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Saturday, March 21, 2015

बाईपास के बाद बचाएगी #हल्दी

 बाईपास के बाद बचाएगी  #हल्दी

शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और जलने पर राहत देने वाली हल्दी लोगों को दिल का दौरा पड़ने से भी बचा सकती है खासतौर से उन्हें जिनकी हाल ही में बाईपास सर्जरी की गई हो.



 

थाईलैंड में हुई एक नई रिसर्च बता रही है कि हल्दी में मौजूद कुर्कुमिन (पीले कण) को अगर परंपरागत दवाइयों के साथ मिला दिया जाए तो हार्ट अटैक का खतरा दूर हो सकता है. इस बारे में स्वास्थ्य पत्रिका अमेरिकन जरनल ऑफ कार्डियोलॉजी ने रिपोर्ट छापी है. जियांग माई यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वानवारंग वॉन्गशारोएन के नेतृत्व में यह रिसर्च हुई. उन्होंने बताया कि फिलहाल जो नतीजे आए हैं वो अभी छोटी रिसर्च के हैं. इन नतीजों की व्यापक रिसर्च करने के बाद पुष्टि होगी.










भारत और चीन में इलाज के पारंपरिक तरीकों में तो सदियों से हल्दी का इस्तेमाल होता आया है. रिसर्च के मुताबिक शरीर के भीतर जारी प्रज्वलन कई रोगों के विकास में अहम भूमिका निभाता है यहां तक कि दिल के रोगों में भी. टेक्सास में ह्यूस्टन के एमडी एंडरसन कैंसर सेंटर में कुर्कुमिन का कैंसर के इलाज में इस्तेमाल के बारे में रिसर्च कर रहे भारत अग्रवाल बताते हैं कि कुर्कुमिन प्रज्वलन की राह में रोड़ा बन कर मदद कर सकता है.
डॉक्टरों ने ऐसे 121 मरीजों पर रिसर्च किया जिनकी बिना किसी आपात वजह के 2009 से 2011 के बीच बाईपास सर्जरी की गई. इनमें आधे मरीजों को एक ग्राम के कुर्कुमिन कैप्सूल दिन में चार बार दिए गए. यह सिलसिला सर्जरी के तीन दिन पहले शुरू कर बाद के पांच दिन तक जारी रखा गया. बाकी बचे मरीजों को इसी मात्रा में बिना दवा वाली प्रायोगिक कैप्सूल दी गई. वैज्ञानिकों ने देखा कि बाईपास के बाद अस्पताल में रहने वाले मरीजों में से जिन्हें कुर्कुमिन दिया गया था उनमें 13 फीसदी को दिल का दौरा पड़ा. दूसरी तरह की कैप्सूल लेने वालों में 30 फीसदी मरीज दिल के दौरे का शिकार हुए. सर्जरी के पहले मरीज की स्थिति में फर्क का आकलन करने के बाद वॉन्गशाओरेन और उनके साथियों ने हिसाब लगाया कि कुर्कुमिन लेन वाले मरीजों में दिल का दौरा पड़ने का खतरा 65 फीसदी कम था.
आरकंसास यूनिवर्सिटी में कार्डियोलॉजिस्ट जवाहर मेहता कहते हैं, "कुर्कुमिन ने कई सालों से प्रज्वलन को कम करने और ऑक्सीजन के विषैलेपन को घटाने या मुक्त कणों से होने वाले नुकसान को कम करने गुण दिखाया है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह दवाइयों को विकल्प है." डॉक्टर मेहता ने ध्यान दिलाया कि एस्पिरीन, स्टैटिन्स और बीटा ब्लॉकर्स जैसी दवाएं दिल के रोगियों के लिए मददगार साबित हुई हैं और मौजूदा रिसर्च में भी मरीजों को ये दवाएं दी गईं. इस रिसर्च की एक सीमा तो यह है कि यह बहुत थोड़े लोगों पर किया गया है. दूसरी शंका यह है कि बहुत ज्यादा मात्रा लेने पर उसके साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं.
डॉक्टर मेहता ने कहा, "थोड़ी मात्रा में या फिर खाने में इस्तेमाल करने तक तो यह ठीक है और उपयोगी है. लेकिन मैं रिसर्च में बताए गए तरीके से कभी भी मेडिकल स्टोर जा कर हर रोज चार ग्राम कुर्कुमिन नहीं लूंगा."


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