथिन पूरे शहर में फिर से प्रयोग में आना शुरू हो गया. इसके पीछे सा़फतौर पर नगर-निगम के आलाअधिकारी ज़िम्मेदार है जिन्होनें इस अभियान को पलीता लगाया. ताजनगरी को पॉलीथिनमुक्त कराने के लिए का़फी प्रचार-प्रसार किया गया था. इसके लिए विज्ञापन भी दिए गए. भारी धनराशि खर्च करने के बाद विनय शंकर पांडे के विभाग से तबादला होने पर पॉलीथिन अभियान अचानक क्यों रोक दिया गया? यह सवाल लोगों के जेहन में बना हुआ है. मालूम हो पूर्व नगरआयुक्त विनय शंकर पांडे की छवि एक अच्छे अधिकारी के रूप में थी, उनके द्वारा पॉलीथिन के विरूद्व चलाए गए अभियान से पॉलीथिन निर्माताओं और इसका व्यवसाय करने वाले का़फी परेशान हो गए थे. यह आशंका थी कि कहीं उनका तबादला न हो जाए. लोगों की आशंका सही साबित हुई और उनका तबादला हो गया. ताजनगरी में पॉलीथिन का दुबारा प्रयोग शुरू होने के पीछे क्या खेल हुआ लेकिन आज भी ताजनगरी पॉलीथिन मुक्त नहीं हो पाया. शहर की गंदगी और कूड़े की समस्या के निस्तारण के लिए शहर के बाहर कुबेरपुर में करोड़ों रुपयों की लागत से प्लांट लगाया गया है, यहां नगर-निगम की गाड़ियां शहर का कूड़ा लेकर आती है. मगर स्थानों से पूरा कूड़ा नहीं उठाया जाता बल्कि इसकी मात्रा अवश्य कम कर दी जाती है. सूत्रों का कहना है कि नोएडा की जिस कंपनी को कूड़ा निस्तारण का काम सौंपा गया है, वो ठीक काम नहीं कर रही है. कूड़ा निस्तारण के लिए प्रति टन के हिसाब से कंपनी से विभाग द्वारा तय की गई धनराशि का भुगतान अभी तक नहीं किया गया है. कंपनी विभागीय कर्मचारियों और अधिकारियों की कार्यप्रणाली के कारण यहां से रू़खसत होने की फिराक़ में हैं. नगर आयुक्त पी एन दुबे का इस संबंध में कहना है कि ऐसी कोई बात नहीं है, कंपनी हमारी पार्टनर है और हम मिलजुलकर काम कर रहे है. अभी प्लांट पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहा है, इसमें थोड़ा वक्त लगेगा. बायोवेस्ट उठाने के लिए विभाग द्वारा दत्ता एंटरप्राइजेज को ठेका दिया गया था, जिसका काम मेडिकल वेस्ट का सुरक्षित वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण करना था. इसका कामकाज ठीक न पाए जाने पर कंपनी को हटाने का निर्णय अवश्य लिया गया था लेकिन कंपनी द्वारा कोर्ट से स्टे प्राप्त कर लिया गया है. महापौर अजुंला सिंह ने नगर-निगम के नकारापन के लिए उत्तर प्रदेश की बसपा सरकार को सीधे तौर पर ज़िम्मेदार बताते हुए आरोप लगाया कि उनके कार्यकाल में ताजनगरी की सा़फ-स़फाई व्यवस्था को जानबूझकर पलीता लगाया गया. जनहित को दरकिनार कर के मेरे द्वारा किए गए प्रयासों में अ़डंगा लगाया गया
Source :- http://up.chauthiduniya.com/2011/12/agra-people-disturbed-by-dirt.html






लोगों द्वारा कैसा शहर अनुभव किया जाता है ये आगरा उर्फ़ गंदगी का शहर :- 
दूसरे दिन आगरा घूमने निकले। आगरा की सड़कों पर इतना अव्यवस्थित यातायात और इतनी गंदगी है कि यहाँ आपको कोई विदेशी दिखेंगे तो नाक पर रूमाल बाँधे, गंदगी से बचते-बचाते चलते मिलेंगे। आगरा की गलियाँ और यमुना नदी तो गंदी है ही, जिसके किनारे भैंसों के तबेले हैं। आगरा फोर्ट में भी एक-दो जगह पान की पीक दिखाई दी। गाइड से पूछा, यह कैसे हुआ, तो उसने बताया कि भीतर घुसने वाले दर्शकों की तो जाँच कर ली जाती है, मगर रेड फोर्ट के सरकारी कर्मचारी ही कई बार खुद गुटखा लेकर भीतर चले जाते हैं! अंदर घुसने वालों की जाँच में भी कई बार ढील-पोल होती है। सच तो यह है कि हम जिस गाड़ी में घूमने निकले थे उसका ड्रायवर भी बार-बार खिड़की से मुँह निकालकर पच्च-पच्च पीक थूकता था। मना करो तो अपनी पान में बदरंग खीसें निपोरकर बेशर्मी से हँस देता था। यह सब देखकर यह मानने पर मजबूर होना पड़ता है कि हम हिन्दुस्तानियों का नागरिकता-बोध कितना कमजोर है। यह आगरा शहर की ही बात नहीं है, भारत के गाँव-गाँव और शहर-शहर में गंदगी और फूहड़पन का साम्राज्य है। हिन्दुस्तानी पालक और शिक्षक खुद भी किसी सार्वजनिक सफाई व्यवस्था का ध्यान नहीं रखते और न ही माता-पिता अपनी संतति को यह संस्कार देने का कोई प्रयास करते हैं। यदि कार में किसी बच्चे ने चॉकलेट खाया, तो माँ फट से खिड़की खोलकर, सड़क पर रैपर फेंक देगी। इसे सम्हालकर बाद में कचरा पेटी में डालना है यह करने और बच्चे को यह सिखाने का कष्ट हिन्दुस्तान में बहुत कम लोग करते हैं। नतीजा होता है विदेशियों के सामने शर्मिंदगी और हमारे अपने स्वास्थ्य को लगातार संकट। हमारा देश पहले ही गर्म जलवायु देश है ऊपर से इतनी गंदगी है, अत: यह वातावरण की गंदगी से फैलने वाली महामारियों का देश भी हो गया है। आखिर कब हम यह समझेंगे?

Source: http://objectionmelord.blogspot.in/2011/11/blog-post_814.html





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आगरा को स्मार्ट सिटी बनाने का लक्ष्य रखा गया  -
क्या क्या है स्मार्ट सिटी में -
 निर्बाध विद्युत आपूर्ति
. पर्याप्त स्वच्छ पेयजल आपूर्ति
. स्वास्थ्य और शिक्षा
. सफाई सहित सालिड वेस्ट मैनेजमेंट
. महिलाओं, बच्चों और वृद्ध नागरिकों की सुरक्षा
. सुलभ एवं सुविधाजनक सार्वजनिक परिवहन
. गरीबों के लिए किफायती आवास
. सक्षम आईटी कनेक्टिविटी और डिजिटेलाइजेशन
. ई-गवर्नेंस और नागरिक भागीदारी
. सुस्थिर पर्यावरण




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